बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

गोहार पारना

गोहार पारना : जोरदार चिल्लाना। (ऊँची आवाज से पुकारना)

तोर कइसन सुतई ए रंगलाल, पारा भर चोर-चोर के गोहार परगे तभो ते नइ उचेस।

गोहार परना

गोहार परना : खूब रोना-ललाना। (खूब विलाप करना)

बपरा के एके झन बेटा रिहिसे, वहू हा भरे जवानी मा च ल दिस तब गोहार परबेच करही।

गोल होना

गोल होना : भाग जाना। (भग जाना)

अपन ददा ला आवत देखिस ताँहले डेरहाराम हा चुपचाप गोल होगे।

गोल-गोल बात करना

गोल-गोल बात करना : घुमावदार बात करना। (यथावत)

लादूराम तो कभू सोज-सोज गोठियाबे नइ करे, गोल-गोल बात करे के ओकर सुभाव बन गेहे।

गोल करना

गोल करना : चोरा लेना। (चुरा लेना)

ए टूरा हा बदमास हे, नाननान जिनिस ला गोल कर देथे ।

गोरसी के आगी होना

गोरसी के आगी होना : तरिच-तरी ईरसा करना। (भीतर ही भीतर ईर्ष्या रखना)

अपन बुता ला छोंड़ के जउन हा दूसर बर गोरसी के आगी होही, तउन तो एक दिन खपबेच करही।

गोर्रिया के बइठना

गोर्रिया के बइठना : जम के बइठना। (जमकर बैठना)

फकालू राम ला काम-बुता के चेत नइ राहय, जिहाँ जाथे गोर्रिया के बइठ जथे।

गोबर बीनना

गोबर बीनना : बेकार के बुता करना। (व्यर्थ का कार्य करना)

बनी कमाए बर पलिया च मकिस तब गोबर बीने बर जात हे रधिया हा।

गोबर देना

गोबर देना : गाय-बइला के हागना। (गाय-बैल का मल त्याग करना)

अँगना लीपे बर गोबर नइ रिहिसे, धन तो गाय हा गोबर दे दिस ते बनगे।

गोदी हरियाना

गोदी हरियाना : अम्मल मा होना। (गभर्वती होना)

भले देरी सहीं फेर भगवान के किरपा ले मनटोरा के गोदी तो हरियागे।

गोदी सुन्ना होना

गोदी सुन्ना होना : लइका मर जाना। (संतान का मर जाना)

लइका के दुख ला उही जानथे, जेकर गोदी सुन्ना होए रथे।

गोदी भराना

गोदी भराना : लइका के जनम होना। (संतान प्राप्त होना)

गोदी भराना तो घर-परिवार बर खुसी के बातेच आय।

गोदी उजड़ना

गोदी उजड़ना : लइका मर जाना। (संतान का मर जाना)

देस के खातिर जउन दाई-ददा के गोदी उजड़थे, ऊँकर ऊपर पूरा देस ला गरब रथे।

गोदरी पिटान पीटना

गोदरी पिटान पीटना : नंगत के मारना। (खूब मारना)

ढोंगी बावा ला गाँव वाले मन गोदरी पिटान पीटे हें।

गोड़ मा नटई बाँधना

गोड़ मा नटई बाँधना : निगरानी मा राखना। (नियंत्रण में रखना)

जवान होवत लइका मन के गोड़ मा नटई बाँध के राखबे, तभे तो सहीं रद्दा मा जाहीं।

गोड़ मा आँखी होना

गोड़ मा आँखी होना : सदा सतर्क रहना। (यथावत)

भइया हा अइसन बइगुन कभू नइ कर सके। ओकर तो गोड़ मा आँखी हे।

गोड़ धो के पीना

गोड़ धो के पीना : खूब मान-सम्मान करना। (यथावत)

सतगुरू के गोड़ धो के पीना तो हमर संस्कार आए, एला क इसे छोंड़बो।

गोड़ धरना

गोड़ धरना : आसरा लेना। (आश्रय लेना)

