गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

पंचइत म एसपी राज

हमर देस ल नारी परधान देस केहे गे हे। नारी के महिमा घलो चारों खुट ले सुने अऊ देखे बर मिलथे। सरकार घलो नवाँ-नवाँ नियम अऊ कानून म नारी परधान देस कहि-कहि के सहर त सहर का गाँव का कसबा न बारी लगय न बखरी, न बहरा लागे न डोली चारों कोती नारी राज घर म रंधनी खोली सुन्ना परगे, कपड़ा दुकान म आय बर बिहाव म सरी दुकान म लुगरा मन रखायच हे पेंट अऊ कमीज के खरीदइया म घलो नारी मन के प्रधानता देखे बर मिलत हे। ऊपर ले खाल्हे अऊ खाल्हे ले ऊपर कोती पंचइत राज ले दिल्ली तक एके ठन सोर नारी अइसन नारी वइसन। मुड़ी म पागा नारी के होही त मरद के मुड़ी म का होही। मरद मन संसो म परगे, के हमर सरी जिनीस ल अऊरत मन नंगा डरिस त हमरे का ठिकाना। चारों मुड़ा मरद ल अपन कमीज कुरथा ल बँचाय बर भागत देख के मोरो मन म डर हमागे के अइसन का बात होगे के सरी मरद परानी संसो म पर गेहे। दू-चार झन मनखे जेमन भागत राहँय तेला बला के पूछेंव के-‘का होगे... काबर भागत हो बबा..!’ 

मोर भाखा ल सुन के चारों सियान हँफरत-हँफरत ठहिर के कहिथे-‘हमर गाँव के अब नइये ठिकाना बाबू..!’ अतका काहत सियान मन उहाँ ले भाग गिस। सियान मन ल हँफरत देख के महूँ अबाक रहिगेंव के अतेक बड़का का बात होगे गाँव म? सियान मन ल तको परान बँचा के भागे ल धरलिस। बुधेस नाँव के सियान कहिथे-‘गाँव म चारों कोती एके ठन गोठ हे बाबू के गाँव-गाँव म नवाँ एस.पी. आगे इही डर के मारे हँफरत, भागत अऊ गिरत-हपटत आवत हन। 

मय मन म सोंचेव-के एस.पी. त जिला भर के पुलिस मन के साहब होथे। पंचइत म कहाँ आही। इही सोंच के मँय अचंभा म परगेंव। थोरिक बेर त मोला कहीं कुछु नइ जनइस-के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. कइसे आही! ओतकी बेर एक झिन पल्टीन नाँव के माई लोगिन लकर-धकर अपन दू झिन लईका हुरहा-धुरहा पावत काहत राहय-‘जउँहर होगे दाई..! नवाँ सरपंच का बनायेन कल्लई होगे। चलव रे मोर लईका मन। गाँव म नवाँ एस.पी. आगे कहिथें करम छॉंड़ दिस दाई।’ एक ठिन लईका ल पाय रिहिस दुसरइया लईका पावत रिहिस। पहिली पाय रिहिस ते हुरहा गिरगे। पल्टीन उही मेर बईठ के रोय ल धरलिस। 

