शनिवार, 18 मई 2013

झन भटकौ पर दुआरे-दुआर

किसन अउ मोहन दुनों झन एके महतारी के कोख ले जनम धरे रहिन, बिचारी उरमिला हा कुटिया-पसिया करके अपन दुनों बेटा मन ला छोटकुन ले बड़का करे रिहिस। उरमिला के जोंड़ी सिवलाल हा एमन ला छोंड़ के कमाय-धमाय के डर मा चिकारावाला जोगी बाबा बनके गाँव-गाँव किंदरत अपन जिनगी ला चलाय। उरमिला ला कतको झन के अलकरहा गोठ ला सुने ला घलो परय फेर अपन सत ला नइ डिगन दिस। कतको मनखे मन के आँखी ओकर उपर गड़ जाय, फेर दुनों बेटवा मन एकदिन मोर जिनगी के सहारा बनहीं कहिके बनिभूति करके अउ अपन पेज पसिया खवा-पिया के अपने दुनों बेटा ला पोंस डरिस। 

अँचलपुर गाँव मा जउन काम बुता मा बलाय तिहाँ-तिहाँ जाके गरीबीन पसिना चुचवात ले काम करय, बड़े बिहीनचे दुनों लइका ला पाना-रोटी अउ बासी-पेज खवा के काम बुता मा चल देवय, मँझनिया आके भात राँध के अलवा-जलवा खवा के फेर काम मा चल देवय, सँझा जुवार फेर आतिस अउ खवा-पिया के कलेचुप रतिहा नींद भॉंज के अपन जिनगी के गुजारा करय। 

परलोकिहा सिवलाल हा उरमिला के अतका दुख ला का जानहीं वो तो अपन पेट भरे बर चिकारा धर के खोरे-खोर गीत गावत मँगई करे- सफो दिन होत न एक समान ये गीत हा वो परबुधिया उपर गुजरही कहिके पता नइ पइस। उरमिला सरी दुनिया के करू भाखा ला सुनके अपन दुनों बेटा ला अँचलपुर गाँव के स्कूल मा भरती कराके पढ़इस-लिखइस। अँचलपुर इसकुल ले आठवीं तक पढ़ के किसन अउ मोहन खुद सहर के बड़े इसकूल मा भरती होके मेटरिक तक पढ़ के दुनों झन नउकरी पागे। किसन हा मास्टर अउ मोहन हा बेंक मा बाबू होगे। 

किसन अउ मोहन पहिली पगार झोंक के अपन घर मा अइन, त अपन दाई ला किहिन अचरा ला फरिहा दाई अउ दूनों बेटा मन उरमिला के अचरा मा रुपिया ला डार के अपन दाई के गोड़ तरी गिरगे। बिचारी उरमिला के आँखी मा आँसू आगे अउ दुनों बेटा ला पोटार के अब्बड़ आसीस दिस अउ किहिस- सुनव बेटा..! इमान ला झन छोड़हु अउ बने-बने कमाहु खाहु, ‘लबारी के नौ नाँगर होथे’ अइसन बात मा झन आहु, मोर गरीबिन के गोठ ला हिरदे मा राखे रहू। आज काली ठॉंव-ठॉंव रुपिया पइसा के खातिर मारकाट होवत हे, धन-दउलत खातिर एक दूसर के परान ला लेवत हे। दूसर के धन दोगानी ला बइमान मन झपट के धन बनावत हे, जउन डाहर देखबे तउन डाहर करिया-करिया धन के भंडार भरत हे। अपन दाई के गोठ ला सुनके किसन अउ मोहन किरिया खाथे- दाई तोर किरिया हे हमन अपन जिनगी मा अइसन काम नइ करन, हमर गुरजी हा राजा हरिसचन्द अउ राजा मोरजधज के कहानी सुनाय रिहिस तेहा हमन ला घेरी-बेरी सुरता आथे। थोरेक दिन के गेय ले कन-कन जोर के उरमिला हा कुटिया ला छोट असन पक्का घर बना डरिस। सोचे लागिस- मोर उम्मर अब ढरत हे कोन जनी ये परान कब निकल जही, दूनों झन बेटा के बिहाव करके दाई-ददा के करजा ले उबर जहूँ। 

किसन अउ मोहन एके घर के गउँटिया देवलाल के बेटी मथुरा अउ रधिया मन ला बिहा के लानिस, दुनों बहिनी मन बड़ रूपस अउ गुनिक रिहिस। देवलाल हा अपन बेटी मन ला ये कहिके बिदा करिस- बेटी..! जे घर मा जावत हव वो घर के माटी खाके निकलहु। एकझन सास भर हे, ओला अपन सगे दाई बरोबर मानहू, बड़ दुख पाके किसन अउ मोहन ला पोसे हावे, ये बात ला अपन हिरदे मा राखहु। दाई-ददा के पिरोहिल गोठ हा मथुरा अउ रधिया के जिनगी ला सुघ्घर बना दिस। 

कुछ दिन बितिस तहाँ ले दूनों झन के पाँव भारी होगे। उरमिला हा घलो अपन दूनों बहु ला बेटी ले बड़के मानय, उँखर बर रिकिम-रिकिम के रोटी-पिठा बना के खवाय। जब महिना बितिस तहाँ ले मथुरा अउ रधिया हा दू झन सुंदर अकन बेटवा जनम दिस। छट्ठी मा बाजा बजवइस अउ उरमिला हा अपन पाँघर मन ला खवइस-पियइस, का पूछबे उरमिला के दिन अइसे बहुरिस जइसे घुरवा के दिन बहुरथे। अँगना मा दूनों लइका किलकारी मारत अइसे लागय जइसे किसन अउ बलदाउ सउँहत उरमिला घर आगे। 

उरमिला के दूनों नाती बाढ़गे, अपन सँगवारी मन संग बाँटी-भँवरा खेलत खोर मा हाँसत बोलत राहय। ओतका मा चिकारावाला जउन उँखर डोकरा-बबा आय तउन हा चिकारा बजावत कंडिल धरे बड़ जान झोला खाँध में अरोय लइका मन मेर अइस। लइका मन का जाने ये हमर पुरखा आय। सिवलाल जउन चिकारावाला बन के घूमत राहय ओला देखके वो दूनों लइका सुनील अउ अनील मन किहिन- चलो सँगवारी हो..! ये चिकारा वाले बबा कर सुन्दर अकन भजन सुनबो। चारो कोति लइका मन ओला घेर के बइठगे अउ चिकारावाले ला भजन सुनाय बर किहिन, त ओ चिकारा वाले हे सुंदर अकन भजन गाके सुनाइस- ‘का देखे दरपन में रे मुखड़ा दया धरम तोर तन मा।’ 

भजन सुनके सुनील अउ अनील खुस होगे अउ कथे- ये चिकारावाले बबा..! चल हमर घर, हमर डोकरी दाई हा हमन ला कतको कहिनी-किस्सा सुनाथे ओहा तोर गाना ला सुनके बड़ खुस हो जही अउ तोला अब्बड़ अकन दान-पुन करही। लइका मन के गोठ ला चिकारावाले बबा मानगे। लइका मन वोला परछी मा बइठार के अपन डोकरी दाई ला किहिस- चल तो दाई ..! चिकारावाले बबा आये हे, बड़ सुघ्घर के भजन सुनाथे। 

लोटा मा पानी धरके जब उरमिला आइस, त देखथे- ये तो मोर जो़ंडीच हरे ‘जोग मा साख नीहि भभुत मा आँखी फोरे।’ बमफार के उरमिला रोय लागिस, सरी पारा परोस के मनखे अउ बहु बेटा, नाती-नतुरा बड़ दुख मनात राहय का बात होगे, त उरमिला हा बात ला फोरिस- ‘काम के न धाम के, दुसमन अनाज के।’ अइसन येकर चाल रिहिस, मोला छोड़ के जोगी बबा बनगे अउ किहिस- मँय हा येकर धरम ला नइ मेटँव बूढ़तकाल मा हाड़ा मा दाग नइ लगाँव। दार-चउँर ला सुपा मा लान के रख दिस। 

चिकारावाले बबा जउन उरमिला के पति राहय तेहर हाथ जोर के कथे- अब मँय ये काम नइ करँव, नाती-नतरा ला खेलाहूँ अउ डेरउठी मा बइठ के घर के रखवारी करहुँ। किसन अउ मोहन वोतका मा कथे- दाई..! बिहनिया के भुलाय कहुँ सँझा बेरा घर आथे, त ओला लहुटाय नइ जाय। आज ले बिन ददा के रेहेन, अब हमन ददावाले होगेन। सिवलाल के आँखी ले आँसू टपटप चुहे लागिस। उरमिला के हिरदे मा मया उफलगे, अपन अचरा मा सिवलाल के आँसू ला पोछिस अउ किहिस- हाय रे मोर सिवदेवता..! पाँव परत हँव तुँहर... ये हरे तुँहर घर-दुआर, जोगी बनके झन जाव पर दुआर। ठउँका बनउकी बनगे सिवलाल के जिनगी सुघ्घर अकन सँवरगे।

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खेती अपन सेती

आसाराम सांवतपुर गाँव के निचट गरीबहा मनखे रिहिस। सिधवापन उँखर देखत बनय, गाँव के सियानी-गँवारी ले ओहा बाहिर राहय। खेती-खार के बुता ओकर आड़ी पूँजी रिहिस। उधो के लेना न मांधो के देना अपन रद्दा आना अउ अपन रद्दा जाना ला जानय। ओकर भोला अउ सिधवा सुभाव ले देख के देवपुर गाँव के नरायन गउँटिया हा अपन आँखी के पुतरी दुलउरिन बेटी ला ओकर संग बिहा दिस। 

जइसने ओकर नाँव तइसने ओकर पाँव सँउहत आसाराम के घर मा लछमी आगे अइसने जान। नरायन गउँटिया के दया ला का कहिबे आसाराम के छितका कुटिया हा महल बनगे, अन-धन के भंडार ओकर घर होगे। गाँव के मन काहय लछमी का अइस, आसाराम लछमीनरायन होगे। अब जम्मो गाँव के मनखे मन आसाराम गउँटिया केहे लागिन, जिनगी मा सुख हरियागे, दुख परागे। आसाराम काहय- धन, दोगानी ओरिछा के छॉंव आय, न आवत देरी न जावत देरी। 

गाँव के पुरोहित महराज मोती मेर क था पुरान सुनय अउ गुनय। हमर भुँइया मा राजा हरिचंद, मोरजधज, करन दानी रिहिन जे मन सत् खातिर अपन धन-दोगानी ला खियाल नइ कर अपन नाँव ला उजागर करिन। भगवान राम हा राजगद्दी ला तियाग के जंगल-जंगल घूम के भुइयाँ के भार उतारिन। गॉंधी बबा हा भारत-माता ला पर के मुट्ठी के बंधना ले छोड़ाइस तेखर सेती आज हम सब के जिनगानी हा अमरइया के रूख असन दिखत हावे। अपन घर के परछी मा बइठार के चार सियान मन ला बेद सासतर के गियान देवय। 

आसाराम अउ लछमी के जोंड़ी हा राम अउ सीता कस लागय। दिन जात का बेरा लागथे दू झन पिलवा के बाप घला आसाराम हा बनगे। अब तो आसाराम के दसो अँगरी हा घींव मा समाय हे तइसे होगे। अपन बेटवा मन के नाँव ला घलो गुन के रखिस, बड़े के नाँव रामलाल अउ छोटे के नाँव लखन लाल। राम-लखन कस दूनों भाई मन राहय, आगू-पीछू रेंगय। थोरकिन बाढ़िन, छै बरिस होइस तहाँ ले आसाराम हा रामलाल अउ लखन लाल ला पाठसाला मा भरती करा दिस, पढ़ई-लिखई मा घला होसियार रिहिन, देखते-देखत बारा किलास ला अव्वल नंबर मा पास करीन। नरायन गउँटिया ला का पूछबे अपन बेटी अउ दमांद ला देखे बर तरसे। 

देवपुर-सावंतपुर गाँव के मन काहय नरायन गउँटिया के दया ले आज ओकर बेटी दमांद के घर अन-धन भरगे। नरायन गउँटिया अउ गउँटनिन बुढ़वा डोकरा अउ डोकरी होत ले जिइन, तहाँ ले अपन परान ला तज दीन, अब सरी भार आसाराम के मुँड़ी मा आगे अब तो दूघेरा होगे, त लछमी हा कथे अब एक काम करथन देवपुर मा अड़बड़ खेती किसानी हे, उहाँ जाके खेती खार ला समहालतेन अउ सांवतपुर ला देखे खातिर सुखचैन ला कहि देथन। अइसे कहिके सांवतपुर के कारोबार ला सुखचैन के भरोसा छो़ंडके देवपुर चल दीन, नरायन गउँटिया के नाँव ला अँजोर कर बर आसाराम हा नरायन गउँटिया के जोखा करइया बिसउहा के नाँव मा दू एकड़ जमीन ला लिखा-पढ़ी कर दिस। बिसउहा राउत हा आसाराम के गोड़तरी गिरगे, जिनगी भर बर ओकर पसिया पानी के जोखा करके आसाराम अउ लछमी नाँव कमा डरिन। अब अपन कुटुम संग आसाराम अउ लछमी सुख-चेन ले रेहे लागिन। 

आसाराम अउ लछमी बिचार करे लागिन- हमर दूनों बेटा नवकरी चाकरी घला पा गेहे, त दूनों झन के बिहाव करके फुरसुद पा जतेन। दूनो बेटा के बिहाव सुघ्घर कर दीन, गाँव भर के लइका सियान मन बड़ आनंद-मंगल ले लाड़ू, बरा, सोंहारी खाइन। बड़ धनबाद आसाराम ला देवय अउ काहय एला कथे बिहाव। आसाराम के घर मा बड़ परछिन के दू झन बहु आगे। बड़े बेटा रामलाल के बहु बैदेही अउ छोटे बेटा लखन के बहु रमा आसाराम के घर के सोभा ला का कहिबे चार चाँद लगा दीन। राजी खुसी ले दिन बिते लागिस। 

रामलाल अउ लखनलाल अपन-अपन परानी ला लेके अपन-अपन चाकरी मा चल दीन, त आसाराम अउ गउँटनिन लछमी भर हा बड़े जान घर मा रेहे लागिन। जांगर खँगगे, खेती-खार रोहों-पोहों होय लागिस। ‘बइठे-बइठे खाबे, त समुन्दर के पानी घलो नइ पूरे।’ गउँटिया के दूनों लइका मन अपन-अपन ठउर मा मजा करत राहय। गउँटिया-गउँटनिन खटिया धर लीन ‘काया बने हे, त माया रचे-पचे रथे अउ काया खँगगे, त माया के का ठिकाना, माया महाठगरी होथे।‘ खेती-खार रोहों-पोहों होय लागिस। 

