शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

भजन बिना मनवा कइसे तरोगे

नाचा हमर छत्तीसगढ़ के सुघ्घर लोकनाट्य परम्परा आय। साहित्यिक दृस्टिकोन से नाचा एक दृश्य-श्रव्य काव्य दूनो होथे। नाचा के गम्मत के कथानक कोन्हों नामी लेखक के लेखन रचना नइ राहय बल्कि ठेठ देहात के ठेठ देहाती कलाकार के तत्कालिन समाज, अउ देस-दुनिया के व्यवस्था से संबंधित मन के उपज होथे। पुरुस पात्र ले अभिनीत नाचा के संवाद ह कलाकार मन के सोंच-विचार अउ साधारन गोठ बात ले तइयार होथे। ठेठ देहाती बोली सैली म नाचा सामाजिक उत्थान के उद्देश्य ले भरे ग्राम्य वातावरन मं छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक विरासत ल संबल करे म बड़ा महत्वपूर्ण भूमिका निभाथय।



जब हमर नाचा के गोठ चलथय त ठउका सुरता आथय जोक्कड़। जोक्कर। याने गम्मतिहा। जोकर मेल कैरेक्टर याने पुरुस पात्र होथय। वर्गाकार मंच के हिस्सा आय। वाद्य कलाकार के टिमिक-टामक करे ले, सुर-लय धरे ले दरसक सकलाथें। तीन झन परी मन के आरी-पारी नचई अउ दू-तीन ठन गीत प्रस्तुति ले नाचा सुरु होथे। परी घलो पुरुस कलाकार होथे। वाद्य पक्छ के पेटी मास्टर पेटी बजावत गायन करत दर्सक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथय।

गंहुरावत रात मं सुघ्घर सांत माहौल में निर्मित होथे। वाद्य कलाकार मन एक विसेस सैली म वादन करथंय। ताहन दू झन कलाकार मन के मंच मे आगमन होथे। इही मन जोक्कर माने जोकर। जोकर के अक्छरश: अर्थ होथे जोक यानी हंसी-मजाक करइया। जोकर अंग्रेजी के हिन्दी पयार्य आय। ये जोकर मन के आते साथ सुंदर ढंग ले बाजा के सुर-ताल सन ठुमकथें, नाचथें। दूनोझन के पहिचान इंखर बिसेस ढंग के वेसभूसा अउ रूप सज्जा ले होथे। एक झन ह बिलकुल सामान्य पहनावा म अपन सादगी अउ एक सांत, समझदार व्यक्ति के चरित के रूप म रहिथे अउ दूसर ह सामान्य ले हट के एक अलग ही ढंग ले वेसभूसा अउ मेकअप म दर्सकवृंद के ध्यानाकर्सित करथें। छिंटही, गहरारंग के कुरता-पैंट, पयजामा, एक अलग विचित्र असन टोपी, आन-आन रंग के कुरता के बांह, झलंग-झंलग पैंट ह येखर भूमिका ल सार्थक करथे। येखर हाथ में गोट मोटहा गांठ के लउठी या कोकड़ी गोटानी ह हास्य स्फुटित करथे। साधारन पहनावा के जोकर ल मुख्य अउ असामान्य वेसभूसा पहनावा के सहयोगी जोकर होथे। गांव के सामान्य व्यक्ति के रूप मं प्रस्तुत होथे दूनो जोकर। घर परिवार के कर्णधार चरित्र होथे। समाज के केन्द्र बिन्दु होथे। गियान, सिक्छा के गोठ ह लोकभासा, गीत संगीत उद्देश्यात्मक गोठ बात ले हास्य गंभीर ढंग ले जनसामान्य के समक्छ प्रस्तुत होथे। नाचा के सफल प्रस्तुति के उद्देश्य लिए ये दूनो कलाकार वाद्य यंत्र के सुर-ताल राग म राग मिलाक रे हांथ जोड़े सुमरनी गावत प्रस्तुत होथे।
अ आ आ कि....