हम तो छुटपन ले तुँहरे गोड़ धरेहन गौंटिया, आज तुम ला छोंड़ के कहाँ जाबोन।

गोड़तरी देखना

गोड़तरी देखना : अपन बइगुन देखना। (अपनी बुराई देखना)

जउन हा अपन गोड़तरी देखथे तेकरे बनथे। बिरान के देखे ले कुछु नइ मिले।

गोड़ टूटना

गोड़ टूटना : असहाय होना। (यथावत)

नोहर अउ सुकालू के जोड़ी अइसे रिहिसे के जउन बुता ला धरें ओला सलटा के छोड़ें। नोहर के मरे ले बपरा सुकालू के गोड़ टूटगे।

गुहू उफलना

गुहू उफलना : पाप हा परगट होना। (पाप प्रकट होना)

धन के राहत ले उतलंग नाप ले रे बाबू, एक दिन गुहू तो उफलबेच करही।

गुहरी गदबद होना

गुहरी गदबद होना : सतियानास होना। (सत्यानाश होना)

थरउटी खेत मा बरदी हमा गे रिहिसे कथे। जम्मों थरहा तो गुहरी गदबद होगे होही रे, काला राखथस?

गुलछर्रा उड़ाना

गुलछर्रा उड़ाना : मनमौजी खरचा करना। (मन माफिक खर्च करना)

पहिली के मालगुजार अउ बड़ जन नउकरी वाले बाप के एकलौता बेटा आए; पइसा बकबका गेहे तब गुलछर्रा उड़ाही नइ ते का करही।

गुर्री-गुर्री देखना

गुर्री-गुर्री देखना : गुँस्सा करना (गुस्सा करना)

नाननान बात बर गुर्री-गुर्री देखे ले लइका मन छपकहा हो जथें। मयाँ करके समझा तब समझहीं।

गुरू होना

गुरू होना : हुसियार होना। (होशियार होना)

कोदूराम हा दिखब मा भले लेड़गा दिखथे फेर पइसा-कौड़ी के मामला मा बहुँत गुरू हे। दूसर ला थोरको पता लगन नइ देय।

गुर-गोबर करना :

गुर-गोबर करना :  बिगाड़ देना। (यथावत)

कसनो किमती जिनिस राहय, टोर-फोर के गुर-गोबर करना एकर बुता ए।

गुर खा के गुलगुला ला घिनाना

गुर खा के गुलगुला ला घिनाना : बड़ जन अलहन करके नानमुन गलती ले बाँचे के उदीम करना। (बड़ी गलती करके छोटी-मोटी गल्तियों से बचने का प्रयास करना)

गाँव खातिर कुछुच नइ कर सकस रे कोदू, भले अपन बर चोरा के ले आबे। गुर खाके गुलगुला घिनाए ला कब ले सीख गेस तैं?

गुर के गठरी होना

गुर के गठरी होना : मयाँ पलपलाना। (अधिक प्रिय होना)

भाग ले करजा मा पइसा दे हे, तभो ओकर बर सेठ हा गुर के गठरी हो गेहे। कोनो मोफत मा देतिस ते कोन जनी का कर डरतिस ते।

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

गोड़ के धुर्रा पोंछना

गोड़ के धुर्रा पोंछना : खूब सेवा करना। (यथावत)

आज जबाना अतका बदल गेहे धनीराम, सुवारथ के साधत ले गोड़ के धुर्रा पोंछथें; बाद मा हिरक के नइ देखें।

गोड़ के धुर्रा पाना

गोड़ के धुर्रा पाना : असीस पाना। (आशीर्वाद पाना)

धनी के सरापा मा पथरा बने अहिलिया हा भगवान राम के गोड़ के धुर्रा पाके तर गे।

गोठ ला पियाना

गोठ ला पियाना : बात को बताना। (यथावत)