दूसर कोती ले सगोबती, रमसीला आथे अऊ पल्टीन ल पूछथे-‘काबर रोवत हस पल्टीन, काबर तँय रोवत हस या..? का बात होगे के तँय गोहार पार के रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘काला बतावँव गो... बड़ करलई होगे।’ 
सगोबती कहिथे- ‘का बात के करलई होगे या..? कुछु बताबे त हमुमन ल समझ म आही।’ 
रमसीला कहिथे- ‘रोते रहिबे का? हमर देस नारी परधान देस आय (रमसीला पल्टीन के आँसू ल अपन अछरा म पोंछत कहिथे) नी रोय बहिनी चुप हो जा। थोरकिन रूक के हरहिंछा बता के का बात होगे? तँय काबर रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘गाँव भर म गोहार परत हे, के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। जउँहर भईगे दाई जउँहर भईगे। हमर लईकामन के नइ ये अब ठिकाना नवाँ एस.पी. हमर लईका मन ल मार डरही। गाँव के जगेसर कोतवाल हाँका पारत उही मेर आके हाँका पारथे- के गाँव के गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउँक्का बाद म गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउका बाद म गराम सभा होही अऊ पंचइत म माँदी खवाही। कोनो मन अपन घर म चूल्हा झन बारहू होऽऽऽऽ... हाँका पारत कोतवाल घला अपन रद्दा चल दिस। 
पल्टीन, रमसीला अऊ सगोतीन कोतवाल के हाँका ल सुन के गोहार पार के रोय ल धरलिस। पंचइत कोती ले गाँव के सियान गोठियात मंद के निसा म झुमरत तीनों झिन तिर आके पूछथें- 
गाँव के कोदू मंडल कहिथे- चुप हो जाओ नोनी का बात होगे तेला बतावव? बोलते-बोलत कोदू मंडल मंद के निसा म उही मेर गिरगे। 
उखर संग म आय गाँव के किसनहा सुखराम बबा ऊपर घलो मंद के भूत झपाय राहय। मंद के निसा म सुखराम बबा कहिथे-कुछु नी होय गा टूरी मन चुनई के मंद के निसा म रोवत हे। सबो झिन ल बिलहोरत हे बुजेरी के मन ह काहत सुखराम बबा अपन संगवारी संग चल दिस। कइसनों कर के रतिहा के चार पहर बितिस। 

पहट के गाँव के जम्मो लईका, सियान, माईंलोगन मन डफरा, डमऊ, मंजीरा, गोला, निसान संग जुलूस म आगू-आगू मुहूँ म रंग गुलाल बोथ्थाय झुमर-झुमर के नाँचत नवा सरपंच संग जम्मो पंच मन रंग म बुड़े अपन-अपन मरद संग पंचइत कोती जावत हे। 
मँय उही मेरा खड़े-खड़े देखत हँव के-सरपंच इहाँ के मरद के नरी म सरपंच के नरी ले जादा माला ओरमत हे। ओसने पंच मन के मरद के नरी के हाल हे। उँखर मरद मन अँटिया के रेंगत राहय मानो उही मन पंचइत के पंच सरपंच बने हे तइसे। देखत-देखत गाँव के जम्मो झिन पंचइत म सकलागे। पंचइत के आगू गाँधी पाँवरा मेर पंच-सरपंच ल किरिया खवाय बर मंच बने हे। पंच-सरंपच मन अपन हाँत ल आगू कोती लमाके किरिया खा के कहिथें, के गाँव बिकास के गंगा बोहाबो। 
ओतकिच बेर माईंलोगन मन के भीड़ ले गोहार परे ल धरलिस। पोंगा म कतको घॉंव चुप रेहेबर कहि डरिस फेर कोनो काखरो कहाँ सुनत हें। देखते-देखत माई लोगन के झगरा मरद मन डाहर मात गे। सुरू होगे पटकिक के... पटका। दोंहे.... दोंहे, भदा-भद जतका मुहूँ ओतके गोठ। सबो के मुहूँ म एके ठन गोठ-के नवाँ एस.पी. हमर गाँव म काबर आही। कोन लानही तेला देखबो। 

गाँव म कतको परकार के मनखे होथे। झगरा के गोठ-बात के चरचा ल सुन के पुलुस के डग्गा म अड़बड़ झिन पुलुस मन भरा के आगे। फेर झगरा त झगरा आय। पुलुस देखे न कोरट। कूद दिस ते कूद दिस। चुप करात भर ले करइस। नइ माने के एके ठिन चारा। पुलुस मन जो लउठी भंजिस के जम्मों भीड़ गदर-फदर भागिस। गाँव के चरचा एस.पी. करत रहिगे। डग्गा म बइठार के पुलुस मन गाँव म झगरा मतईया टूरा-टूरी, लईका-सियान अऊ माईंलोगन मन ल तको थाना लेग के ओइला दिस। 