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख गवरी गनेस।
पांच देव मिल रक्छा करे, ब्रह्मा, बिष्णु, महेस।।
बुद्धिहीन तनु जान के, सुमिरंव पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहू मोहि, हरेहु कलेस विकार।।
सरसती ने सर दिया, गुरु ने दिया गियान।
माता-पिता ने रूप दिया, जन्म दिया भगवान।।
राम नाम ललाम, सबका मंगल धाम।
बहते हुए सन्तों को, कोटि-कोटि प्रनाम।।
मन मरे ममता मरे, मर गए सरीर।
आसा तिसना न मरे, कह गए दास कबीर।।
गंगा बड़े गोदावरी, अउ तीरथ बड़े धाम।
सब ले बड़े अजोध्या, जहां लिये अवतार राम।।
जल मं बसे कुमुदनी, चंदा बसे अगास।
मंय तो धरती मं रइहंव, पर धियान आपके पास।।
पढ़े-लिखे नइ हन भइया, निच्चट अड़हा आवन।
भूले चुके ल माफी देहू, तुंहरे लइका आवन।।
दूनो जोकर पूर्ण ग्रामीन व्यक्ति के किरदार मं होथें। भासा घला ठेठ छत्तीसगढ़ी होथय। अंचल के मुताबिक, स्थानीय सब्द के उच्चारन भले अलग हो सकथय। दूनो के संवाद माने गोठबात, घर-परिवार, खेती-किसानी, रोजी-मजदूरी अउ समै-मौसम के मुताबिक काम-काज के गोठके रूप मं सुरु होथे। दूनोझन एक-दूसर ल रिस्ता-नता सन नांव ले संबोधन करिक-करा होथें। जम्मो दरसक समूह ल मुंड़ नवावत गंगा के संग्या देवत सुघर निक आकर्सन सैली म प्रस्तुति सुरु करथंय। एकबानगी प्रस्तुत है।
प्रमुख जोकर- 'राम-राम गिरधारी भाई, अबड़ दिन मं दिखेस। काहां आथस, कहां जाथस, समझ नइ आय। घात दिन होगय मुलाखात होय।'
सहयोगी जोकर- 'हव मोर भइया, अब्बड़ दिन म होइस मुलाखात। का करिबे गा बड़े भइया, कमाय खाय बर महुं हा चांदा बेलसा कोनी चल दे हंव। ये तिहार बर आए हंव भइया।'
'हव भाई, कमाय-खाय बर, ये जिनगी चलाय बर कांहयो हो जाए ल पड़थे गिरधारी, पर अब्बड़ मया करेस ये छइयां-भुइंया के अउ तैं ये बछर भर के तिहार ल मनाय बर गांव मं आयेस।'
प्रमुख जोकर के संवाद म व्यवहार कुशलता प्रेम, धैर्य, संयम, सहजता के भाव ह दरसक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथे त गोठ-गोठ मं दूसर जोकर के ऊटपटांग अउ चुटीला गोठ ले दरसक समूह मं हास्यभाव पसर जाथे। मुस्कई अउ ठहाका छा जाथे।
'बहुते दिन मं भेंट होइस, त चल भगवान के भजन-कीर्तन करथन। ये जिनगी के कोनो ठिकाना नइ हे। ये भवसागर ले तरना हे त हरि नाम बहुत जरूरी हे भाई गिरधारी।'
'हव, मोर बड़े भइया।'
'त ले सुना...।'
'सुंघा! हाव भइया तंय सुंघा कथस ते मंय जरूर सुंघाहूं। महूं घोजते रहेंव के कोनों सुंघइया...। मोरो ल कोनो हर सुंघतीस कहिके।'
'सुंघइया नहीं भाई, सुनइया गा...।'
'हाव भइया, महूं काहथंव सुंघइया...। जरूर सुंघाहूं, अउ तोला सुंघे ला पड़ही, तभे महूं ल बने लाग ही, मोरो जी जुड़ाही।'
'तैं सुंघाहूं कथस, काला सुंघा बे मोर भाई।'
'डेरी गोड़ के पन ही ला...।'
'अपन डेरी गोड़ के पन ही ल। काबर जी?'