चार सियान ला बिपत के गोठ पियाए ले दुख हरु हो जथे।

गोठ ला जनाना

गोठ ला जनाना : बात ला बताना। (बात को बताना)

सुजानिक मन कर अपन गोठ ला जनाबे तभे तो समसिया के निदान होही।

गोठ ला गठियाना

गोठ ला गठियाना : बात ला सुरता राखना। (बात को याद रखना)

जिनगी सुधारे खातिर तइहा के गोठ ला गठिया के राखना परथे।

गोठ ला गठान पारना

गोठ ला गठान पारना : बात ला सुरता राखना। (बात को याद रखना)

रात-दिन कथा-परवचन के सुनेच ले का होही, सुनथस तउन गोठ ला गठान पार के राखतेस तब काम आतिस। 

गोठ ला अँचरा बाँधना

गोठ ला अँचरा बाँधना : बात ला याद रखना। (बात को याद रखना)

खून के रिस्ता मा अतका ताकत रथे के भइँस्सा-बैर वाले मन ला घलो मिला देथे। तोर ए बात ला मेंहा अँचरा बाँध के राखे हों।

गोठ मा मथलना

गोठ मा मथलना : बतरस मा मगन रहना। (वार्तालाप में मग्न रहना)

संतू अउ मंतू कहूँ मिलिन ते दूनों कोई गोठ मा अइसे मथल जथें के जरुरी बुता के घलो चेत नइ राहय।

गोठ मा गोठ निकलना

गोठ मा गोठ निकलना : बात खुले ले बात बाढ़ना। (प्रसंगवश चर्चा बढ़ना)

जिहाँ चार झन जुरियाए रथें तिहाँ गोठ मा गोठ निकली जथे अउ बेरा के पता घलो नइ चले।

गोठ छोंड़ के गोठियाना

गोठ छोंड़ के गोठियाना : बिसय ले हट के बात करना। (विषय से हटकर बात करना)

संतराम हा गोठ छोंड़ के गोठियाथे, तेकरे सेती ओला कोनो नइ भाय।

गोठ उसरना

गोठ उसरना : अबबड़ गोठियाना। (अधिक बातें करना)

बनक के बुता बर गतर नइ च ले अउ निंदा चारी बर कइसे गोठ उसरत हे।

गोड़ गड़ना

गोड़ गड़ना : भुइयाँ हा गिल्ला होना। (जमीन गीला होना)

सुक्खा-पाखा के दिन मा तुँहर घर गोड़ गड़त हे, तब बारिस मा कइसे करत होहू दुखित, एकरे सेती बारो महिना कोई-न-कोई बिमार रथो।

गे-बीते

गे-बीतेः कमजोर, सेवर। (कमजोर)

पढ़े-लिखे बर बड़े हा छोटे ले गे-बीते हे।

गुहू गोबर होना

गुहू गोबर होना : सतियानास होना। (सत्यानाश होना)

परेमिन हा बढ़िया रंगोली बनाए रिहिसे। लइका मन के भदभदई मा गुहू-गोबर होगे।

गे-गुजरे

गे-गुजरेः बेकार। (यथावत)

कउहा के लकड़ी तो बँभरी ले गे-गुजरे हे।

गुहू खाना

गुहू खाना : अनियाँय करना। (अन्याय करना)

पढ़े-गुने के बाद घलो गुहू खाही, तब कोन का कर डरही।

गुहू उफलना

गुहू उफलना : पाप हा परगट होना। (पाप प्रकट होना)

धन के राहत ले उतलंग नाप ले रे बाबू, एक दिन गुहू तो उफलबेच करही।

गुहरी गदबद होना

गुहरी गदबद होना : सतियानास होना। (सत्यानाश होना)

थरउटी खेत मा बरदी हमा गे रिहिसे कथे। जम्मों थरहा तो गुहरी गदबद होगे होही रे, काला राखथस?