दुसरइया दिन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन थाना म जाके गाँव के मनखे मन के झगरा के कारन पूछिस। पल्टीन कहिथे-‘‘गाँव भर म चिहोर परत रिहिस के गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। डर के मारे सबो झिन हड़बड़ागेन नोनी।’’ 
नवाँ सरपंच कहिथे- ‘‘गाँव म कोनो नवाँ एस.पी. आही कही कहिके। सरी गाँव म झगरा मता देस लईका-त-लईका सियान ल तको धँधवा देस। आय होरी तिहार म गाँव के मन ल रोवा देस। सरपंच संग पंच मन घलो पुलुस मन के साहेब ल मना डरिस। साहब नइ मानिस त दू बात कहिके सरपंच पंच मन अपन-अपन घर म आगे। 
वो डाहर पुलुस मनगाँव के जम्मो झन ल नियाव बर कोरट म लेगिन। करिया कोट पहिरे उकील मन कोनो ये डाहर जाय त कोना वो डाहर जाय। 
कोरट के मुहाटी मेर ले सफेद कुरथा पहिरे डोकरा बानी के मनखे ह गाँव म झगरा मतईया मन के नाँव ल धरत हाँका पार के जम्मों झन परसार सही बड़ जानी कुरिया म बलइस। उहाँ उँचहा कुरसी म करिया कुरथा पहिरे आँखी म करिया फरेम के चस्मा पहिरे मनखे ह गाँव के जम्मो झन ल पूछिस- ‘‘के का बात होगे? का बात बर झगरा मतायेव गाँव म?’’ 