रामलाल अउ लखनलाल मेर खभर भेजवइन कि अब घर ला देखे बर परही अब दूनों झन मा एकोझन कारोबार ला देखे बर आव फेर एकोझन निहारिन तक नीहीं, त आसाराम गउँटिया हा सेउक अउ सेवती ला काम बुता करे बर लगाइन उही मन सेवा जतन करे लागिन, हाँत तिपो के राँध-गढ़ के दूनों जुआर खवा-पिया के अपन घर जावय, त आसाराम गउँटिया किहिस- सेउकराम अउ सेवती..! तुमन सही मा हमर धरम के बेटा बहू आव, देखव तुँही मन सेवा जतन करहु। निचट सरीर थकगे, स्वॉंसा के आखिरी बेरा आगे, स्वॉंसा टुटे चाहत हे, त जब गउँटिया के दुनों बेटा बहु अइस, त हिरक के नइ देखिस। 

गंगाजल अउ तुलसी जल पियाय बर धरिस, त उकर हाँत के गंगा जल अउ तुलसी दल ला नइ पिइन। कथे- जियत ले तुमन कभू हिरक के नइ देखेव अउ आखरी बेरा मा गंगागल अउ तुलसी दल ला पियावत हव अउ महापरसाद खवावत हव, गीता सुनाय के उदीम करत हव, तब सुनव- जियत मा अपन-अपन ठउर मा मजा करेव अब तुमन बेटा बहु के हक जतावत हव, राहन दे तुँहर गोठ ला। कहाँ हे सेउक अउ सेवती, उँखर हाँत के गंगाजल, महापरसाद अउ तुलसी-दल पाहुँ अउ परान ला छोड़हुँ, इँखर नाँव मा मँय हा अपन सांवतपुर के सरी खेतीखार ला करहुँ। अब सरग सिधारत हँव। एकर सेती केहे गेहे- ‘खेती अपने सेती... नइ ते हो जही एती ओती।’

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पुतरी

मंगलू रामपुर गाँव के अड़बड़ सरू नानकुन किसान आय। गाँव भर मा इमान अउ सिधइ के खातिर गजबेच आदर पावय। ओखर बिन पुछे कोनों कहीं जीनिस नइ बिसावय। बड़ संतोषी जीव रिहिस। ओखर एक्के झन बेटा रिहिस, तउन हर देस के जवान बनके भारत माता के लाज बचाय बर भारत भुँईया के आखरी छोर मा बइरी मन के दॉंत ला टोरे खातिर लड़े बर डटे रिहिस। भागमानी ला सुघ्घर बेटा मिलथे, नइ ते आज देखबे, त दाई-ददा रूर-घुर के कमाथे अउ बेटा हा उतलंग नापथे, दाई-ददा आँसू ढारत दिन ला पहाथे। जिनगी हा अड़बड़ भारी लागथे अउ मंगलू के बेटा सबले अलग पहिचान बनाय रिहिस।

महिना के महिना चार कोरी रुपिया अपन दाई-ददा बर मनीआडर करय। मंगलू मनीआडर पाके फुले नइ समावय अउ अपन गोसइन ला काहय- देख तो मनटोरा..! हमर बेटा हा हमर कत्तिक खियाल रखथे, महिनापुट हमर मन बर रुपिया भेजथे । तभे तो हमर गाँव के पुरोहित महराज कनक परसाद हा ओकर नाव दीपक रखे रहिस। सही मा हमर बेटा हा हमर कुल के दीपक आय। ए पइत देवारी तिहार मा आही ना तब मँय कहुँ, बेटा..! हमर उमर हा ढरत हे, कनिहा-कुबर अब नइ चलय, बहु लान लेते, त हमन ला तिपो के देतिस, त हमर चोला हा जुड़ा जतिस।

अइसने मन मा सोंचत दिन हा बीतगे अउ ठउँक्का देवारी तिहार आगे, गाँव के देवारी तिहार ला का कबे, गाँव हा देखत बनथे। बड़ परछिन के घर अँगना, चँवरा, गली सुघ्घर दिखथे, खेत-खार ला देखबे ता धान हा पिंयर-पिंयर नवाँ बहुरिया कस दिखथे। ओतकेच मा दीपक हा अपन गाँव आगे, दाई-ददा हा बेटा के सुघ्घर आरती उतारिस अउ कहिथे- मोर करेजा, मोर आँखी के पुतरी ला अड़बड़ दिन मा देखेंव। मंगलू कहिथे- बेटा..! तोर खातिर हमन गाँव के सियान ला बहु खोजे बर कहि डारे हन।

गाँव के दाउ गनेस हा हमर परोस के गाँव राजपुर मा रधिया नाँव के नोनी, जउन भोला किसान के बेटी ए, तेला हमर बहु बनाय बर जोंखे हन। दीपक कहिथे- ददा..! मँय हा तुँहर बात ला नइ टारँव, बिधाता के आगू मा काखरो थोरे चलही, जउन तुँहर मरजी होही... मँय ओखरे संग बिहाव करहुँ। जोखा-जाखी करत बिहाव होगे अउ घर मा लछमी असन बहु घलो आगे। मंगलू अउ मनटोरा दुनों झन के जिनगी मा खुसी के लहर समाँगे, आनंद-मंगल मा दिन बितथे।

बने-बने दिन हा जल्दी पहाथे, एकदिन ठउँक्का मँझनिया बेरा दुवारी मा बेनू डकहार हा आके मंगलू ला आरो लगाथे- एदे तोर चिट्ठी आय हे..! तोर बेटा दीपक ला अड़बड़ जल्दी नउकरी मा बलाय हे। ओतके मा मंगलू के बेटा दीपक हा कहिथे- मँय जल्दी जाहूँ, अड़बड़ जल्दी जाय के संदेस हे... काली बिहनेच ले मोर जोरा कर दुहु। अपन घरवाली रधिया ला कहिथे- मोर पेटी मा सरी जिनिस ला भर देबे, रसता मा खाय बर ठेठरी-खुरमी जोर दे रहिबे। रधिया कहिथे- महिना पंदरही घला नइ रेहेव अउ जाहूँ काहत हव। दीपक- का करबो भई..! नवकरी ले बड़के थोरो कोनों होथे ? रधिया- जइसन तुँहर बिचार।

रधिया के पाँव भारी हो गे रिहिस, ओहा सुन्दर चंदा कस चमकय। दीपक- दाई..! तोर बर मँय हा का लानहूँ ? मनटोरा- बेटा..! बने-बने तोला फेर मँय इही तिहार मा तोर सुरुज सरी मुँहु ला देखतेवँ, तोर ले बढ़के दुनिया मा मोर बर कुछुच नइहे। दीपक हा दाई के मयाँ ला पाके रो डरिस अउ ददा तोर बर मँय परछिन असन धोती-कुरता लानहूँ कहिके चले बर धरिस, त मोहाटी मा रधिया हा ठाड़े आँसू ढारत अपन पति परमेसवर के गोड़ ला धरके कहिथे- महुँ ला ले जतेव। दीपक- दाई-ददा हा तोर भरोसा मा रही अउ सास-ससुर के सेवा ले बढ़के का हो सकथे, समे जाय नइ पाही मँय आ जाहूँ अउ तोर बर मँय पुतरी लानहुँ, कहिके रेंगेबर धरिस तब रधिया हा आँसू ढारत दीपक ला देखत-देखत घर ढहन अइस फेर, तिहार हर पंदरही असन बाँचे राहय।

दाई-ददा अउ रधिया ओकर आय के रद्दा जोहत राहय। ओतक मा चिट्ठी धरके डकहार हा आके मंगलू के हाँत मा थमहाथे। मंगलू थर-थर काँपत हे... मुँह ले बक्का नइ फूटत हे... का बात हे भइया..! कइसे मोला असगुन असन लागत हे। बेनू डकहार कहिथे- तोर बेटा हा देस के खातिर अपन परान तज दिस, ओखर नाव अब जग जाहिर होगे। ओतका सुनिस... पड़ाक ले पछाड़ खाके मंगलू गिरगे तहाँ ले मंगलू के रोय के आरो पाके मनटोरा अउ रधिया अइस, त देखथे मोहाटी मा चार झन जुवान मन दीपक के काया ला लानके काहथे- दीपक अमर रहे..! दीपक जिन्दाबाद..! अइसन दसा देखके गाँव भर मा चिहुँर परगे, बिलख-बिलख के सब रोवत हे, पहाड़ गिरगे तइसे कस होगे। रधिया हा सासु-ससुर ला समहालिस अउ ले-देके गरीबी-गुजारा मा किरिया-करम करिस। ‘बिन खाय पेट भरय नहीं, जियत ले तन ला ढॉंके ला परही, जिनगी चलाय बर कुछु कारज करे बर परही।’ सँसो फिकर मा दीपक के दाई-ददा हा सुखागे। बिधाता के आगू मा काकरो नइ चलय, दुनों झन सियान मन सरग चल दिस। अब रधिया हा एके झन राहय।

दिन जात का लागथे, ओकर अँगना मा लइका के किलकारी गुँजिस, गाँव के मन वाहवाही मनइस, चलो गा बिचारी के जिनगी हरियइस। रधिया हर अपने बेटा ला खुब पढ़इस। केहे गेहे- ‘जइसन-जइसन घर-दुआर, तइसन- तइसन फइरका...जइसन-जइसन दाई-ददा, तइतन-तइसन लइका।’ रधिया के बेटा किसन ठउँक्का अपने बाप कस दिखय। एकदिन घर के खुँटी मा टँगाय फोटु ला देखके कहिथे- दाई..! ए कोन आय वो ? रधिया के आँखी ले आँसू ढरकगे, कहिथे- इही तो तोर बाप आय..! किसन- महुँ मोर बाप कस सिपाही बनहुँ। रधिया- हव बेटा..! सुरुज कस चमकबे अउ चँदा कस अँजोर करबे इही मोर असीरबाद हे।

देखते-देखत किसन के बाप के नउकरी हा किसन ला मिलगे, दाई के छाती फूलगे। सरी दुख भुलागे, जिनगी हरियागे, मोर करेजा हर अब मोर आँसू ला पोंछही, घर ला सुघ्घर बनाही। अब देस के रखवारी बर किसन चल दिस। दिन ढरगगे। किसन जब अइस, त रधिया कहिथे- बेटा..! मँय हा एक्केझन रेहे रहिथँव, मुहा-चारी बर बहु लान लेते। किसन- तोर बात नइ टारँव दाई..! जइसने तँय चाहबे मँय राजी हँव। परोस के गाँव देवपुर ले किसन बर बहु ले आनिस। बड़ सुघ्घर बेटा-बहु के आरती करिस। बहु ला मुहुँ देखउनी का देहुँ कहिके बड़ दिन बाद दीपक के पेटी ला खोलिस, त उहाँ सोनहा के पुतरी पइस, ओला अपन छाती मा लगइस, फफक-फफक के रो डारिस अउ बेटा-बहु ला बलाके चुमा ले के कथे- ए दे मोर पुतरी हो, तुमन ला मँय हा पुतरी देवत हँव, ये हा तुँहर पुरखा के धन-दोगानी ये, येला कभू झन बेचहु, तिया दिन ले राखे रहू, मोर गरीबिन के तुमन धन आव, अतका खियाल रखहू, तुँहर पुरखा हा धरती दाई बर मिरगे-मिटगे फेर धरती दाई के अँचरा मा दाग लगन नइ दिस, धरती खातिर जिबे रे बेटा..! धरती खातिर मरबे रे..! मोर कोख ला धन-धन करबे रे... अउ ये पुतरी के सोर ला बगराबे। अइसने काहत रधिया के साँस हा रुकगे, सरीर ले जीव चल दिस। किसन दुनों परानी पुतरी ला हाथ मा लेके किहिन- ये पुतरी हमर धरोहर आय, हर देवारी मा एखर पुजा करबो।

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हमर बबा

सुपरफाइन के धोती अउ बड़ सुघ्घर के कुरता, मुँह मा बँगला पान दबाय, महर-महर करत हमर बलदेव बबा गाँव के खोर मा रेंगय, त हमन जम्मोे सँगवारी मन जान डरन, हमर बबा आवत हे, हमन ला कुछु-कहीं पूछही, चलो..! काकरो घर कपाट के ओधा मा लुका जथन, बबा हमर सब झन के चतुरई ला जान डरय। गाँव भर ले ओहा रोंटहा किसान रिहिस। ओमन पंचभइया रिहिस, बबा हा सबला एक्के लउठी मा हाँकय। ओखर कना मोर-तोर के भेद नइ रिहिस। सबो बाहिर के लोग-लइका अउ जम्मोे घर के जोखा बरोब्बर करय। जब बबा हा सोलह साल के रिहिस, त बबा के ददा दुकालू ठेठवार हा बिधाता के परेमी होगे रिहिस। तब ले बबा के मुँड़ उपर पूरा घर के बोझा हा खपला गे रिहिस। कोरी खरिखा गाय-गरु अउ अस्सी एकड़ जमीन के गउँटिया रिहिस। 

गाँव के मन ओला मालिक काहय, कोनों पाँव परय, त कोनों मन राम-राम मालिक काहय। बबा हा सब संग राम-रमउव्वल, जय-जोहार भेंट करत आगु बढ़ जाय। ओखर ले बड़का सियान मन बलदेव मालिक काहय। गाँव के सियानी बबा के हाथ मा राहय, बिन पूछे गाँव के कोनों मनखे कोनों जीनिस नइ बिसाय। बबा ला बइला, गाय, भँइस के चिन्हारी करे बर खुब आय अउ ओला पूछ के बिसई-भँजई करे। 

गाँव के बइटका बिन बबा के उसल जाय, बलदेव मालिक आही तभे नियाँव होही काहय। बबा हा मजकिया किसम के घलो रिहिस, जब हमन ला भेंटतिस, त काहय- सुन तो मोहन..! बाबू, तुमन कोन किलास मा पढ़त हव, मेहाँ पूछहुँ तेखर जुवाप दुहु ? अउ हाना पूछे के झरी लगा देतिस अउ काहय जउन ये बात ला जानहीं तउन दूधे खाही- दूधे अचोही। ओखर पुछइ ला का कहिबे, माथ मा हाथ धरे ला पर जाय। पुछय- ‘के निया चुलहा मा लकड़ी...नानकुन टुरी गोटानी असन पेट...कहाँ जाबे टूरी रतनपुर देस।’ अइसन जनउला पूछय, त दॉंत ला ओठ मा दबाय बर पर जाय अउ बबा हा पतंग ढिले बरोबर काहय- लेव तुँहर गुरजी मन ला पूछ के बताहू। बड़ हरफन मउला कस हमर बबा हा राहय। काहय- जब तक जिनगी हे मजा ले ले। मड़ई-मेला, हाट-बजार बबा हा जरुर जातिस अउ हमन ला कोनों भेंट परतिस, त बिन पइसा देय नइ राहय अउ काहय- चना-फूटेना ले के खाहू। गाँव के माईंलोगिन मन बबा के बड़ कदर करय, कोनों के मुड़ी ले अचरा नइ गिरय। वो समे हमर बाबू (पिताजी) ला सब बाबू काहय। बाबूजी अपन समे के बड़ेजन संगीतकार रिहिस। बड़-बड़े गवइया-बजइया हमर घर सकलाय अउ बाबू के कुरिया मा हरमोनियम, तबला, मँजिरा बजाय। किसम-किसम के गाना गावय, त सरी सियान मन सकला जाय, तब बबा घलो मगन हो जाय। 

