रविवार, 10 जनवरी 2016

अँकाल के पीरा

छत्तिसगढ़ ह अँकाल के पीरा झेलत हावय। कई जगह फसल नई होय हावय। एसो अँकाल घोसित करे के बाद राज्योत्सव ल एक दिन मनाय के घोसना करे गीस। एक दिन के राज्योत्सव म खरचा नई होईस का? एक दिन के ताम-झाम म घलो ओतके खरचा होथे। पेंडाल लगाना फेर निकालना। खरचा तो सिरिफ बिजली, पानी के बाढ़तिस। ये एक दिन भी काबर?
अलंकरन समारोह रखे गीस। छत्तिसगढ़ अकाल के मार ल झेलत हावय। हमर किसान बर अवइया बछर ह भुखमरी के रद्दा देखावत हावय। तब ये समारोह काबर? येमा खरचा नई होईस का? अलंकरण ल एक बछर बर रोके जा सकत रिहिस हे। 2-2 लाख रुपिया देय गीस तेन ल गरीब किसान बर राखे जतिस त बने होतिस। ये पइसा बाँटना जरूरी रहिस हे का? राजभासा ह साहित्यकार मन के सम्मान करिस तब कोनो राज म हजार-दू-हजार साहितकार ल साल-नरियर संग देय गीस अऊ कहूँ पइसा नइये कहिके नई देय गीस। नई देय के उदाहरन मेहा हावँव। तब आज ये पइसा काबर बाँटे गीस।
लोक कलाकार के अपमान होईस ये अलग। कार्यकरम बर छोटे मंच लोक कलाकार मनबर अऊ बड़े मंच बड़े कलाकार मन बर। लोक कलाकार ल छोटे समझे गीस। पानी बंटवाय के काम करे गीस। हमर छत्तिसगढिया साहित्यकार अऊ लोक कलाकार मन नाराज हावँय। बाजू म ‘जबर गोहार’ के धरना रहिस हे। भासा के लड़ई चलत हावय। लोक कलाकार, साहितकार जुरियाय रिहिन हें। कुछ मन देखे बर घलो इन्डोर स्टेडियम म गे रिहिन हें। जब देखे गीस के उँखर लोक कलाकार मन ल पानी पियाय बर कहे गे हावय। बहुत बेज्जती महसूस होइस। अतेक बड़ कार्यकरम म पानी पियाय बर नई रखे रिहिन का? येती तो पइसा बाँटत हावय, तामझाम म खरचा करत हावँय अऊ एक पानी बँटइया नी रख सकँय। आज जब सासन हर हमर लोक कलाकार के सम्मान नी करही त दूसर मन कइसे करही। हमर राज महकमा मन हमर संस्कृति करमी ल अपमानित करथे तभे तो छत्तिसगढ़ म दूसर राज के मनखे के भरमार हावय। ये मन कइसे सम्मान करहीं। येला अपनापन तो नी कहे जा सकय। अकाल के सुरता अब कोनो ल नई आवत हावय। महँगाई के मार झेलत राज एक बंद जगह म राज्योत्सव मना लीस। आम जनता जिहाँ पहुँच नी पइस। बीटीआई गराउंड रहितस त आम जनता घलो देख सकतिस।
एक नवंबर, सिक्छा बर छत्तिसगढ़ी माध्यम अऊ अलंकरण तिन विरोधाभास आयोजन होईस। एक नवंबर छत्तिसगढ़ स्थापना दिवस जिहाँ सासन अपन उन्नति देखावत हावय, ‘जबर गोहार’ म लोक कलाकार साहितकार अपन भासा बर लड़त हावँय। कामकाज के भासा तो होवय छत्तिसगढ़ी। प्राथमिक इसतर म माधियम तो बने छत्तिसगढ़ी। अऊ दूसर डाहर उही मेर छत्तिसगढि़या कलाकार के अपमान होवत हावय। छोटे मंच अऊ पानी पियावत हावँय। अँकाल के नाँव म रोके लाखों रुपिया अलंकरन म बाँटत हावँय। येला तो सी.एम. हाउस म कर देतिन तभो बने रहिस हे।
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सुधा वर्मा 
देशबंधु के मड़ई अंक ले

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भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!