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रविवार, 10 जनवरी 2016

अब्बड़ सुग्घर हमर गाँव

मय ह नानकन रेहेंव तब के बात आय। आघु हमर गाँव म नान-नान माटी के बने छिटका कुरिया, कुँदरा बरोबर डारा-पाना, राहेर, बेसरम के काँड़ी म छबाय राहय अऊ एक-दूसर मनखे मन के घर कुरिया ह थोरकिन दुरिहा-दुरिहा म राहय। गाँव गली ह हेल्ला-हेल्ला कस दिखय। जब बरसात के पानी, बादर, हवा, बँड़ोरा आवय त कतको के घर कुरिया मन ओदर जाय, चुहई के मारे खड़ा होय के जगा नई राहत रहिच। हमर दाई-ददा मन बारों महिना घर-कुरिया ल मोची कस चप्पल-जूता बरोबर तुनत-तानत राहय। गिने-चुने कोनो मंडल गौंटिया राहय तिकर मन के घर ह बड़े-बड़े मुड़का धारन वाले राहय। हमर गाँव के दाई-माई मन रात-दिन, काम-बुता करके आवय ताहन अपन-
अपन घर कुरिया म खुसर जाए, काकरो मेर बने किसम के सुख-दुख गोठियाय बताय के फुरसत घलो नई मिलत रहिच। हमर गाँव म गुड़ी चउरा रमायन, रामलीला ग्राम पंचायत स्कूल, अस्पताल, आँगनबाड़ी, सिसु मंदिर काँही के साधन नई रहिच। हमर गाँव के दाई-दीदी, भाई-भईया मन आन गाँव म पाँच-छै कोस ल रंेगत पढ़े-लिखे बर जाय लटपट म चउथी-पाँचवी तक पढ़े-लिखे राहयं। कतको भाई-दाई मन आन गाँव म पढ़े-लिखे बर नई जान कहिके पढ़े-लिखे नई रहिच।
दूसर मन आन गाँव जाय बर सड़क नई बने रहिच फेर पैडगरी, भरर्री भाँठा ल नाहकत आय-जाय बरसात के दिन हमर गाँव मन म माड़ी भरके चिखला मन माते राहय। मच्छर, मेंचका, कीरा-मकोरा, मन कबड्डी खेलँय। दूसर म हमर गाँव म बने किसम के सुख-सुविधा के अँजोर घलो नई रहिच। बिजली-पानी के समसिया घलो राहय। ककरो घर बिजली नई लगे रहिच हमर गाँव म दू- तीन ठन मंडल गौटिया घर कुआँ राहय। हमर गाँव के दाई दीदी मन सुत-उठके बड़े बिहिनिया डोलची धरके कुआँ म पानी भरे जाय। डोलची म बड़ेक जान कुआँ के तरी के जात ले डोरी बाँधे राहय। आघु कुआँ मन म लोहा के गडगड़ी लगे राहय जउन ल चक्का काहय, डोलची के डोरी ल चक्का म लगा ओरमा दँय ताँहन डोलची ह गड़गड़-गड़गड़ कुआँ के तरी म जाके बुड़ जाय ताहन हमर दाई मन धीरे-धीरे ऊपर कोती खिंचय ताहन डोलची ल हाथ म धरके हँउला, बाँगा पानी भरँय। पानी भरई म एक जुअर घलो पहा जाय। पानी काँजी भर के काम बुता म जाय। जब हमर गाँव के दाई-माई मन ल बीमारी जुड़, सरदी, खांँसी, घाव-गांेदर होवय त गँवइहा दवाई ल खा-पी के अपन तन के पीरा ल मिटवा डरँय। गाँव में डागटर अस्पताल नई राहय। जब कोंनो ल जादा बीमारी आवय त दूसर गाँव जाय ले परय हमर गाँव के दाई-माई मन अड़बड़ दुख ल तापे हे। जबर कमईया गाँव के दाई-माई मन पथरा म पानी ओगराय म कमी नई करत रिहिस। कुछु जिनिस के मसीन नई रिहिस रात-दिन बाँह के भरोसा जिनगी ल सँजोवत राहय। काम बुता करके आतिस तहाँ धान ल ढेंकी म कुटँय कनकी ल जाँता म पिसय तब जेवन बनावय। फेर आज के जबाना देखते-देखत अइसन आगे त हमर गाँव, गली, खोर ह सरग बरोबर दिखे बर धरलिच। हमर गाँव के दाई-माई मन के खवई-पियई, पहिरई, ओढ़हई, रहई-बसई ह पुन्नी कस चंदा अँजोर होय बर धरलिस। हमर गाँव के गली-गली म तेल चुपरे कस सीमेंट के सड़क बनगे। चारों कोती चमके बर धरलिच। इसकूल, असपताल, गुड़ी, चउँरा, रामलीला रंगमंच, ग्राम पंचायत, आँगनबाड़ी, सिसु मंदिर, हाट चउँरा किसम-किसम के सुख-सुविधा हमर गाँव म मिलत हे। आज इसकूल खुले म कोनो भाई बहिनी मन पढ़े लिखे बर नई घुटत हें। जउन गरीब मनखे मन नई पढ़-लिख सकँय तिकर मन बर हमर देस के सरकार ह फोकट म पढ़हावत लिखावत हे। गरीब मन के सुख-सुविधा बर किसम-किसम के योजना फोकट म गरीब मन के बीमारी के इलाज बर स्मारट कारड जउन म फोकट म इलाज होवत हे असपताल लेगे बर 108 अबुलेंस जचकी वाले दाई बहिनी मन बर महतारी एक्सपरेस बेरोजगारी दूर करे बर रोजगारी गारंटी, वृद्धा पेंसन, अटल आवास, सौच-सौचालय घर-घर म नल जल योजना, बिजली के अँजोर खेती-बारी बर मोटर पंप कनेक्सन सस्ता म बिजली गाँव के गली-गली म कूड़ा-करकट, कचरा ल साफ-सुथरा करे खातिर स्वच्छता अभियान जीवन बीमा, बहिनी मन बर सइकिल इसकूल म दार-भात हरियर-हरियर साग-भाजी घलो इसकूल के लईका मन बर सुघ्घर योजना निकाले गेहे। गरीबी ल हटाय के खातिर कोनो भूख म झन राहय कइके दु रुपिया एक रुपिया किलो चाउर जेकर कोनो नइये तेन गरीब ल फोकट म चाउर, नून देवत हे। हमर गाँव के माटी के घर कुरिया-कुंदरा बरोबर राहय तउन मन ईटा-पथरा, सीमेंट म दिखे बर धरलिस। चारांे कोती फल-फूल हरियर रुख-राई मन ल मोह डरीस। आज हमर गाँव म गियान के अँजोर होय बर धरलिस। हमर गाँव म घर बइठे गरीबी ल दूर करे के खातिर सुख के सपना देखई या मन के सपना पूरा होवत हे। 

