शनिवार, 18 मई 2013

दुलरवा भाँटो

स्यामू के भाँटो मोती हर सबले अलगेच सुभाव के रिहिस। जब ले ओखर बिहाव फुलमत संग मा होय रिहिस, तहाँ ले अपन छुटपन के सँगवारी मन ला छोड़ दिस। सबो सँगवारी मन ओला काहय, भउजी के आय ले हमन ला छोड़ दिस, अब तो हमन ला देख के घलो टेम नइ मिलय। पहली तो हरफर मौला कस राहय, न घर के चेत न खार के। खाय तहाँले मुहूँ पोंछत हमर संग मा गिल्ली, डंडा, खुडुवा मा भिंड़ जतिस। इसकूल मा पढ़िस तहाँ ले हिरक के पुसतक ला नइ देखय, तभो ले बने नंबर मा पास हो जावय। इसकूल के गुरजी मन हर काहय- थोरको कोनों पढ़तिस, त देखथे। परोसी मन काहय- का छॉंट के परलोखिया बर सिवलाल बहु लाने हे। सरी किसनपुर गाँव के मन सिवलाल ला भागमानी मानय। फुलमत जब ले मोती के घर आये हे, तब ले घर बड़ परछिन के दिखथे अउ चिक्कन-चिक्कन मोती घला दिखथे। दुनों झन के जोंड़ी राम-सीता कस हे। मोती अपन घरवाली फुलमत के दिवाना राहय, थोरको नइ छोंड़य। बाजार हाट जतिन, त संगे-संग, जइसे राधा-किसन कस। मोती मुच-मुच हाँसय अउ फुलमत मुड़ी ला गड़ियाय अपन घरवाला के पाछू-पाछू रेंगय। फुलमत के सुभाव ला का पूछबे? अतका सरू रिहिस बिचारी हर गउ बरोबर। 

गाँव के मोती के संगी-जँउरिहा मन, दुनों झन ला भैया-भउजी काहय अउ स्यामू के सँगवारी मन दीदी-भाँटो काहय। दीदी-भाँटो गाँव मा चिन्हारी हो गे राहय, सहीं मा किसनपुर गाँव मा फुलमत के अड़बड़ कदर राहय। अपन ले बड़े मन के आघू कभ्भु मुड़ नइ उठाय, सरी गाँव के मन ला अपन रिस्ता नाता मानय। मोती अपन कुटुम के धनीमानी राहय, लोग लइका नाती-नतरा मा रचे-पचे राहय। नानकुन पराइवेट इसकूल मा गुरजी रिहिस। अपन जिनगी भर मा दुसरी ले तिसरी नइ पढ़इस। कोनों बड़े गुरजी हर उँचहा किलास ला पढ़ाय बर कतिस, त मुहूँ लुकाय। ओहा दु कोरी रुपिया महिना मा पगार पावय, का कहिबे स्यामू के सँगवारी अउ मोती के सँगवारी मन ओखर पियाँर बर आँखी गड़ा दे राहय, चहा-पानी, भात, दार, साग बर ओ़ंडा देय राहँय अउ बिचारा के घर गिरहस्ती हा ले-देके चलय, घर कुरिया त देखते बनय दोनगा खटिया, थोरिक बहुँत खाय पिये के भड़ँवा, अलवा-जलवा कुरसी-टेबुल तब ले अपन मा मगन राहय बेफिक्कर, ओखर देहें मा कुछु फरक नइ परे, कोनों धनी आदमी ले कम नइ राहय, भले खाय बर झन राहय ओखर ठाठ देखते बने। फुलमत काहय- फोकटे-फोकट सेखी झन मारे करव, देख तो लइका मन हा पट्टी-सलेट काहत-काहत बोलना बंद कर दिन, तुमन हा बिहनेच ले जाथो, त संझा जुआर आथो, खात भर के ताव, तहाँ ले मुहूँ पोंछत चल देथव, का करे बिचारा लागिर होगे राहय, त सुने बर परय। दोनगा खटिया, कथरी, ओखर बर पलंग अस राहय अउ ओखर सुभाव अइसे राहय कि ओखर डेरउठी ले कोनों बिना चहा-पानी पिये नइ जावय। एक जुवरहा खाय पिये के हो जाय तहाँ ले रतिहा देखे जही अइसे काहय। 

स्यामू अपन भाँटो मोती ला अड़बड़ चाहे, खुद के बाप ले जादा मानय मोती घलो अपन सारा स्यामू ला खुद के लइका कस मानँय। सारा-भाँटो के गोठ ला जउँन मन सुनँय, त खलखला के हाँस डारे। जब स्यामू के बिहाव राधा संग होइस, त ओखर भाँटो अतका नाचिस के देखते बनय, सब्बो बरतिया मन ओहिच ला देखते राहय। स्यामू के बिहाव होगे, बड़ परछिन के बहुरिया आगे। तब मोती कथे- देख सारे..! अब राधा आगे, त ओखर संग माते झन रबे, भाँटो-बहिनी के घला सोर खभर लेत रबे। एक बेर मोती कथे- कस रे यार..! तुँहर जोंड़ी हा राधा अउ किसन कस हाबे। पढ़े-लिखे के इही फायदा आय, मोला देख अलवा-जलवा पहिने हँव अउ तोला देख सुघ्घर के पेंट अउ टी-सर्ट फटकारे हस। सब तोर किरपा हे भाँटो अइसे स्यामू काहय। 

