मंगलवार, 19 जुलाई 2016

अलसी से पाइये सम्पूर्ण पोषण

क्या आप अलसी के बारे में नहीं जानते तो जान लीजिये, क्योंकि ये गुणों की खान है। अलसी (Alsi or Flax Seeds)  तिल के बीज से थोड़े बड़े आकार में होती है। खाने में इसका प्रयोग बेक की जाने वाली रेसिपी पर छिड़क कर या इसे पीस कर लड्डूओं या कुकीज़, केक आदि में प्रयोग किया जाता है। यदि आप बिना अंडे के केक आदि बनाना चाहते हैं तो अंडे के विकल्प के रूप में भी अलसी के पिसे हुए चूरे को या अलसी के बीज को भिगो कर पीसकर प्रयोग कर सकते हैं।

इसमें प्रोटीन, फाइबर, लिग्नन, ओमेगा-3 फेटी एसिड, विटामिन-बी ग्रुप, मैग्नीशियम, कैल्शियम, जिंक, सेलेनियम आदि तत्व होते हैं। अश्वगंधा व हरी सब्जियों में पाया जाने वाला विटामिन नियासीन भी अलसी में प्रचुरता से होता है।


अलसी रक्तचाप को संतुलित रखती है, कॉलेस्ट्रॉल (LDL-Cholesterol)  की मात्रा को कम करती है, दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है, हृदयघात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से बचाव करती है, हृदय की गति को नियंत्रित रखती है और वेन्ट्रीकुलर एरिदमिया से होने वाली मृत्युदर को बहुत कम करती है। यह कब्ज और बबासीर के लिये बहुत कारगर है।

अलसी के एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं जिससे त्वचा आकर्षक, कोमल, नम व बेदाग रहती है। यह स्वस्थ त्वचा जड़ों को भरपूर पोषण दे कर बालों को भी स्वस्थ, चमकदार व मजबूत बनाती है।

अलसी के बीज के चमत्कारों का हाल ही में खुलासा हुआ है कि इनमें 27 प्रकार के कैंसररोधी तत्व खोजे जा चुके हैं। अलसी में पाये जाने वाले ये तत्व कैंसररोधी हार्मोन्स को प्रभावी बनाते हैं, विशेषकर पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर व महिलाओं में स्तन कैंसर की रोकथाम में अलसी का सेवन कारगर है। दूसरा महत्वपूर्ण खुलासा यह है कि अलसी के बीज सेवन से महिलाओं में सेक्स करने की इच्छा तीव्रतर होती है।

कैसे खायें अलसी के बीज
अलसी को धीमी आँच पर हल्का भून ले्ं। फिर मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भरकर रख ले्ं। रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच पावडर पानी के साथ ले्ं। इसे सब्जी या दाल में मिलाकर भी लिया जा सकता है।

इसे अधिक मात्रा में पीस कर नहीं रखना चाहिये, क्योंकि यह खराब होने लगती है। इसलिये थोड़ा-थोड़ा ही पीस कर रखे्ं। अलसी सेवन के दौरान पानी खूब पीना चाहिए्। इसमें फायबर अधिक होता है, जो पानी ज्यादा माँगता है।

एक चम्मच अलसी पावडर को 360 मिलीलीटर पानी में तब तक धीमी आँच पर पकायें जब तक कि यह पानी आधा न रह जाये। थोड़ा ठंडा होने पर शहद या शक्कर मिलाकर सेवन करे्ं। यह गनोरिया, नेफ्राइटिस, अस्थमा, सिस्टाइटिस, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, कब्ज, बवासीर, एक्जिमा आदि के उपचार में उपयोगी है।

अलसी के बीज के चूरे को रोटी, दूध, दाल या सब्जी की ग्रेवी में मिलाकर खाया जा सकता है। प्रति व्यक्ति पाँच ग्राम से दस ग्राम तक अलसी का खाना स्वास्थ्य के लिये गुणकारी रहता है।

अलसी को नमक लगे पानी में भिगो कर फिर सूखाकर सेक लें, फिर इसे खाना खाने के बाद मुखवास के तौर पर भी खाया जा सकता है।
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विशेष : अलसी में ओमेगा-3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह एसिड थायरायड ग्रंथि के सही तरीके से काम करने में आवश्यक भूमिका निभाता है। हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित लोगों को अलसी और अलसी के तेल का प्रयोग जरूर करना चाहिये।
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गर्मी में आप इसकी मात्रा आधी कर लें। 

