मंगलवार, 22 मई 2012

मोबइल-महिमा

एक जघा अइसने
रमायन होवत रहय
परसंग मा सीता ढेंक-ढेंक के
रोवत रहय ।
परबुद्ध टीकाकार
हॉंत मटकात चिल्लावत रहय,
सीता हरन के घटना ल
सुग्घर ढंग ले बतावत रहय ।
सुन के मँय गुनेंव-
सीता हरन के घटना कहूँ
मोबइल जुग मा हो जातिस,
त असोक बाटिका मा
सीता ल हनुमान
मुंदरी के जघा मोबइल धरातिस ।
मोबइल ल चिन के
सीता के मुहूँ हरियातिस,
वो अपन दुख ल
राम ल बतातिस-
हलो राम !
मँय सीता गोठियावत हँव
हरन मोर कइसे होइस
डिटेल मा बतावत हों
राम कथे-
डिटेल मा नहीं
सार्ट मा बताना हे
रिचार्ज तो मोला कराना हे |
सीता कथे-
सुन्ना कुरिया देखके
रावन हबक ले अइस हे
लाल-लाल, बड़े-बड़े
आँखी ल देखाइस हे ।
कर्रेंवॉं मेछा देखके
बुध मोर पतरागे
दिन दहाड़े राम
मोला अँधरौटी छागे ।
उड़नखटोला मा
मोला ले जइस हे
असोक बाटिका मा
लेग के बइठइस हे
ते बेरा ले आज तक
बाट तोर जोहत हौं
सुरता करके राम
रात-दिन रोवत हौं |
झटले आजा राम
मोला दुख ले उबार ले
अतियाचारी रावन ला
जान ले मार दे
राम कथे-
सीता ! मँय झटकन आत हों ।
फेर थोरकिन पता लगाके
रावन के नम्बर बता तो ।
तिरजटा ला पुछके
सीता नमबर बतात हे
त रिसे-रिस में राम
रावन ला फोन लगात हे ।
हलो रावन..!
मँय राम गोठियावत हँव
सीता ला लहुटा दे
सिरयसली बतावत हँव
कहूँ नी मानस
त मोला लंका आन दे
फेर झन कबे काबर
बंगाला अस सान दे |
आहूँ ते तोर दसो मुड़ी ला
धर के निचोहूँ |
जम्मो लहू ल तोर
लंका में रुतोहूँ ।
जरा सोंचव भइया
वो समे कहूँ रतिस मोबइल
त रमायन में
रस कहॉं झलकतिस
राम-रावन लड़ई घलोक
साटकट निपटतिस ।
ये सबो हमर बिचार हरे
कल्पना के गागर ए
रमायन तो गंगा ए भइया
रमायन भव-सागर ए ।
रमायन ल समझगे
वो हा इंसान ए
जेनला समझ नइ अइस
वोखर बर भगवान हे ।
एती-ओती करके हम
जिनगी पहावत हन
हीरा अस देंह ला
बिरथा गँवावत हन
आओ जम्मो मिलके
हम राम-रस पावन
ये मानुस तन ला भइया
सफल बनावन ।

-पुष्कर सिंह ‘राज’





कवि सम्मेलन

एक जघा अइसने
कवि सम्मेलन होत रथे
संचालन करत कवि कथे-
सुनइय्या मन ले बिनती हे
थोक चेतलगहा गुनो
कवि सम्मेलन सुरू होत हे
सांति के साथ सुनो ।
अतका सुनके
एक झन बाई के मती छरियागे
वो हा रहय सांति के दाई
झगरी बाई आगू मा आगे ।
काखर मा दम हे
हमर रहत ले
सांति के साथ सुनही
ओखर ददा ल पता चलही
त धोबी अस नी धुनही ।
कवि थोरकन सोंच के कथे-
माता सारदा के हम
पइयाँ परत हन
सरसती बंदना के साथ
कार्यकरम सुरू करत हन
अतका सुन के सारदा
रिसेरिस मा झुपत हे,
तभिन सांति-सांति कहत रेहेव
अब मोर बेटी
सरसती, बंदना दिखत हे ।
अरथ के अनरथ देख
कवि कउवाय रथे
खिसियाके कथे-
अच्छा त भई
सब जोर के ताली बजा देव
अउ आरती ला मारो गोली
परेम के साथ कविता के मँजा लेव ।
अतका मा
आरती के दाई भारती आगे
ओखर देहें मा तो
मानो चण्डी समागे ।
अरे में देखहूँ
आरती ल छो़डके
परेम कइसे कविता संग जाही
ओखर बाबू हा जानही
त बारा नी बजाही ।
ये सबो ला सुनके
कवि मन एती-ओती झकत हे
वोला देख के सुनइय्या मन
पेट धर-धर के झाँकत हे ।

-पुष्कर सिंह ‘राज’

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!