गाँव वाले मन के उकील गाँव म झगरा काबर होइस ते बात ल नियाव करइया ल बतइस वो डहर उकील बतात रहाय त गाँव के जम्मो झन के आँखी हाँत म तराजू धरे आँखी म फरीया बॉंधे पुतरी ऊपर टेके हे अऊ जम्मो झिन अपने अपन म गोठियात हे। के इही नवाँ एस.पी. होही का? मंगल नाव के जवान टूरा कहिथे-‘‘ये त अँधरी हावय गा। अँधरी हमर गाँव के एस.पी. कइसे होही। हमर गाँव म का अँधरी राज करही? फोक्कट के गोठियाथव ते।’’ 
सुरेस नाँव के टूरा कहिथे- ‘‘अरे बइहा बुध के, ये कोरट आय कोरट। कोन हमर गाँव के नवाँ एस.पी. हरे तेला त पहिली जानन। फोक्कट के गोहार पारत हस निपोर मुहूँ ल कथरी सिले सही चुप नइ रहि सकस।’’ 
ओतकी बेर सलेन्द कइथे- ‘‘ते कोन होथस रे...! हमर मुहूँ ल कथरी कस सिलईया। हमूँ मनखे हरन हमू ल हमर गाँव के गोठ ल जाने के हक हे। बड़ा मुड़पेलवा कस हुसियारी मारत हे बइहा बुध के हा। इहाँ ले बाहिर निकल तहाँन मँय तोला छरियाथँव।’’ 
कोरट म हल्ला होवत देखिस त उँचहा कुरसी म बइठे नियाव करइया साहब ह दू घॉंव टेबिल ठठात किहिस-‘‘चुप हो जाओ निहीं तो भितरा दूँगा। ये हल्ला करे के सजा जम्मों झन ल भुगते बर परही। डर के मारे जम्मो झन चुपे होगे।’’ 
ओतकी बेरा उँचहा कुर्सी म बईठे नियाव देवइया साहब ह-गाँव के जम्मो मनखे ल फेर पूछिस-‘‘के बने-बने बतावव का होइस? का बात बर गाँव में झगरा मतायेव?’’ 
गाँव के सियान सुखराम कहिथे-‘‘बात अइसन हे साहब- के हमर गाँव के पंचईत चुनई के फइसला बने-बने निपटिस। बने नाँचत जात रेहेन। त ओतकी बेर सहर ले दू-चार झन टूरा मन फटफटी म बइठे-बइठे नरियात अइस। उही दिन ले उही बात बर हमर सरग सही गाँव म झगरा मात गिस।’’ 
नियाव देवइया साहेब कहिथे- ‘‘एसपी जिला भर के अधिकारी होथे अऊ जिलाच म ओखर आफिस होथे। कोनो जरूरीच काम परही तभे च वोहा तुँहर गाँव म जाही। गाँव म एस.पी. नइ होय पुलुस तुँहर रकछा बर हाबे।’’ 
अइसन सुग्घर गोठ ल सुनके गाँव के सरी मनखे चुपेच होगे। ओतकीच बेर कोनो बात ल धर के सलेन्दअऊ सुरेस म झगरा माते ल धरिस। उन्हें दूनों मन धरी के धरा होगे। दूनों एके ठिन बात बोले-‘‘नवाँ एसपी आगे।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ल ठठात फेर कहिथे-‘‘चुप रहो बड़ नरिया डरेव। तुहीच मन बतावव के गाँव म नवाँ कोन एस.पी. आगे?’’ 
सलेन्द्र अऊ सुरेस डर्रात कहिथे- ‘‘सहर के टूरा मन बतइस साहब।’’ 
नियाव देवइया साहब कहिथे-‘‘का बात ल सहर के टूरा मन बतइस बोलव।’’ 
साहब के गोठ सुनके सुरेस सरी बात ल बताथे- ‘‘के साहब सहर के टूरामन बतइस गाँव म एस.पी. आगे। ऊँखर ले पूछेन त वोमन किहीन-बाई-बनिस सरपंच त ओखर मरद होइस एस.पी. माने सरपंच पति अऊ पंच मन के मरद पंचपति परमेसर होही। 
सलेन्द्र कहिथे-‘‘उही गोठ ल सुनके ऊँखर संग म हमू मन जिन्दाबाद-मुर्दाबाद कही परेन साहब।’’ 
सुरेस कहिथे-‘‘बस अइसनेच गोठ हरे साहब। 
परसार सहीं बड़ जनी कोरट कुरिया म चारो खुँट के मनखे मन दुनो झन के गोठ ल सुनके हाँस-हाँस के कठल गे। कतको झिन त हाँस-हाँस के ओछर-बोकर तको डरिस। जेन ल देखबे त उही हाँसते रहाय। सबो झिन ल हाँसत देख के गाँव के मन सकपकाय भोकवा कस देखते रहिगे। 
थोकुन बेरा म खॉंसी-खखरई बंद होइस त सलेन्दनियाव देवइया साहब ल कहिथे-‘‘हमन कोनो हाँसी मजाक के लइक गोठिया परेन का साहब के हमर कोती ले कोनो गलती होगे का? सबो झन हाँस डरेव। बस हमी मन भोकवा कस ठाढ़े हन।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ठठात गोहार पारथे-‘‘आरडर.... आरडर।’’ 
जम्मों झन चुप होगे त नियाव देवइया कहिथे- ‘‘ये सबो गोठ-बात गाँव के सिक्छा के कमी के खातिर देखे बर परत हे। सरकार गाँव-गाँव म पढ़व-अउ बढ़व कहिके साक्षरता किलास लगा के कतकोन खर्चा करिस तभो ले जम्मो अप्पड़ के अप्प़ड़। ऊपर ले झगरा-झँझट करके मुड़ी फोड़ी-फोड़ा कर डरिस।’’ 

नियाव देवइया साहब गाँव वाले मन ल समझात कहिथे-‘‘के तुँहर झगरा ल खत्म करव अऊ बने-बने जिनगी ल जीयव। मनखे बर मनखे बने के उदिम करव। सबके मन म मया-परेम जगावव। आगू होरी तिहार हे बने मया परेम लगाती तिहार ल मनावव। काली पंच अऊ सरपंच संग इँहा आहू त नवाँ गोठ-बात ल करबो। कोरट के समे खत्म होइस।’’ जम्मों सियान, जवान मन अपन-अपन डेरा म हाँसत गोठियात लहूटिस। 