रविवार, 17 जुलाई 2016

मूर्ख हिन्दुओं की मानसिकता

अगर मूर्ख हिन्दुओं के मानसिकता के बारे में जानना हो तो... सोशियल मीडिया फेसबुक आदि में ये एक पोस्ट है जो खुद हिन्दू ही पोस्ट व शेयर कर रहे हैं... ये है वो पोस्ट की मुख्य बातें-

"जब मैं दूरदर्शन पर न्यूज़ देखता हूँ तो मुझे ये लगता है कि...मेरे देश में शांति और सदभाव है। देश धीरे-धीरे विकास भी कर रहा है, सभी कुछ सामान्य सा ही है… फिर जब में प्राइवेट न्यूज़ चैनल देखता हूँ तो मुझे पता लगता है कि पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे चल रहे हैं, हिन्दू मुस्लिम एक-दूसरे को मार-काट रहे हैं, दलितों पर भारी अत्याचार हो रहा है, करीब-करीब सारे दलितों की हत्या हो चुकी है और सवर्ण-वर्ग दलितों के घरों को लूट रहे हैं, हिन्दुस्तान में गृह-युद्ध शुरू हो रहा है। इससे घबराकर जब मैं बचने के लिये घर से बाहर निकलता हूँ तो पाता हूँ कि बाज़ार में तो सब कुछ सामान्य सी हलचल है।

कहीं मुस्लिम वर्ग RSS के पथ संचलन पर पुष्प वर्षा कर रहा है तो कहीं गणपति के पंडाल में नमाज़ पढ़ी जा रही है… कहीं मंदिर के अंदर मुस्लिम महिला की डिलीवरी हिन्दू महिलायें करवा रही है।

पता लगा कि सारी साम्प्रदायिकता और अशांति न्यूज़ चैनल के स्टूडियो में और न्यूज़ एंकर के दिमाग में ही थी, जो कि ब्रीफ़केस में भरे हुये कागज़ की शक्ल में स्टूडियो में पहुँचाई जा रही थी।"


इसके बाद कहते हैं कि ये लड़ाई-झगडे सब मीडिया के द्वारा फैलाये गये वहम है... ऐसे हिन्दुओं को देखता हूँ तो खून खौलता है… तो क्या कश्मीरी पंडित मुसलमानों के पुष्पवर्षा से भाग गये..? जितने दंगे मुहर्रम में या आज तक हज़ारों दंगे हुये हैं वो सब दंगे नहीं बल्कि मुसलमानों की तरफ से हिन्दुओं पर किये गये पुष्पवर्षा थे..? अगर मानलें कि मीडिया ने करवाया है तो बाबर ने राममंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद मीडिया के उकसावे में किया है..? औरंगजेब, बाबर, खिलजी, अकबर, टीपू आदि सब AAJTAK, NDTV और ABP देखने के बाद बहक गये और लाखों करोड़ों हिन्दुओं को काट दिया..? जजिया कर लगा दिया..? उस दिन जो ओवैसी ने कहा था..? वो मीडिया की उपज थी..? हज़ारों मंदिर तोड़े गये पर ये लिख रहे हैं कि मुस्लिम तो पूजा कर रहे हैं गणेश भगवान की..? इनके हिसाब से कहीं कुछ नहीं हुआ..? कल भी जितने दंगे हुये तो इनके हिसाब से वो सामान्य हलचल है..? आजकल कश्मीर में जो कुछ हो रहा है वो सब तो बस टीवी स्टूडियो में हो रहे हैं..? इनको सारे दंगे टीवी में ही चलते दिखते हैं... बाहर नहीं..? क्यूँ ..? क्योंकि दंगों की आँच इनके घरों के आसपास अभी तक नहीं पहुँचा है तो.. इनको लगता है कि सबकुछ ठीक है.. सब कुछ सामान्य है… जैसे सावन के अंधे को चारों तरफ हरा ही हरा दिखाई देता है..?

जब तक ऐसे दिमाग से पैदल टाइप हिन्दू रहेंगे... तब तक भगवान भला करे.. हिन्दुओं का.... खुद तो मूर्ख है ही.... दूसरों को भी असावधान करते हैं.. बेवकूफ बनाते हैं...?