बाबूजी अउ बबा दुनों झन बने सँगवारी राहय। बाबू काहय- ले ना बलदेव..! एको ठन गाना तहुँ सुना ना जी ? बबा हा काहय- मोला नइ आय बाबू गाय-बजाय बर, हाँ फेर मँय गाना सुने के सौंकीन आँव। बबा हा पुराना फिलिम के गीत ला गाय बर काहय, महुँ हा उही ठउर मा बइठ के मजा लेवँव। बबा हा रेसमी सलवार कुरता जाली का...रूप सहा ना जाय नखरेवाली का... गाय बर मोला काहय, त मँय हा बबा ला ओखरे पसंद के गाना सुना देवँ, तहाने बबा अउ बाबू मुच-मुच हाँसय। बबा फरमइस करत जाय अउमँय गावत जावँ, मेरा मन डोले...मेरा तन डोले....अइसन गाना सुनाववँ, त मोला एक रुपया देवय। हमर गाँव के लीला-नाटक अड़बड़ परसिध रिहिस, मँय अउ अँकलहा मरार जोक्क्कड़ बनके निकलतेन, त देखइया-सुनइया मन खलखला के हाँस डारय अउ मोंजरा घलो देय। कोरी दू कोरी रुपिया देवारी अउ दसराहा तिहार मा नाटक-लीला खेले बर देवय अउ काहय- मोहन बाबू..! तिहार बर गाँव ला सुन्ना झन करे करव, दुनिया मा का आही अउ जाही, जियत ले बने-बने खावव अउ मजा लेवव। 

बबा कोनों उकील से कम नइ रिहिस, थाना-कछेरी ओखर बर पुरिहा पानी राहय, कान्हुन (कानून), त ओखर मुँह अखरा राहय। गाँव के कोनों ला कचहरी थाना जाना राहय, त बिन बबा के कोनों नइ जातिन। बबा के सुरता करत मोर आँखी ले आँसू चुही जाथे। अड़बड़ हमर मन के मयारुक बबा रिहिस। सुन्ता जादा दिन नइ राहय। सुमत मा धन बाढ़थे अउ बिमत मा धन नास होथे, केहे गेहे-‘अड़बड़ अकन भड़वा बरतन रही तहाँ बाजबे करही।’ बटवारा होय के मौका आगू गाँव के कोनों ला पता नइ चलिस, बटवारा मा बबा हा अपन भाई मन ला बने-बने खेत-खार अउ सुघ्घर-सुघ्घर घर कुरिया ला दे दिस। अलवा-जलवा खेत अउ फूटहा कोठा मा जेमा एक ठन कुरिया राहय तिहाँ बबा अउ दाई रेहे लागिन। 

देवारी-दसराहा के छुट्टी होइस ता मँय हा गाँव जाके बबा ला सोरियावत ओखर कना गेंव, त बबा के दसा ला देख के मोर आँसू चुहिगे। मेहे पूछेवँ- कस बबा, दाई..! तुमन फूटहा कस घर मा रथव का बात हे ? तब बबा किहिस- झन पूछ मोहन बाबु..! बने-बने खात कमात हमर भाई मन मोटागे गे रिहिस, त अपन-तुपन के बात आगे, खेत-खार बँटागे, मोर लइका मन अपन-अपन परानिन ला धर के नउकरी मा चल दिस मेहाँ तोर दाई संग मा ये परलोकिहा जिनगी ला काटत हँव, कोन जनी ये काया ले चिरई कब उड़ा जही तेखर का ठिकाना। बबा के सुरता तिहार बर अड़बड़ आथे, ओकर बिन सुन्ना लागथे, बबा हा अपन समे मा रुपिया-पइसा ला कुड़हो देतिस, नाटक-लीला खेलव अउ गाँव के नाँव उजियार करव कहिके काहय, का कबे पहिले के सियान मन के किस्सा थानसिंग गुरजी के राम-लछमन कस पहिनइ धोती, सीताराम के जोरदरहा हापकमीज अउ पइजामा, घुटरू मंडल के सलुखा मोला आज ले सुरता आथे अउ बबा के करिया कोट, हमर बाबूजी के चमकत परमसुख के धोती अउ कोसाही कुरता, झन पूछ सँगी तइहा के बात बइहा लेगे तइसन ताय। 

बबा पासा-कौड़ी खेले के बड़ सँउकीन राहय, खेलत-खेलत जुग पहा जतिस। बबा मन ओखर कना चहा-पानी लानय अइसन आगियाकारी पहिली रिहिस, फेर समे-समे के बात ताय तिरिया चरित्तर के मोह मा बड़े-बड़े अटारी मन फूट जाथे। देवारी तिहार मा बबा हा गाँव के सरी लइका मन ला पइसा बाँटय, ओहा काहय- गाँव भर के लइका बड़ उचाह ले तिहार मनानव अउ फटाका फोरव। जम्मो लइका मन बबा ला घेरे राहय, सब ला खोज-खोज के पइसा देवय। हमर सँगवारी मन बबा ला देखके अड़बड़ खुस राहय, काबर कि बबा जियत भर ले अलगेच किसिम के रिहिस...का बताबे- ‘राजा हो चाहे फकीर सब ला एकदिन ये संसार ले बिदा होय ले परही।’ जियत ले मोर-तोर, का जाही साथ। एकदिन बिहनेच मोर कना खभर अइस... बबा हा सरग सिधारगे, मँय हा अउहा-झउहा खबर सुनके गेवँ, त ओखर घर मा रोना-राही परे राहय। 

ओखर अरथी उठगे गाँव के मुकतिधाम मा बबा ला लेगिन अउ छिन मा नसवर काया हा अगनी मा समागे। ओ पइत मोला दु सब्द बोले के मउका मिलिस ता मँय हा अतकेच केहेवँ- बबा हा हमर बीच नइ हे...फेर ओखर सुघ्घर जस हा हमर गाँव मा सदा-सदा रही, ‘जियइ ओखरे भला जे पर खातिर जिथे, मरना ओखर भला जे हा अपन बर जिथे।’ आज घला तिहार मनाथन गाँव मा दिया जलाथन, फेर हमर गाँव ले पीरित परागे, गाँव के एक ठन सुघ्घर दिया नँदागे।

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मइके के लुगरा

बिसाहिन पंचभइया के एके झन दुलउरिन बहिनी रिहिस। दाई-ददा, भाई-भउजी मन ओला गजबेच मयाँ करय। आँखी ले ओधा नइ होवन देवय। ओखर आगू-आगू ले जोखा हो जाय। आनी-बानी के लुगरा, टिकली-फुँदरी के संग रिकम-रिकम के जेवर घला ओखर बर सब लेय राहय। मड़ई मेला देखे बर जातिस, त ओला एक झन नइय जावन देय। ओखर काया कंचन कस झलके तउनो मा गहना-गुरिया पहिरे, त सउँहत लछमी दाई कस दिखय। बिसाहिन के भउजी मन घला कुछु टहल करे बर नइ काहय फुल कस झेला ओहा राहय। 

समे पहात का लागथे, भाई-भउजी, दाई-ददा जम्मो माईं-पिला काहय हमर नोनी ला काखरो नजर झन लग जाय कहिके डेरउठी ले खाल्हे नइ होवन देवय। राखी तिहार मा बिसाहिन के दसों अँगरी घी मा हो जाय। एकदिन समे पाके बिसाहिन के दाई-ददा हा गोठियात राहय- बेटी हमर मोटियारी होगे हे। बर-बिहाव करके ये जिनगी के करजा ला उतार डारतेन। कपाट के ओधा ले सुन के बिसाहिन मुच-मुच हाँसे लागिस, काबर बिहाव घला एक ठन बड़जन काम आय। बिसाहिन सोचे लागिस आज के जमाना मा छोकरा मन अड़बड़ बिचितर होगे हे, बने-बने संगत परगे, त जीवन सँवर जथे नइते जिनगी कलहा मा पर जथे । येखरे सेती भोला बबा मा जल अउ फुँड़हर के फुल अउ दीया जलाके बिसाहिन बने पति मिल जतिस कहीके आठो काल अउ बारहों महीना पुजा करय। गाँव राजापुर के ओखर हमजोली संगी-सहेली मन काहय- लोक्खन के बिसाहिन हा दुलउरिन बेटी आय। अउ कोनों-कोनों इही बात बर दू-चार गोठ ढिला जाय। 

बिसौहा गउँटिया हा भरोसा मंडल जेहा अचानकपुर के रहवइया आय तेकर एके झन बेटा जेहा बड़ सुंदर अब्बड़ पढ़े-लिखे घलो राहय, ओखर नाम बिसराम रिहिस तेखर सँग बिसाहिन ला भँवरा दिस। जब बइलागाड़ी मा बिसराम संग बिदा होइस, त जम्मोे माईं-पिला अहो धार के रोय लागिन। हमर बेटी ला हमन फुल कस राखे रेहेन ससुराल हा त ससुराल होथे, इहाँ कुछु टहल नइ करे, ये कही के मन ला बोधे लागिन, फेर बेटी हा पर कोठी के धन आय। ओला पर घर भेजे बर परही कहिके मन ला मड़इन। बिसाहिन अउ बिसराम के जोंड़ी देखते बनय, दुनों झन राम-सीता कस दिखय, भरोसा मंडल बड़ गरब करे आज के जमाना मा मँय बहू-बेटा ला सोलह आना पाये हँव। 

एक बेर बिसाहिन के मइके ले खबर अइस कि बेटी-दमाँद ला देखे पन्दरही होगे हे आँखी देखे बर तरसत हे। भरोसा मंडल अपन बहू-बेटा ला बिसाहिन के मइके दुनों झन ला भेज दिस। बेटी-दमाँद के अड़बड़ सतकार होइस, सरी जोखा करके बेटी-दमाँद ला जम्मो परिवार बिदा करिन, अड़बड़ अकन लुगरा-कपड़ा, बरा, सोंहारी, ठेठरी, खुरमी, लाड़ू अउ जलेबी धरा के बिदा करिस। समधी-सजन होगे, त का पूछबे जिनगी मा मजा ले-ले, एक दूसर के पीरित राजा जनक अउ दसरथ कस होगे। बच्छर बितीस, त बिसाहिन के पाँव भारी होगे, बिसराम आनी-बानी के खाई-खजाना बड़ परछिन के बिसाहिन ल दिये लागिस। भरोसा मंडल के अँगना मा बाजा बाजगे, सउँहत किसन कनहइया आगे। भरोसा मंडल घर जब छट्ठी होइस, त इतवारी-मकुंद के नाचा होइस, सरी गाँव के मन खुब जुरियइन बड़ मजा लीन, काबर के इतवारी-मकुंद के नाचा देखते बनय। फेर इरखहा मन के कमी थोरे हे, बिसाहिन के मइके ले लुगरा पहुँचइया दू कोरी आय रिहिन। भरोसा मंडल अउ ओखर घरवाली रेवती आगर ले दू आगर सतकार पहुना मन के करिन। गाँव भर ला नेवता-हँकारी देय रिहिस। 

अचानकपुर के गँगू नाँव के नाँउ ठाकुर सबके अँगना मा आवय-जावय, भरोसा मंडल घर के किस्सा ला बतावय, गाँव के मन सँहुराय फेर फिरतू अंदर-अंदर अँइठे। काबर कि भरोसा मंडल के कब-जुगात के रुपिया ला नइ लउटाय राहय, बोलत-बोलत मंडल हा हार खागे, तहाँ बोलती बंद कर दिस। इहाँ तक दुनों झन मा राम रमउव्वल घला बंद होगे राहय। पोंसे-डिंगरा खरही मा आगी लगाय किस्सा भरोसा मंडल घर होगे। फिरतू मंडल बिन नइ राहय तेहा ओखर बड़ती देखके खुब कुढ़य अउ भरोसा मंडल के गोठ कोनों कना चल जतिस, त काहय बईमान भरोसा मंडल ताय, डिंगराही मारही नइ, त का करही। 

एकदिन भरोसा मंडल माईं-पिला अपन समधी के तबियत ला बने नइ सुनिस, त जम्मो झन राजापुर गाँव (बिसाहिन के मइके) पहुँचिन। जय-जोहार करिन, आनी-बानी के साग-भाजी, तरकारी, रोटी-पीठा खा-पीके जब लहुटिन, त देखथे, भरोसा मंडल के घर हा जर के राख होगे राहय। 

सरी गाँव मा चहुँर परगे राहय। काली के मंडल के हाथ मा आज कमंडल परगे राहय। गाँव मा बइटका होइस, त फिरतू के नाम ला सब लिन। फिरतू ला जब बइटका मा बुलइन। चार समाज गंगा होथे, झूठ हा फरिया जथे अउ निति-नियाव मा सब आ जथे । भरोसा मंडल अउ ओखर परिवार सबो अहो धार के रोय लागिन, त बिसाहिन कहिथे- सब जरके राख होगे, इहाँ तक मोर मइके के पहली लुगरा घला जरगे। बिसराम कहिथे- सुन..! मँय हा तोर बर कतको लुगरा ले दुहुँ, तँय सनसो झन कर, त ओतका मा बिसाहिन कहिथे- मइके के लुगरा, जउन पहिली तिजा मा पाय रेहेंव तेला थोरे ले डारहू..! हाय रे...मोर मइके के लुगरा..! काकर संग करँव झगरा... अइसे कहिके चुप होगे।

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पछतावा

रामचरन गरीबहा किसान रिहिस, फेर ओमा अड़बड़ गुन रिहिस, गुनी होय के सेती बिसेसर गउँटिया अपन दुलउरिन बेटी भागबती ला ओखर हाँथ धरा दिस अउ सोंचे लगिस सम्मे पहात का लागथे, एकदिन बिगड़े पाया हा बन जाही, मोर डाहर के सहारा मिल जही। जब ले रामचरन के संगत भागबली संग होइस तब ले रामचरन के भाग जागे ला लगिस। सब्बो दिन एक समान नइ होवय, बने-बने के दुनिया बिगड़े के कोन सुनइया। जॉंगर टोर दुनों परानी घात कमाय लगिन। खाँड़ी भर धनहा के भरोसा मा मेहनत मंजूरी करके पाँच खाँड़ी के धनहा बना डरिस। रामचरन के पहिली कोनों पुछइया नइ राहय, जब ओखर कना धन होगे, त बैंठागुर-ठेंगाहू मन माँछी कस झूमे लगिन। अपन जिनगी मा रामचरन कोनों बर करु भाखा नइ ढिलिस, ओखर कना परेम के भाव राहय। गाँव के सुकालू, दुकालू अउ उँखर दुनों झन के घरवाली बिसाहिन, बिसंतिन मन रामचरन घर काम बुता करे बर लगगे। अब रामचरन के नाँव चारों खुँट उजियार होगे। 

