शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

सरद पुन्नी के चंदा

सरद पुन्नी के दिन पहिली रयपुर म कवि सम्मेलन होवय। स्टेसन रोड डाहर जब ये कवि सम्मेलन होवय तब दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन येला सुने बर हावय। पुन्नी के दिन कवि हिरदय उफने ले लग जथे। सही बात आय। जब चांद ह धरती के तीर म आ जथे अउ धरती ल अपन खूबसूरती देखाथे। चंदा ह धरती के खूबसूरती ल देखथे।


सही तो आय बारिस खतम हो जते। धरती के पियास बुझा जथे अउ हरियर धरती अपन हरियाली ल अइसे देखाथे जइसे हरियर चादर ओढ़े हावय। हल्का-हल्का सीत परे ले धर लेथे। ये सीत के बूद पहिली तो पाना मन म दिखय फेर अब दूसित पर्यावरन के कारन नई दिखय। गांव सहर म पोतई-लिपई पूरा हो जथे या फेर पुन्नी के अंजोर म आखिरी काम चलत रहिथे। घर-घर के अंगना द्वार साफ-सुथरा हो जथे। गोबर म लिपाय सुन्ना अंगना म चउंक पूरा जाथे। सरद के सुवागत बर घर के अंगना द्वार म चउंक पूरे जाथे। सरद रितु म रास धर के अंगना म आथे। ये रास के अगोरा म घर द्वार सब चकचक ले दांत निकाल के हांसत हावय अइसे लागथे।

दसेरा म नवा खाय जाथे, सरद पुन्नी ले देवारी तक धान पाके ले लग जाथे। देव उठनी ले धआन के कटई सुरू हो जाथे। कई जगह जल्दी धान आ जथे। अइसे लागथे के ये सरद पुन्नी के चंदा हमर ये तइयारी ल देखे बर आ जथे। ये चंदा अमरित बरसाथे अइसे कहे जाथे। ये दिन सर्दी, खआँसी, अस्थमा के दवाई घलो देय जाथे। ये पेड़ के छाल आय जेन ल एक खास दिन निकाले जाथे, ओखर बाद ओखर चूरन तइयार करे जाथे। ये चूरन ल फोकट म बांटे जाथे। ये चूरन ल खीर के संग खाए जाथे। सरद पुन्नी के दिन ये दवई के संग म कई जगह खीर घलो देथें।

कई जगह खुल्ला जगह म खीर बनाये जाथे। अइसे समझे जाथे के सात लेबारह बजे तक चंदा ले अमृत बरसथे। ये अमृत खुल्ला म बनत खीर म समावत रहिथे। ये खीर परसाद के रूप म अमृत सरिख बांटे जाथे। काबर के येला अमृत ही समझे जाथे। घर-घर खीर बनाये जाथे। खीर ल घर के अंगना म, छत म रखे जाथे। ओखर बाद जब आधा रात होथे तब येला खाए जाथे। अस्थमा वाले मन घर म घलो खीर व दवई डार के खाथें। खाये के बाद पसीना ऊपर परथे तब दवाई जादा असर करथे। 

ये चंदा सबके धियान अपन डाहर खिंचथे। कवि हिदय येखर ऊपर कई-कई ठन कविता लिखथे। साथ ही ये चंदा के नीचे बइठ के रंग-रंग के कविता सुनाथें घलो। फेर कवि हिरदय अब चंदा ऊप कमती रिझथे। बहुमंजिली इमारत, घना बसे नगर के बीच चंदा अब दिखय नहीं। पर्यावरन अतेक दूसित होगे हावय के चंदैनी तो दिखय नहीं; चंदा घलो धुंधला जाथे। ओखर खूबसूरती अब कई जगह दिखय नहीं। बांचे समय म आज लोगन अपन समय ल दूरदरसन देखे म गंवा देथे। असो सब झन सरदपुन्नी के चंदा ल देखव। प्रकृति के सुघ्घर खूबसूरती ल देखे बर भुलाहू झन।
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सुधा वर्मा

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!