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

की-बोर्ड से पाइए मुक्ति

समय है की-बोर्ड से 99% मुक्ति पाने का। जब आप फेसबुक पर कोई लम्बी पोस्ट लिखते हैं तो आपकी अंगुलियाँ थकने लगती हैं या मोबाइल की किसी भी एप्लीकेशन में ज़्यादा लिखना पड़े तो ये विचार मन में आता ही है कि कोई ऐसा उपाय हो कि फटाफट लिखना हो जाये।

तो ये बिल्कुल संम्भव है और इसके लिए किसी भारी भरकम एप की भी जरूरत नहीं। बस, दो मिनट दीजिये और आपका ‘निजी सचिव’ यानि आपका एंड्रॉयड मोबाइल आपकी आवाज पर फटाफट टाइप करेगा।

प्रक्रिया आसान है।
सबसे पहले Setting में जायें।
Language & input को टच करें।
Automatic को अनटिक करें।
भाषाओं की सूची सामने होगी।
नीचे की तरफ जायेंगे तो हिन्दी (भारत) को सिलेक्ट कर लें।
वापस language & input पर आयें।

Google Voice Typing को ऑन कर दें।
अब कोई एप्लीकेशन खोलें जिसमें आपको कुछ लिखना हो। की-बोर्ड प्रकट होगा। अब देखिये स्पेस बार के बाँयीं ओर या की-बोर्ड के ऊपरी तरफ दाहिनी ओर एक छोटा -सा माईक दिखाई देगा।
इसे टच करेंगे तो की-बोर्ड ग़ायब हो जायेगा और बड़े आकार का माईक सामने होगा। माईक के ऊपर हिन्दी भारत लिखा होगा और नीचे Speak Now या अब बोलें ।
बस, अब आप अपने मोबाइल को पास में लेकर वह सब बोलना शुरू कर दीजिये और आपका निजी सचिव फटाफट उसे टाइप करता जायेगा।

( ये सुविधा केवल नेट ऑन होने पर ही मिलेगी)
स्क्रीन शॉट्स के माध्यम से भी आप इस प्रक्रिया को पूरी कर सकते हैं।
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– संजय कुमार शुक्ला

कानूनी रूप से किया जाना ज़रूरी है ई-मेल एड्रेस का पंजीकरण

इंटरनेट से जुड़ी आज की दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति का ई-मेल एड्रेस होना एक अनिवार्यता बन चुका है। ई-गवर्नेंस पेपर लैस बैंकिंग तथा रोजमर्रा के विभिन्न कार्यों हेतु कम्प्यूटर व इंटरनेट का उपयोग बढ़ता जा रहा है।

मोबाइल के द्वारा इंटरनेट सुविधा ब्रॉड बैंड, 3जी, 4जी सेवाओं आदि की बढ़ती देशव्यापी पहुँच से एवं इनके माध्यम से त्वरित वैश्विक संपर्क सुविधा के कारण अब हर व्यक्ति के लिये ई-मेल पता बनाना जरूरी सा हो चला है।

नई पीढ़ी की कम्प्यूटर साक्षरता स्कूलों के पाठ्यक्रम के माध्यम से सुनिश्चित हो चली है। समय के साथ अद्यतन रहने के लिये बुजुर्ग पीढ़ी की कम्प्यूटर के प्रति अभिरुचि भी तेजी से बढ़ी है। ई-मेल के माध्यम से न केवल टैक्सट वरन, फोटो, ध्वनि, वीडियो इत्यादि भी उतनी ही आसानी से भेजे जाने की तकनीकी सुविधा के चलते ई-मेल का महत्व बढ़ता ही जा रहा है। 

हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ में सॉफ्टवेयर की उपलब्धता तथा एक ही मशीन से किसी भी भाषा में काम करने की सुगमता के कारण जैसे-जैसे कम्प्यूटर का प्रयोग व उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है, ई-मेल और भी प्रासंगिक होता जा रहा है।


ई-मेल के माध्यम से सारी दुनिया में किसी भी इंटरनेट से जुड़े हुये कम्प्यूटर पर बैठकर केवल अपने पासवर्ड से ई-मेल के द्वारा आप अपनी डाक देख सकते हैं व बिना कोई सामग्री साथ लिये अपने ई-मेल एकाउंट में सुरक्षित सामग्री का उपयोग कर पत्राचार कर सकते हैं। यह असाधारण सुविधा तकनीक का, युग को एक वरदान है।

आज लगभग हर संस्थान अपनी वेबसाइट स्थापित करता जा रहा है। विजिटिंग कार्ड में ई-मेल पता, वेब एड्रेस, ब्लॉग का पता होना अनिवार्य सा हो चला है। किसी संस्थान का कोई फार्म भरना हो, आपसे आपका ई-मेल पता पूछा ही जाता है।

हार्डकॉपी में जानकारी तभी आवश्यक हो जाती है, जब उसका कोई कानूनी महत्व हो, अन्यथा वेब की वर्चुअल दुनिया में ई-मेल के जरिये ही ढेरों जानकारी ली दी जा रही हैं। मीडिया का तो लगभग अधिकांश कार्य ही ई-मेल के माध्यम से हो रहा है।

