शनिवार, 18 मई 2013

निरमला

आदर्स गाँव सहसपुर के सोर जग जाहिर राहय, काबर कि उहाँ सरकार के सब्बो योजना ला उहाँ के सरपंच रामलाल हा लागू करे रिहिस, तभे तो गाँव के नाँव सब्बो झन के मुहूँ मा समाय राहय। उही गाँव के गउँटिया राधेलाल घलो गाँव के सियानी-गँवारी मा लगे राहय, ओखर बिन पूछे गाँव के कोनों काज नइ चलय। गाँव के ओहा बड़ जन रोंटहा किसान रिहिस, चमकट्ठा खेती-खार देखते बनय, तीर-तार गाँव के मन गउँटिया कना आके दुख रोवय। उधारी-बाढ़ी घला देवय, बारो महिना ओखर घर मा चार झन नउकर-चाकर झूलत राहय। बेटा-बहु, नाती-नतरा ले भरेपुरे राहय। न अन के कमी न धन के, का पूछबे बड़े-के बड़े बात छोटे घर के सब पोल खुल जाय, तइसने ताय। बिधाता के लिखा ला कोनों नइ मिटा सकँय, देथे तेला छप्पर फार के नइते भरे ला भराय अउ जूच्छा ला ढरकाय अइसने जान। ओ गाँव के सरपंच अउ गउँटिया रतिहा होतिस, त आरो लेवय, आज काकर घर आगी नइ बरत हे, भूखे पेट तो कोनों नइ हे, अतका सुघ्घर उँखर सियानी रिहिस। 

गाँव के चारों खुँट मंदिर देवालय राहय। सुघ्घर खारून नदिया मा पानी बारो महिना राहय। दु ठन तरिया जेमा लबालब फरिहर पानी, ओखर तीर-तार आम, जामुन के रूख देखते बनय, ओ गाँव गोकुल-बिरिनदाबन कस लागय। मुफत मा असपताल, इसकुल मा लइका, पढ़य्या गुरजी मन के सभाव दुवापर जुग के उज्जेन नगरी अउ सुंदर संदीपन मुनि के सुरता कराय। तरिया के पार जेमा पचरी अउ अलगे-अलगे घाट जउँन ला निरमला घाट काहय जेमाँ माईंलोगन मन मरजादा ले नहाय। दुसर घाट संकर घाट काहय तउँन आदमी जात मन के राहय अउ नदिया घाट गाय-गरु के राहय। पुरइन के पाना कमल के फुल, तरिया मा देखते बनय। जउँन रस्ता चलइया मन कोनों ओ गाँव ले नहाँकतिन, त बिन ओ तरिया के पानी मा गोड़ धोय बिन नइ रतिन। 

अइसने ओ गाँव के नाँव सबके मुहूँ मा राहय, फेर का करबे सुखे- सुख मा दिन नइ पहाय, चार दिन के चाँदनी फेर अँधियारी रात ठउँक्का उहाँ झपागे। गउँटिया घर के गउँटनिन सियनहिन होगे रिहिस, काया हा निच्चट होगे रिहिस। कोठा मा बछरु ला खूँटा मा बाँधत भड़ाक ले चित्ता गिर परिस, त कनिहाँ हा टूट गे। गउँटिया अड़बड़ दवा-दारु करिस फेर बने नइ होइस। पिंजरा ले पंछी उड़गे। बड़े बिहनिया देखिन, त गउँटनिन के परान निकलगे राहय। ‘राहत ले मोर-तोर का जही साथ, बानी बचन ला मोर गठरी मा बाँध’ अस होगे, सरीर हा बस्साय कस होगे, राम नाम सत हे, सबके इही गत हे, काहत समसान घाट लेगिंन, बड़ सुघ्घर के काया पल भर मा राख होगे, का करबे राखत भर ले राख तहाँ ले एक न एकदिन हो जही राख, सरी साख होगे राख। 

