सोमवार, 11 जुलाई 2011

आदमी

आँगन में अपने
काँटे बो रहा है आदमी ।
लाश मानवता की
काँधे ढो रहा है आदमी ॥

आँट दूसरे की बैठकर
शेखी बघारता ।
अपनी बात पे
धार-धार रो रहा है आदमी ॥

साख अपनी बिठाने को
घूमता गली-गली ।
घर अन्दर पे तार-तार
हो रहा है आदमी ॥

बैठ धरती पे
मंगल ग्रह की सैर कर रहा ।
अपने दिल पे
नहीं झाँक पा रहा है आदमी ॥

भारत और पाक के,
सभी अवरोध टल रहे ।
अपने मुल्क में नापाक
हो रहा है आदमी ॥

कब्जों की अवैध बाढ़
गाँव-गाँव चल पड़ी ।
बहती गंगा में मुँह-हाथ
धो रहा है आदमी ॥

ऐतबार सहसा मत करो
पड़ोस वालों पर ।
पलटते ही झट कटार
घोंप रहा है आदमी ॥

रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर


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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!