एक जघा अइसने
कवि सम्मेलन होत रथे
संचालन करत कवि कथे-
सुनइय्या मन ले बिनती हे
थोक चेतलगहा गुनो
कवि सम्मेलन सुरू होत हे
सांति के साथ सुनो ।
अतका सुनके
एक झन बाई के मती छरियागे
वो हा रहय सांति के दाई
झगरी बाई आगू मा आगे ।
काखर मा दम हे
हमर रहत ले
सांति के साथ सुनही
ओखर ददा ल पता चलही
त धोबी अस नी धुनही ।
कवि थोरकन सोंच के कथे-
माता सारदा के हम
पइयाँ परत हन
सरसती बंदना के साथ
कार्यकरम सुरू करत हन
अतका सुन के सारदा
रिसेरिस मा झुपत हे,
तभिन सांति-सांति कहत रेहेव
अब मोर बेटी
सरसती, बंदना दिखत हे ।
अरथ के अनरथ देख
कवि कउवाय रथे
खिसियाके कथे-
अच्छा त भई
सब जोर के ताली बजा देव
अउ आरती ला मारो गोली
परेम के साथ कविता के मँजा लेव ।
अतका मा
आरती के दाई भारती आगे
ओखर देहें मा तो
मानो चण्डी समागे ।
अरे में देखहूँ
आरती ल छो़डके
परेम कइसे कविता संग जाही
ओखर बाबू हा जानही
त बारा नी बजाही ।
ये सबो ला सुनके
कवि मन एती-ओती झकत हे
वोला देख के सुनइय्या मन
पेट धर-धर के झाँकत हे ।
-पुष्कर सिंह ‘राज’
मंगलवार, 22 मई 2012
कवि सम्मेलन
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भारतीय गणना
आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!
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