विभिन्न कंपनियाँ जैसे गुग्गल, याहू, हॉटमेल, रैडिफ आदि मुफ्त में अपने सर्वर के माध्यम से ई-मेल पता बनाने व उसके उपयोग की सुविधा सभी को दे रही हैं। ये कंपनियाँ आपको वेब पर फ्री स्पेस भी उपलब्ध करवाती हैं, जिसमें आप अपने डाटा स्टोर कर सकते हैं।

क्लिक हिट्स के द्वारा इन कंपनियों की साइट की लोकप्रियता तय की जाती है, व तद्नुसार ही साइट पर विज्ञापनों की दर निर्धारित होती है जिसके माध्यम से इन कंपनियों को धनार्जन होता है।

ई-मेल की इस सुविधा के विस्तार के साथ ही इसकी कुछ सीमायें व कमियाँ भी स्पष्ट हो रही हैं। मुफ्त सेवा होने के कारण हर व्यक्ति लगभग हर प्रोवाइडर के पास मामूली सी जानकारियाँ भरकर, जिनका कोई सत्यापन नहीं किया जाता, अपना ई-मेल एकाउंट बना लेता है।

ढेरों फर्जी ई-मेल एकाउंट से साइबर क्राइम बढ़ता ही जा रहा है। वेब पर पोर्नसाइट्स की बाढ़ सी आ गई है। आतंकी गतिविधियों में पिछले दिनों हमने देखा कि ई-मेल के ही माध्यम से धमकी दी जाती है या किसी घटना की जवाबदारी मीडिया को मेल भेजकर ही ली गई। यद्यपि वेब आईपी एड्रेस के जरिये आईटी विशेषज्ञों की मदद से पुलिस उस कम्प्यूटर तक पहुँच गई जहाँ से ऐसे मेल भेजे गये थे, पर इस सब में ढेर सा श्रम, समय व धन नष्ट होता है।

चूँकि एक ही कम्प्यूटर अनेक प्रयोक्ताओं के द्वारा उपयोग किया जा सकता है, विशेष रूप से इंटरनेट कैफे या कार्यालयों में इस कारण इस तरह के साइबर अपराध होने पर व्यक्ति विशेष की जवाबदारी तय करने में बहुत कठिनाई होती है।

अब समय आ गया है कि ई-मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से जरूरी किया जावे। जब जन्म, मृत्यु, विवाह, ड्राइविंग लाईसेंस, पैनकार्ड, पासपोर्ट, राशन-कार्ड, जैसे ढेरों कार्य समुचित कार्यालयों के द्वारा निर्धारित पंजीयन के बाद ही होते हैं तो इंटरनेट पर यह अराजकता क्यों?

ई-मेल एकाउंट के पंजीयन से धारक का डाक्यूमेंटेड सत्यापन हो सकेगा तथा इसके लिये निर्धारित शुल्क से शासन की अच्छी खासी आय हो सकेगी । पंजीयन आवश्यक हो जाने पर लोग नये नये व्यर्थ ई-मेल एकाउंट नही बनायेंगे, जिससे वेब स्पेस बचेगी, वेब स्पेस बनाने के लिये जो हार्डवेयर लगता है, उसके उत्पादन से जो पर्यावरण ह्रास हो रहा है वह बचेगा, इस तरह इसके दीर्घकालिक, बहुकोणीय लाभ होंगे।

जब ई-मेल उपयोगकर्ता वास्तविक हो जायेगा तो उसके द्वारा नेट पर किये गये कार्यों हेतु उसकी जवाबदारी तय की जा सकेगी। हैकिंग से किसी सीमा तक छुटकारा मिल सकेगा। वेब से पोर्नसाइट्स गायब होने लगेंगी, व इससे जुड़े अपराध स्वयमेव नियंत्रित होंगे तथा सेक्स को लेकर बच्चों के चारित्रिक पतन पर कुछ नियंत्रण हो सकेगा।

चूंकि इंटरनेट वैश्विक गतिविधियों का सरल, सस्ता व सुगम संसाधन है, यदि जरूरी हो तो ई-मेल पंजीयन की आवश्यकता को भारत को विश्वमंच पर उठाना चाहिये। मेरा अनुमान है कि इसे सहज ही विश्व की सभी सरकारों का समर्थन मिलेगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर माफिया आतंकी अपराधों के उन्मूलन में भी इससे सहयोग ही मिलेगा।
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विवेक रंजन श्रीवास्तव

(लेखक को नवाचार व रचनात्मक साहित्यिक गतिविधियों के लिये रेड एण्ड व्हाइट पुरुस्कार मिल चुका है)

रविवार, 10 जुलाई 2016

छत्तीसगढ़ में भी ‘छत्तीसगढ़ी’ बनाम ‘बाहरी’ की आग, आखिर क्यों?

