लंदर-फंदर करके
तोला सरपंच बनाय हँव
फेर अब मोला लागथे
अपने गोड़ मा टंगिया चलाय हँव ।
जब ले तँय सरपंच बने
का-का करत हस
मोर बर पॉंच मिनट
वोला पॉंच घंटा ले धरत हस ।
मँय इहॉं बेचैन हँव
ते ओखर चैन बर तेल लगावत हस ।
मोर बर समे नइ हे
वोला धर के मटकावत हस ।
मोर जेब ले निकलत हे
ओमें जा के भरावत हे ।
मोला देखबे त हाड़ा के हाड़ा
ये घोसघोस ले मोटावत हे ।
ये सब बात चलत हे
त मोला सक्की झन मानो ।
हमर दुनों के बने जमथे
फेर बात ओखरे आथे
त हमर बीच में ठनथे ।
मोर नराजगी वाजिब हे भई
ये ला सब कुछ मानेंव
येखर बिन सुन्ना घर-संसार हे
ये परबुधनिन ल तो देख
ये ला तो बेग से पियॉंर हे ।
जब ले एला धरे हे
मोला अड़बड़ चमकावत हे ।
मोला खाना परसे ल छोड़के
अपने जूठा ल मँजवावत हे ।
छोड़ बाई ये पँचसलिया भरम ल
मत समे बेकार कर ।
बने मनखे के जनम धरे हस
आना.., मनखे ले पियॉंर कर ।
पुष्कर सिंह ‘राज
शनिवार, 9 जून 2012
सरपंच-पति के पीरा
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