गुलछर्रा उड़ाना

गुलछर्रा उड़ाना : मनमौजी खरचा करना। (मन माफिक खर्च करना)

पहिली के मालगुजार अउ बड़ जन नउकरी वाले बाप के एकलौता बेटा आए; पइसा बकबका गेहे तब गुलछर्रा उड़ाही नइ ते का करही।

गुर्री-गुर्री देखना

गुर्री-गुर्री देखना : गुँस्सा करना (गुस्सा करना)

नाननान बात बर गुर्री-गुर्री देखे ले लइका मन छपकहा हो जथें। मयाँ करके समझा तब समझहीं।

गुर-गोबर करना

गुर-गोबर करना : बिगाड़ देना। (यथावत)

कसनो किमती जिनिस राहय, टोर-फोर के गुर-गोबर करना एकर बुता ए।

गुरू होना

गुरू होना : हुसियार होना। (होशियार होना)

कोदूराम हा दिखब मा भले लेड़गा दिखथे फेर पइसा-कौड़ी के मामला मा बहुँत गुरू हे। दूसर ला थोरको पता लगन नइ देय।

गुर खा के गुलगुला घिनाना

गुर खा के गुलगुला घिनाना : बड़ जन अलहन करके नानमुन गलती ले बाँचे के उदीम करना। (बड़ी गलती करके छोटी-मोटी गल्तियों से बचने का प्रयास करना)

गाँव खातिर कुछुच नइ कर सकस रे कोदू, भले अपन बर चोरा के ले आबे। गुर खाके गुलगुला घिनाए ला कब ले सीख गेस तैं?

गुर के गठरी होना

गुर के गठरी होना : मयाँ पलपलाना। (अधिक प्रिय होना)

भाग ले करजा मा पइसा दे हे, तभो ओकर बर सेठ हा गुर के गठरी हो गेहे। कोनो मोफत मा देतिस ते कोन जनी का कर डरतिस ते।

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

चुनई के खरचा

चुनई ह अब मुड़पीरा होगे हावय। गाली-गलौज, एक-दूसर ऊपर आरोप प्रत्यारोप, स्याही, अंडा फेंकना- ये ह आम बात होगे हावय। असो के चुनई म तो एक-दूसर के बेइाती करे म पार्टी वाले मन कोनो कमी नई करत हावय। सत्ता के लालच म पार्टी बदलत हावयं। सालो साल एक पार्टी म रहे के बाद अभी दूसर पार्टी म जात हावय। कारन एके ठक आय टिकट नई मिलना। आज देस ल गांधी, नेहरू के धरती कहे म सरम महसूस होथे। एक-दूसर ल बेइाती करे म कोनो कमी नइए। साधु सन्यासी सब येमा हाथ सेंकत हावयं।

बड़े-बड़े रैली, गाड़ी-मोटर हवई जहाज, हैलीकाप्टर सबके उपयोग होवत हावय। ये सब म पेटरोल फूंकावत हावय। ये खपत के हरजाना आम जनता भुगत ही, पेटरोल के भाव ह बाढ़ही। खर्चा के बात करबे तब कहिथें के पार्टी के पइसा आय। जब एक मनखे पार्टी ले खड़े होथे तब ओला अपन पइसा खर्च करना चाही। पार्टी कर पइसा कहां ले अइस? चंदा ले पइसा आथे। चंदा अतेक रहिथे के खाना-पीना, घूमना एक के संग-संग हजारों के होवथे, पंडाल, बिजली, झंडा, रूमाल, गमछा सब तैयार हो जाथे।