'अभी आवत खानी खआतू गुदाम करा सुन्हेर दाउ ह अपन बंड़वा बिलवा कुकुर ल घुमावत रिहिस। वो कुकुर हा हाग दीस। खोचका के पानी ले बांच हूं कहिके कूद परेंव भइया। का करिबे वो बंड़वा बिलवा के मोर डेरी गोड़ मं मोर डेरी गोड़ ह माढग़े। वो ह पनही मं चपका गे। मंय नइ सुंघे हंव। कोनो तोर असन भइया ल जेन ल जिनगी के मोर ले जादा अनुभव हे, बताथिस की कतिक बस्सात हे।'
'वा रे, परलोखिया, मइनखे राहे चाहे कुकुर के बस्साय के जिनीस नइ बस्साही।'
'न हीं, मंय ये सोंचत रहेंव कि, दाउ घर के कुकुर ह बिहनिया दूध सन डबल रोटी, पारले जी असन ओखर नास्ता होथे, मंझनिया खाना में अस्सी रुपया किला के राहेर दार एचएमटी चाउर, आलू, सेम्ही, फूल गोभी के साग अउ रतिहा घला पुस्टई जेवन जेथय। बेरा-बेरा म किसिम-किसिम के जिनीस दबाथय। मोला लागथय के दाउ के कुकुर दाउखाना खाथे, दाऊ हागे ह नइ बस्सात होही।'
'हत रे बइहा, अल्करहा गोठियाथस रे! चल ये सब ला छोड़। अइसन बिन रंग-ढंग के नी गोठियाय गा। ले एकाठन भजन-वजन सुना, समय कटही।'
'त सुनबेच गा...।'
'हाव भाई...।'
'घर निकलती तोर ददा मरे, जियते जियत मरगे तोर भाई।
संग चलत तोर बाई बिछुडग़े, ये जम्मो ल बिगाड़े तोर दाई।।'
'ये कोन जगा, अउ कोन समै के बात ये भइया। तंय कइसे अजीब सुनाथस। ददा मरे, जियते जियत भाई मरगे, संगे चलत बाई बिछुडग़े, ये सबो ल महतारी ह बिगाड़े कथस। का बात ये गा।'
'मोर बड़े भइया ये उही समै के बात ए जेन समै भगवान राम ल चौदह बछर के बनवास होइस। बेटा राम निकल ते राजा दसरथ प्रान तियाग दिस। बड़े भाई के बन जाये ले भरत भाई के जीना ह मरना होगे। लछमन घला इही हाल। जंगल में घूमत-भटकत माता सीता के हरन होगे। ये सबो के कारन आय रानी माता केकई।'
'वा भाई गिरधारी, वाजिब बात बताएस गा।'
'त तंय येसने समझथस जी! महूं पढ़े हंव कोदो दे के पढ़े-लिखे हंव। पांचवीं ल पांच घांव पढ़े हंव, जे ला सब एके घांव पढ़थे। मोला जादा अनुभव हे एके कक्छा के।'
'अरे वा भइया, बड़ पढ़ेहस जी। ले एकाधठन अउ सुना डार।'
'हावजी, अ...आ...आ...।'
'बुढ़वा डारे टमर के, जवान डारे सट ले।
लइका डारे अइंते-तंइते, वोखर दाई मारे फट ले।'
'अरे भइया, तंय अइंते-तइंते झन गोठिया गा। मार डार ही ये गब्दी गांव के मन हा।'
'कोनो नइ मारे भइया। मैं कोनो गलत बात नइ काहत हंव तें नइ जानस ते नइ जानस। मैं तो जानथंव।'
'ले बता... कइसन बात आय?'
