शनिवार, 18 मई 2013

हमर बबा

सुपरफाइन के धोती अउ बड़ सुघ्घर के कुरता, मुँह मा बँगला पान दबाय, महर-महर करत हमर बलदेव बबा गाँव के खोर मा रेंगय, त हमन जम्मोे सँगवारी मन जान डरन, हमर बबा आवत हे, हमन ला कुछु-कहीं पूछही, चलो..! काकरो घर कपाट के ओधा मा लुका जथन, बबा हमर सब झन के चतुरई ला जान डरय। गाँव भर ले ओहा रोंटहा किसान रिहिस। ओमन पंचभइया रिहिस, बबा हा सबला एक्के लउठी मा हाँकय। ओखर कना मोर-तोर के भेद नइ रिहिस। सबो बाहिर के लोग-लइका अउ जम्मोे घर के जोखा बरोब्बर करय। जब बबा हा सोलह साल के रिहिस, त बबा के ददा दुकालू ठेठवार हा बिधाता के परेमी होगे रिहिस। तब ले बबा के मुँड़ उपर पूरा घर के बोझा हा खपला गे रिहिस। कोरी खरिखा गाय-गरु अउ अस्सी एकड़ जमीन के गउँटिया रिहिस। 

गाँव के मन ओला मालिक काहय, कोनों पाँव परय, त कोनों मन राम-राम मालिक काहय। बबा हा सब संग राम-रमउव्वल, जय-जोहार भेंट करत आगु बढ़ जाय। ओखर ले बड़का सियान मन बलदेव मालिक काहय। गाँव के सियानी बबा के हाथ मा राहय, बिन पूछे गाँव के कोनों मनखे कोनों जीनिस नइ बिसाय। बबा ला बइला, गाय, भँइस के चिन्हारी करे बर खुब आय अउ ओला पूछ के बिसई-भँजई करे। 

गाँव के बइटका बिन बबा के उसल जाय, बलदेव मालिक आही तभे नियाँव होही काहय। बबा हा मजकिया किसम के घलो रिहिस, जब हमन ला भेंटतिस, त काहय- सुन तो मोहन..! बाबू, तुमन कोन किलास मा पढ़त हव, मेहाँ पूछहुँ तेखर जुवाप दुहु ? अउ हाना पूछे के झरी लगा देतिस अउ काहय जउन ये बात ला जानहीं तउन दूधे खाही- दूधे अचोही। ओखर पुछइ ला का कहिबे, माथ मा हाथ धरे ला पर जाय। पुछय- ‘के निया चुलहा मा लकड़ी...नानकुन टुरी गोटानी असन पेट...कहाँ जाबे टूरी रतनपुर देस।’ अइसन जनउला पूछय, त दॉंत ला ओठ मा दबाय बर पर जाय अउ बबा हा पतंग ढिले बरोबर काहय- लेव तुँहर गुरजी मन ला पूछ के बताहू। बड़ हरफन मउला कस हमर बबा हा राहय। काहय- जब तक जिनगी हे मजा ले ले। मड़ई-मेला, हाट-बजार बबा हा जरुर जातिस अउ हमन ला कोनों भेंट परतिस, त बिन पइसा देय नइ राहय अउ काहय- चना-फूटेना ले के खाहू। गाँव के माईंलोगिन मन बबा के बड़ कदर करय, कोनों के मुड़ी ले अचरा नइ गिरय। वो समे हमर बाबू (पिताजी) ला सब बाबू काहय। बाबूजी अपन समे के बड़ेजन संगीतकार रिहिस। बड़-बड़े गवइया-बजइया हमर घर सकलाय अउ बाबू के कुरिया मा हरमोनियम, तबला, मँजिरा बजाय। किसम-किसम के गाना गावय, त सरी सियान मन सकला जाय, तब बबा घलो मगन हो जाय। 

बाबूजी अउ बबा दुनों झन बने सँगवारी राहय। बाबू काहय- ले ना बलदेव..! एको ठन गाना तहुँ सुना ना जी ? बबा हा काहय- मोला नइ आय बाबू गाय-बजाय बर, हाँ फेर मँय गाना सुने के सौंकीन आँव। बबा हा पुराना फिलिम के गीत ला गाय बर काहय, महुँ हा उही ठउर मा बइठ के मजा लेवँव। बबा हा रेसमी सलवार कुरता जाली का...रूप सहा ना जाय नखरेवाली का... गाय बर मोला काहय, त मँय हा बबा ला ओखरे पसंद के गाना सुना देवँ, तहाने बबा अउ बाबू मुच-मुच हाँसय। बबा फरमइस करत जाय अउमँय गावत जावँ, मेरा मन डोले...मेरा तन डोले....अइसन गाना सुनाववँ, त मोला एक रुपया देवय। हमर गाँव के लीला-नाटक अड़बड़ परसिध रिहिस, मँय अउ अँकलहा मरार जोक्क्कड़ बनके निकलतेन, त देखइया-सुनइया मन खलखला के हाँस डारय अउ मोंजरा घलो देय। कोरी दू कोरी रुपिया देवारी अउ दसराहा तिहार मा नाटक-लीला खेले बर देवय अउ काहय- मोहन बाबू..! तिहार बर गाँव ला सुन्ना झन करे करव, दुनिया मा का आही अउ जाही, जियत ले बने-बने खावव अउ मजा लेवव। 

