रविवार, 5 अक्तूबर 2014

चुनई के खरचा

चुनई ह अब मुड़पीरा होगे हावय। गाली-गलौज, एक-दूसर ऊपर आरोप प्रत्यारोप, स्याही, अंडा फेंकना- ये ह आम बात होगे हावय। असो के चुनई म तो एक-दूसर के बेइाती करे म पार्टी वाले मन कोनो कमी नई करत हावय। सत्ता के लालच म पार्टी बदलत हावयं। सालो साल एक पार्टी म रहे के बाद अभी दूसर पार्टी म जात हावय। कारन एके ठक आय टिकट नई मिलना। आज देस ल गांधी, नेहरू के धरती कहे म सरम महसूस होथे। एक-दूसर ल बेइाती करे म कोनो कमी नइए। साधु सन्यासी सब येमा हाथ सेंकत हावयं।

बड़े-बड़े रैली, गाड़ी-मोटर हवई जहाज, हैलीकाप्टर सबके उपयोग होवत हावय। ये सब म पेटरोल फूंकावत हावय। ये खपत के हरजाना आम जनता भुगत ही, पेटरोल के भाव ह बाढ़ही। खर्चा के बात करबे तब कहिथें के पार्टी के पइसा आय। जब एक मनखे पार्टी ले खड़े होथे तब ओला अपन पइसा खर्च करना चाही। पार्टी कर पइसा कहां ले अइस? चंदा ले पइसा आथे। चंदा अतेक रहिथे के खाना-पीना, घूमना एक के संग-संग हजारों के होवथे, पंडाल, बिजली, झंडा, रूमाल, गमछा सब तैयार हो जाथे।

मैं ह अपन मोहल्ला, म देखेंव के एक पार्टी ह लइका मन ल बैनर लगाए बर रोजी देथे। गाड़ी के पेटरोल बर पइसा देथे। चाय, पानी बर रोजी के हिसाब ले घलो पइसा मिलथे। अतेक पइसा सिरिफ चंदा ले। चंदा तो उही मनखे ह दिही जेन ल अपन उल्टा-सीधा काम जितइया पार्टी ले कराना हावय। तभे तो वो ह दिल खोल के खर्चा करथे जेन ल बाद में बियाज सहित वसूल सकय। मरत ले खरचा करथे के ओ पार्टी ह जीत जाय। ये ह पइसा के खेल आय। ये खेल ह अभी बहुत बाढ़गे हावय। एक गरीब मनखे के दिल के आपरेसन करे बर कोनो भी व्यापारी वर्ग पइसा नई देवय। अतेक स्कूल म पानी, शौचालय के कमी हावय तेन ह कोनो ल नई दिखय। पार्टी के आदमी जीतही तब काम कराही ये ह पार्टी के वायदा आय वोट लेवत तक। ओखर बाद म सब भुला जाथे। आपस म एक-दूसर के बाल के खाल निकालत रहिथे। भइगे इही म पांच बछर निकल जथे। पइसा देवइया मन के जेब म दुगुना, तीन गुना पइसा आ जथे। सब खुस। पार्टी खुस के जतका हल्ला करना हावय तेन ल कर लेन, खर्चा-पानी निकलगे, जीत घलो गेन। सराब, साड़ी, पइसा देके वाहवाही अउ वोट ले लेन। पइसा देवइया खुस काबर के ओखर खर्चा के परिनाम बने रहिस। अब तो दूनो हाथ म पइसा हावय।

गरीब ह सराब, कपड़ा, पइसा पाके खुस, एक वोट के कीमत अतेक अच्छा हावय तब ये चुनाव हर महिना काबर नई होवय। मध्यमवर्गी पिसागे, गहूं के घुना कस रमजागे। अब तो अतेक खर्चा के कुछ तो टेक्स देय ले परही। पेटरोल के दाम बाढ़ही। साग-भाजी कपड़ा सब माहंगी। पार्टी के दोसारोपन, गालीगलौज ले युवावर्ग ल एक दिसा मिलगे। हमर नेता के रद्दा में ही चलना हावय।

चरित्र के नकल, गाली के नकल उंखर काम करे के ढंग के नकल- आज के युवा ल एक भ्रस्ट चरित डाहर लेगत हावय। वायदा खिलाफी, चरितहीनता के उदाहरन बने नेतामन के नकल सुरू होगे हावय। आज देस के प्रधानमंत्री ल खुलेआम गाली देय के प्रथा सुरु होगे हावय। याने घर, आफिस सब जगह म ये मर्यादा मंत्र तो होबे करही।

चुनई बर सिरिफ घर-घर मिले के नियम बनना चाही। रैली, भासन बंद होना चाही। दूरदरसन म चैनल के बहस बंद होके पार्टी ल अपन विचार रखे के सरुआत करना चाही। पइसा के खेल बंद होना चाहिए।
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सुधा वर्मा
देशबंधु "मड़ई" अंक से संकलित

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!