सोमवार, 11 जुलाई 2011

भोर-बाला

नीले कैनवास पर अम्बर के
तुलिका से सूरज की
प्रकृति ने पोत दिया 
सुनहला रंग ।
चार-चाँद लगाए पंछियों ने
निकल चले नीड़ों से-
तलाश में जुटाने साधन 
क्षुधा-तृप्ति के ।
लिया चुंबन सांझ ने 
निशि का मुंदे प्रहर की पलकें
निस्पंद सी
पड़ा दौर मदहोशी का ।
रात के प्रहर में चौथे
सितारे शिथिल नृत्य से
गायब था
वह प्यारा चाँद ।
भर गई सम्मोहन प्रकृति में,
खुल गए जूड़े,
मन्द समीर के,
खिलखिला पड़ी भोर-बाला 


रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!