गाँव सुरुजपुर के जम्मो नर-नारी रामचरन अउ भागबती ला गउँटिया-गउँटनिन काहय। उँखर दुआरी ले बिन चहा-पानी के कोनों नइ लहुटय। रामचरन के चार झन बेटा घला रिहिस। केहे गेहे...‘बाप चढ़े घोड़ा, त बेटा थोड़ा-थोड़ा।’ रामचरन के चारों बेटा जब बने होगे, पढ़-लिख डरिन, त उँखर छाती फुलगे, काबर कि बने परानी, बाप के बात ला मनइया बेटा अउ सुघ्घर असन घर मिलगे, त भाग जाग जथे । धन आथे, त गुमान आ जथे फेर रामचरन गउँटिया कना नवन भजन राहय। ओखर चारों बेटा मन नउकरी घला पागें, बड़का बेटा किसन ग्राम सेवक, मंझला बेटा स्यामू गुरजी अउ अंतर मंझला पटवारी अउ छोटकू बेटा धरमू हा पुलिस नउकरी मा राहय। चारों डाहर ले रुपिया-पइसा के बरसा होय लगिस। बड़ जान चार मंजला मकाम एक कोरी खेत चमकट्ठा होगे। अब का पूछबे गउँटनिन के सरी अंग भर गहना-गुरिया देखते बनय। अब गउँटिया के कदर चार गुना बाढ़गे। ओखरे हाँथ मा गाँव के सियानी-गँवारी घला आगे। 

चारों बेटा के बिहाव संघरा करिस, बड़े-बड़े घर ले बहुरिया ले आनिस, तब झन पूछ राजा के राज आगे, सोय भाग जागगे तइसे बात होगे। चारों बेटा अपन-अपन ठउर मा काम करे लगिन। सुरुजपुर के मन काहय अन, धन अउ कोठा भरे, दुख पीरा सबो बिसरे। रामचरन घर सउहँत लछमी बिराजे हे। चारों बेटा जब देवारी तिहार मनाँय खातिर जब गाँव अइन तब का पूछबे, गउँटनिन अनंंद मा भर गे। अपन बेटा मन ला गजबेच असीरबाद दिन। गउँटिया रामचरन घर अन, धन अउ नाती-नतरा ले भरेपुरे देखते बनय। देवारी तिहार के दुसरइया दिन गउँटनिन हा पान रोटी बनइस अउ ओमा घीव चुपरके जब माईं-पिला खाइन, त का पूछबे, अब सब नोहर होगे, त गउँटनिन हा गउँटिया ला कथे- मँय हा एकठन बात काहत हँव, चारों बेटा अपन-अपन चाकरी मा अकेल्ला रथें, अपन-अपन लोग-लइका संग रतिन, त हर-हर कट-कट ले दुरिहा रतिन। दिन भर कमातिन अउ रातकुन हरहिंच्छा सुततिन। रामचरन गउँटिया कथे- ए पइत बड़ निंक गोठियाय, वइसने बिचार सबो नारी जगत के हो जतिन, त जिनगी सुधर जही। 

अपन-अपन ठउर ठिकाना मा गउँटिया के चारों बेटा मन रेहे लगिन, फेर देवारी तिहार मा जब चारों बेटा के परिवार सकलइन, त पहिली के भाव कस नइ लगिस। पहिली चारों बेटा मनीआडर भेजय, त गउँटनिन अँचरा मा रुपिया ला धर के गजबेच असीस बेटा-बहू ला देवय। अब घर हा सुन्ना परगे, घर लिले बरोबर लागय अउ ए पइत चारों बहू-बेटा, नाती-नतरा सहर के रंग मा रंग गे राहय। मुँड़ मा अँचरा नइ राहय, नाती-नतरा मन पाँव परे ला छोड़के बाय-बाय, टाय-टाय कहँय, त गउँटिया हा माथा मा हाँथ धर दिस, अब घर हा घर नइ रहिगे ये तो सउँहत कलजुग समागे। 

बहू मन के चाल-चलनी कस अउ पिरोहिल बोली नँदागे। बेड-टी, बेडइट सुरु होगे। सबो झन कना दु चकिया गाड़ी घला होगे रिहिस। अपन-अपन परानी ला धर के जाय लगिस, त गउँटिया कथे- काहाँ जावत हव, त उँखर घरवाली मन कथे- हमन सापिंग करे बर जावत हन। ये गोठ ला सुन के गउँटिया-गउँटनिन के रोस गोड़ ले माथा मा आगे। फेर मन मसोस के रहिगे। अब तो घर के कारबार बिगड़े लगिस। तन हा धीरे-धीरे खियाथे तॉंह ले ठुड़गा कस हो जथे । गउँटिया-गउँटनिन के बेटा मन अपने अपन मा राहय, दाई-ददा के सुरता थोरको नइ आवत राहय अउ चारों झन खभर भेजिन जोखा करे बर कोनों बनिहार लगा लेंय हमन ला अपन-अपन काम मा फुरसद नइ मिलत हे। गउँटिया के दसा अइसे होगे जइसे अंतिम समे आगे। फेर चारों बेटा हिरक के नइ देखिन। 

रामचरन गउँटिया हा सुकालू ला बनिहार लगाके जिनगी बिताय लगिस अउ सुकालू के नाम मा वसीयत कर दीन अउ गउँटिया अपन परान ला तज दिस। सुकालू हा गउँटिया के चारों बेटा ला मरे के बेर संदेस भेजिस, त अपन-अपन परिवार संग अइन अउ मुँड़ धर के गोहार पार के रोइन, त गउँटनिन कथे- अइसन बेटा-बहू ले तो बिन बेटा-बहू के रही जाय, चिरर्ई चुकगे खेत, त अब पछताए ले का होही। 

गउँटिया के सरी किरियाकरम होइस, त गउँटनिन बसीयतनामा ला देखइस, त चारों बेटा हाँथ मा हाँथ धरे पछतइन। तब सुकालू कथे- जइसे करनी तइसे भरनी, करम के फल आज नइ, त कल। आज मँय हा नइ रतेंव, त गउँटिया के का दसा होतिस, मँय हा ये बात ला नइ जानत रेहेंव, मोला धन दोगानी नइ चाही तुमन गउँटिया के सरी खेती-खार ला बाँट डरव, फेर गउँटनिन के बाँटा झन करव, गउँटनिन मोर बाँटा आय, मँय हा सेवा करहूँ। चारों बेटा के चेथी डाहर के आँखी आगू डाहर आगे अउ चारों बेटा खुब पछतइन अउ सुकालू ला दु खाँड़ी के धनहा दे के गंगा नहइन। एखरे सेती सियान मन केहे हें- ‘चार बेटा काम के ना धाम के मतलब ले दाम के।’

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मितान

भक्तु अड़बड़ दिन मा भेलई सहर ले अपन पिरोहिल गाँव किसनपुर अइस। नवाँ तरिया तीर के अमरइया ला देख के एक परत के रो डरिस, गाँव के सरी रुख-राई ला बइरी मन काट डरे हे। नरवा मा मुहूँ धोय बर खोंची भर पानी नइ दिखत हे। बर-पीपर के बड़ जन-जन रूख घलोक ठुठुवा परगे हे। गाँव के संगी सँगवारी मन राम-रमउव्वा ला छोड़के हलो भक्तु काहत हे। भक्तु हा तरवा मा हाँत देके कथे- का जमाना आगे। वइसने गुनत-गुनत अपन छुटपन के मितान रामा महराज के डेरउठी मा गिस, त देखथे सबके घर-कुरिया बदल गेहे, फेर हमर मितान के उहीच खदर छान्हीं के कुरिया हा नइ बदले हे। 

रामा महराज के नानकुन लइका माधो ला कथे- जा तो बाबू..! महराज ला बलाथे कबे। लइका हा दँउड़त-दँउड़त जाके किहिस- कोन जनी कोन मइनखे आय हे अउ रामा महराज काँहा हे कहिके पूछत हे। रामा महराज आके देखथे, त ओखर छुटपन के सँगवारी भक्तु हरे, ओला पोटार लिस, दुनों संगी अइसे मिलिन जइसे दुवापर जुग के किसन अउ सुदामा। मयाँ मा आँसू घला छलछलागे अउ दुनों झन तइहा के बात ला गोठियाय लगिन। रामा महराज कथे- बड़ दिन मा मिलेन सँगवारी आ बइठ ये दे माँची मा, मँय हा तोर आय के खभर हमर महराजिन ला बतावत हँव। महराजिन ला जब बतइस त, लोटा मा पानी अउ चहा के कप धर के अइस। भक्तु महराजिन भउजी के पाँव परिस, असीरबाद पइस अउ महराजिन हा खाय-पिये के जोखा करे लगिस अउ दुनों मितान मुहूँ मा मुहूँ जोर के गोठियाय लगिन। रामा महराज कथे- अड़बड़ अकन मोर लइका हे, न खार मा खेत... न गाँव मा कोठार, क था-पुजा ए जिनगी के अधार। भक्तु कथे- संगवारी..! मँय हा भेलई चल देंव, त दु आखर पढ़ई मोर काम आगे, मोर दुनों लइका के थेरभाव लग गे, उहाँ नानकुन घर बनाय हाबँव, हमर घर के हा बड़ बिछलहिन हे, नानेनान बात ला पहाड़ कस बना देथे, मँय हा हमर नवॉंघर के पुजा कराहूँ, तुमन ला नेंवता देवत हँव। जम्मो माईंपिला आहू, पुजा-पाठ निबाहू, दसो अँगरी ला जोर के मँय हा बिनती करत हँव। रामा महराज अपन मितान के गोठ ला सुन के कथे- का भइस, रामनम्मीं के दिन हमन सबो झन आ जबो अउ पुजा-पाठ निपटाके लहुट जबो। 

रामनम्मीं के दिन रामा महराज माईं-पिला भक्तु के घर ला पूछत पहुँचगे, रेवती दुनों मितान के परेम ला देख के अकबका गे, पिड़हा लान के फुलकँसिया थारी अउ लोटा मा पानी लान के गोड़ ला धोईस अउ घर भर मा छितवइस। रामा महराज कथे- भक्तु..! तँय हा मोर सुदामा के अतक आदर करत हस, ए करजा ला कब छुटहूँ। ले पुजा-पाठ के जोरा ला कर, पुजा करिस, त दान-दछिना नइ माँगिस, त भक्तु कथे- मितान..! मँय हा तोला भागवत गीता देवत हँव, ये ला तँय हा बाँचबे अउ हमर पारा मा राधा किसन के मंदिर हे तिहाँ पुजा करबे, दुनों लइका के पढ़ाय के जोखा मँय हा करहूँ अउ हमरे घर रही जाव। 

रामा महराज अपन सबो परानी संग भक्तु कना रहिगे। माधो अउ मदन दुनों महराज के लइका मन ला इसकुल मा भरती करिस। देखते-देखत महराज के दुनों लइका पढ़ डरिन अउ बने नउकरी घला पागे, केहे गेहे- ‘बनाही राम, त बिगाड़ही कोन अउ बिगाड़ही राम, त बनाही कोन।’ एकदिन महराज कथे- सुन सँगवारी..! जादा मिठ मा कीरा पर जथे, अड़बड़ दिन ले तँय हा हमन ला सँवारे, अब गाँव डाहर सुरता जाथे जिहाँ के धुर्रा मा खेलेन-कुदेन जिहाँ उपजेन-बाढ़ेन तेखरो खियाल करना चाही अउ ओ गाँव के सेवा करना धरम होना चाही, त मोला जाय के हुकुम देते। भक्तु कथे- महराज..! ठउँक्का काहत हस। रामा महराज अउ महराजिन ला नवाँ -नवाँ लुगरा-धोती देके बिदा करिस, त उँखर परेम के बात मुहूँअखरा बताना मुसकिल हे- ‘देख रे आँखी, सुन रे कान’ तइसे होगे। 

महराज गाँव मा आके सुंदर असन घर बनइस अउ ओ घर मा भक्तु के देय गीता के इसलोक ला लिखइस इसवर सब परानी के हिरदे मा बास करथे। बछर बीते भक्तु अपन गाँव किसनपुर अइस, त महराज के घर ला देखिस, त ओखरो मन मा संग के सँगवारी कना रहूँ कहिके भक्तु घला घर बनवा डरिस। दुनों मितान किसन-सुदामा अस राहन लगिन। दुनों झन के मितानी देख के कतकोन झन काहँय- सँगवारी होवय, त रामा महराज अउ भक्तु कस। फेर गाँव बिगाड़ुक मन के ये संसार में कमी थोरहे हे, लुहइया अउ लुटलुट के खवइया मंगलू अउ समारु किसनपुर मा राहय। जुझाना-लड़ाना अउ बिगाड़ना इँखर कामेच राहय। एकदिन रामा महराज कना जाके मंगलू, समारु केहे लगिन- महराज..! आज भक्तु काहत रिहिस... रामा महराज के बनौकी ला मँय हा बनाय हँव, नइ ते ओ हा नँगरा के नँगरा रतिस। रामा महराज ये बात ला सुन के तरमरागे अउ भक्तु संग बोली-ठोली बंद कर दिस। भक्तु सोंचय- महराज ला का होगे हे, पोंसे डिंगरा खरही मा आग लगाय तइसे होगे। दुवसहा चाँउर-दार अपन परानी कना रामा महराज घर पठोइस, त का पूछबे रामा महराज कथे- हमन पर के जूठा मा पले हाबन ये चाँउर-दार ला ले जाव। भक्तु हा चौपाल मा बइठके सियनहा मन के मुहूँ ले तइहा के बात ला सुनत राहय। भक्तु के घरवाली बमफार के रोवत-रोवत आत राहय। फेर का बात होगे, रेवती कोनों-कोनों संग रात दिन हर-हर कट-कट होते रइथे, अइसे भक्तु सोंचन लगिस। भक्तु के मन मा एकठन बात रिहिस रामा महराज के मुहूँ ले हमन भागवत सुनतेन, ये गोठ ला रेवती कना किहिस, त रामा महराज जउन रेवती ला बात केहे रिहिस तेला बतइस, रामा महराज के हिरदे मा मंगलू, समारु के गोठ हा बान बरोबर चुभत राहय। ये बात ला चार झन कना गोठियाहूँ तभेच पेट के सी था हा पचही। रामा महराज बइटका मा बात ला फरियइस, त भक्तु कथे- महराज..! सपना मा घला अइसने नइ सोंचव, बाजिब बात ला बता कोन केहे रिहिस, त मंगलू अउ समारु के नाँव बतइस। मंगलू, समारु ला गाँव बइटका मा बलइस, त उँखर पोलपट्टी खुल गे। लड़ा के, भिंड़ा के अपन बइठॉंगुर जिनगी ला अइसने गुजारा करइया ताय। सब्बो गाँव के मन मंगलू, समारु ला डॉंड़िन, उँखर दसा देखते बनय, त रामा महराज कथे- ‘नहाय नँगरा निचोय काला’ मंगलू समारु ला छमा माँगे बर किहिस। मंगलू, समारु चार गंगा कना छमा माँगिस अउ बिगाड़ुक काम ला छोड़के खेती किसानी करे लगिन अउ गाँव मा सब झन संग सुम्मत से रहिके गाँव ला सरग बनाय मा हाँथ बटइन। 

