शनिवार, 18 मई 2013

सुहागा

परदेसी के दाई सुहागा अपन बड़ मयारुक बेटा के बिहाव करके अतका खुस होगे जइसे गंगा नहाँ डरिस। गाँव ले सबो झन ले अलगेच बहुरिया लानिस। सरी गाँव के सियान मन काहय- बहु पइस सुहागा हा, बड़ परछिन। सेवती घलो अपन पति कना आके गजबेच अनंद मनाय। काबर एके बेटा के बहू बनिस। परदेसी घलो अड़बड़ खुस राहय। घर के काम, खेत के काम, सरी काम ला हँसत करँय। सुहागा के घर हा सरग कस लागय। गाँव के सरी मनखे मन हर कथे- बड़ भागमानी ये गा। सुहागा अपन सरी उमर ला परदेसी खातिर खपा डरिस। परदेसी जब पाँच महीना के रिहिस, तभे सुहागा के सेंदुर उजड़ गे रिहिस, पर घर कुटिया-पिसिया करके परदेसी ला पालिस-पोंसिस। गाँव के सियान अगराहिज काहय, सुहागा के करलइ देखे नइ जाय, एकर सेती अच्छा होतिस कोनों बने मनखे के हाँथ लग जतिस, त ओखर जिनगी सँवर जतिस अउ परदेसी घला पढ़-लिख के दु पइसा कमाय के लइक हो जतिस। फेर कोनों के गोठ ला काँन मा नइ धरिस, सुनँय सबके करँय अपन मन के। 


सुहागा के चेत बहु-बेटा बरोबर करँय, परदेसी अपन गाँव के एक कोस दुरिहा मा एकठन कारखाना मा नउकरी पागे। पहिली पगार जब पइस तब दु ठन परछिन असन दाई अउ अपन घरवाली बर छिंटही लुगरा लानिस। बेटा के पसीना के कमइ ले जब लुगरा अउ दु कोरी रुपिया पइस, त ओला अपन गोसइयाँ के सुरता आगिस- आज के दिन कोनों परदेसी के ददा रतिस, त कतना खुस होतिस। अंतस मा अइसने उथल-पुथल होय। सेवती अउ परदेसी के दु झन लइका राहय, मन्नु अउ मुन्नी। सुहागा अपन दुनों नाती-नतनिन पाके अड़बड़ खुस राहय। गजबेच मयाँ करँय। काबर के मूल ले सुद पियाँरा होथे। एकदिन परदेसी अउ सेवती अपन-अपन काम बुता मा चल दिन, जाय के पहिली दाई बर सरी जोरा करके गिन अउ चेता दिस- दाई संझौती बेरा मा हमन आबो, गाय-बछरु अउ दुनों लइका डाहर धियान राखबे। जाति-आति दुनों बेरा बेटा-बहु अपन दाई के गोड़ छू के जावय। ओतका बेर दाई के आँखी ले आँसू ढरक जाय। मयाँ के किम्मत उही करथें जउँन हा मयाँ बर तरसथे, माँगे मा मयाँ नइ मिलय। गाय-बछरु अउ लइका मनके जतन सुहागा करके, बेटा-बहु के आय के बेरा ला जोहत राहय। थोरको समे जादा होतिस, त सुहागा बाय-बियाकुल हो जाय, परोसिन मन ला पुछे बर धर लेय। बेटा-बहु के आवत ले दार, भात, साग राँध डारे राहय। सुम्मत जिहाँ होथे अउ जब अपन-अपन काम बुता मा मन करथे, सब बन जथे । अइसने सुघ्घर दिन बित जथे । पेट भर खा अउ जॉंगर चलत ले कमा। केहे गेहे- ‘जिहाँ अन-धन मा कोठा भर जथे, दिन ढरकत का बेरा लागथे।’ सुहागा के सरीर दिनों-दिन कमजोर होय लगिस, बुढ़ापा जब आथे तब नवॉं-नवाँ रोग-रई झपा जथे । देखते-देखत सुहागा के कनिहाँ नँवगे, लउड़ी ओखर सँगवारी होगे। अब सुहागा के जॉंगर बिलकुल साथ नइ देवत हे। खटिया धरलिस, अब जिनगी पहाड़ कस लागे लगिस। सन्सो-फिकर सुहागा के सरीर मा झपागे। हाड़ लगगे, का करबे बहु-बेटा कमाय बर चल देवय। बिन कमाय भरे तरिया के पानी घलो नइ पुरय। राहत ले खाय बर परही, कमाबे तब सबो भाहीं। बिन कमाय कोनों नइ देवय। 