मैं ह अपन मोहल्ला, म देखेंव के एक पार्टी ह लइका मन ल बैनर लगाए बर रोजी देथे। गाड़ी के पेटरोल बर पइसा देथे। चाय, पानी बर रोजी के हिसाब ले घलो पइसा मिलथे। अतेक पइसा सिरिफ चंदा ले। चंदा तो उही मनखे ह दिही जेन ल अपन उल्टा-सीधा काम जितइया पार्टी ले कराना हावय। तभे तो वो ह दिल खोल के खर्चा करथे जेन ल बाद में बियाज सहित वसूल सकय। मरत ले खरचा करथे के ओ पार्टी ह जीत जाय। ये ह पइसा के खेल आय। ये खेल ह अभी बहुत बाढ़गे हावय। एक गरीब मनखे के दिल के आपरेसन करे बर कोनो भी व्यापारी वर्ग पइसा नई देवय। अतेक स्कूल म पानी, शौचालय के कमी हावय तेन ह कोनो ल नई दिखय। पार्टी के आदमी जीतही तब काम कराही ये ह पार्टी के वायदा आय वोट लेवत तक। ओखर बाद म सब भुला जाथे। आपस म एक-दूसर के बाल के खाल निकालत रहिथे। भइगे इही म पांच बछर निकल जथे। पइसा देवइया मन के जेब म दुगुना, तीन गुना पइसा आ जथे। सब खुस। पार्टी खुस के जतका हल्ला करना हावय तेन ल कर लेन, खर्चा-पानी निकलगे, जीत घलो गेन। सराब, साड़ी, पइसा देके वाहवाही अउ वोट ले लेन। पइसा देवइया खुस काबर के ओखर खर्चा के परिनाम बने रहिस। अब तो दूनो हाथ म पइसा हावय।

गरीब ह सराब, कपड़ा, पइसा पाके खुस, एक वोट के कीमत अतेक अच्छा हावय तब ये चुनाव हर महिना काबर नई होवय। मध्यमवर्गी पिसागे, गहूं के घुना कस रमजागे। अब तो अतेक खर्चा के कुछ तो टेक्स देय ले परही। पेटरोल के दाम बाढ़ही। साग-भाजी कपड़ा सब माहंगी। पार्टी के दोसारोपन, गालीगलौज ले युवावर्ग ल एक दिसा मिलगे। हमर नेता के रद्दा में ही चलना हावय।

चरित्र के नकल, गाली के नकल उंखर काम करे के ढंग के नकल- आज के युवा ल एक भ्रस्ट चरित डाहर लेगत हावय। वायदा खिलाफी, चरितहीनता के उदाहरन बने नेतामन के नकल सुरू होगे हावय। आज देस के प्रधानमंत्री ल खुलेआम गाली देय के प्रथा सुरु होगे हावय। याने घर, आफिस सब जगह म ये मर्यादा मंत्र तो होबे करही।

चुनई बर सिरिफ घर-घर मिले के नियम बनना चाही। रैली, भासन बंद होना चाही। दूरदरसन म चैनल के बहस बंद होके पार्टी ल अपन विचार रखे के सरुआत करना चाही। पइसा के खेल बंद होना चाहिए।
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सुधा वर्मा
देशबंधु "मड़ई" अंक से संकलित

चलती के नाम गाड़ी, बिगड़ गे त...

