बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

वेदना

चोरी करते शर्म नहीं आती, इतने कम उम्र में गलत काम करने लग गये, भीड़ में खड़े एक बुजुर्ग आदमी ने कहा। वह कोई पंद्रह वर्षीय नवयुवक था, जो गर्दन नीचे किये चुपचाप मार खाये जा रहा था। उसे दुख मार खाने का नहीं था, जिसकी मॉं मृत्युशैया पर पड़ी दवाई के अभाव में दम तोड़ रही हो उसे मारखाने की चिंता ही कहॉं हो सकती है। उसे केमिस्ट की दुकान से दवाई चुराते दुकानदार ने पकड़ लिया, बात ही बात में भीड़ इकट्ठी हो गई| मार से कपड़े जगह-जगह से फट गया था। कॉलर फटकर झूलने लगा था। इसी समय पुलिस इंस्पेक्टर अजीत सिंह ने एक भद्दी सी गाली देते हुए उस लाचार युवक को एक डंडा जमाया और दुकानदार से बोला-

‘‘आप रिपोर्ट लिखाने थाने चलिये! इस बदमाश को मैं वहीं ले जा रहा हूँ।’’ दो दिन का भूखा वह युवक लड़खड़ाता हुआ चल रहा था, रह-रहकर आँखों के सामने मॉं का मुर्झाया चेहरा घूम रहा था। असमय बुढ़ी हो चली मॉं पड़ोस में झाड़ू-पोछा करके अपनी और बेटे सरजू का पेट किसी तरह पालती थी। सरजू के पिता अपनी पत्नी को छोड़कर किसी अन्य औरत को घर में रख लिया और उसकी मॉं और सरजू को ठोकरे खाने के लिए घर से बेइज्जत करके निकाल दिया। सरजू अपने पिताजी को जानता तक नहीं था। स्नेहमयी मॉं अपने बच्चे को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने देती। सरजू किसी तरह आठवीं कक्षा उत्तीर्ण हो गया। प्रकृति भी गरीबों पर वज्र के समान टूटती है। काम करते-करते मॉं बेदम हो जाती है। ऊपर से खॉंसी का जोर मुँह से बलगम के साथ खून जाने लगा। मालिकों ने उसे काम से छुट्टीकर दी, स्कूल से आने पर सरजू मॉं की हालत देख रो पड़ा, घर में राशन खत्म हो गया था। पास में एक भी पैसा नहीं था। मॉं को पड़ोसवालों ने सरकारी अस्पताल में भर्ती कर दिया, लेकिन दवाई के आभाव में दिनों दिन उसकी हालत खराब होती गई।