बबा कोनों उकील से कम नइ रिहिस, थाना-कछेरी ओखर बर पुरिहा पानी राहय, कान्हुन (कानून), त ओखर मुँह अखरा राहय। गाँव के कोनों ला कचहरी थाना जाना राहय, त बिन बबा के कोनों नइ जातिन। बबा के सुरता करत मोर आँखी ले आँसू चुही जाथे। अड़बड़ हमर मन के मयारुक बबा रिहिस। सुन्ता जादा दिन नइ राहय। सुमत मा धन बाढ़थे अउ बिमत मा धन नास होथे, केहे गेहे-‘अड़बड़ अकन भड़वा बरतन रही तहाँ बाजबे करही।’ बटवारा होय के मौका आगू गाँव के कोनों ला पता नइ चलिस, बटवारा मा बबा हा अपन भाई मन ला बने-बने खेत-खार अउ सुघ्घर-सुघ्घर घर कुरिया ला दे दिस। अलवा-जलवा खेत अउ फूटहा कोठा मा जेमा एक ठन कुरिया राहय तिहाँ बबा अउ दाई रेहे लागिन। 

देवारी-दसराहा के छुट्टी होइस ता मँय हा गाँव जाके बबा ला सोरियावत ओखर कना गेंव, त बबा के दसा ला देख के मोर आँसू चुहिगे। मेहे पूछेवँ- कस बबा, दाई..! तुमन फूटहा कस घर मा रथव का बात हे ? तब बबा किहिस- झन पूछ मोहन बाबु..! बने-बने खात कमात हमर भाई मन मोटागे गे रिहिस, त अपन-तुपन के बात आगे, खेत-खार बँटागे, मोर लइका मन अपन-अपन परानिन ला धर के नउकरी मा चल दिस मेहाँ तोर दाई संग मा ये परलोकिहा जिनगी ला काटत हँव, कोन जनी ये काया ले चिरई कब उड़ा जही तेखर का ठिकाना। बबा के सुरता तिहार बर अड़बड़ आथे, ओकर बिन सुन्ना लागथे, बबा हा अपन समे मा रुपिया-पइसा ला कुड़हो देतिस, नाटक-लीला खेलव अउ गाँव के नाँव उजियार करव कहिके काहय, का कबे पहिले के सियान मन के किस्सा थानसिंग गुरजी के राम-लछमन कस पहिनइ धोती, सीताराम के जोरदरहा हापकमीज अउ पइजामा, घुटरू मंडल के सलुखा मोला आज ले सुरता आथे अउ बबा के करिया कोट, हमर बाबूजी के चमकत परमसुख के धोती अउ कोसाही कुरता, झन पूछ सँगी तइहा के बात बइहा लेगे तइसन ताय। 

बबा पासा-कौड़ी खेले के बड़ सँउकीन राहय, खेलत-खेलत जुग पहा जतिस। बबा मन ओखर कना चहा-पानी लानय अइसन आगियाकारी पहिली रिहिस, फेर समे-समे के बात ताय तिरिया चरित्तर के मोह मा बड़े-बड़े अटारी मन फूट जाथे। देवारी तिहार मा बबा हा गाँव के सरी लइका मन ला पइसा बाँटय, ओहा काहय- गाँव भर के लइका बड़ उचाह ले तिहार मनानव अउ फटाका फोरव। जम्मो लइका मन बबा ला घेरे राहय, सब ला खोज-खोज के पइसा देवय। हमर सँगवारी मन बबा ला देखके अड़बड़ खुस राहय, काबर कि बबा जियत भर ले अलगेच किसिम के रिहिस...का बताबे- ‘राजा हो चाहे फकीर सब ला एकदिन ये संसार ले बिदा होय ले परही।’ जियत ले मोर-तोर, का जाही साथ। एकदिन बिहनेच मोर कना खभर अइस... बबा हा सरग सिधारगे, मँय हा अउहा-झउहा खबर सुनके गेवँ, त ओखर घर मा रोना-राही परे राहय। 

ओखर अरथी उठगे गाँव के मुकतिधाम मा बबा ला लेगिन अउ छिन मा नसवर काया हा अगनी मा समागे। ओ पइत मोला दु सब्द बोले के मउका मिलिस ता मँय हा अतकेच केहेवँ- बबा हा हमर बीच नइ हे...फेर ओखर सुघ्घर जस हा हमर गाँव मा सदा-सदा रही, ‘जियइ ओखरे भला जे पर खातिर जिथे, मरना ओखर भला जे हा अपन बर जिथे।’ आज घला तिहार मनाथन गाँव मा दिया जलाथन, फेर हमर गाँव ले पीरित परागे, गाँव के एक ठन सुघ्घर दिया नँदागे।

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!