चिहुँर पार के घर भर रोइन, तीर-तार के जम्मो झन बर गाँव के गउँटिया नेवता पठोइस, सरी मनखे पचनाहन के दिन सकलागे अपन-अपन घठौंदा मा नहाय लगिन, ठउँक्का नहाके निकले राहय ओतकेच बेर बादर गरजे लगिस, बिजली चमके लगिस, रिमझिम-रिमझिम पानी बरसीस, त निरमला घाट के परदा भसक गे अउ कतकोन दाई-माईं उप्पर गिरगे। कतकोन झन दबगे दुसर घाट के मनखे मन अइन अउ ईंटा-पथरा ला दुरिहा करिन, पथरा-ईंटा मा दबके, चैतू, बुधारू, समारू के परानी मन निरमला घाट के परदा मा चपका गे अउ अपन परान ला छोड़ दिन। गाँव भर मा दुख के पहाड़ टूटगे, सरकार के निरमला घाट योजना हा आज चैतु, बुधारू, समारू के तिरिया मन के परान ला ले डरिस। तिनों झन करमछँड़हा होगे। तिनों झन के लइका मन आज बिन दाई के होगे, का करे बपरा मन, रोजे कमाय अउ रोजे खाय। गउँटनिन हा अपन संग चैतु, समारू अउ बुधारू के तिरिया मन ला सकेल डरिस। जउँन गाँव मा बड़ सुघ्घर के तिहार मनाय, नारबोद देखे बर आय, जउँन आतिन तउन मन चहा-पानी के बिन वापिस नइ जावय। अइसन मा आज पहाड़ टूटगे काहत, माथा धर के आँसू ढारत मनखे मन जावय। सरपंच अउ गउँटिया हा बिधायक अउ थाना मा खभर दिन आदर्स गाँव के खभर गजट मा छपगे। चारों कोती ओ गाँव के हालचाल सब्बो जान डरिन, छुटभैय्या नेता, बिधायक, मंतरी, संतरी, पुलिस, सिपाही, कलेकटर सब्बो अइन अउ चैतू, समारू, बुधारू के घर मा गिन, त उँखर नान्हें लइका मन ला देख के मुड़ धर दीन अउ सरकार हा चैतू, समारू, बुधारू ला मुआवजा देय के घोसना करिस। कोनों तरह ले जिनगी पहाय लगिस। 

चैतू, समारू, बुधारू, संसो फिकर मा परगे, तीनों झन के नान-नान लइका राहय, ओ लइका मन दाई-दाई कहि-कहिके रोवय, त कतकोन मनातिन, त मानबेच नइ करँय। चैतू, बुधारू, समारू मन राधेलाल गउँटिया कना जाके कथे- दाउ..! अब हमर लाज तुँहर हाँथ मा हाबय, न हमर कना खेती हे न खार। कुरिया घला ओदरत हे, त हमर जिनगी कइसे पहाही तेखर रद्दा बता देते, त राधेलाल गउँटिया ओमन ला किहिस- देखव चैतू, बुधारू, समारू जउन होगे, अब जउन जी छुटगे, तउँन लहुट के नइ आवय तुँहर मन के कुरिया ओदरत हे, त मोर घर राहव अउ खाव-कमाव अउ तुँहर लइका मन के पढ़ाय के जोखा ला मँय हा करहूँ। गउँटिया हा तिनों झन के लइका के पढ़ाय के जोखा ला करिस अउ चैतू, समारू, बुधारू के जिनगी हा सँवरिस। ओतका मा तिनों झन के नाँव ले सरकार हा रुपिया मुआवजा के दिस। गउँटिया कथे- देख समारू, चैतू, बुधारू..! तुँहर मन बर सरकार हा रुपिया दे दिस। अब ओ पइसा मा अपन कुरिया ला बने छा डरो अउ जिनगी ला हरियाव, मँय हा कतका दिन ले तुँहर बोझा सहिहूँ। मोरो तो चार झन लोग लइका हे, सबो के मन हा एके बरोबर नइए। जइसने रुपिया मिलिस, त गउँटिया हा ओ मन ला अपन-अपन घर जाय बर कह दिस। 

ओ रुपिया हा उँट के मुहूँ मा जिरा बरोबर होइस, न बने कुरिया बनिस न छान्ही छवइस, धान के पेरा मा परवा ला तोप के अपन-अपन कुरिया मा रेहे लगिस, पानी घरी सुते के ठउर नइ राहय, त तिनों झन अपन-अपन घर लइका ला पोटार के बमफार के रोय ला लगिस, हमर गाँव मा निरमल घाट नइ बनतिस, त हमर ऐ दसा नइ होतिस, इही घाट के भरोसा मा ठेकादार के दुमंजला मकान बनगे, इंजीनियर साहेब कना कार होगे, फेर हमर जिनगी बेकार होगे, हमन बिन तिरिया के बेकार होगेन कहिके मुड़ धर के पछताए लगिन अउ केहे लगिन- हमन अइसे होगे हन...जइसे कुकुरगत, हमन का करन कहिके मुड़ धर के रोय लगिस अउ केहे लगिन- हे भगवान..! काबर बनाए हम ला गरीब किसान, ए दुख ला देखाय बर, फोकटे हम ला जियावत हस तेकर ले हमु मन ला सकेल लेते, त बने हो जतिस तहाँ ले जिनगी के ये बोझा हलका हो जतिस, अइसे कर के तिनों झन आपस में दुख-सुख बाँटत अपन जिनगी ला पहाय लगिन।
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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!