एक बेर स्यामू कना डकहार आके लिफाफा दिस, त ओमा नउकरी के परवाना राहय, लिखाय राहय अचानकपुर के मिडिल इसकूल मा अंगरेजी के गुरजी बने के तोला चानस मिले हे, उत्ताधुर्रा जाके अपन बहिनी-भाँटो के गोड़ तरी गिरगे, एदे भाँटो अचानकपुर मँय हा राधा संग जावत हँव काबर किसनपुर ले अड़बड़ धुरिया हे। मोती किहिस देख रे यार..! भुलाबे झन, नइ, त ‘राजा के राज आय, सोवत उठत गीत गाय’ तइसे झन करबे, हमरो मन डाहर आरो लेत रबे। स्यामू कथे- देख भाँटो..! तोला मँय कभूच नइ भुलॉंव, मँय हा तोरेच किरपा ले नउकरी पाय हँव। मोती कथे- बने जी खा रे बाबू..! तोर नाम सोर चलय। स्यामू ला बिदा करिस, त मोती के आँखी डबड़बा गे, स्यामू हर अपन दीदी-भाँटो के पाँव पर के अचानकपुर चल दिस। जब ले स्यामू अपन काम मा गिस, त मोती हा उदास रेहे लगिस। फुलमत बड़ मनाय, त मोती काहय- स्यामू के सूरता रात-दिन मोला आवत हे, चल ना..! ओखर कना एकाद दिन रही के आ जतेन। एकठन काम कर देते, स्यामू ला ठेठरी, खुरमी गजबेच पसंद हे। 

ठेठरी, खुरमी ला झोला मा धर के स्यामू कना जाय लगिस। संझा बेरा होत राहय रामपुर के हाट स्यामू हा अपन सँगवारी मन संग जात राहय। दुरिहा ले स्यामू हा देखथे मोर दुलरवा भाँटो अउ दीदी रेंगत आवत हे ‘मयाँ ला उही जानथे जोन मयाँ करथे, जेखर अंतस मा मयाँ नइ हे तेकर अंतस ला पथरा जान।’ स्यामू हा दउँड़ के पाँव तरी दीदी-भाँटो के गिरगे। सारा-भाँटो हाट मा अइसे भेंट लगिन, त देखइया मन घलो काहय- अइसने सारा-भाँटो के मयाँ आज देखेन गा अउ स्यामू के दीदी अपन अचरा ले स्यामू के आँसू ला पोंछिस अउ स्यामू हा अपन उरमाल निकाल के अपन दुलरवा भाँटो के आँसू ला पोंछत राहय। स्यामू कथे- चल भाँटो अउ दीदी..! मँय हा जउँन सेठ कना कपड़ा लेथँव ओखर दुकान मा जाबो। उहाँ जा के छिंटही लुगरा अउ बड़जन आँछी वाला अपन दीदी बर लुगरा लिस अउ अपन भाँटो बर सुघ्घर अकन के चउँखाना कुरता अउ पटका लिस, त ओखर भाँटो कथे- कस रे यार..! अतका खरचा काबर करत हस, तोर दाई-ददा मन का कही ? अपन परिवार ला घला देखे बर परथे। 

दु चार दिन रेहे के बाद मोती अपन घरवाली फुलमत ला कथे- देख..! जादा दिन रहना ठीक नइ हे, हमन ला बिदा दे अड़बड़ दिन रहिगेन, लोग लइका मन देखत होही हा़ँडी मा अन नइ परे होही। दुलरवा भाँटो अउ दीदी दुनों जाय के तइयारी करिस। अइरसा रोटी स्यामू हा दीदी भाँटो बर जोरिस, त मोती कथे- देख रे यार..! तोला अइरसा के खियाल बने हे, घर जाके बाँट-बिराज के खाबोन। स्यामू अपन भाँटो-दीदी ला जब बिदा कर के लहुटिस, त दु-चार दिन बिते के बाद स्यामू ला मोती के संदेसा मिलथे, स्यामू तोर दीदी किसनपुर के असपताल मा भरती हे अउ ओ हा स्यामू-स्यामू के रट लगाय हे। संदेस पाके अउहाँ-धउहाँ दउँड़त जब असपताल पहुँचिस, त फुलमत के आखरी समे आगे राहय, स्यामू के हाँथ ला धर के अपन परान ला छोड़ दिस, त असपताल के दुसर खोली ले रेडियो मा धुन बजत राहय- ‘चल उड़ जा रे पंछी, कि अब येदेस हुआ बिराना।’ सारा-भाँटो एक दुसर ला पोटार के रोय लगिस। 

एम्बुलेस ले जब फुलमत ला किसनपुर लानिस, त सरी गाँव के मन फुलमत के अरथी ला देख के रो डरिन। सरी गाँव के मन जुरियागे, त मोती अपन सारा ला कथे- देख स्यामू..! तोर दीदी हा एकठन जाने असन बात केहे रिहिस- कोनों मोर परान निकल जही, त मोर स्यामू भाई के छिंटही लुगरा ला ओढ़ा दुहु, उही मोर मरती बेरा के ओढ़ना होही। स्यामू बम फार के रो डरिस। मोती हर धीरज धरइस। उही लुगरा ला ओढ़ा के काहत गिन- ‘राम नाम सत हे, सब के इही गत हे।’ जाके मसानघाट मा किरियाकरम करके जब अइस तब स्यामू कथे- एकठन बात काहत हँव भाँटो..! मोर गोठ ला आने झन मानबे, तोर लइका मन अपन-अपन ठउर ठिकाना मा कमात खात हे। बिना दीदी के दिन ला पहाना अड़बड़ मुसकिल हे, चल मोर संग रबे, जियत मरत ले तोर सेवा जतन करहूँ। मोती स्यामू ला पोटार लिस अउ कथे- सारा मिले, त स्यामू कस। स्यामू अपन दुलरवा भाँटो ला लेके रहे लगिस। 

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!