सरजू की पढ़ाई छुट गई, वह सड़कों पर घूम-घूमकर अखबार बेचा करता। कुछ पैसे मिल जाते, जिसमें कुछ पैसों की दवाई और कुछ पैसे अपने भोजन पर खर्च करता। रात के समय हॉटल में काम करता, सुबह शाम अपनी मॉं से मिल आता। एकदिन डॉक्टर ने कहा- ‘‘तुम अपने घर के किसी जिम्मेदार सदस्य को भेेजना| तुम ! मत आया करो? तुम्हारी मॉं को टी.बी हो गई है।’’
‘‘मेरा इस दुनियॉं में मॉं के सिवाय कोई नहीं, मैं किसे लाऊँ डॉक्टर साहब!’’ सरजू ने करूण स्वर में रोते हुए कहा। डॉ. दवाई की पर्ची थमा गया- ‘‘देखो! यह दवाई और इंन्जेक्शन बहुत जरूरी है, देरी होने से मरीज को खतरा है।’’ सरजू सुनकर हक्का-बक्का रह गया। इतने बड़े शहर में पहचानवाला कोई न था। होटलवाला भी बगैर माह बीते पैसे देनेवाला नहीं था। केमिस्ट की दुकान पर सरजू ने दवाई का पर्ची दिया दुकानदार ने दवाई पैकेट में बॉंध दिया साथ ही बिल भी और दूसरे ग्राहक को निपटाने लगा। बिल देखकर सरजू को दिन में तारे नज़र आने लगा, बिल पूरे पॉंच सौ रूपये का था। कुछ सोचकर सरजू दवाई की पैकेट लेकर भागने लगा।अचानक दुकानदार की नज़र उधर चली गयी और चोर-चोर चिल्लाना शुरू कर दिया। सरजू के पीछे लोग दौड़ने लगे, भीड़ में घुसने से पहले एक आदमी ने उसे पकड़ लिया। भीड़ इकट्ठी हो गई। लोगों ने मार-मारकर उसकी हालत खराब कर दी। कमीज खींचतान में जगह-जगह से फट गया। मोटे ताजे थानेदार को अपने तरफ आते देख सरजू थर-थर कॉंपने लगा, कातर स्वर में बोला- ‘‘मेरी मॉं को बचा लो साहब! आपके बाल बच्चे सलामत रहे|’’ थानेदार ने डॉंटते हुए कहा-‘‘तुम चुपचाप रहो| नहीं तो काल कोठरी में बंदकर दूँगा|’’ और दुकानदार का रिपोर्ट लिखने लगा| ‘‘हॉं तो मिस्टर मेहता! जो दवाई पैकेट में हैं, किस बीमारी की दवा है।’’ ‘‘इसे डॉक्टर ने टी.बी. के लिए लिखा है’’ मेहता ने कहा। ‘‘आप रिपोर्ट में हस्ताक्षर कर दीजिये, जरूरत पड़ने पर आपको तकलीफ करना होगा।’’ ‘इसमें तकलीफ की क्या बात है इंस्पेक्टर साहब! मैं हाजिर हो जाऊँगा’’ चलते हुए मेहता ने कहा। सरजू के शरीर से डर के कारण पसीना छुटने लगा। मार के कारण दोनों गाल-लाल हो गये थे।सरजू ने रोते हुए इंस्पेक्टर के पैर पकड़ लिये- ‘‘मुझे छोड़ दीजिये साहब! मेरी मॉं दवाई के अभाव में मर जाएगी|’’ ऐसा लगा जैसे सारे शरीर में वेदना का साम्राज्य हो अपमान और कष्ट से शरीर निर्जीव सा हो रहा था। इंस्पेक्टर के पूछने पर सरजू ने बताया कि-‘‘मेरी मॉं बीमार है और अस्पताल में भर्ती है, यदि उन्हें दवाई और इंजेक्शन समय पर नहीं मिला तो वह मर जाएगी और मैं अनाथ हो जाऊँगा, मेरे पास दवाई के पैसे नहीं थे, इसलिए दवाई का पैकेट लेकर भाग रहा था और पकड़ा गया।’’ ‘‘तुम्हारी मॉं का नाम क्या है और किस अस्पताल में भर्ती है? अगर तुमने झूठ बोलने की कोशिश की तो छ: माह के लिए अंदर कर दूँगा।’’ ‘‘मैं झूठ नहीं बोलूँगा साहब! मेरी मॉं का नाम पार्वती है और जिला चिकित्सालय में भर्ती है। 

इंस्पेक्टर साहब सोचने लगे- ‘‘यह लड़का चोर होता तो गल्ला का पैसा लेकर भागता या पाकेट मारता, जरूर कोई मजबूरी है।’’ इतना सोचते ही सरजू पर दया आ गई, उसे अपना बचपन याद आ गया। कितने कष्ट सहे थे उसने, यदि स्वामी विवेकानंद आश्रम का सहारा नहीं मिलता तो आज वह भी चोर उच्चका होता, बचपन से ही वह अनाथ था। उसकी पढ़ाई-लिखाई आश्रम में शुरू हुआ था और वह आज सम्मानजनक पद पर है। सरजू का चेहरा देखकर ही समझ गया था कि वह भूखा है। सिपाही को पास के हॉटल से भोजन लाने के लिए कहता है और बड़े प्रेम से सरजू को भोजन खिलाया, जिस प्रकार से चट्टान को भेदकर पानी का स्त्रोत निकलता है, उसी प्रकार अजीत सिंह के हृदय से दया उमड़ पड़ी। सरजू को अपने साथ मोटरसायकल में बिठाकर अस्पताल लाया। टी.बी.वार्ड में अपनीं मॉं को देखकर सरजू सन्न रह गया। उसकी मॉं भगवान को प्यारी हो गई थी। एक मॉं ही थी, लेकिन वह भी सरजू को अकेला छोड़कर चली गई, वह अपनी मॉं के चरणों में माथा टेककर रोने लगा- ‘‘मॉं..! मैं, किसके सहारे इस निर्दयी दुनियॉं में रहूँगा। मैं, क्यों जिंदा हूँ? मॉं..! मुझे अपने पास बुला लो, इस संसार में मेरा कोई नहीं है’’ कहकर सरजू विलाप करने लगा इंस्पेक्टर ने उसे सॉंत्वना दी-‘‘जिसका कोई नहीं होता, उसका ईश्‍वर ही रखवाला होता है’’ कहते हुए उनका स्वर पीड़ा से भर गया। आज का दिन सरजू के लिए अंधकार लेकर आया था। उसके चारों ओर निराशा का अंधेरा छाया हुआ था। श्मशानघाट से आते हुए सरजू बहुत उदास था। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। रात्रि का अंधकार धीरे-धीरे गहरा होने लगा, बाहर का सन्नाटा सरजू के दिल-दिमाग में समाता चला गया। एकांकी जीवन की वेदना सरजू के चेहरे से परिलक्षित होने लगा, वह पागलों की तरह चिल्लाता, कभी अपने आप से बातें करने लगता। 

