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शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

अबकी बार मोदी सरकार













भागो चोरों के सरदार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

सोनिया-मनमोहन खबरदार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

बुखारियों पर करो प्रहार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

भारत भक्तों का बेड़ा पार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

कांग्रेस की अर्थी तैयार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

गिरते रुपयों की चीत्कार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

कमरतोड़ महंगाई की मार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

दलालों को मारो जूते चार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

भागेंगे अब चोर-चुहार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

दफा हो मिस्टर बंटाधार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

गुंडों-मुस्टंडों का संहार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

तुष्टिकरण न लूट हज़ार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

देश में उर्जा का संचार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

सबको रोटी और रोज़गार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

अब न होंगे बेबस लाचार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

अब न सहेंगे अत्याचार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

अब न मचेगा हाहाकार।
अबकी बार मोदी सरकार।

बचे हैं दुःख के अब दिन चार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

राम मंदिर कि हुंकार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

फिरेंगे अब अपने दिन यार।
अबकी बार मोदी सरकार।।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

कौमी एकता ह आज भट्ठीच मा तो जियत हे

हमन न हिनदू हमन न मुसलिम
हमन न सिख-इसई अन
हमन तो भइया सबो परोसी
आपस में भाई-भाई अन ।

हिनदू, मुसलिम, सिख, इसई बन
इही मन हमला लड़ावत हे ।...
देस कब उबरही
नसा में कोन नइ हे
मोला ये तो बता
आज ले जे लेय नइ हे

वोखर चेहरा ला तो देखा
कोनो ला सोनिया दाई के नसा हे
कोनो ला जया बाई के नसा
कोनो ला ममता माईं के नसा हे
कोनो ल बाजपायी के नसा ।

अरे ! नसा मा तो पूरा जहान हे
बोहात गंगा मा हाथ धोय बर
का हिनदू का मुसलमान हे ।
बहुजन हो या बनियाजन
सबो एक्के टेबल मा पियत हे ।

कौमी एकता ह आज
भट्ठीच मा तो जियत हे ।
मोला कबे त पाँच परगट
आज तक पिये नइ हों
लुका चोरी घलो
एकात कप तिरे नइ हों ।

ये सब परोसी मन के
अनुभव बतात हों
दाहरा के मछरी के भोरहा मा
बाढ़ी खात हों ।

गरीब दास आधा पाव एती आव चिल्लात हे
धनीराम बोतल धरे अँटियात हे ।
अँटियाबे ते कतिक अँटियाबे
जमाय के बेर तो जोरियाबे ।

अऊ सोनइया करा
अलग बेवस्था कहाँ हे ?
एके प्लेट में खाबे ।
का केहे ? अभी तो मोर कर नइ हे
बता न यार तोला का चइए ।

अभी तोर करा नइ हे
त परोसी कब काम आही
तोला आधा चाही
त वो पूरा टेकाही

तेंहा चिंता काबर करथस यार
मोर भारत देस महान हे
दवई बर कही नी सकवँ
फेर दारू बर पूरा हिनदुस्तान हे ।

तोला जतका पीना हे
दिल खोल के पी
कभू मोरो नइ जमही
त तहूँ देख लेबे जी ।

हम सबला ल मिल-जुल के खाना हे
तुमन तो जानतेच हो यार
आज जोड़-तोड़ के जमाना हे ।

भट्ठी मा भाइचारा के
सुग्घर नजारा दिखत हे ।
का मंतरी, का संतरी
एके पलेट मा चिखत हे ।

भरे गिलास ल देखके
सबो के मुहूँ पनछावत हे
थोरको कम होत हे
त अपन-अपन ले टेकावत हे ।

नसा के ए दू बूंद हा
कतका आँखी ल मुंदही
परगती लहुलुहान होही
मानवता ला रऊँदही ।

पद, यउवन अऊ धन के नसा ले
देस कब उबरही
गाँधी बबा के सपना के भारत के
भेस कब सँवरही ।

पुष्कर सिंह ‘राज’

गाँधी ल बिजरावत हे ।...

एती ओती चारों कोती
भुँकरत मेछरावत हे
हमर गँवई के हरहा गोल्लर
किंजर-किंजर के खावत हे ।

जेखरे लउठी भँइस ओखरे
अइसन आज जमाना हे
भाई-भतिजावाद चलत हे
ग्राम-सुराज बहाना हे ।
पंचायती राज के कुरसी में बइठे
गाँधी ल बिजरावत हे ।...