एक तरफ जहाँ राष्ट्रवादी विचारधारा अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए ‘ऱाष्ट्र प्रथम’ जैसे जुमले गढ़ रही है तो दूसरी ओर स्थानीय अस्मिता की कुलबुलाहट देश के अलग-अलग हिस्सो में आंदोलन और विरोध की शक्ल में देश को झकझोरने में लगी हुई है। अब छत्तीसगढ़ में भी ‘बाहरी हटाओ’ के नारे बुलंद हो रहे हैं। अजीत जोगी की नई पार्टी बनाने के ऐलान के बाद बाहरीवाद पर हो हल्ला और तेज़ हो गया। आउटसोर्सिंग और भाषा, संस्कृति की उपेक्षा पर आंदोलन करने वाले संगठन अब खुलकर कथित बाहरियों के खिलाफ़ पोस्टरबाजी करने लगे हैं, अजीत जोगी द्वारा क्षेत्रीय अस्मिता पर राजनीतिक दाँव खेलने का विस्तार तो देखा ही जा सकता है लेकिन कुछ समय से छत्तीसगढ़ी अस्मिता के लिए आंदोलनरत ‘छत्तीसगढ़ क्रान्ति सेना’ ज़मीन से लेकर साईबर तक एक उग्र वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करने में जुटी हुई है, ऐसे में सवाल उठता है कि इन गतिविधियों और चेष्टाओं के पीछे राजनीतिक स्वार्थ की मंशा है या अंसतोष की पीड़ा या दोनों भावों के एकसार होने से पैदा हुई परिस्थितियाँ। 


आजादी के पूर्व भी भारत में सांस्कृतिक, भौगोलिक और राजनीतिक बिखराव रहा है जिसने आज़ाद भारत में एक राष्ट्र का स्वरूप ज़रूर लिया लेकिन जल्द ही अपने पृथक अस्तित्व के लिए संघर्ष भी करने लगा नतीज़तन भाषाई आधार पर राज्य गठन का दौर शुरू हो गया। यह स्थिति भी कोई ज्यादा चिंताजनक नहीं थी लेकिन चिंताजनक तब हुई जब अलग-अलग भाषा-भाषियों के मध्य किसी कारण से कटुता पैदा हुई फिर जिसकी परिणति साठ के दशक में कन्नड़भाषियों द्वारा मलयालम और तमिलों के ख़िलाफ़ आवाज़ बनकर उभरी जिसमें वे बाहरी लोगों के बजाय कन्नड़ लोगों को नौकरी देने की माँग कर रहे थे फिर ये आग 1965 के आसपास तमिलनाडु में लगी और तमिलनाडु से उत्तरभारतीयों को खदेड़ा जाने लगा, हमारे सामने असम, मेघालय, त्रिपुरा, पंजाब के कई उदाहरण हैं जहाँ इस विरोध ने हिंसक रूप भी ग्रहण किया और भारतीय नागरीक के बरक्स क्षेत्रवाद ने बहुतों को बाहरी बना दिया। महाराष्ट्र में मराठी अस्मिता के नाम पर आए दिन दूसरे प्रदेश से आए लोगों के साथ विवाद की परिस्थितियाँ निर्मित होती रहती है। इस वैमनस्यता के असर से पूरा देश क्षेत्रवाद के भावों से खण्ड-खण्ड होकर अस्मिता बोध के बजाय टकराव और बिखराव की ज़मीन तैयार करने लगता है। यह आरोप किसी एक प्रदेश के ऊपर नहीं है बल्कि हर प्रदेश अपनी-अपनी सीमाओं के भीतर ऐसे क्रियाकलापों को अंजाम देने में नहीं हिचकते ।

लेकिन छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह बातें काफी हद तक चौकाने वाली है क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा कहे जाने वाले खूबचंद बघेल ने भी ऐसे विवादों को अपने आंदोलन में पनपने नहीं दिया था और सबको साथ लेकर चलने की पैरोकारी करते रहे। यहाँ रहने वाले शांतचित्त निवासियों की वज़ह से छत्तीसगढ़ की मिट्टी बाहर से आए लोगों के लिए उर्वर बनी रही इसलिए औद्योगिक, राजनीतिक और व्यावसायीक घरानों में बाहर के राज्यों से आए लोगों का कब्जा रहा है। ‘छत्तीसगढ़ क्रांति सेना’ के प्रमुख अमित बघेल कहते हैं कि ‘जो छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति का सम्मान करता है, वह छत्तीसगढ़िया है। हम शिवसेना की तरह नहीं सोचते। हमारी सोच में स्वाभिमान है अभिमान नही्ं। हमारे बाबा डॉ. खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ भातृ संगठन का गठन किया। इस मंच से पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की परिकल्पना की। हमें पृथक राज्य तो मिला लेकिन न्याय नहीं मिला। बाहरी लोगों ने हमेें नीचा दिखाने का प्रयास किया है। बाहरी लोगों ने छत्तीसगढ़ की संपदा पर कब्जा कर लिया है। हमारी रत्नगर्भा धरती बाँझ होती जा रही है।’