सरजू की हालत देख इंस्पेक्टर अजीत सिंह उसे अपने साथ घर ले आया। इंस्पेक्टर साहब अपने क्वॉटर में अकेला रहता था। उनकी शादी अभी नहीं हुई थी, थाने का चौकीदार इसके लिए खाना बना देता था। ‘‘देखो तुम अभी मेरे साथ ही रहोगे, फिर आगे देखेंगे कि क्या करना है’’ कहकर इंस्पेक्टर साहब थाना चले गये। शाम को इंस्पेक्टर साहब घर आये, तब देखा कि सरजू शून्य में एकटक न जाने क्या देख रहा था और अपने आप बुदबुदा रहा था। इंस्पेक्टर साहब उसे अपने साथ बरामदे में ले गया। लोटा थमाते बोला जाओ- ‘‘मुँह-हाथ धो लो! भोजन करेंगे।’’ चौकीदार ने दोनों को भोजन परोस दिया, सरजू से कुछ न खाया गया। उसे मॉं की याद आने लगी, किसी तरह दो-चार कौर खाकर मुँह-हाथ धोने उठ गया। दूसरे दिन इंस्पेक्टर साहब ने स्वामी विवेकानंद आश्रम में फोन किया बोला- ‘‘मैं एक लड़के को लेकर आ रहा हूँ, उसे वहीं आश्रम के विद्यालय में पढ़ाना है, वहीं आश्रम में रहेगा।’’ सरजू को इंस्पेक्टर साहब ने आश्रम में भर्ती करा दिया। सप्ताह में बीच-बीच में देखने आ जाता। सरजू अपने मॉं को नहीं भूल सका था, वह अब भी उदास दिखाई देता था। इंस्पेक्टर साहब उसे बहुत समझाते उसकी आवश्यकताओं का ख्याल रखते। दिन बितने लगा, अप्रैल में सरजू का वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित हुआ, सरजू अपने कक्षा के सभी सेक्सन में टॉप किया था। इंस्पेक्टर साहब कुछ आश्‍वस्त हुये, सरजू का रहन-सहन पहनावा सब कुछ बदल गया था। अब उसे देखकर कोई भी नहीं कह सकता था, कि वह अनाथ बालक है, इंस्पेक्टर साहब सरजू के लिए सब कुछ था। उसे वह भगवान से भी बढ़कर मानता था। उसके एक इशारे में सब कुछ करने को तैयार रहता। आई.पी.एस. का आज परिणाम आया। सरजू प्रसाद का फोटो पेपर में छपा है, टॉपटेन में सरजू प्रसाद का नाम मोटे-मोटे अक्षरों में छपा है।इंस्पेक्टर अजीत सिंह आज बहुत खुश है, अपना कर्तव्य उसने बखूबी निभाया है। उसने एक अनाथ बालक को पुलिस कप्तान बना दिया। उसके दिल पर रखा बोझ आज उतर गया। उसने अपना कर्ज आज चुकता कर दिया था। सरजू प्रसाद की उपलब्धि पर आज कई लोग इंस्पेक्टर के घर बधाई देने आये। ‘‘दादा! आज मॉं की समाधि पर माथा टेकने जायेंगे’’ सरजू प्रसाद ने इंस्पेक्टर अजीत सिंह से कहा। आज नदी किनारे सरजू प्रसाद के साथ अजीत सिंह उसकी मॉं की समाधि पर फूल चक्र अर्पित कर रहे थे। वे बहुत खुश थे| सरजू अपनी मॉं की समाधि पर आँसू बहा रहा था। मॉं की यादें उसकी धरोहर थी, उनके चेहरे में वेदना की घनी छाया नज़र आ रही थी। मॉं..! आज तुम नहीं हो, लेकिन तुम्हारा आशीर्वाद मेरे साथ है मुझे आशीर्वाद नहीं दोगी ? मॉं।’’ 

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!