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रामकोठी

बड़े बिहनचे सुत के उठेंव, त बइला के घाँ घरा के अवाज अउ गोहार पारत अँगना मा आके पुनतू, सुनतू, दुकालू अउ सुकालू काँवर मा पचकठिया टुकना दुनों कोती धरे अउ काँवर ला उतार के गाय लगिन- ‘छेरिक छेरा छेर बरतनीन छेर छेरा...माईं कोठी के धान ला हेरहेरा...’ अइसने कहिके नाचे लगिन, त मँय हा पूछेंव- कस सँगवारी हो..! तुँहर घर बने भरे बोजे हाबय तब ले तुमन काबर अइसने माँगत हव, अइसन मंगइ बने बात नोहे, तब ओमन किहिन- सुन भइया..! हमन माँगत हन, त अपन बर नइ माँगत हन, आज छेरछेरा पुन्नी आय, आज के दिन पछिना चुचवा के जेहा अपन जॉंगर टोर के अनपरमेसरी ला दान करथें अउ परमारथ मा लगाथे ते भागमानी पुन कमाथे, ए हा छोटे बड़े के बात नइ हे, तहूँ कोनों हमर घर आबे, त हमूमन देबो- तारा रे तारा पीतल के तारा... झटकुन दे दे जाबो दुसर पारा... डलिया मा धान पाके नाचत-गावत मुचमुचावत-मेंछरावत चल दिन। 

वइसने छेरछेरा माँगत चारों झन के डलिया भरगे अउ बेचके दु हजार अकन रुपिया सकेल डरिन, अइसनेच हर बछर माँगत-माँगत उँखर मन कना गजबेच अकन रुपिया सकलागे, त सोंचे गुने लगिन... ए रुपिया ला कोनों चारों सँगवारी बाँटबोन, त दु-दु हजार रुपिया पाबो, त ए रुपिया ला कोनों गाँव के सियान कना धरा देबो अउ कोनों गरीब के भला कर देबो, त उँखर बनौकी बन जाही, अइसे कहिके ये बात ला गाँव मा ढिल दिन, त गाँव के सरपंच, पटैल, कोतवाल के कान मा ये बात परिस, त सियान मन बइटका सकलिन अउ उँखर चारों झन के बात ला रखिन, त तिहारू कथे- ये गोठ बड़ अच्छा हे..! अइसने कोनों गाँव भर के हिरदे मा बात आ जही अउ पइली, दु पइली अन परमेसरी ला दीहीं, त अड़बड़ अकन अनाज सकला जही अउ पुनतू, सुनतू, सुकालू के सकलाय रुपिया के रामकोठी बन जही अउ ओ कोठी मा अनाज ला भर देबो, त हमर गाँव के सोर जगजाहिर हो जाही अउ गाँव मा जउँन मन ला जरुरत होही एमा के अनाज ला देबो, त ओखर बनौकी बन जही। ये गोठ सब ला बने सुहइस, रामकोठी बनगे अउ गाड़ा भर धान सकलागे, काबर केहे गेहे- ‘बूंद-बूंद मा घड़ा भरथे, कनकन मा धन बाढ़थे’ देखते-देखत सुरुजपुर के रामकोठी के गोठ हा सबो डाहर पसरगे, गाँव मा गोकुल नाँउ निच्चट गरीब रिहिस, गँवईं भरोसा ओखर जिनगी चलय, बड़ अकन लोग लइका रिहिस, ओखर एकझन बेटा माधो घला गिरे गिरहस्थी के सेती नइ पढ़िस अउ अपन ददा संग गँवईं कमाय लगिस। सजवा-पेटी धर के गउँटिया के चवँरा मा बइठके साँवर बनाय। 

एकदिन स्यामलाल गुरजी के दाढ़ी मा माधो के कोंवर-कोंवर हाँथ बड़ सुघ्घर लगिस, बड़ परछिन के साँवर माधो बनइस, त गुरजी हा ओला पाँच रुपिया साँवर के उपर दिस, त माधो गुरजी के गोड़ तरी गिरगे। तब स्यामलाल गुरजी हा माधो ला पूछथे- कस माधो..! कुछु दु आखर पढ़ सकथस का ? त माधो के आँखी डबड़बागे कथे- गुरजी मँय नइ पढ़ पाँयेंव काबर दिन मा कमा अउ रात मा खा तइसे बात ताय। तब गुरजी पूछथे- का मँय पढ़ाहूँ, त पढ़बे ? माधो कथे- गुरजी..! बिन ददा ला पूछे नइ बता सकँव। बाप-बेटा गँवईं कमाथन, त पइली-दु पइली अनाज हमर जिनगी के सहारा आय। गुरजी किहिस- तँय संसो झन कर..! इतवार के दिन तोर ददा संग हमर घर आ जाबे, मँय हा समझा दुहूँ। ठउँका इतवार के दिन गोकुल अउ माधो गुरजी के घर पहुँचगे। गुरजी हा उँखर खुब सेवा सतकार करिस, चहा-पानी दिस अउ कथे- ले बता ठाकुर..! का तँय हा अपन लइका माधो ला पढ़ाबे ? ओखर सरी बेवस्था हो जही। गुरजी तुँहर अतका सुघ्घर बानी हा मोर अंतस के पीरा ला हर दिस, का होही अँधरा चाहे दु आँखी। गुरजी किहिस- सुन ठाकुर..! हमर गाँव सुरुजपुर मा रामकोठी हाबय, सियान मन ला घलो ये बात ला बताहूँ, उहाँ ले घलो थोर बहुँत सहारा मिल जही। ठीक हे गुरजी..! कहिके गोकुल, माधो चल दिन, त गुरजी हा गाँव के सरपंच, पटैल अउ कोतवाल ला जम्मो बात ला बतइस। 

एकदिन कोतवाल बिसौहा हाँका पारथे- काली इतवार के गुड़ी चवँरा मा सकलाना हे...हो...! इतवार के दिन बइटका मा गोकुल, माधो कलेचुप बइठे राहय। सरी गोठ ला गोकुल ला पुछिन, त बनत ठउँका देख के बताथे, त स्यामलाल गुरजी किहिस- मँय हा पढ़ाय के जवापदारी लेवत हँव। गोकुल ठाकुर ला रामकोठी ले दु खाँड़ी अन दिन, गोकुल मारे खुसी के अपन दुवारी में जाके अपन परानी मेहतरीन कना नाचे ला लगिस। स्यामलाल गुरजी के एकझन बेटा रिहिस तउन हा सरकारी नउकरी मा अपन सबो परिवार संग आने जगह राहय। माधो ला इसकूल मा भरती कराइस। माधो मन लगाके पढ़े लगिस अउ अपन किलास मा अव्वल नंबर मा पास होय लगिस। 

रोज रतिहा स्यामलाल गुरजी घर जाके सेवा घलो करँय, त गुरजी अउ गोकुल मा मयाँ हा किसन अउ संदीपन कस होगे। जब गोकुल बारवीं कक्छा मा पहिली नंबर मा पास होइस, त ओखर सममान सुरुजपुर मा गजब होइस अउ सुरुजपुर मा ओखर गुरजी होय के परवाना आगे। परवाना ला धर के स्यामलाल गुरजी के गोड़ मा गिरके पाँव परिस, गुरजी हा ओला अपन छाती मा लगालिस- जुग-जुग जी बेटा..! दूधे खा दूधे अँचो..! गाँव के नाँव ला उजियार करबे..! 

गोकुल जब पहिली पगार नउकरी के पइस, त गुरजी ला देथे, त गुरजी हा माधो ला धर के गोकुल कना गिस, त माधो के पहिली पगार ला गोकुल ला दिस, त गोकुल के छाती फुलगे अउ गुरजी के पाँव मा गिरगे, किहिस- गुरजी तुँहर जय हो..! तुँहर सरी कोनों सबो आदमी होगे, त गाँव अँजोर हो जही। 

स्यामलाल गुरजी के जब नउकरी पुरगे अउ घर बइठगे, त माधो कथे- गुरजी के बेटा हा नउकरी मा आने जगह हे, त मोर धरम हे गुरजी के सेवा करना। माधो अपन धरम निभाय, त गुरजी कथे- देख माधो..! ये सरीर के भार तुँही ला हे, काबर बहू-बेटा इहाँ नइ हे हे। माधो, बेटा सहिन गुरजी के सेवा करिस। एकदिन गुरजी सिढ़िया ले उलंडगे अउ ओखर परान पखेरु उड़गे। तब गुरजी के सरी किरियाकरम के जोखा माधो करे लगिस, संदेसा सुन के गुरजी के बेटा रामपरसाद अइस, त माधो के सेवा ला देख के कथे- माधो..! हम पाप के बेटा आन तँय धरम के बेटा आस, तोर करे सेवा ला हम नइ भुलावन, तँय मोर पीठ के भाई अस अउ मोर बाप के सम्पति मा तोर हक रही। माधो किहिस- भगवान के दया ले गुरजी मोर जिनगी बनइस, मोला अउ कुछु नइ चाही, गुरजी के बस एकठन फोटू मोला दे देतेव, मँय अपन मुड़सरिया कना ओखर फोटू ला रखहूँ। सुरुजपुर गाँव मा एकठन भवन लइका मनके पढ़े खातिर बनवइस अउ वो भवन के नाँव स्व. स्यामलाल गुरजी भवन रखिस अउ गुरजी के उपकार ला कभू नइ भुलइस।

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पुरखा के बाना

रामू अड़बड़ सिधवा मनखे राहय, मानुस चोला पाके बिर था नइ गँवाना चाही, ये बात के ओला गजबेच खियाल राहय। एखरे सेती सब झन ला राम रमउव्वल करय। ओखर गुरतुर-गुरतुर बोली जउँन सुनँय, तउन मन काहय मनखे होय, त रामू गंधर्व कस, सरी गाँव मा सबो झन ओला गजबेच मयाँ करँय। जेखर अँगना-दुवारी मा ओहा चल देतिस, त बिन चहा-पानी के ओला नइ भेजय। जउँन कना कोनों बइठ जतिस, त सरी लइका मन ओखर कना झुम जतिन अउ काहय लेन कका कहनी सुना। रामू ला कका सब्बो गाँव के लइका मन काहय अउ ओला घेर के बइठ जावय। कतको गुन रामू मा रिहिस। आनी-बानी के बोली, पुरखा के दफड़ा, ढोल राहय तेला अड़बड़ सुघ्घर बजावय। ओखर घरवाली रेवती ला ये सब बने नइ लागय, ओहा काहय- बिन जॉंगर टोरे कोनों थोरे पोंस दीही। थो था चना बाजे घना, का काम के। रामू ला अपन घरवाली के बोली ह, गोली कस लागे। काम के ना धाम के सौ मन अनाज के फोकटे-फोकटे ओसाना अउ कमाना ना धमाना। आज के जमाना पइसा के जमाना हे, जेखर कना पइसा हे तेखर दुनिया मा कदर हे। पुरखा के बाना अब काम नइ आवय। तइहा के बात ला बइहा लेगे। रामू के दु झन बेटा रिहिस मंगलु अउ दीनू। यहू मन अपन ददा कस निकले लगिन। दु-चार किलास पढ़िन तहँ ले पढ़ई ला बंद कर दिन। केहे गेहे ‘जइसन-जइसन ददा-दाई, तइसन-तइसन लइका, जइसन-जइसन घर-दुआर तइसन-तइसन फइरका।’ 

रोज बिहनचे उठ के ढोल धर के गाँव के चौपाल मा बइठ के किस्सा कहानी सुनाना अउ भजन गाना, रामू सबके मन ला मोह डारे। रोज कोरी भर पइसा रुपिया जोरे लगिस अउ ओखर पेटी (हरमोनियम) खरीद डरिस। तब तीनों झन बाप-बेटा गावे-बजावे। अड़बड़ रुपिया पइसा कमाय लगिन, अब तो घुरुवा के दिन बहुरगे तइसे होगे। कुरिया, अटारी अउ दु खाँड़ी के धनहा ओखर आड़ी पूँजी होगे। छट्ठी, बिहाव मा रामू ला गाँव के मन बलाय लगिन। एकदिन रेवती कथे- मोर बर सोनहाँ खुँटी ले देतेव। सोनहाँ खुँटी काबर, चाँदी के सुँता घलो ले दुहूँ, थोरिक धीर लगा के काम करे बर परही। हमर दुनों टुरा मन बिहाव करे के लइक होगे हे, ददा-दाई के करजा ला उतारबे तब तो, जनम देय ले का होही, जिनगी पहात जावत हे। देवबती गाँव के गोपाल के दुनों बेटी ला अपन दुनों बेटा बर-बिहाव करके ले आनिस। अब घर हा सरग कस लागे लगिस। रेवती ला का पूछबे दु बहु का अइस फुरसत पागे। सुम्मत के गठरी जादा दिन नइ बँधाय राहय। दीनू के बहुरिया सुखिया अउ मंगलू के बहुरिया दुखिया मा तनातनी सुरू होगे। नान-नान बात हा सेमी कस बाढ़े लगिस। जादा भड़ँवा होथे तहाँ ले बाजबे करथे। रात दिन हरहर कटकट सुरू होगे, त रेवती हा कथे- अलग-अलग कर देतेन, त बने हो जतिस। गाँव के चार झन सियान ला बला के दुनों बेटा-बहू ला अलग कर दिस। एक खाँड़ी के धनहा अउ एकठन कुरिया मा रामू अउ रेवती गुजर बसर करे लगिन। रामू अपन पुरखा के बाना ला नइ छोड़िस। दीनू अउ मंगलू खेती-खार मा कमाय बर लगगे। रेवती के रतिहा के नींद अउ दिन के चैन सिरागे, तन हा हाँड़ा लगे लगिस, पेट भर खा अउ लात तान के सूत बछर भर होगे सिरागे। 