पुष्कर सिंह ‘राज’

सागवाली

कहूँ ते कबे -
चाँद जइसे मुखड़े पे,
बिंदिया सितारा ।
त ओला तो नीं आय,
फिलमी पहाड़ा ॥

ओ तो बस-
खेखसी, बरबट्टी,
रमकलिया ला जानथे ।
इहीच ला अपन जिनगी के,
सब कुछ मानथे ॥

त कइसे कबे त बात बनही-
हेलन ला घलो हेमा कहिदे,
देख वो कइसे मुसकाही ।
ओखर रंगरूप के बने बरनन कर,
तोर बात बन जाही ॥

‘‘खेखसी कस आँखी हे तोर
बंगाला कस गाल ।
तरोई जइसे हाँत हावय
बरबट्टी कस लंबा बाल ।

सेमीनार कस ऊँचाई तोर
बोली मिरचा कस गोई ।
खीरा बीजा कस दाँत हावय
तोर खोपा रखिया लोई ।

लफरहा कोर के लुगरा में,
पोलिका फुग्गा बाहीं ।
ऊँचहा बानी के पनही देख,
श्रीदेवी घलो लजाही ।

कुंदरू कस तोर ओंठ मा लाली,
दरमी जइसे दमके ।
तोर खपसूरती देख अँखफुट्टा मनके,
पाँचों पसली चमके ।

कलिंदर चानी अस रूप राखके,
तँय बेचत हस भाजी ।
ये पसरा छोड़ मोर संग रहे बर,
हो जाना गोई राजी ।’’

असतिन के साँप

येती आरक्छन के आगी
वोती बेरोजगारी के ताव
बचाना हे देस ला, त
राँड़ अऊसाँड़ से बचाव ।
आटो स्पेसलिस्ट राघवन हे
तेलगी स्टाम्प घोटाला हे
बोफोर्स के बाते ल छोड़
बड़े-बड़े के मुहूँ काला हे ।
जन परतिनिधि हरे
फेर जनता के बात उठाय के
पइसा खात हे
अब तो एक ठन मुहिम लान देव ।
अइसन नेता ला
फॉंसी मा टॉंग देव ।
अऊ दुनिया ल बताव
हमर महतारी तरफ
आँखी जे उठाही
हिन्दुस्तानी उखर टेंटवा ला
अइसने दबाही ।
घर में खाय बर नहीं 
नेतागिरी के साध करत हे
गाँव बोहावत हे
रयपुर दिल्ली के बात करत हे ।
निरासरित पेनसन ला
सरपंच सचिव खात हे
पंचायत मंतरी परेवा उड़ात हे ।
अऊ काहत हे-
सान्ति चाहिए त हमर रद्दा मा आ
सबो तो खात हे यार
चुप्पे तहूँ खा ।
आम जनता ह मरत हे
सरकस के सेर हा कभू
रिंग मासटर ला चेचकारे हे ?
आज जिहाँ दंगा करात हे
काली उहाँ राहत पहुँचात हे
अइसे पसरे इँखर दुकान हे
बब्बर सेर के आगू मा कहूँ
मनखे के पहिचान हे ।
ये सब ल सोंच के लगथे
वोट देवई घलो जंजाल होगे
चुने तो रेहेन नेता दलाल होगे ।
का करन मजबूरी हे
वोटिंग तो घलो जरूरी हे
नीहीं ते आज गदहा के आगू में 
काँदी कोन डालथे
असतिन के साँप कोन पालथे ।...

सबो डहर घोटाला हे

भीतरी मा दारु बेचाय
बाहिर धरमसाला हे
काला-काला देखबे बाबू !
सबो डहर घोटाला हे ।...

मेहनत करइया भूख मरे
हरामखोर मन राज करे ।
जनता ल लूटइया मन के
गर मा लटकत माला हे ।...

काय अलकरहा बात होगे
लोकतंत्र अब मजाक होगे
काली तक के चोर डाँकू
आज हमर रखवाला हे ।...