एकदिन दुनों झन कमाय बर जाय के पहिली अपन दाई ला चेताइस- देख दाई..! तोर खटिया के तरी मा, भात, दार, साग ला राख देहन, तेहर धीर लगाके उठके खा लेबे अउ लइका मन के खियाल राखबे। मँझन बेरा सुहागा ला भुख लागिस, उठे बर करिस, त जॉंगर नइ चल सकिस, त अपन नाती मन्नु ला हाँक पारिस, आतो बेटा..! मोला उठा दे रे..! मन्नु अपन सँगवारी मन संग खेले मा भुलाय राहय, उही हाल मुन्नी के घलो राहय। दुन्नों लइका दरवाजा ला खुल्ला छोंड़के खेले बर चल दें राहय, ओतका मा परोसी के कुकुर हा घर मा आ के, सुहागा के खटिया तरी राखे दार, भात, साग ला सपेट डरिस अउ पानी ला उंडा के भगा गे। सुहागा हात-हात करत रहिगे। मारे भुख के सुहागा तड़फत राहय, चुल्लू भर पानी बर तरसत राहय, ओतका मा ले-देके खटिया ले उठिस अउ धीर लगाके लइका मन ला चिल्लाय बर डेहरी कना गिस, तहाँ ले भसरंग ले गिरगे, माँथ मा खून चुचवावत राहय, सरी हाँथ गोड़ छोलागे राहय। 


संझा बेरा दुनों परानी अइस, त देखथे, दाई हर डेहरी कना गिरे अचेत परे हे अउ परदेसी-सेवती के नाँव ला रटत राहय। ए दे मोर दाई..! आगेंव, ते संसो-फिकर झन कर। सेवती हा लोटा मा पानी लानिस अउ मुहूँ-माँथ मा पानी के छिटका दिस। आँखी खोलिस, त कथे- मँय हर अब ए दुनिया मा नइ राँहव बेटा..! अब आखिरी जिनगी हे। तुँहर बर मँय हा दु खाँड़ी के धनहा अउ मुड़ी छुपाय बर कुरिया बनाय हाँवव, इही मोर आड़ी पुँजी आय अउ बने कमाहू-खाहू, मोर लाज ला राखहू, देख बेटा..! बारा कुआँ मा बाँस डारेंव, त तोला पाय हाबँव, मोर करेजा ले बड़ के तोला जानेंव। दुनियाँ मा मोर नाँव-सोर ला झन मेटबे। परदेसी दाई के गोठ ला सुन के बम फार के रोय लागिस, सेवती घलो रो डारिस, घर मा चिहुँर परगे। सुहागा के आखिरी साँस चलत हे, परदेसी मुड़ धर के बइठगे, हे बिधाता..! अब का होही। देखते-देखत सुहागा के साँस रुकगे। परदेसी दाई-दाई कहिके मुरछित होके गिर परिस। सेवती हर समहालिस। दाई ला अपन छाती मा ओधाय हाबय। पास-परोस के माईंलोगन अउ बबा जात मन सब्बोच झन सकला गे। सुहागा के अंतिम किरियाकरम करिस। 


आखरी दिन पुजा करे बर गाँव के महराज ला बलइस, त पुजा मा महराज दछिना माँगथे। परदेसी कथे- महराज मँय गरीब आदमी आँव, एकठन धोती, पाँच काठा धान अउ दु सौ रुपिया दान करत हँव। रामलाल महराज अड़बड़ खुस होगे, जात-जात महराज कथे- देख परदेसी..! एकठन बात कथँव, तँय मोला बहुँत देय, गाँव ला घला खवा-पिया डारे, फेर ये अइसे हे चारेच दिन के सोर। अइसे कुछु काम कर देते, त तोर दाई के नाम अम्मर हो जतिस, त परदेसी कथे- महराज..! मोर मुहूँ मा एकठन बात हावय, तुँहर सहमति जरुरी हे। रामलाल महराज कथे- बता परदेसी..! का बात हे, निंक गोठ होही, त महूँ कुछु न कुछु करहुँ। महराज के बानी-बचन सुनके परदेसी ला सहारा मिलिस, कथे- महराज..! मोर दाई के नाँव मा मँय इसकूल खोलतेंव, गाँव मा सबो झन ला ये बात बताहूँ। परदेसी के बिचार अउ महराज के सुम्मत हा गाँव के बइटका मा सब ला बड़ निंक लगिस। इसकूल के नाँव सुहागा बिदिया मंदिर देवपुर रखिस। रामलाल महराज कथे- मोर एक झन बेटा हे, तेहर कालेज तक पढ़े हे। सरकारी नउकरी आज के जमाना मा सपना हे, मेहनताना मोर लइका हर नइ लेवय, बिना पइसा के पढ़ाही, बिदिया दान ले बढ़के कुछु दान नइ हे। तब सरी गाँव के मनखेमन हा खुस होगे अउ गाँव के जम्मो लइका मन इसकूल मा पढ़े लगिस। परदेसी के दुनों लइका घलो पढ़े बर गिन। इसकूल के नाँव सुहागा बिदिया मंदिर सुन के मन्नु अउ सुरजा के छाती फूलगे। हमर दाई के नाँव सुहागा रिहिस, ओकर नाँव के ये इसकूल मा हमर गाँव भर के लइका पढ़त हे, एकर ले बढ़के अउ का होही, हमर पुरखा के नाँव चारों डाहर बगरत हे। हमु मन बने काम करबो अउ ददा-दाई के नाँव ला जग-जाहीर करबो। अइसे काम हमन ला नइ करना हे जेमा कुल मा दाग लगय ‘कोरी लइका होय से का होही, एके लइका हर अपन कुल ला तार देथे।’
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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!