सब्बो दिन बरोबर नइ होवय सुख-दुख लगे रथे। दीनू बने खाय कमाय लगिस, त मंगलू घर दलिदरी समागे। दवा-दारु मा सरी कमइ उरके लगिस। दिन खातिन, त रतिहा उपास रही जतिन। बासी पेज खा के जिनगी पहाय लगिस। एकदिन मंगलू अउ दुखिया कमाय बर खेत-खार गे रहिन, त उँखर दुनों लइका, सुरुज अउ चमेली के पेट मारे भूख पियास के पोट-पोट करत राहय। रामू दुनों बेटा कना जाके सोर संदेसा लेवत राहय, दाई-ददा के मन नइ मानय, काबर के मुर ले जादा पिंयारा सुद होथे। मंगलू के डेरउठी मा गिस, त दुनों लइका ला कलपत देखिस, उँखर कलपइ ला नइ सहे सकिस अउ चमेली ला अपन घर ले आनिस। गरु-गाय के ओइलती जब मंगलू अउ दुखिया अइस, सुरुज-चमेली ला घर मा नइ देखिस, त सन्सो मा परगे। ओतका मा परोसिन मन बताइन- तोर टुरा-टुरी ला रामू अपन घर लेगे। तब मंगलू अपन ददा कना जाके कथे- टूरा-टुरी मन हा आये हे का गा..! रामू हाँ कथे। मंगलू कथे- आज बिन पीटे ओमन ला नइ राँहव। रस्सी जर जथे, फेर अँइठ नइ जावय, तइसे ताय। ओतका मा सुरुज अउ चमेली डररावत कथे- हमन अपन डोकरा बबा अउ डोकरी दाई ला छोड़ के नइ जावन। अपन मुहूँ करे मंगलू लहुट गे। रामू दुनों लइका मन ला भरती कराइस अउ आठ हाँथ बीजा के नव हाँथ खीरा कस होगे अउव्वल नम्बर मा सुरुज अउ चमेली अपन-अपन किलास मा पहिली नम्बर मा पास होगे। अब तो बड़े इसकूल के बड़े किलास मा पढ़े बर लगिस। रामू हा संझा जुआर दुनों लइका मन ला बइठार के पेटी (हरमोनियम) ढोल बजा के राजा हरिसचंद, सरवन कुमार अउ मोरजधज राजा के क था सुनाय लगिस। दुनों लइका मन उप्पर क था के असर होय लगिस। सुरुज अपन इसकूल मा सुतंतरता-दिवस के उछाह मा भाग ले लिस। ओकर राग अड़बड़ सुघ्घर रिहिस। सुतंतरता-दिवस के दिन जब लइका मन के कार्यकरम होइस, त सुरुज पेटी बजा के गइस- ‘मोर छत्तिसगड़ के भुईंया मा चिरईया बोले ना, मोर भारत माता के भुईंया मा चिरईया बोले ना’ इसकूल के लइका मन अउ गुरजी मन जब गाना सुनिन, त सुरुज ला अड़बड़ इनाम दिन। जब अड़बड़ अकन इनाम ला लेके अइस, त रामू के आँखी ले आँसू ढरक गे। मोर सुरुज हा हमर खानदान के सुरुज बनगे, धुर्रा फेंकय अउ चंदन अस बनगे, तइसन बात ताय। रामू कथे- सुन सुरुज..! चल रयपुर जाबो। रुपिया पइसा ला धर के रामू अउ सुरुज रायपुर पहुँच के पहली बड़ जन होटल मा जाके पलेट-पलेट भर जलेबी अउ आलुगुंडा खइन अउ बाजावाला के दुकान मा जाके ढोल, पेटी (हरमोनियम) खरीदिन अउ खरीद के घर अइन। 

पढ़ई के संगे-संग सब्बो गाना बजाना सुरुज सिखिस अउ अपन पुरखा के बाना ला अपना डरिस। एकदिन रामू हा कथे- सुन सुरुज..! जउँन हा जनम देहे हे ओखर सेवा करना चाही, बेटा..! तँय हा मंगलू के धन आस, चल आज तुमन ला पहुँचा देथँव। सुरुज, चमेली ला रामू हा लेके मंगलू अउ दुखिया कना गिस, त मंगलू अउ दुखिया अड़बड़ पछतइन अउ अपन बेटा-बेटी ला छाती मा लगा लिन अउ दुनों परानी रामू के गोड़ मा गिर पड़िन, छमा माँगिन। मंगलू हा सुरुज ला ओखर ढोल, हरमोनियम ला देख के कथे- ये काए सुरुज..! सुरुज कथे- ये ढोल अउ हरमोनियम हरे, हमर पुरखा के बाना, हमन ला कभु अपन पुरखा के बाना ला नइ छोड़ना चाही। कोन जनी कतका बेर काम आ जही। रामू उलटे पाँव लहुलटत राहय, त सुरुज अउ चमेली अपन बबा ला एकटक देखिन, त मंगलू दँउड़त-दँउड़त जाके अपन ददा के गोड़ धर के रोय लगिस। ददा मँय हा परबुधिया आँव, मोला माफ कर देबे। अब मँय हा तुमन ला नइ छोड़ँव। रामू अउ रेवती ला अपन घर ले आनिस अउ जुर-मिल के रेहे लगिस। सुरुज हा रायपुर जाके संगीत इसकूल मा संगीत के गुरजी होगे। सुरुज कना सिखइया-गवइया आय लगिन। एक बेर रामू हर सुरुज ला देखे बर ओखर इसकूल मा गिस, त सुरुज सिखात राहय- ‘मोर छत्तिसगड़ के भुईंया मा चिरईया बोले ना...’ रामू के आँखी डबडबागे अउ कथे- सुरुज हा हमर कुल के सुरुज बनगे गा..! अब तो रामू अउ रेवती दुनों बेटा-बहु संग सुम्मत से रेहे लगिन। नाती-नतरा संग रामू लइका बन जावय अउ क था पुरान के किस्सा सुनाय लगिस। सुरडोंगर गाँव के सब्बो नर-नारी मन हाट-बाट मा गोठियाय अउ काहय, ऐदे बने बनौकी बनगे, गौकी रामू के नाँव जग जाहीर होगे। 

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निरमला

आदर्स गाँव सहसपुर के सोर जग जाहिर राहय, काबर कि उहाँ सरकार के सब्बो योजना ला उहाँ के सरपंच रामलाल हा लागू करे रिहिस, तभे तो गाँव के नाँव सब्बो झन के मुहूँ मा समाय राहय। उही गाँव के गउँटिया राधेलाल घलो गाँव के सियानी-गँवारी मा लगे राहय, ओखर बिन पूछे गाँव के कोनों काज नइ चलय। गाँव के ओहा बड़ जन रोंटहा किसान रिहिस, चमकट्ठा खेती-खार देखते बनय, तीर-तार गाँव के मन गउँटिया कना आके दुख रोवय। उधारी-बाढ़ी घला देवय, बारो महिना ओखर घर मा चार झन नउकर-चाकर झूलत राहय। बेटा-बहु, नाती-नतरा ले भरेपुरे राहय। न अन के कमी न धन के, का पूछबे बड़े-के बड़े बात छोटे घर के सब पोल खुल जाय, तइसने ताय। बिधाता के लिखा ला कोनों नइ मिटा सकँय, देथे तेला छप्पर फार के नइते भरे ला भराय अउ जूच्छा ला ढरकाय अइसने जान। ओ गाँव के सरपंच अउ गउँटिया रतिहा होतिस, त आरो लेवय, आज काकर घर आगी नइ बरत हे, भूखे पेट तो कोनों नइ हे, अतका सुघ्घर उँखर सियानी रिहिस। 

गाँव के चारों खुँट मंदिर देवालय राहय। सुघ्घर खारून नदिया मा पानी बारो महिना राहय। दु ठन तरिया जेमा लबालब फरिहर पानी, ओखर तीर-तार आम, जामुन के रूख देखते बनय, ओ गाँव गोकुल-बिरिनदाबन कस लागय। मुफत मा असपताल, इसकुल मा लइका, पढ़य्या गुरजी मन के सभाव दुवापर जुग के उज्जेन नगरी अउ सुंदर संदीपन मुनि के सुरता कराय। तरिया के पार जेमा पचरी अउ अलगे-अलगे घाट जउँन ला निरमला घाट काहय जेमाँ माईंलोगन मन मरजादा ले नहाय। दुसर घाट संकर घाट काहय तउँन आदमी जात मन के राहय अउ नदिया घाट गाय-गरु के राहय। पुरइन के पाना कमल के फुल, तरिया मा देखते बनय। जउँन रस्ता चलइया मन कोनों ओ गाँव ले नहाँकतिन, त बिन ओ तरिया के पानी मा गोड़ धोय बिन नइ रतिन। 

अइसने ओ गाँव के नाँव सबके मुहूँ मा राहय, फेर का करबे सुखे- सुख मा दिन नइ पहाय, चार दिन के चाँदनी फेर अँधियारी रात ठउँक्का उहाँ झपागे। गउँटिया घर के गउँटनिन सियनहिन होगे रिहिस, काया हा निच्चट होगे रिहिस। कोठा मा बछरु ला खूँटा मा बाँधत भड़ाक ले चित्ता गिर परिस, त कनिहाँ हा टूट गे। गउँटिया अड़बड़ दवा-दारु करिस फेर बने नइ होइस। पिंजरा ले पंछी उड़गे। बड़े बिहनिया देखिन, त गउँटनिन के परान निकलगे राहय। ‘राहत ले मोर-तोर का जही साथ, बानी बचन ला मोर गठरी मा बाँध’ अस होगे, सरीर हा बस्साय कस होगे, राम नाम सत हे, सबके इही गत हे, काहत समसान घाट लेगिंन, बड़ सुघ्घर के काया पल भर मा राख होगे, का करबे राखत भर ले राख तहाँ ले एक न एकदिन हो जही राख, सरी साख होगे राख। 

चिहुँर पार के घर भर रोइन, तीर-तार के जम्मो झन बर गाँव के गउँटिया नेवता पठोइस, सरी मनखे पचनाहन के दिन सकलागे अपन-अपन घठौंदा मा नहाय लगिन, ठउँक्का नहाके निकले राहय ओतकेच बेर बादर गरजे लगिस, बिजली चमके लगिस, रिमझिम-रिमझिम पानी बरसीस, त निरमला घाट के परदा भसक गे अउ कतकोन दाई-माईं उप्पर गिरगे। कतकोन झन दबगे दुसर घाट के मनखे मन अइन अउ ईंटा-पथरा ला दुरिहा करिन, पथरा-ईंटा मा दबके, चैतू, बुधारू, समारू के परानी मन निरमला घाट के परदा मा चपका गे अउ अपन परान ला छोड़ दिन। गाँव भर मा दुख के पहाड़ टूटगे, सरकार के निरमला घाट योजना हा आज चैतु, बुधारू, समारू के तिरिया मन के परान ला ले डरिस। तिनों झन करमछँड़हा होगे। तिनों झन के लइका मन आज बिन दाई के होगे, का करे बपरा मन, रोजे कमाय अउ रोजे खाय। गउँटनिन हा अपन संग चैतु, समारू अउ बुधारू के तिरिया मन ला सकेल डरिस। जउँन गाँव मा बड़ सुघ्घर के तिहार मनाय, नारबोद देखे बर आय, जउँन आतिन तउन मन चहा-पानी के बिन वापिस नइ जावय। अइसन मा आज पहाड़ टूटगे काहत, माथा धर के आँसू ढारत मनखे मन जावय। सरपंच अउ गउँटिया हा बिधायक अउ थाना मा खभर दिन आदर्स गाँव के खभर गजट मा छपगे। चारों कोती ओ गाँव के हालचाल सब्बो जान डरिन, छुटभैय्या नेता, बिधायक, मंतरी, संतरी, पुलिस, सिपाही, कलेकटर सब्बो अइन अउ चैतू, समारू, बुधारू के घर मा गिन, त उँखर नान्हें लइका मन ला देख के मुड़ धर दीन अउ सरकार हा चैतू, समारू, बुधारू ला मुआवजा देय के घोसना करिस। कोनों तरह ले जिनगी पहाय लगिस। 

चैतू, समारू, बुधारू, संसो फिकर मा परगे, तीनों झन के नान-नान लइका राहय, ओ लइका मन दाई-दाई कहि-कहिके रोवय, त कतकोन मनातिन, त मानबेच नइ करँय। चैतू, बुधारू, समारू मन राधेलाल गउँटिया कना जाके कथे- दाउ..! अब हमर लाज तुँहर हाँथ मा हाबय, न हमर कना खेती हे न खार। कुरिया घला ओदरत हे, त हमर जिनगी कइसे पहाही तेखर रद्दा बता देते, त राधेलाल गउँटिया ओमन ला किहिस- देखव चैतू, बुधारू, समारू जउन होगे, अब जउन जी छुटगे, तउँन लहुट के नइ आवय तुँहर मन के कुरिया ओदरत हे, त मोर घर राहव अउ खाव-कमाव अउ तुँहर लइका मन के पढ़ाय के जोखा ला मँय हा करहूँ। गउँटिया हा तिनों झन के लइका के पढ़ाय के जोखा ला करिस अउ चैतू, समारू, बुधारू के जिनगी हा सँवरिस। ओतका मा तिनों झन के नाँव ले सरकार हा रुपिया मुआवजा के दिस। गउँटिया कथे- देख समारू, चैतू, बुधारू..! तुँहर मन बर सरकार हा रुपिया दे दिस। अब ओ पइसा मा अपन कुरिया ला बने छा डरो अउ जिनगी ला हरियाव, मँय हा कतका दिन ले तुँहर बोझा सहिहूँ। मोरो तो चार झन लोग लइका हे, सबो के मन हा एके बरोबर नइए। जइसने रुपिया मिलिस, त गउँटिया हा ओ मन ला अपन-अपन घर जाय बर कह दिस। 

ओ रुपिया हा उँट के मुहूँ मा जिरा बरोबर होइस, न बने कुरिया बनिस न छान्ही छवइस, धान के पेरा मा परवा ला तोप के अपन-अपन कुरिया मा रेहे लगिस, पानी घरी सुते के ठउर नइ राहय, त तिनों झन अपन-अपन घर लइका ला पोटार के बमफार के रोय ला लगिस, हमर गाँव मा निरमल घाट नइ बनतिस, त हमर ऐ दसा नइ होतिस, इही घाट के भरोसा मा ठेकादार के दुमंजला मकान बनगे, इंजीनियर साहेब कना कार होगे, फेर हमर जिनगी बेकार होगे, हमन बिन तिरिया के बेकार होगेन कहिके मुड़ धर के पछताए लगिन अउ केहे लगिन- हमन अइसे होगे हन...जइसे कुकुरगत, हमन का करन कहिके मुड़ धर के रोय लगिस अउ केहे लगिन- हे भगवान..! काबर बनाए हम ला गरीब किसान, ए दुख ला देखाय बर, फोकटे हम ला जियावत हस तेकर ले हमु मन ला सकेल लेते, त बने हो जतिस तहाँ ले जिनगी के ये बोझा हलका हो जतिस, अइसे कर के तिनों झन आपस में दुख-सुख बाँटत अपन जिनगी ला पहाय लगिन।
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जिनगी सुघ्घर बनाँवव

रामपुर अतराप भर मा नाम्हीं गाँव रिहिस, जइसना ओखर नाँव तइसना ओखर सुघ्घर असन काम घला रिहिस, गाँव, त देखथे बनय। गाँव के बीचों-बीच बड़ परछिन के मंदिर जिहाँ बाँके बिहारी बिराजे रिहिस गाँव के पाँव ला पखारत देरानी-जेठानी नरवा मा बारो महीना पानी देख के आतमा जुड़ा जावय अउ नरवा के पार मा रिकम-रिकम के रूख-रई जेमाँ चिरर्ई-चिरगुन मन राहय अउ बड़े बिहनियच उँखर कुहकई अइसन लागय, जइसे बेद सासतर के मंतर ला कोनों बाम्हन देवँता बाँचत हे। अड़बड़ सुघ्घर उहाँ के नर-नारी मन गजबेच सुम्मत से राहय, लड़ई-झगरा सुनब मा नइ आवय। उही गाँव के बरदिहा राधेलाल अपन परानी संग अनंद के साथ राहय। दाउ रामधन के घर ओहा पहाटिया रिहिस, बरदीहिन स्यामा संग बिहाव होय बछर भर होय रिहिस, का करबे सुख अउ दुख जिनगी मा लगे रथे, बरदिहा जुड़ीताप बिमारी मा परके सरग सिधार गे, त ओखर बरदीहिन उप्पर पहाड़ गिरगे तइसे होगे। 