हाबय पोचई फेर दिखथे रोंट्ठे
नाम बड़े हे दरसन छोटे
सच्चई के अयनक मा देखबे त
बड़े-बड़े के मुहूँ काला हे ।...

कागज मा योजना बनात हे
कागजेच मा योजना चलात हे
संतरी से लेके मंतरी तक
परसेंट के बोलबाला हे ।...

अजगर मन भोगावत हे

अजगर मन भोगावत हे 
छत्तीसगड़ के करमचारी
न संसारी न बरम्हचारी
बीच मझधार मा लटकत हे 

पक्का कोनों जनम के
कुकरमी होही
तभे ये कंस के राज में
भटकत हे ।

येला निकाल, वोला निकाल
निकलई-निकलई मा
करमचारी के पोटा सुखागे
झटका के बाते ल छोंड़
इँहा तो तनखा घलो नंदागे । 

जेखर आघू जर, न पीछू पीपर
अइसन करमचारी ल दंदरावत हे
कमइया मन लाँघन मरे
अजगर मन भोगावत हे ।

इँहा के बरदिहा
अड़बड़ जिपरहा
रहि-रहि के लार चुहत हे
दुहानू त दुहानू
ये तो बकठी ल घलो दुहत हे ।

त का होइस
एकेच बार तोय कतका निचोबे
एक दिन हमरो पारी आही
तब तँय मुड़ धर के रोबे ।

हमर सुनइय्या कोन हे

पी. डबलू. डी. के बोर्ड सनान हे
रोड ल देखबे त गिट्टी खदान हे ।
नाम हाइवे ! काम पयडगरी के करथे
डोकरा-ढाकरा के चलना मना हे
कल के मरइया आजे मरथे ।
छत्तीसग़ड़ के सीमा मा बोर्ड धँसाय हे
जाके पढ़ न यार साफ-साफ लिखाय हे-
सावधान !
आँखी ल उघार के आबे
ये छत्तीसग़ड़ के सड़क ए
येती कहाँ आवत हस
ये डहर तो नरक हे ।
सरकारी इसकुल के मासटर हा
अपन इसकुल के अउकात ला जानथे
तेखरे सेती त अपन लइका ला
सरसती सिसु मंदिर मा लानथे
एक ला मा एक ला मौसी
ये कइसन तरीका हे
साक्छरता चलाना हे
टीका लगाना हे
सब गुरजी के ठेका हे ?
बाँकी करमचारी तनखा सन झटका
गोंहगों ले धुनत हे
गुरजी बिचारा लइका पढ़ाके
छेरी-पठरु गिनत हे ।
लइकाच ला पढ़वाव
नइते छेरी-पठरू गिनवाव
दूनों कराहू त तो
सिक्छा के हाल बेहाल हे
कुछु कही दिही मासटर
त हो जही टरान्सफर
नेतागिरी तो घलो जी के जंजाल हे ।
सिक्छा बिभाग बर सरकार के
रही अइसने चाल हा
सरकारी इसकुल बचे नीहीं
लगीच जही ताला ।
सरकारी असपताल
मजबूरीच मा मरीज जाथे
त मरीच के आथे ।
काबर !
इहाँ बर आय दवई हा तो
मेडकल मा बेंचाथे ।
आरक्छन के डाकटर
काय इलाज करही
गोड़ ल देखाबे त
बाहाँ ल धरही ।
कोनों ल कुछु आते होही
त सरकारी असपताल मा
काबर दिमाग खपाही
अपन घर मा बलाके
पइसा नीं कमाही ।
हर तरफ हे भस्टाचारी
लबरा के राज मा
सच्चई मउन हे
बतावन त बतावन काला
इहाँ हमर सुनइय्या कोन हे ?