इस बात से यह अंदाज़ा लगाना आसान हो जाता है कि स्थानीय लोगों की उपेक्षा होने से ऐसा मौसम तैयार हो रहा है।

अभी हाल ही में शिक्षा विभाग के द्वारा छत्तीसगढ़ के स्कूलों में ओड़िया पढ़ाने का आदेश जारी हुआ और वहीं से क्रांति सेना का उभार भी शुरू हो गया। तब क्रांति सेना ने अपने पोस्टरों और सोशल मीडिया के ज़रिए कहा कि- ‘हमें इस देश की किसी भी भाषा और संस्कृति से वैचारिक तौर पर कोई विरोध नहीं है, लेकिन जब तक यहाँ की मातृभाषा में संपूर्ण शिक्षा की व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक किसी भी अन्य प्रदेश की भाषा को किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जायेगा।’

इसके बाद आउटसोर्सिंग के मुद्दे पर भी इनका आंदोलन चलता रहा और जब रायपुर स्थित तेलीबाँधा तालाब का नाम बदलकर विवेकानंद सरोवर रखने का प्रस्ताव आया तब पहली दफा स्थानीय संस्कृति के संरक्षण के लिए बड़ी संख्या में लोग एकजुट होकर इस प्रस्ताव के खिलाफ़ सड़क पर उतर आए।

छत्तीसगढ़ी बनाम बाहरी विवाद पर सामाजिक कार्यकर्ता नंद कश्यप कहते हैं कि ‘इस विवाद में दो धाराएँ हैं, एक विभाजनकारी नस्लीय तरह की जो अचानक आए मूल निवासी फैशन से उपजी है, दूसरी धारा समता वाली है जो कि यह मानता है कि छत्तीसगढ़ में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का सिर्फ दोहन हो रहा है परंतु छत्तीसगढ़ के नौजवान किसान, मज़दूरों को इसका तनिक भी हिस्सा नहीं मिल रहा है। छत्तीसगढ़ की गरीबी इसका ज्वलंत उदाहरण है। इसलिए छत्तीसगढ़ी बनाम बाहरी भावना उभार पर है।’

इन बातों का अगर बारिकी से अध्ययन किया जाए तो लगता है कि ये ‘छत्तीसगढ़ी बनाम बाहरी’ विवाद ना होकर शोषण के विरूद्ध पैदा हुई भावना है जिसका राजनीतिक विस्तार किया जा रहा । साहित्यकार संजीव तिवारी के अनुसार ‘गैर छत्तीसगढ़िया धुन के सहारे स्थानीय नेताओं के विकास की संभावना देखते हुए ऐसे विवाद को बढ़ाते हैं जिसका उद्देश्य शीर्ष नेतृत्व में स्थापित गैर छत्तीसगढ़ियों को हटाना है।’

शायद इसीलिए अमित जोगी आउटसोर्सिंग के मुद्दे पर कहते हैं ‘कि प्रदेश सरकार को छत्तीसगढ़ के शिक्षित बेरोजगार युवाओं के हितों की रक्षा के लिए छत्तीसगढ़ में नौकरी के लिए छत्तीसगढ़ में बोले जाने वाली छत्तीसगढ़ क्षेत्र की भाषाओं के ज्ञान की अनिवार्यता का नियम बनाना चाहिए और यह बोलकर बहुत पहले ही अमित जोगी ने अपनी क्षेत्रीय राजनीति की ज़मीन तैयार करने की शुरूआत कर दी थी। इसका मतलब उपेक्षित भाषा, संस्कृति और लोगों को राजनीतिक विकल्प देने की घोषणा के पीछे ना केवल राजनीति है बल्कि विभिन्न कारणों से पैदा हुई परिस्थितियाँ हैं जिसमें स्थानीयता को अनदेखा करने के कारण उत्पन्न आक्रोश भी है जो कि स्थानीय राजनीति के उभार के लिए ईंधन की तरह है।

