शनिवार, 18 मई 2013

खेती अपन सेती

आसाराम सांवतपुर गाँव के निचट गरीबहा मनखे रिहिस। सिधवापन उँखर देखत बनय, गाँव के सियानी-गँवारी ले ओहा बाहिर राहय। खेती-खार के बुता ओकर आड़ी पूँजी रिहिस। उधो के लेना न मांधो के देना अपन रद्दा आना अउ अपन रद्दा जाना ला जानय। ओकर भोला अउ सिधवा सुभाव ले देख के देवपुर गाँव के नरायन गउँटिया हा अपन आँखी के पुतरी दुलउरिन बेटी ला ओकर संग बिहा दिस। 

जइसने ओकर नाँव तइसने ओकर पाँव सँउहत आसाराम के घर मा लछमी आगे अइसने जान। नरायन गउँटिया के दया ला का कहिबे आसाराम के छितका कुटिया हा महल बनगे, अन-धन के भंडार ओकर घर होगे। गाँव के मन काहय लछमी का अइस, आसाराम लछमीनरायन होगे। अब जम्मो गाँव के मनखे मन आसाराम गउँटिया केहे लागिन, जिनगी मा सुख हरियागे, दुख परागे। आसाराम काहय- धन, दोगानी ओरिछा के छॉंव आय, न आवत देरी न जावत देरी। 

गाँव के पुरोहित महराज मोती मेर क था पुरान सुनय अउ गुनय। हमर भुँइया मा राजा हरिचंद, मोरजधज, करन दानी रिहिन जे मन सत् खातिर अपन धन-दोगानी ला खियाल नइ कर अपन नाँव ला उजागर करिन। भगवान राम हा राजगद्दी ला तियाग के जंगल-जंगल घूम के भुइयाँ के भार उतारिन। गॉंधी बबा हा भारत-माता ला पर के मुट्ठी के बंधना ले छोड़ाइस तेखर सेती आज हम सब के जिनगानी हा अमरइया के रूख असन दिखत हावे। अपन घर के परछी मा बइठार के चार सियान मन ला बेद सासतर के गियान देवय। 

आसाराम अउ लछमी के जोंड़ी हा राम अउ सीता कस लागय। दिन जात का बेरा लागथे दू झन पिलवा के बाप घला आसाराम हा बनगे। अब तो आसाराम के दसो अँगरी हा घींव मा समाय हे तइसे होगे। अपन बेटवा मन के नाँव ला घलो गुन के रखिस, बड़े के नाँव रामलाल अउ छोटे के नाँव लखन लाल। राम-लखन कस दूनों भाई मन राहय, आगू-पीछू रेंगय। थोरकिन बाढ़िन, छै बरिस होइस तहाँ ले आसाराम हा रामलाल अउ लखन लाल ला पाठसाला मा भरती करा दिस, पढ़ई-लिखई मा घला होसियार रिहिन, देखते-देखत बारा किलास ला अव्वल नंबर मा पास करीन। नरायन गउँटिया ला का पूछबे अपन बेटी अउ दमांद ला देखे बर तरसे। 

देवपुर-सावंतपुर गाँव के मन काहय नरायन गउँटिया के दया ले आज ओकर बेटी दमांद के घर अन-धन भरगे। नरायन गउँटिया अउ गउँटनिन बुढ़वा डोकरा अउ डोकरी होत ले जिइन, तहाँ ले अपन परान ला तज दीन, अब सरी भार आसाराम के मुँड़ी मा आगे अब तो दूघेरा होगे, त लछमी हा कथे अब एक काम करथन देवपुर मा अड़बड़ खेती किसानी हे, उहाँ जाके खेती खार ला समहालतेन अउ सांवतपुर ला देखे खातिर सुखचैन ला कहि देथन। अइसे कहिके सांवतपुर के कारोबार ला सुखचैन के भरोसा छो़ंडके देवपुर चल दीन, नरायन गउँटिया के नाँव ला अँजोर कर बर आसाराम हा नरायन गउँटिया के जोखा करइया बिसउहा के नाँव मा दू एकड़ जमीन ला लिखा-पढ़ी कर दिस। बिसउहा राउत हा आसाराम के गोड़तरी गिरगे, जिनगी भर बर ओकर पसिया पानी के जोखा करके आसाराम अउ लछमी नाँव कमा डरिन। अब अपन कुटुम संग आसाराम अउ लछमी सुख-चेन ले रेहे लागिन। 