कबाड़ कस जवानी हे

बचपन टीना-टप्पर हे
कबाड़ कस जवानी हे
बीता भर पेट के
मूड़ भर कहानी हे ॥

बताव बँगला गाड़ी के
हमला का बानी हे ।
गाँधी के लँगोटी हे
हाँत भर के छानी हे ॥

उँखर बर छत्तीसगड़
खइ अऊखजानी हे ।
हमर जिहाँ रोजी-रोटी
उही राजधानी हे ॥

जरे हमर किसमत भइया
जरे जिनगानी हे ।
थारी मा उँखर दूद-भात
आँखी मा हमर पानी हे ॥

कोन कथे सुराज हे
सुघ्घर जिनगानी हे ।
पीरा के पहाड़ मा
भटकत परानी हे ॥


चुनाव-चालीसा

जगर-बगर देखत हे
मुसुर-मुसुर हाँसत हे
एकेच बार अऊ भइया रे
हाँत जोड़े काहत हे ।

सियान मन सहीं कथे-
घुरवा के दिन बहुरथे ।
चुनाव के समे का परगे
पुदगू के घलो भाव बढ़गे ।

पाँच साल ले तुम कूद-कूद कमाहू
हमला सुक्खा ठेंगवा देखाहू ।
हमूँ देखबो काखर करा जाहू
हमर मदद बिना कतका वोट पाहू ।

अतका सुनके नेता के जेब ले
रुपया अऊ बोतल निकलत हे
पुदगू के कतिक सइत्ता
देखके तुरत फिसलत हे ।

देखव आज के राजनीति
पइसा चुनाव जितावत हे
राजा पलत हे पाल्हर इहाँ
परजा मन सोंटावत हे ।

बिसमता के दिवाल उंडा के
कब गूँजही गाँधी के नारा-
‘रामराज सा प्यारा भइया
ग्राम सुराज हमारा ।’

शनिवार, 9 जून 2012

सरपंच-पति के पीरा

लंदर-फंदर करके
तोला सरपंच बनाय हँव
फेर अब मोला लागथे
अपने गोड़ मा टंगिया चलाय हँव ।
जब ले तँय सरपंच बने
का-का करत हस
मोर बर पॉंच मिनट
वोला पॉंच घंटा ले धरत हस ।
मँय इहॉं बेचैन हँव
ते ओखर चैन बर तेल लगावत हस ।
मोर बर समे नइ हे
वोला धर के मटकावत हस ।
मोर जेब ले निकलत हे
ओमें जा के भरावत हे ।
मोला देखबे त हाड़ा के हाड़ा
ये घोसघोस ले मोटावत हे ।
ये सब बात चलत हे
त मोला सक्की झन मानो ।
हमर दुनों के बने जमथे
फेर बात ओखरे आथे
त हमर बीच में ठनथे ।
मोर नराजगी वाजिब हे भई
ये ला सब कुछ मानेंव
येखर बिन सुन्ना घर-संसार हे
ये परबुधनिन ल तो देख
ये ला तो बेग से पियॉंर हे ।
जब ले एला धरे हे
मोला अड़बड़ चमकावत हे ।
मोला खाना परसे ल छोड़के
अपने जूठा ल मँजवावत हे ।
छोड़ बाई ये पँचसलिया भरम ल
मत समे बेकार कर ।
बने मनखे के जनम धरे हस
आना.., मनखे ले पियॉंर कर ।