बरदीहिन स्यामा हा अपन कुरिया ला रामधन दाउ कना गिरवी रखके अपन बरदिहा के खात-खवई करे रिहिस, कुटिया-पिसिया करके बिचारी दुखिया अपन लइका जेहा कोख मा रिहिस तेखर खातिर बारा कुँआ मा बाँस डारत गोपाल नाँव के बेटा पाय रिहिस, ओला अपन आँखी ले, ओधा नइ होवन देवय काबर कि ओहा ओखर परान के अधार रिहिस, केहे गेहे ‘बेटा हा दाई के हंडा होथे।’ रामपुर गाँव मा सरकार के सरी योजना लागू रिहिस। गरीब अउ निरासरित के रुपिया, पइसा, चाँउर स्यामा ला मिलय अउ दाउ रामधन घर टहल करँय, ओखर बेटा गोपाल घला दाउ रामधन घर जाय, गरु-गाय के सकला करँय, दाना, चुनी, भुँसी देवय। पहाड़ कस जिनगी पहाय लगिस। दाउ रामधन के घलो दु झन बेटा रिहिस बड़े बेटा हा घर के सियानी गँवारी मा राहय, छोटे बेटा स्यामू हा पढ़े बर इसकुल जावे। पाँचवी किलास मा पढ़त रिहिस। गोपाल घला पढ़े बर जाहूँ कहिके अपन दाई ला किहिस, त स्यामा कथे- बेटा..! हम ला कोन साहिब बनना है। जिनगी भर दाउ रामधन के घर के चरवाही करना हे अउ अपन बेटा ला किहिस- खाय बर चाँउर, रेहे बर छइय्यॉं हो जाय अउ हम ला कुछु नइ चाही। 

एकदिन कोटवार हाँका पारत काहत राहय, गाँव के नीम चवँरा कना सब सकलात जाव, आज गाँव हा चमाचम बंद रही। खेती-खार, काम-धंधा, गाँव-गँवतरी जाना-आना बंद हे..! स्यामा अउ गोपाल जब हाँका ला सुनिस, त स्यामा किहिस- बेटा..! बइटका मा जाके कलेचुप बइठ जबे, सियान मन के गोठ ला सुनबे कुछु झन बोलबे, नइ तो छोटे मुहूँ बड़े बात हो जथे । 

गोपाल पाँच बरस के लइका बइटका मा कले चुप बइठके सुने लगिस। बइटका मा रामपुर इसकुल के बड़े गुरजी घला आय राहय, सरपंच मनहरन अउ पंच मन, गाँव के दाउ रामधन घला आय राहय। सरपंच हा गुरजी ला पूछिस- का बात आय गुरजी..! बने फरिहा के बता। गुरजी हा सब झन ला राम-राम किहिस अउ कथे- जम्मों पंच, सरपंच, दाउ, सियान मन से मँय हा बिनती करत हँव कि काली पँड़री बुधवार के दिन स्कूल में परवेस उतसव मनाना है। जेमाँ गाँव भर के मनखे मन ला सकलाना हे, छै बरस ले ग्यारा बरस के लइका मन ला इसकुल मा पढ़ाय बर भेजना है। सरपंच मनहरन कथे- कस गुरजी पढ़ई फोकट थोरे होही, पढ़ाय बर लइका के खरचा-पानी लागही, गरीब मनखे काहाँ पढ़ाही। गुरजी हाँथ जोड़ के कथे- देखव सरपंच सियान..! मोर बचन हिरदे मा बने धरव, हमर सरकार हा लइका मन ला पढ़ाय के अड़बड़ जोखा करे हे, बिन पइसा के पुसतक अउ लइका ला भरपेट खाना अउ डरेस देथे, येमा अपन-तुमन के बात नइ हे, सरकारी योजना हरे एखर भरपुर लाभ लेवव अउ काली ये गाँव के कोनों लइका झन छुटय ओमन सब इसकुल जही, त उँखर सुवागत होही। 

बइटका उसलिस, त गोपाल घर लहुटिस, त सरी किस्सा ला अपन दाई ला बताइस। त स्यामा कथे- बेटा..! दाउ ला पूछे बर परही, हमर जिनगी उँखरे भरोसा मा चलत हे। ओतका मा गाँव के चार झन सियान अउ गुरजी स्यामा घर आगे, बिचारी हा डररात कथे- बइठो बबा हो..! आज मोर गरीबिन के कुरिया ला अँजोर करेेव, ओतका मा सियान मन के अउ गुरजी के सुआगत करे बर गोपाल ला स्यामा कथे- गोपाल टुपटुप पाँव परिस। दाई हा अपन बेटा ला बना सकत हे, बने सिखौना सिखा सकत हे। संसकारी लइका गोपाल राहय। स्यामा कथे- ले बताव बबा हो..! कइसे मोर कुरिया मा पधारे हव। देख ओ पहाटनिन..! तोर गोपाल हा छह बछर के होगे हे, पढ़े के लइक होगे काली इसकुल में परवेसोत्सव मनाना हे, कोनों बात के फिकर झन करबे सरी पढ़ेके जिनिस, पुसतक अउ मधियान भोजन अउ इसकुल डरेस सरकार हा देवत हे, खाली तोला लइका ला पढ़ाय बर भेजे ला परही। स्यामा कथे- बबा हो..! हमन चरवहा जात के तान, बिना दाउ ला पूछे कुछु काम नइ करन, ये कुरिया रहन में हे, ओतका बेर ठउँक्का दाउ रामधन पहुँचगे अउ कथे- ये बने बात आय स्यामा, लइका पढ़ही, त आगू बढ़ही, हमर गाँव घला साछर होही पढ़ही लिखही, त बनहीं मासटर, नइ पढ़ॉंव तँय कथस काबर ? गोपाल हा चटरु राहय, मँय हा पढ़े बर जाहूँ कहिके गुरजी कना आ के कलेचुप बइठगे। गुरजी ओला पोटार लिस अउ कथे- तँय हा कोनों बात के सन्सो झन कर..! पढ़ाय के जवापदारी मोला दे, जतका पढ़हूँ कही ततका पढ़ाहूँ। 

दुसर दिन इसकुल मा पोंगा बाजना बिहने ले सुरू होगे गाना बाजत राहय, चल संगी पढ़े बर जाबो, पढ़ लिख के सुघ्घर नाम कमाबो। हमर गाँव ला, हमर देस ला सरग बनाबो। गोपाल मारे खुसी के कूद परिस अउ अलवा-जलवा कपड़ा पहिर अउ बासी पेज खाके झोला धर के इसकुल मा गिस। इसकुल अड़बड़ सुघ्घर दिखत राहय, इसकुल के चारों डाहर रिकम-रिकम के फुल फूले राहय, गोंदा, बइजंती, चमेली अउ नीम के रूख। दीवाल मन मा बड़ सुघ्घर के दोहा चउपाई, बड़े-बड़े महातमा मन के फोटू, किरिसना, राम के फोटू, राहय। झूला, फिसल-पट्टी घला राहय। सबे लइका सकलइन, पराथना करिन, जनगन मन, बंदे मातरम्। लइका आय हे, तेला गुलाल लगाना हे, माला पहिनाना हे। गुरजी गोपाल ला सबके बीच मा बलाके गुलाल अउ माला पहिनइस, मधियान भोजन मा मिठई घला दिस। गोपाल के खुसी के ठिकाना नइ रिहिस, अइसे लगिस जइसे मँय हा इसकुल आँय, त सब पाँयेंव, मारे खुसी के मुच-मुच हाँसत घर अइस। ओखर दाई स्यामा हा अपन बेटा ला पोटार के चुमा लिस- बेटा..! रोजीच बढ़े बर जाबे, एक्को दिन नाँगा झन करबे। 

गोपाल बने मन लगाके पढ़िस, कक्छा मा अव्वल नम्बर मा पास होवय। अब बने नम्बर पवइया लइका मन के बरोबर होइस, त ओकरो सममान होइस। देखते-देखत समे जावत का देरी लागथे, खुब पढ़ डरिस। रहन रखे अपन कुरिया ला छोड़ा डरिस। ओतक बेर स्यामा के खुसी के आँसू भर अइस कुरिया, अटल, अटारी बनगे अउ अपन घर में एकठन गीता के संदेस ला लिखवइस- ‘करम करना चाही फल भगवान के हाँथ हे। अच्छा काम करे ले आदमी महान बन जथे ।’ महतारी-बेटा खुसी के दिन गुजारिन अउ घुरवा के दिन बहुर गे।
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दुलरवा भाँटो

स्यामू के भाँटो मोती हर सबले अलगेच सुभाव के रिहिस। जब ले ओखर बिहाव फुलमत संग मा होय रिहिस, तहाँ ले अपन छुटपन के सँगवारी मन ला छोड़ दिस। सबो सँगवारी मन ओला काहय, भउजी के आय ले हमन ला छोड़ दिस, अब तो हमन ला देख के घलो टेम नइ मिलय। पहली तो हरफर मौला कस राहय, न घर के चेत न खार के। खाय तहाँले मुहूँ पोंछत हमर संग मा गिल्ली, डंडा, खुडुवा मा भिंड़ जतिस। इसकूल मा पढ़िस तहाँ ले हिरक के पुसतक ला नइ देखय, तभो ले बने नंबर मा पास हो जावय। इसकूल के गुरजी मन हर काहय- थोरको कोनों पढ़तिस, त देखथे। परोसी मन काहय- का छॉंट के परलोखिया बर सिवलाल बहु लाने हे। सरी किसनपुर गाँव के मन सिवलाल ला भागमानी मानय। फुलमत जब ले मोती के घर आये हे, तब ले घर बड़ परछिन के दिखथे अउ चिक्कन-चिक्कन मोती घला दिखथे। दुनों झन के जोंड़ी राम-सीता कस हे। मोती अपन घरवाली फुलमत के दिवाना राहय, थोरको नइ छोंड़य। बाजार हाट जतिन, त संगे-संग, जइसे राधा-किसन कस। मोती मुच-मुच हाँसय अउ फुलमत मुड़ी ला गड़ियाय अपन घरवाला के पाछू-पाछू रेंगय। फुलमत के सुभाव ला का पूछबे? अतका सरू रिहिस बिचारी हर गउ बरोबर। 

गाँव के मोती के संगी-जँउरिहा मन, दुनों झन ला भैया-भउजी काहय अउ स्यामू के सँगवारी मन दीदी-भाँटो काहय। दीदी-भाँटो गाँव मा चिन्हारी हो गे राहय, सहीं मा किसनपुर गाँव मा फुलमत के अड़बड़ कदर राहय। अपन ले बड़े मन के आघू कभ्भु मुड़ नइ उठाय, सरी गाँव के मन ला अपन रिस्ता नाता मानय। मोती अपन कुटुम के धनीमानी राहय, लोग लइका नाती-नतरा मा रचे-पचे राहय। नानकुन पराइवेट इसकूल मा गुरजी रिहिस। अपन जिनगी भर मा दुसरी ले तिसरी नइ पढ़इस। कोनों बड़े गुरजी हर उँचहा किलास ला पढ़ाय बर कतिस, त मुहूँ लुकाय। ओहा दु कोरी रुपिया महिना मा पगार पावय, का कहिबे स्यामू के सँगवारी अउ मोती के सँगवारी मन ओखर पियाँर बर आँखी गड़ा दे राहय, चहा-पानी, भात, दार, साग बर ओ़ंडा देय राहँय अउ बिचारा के घर गिरहस्ती हा ले-देके चलय, घर कुरिया त देखते बनय दोनगा खटिया, थोरिक बहुँत खाय पिये के भड़ँवा, अलवा-जलवा कुरसी-टेबुल तब ले अपन मा मगन राहय बेफिक्कर, ओखर देहें मा कुछु फरक नइ परे, कोनों धनी आदमी ले कम नइ राहय, भले खाय बर झन राहय ओखर ठाठ देखते बने। फुलमत काहय- फोकटे-फोकट सेखी झन मारे करव, देख तो लइका मन हा पट्टी-सलेट काहत-काहत बोलना बंद कर दिन, तुमन हा बिहनेच ले जाथो, त संझा जुआर आथो, खात भर के ताव, तहाँ ले मुहूँ पोंछत चल देथव, का करे बिचारा लागिर होगे राहय, त सुने बर परय। दोनगा खटिया, कथरी, ओखर बर पलंग अस राहय अउ ओखर सुभाव अइसे राहय कि ओखर डेरउठी ले कोनों बिना चहा-पानी पिये नइ जावय। एक जुवरहा खाय पिये के हो जाय तहाँ ले रतिहा देखे जही अइसे काहय। 

स्यामू अपन भाँटो मोती ला अड़बड़ चाहे, खुद के बाप ले जादा मानय मोती घलो अपन सारा स्यामू ला खुद के लइका कस मानँय। सारा-भाँटो के गोठ ला जउँन मन सुनँय, त खलखला के हाँस डारे। जब स्यामू के बिहाव राधा संग होइस, त ओखर भाँटो अतका नाचिस के देखते बनय, सब्बो बरतिया मन ओहिच ला देखते राहय। स्यामू के बिहाव होगे, बड़ परछिन के बहुरिया आगे। तब मोती कथे- देख सारे..! अब राधा आगे, त ओखर संग माते झन रबे, भाँटो-बहिनी के घला सोर खभर लेत रबे। एक बेर मोती कथे- कस रे यार..! तुँहर जोंड़ी हा राधा अउ किसन कस हाबे। पढ़े-लिखे के इही फायदा आय, मोला देख अलवा-जलवा पहिने हँव अउ तोला देख सुघ्घर के पेंट अउ टी-सर्ट फटकारे हस। सब तोर किरपा हे भाँटो अइसे स्यामू काहय। 

एक बेर स्यामू कना डकहार आके लिफाफा दिस, त ओमा नउकरी के परवाना राहय, लिखाय राहय अचानकपुर के मिडिल इसकूल मा अंगरेजी के गुरजी बने के तोला चानस मिले हे, उत्ताधुर्रा जाके अपन बहिनी-भाँटो के गोड़ तरी गिरगे, एदे भाँटो अचानकपुर मँय हा राधा संग जावत हँव काबर किसनपुर ले अड़बड़ धुरिया हे। मोती किहिस देख रे यार..! भुलाबे झन, नइ, त ‘राजा के राज आय, सोवत उठत गीत गाय’ तइसे झन करबे, हमरो मन डाहर आरो लेत रबे। स्यामू कथे- देख भाँटो..! तोला मँय कभूच नइ भुलॉंव, मँय हा तोरेच किरपा ले नउकरी पाय हँव। मोती कथे- बने जी खा रे बाबू..! तोर नाम सोर चलय। स्यामू ला बिदा करिस, त मोती के आँखी डबड़बा गे, स्यामू हर अपन दीदी-भाँटो के पाँव पर के अचानकपुर चल दिस। जब ले स्यामू अपन काम मा गिस, त मोती हा उदास रेहे लगिस। फुलमत बड़ मनाय, त मोती काहय- स्यामू के सूरता रात-दिन मोला आवत हे, चल ना..! ओखर कना एकाद दिन रही के आ जतेन। एकठन काम कर देते, स्यामू ला ठेठरी, खुरमी गजबेच पसंद हे। 