दूसरईया दिन कोरट के बेरा प पंच-सरपंच संग गाँव के जम्मो झन नियाव करइया साहब ले मिलथे। नियाव करइया साहब ह सरपंच ल कहिथे-‘‘तुँहर गाँव म झगरा के एके ठिन कारन हे वोहे असिक्छा, गाँव के मनखे मन के अप्पड़ होना। सबो पंच सरंपच पढ़े-लिखे दिखथव। गाँव के मन ल बने समझत ले पढ़ावव। गाँव म साक्छरता के संदेस ल आगू लावव। गाँव के मन सिक्छित होहीं त गाँव म नवाँ अँजोर बगरही अऊ गाँव म सुख के गंगा सुग्घर बोहाही।’’ नियाव देवइया साहब सरपंच संग जम्मो पंच मन ल ऊँखर जीत बर गाड़ा अकन शुभकामना देके जम्मो झन ल बिदा करिस। 

सरपंच अऊ पंच मन ओसने करिस जइसन साहब बताय रिहिस। नवा सरपंच दसाबाई गाँव के साक्षरता किलास म गाँव के जम्मों लईका-सियान-जवान सब्बो झन ल पढ़ाय ल सुरू कर दिस। गाँव के मन नवाँ-नवाँ जिनिस सीख के अपन खुद के पॉंव म खड़े होगे फेर अपन लईका मन ल अपन घरे म पढ़ा-पढ़ा के नवाँ रद्दा देखाय के नवाँ-नवाँ उदिम करत हे। गाँव म कभू पंथी त कभू रीलो त कभू रीलो त कभू करमा-ददरिया म अपन सुर लमात देवी-देवता के पराथना करत नवाँ जिनगी जीये के मन म आस धरे सुख के जिनगी जीयत हे। 

देखते-देखत होरी तिहार आगे। गाँव के मन पँचकठिया टुकना म परसा, सेम्हर फूल के पंखुरी ल घर म लानके लाली रंग बनाके के होली मनाय के उदिम तको करत हे। गाँव के गौरा पाँवरा म बाजत नँगारा, डमउ, टासक, निसान, मंजीरा, ढोलक अऊ गोला के पार ल कोनो पाही गा। गाँव के चारों खुँट माँदर सँही नँगारा घटकत हे। आनी-बानी के फाग ल गा-गा गाँव के जम्मो लईका सियान मन खुदे नाँचत हे अऊ जम्मो झन ल नँचात हें। 

रतिहा के पबरित बेरा म होही के पूजा करके गाँव के जम्मो सियान अपन गाँव के रक्छा बर देवी देवता ल गोहरात होरी ल जरा के उही मेर कसम खाथे। के हमर गाँव म सेम्हर, परसा के रंग ले होरी खेलत आय हन आगू घलो हमर पुरखौती के चिन्हा के रंग ले होरी खेलबो। कोनो ह कोनो के मुहूँ-कान म चिखला, माटी, चीट अऊ आनी-बानी के रंग नई पोतय। 

गाँव म पहाती ले संझौती बेरा तक लईका मन तिलक होरी खेलत सियान मन के माथा म गुलाल के टीका लगा के सियान मन ले असीस पावत अपन जिनगी ल सँवारे के परयास करते हे अऊ नँगारा संग एके ठिन राग लमावत हे- 

हमर गाँव म आगे अँजोर, परसा सेम्हर लाली ल घोर। 
माया परेम के लाली धरके, ये दे आगे होरी तिहार॥ 
ठेठरी, खुरमी, बबरा ल खाके, बने मनावव तिहार। 
जीयत रहिबो त फेर देखबो, आगू के होरी तिहार॥ 
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प्रदीप पान्डेय ‘‘ललकार’’ संबलपुर : देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित

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