इसी आक्रोश की बानगी उन पोस्टरों में भी देखी जा सकती है जिसमें गैर छत्तीसगढ़ी नेताओं और मंत्रियों की तस्वीरें हैं जिसमें मुख्यमंत्री रमन सिंह की तस्वीर भी प्रमुखता से लगाई गई है।

लेकिन अब डर इस बात का है कि ये विरोध राजनीति के रास्ते ‘छत्तीसगढ़ी’ और ‘गैर छत्तीसगढ़ी’ लोगों के बीच पारस्परिक कटुता का कारण ना बन जाए। इस पर चिंता ज़ाहिर करते हुए साहित्यकार संजीव तिवारी कहते हैं कि जो मन-क्रम वचन से छत्तीसगढ़ी से प्रेम करता है वह छत्तीसगढ़िया है पत्रकार शेखर झा इसके जींवत उदाहरण हैं। बिहार के मिथिलाभाषी शेखर ने कुछ ही सालों में छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी को पूरी तरह से आत्मसात किया यह एक उदाहरण है ऐसे कई होंगे और आज ऐसे कईयों के लिए छत्तीसगढ़ की परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो जाए इससे पहले सरकार को छत्तीसगढ़ की संस्कृति, भाषा और लोगों के विश्‍वास पर खरा उतरना पड़ेगा अन्यथा अंसतोष की आग का राष्ट्रीय संस्कृति के लिए घातक साबित होने की संभावना बढ़ जाएगी।

छत्तीसगढ़ी को राजकाज की भाषा बनाने के लिए आंदोलन कर रहे नंदकिशोर शुक्ल कहते हैं कि ‘छत्तीसगढ़ अस्मिता की पहचान मेरी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी सहित यहाँ की सभी मातृभाषाएँ हैं लेकिन इन मातृभाषाओं में पढ़ाई लिखाई आज तक नहीं होने दी जा रही है जिसके लिए जवाबदार गैर छत्तीसगढ़िया सरकार है जिस भाषा में पढ़ाई लिखाई नहीं होती वह भाषा मर जाती है जो मुझे मंज़ूर नहीं।’

इन तमाम बातों के मूल में एक चीज़ नज़र आती है कि स्वतंत्र भारत में सभी संस्कृतियों को फलने फूलने का संविधानिक अधिकार होने के बावजूद कथित पॉप्यूलर कल्चर को थोपकर स्थानीय संस्कृतियों, भाषाओं और लोगों की उपेक्षा की जाती रहेगी तब कभी ना कभी वह गुस्सा किसी भी रूप में बाहर आकर राष्ट्र को झकझोरता रहेगा। स्थानीयता की उपेक्षा कर राष्ट्रवाद की दुहाई देना बिल्कुल बेमानी और ख़तरनाक है।
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AKSHAY DUBEY SAATHI
http://akshaydubeysaathi.jagranjunction.com

बुधवार, 6 जुलाई 2016

जब दुनिया कहती है


तेरे पास नहीं


उम्र लंबी करने के लिये



अपने पव्वे के लिये जुगाड़


रविवार, 3 जुलाई 2016

ट्रैक्टर और बैल नहीं मिले, तो अपनी खाट से ही खेत को जोत दियाअपनी खाट से ही खेत को जोत दिया

आश्चर्यजनक ! ट्रैक्टर और बैल नहीं मिले, तो अपनी खाट से ही खेत को जोत दिया

लोगों को हमेशा आपने अपने ट्रैक्टर या फिर बैल से खेत को जोतते हुए आपने जरूर देखा ही होगा। हरियाणा के कुछ गाँवों में शायद कुछ नया करने की तलाश में रहने वाले किसानों को ट्रैक्टर और बैल के बजाय अपनी बाइक की मदद से खेत को जोतते देखा होगा, लेकिन क्या कभी किसी किसान को अपनी खाट से खेत जोतते हुये देखा है। निश्चित तौर पर नहीं देखा होगा। 

विषम परिस्थितियों से कैसे तालमेल बनाया जाता है, इस गरीब किसान ने अपने बुलंद हौसले से साबित कर दिया। आइये बताते हैं कैसे- 

एक तरफ जहाँ सूखाग्रस्त महराष्ट्र में किसान अपनी जिंदगी से हार मानकर खुदखुशी कर रहे हैं वहीं पर महाराष्ट्र के बुद्रूक गाँव के इस गरीब किसान के पास जोतने के लिए औजार न होने पर अपनी खाट पर एक बड़ा सा पत्थर बाँध कर करीब 3 एकड़ खेत को जोत डाला। 

