रविवार, 22 नवंबर 2015

मनखे बर बरदान... तुलसी के बिरवा

संगवारी हो हमर संस्किरिति अऊ परमपरा म रूख.राई के बड़ महातम बताय गे हे। वो रूख-राई म तुलसी के बिरवा हे जेकर नाव घलो ल बड़ पबरित के साथ लेय जाथे। जम्मो बिरवा म तुलसी के बिरवा ल परमुख बताय गे हे। हमर घर म माइलोगन मन तुलसी के बिरवा के पूजा-पाठ कई जुग ले करत आवत हे। तुलसी के बिरवा हिन्दुमन के अलावा बौद्ध, जैन अऊ सिख धरम म समान रूप ले सनमानित हे। पराचीन संत के संगे-संग पुरान अऊ नीति सास्त्र के लोककथा मन म तुलसी के बरनन घातेच मिलथे। ग्रीस के चर्च म तुलसी
के पूजा आज भी होथे अऊ सेंत बिजली जयंती के दिन तुलसी के परसाद ल माइलोगन घर-घर म बगराथे। पुरान के कथा अनसार सागर मंथन म चउदा रतन निकलिस जेमा एक तुलसी घलो रिहिस तुलसी म लवछमी के निवास होथे एकरे सेति पंचामरित य तुलसी के दल डाले जथे। माने जथे के भगवान बिन तुलसी के कोनो परसाद ल गरहन नई करय। तुलसी के महिमा के बखान करत गाँव के माइलोगन गीत गाथे के- 
‘‘पानमंजरी काढा बनाबो जरी पेंड़ कंठी माला। 
तोर महिमा ल गाबो जय हो उसी माता।।’’ 

पदमपुरान के अनुसार जे घर म तुलसी के बिरवा हाबे उहाँ तिरदेव बरमहा, बिस्नु अऊ महेस के बास होथे। तुलसी के जरी म जम्मो तीरथ, बीच म जम्मो देवता अऊ उपर के डारा म जम्मो बेद के निवास माने गे हे। संस्किरित म तुलसी ल ‘‘हरिपिरया’’ केहे गेहे। पुरान के कथा के अनुसार राजा भिरगु ले नारद केहे रिहिस के तुलसी के बिरवा के पुजा करे ले ओतके कन फल मिलथे जतका गंगा नहाय म। मरनी के बेरा म जेन मनखे ह तुलसी के बिरवा तीर अपन परान तियागही ओला जमराज ह नई देख पाय चाहे मनखे कतको पापी राहय। बरम्हवैबर्त पुरान म बताय गेहे -

‘‘त्रिलोकेषु च गुल्घाणं वृक्षाणां देवं पुजने।
प्रधान रूपा तुलसी भविष्यति वरानने।।’’

संगवारी हो एखर मतलब हे के तीनो लोक म जतका बिरवा हे ओ जम्मो म तुलसी सरेस्ठ हे। पुरान म तुलसी ल भगवान किरिस्न धरमपत्नि केहे गे हे एकरे सेती हर जग, हवन, उपासना अऊ पुजा-पाठ म तुलसी जरूरी हे। तुलसी के बिरवा अँगना के न सिरफ सोभा बढाथे बल्कि घर के मनखे मन ल सुद्ध हवा घलो देथे। तुलसी, पीपर, बर अऊ लीम ए चारो रूख ह रतिहा म घलो आकसिजन देथे बाकी जम्मो रूख-राई मन रतिहा कारबन डाइ आकसाइड छोंरथे। एकरे सेती ए चारो रूख धारमिक महत्व के संगे-संग अधयातमिक महत्व घलो राखथे। नारद पुरान म केहे गेहे के हुलसी के बिरवा ल पानी अरपित करइया, तुलसी के जरी करा के माटी के टिका लगइया, तुलसी के चारोखुँट काँटा के घेरा करइया अऊ तुलसी के पत्ता ले भगवान बिस्नु के पुजा करइया ल जनम-मरन के चक्कर ले मुक्ति मिल जथे। बाहनमन ल तुलसीदल अरपित करे ले तीन पीढ़ी तक ले बरम्हलोक म जघा मिलथे। तुलसी के अतेक महातम के एला जुठा हाथ म छूए तक नई जाय। परसाद के साथ तुलसीदल के परयोेग सुभ फलदाईं माने जथे। जऊन घर म तुलसी के बिरवा रइथे। वो घर म सुख, समरिद्धि, सांति अऊ संपननता रइथे। घर के वास्तु दोस ह घलो तुलसी के बिरवा लगाय ले सिरा जथे। तुलसी के पत्ती म कईठन गुन समाय रहिथे। मलेरिया के हवा ल सिरवाय बर तुलसी के पत्ती रामबान आवय। 

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दिनेश रोहित चतुर्वेदी
खोखरा, जांजगीर

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