आसाराम अउ लछमी बिचार करे लागिन- हमर दूनों बेटा नवकरी चाकरी घला पा गेहे, त दूनों झन के बिहाव करके फुरसुद पा जतेन। दूनो बेटा के बिहाव सुघ्घर कर दीन, गाँव भर के लइका सियान मन बड़ आनंद-मंगल ले लाड़ू, बरा, सोंहारी खाइन। बड़ धनबाद आसाराम ला देवय अउ काहय एला कथे बिहाव। आसाराम के घर मा बड़ परछिन के दू झन बहु आगे। बड़े बेटा रामलाल के बहु बैदेही अउ छोटे बेटा लखन के बहु रमा आसाराम के घर के सोभा ला का कहिबे चार चाँद लगा दीन। राजी खुसी ले दिन बिते लागिस। 

रामलाल अउ लखनलाल अपन-अपन परानी ला लेके अपन-अपन चाकरी मा चल दीन, त आसाराम अउ गउँटनिन लछमी भर हा बड़े जान घर मा रेहे लागिन। जांगर खँगगे, खेती-खार रोहों-पोहों होय लागिस। ‘बइठे-बइठे खाबे, त समुन्दर के पानी घलो नइ पूरे।’ गउँटिया के दूनों लइका मन अपन-अपन ठउर मा मजा करत राहय। गउँटिया-गउँटनिन खटिया धर लीन ‘काया बने हे, त माया रचे-पचे रथे अउ काया खँगगे, त माया के का ठिकाना, माया महाठगरी होथे।‘ खेती-खार रोहों-पोहों होय लागिस। 

रामलाल अउ लखनलाल मेर खभर भेजवइन कि अब घर ला देखे बर परही अब दूनों झन मा एकोझन कारोबार ला देखे बर आव फेर एकोझन निहारिन तक नीहीं, त आसाराम गउँटिया हा सेउक अउ सेवती ला काम बुता करे बर लगाइन उही मन सेवा जतन करे लागिन, हाँत तिपो के राँध-गढ़ के दूनों जुआर खवा-पिया के अपन घर जावय, त आसाराम गउँटिया किहिस- सेउकराम अउ सेवती..! तुमन सही मा हमर धरम के बेटा बहू आव, देखव तुँही मन सेवा जतन करहु। निचट सरीर थकगे, स्वॉंसा के आखिरी बेरा आगे, स्वॉंसा टुटे चाहत हे, त जब गउँटिया के दुनों बेटा बहु अइस, त हिरक के नइ देखिस। 

गंगाजल अउ तुलसी जल पियाय बर धरिस, त उकर हाँत के गंगा जल अउ तुलसी दल ला नइ पिइन। कथे- जियत ले तुमन कभू हिरक के नइ देखेव अउ आखरी बेरा मा गंगागल अउ तुलसी दल ला पियावत हव अउ महापरसाद खवावत हव, गीता सुनाय के उदीम करत हव, तब सुनव- जियत मा अपन-अपन ठउर मा मजा करेव अब तुमन बेटा बहु के हक जतावत हव, राहन दे तुँहर गोठ ला। कहाँ हे सेउक अउ सेवती, उँखर हाँत के गंगाजल, महापरसाद अउ तुलसी-दल पाहुँ अउ परान ला छोड़हुँ, इँखर नाँव मा मँय हा अपन सांवतपुर के सरी खेतीखार ला करहुँ। अब सरग सिधारत हँव। एकर सेती केहे गेहे- ‘खेती अपने सेती... नइ ते हो जही एती ओती।’

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