'अरे पनही ताय गा। सियनहा टमर-टमर के पहिरथे। जवन हो सट ले पहिरथे अउ लइका ह अइंते-तइंते याने डेरी के ला जेवनी अउ जेवनी के ला डेरी, त महतारी ह फट ले मारथे अउ बने पहिराथे।'
'वा भइया गिरधारी। बड़े-बड़े गोठ गोठियाथस गा।'
'त गा... ले चल तंय सुना...।'
'हाव भई। भइया गिरधारी ये मनुस तन ह अड़बड़ मुस्किल में मिले हे। हम ला ये भव सागर ले तरना हे, पार होना हे। हमर आगू म बइठे दाई-माई ददा-भइया दे चार सियान ह गंगा ये गा।'
'ये मन गंगा ए...?'
'हव भाई, ये मन चार गंगा ये...।'
'वो दे तो हे गा, वो बीड़ी पियत हे तेन हर तो रामलाल के ददा दसरू, गहिरा आय।'
'वोइसन बात नोहे गिरधारी। गंगा माने चार बड़े सियान जेन ल जिनगी के जादा अनुभव होथे। जेखर सियानी गोठ ले हम छओटे मन ल सीख मिलथय। ऊंखरे असीस हमन ला पुरथय। हमर जिनगी सुधरथे। त हमर बर ये गंगा ये गा। चल येला मुंड़ नवाथन। भजन-कीरतन करथन।'
'अ...आ... अजी... अ... आ...'
'कइसे तरोगे रे मनवा कइसे तरोगे
भजन बिना मनवा कइसे तरोगे...
चौरासी योनि ले भटक के पायेस ये तन ला
प्रभु चरन म लगाय रहा ये मन ला
यहा भवसागर गहरी नंदिया जी
थाह बिना डूब मरोगे रे मनवा कइसे...।'
नाचत-ठुमकत, आलाप मारत, दूनो जोकर के गोड़ के घुंघरू के धुन, तबला-ढोलक के थाप, पेटी-बेंजो के स्वर, मंजीरा के लय सांत गंहुरावत रात मं हमर देहाती लोक परंपरा के दरसन कराथे।अमिट-अमूर्त सांस्कृतिक झलक देखे ला मिलथे। दूनो अपन गंभीर व हास-चुटीली संवाद, त्वरित सुवाल-जुवाप अउ गीत-संगीत के माध्यम ले समाज म फैले अंधविश्वास, रूढि़वाद, दूसित नियाव प्रणाली, सामंतवाद म कुठाराघात करथंय। वोखर दुस्परिणाम ल रखत वोखर निदान घला सुझाथें। याने नाचा हमर अइसन सामाजिक आइना आय। जेमा हमर गांव-देहात के तस्वीर प्रतिबिंबित होथे।
दूनो जोकर आधा-पौन घंटा तक संवाद अउ गीत-संगीत ले नाचा के प्रथम दृस्य ल सारथक करे के उदिम करथें। नाचा ठउर म पूर्णरूपेन ग्राम्य वातावरण तइयार होथय। हालांकि उहां मंच म कोनो देहाती निसि देखे ल नइ मिलय। दूनो झन एकबार फेर नत्ता सोरियावत एक-दूसर के नांव धरत नाचा के कथानक याने गम्मत प्रस्तुति के मुड़ी धरथंय। जेखर बर एक महिला चरित्र के जरूरत पड़थे। त मुंड मं फूलकंसिया लोटा बोहे माईलोगन (महिलापात्र) जेन ल 'जनाना' कहे जाथे। नाचा पार्टी के अनुभवी कलाकार जोन ह औरत के भूमिका करत रइथे, जनाना बनथय। राग लमियावत मंच म आथय।
अइ हो... हो... हो...
इंखर घर मं कइसे के रहियों या
इंखर घर म कइसे के रहियों...
कमा-कमा के जांगर टूटगे
नइ मिलिस सुख दाई
करू करेला जोड़ी के बचन
नइ मिलिस मीठ बोली भाई
सास ननंद करथे मोर निकारा
इंखर घर...।

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टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

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