महाराष्ट्र के जलगाँव जिले के खिड़की बुद्रूक गाँव के किसान ‘‘विठोबा मांडोले’’ इलाके के कई खेतों में मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करता है मजदूरी से खर्च नहीं निकलने पर एक खेत को किराये पर ले लिया। खेत किराये पर तो मिल गया पर अब भी एक समस्या उसका पीछा कर रही थी – और वो थी खेत की जुताई। 

आर्थिक तंगी के कारण विठोबा के पास खेत को जोतने के लिए ना तो कोई बैल थे या ना ही औजार लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपनी खाट पर एक बड़ा सा पत्थर बाँधकर ही करीब 3 एकड़ खेत को अपनी मेहनत और सूझबूझ से जोत डाला। 

उनके इस हौसले भरे कदम को लेकर विठोबा के इस साहसिक कदम की फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है। विठोबा के इस हौसले से एक सीख मिलती है कि काम को अगर कोई करना चाहे, तो रास्ते मिल ही जाते हैं। ऐसे किसान को को हमारा सलाम…!

शुभ वर्षा ॠतु


एक सुझाव


न्यूनतम वेतन


दिन में चार चम्मच और कैंसर गायब !

दिन में चार चमच और कैंसर गायब ! रूस के मशहूर वैज्ञानिक ने बनाई एक शक्तिशाली औषधि...!

दुनिया भर के अरबों लोग कैंसर से पीड़ित हैं, आज के समय की यह सबसे घातक बीमारी है, लेकिन कुछ लोगों का दावा है कि यह रूसी वैज्ञानिक Hristo Mermerski द्वारा की गई खोज से कैंसर को प्राकृतिक उपचार द्वारा ठीक किया जा सकता है।

रूस के एक वैज्ञानिक Hristo Mermerski ने घर में बनाई जाने वाली एक ऐसी औषधि इजाद की है जिसके इस्तेमाल से बहुत सी भिन्न-भिन्न प्रकार की बीमारियों अथवा कैंसर जैसे जानलेवा बीमारी से भी बचा जा सकता है।

ये औषधि कई प्रकार के कैंसर के इलाज में फायदेमंद हो सकती है-

औषधि तैयार करने की सामग्री-
  • 400 ग्राम ताज़ा अखरोट
  • 400 ग्राम अँकुरित अनाज (Sprouted Grains)
  • 1 किलो प्राकृतिक शहद
  • 12 ताज़ा लहसुन की कलियाँ
  • 15 ताज़ा नीबू
अंकुरित अनाज (sprouted grains ) तैयार करने का तरीका –
अनाज को एक काँच के बर्तन में रख दें उसमें उतना ही पानी डालें जिससे अनाज अच्छी तरह भीग जाये। इसे एक रात के लिये इसी तरह छोड़ दें… अगली सुबह अनाज को छान कर पानी निकाल दें फिर अच्छी तरह पानी से धोने के बाद अनाज में से सारा पानी निकल दें। पानी निकालने के बाद अनाज को दोबारा कांच के बर्तन में डाल कर 24 घंटे तक रख दें। इससे अँकुरित अनाज तैयार हो जायेगा।

औषधि तैयार करने का तरीका –
लहसुन की कलियाँ, अखरोट और अँकुरित अनाज को ले कर एक साथ पीस लें।
5 नीबू लेकर बिना छिलका उतारे पीस लें।
(बाकि के 10 नीबुओं का रस निकालकर मिश्रण में मिला लें।)
सभी चीज़ों को अच्छे से मिला लें।

अब इस मिश्रण में शहद मिलायें इसे मिलाने के लिये लकड़ी के चम्मच का इस्तेमाल करें। इस मिश्रण को एक काँच के बर्तन में भर लें और फ्रिज़ (fridge) में रख दें। इसे तीन दिनों के लिये फ्रिज़ में रखें और आगे बताये अनुसार इसका सेवन करे-

Hristo Mermerski के अनुसार इसे सोने से आधा घंटा पहले लें और हर बार खाना खाने से आधा घंटा पहले लें। अगर आप इस औषधि का इस्तेमाल कैंसर के इलाज के लिये कर रहें हों तो हर 2 घंटे में 1– 2 चमच लें।

Hristo Mermerski के अनुसार ये औषधि लम्बी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिये सहायक है। ये कैंसर के इलाज में बहुत लाभकारी है और साथ ही जवान दिखने और शारीरिक ताकत के लिये भी फायदेमंद है। ये शरीर में मेटाबोलिज्म को बढ़ाता है , गुर्दों और लीवर को साफ़ करता है, शरीर में बीमारिओं से लड़ने की शक्ति पैदा करता है और दिल के दौरे से बचाता है।

अगर आपको ये जानकारी लाभकारी लगे तो इसके बारे में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बताना ना भूलें।

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!