ठेठरी, खुरमी ला झोला मा धर के स्यामू कना जाय लगिस। संझा बेरा होत राहय रामपुर के हाट स्यामू हा अपन सँगवारी मन संग जात राहय। दुरिहा ले स्यामू हा देखथे मोर दुलरवा भाँटो अउ दीदी रेंगत आवत हे ‘मयाँ ला उही जानथे जोन मयाँ करथे, जेखर अंतस मा मयाँ नइ हे तेकर अंतस ला पथरा जान।’ स्यामू हा दउँड़ के पाँव तरी दीदी-भाँटो के गिरगे। सारा-भाँटो हाट मा अइसे भेंट लगिन, त देखइया मन घलो काहय- अइसने सारा-भाँटो के मयाँ आज देखेन गा अउ स्यामू के दीदी अपन अचरा ले स्यामू के आँसू ला पोंछिस अउ स्यामू हा अपन उरमाल निकाल के अपन दुलरवा भाँटो के आँसू ला पोंछत राहय। स्यामू कथे- चल भाँटो अउ दीदी..! मँय हा जउँन सेठ कना कपड़ा लेथँव ओखर दुकान मा जाबो। उहाँ जा के छिंटही लुगरा अउ बड़जन आँछी वाला अपन दीदी बर लुगरा लिस अउ अपन भाँटो बर सुघ्घर अकन के चउँखाना कुरता अउ पटका लिस, त ओखर भाँटो कथे- कस रे यार..! अतका खरचा काबर करत हस, तोर दाई-ददा मन का कही ? अपन परिवार ला घला देखे बर परथे। 

दु चार दिन रेहे के बाद मोती अपन घरवाली फुलमत ला कथे- देख..! जादा दिन रहना ठीक नइ हे, हमन ला बिदा दे अड़बड़ दिन रहिगेन, लोग लइका मन देखत होही हा़ँडी मा अन नइ परे होही। दुलरवा भाँटो अउ दीदी दुनों जाय के तइयारी करिस। अइरसा रोटी स्यामू हा दीदी भाँटो बर जोरिस, त मोती कथे- देख रे यार..! तोला अइरसा के खियाल बने हे, घर जाके बाँट-बिराज के खाबोन। स्यामू अपन भाँटो-दीदी ला जब बिदा कर के लहुटिस, त दु-चार दिन बिते के बाद स्यामू ला मोती के संदेसा मिलथे, स्यामू तोर दीदी किसनपुर के असपताल मा भरती हे अउ ओ हा स्यामू-स्यामू के रट लगाय हे। संदेस पाके अउहाँ-धउहाँ दउँड़त जब असपताल पहुँचिस, त फुलमत के आखरी समे आगे राहय, स्यामू के हाँथ ला धर के अपन परान ला छोड़ दिस, त असपताल के दुसर खोली ले रेडियो मा धुन बजत राहय- ‘चल उड़ जा रे पंछी, कि अब येदेस हुआ बिराना।’ सारा-भाँटो एक दुसर ला पोटार के रोय लगिस। 

एम्बुलेस ले जब फुलमत ला किसनपुर लानिस, त सरी गाँव के मन फुलमत के अरथी ला देख के रो डरिन। सरी गाँव के मन जुरियागे, त मोती अपन सारा ला कथे- देख स्यामू..! तोर दीदी हा एकठन जाने असन बात केहे रिहिस- कोनों मोर परान निकल जही, त मोर स्यामू भाई के छिंटही लुगरा ला ओढ़ा दुहु, उही मोर मरती बेरा के ओढ़ना होही। स्यामू बम फार के रो डरिस। मोती हर धीरज धरइस। उही लुगरा ला ओढ़ा के काहत गिन- ‘राम नाम सत हे, सब के इही गत हे।’ जाके मसानघाट मा किरियाकरम करके जब अइस तब स्यामू कथे- एकठन बात काहत हँव भाँटो..! मोर गोठ ला आने झन मानबे, तोर लइका मन अपन-अपन ठउर ठिकाना मा कमात खात हे। बिना दीदी के दिन ला पहाना अड़बड़ मुसकिल हे, चल मोर संग रबे, जियत मरत ले तोर सेवा जतन करहूँ। मोती स्यामू ला पोटार लिस अउ कथे- सारा मिले, त स्यामू कस। स्यामू अपन दुलरवा भाँटो ला लेके रहे लगिस। 

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सुहागा

परदेसी के दाई सुहागा अपन बड़ मयारुक बेटा के बिहाव करके अतका खुस होगे जइसे गंगा नहाँ डरिस। गाँव ले सबो झन ले अलगेच बहुरिया लानिस। सरी गाँव के सियान मन काहय- बहु पइस सुहागा हा, बड़ परछिन। सेवती घलो अपन पति कना आके गजबेच अनंद मनाय। काबर एके बेटा के बहू बनिस। परदेसी घलो अड़बड़ खुस राहय। घर के काम, खेत के काम, सरी काम ला हँसत करँय। सुहागा के घर हा सरग कस लागय। गाँव के सरी मनखे मन हर कथे- बड़ भागमानी ये गा। सुहागा अपन सरी उमर ला परदेसी खातिर खपा डरिस। परदेसी जब पाँच महीना के रिहिस, तभे सुहागा के सेंदुर उजड़ गे रिहिस, पर घर कुटिया-पिसिया करके परदेसी ला पालिस-पोंसिस। गाँव के सियान अगराहिज काहय, सुहागा के करलइ देखे नइ जाय, एकर सेती अच्छा होतिस कोनों बने मनखे के हाँथ लग जतिस, त ओखर जिनगी सँवर जतिस अउ परदेसी घला पढ़-लिख के दु पइसा कमाय के लइक हो जतिस। फेर कोनों के गोठ ला काँन मा नइ धरिस, सुनँय सबके करँय अपन मन के। 


सुहागा के चेत बहु-बेटा बरोबर करँय, परदेसी अपन गाँव के एक कोस दुरिहा मा एकठन कारखाना मा नउकरी पागे। पहिली पगार जब पइस तब दु ठन परछिन असन दाई अउ अपन घरवाली बर छिंटही लुगरा लानिस। बेटा के पसीना के कमइ ले जब लुगरा अउ दु कोरी रुपिया पइस, त ओला अपन गोसइयाँ के सुरता आगिस- आज के दिन कोनों परदेसी के ददा रतिस, त कतना खुस होतिस। अंतस मा अइसने उथल-पुथल होय। सेवती अउ परदेसी के दु झन लइका राहय, मन्नु अउ मुन्नी। सुहागा अपन दुनों नाती-नतनिन पाके अड़बड़ खुस राहय। गजबेच मयाँ करँय। काबर के मूल ले सुद पियाँरा होथे। एकदिन परदेसी अउ सेवती अपन-अपन काम बुता मा चल दिन, जाय के पहिली दाई बर सरी जोरा करके गिन अउ चेता दिस- दाई संझौती बेरा मा हमन आबो, गाय-बछरु अउ दुनों लइका डाहर धियान राखबे। जाति-आति दुनों बेरा बेटा-बहु अपन दाई के गोड़ छू के जावय। ओतका बेर दाई के आँखी ले आँसू ढरक जाय। मयाँ के किम्मत उही करथें जउँन हा मयाँ बर तरसथे, माँगे मा मयाँ नइ मिलय। गाय-बछरु अउ लइका मनके जतन सुहागा करके, बेटा-बहु के आय के बेरा ला जोहत राहय। थोरको समे जादा होतिस, त सुहागा बाय-बियाकुल हो जाय, परोसिन मन ला पुछे बर धर लेय। बेटा-बहु के आवत ले दार, भात, साग राँध डारे राहय। सुम्मत जिहाँ होथे अउ जब अपन-अपन काम बुता मा मन करथे, सब बन जथे । अइसने सुघ्घर दिन बित जथे । पेट भर खा अउ जॉंगर चलत ले कमा। केहे गेहे- ‘जिहाँ अन-धन मा कोठा भर जथे, दिन ढरकत का बेरा लागथे।’ सुहागा के सरीर दिनों-दिन कमजोर होय लगिस, बुढ़ापा जब आथे तब नवॉं-नवाँ रोग-रई झपा जथे । देखते-देखत सुहागा के कनिहाँ नँवगे, लउड़ी ओखर सँगवारी होगे। अब सुहागा के जॉंगर बिलकुल साथ नइ देवत हे। खटिया धरलिस, अब जिनगी पहाड़ कस लागे लगिस। सन्सो-फिकर सुहागा के सरीर मा झपागे। हाड़ लगगे, का करबे बहु-बेटा कमाय बर चल देवय। बिन कमाय भरे तरिया के पानी घलो नइ पुरय। राहत ले खाय बर परही, कमाबे तब सबो भाहीं। बिन कमाय कोनों नइ देवय। 


एकदिन दुनों झन कमाय बर जाय के पहिली अपन दाई ला चेताइस- देख दाई..! तोर खटिया के तरी मा, भात, दार, साग ला राख देहन, तेहर धीर लगाके उठके खा लेबे अउ लइका मन के खियाल राखबे। मँझन बेरा सुहागा ला भुख लागिस, उठे बर करिस, त जॉंगर नइ चल सकिस, त अपन नाती मन्नु ला हाँक पारिस, आतो बेटा..! मोला उठा दे रे..! मन्नु अपन सँगवारी मन संग खेले मा भुलाय राहय, उही हाल मुन्नी के घलो राहय। दुन्नों लइका दरवाजा ला खुल्ला छोंड़के खेले बर चल दें राहय, ओतका मा परोसी के कुकुर हा घर मा आ के, सुहागा के खटिया तरी राखे दार, भात, साग ला सपेट डरिस अउ पानी ला उंडा के भगा गे। सुहागा हात-हात करत रहिगे। मारे भुख के सुहागा तड़फत राहय, चुल्लू भर पानी बर तरसत राहय, ओतका मा ले-देके खटिया ले उठिस अउ धीर लगाके लइका मन ला चिल्लाय बर डेहरी कना गिस, तहाँ ले भसरंग ले गिरगे, माँथ मा खून चुचवावत राहय, सरी हाँथ गोड़ छोलागे राहय। 


संझा बेरा दुनों परानी अइस, त देखथे, दाई हर डेहरी कना गिरे अचेत परे हे अउ परदेसी-सेवती के नाँव ला रटत राहय। ए दे मोर दाई..! आगेंव, ते संसो-फिकर झन कर। सेवती हा लोटा मा पानी लानिस अउ मुहूँ-माँथ मा पानी के छिटका दिस। आँखी खोलिस, त कथे- मँय हर अब ए दुनिया मा नइ राँहव बेटा..! अब आखिरी जिनगी हे। तुँहर बर मँय हा दु खाँड़ी के धनहा अउ मुड़ी छुपाय बर कुरिया बनाय हाँवव, इही मोर आड़ी पुँजी आय अउ बने कमाहू-खाहू, मोर लाज ला राखहू, देख बेटा..! बारा कुआँ मा बाँस डारेंव, त तोला पाय हाबँव, मोर करेजा ले बड़ के तोला जानेंव। दुनियाँ मा मोर नाँव-सोर ला झन मेटबे। परदेसी दाई के गोठ ला सुन के बम फार के रोय लागिस, सेवती घलो रो डारिस, घर मा चिहुँर परगे। सुहागा के आखिरी साँस चलत हे, परदेसी मुड़ धर के बइठगे, हे बिधाता..! अब का होही। देखते-देखत सुहागा के साँस रुकगे। परदेसी दाई-दाई कहिके मुरछित होके गिर परिस। सेवती हर समहालिस। दाई ला अपन छाती मा ओधाय हाबय। पास-परोस के माईंलोगन अउ बबा जात मन सब्बोच झन सकला गे। सुहागा के अंतिम किरियाकरम करिस। 


आखरी दिन पुजा करे बर गाँव के महराज ला बलइस, त पुजा मा महराज दछिना माँगथे। परदेसी कथे- महराज मँय गरीब आदमी आँव, एकठन धोती, पाँच काठा धान अउ दु सौ रुपिया दान करत हँव। रामलाल महराज अड़बड़ खुस होगे, जात-जात महराज कथे- देख परदेसी..! एकठन बात कथँव, तँय मोला बहुँत देय, गाँव ला घला खवा-पिया डारे, फेर ये अइसे हे चारेच दिन के सोर। अइसे कुछु काम कर देते, त तोर दाई के नाम अम्मर हो जतिस, त परदेसी कथे- महराज..! मोर मुहूँ मा एकठन बात हावय, तुँहर सहमति जरुरी हे। रामलाल महराज कथे- बता परदेसी..! का बात हे, निंक गोठ होही, त महूँ कुछु न कुछु करहुँ। महराज के बानी-बचन सुनके परदेसी ला सहारा मिलिस, कथे- महराज..! मोर दाई के नाँव मा मँय इसकूल खोलतेंव, गाँव मा सबो झन ला ये बात बताहूँ। परदेसी के बिचार अउ महराज के सुम्मत हा गाँव के बइटका मा सब ला बड़ निंक लगिस। इसकूल के नाँव सुहागा बिदिया मंदिर देवपुर रखिस। रामलाल महराज कथे- मोर एक झन बेटा हे, तेहर कालेज तक पढ़े हे। सरकारी नउकरी आज के जमाना मा सपना हे, मेहनताना मोर लइका हर नइ लेवय, बिना पइसा के पढ़ाही, बिदिया दान ले बढ़के कुछु दान नइ हे। तब सरी गाँव के मनखेमन हा खुस होगे अउ गाँव के जम्मो लइका मन इसकूल मा पढ़े लगिस। परदेसी के दुनों लइका घलो पढ़े बर गिन। इसकूल के नाँव सुहागा बिदिया मंदिर सुन के मन्नु अउ सुरजा के छाती फूलगे। हमर दाई के नाँव सुहागा रिहिस, ओकर नाँव के ये इसकूल मा हमर गाँव भर के लइका पढ़त हे, एकर ले बढ़के अउ का होही, हमर पुरखा के नाँव चारों डाहर बगरत हे। हमु मन बने काम करबो अउ ददा-दाई के नाँव ला जग-जाहीर करबो। अइसे काम हमन ला नइ करना हे जेमा कुल मा दाग लगय ‘कोरी लइका होय से का होही, एके लइका हर अपन कुल ला तार देथे।’
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मोर देवारी


भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!