बियंग


बहुत साल पहिली किसोर कुमार, असोक कुमार अउ अनूप कुमार तीनों भाई के एक ठन फिलिम आय रहिस हे- चलती के नाम गाड़ी। फेर वोखर बाद के लाईन ल कोनो नई बतावय। मैं बतावत हों चलती के नाम गाड़ी बिगड़ गे त खटारा।
टेटकू बैसाखू ल कार में घूमत देख के एक दिन महूं सोंचेव कि का मैं उंखरों बरोबर नइ हौं? तब मोर सुभिमान ह अपन आंखी खोलिस अउ सपना ले झकना के डर्राय लइका बरोबर जाग गेंव। मोर सुभिमान हा मोला धिक्कारिस, अरे सेकण्ड किलास आफिसर होय के बाद भी तोर जघा कार नई हे? मोला धिक्कार हे। टुरुर-टुरुर करत फटफटी में आथस जाथस। मोर अंदर अपने अपन एक प्रेरना आइस कि तैं हा नवा गाड़ी के औकात नई रखस। तब सेकेण्ड हेण्ड ले लंव। ये बात ह मोर मन ला भागे। नवा गाड़ी में नवा चलइया रहे से टूट-फूट के डर बने रहिथे। सेकण्ड हेण्ड गाड़ी हा ठोंका जथे तभो नई अखरय। अब मैं सोंच लेंव कि तीन महीना के तनखा सकेल के कार लेना हे। दानी महाराज ला फोन करेंव। महराज मोर बर बने असन सेकेण्ड हेण्ड कार देख के खरीद देतेस गा। इही बात अपन ननपन के संगवारी हरसेवक लाल ल घलो कहेंव। दूनों झन मोला बड़ कोसिन, तैं हा का सेकेण्ड हेण्ड गाड़ी खरीदत हस, नवा लेते ते हा। मैं कहेंव भाई मोर पोजीसन ला देखव यार, नोनी ह मेडिकल के अउ बाबू ह इंजीनियरिंग के पढ़ई करत हे। दूनों मिला के पौने चार लाख के सालाना खरचा हे। फेर बिहाव, फेर नौकरी, फेर साहर में घर। तब मोर जघा का बांचही तुहीं मन बतावव। बाढ़े नोनी के एकेक साल हा पांच किलो के बांट कस बाप के छाती में मढ़ा देथे। कब वोखर हाथ पिंवरा दौं कहि के चिंता लगे रहिथे। आज के खराब जमाना में होनी-अनहानी के बड़ डर लगे रहिथे।

