शनिवार, 30 जुलाई 2011

हरेली

मिहिनत करइया छत्तिसगढ़ के रहइया मन परकरिति के अड़बड़ मान करथें अउ परकरिति के करजा चुकाए बर कब्भू पाछू नइ घुचँय। एखर सबूत हे इंकर तीज-तिहार, परब, परम्परा के परकरिति के संग लगाव। करमा, ददरिया, राउतनाचा, पंथी, सुआ नाच मा झुमइया-नचइया मिहिनती छत्तीसगढ़िया मन आगी उलगत जेठ, सावन के रदरदावत झड़ी अउ कुँवार के हाँड़ा कँपऊ जाड़ मा घलो जिनगी के नंगत मजा लेथें। पेट अउ ओनहाँ के जतन करत अपन जिनगी के हर समे ला हाँसत-गात गुजारना इँकर बिसेसता आय।

हरेली तिहार छत्तीसगढ़ के पारम्परिक तिहार आय। ये तिहार ल सावन महिना के अँधियारी पाख अमावस के दिन मनाए जाथे। ये हा किसान मन के सुरुवाती तिहार आय। टोना-टोटका ल दूर राखे बर हरेली तिहार के रात मा गाँव के रहवइया लोगन अउ मवेशी मन ला देवी-देंवता अउ परकरितिक बिपदा ले बचाए खातिर रातकिन गाँव के बइगा हा गाँव- देंवता के पूजापाठ करथे। हरेली तिहार के बेखन बत्तर-बियासी के काम हा निपट जाय रथे तेकर सेती खेती-किसानी के कामिन अउजार मन ला बिहनियच-ले साफ-सफई करके घर के अँगना मा बिछाये मुरुम के उपर रखथें अउ फसल बने होय इही भावना ले किसान मन पूजा-पाठ करके चीला रोटी के परसाद चढ़ाथें। पहाटिया मन गाय-गरु सुवस्थ राहय येकर खातिर जड़ी-बुटी खउला के बनाय दवई ला खवाथे। मवेसी मालिक हा गहूँ पिसान के लोंदी ला अंडा पान मा लपेट के अपन मवेसी मन ला खवाथे। बरसात के महिना होय के सेती मउसम मा कुहकी अउ नमी रहिथे जेकर ले रोग-रई होय के बहुँते जादा संभावना रहिथे। लीम जीवानू नासक होय के सेती गाँव के बइगा हा घरोघर लीम के डँगाली खोंचथे टोना टोटका ले बांचे बर हरेली के आघू रात मा अंडा के पान घर मा खोंच देय जाथे। ये जम्मो बनउक बुता खातिर गाँव के पउनी-पसारी मन मालिक मन के घरोघर जाके नेंग पाथें।

गाँव मा बरसात के दिन चिखला-पानी गली-खोर मा रहिथे। जेकर ले बाँचे बर पुरखा मन गेंड़ी के उदीम करे रिहिन हें। गेंड़ी ला बाँस नइते वइसने किसम के डंडा मा गोड़ ल मढ़ाय बर अपन-अपन हिसाब ले लोहा नइते ठाहिल लकड़ी के खीला दुनों डंडा मा ठोंक के ओकर उपर खोबसा ला बूच-रस्सी मा बाँध के बनाए जाथे। गेंड़ी चघे के मजा चिखल-च-पानी मा आथे। ए हा बाबू लइका मन के बड़ सुग्घर खेल आय। नोनी लइका मन संझौती बेरा सज-सँवर के गाँव के खइरका डाँड़ मा खेले ला जाँय। खो-खो, फुगड़ी, सूर, बिल्लस जइसे कतकोन खेल खेलँय जेन ल देखत सियान मन के मन नइ अघाय। गाँव के जवान मन नरियर फेंक के खेल खेलें। नरियल फेंकत-फेंकत कोस भर के दूरी घलो नाप डारें। अब तो ये खेलेच मन नंदागें। घरखुसरा बनके टीवी मा झुमे रिथें अउ देख-देख के आनी बानी के योजना बनाथें।

अंधबिसवाँस के सेती लोगन मा ए बिसवाँस बइठ गेहे के सावन-अमावस के रात मा टोनही मन अपन मंतर ल सिध करे बर मसानघाट मा साधना करे के बेर अपन मुहूँ मा जड़ी राखथें जेकर सेती लार आगी बरोबर बरथे। ये हमर दुरभाग आय के पहिली हइजा होय के दोस टोनही ल दे देत रिहिन। ये कइसन अंधबिसवाँस आय के टोनही मन जादू-टोना करके काकरो बिगाड़ कर सकथे ? अइसने डर देखाके ढोंगी मन ठगी अउ धोखाधड़ी घलो करथें ।

सचमुच देखन ते हरेली तिहार परकिरिति ल धनबाद देय के तिहार आय, खेती-किसानी के काम करइया किसनहाँ मन के तिहार आय। ये हा बारिस अउ हरयाली के सुवागत करे के छत्तिसगढ़िया तरीका आय, जेन ला हर साल उच्छा-मंगल के संग जुरमिल के मनाथन ।

संतोष कुमार

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!