पुष्कर सिंह ‘राज

मंगलवार, 22 मई 2012

मोबइल-महिमा

एक जघा अइसने
रमायन होवत रहय
परसंग मा सीता ढेंक-ढेंक के
रोवत रहय ।
परबुद्ध टीकाकार
हॉंत मटकात चिल्लावत रहय,
सीता हरन के घटना ल
सुग्घर ढंग ले बतावत रहय ।
सुन के मँय गुनेंव-
सीता हरन के घटना कहूँ
मोबइल जुग मा हो जातिस,
त असोक बाटिका मा
सीता ल हनुमान
मुंदरी के जघा मोबइल धरातिस ।
मोबइल ल चिन के
सीता के मुहूँ हरियातिस,
वो अपन दुख ल
राम ल बतातिस-
हलो राम !
मँय सीता गोठियावत हँव
हरन मोर कइसे होइस
डिटेल मा बतावत हों
राम कथे-
डिटेल मा नहीं
सार्ट मा बताना हे
रिचार्ज तो मोला कराना हे |
सीता कथे-
सुन्ना कुरिया देखके
रावन हबक ले अइस हे
लाल-लाल, बड़े-बड़े
आँखी ल देखाइस हे ।
कर्रेंवॉं मेछा देखके
बुध मोर पतरागे
दिन दहाड़े राम
मोला अँधरौटी छागे ।
उड़नखटोला मा
मोला ले जइस हे
असोक बाटिका मा
लेग के बइठइस हे
ते बेरा ले आज तक
बाट तोर जोहत हौं
सुरता करके राम
रात-दिन रोवत हौं |
झटले आजा राम
मोला दुख ले उबार ले
अतियाचारी रावन ला
जान ले मार दे
राम कथे-
सीता ! मँय झटकन आत हों ।
फेर थोरकिन पता लगाके
रावन के नम्बर बता तो ।
तिरजटा ला पुछके
सीता नमबर बतात हे
त रिसे-रिस में राम
रावन ला फोन लगात हे ।
हलो रावन..!
मँय राम गोठियावत हँव
सीता ला लहुटा दे
सिरयसली बतावत हँव
कहूँ नी मानस
त मोला लंका आन दे
फेर झन कबे काबर
बंगाला अस सान दे |
आहूँ ते तोर दसो मुड़ी ला
धर के निचोहूँ |
जम्मो लहू ल तोर
लंका में रुतोहूँ ।
जरा सोंचव भइया
वो समे कहूँ रतिस मोबइल
त रमायन में
रस कहॉं झलकतिस
राम-रावन लड़ई घलोक
साटकट निपटतिस ।
ये सबो हमर बिचार हरे
कल्पना के गागर ए
रमायन तो गंगा ए भइया
रमायन भव-सागर ए ।
रमायन ल समझगे
वो हा इंसान ए
जेनला समझ नइ अइस
वोखर बर भगवान हे ।
एती-ओती करके हम
जिनगी पहावत हन
हीरा अस देंह ला
बिरथा गँवावत हन
आओ जम्मो मिलके
हम राम-रस पावन
ये मानुस तन ला भइया
सफल बनावन ।

-पुष्कर सिंह ‘राज’





कवि सम्मेलन

एक जघा अइसने
कवि सम्मेलन होत रथे
संचालन करत कवि कथे-
सुनइय्या मन ले बिनती हे
थोक चेतलगहा गुनो
कवि सम्मेलन सुरू होत हे
सांति के साथ सुनो ।
अतका सुनके
एक झन बाई के मती छरियागे
वो हा रहय सांति के दाई
झगरी बाई आगू मा आगे ।
काखर मा दम हे
हमर रहत ले
सांति के साथ सुनही
ओखर ददा ल पता चलही
त धोबी अस नी धुनही ।
कवि थोरकन सोंच के कथे-
माता सारदा के हम
पइयाँ परत हन
सरसती बंदना के साथ
कार्यकरम सुरू करत हन
अतका सुन के सारदा
रिसेरिस मा झुपत हे,
तभिन सांति-सांति कहत रेहेव
अब मोर बेटी
सरसती, बंदना दिखत हे ।
अरथ के अनरथ देख
कवि कउवाय रथे
खिसियाके कथे-
अच्छा त भई
सब जोर के ताली बजा देव
अउ आरती ला मारो गोली
परेम के साथ कविता के मँजा लेव ।
अतका मा
आरती के दाई भारती आगे
ओखर देहें मा तो
मानो चण्डी समागे ।
अरे में देखहूँ
आरती ल छो़डके
परेम कइसे कविता संग जाही
ओखर बाबू हा जानही
त बारा नी बजाही ।
ये सबो ला सुनके
कवि मन एती-ओती झकत हे
वोला देख के सुनइय्या मन
पेट धर-धर के झाँकत हे ।

-पुष्कर सिंह ‘राज’

सोमवार, 11 जुलाई 2011

पाहुन....

पाहुन ! कब आआगे ?
तकती प्रतिपल पंथ
सुधि के बीज बोती
मिलन की 
स्वपनिल पवन
से उसे सहलाती
कीट विरह के 
कुतरते दिन-दिन
उसे कब सरसाओगे । 
पाहुन ! कब आआगे ?

वो बहार वो समाँ
मरूस्थल की आँधी हुई ।
यादें सुखद क्षणों की
उजाड़ अमराई हुई
प्यार की छाँह 
सिमटते छिन-छिन
उसे कब बरसाओगे । 
पाहुन ! कब आआगे ?

ये बिछुआ ऊँगली पर,
बोझ हुआ जाता है ।
ये बिंदिया माथे पर
दोष लगा जाता है ।
हृदय-घट (दरकता) 
चटकता तुम बिन
उसे कब बनाओगे ।
पाहुन ! कब आआगे ?


रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर

मैं कौन हूँ ?

मैं कौन हूँ 
मुझे इक पहचान दीजिए ।
जी सकूँ हँस के
ऐसा अरमान दीजिए ॥

चला जा रहा हूँ 
बस मंजिल-ए-बिना ।
साहिल बन कोई
इक फरमान कीजिए ॥

फ़कत बाजार है
ये दुनिया झूठ-मूठ की ।
खत्म कर सकूँ ये तिलस्म
तीर कमान दीजिए ॥

फँस के रह गया हूँ मैं
दरिया में इस कदर ।
जिंदगी के भँवर से
अब निकाल दीजिए ॥

सिहर चला हूँ मैं
इन ग़मों की मार से ।
एक क़तरा सुकुन का
श्रीमान दीजिए ॥

करीब आ के भी
रूठ जाती है प्यारी खुशियाँ ।
रहे सदा साथ
ऐसा मेहमान दीजिए ॥

  
रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर

मैं आदमी हूँ....

मैं आदमी हूँ
इसलिए गुनाह करता हूँ ।
वफ़ा करता हूँ
और बेवजह मरता हूँ ।। 
हादसों का मारा
बेदर्द बेचारा हूँ । 
किसी मरीज का दर्द
पूछने से डरता हूँ ॥ 
दुनिया मुझे लाख
भला बुरा कहती रहे । 
दुश्मनों तक को
मैं अपना ही कहता हूँ ॥ 
मयकदे में है यहाँ
बेहद पीने पिलाने वाले । 
गम को भी पीकर
खुशी में भी खूब रंगता हूँ ॥ 
छींटा कसते हैं लोग
यहाँ मेरे चाहने वाले । 
मोम का होकर
पत्थरों को सुन्दर गढ़ता हूँ ॥ 
आदत नही कि माँगू
हरदम फैला झोली । 
कैसी है खुदा की फितरत
इसे गुनता हूँ ॥ 
थोड़ी सी मुस्कान पर
हुआ बाग-बाग आज । 
गमजदा को खुश देखकर
बादलों सा झरता हूँ ॥ 
या रब उन्हे मेरी
सारी खुशियाँ दे दे । 
एक अज़ीज तेरे 
बार-बार पाँव पड़ता हूँ ॥ 

रमेश यादव 
ग्राम-पेण्ड्री, पोष्ट-कलंगपु

आदमी

आँगन में अपने
काँटे बो रहा है आदमी ।
लाश मानवता की
काँधे ढो रहा है आदमी ॥

आँट दूसरे की बैठकर
शेखी बघारता ।
अपनी बात पे
धार-धार रो रहा है आदमी ॥

साख अपनी बिठाने को
घूमता गली-गली ।
घर अन्दर पे तार-तार
हो रहा है आदमी ॥

बैठ धरती पे
मंगल ग्रह की सैर कर रहा ।
अपने दिल पे
नहीं झाँक पा रहा है आदमी ॥

भारत और पाक के,
सभी अवरोध टल रहे ।
अपने मुल्क में नापाक
हो रहा है आदमी ॥

कब्जों की अवैध बाढ़
गाँव-गाँव चल पड़ी ।
बहती गंगा में मुँह-हाथ
धो रहा है आदमी ॥

ऐतबार सहसा मत करो
पड़ोस वालों पर ।
पलटते ही झट कटार
घोंप रहा है आदमी ॥

रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर


भोर-बाला

नीले कैनवास पर अम्बर के
तुलिका से सूरज की
प्रकृति ने पोत दिया 
सुनहला रंग ।
चार-चाँद लगाए पंछियों ने
निकल चले नीड़ों से-
तलाश में जुटाने साधन 
क्षुधा-तृप्ति के ।
लिया चुंबन सांझ ने 
निशि का मुंदे प्रहर की पलकें
निस्पंद सी
पड़ा दौर मदहोशी का ।
रात के प्रहर में चौथे
सितारे शिथिल नृत्य से
गायब था
वह प्यारा चाँद ।
भर गई सम्मोहन प्रकृति में,
खुल गए जूड़े,
मन्द समीर के,
खिलखिला पड़ी भोर-बाला 


रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!