वो मन मोर बर एक ठन गाड़ी देखिन अउ खरीदवा भी देइन। अलवा जलवा वो मन मोला कामचलाऊ गाड़ी चलाय बर घलो सिखा देइन। अब मैं कहेंव- चलौ न यार तीनों झन लांग ड्राइव में जाबो। वो मन सुनिन तब खलखला के हांसिन अउ कहिन लांग ड्राइव में तंै हा भाभी ल लेग जबे। मैं वो मन ला मिठई खवा के बिदा हो गेंव। गाड़ी में पहिली यात्रा मौली भांठा के करेंव। नरियर फोरेंंव अउ ठीक ठाक घर पहुंच गेंव। बाई हा मोर सुवागत करिस अउ मोरे टेस मारे के दिन आगे कहिके खुस होगे। पारा भर ल नरियर अउ पेड़ा बांट देंव। परोसी मन आ-आ के देखिन अउ बधई देइन। अब इतवार के दिन हमन अपन भांची के घर सिमगा जाय के मन बनाएन। नवा गाड़ी लेते तो मन अपन हितू पिरीतू रिस्तेदार घर एखर सेती जाथे ताकि वोमन ल पता चल जावै कि बाबू ह गाड़ी ले डरे हे। घूमे से ज्यादा गाड़ी के परचार वोखर मन के उद्देश्य रहिथे। मोर बाई ह तेरा सौ के साड़ी अउ पचास हजार के गहना लाद के तियार होगे। हमर गाड़ी हा सिमगा जाय  बर निकल गे। मस्त गाड़ी में गाना सुनत-सुनत दूनों झन हंसी-खुसी जावत रहेंन। सिमगा हा हमर गांव ले पचास कि.मी. दूरिहा हे। अब सिमगा के नदी आगे। नदिया के चढ़ाव चढ़त-चढ़त गाड़ी हा बंद होगे। बहुत कोसिस के बाद भी गाड़ी चालू नई होइस। उल्टा गाड़ी हा पछघुच्चा घुचत-घुचत पुल ले वापिस आ गे। दस मिनट के कोसिस के बाद भी गाड़ी चालू नई होइस। आघू-पाछू गाड़ी मन के लंबा लाइन लगेे। हारन उप्पर हारन बाजे बर धर लीस। एक झन टरक वाले सरदार हा मोर मेर आ के आंखी देखाय बर धरलीस। की गल है बास्सा? मैं कहेंव भाई साहब गाड़ी ह अचानक बंद होगे, चालूच नइ होवत हे। हमन दूनों झन बाहिर निकल गे राहन। मोर बाई कोती देख के कहिस बीबी टीपटाप रखे हो तो गाड़ी भी टीपटाप रखो न यार। मैं कहेंव नवा गाड़ी ए भाई साहब। ना जी ना हमें मत बनाओ। नई गड्डी हमने भौत देखी है। ये तो फोर्थ हेण्ड गड्डी है जी। आघू पाछू दूनों कुती जाम लगे के कारन हमन दूनों झन अजायब घर कस परानी हो गे राहन। सबो झन हमन ला देखे बर कहिस- पीछे देखिए। मैं बिना पाछू देखे आघू बढ़ गेंव। बारगांव पहुंच के गाड़ी ले उतरेंव अउ चपरासी ला कहेंव- अरे, इसमें पानी मार दे। धूल ज्यादा लग गई है। गाड़ी ला देख के चपरासी हा खलखला के हांस दीस। मैं पूछेंव-क्यों हंस रहा है? तब वो लजा के कहिस- कुछ नहीं साहब। मैं वोखर जघा खड़ा हो के देखेंव तब घुराहा कांच के अतलंगहा टूरा मन अंगठी से गाड़ी खटारा हे कोनो झन बइठहू लिख दे राहयं। लकर धकर स्टॉफ के कोनो मनखे झन देख ले कहिके लिखना ल हाथे म मिटार देंव। आखिर इज्जत के सवाल रहिस हे। अइसे तइसे हर सात दिन में कभू हारन, कभू, लाइट, कभू पंचर, कभू कुछु टूट-फूट के सिकायत आय बर धरलीस। गाड़ी मेंटनेंस में वोखर कीमत के बराबर खर्चा हो गे राहय। अब मैं वापस फटफटी में ड्यूटी आय जाय बर धरलेंव। गाड़ी ल बेंच देस का जी? कहिके स्टॉफ वाले मन पूछयं। मैं कहेंव नहीं यार, गाड़ी ह घर में रखे हे, ये फटफटी ल मढ़ाय रखना ठीक नई हे, यहू तो चलत रहना चाही न? मोर मन मोला अंदर से हुदेना मारत राहय- बता दे न तोर गाड़ी हा खटारा हो गे हे कहिके, फेर मोर नामी कंपनी के बनियाइन हा कहिस चुप राह, ये अंदर के बात ए। आज भी वो गाड़ी हा ऐतिहासिक बन के मोर घर के बाहिर में खड़े (पड़े) रहिथे। मोर रामप्यारी हा मोर इज्जत ला बढ़ा देथे। जेन देखथे तेन मोला पइसा वाले समझथे। अब वोला रोज बिहनिया एक कि.मी. चलाथौं बाहिर बट्टा जाय बर वोखर उपयोग करथें, काबर कि एक कि.मी. से दुरिहा जाय के अब मोरो मन में बिसवास नई रहिगे हे। कब कते मेर रुक जही डर बने रहिथे। चलत गाड़ी ला देख के लोगन ला लगथे कि मोर गाड़ी हा चालू हालत में हे। एक झन लेवइया हो मेकेनिक धर के आय राहय। रोज बिहनिया मोर एके काम रहिथे, पारा मोहल्ला में सब के उठे से पहिली मोला उठे बर परथे। का बताववं जी रतिहा सुनसान में पारा के अतलंगहा टूरा मन गाड़ी के सब्बोकांच में खटारा लिख दे रहिथें। धुर्राय कांच में अंगठी के लिखना ह जग्ग ले दिखथे। गाड़ी के सबो काचं मन ल कच्चा फरिया में पोंछना मोर नित्य धर्म बन गे हे।

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डॉ. राजेन्द्र पाटकर स्नेहिल
बेरला, बेमेतरा
देशबंधु के मंड़ई अंक ले संकलित

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!