आज हमर गाँव सुग्घर दिखे म थोरको कमी नइये। 

हमर गाँव सुघर गाँव दिखे बर धरलिच आज। 
घर बइठे मिलत हाबय सुग्घर काम काज।।
आवव बइठजी जुड़ालव मोर मया के छाँव।
सुत-उठ बड़े बिहनिया छत्तिसगढ़ महतारी के परव पाँव।।

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नरेन्द्र वर्मा 
देशबंधु मड़ई अंक ले

अँकाल के पीरा

छत्तिसगढ़ ह अँकाल के पीरा झेलत हावय। कई जगह फसल नई होय हावय। एसो अँकाल घोसित करे के बाद राज्योत्सव ल एक दिन मनाय के घोसना करे गीस। एक दिन के राज्योत्सव म खरचा नई होईस का? एक दिन के ताम-झाम म घलो ओतके खरचा होथे। पेंडाल लगाना फेर निकालना। खरचा तो सिरिफ बिजली, पानी के बाढ़तिस। ये एक दिन भी काबर?
अलंकरन समारोह रखे गीस। छत्तिसगढ़ अकाल के मार ल झेलत हावय। हमर किसान बर अवइया बछर ह भुखमरी के रद्दा देखावत हावय। तब ये समारोह काबर? येमा खरचा नई होईस का? अलंकरण ल एक बछर बर रोके जा सकत रिहिस हे। 2-2 लाख रुपिया देय गीस तेन ल गरीब किसान बर राखे जतिस त बने होतिस। ये पइसा बाँटना जरूरी रहिस हे का? राजभासा ह साहित्यकार मन के सम्मान करिस तब कोनो राज म हजार-दू-हजार साहितकार ल साल-नरियर संग देय गीस अऊ कहूँ पइसा नइये कहिके नई देय गीस। नई देय के उदाहरन मेहा हावँव। तब आज ये पइसा काबर बाँटे गीस।
लोक कलाकार के अपमान होईस ये अलग। कार्यकरम बर छोटे मंच लोक कलाकार मनबर अऊ बड़े मंच बड़े कलाकार मन बर। लोक कलाकार ल छोटे समझे गीस। पानी बंटवाय के काम करे गीस। हमर छत्तिसगढिया साहित्यकार अऊ लोक कलाकार मन नाराज हावँय। बाजू म ‘जबर गोहार’ के धरना रहिस हे। भासा के लड़ई चलत हावय। लोक कलाकार, साहितकार जुरियाय रिहिन हें। कुछ मन देखे बर घलो इन्डोर स्टेडियम म गे रिहिन हें। जब देखे गीस के उँखर लोक कलाकार मन ल पानी पियाय बर कहे गे हावय। बहुत बेज्जती महसूस होइस। अतेक बड़ कार्यकरम म पानी पियाय बर नई रखे रिहिन का? येती तो पइसा बाँटत हावय, तामझाम म खरचा करत हावँय अऊ एक पानी बँटइया नी रख सकँय। आज जब सासन हर हमर लोक कलाकार के सम्मान नी करही त दूसर मन कइसे करही। हमर राज महकमा मन हमर संस्कृति करमी ल अपमानित करथे तभे तो छत्तिसगढ़ म दूसर राज के मनखे के भरमार हावय। ये मन कइसे सम्मान करहीं। येला अपनापन तो नी कहे जा सकय। अकाल के सुरता अब कोनो ल नई आवत हावय। महँगाई के मार झेलत राज एक बंद जगह म राज्योत्सव मना लीस। आम जनता जिहाँ पहुँच नी पइस। बीटीआई गराउंड रहितस त आम जनता घलो देख सकतिस।
एक नवंबर, सिक्छा बर छत्तिसगढ़ी माध्यम अऊ अलंकरण तिन विरोधाभास आयोजन होईस। एक नवंबर छत्तिसगढ़ स्थापना दिवस जिहाँ सासन अपन उन्नति देखावत हावय, ‘जबर गोहार’ म लोक कलाकार साहितकार अपन भासा बर लड़त हावँय। कामकाज के भासा तो होवय छत्तिसगढ़ी। प्राथमिक इसतर म माधियम तो बने छत्तिसगढ़ी। अऊ दूसर डाहर उही मेर छत्तिसगढि़या कलाकार के अपमान होवत हावय। छोटे मंच अऊ पानी पियावत हावँय। अँकाल के नाँव म रोके लाखों रुपिया अलंकरन म बाँटत हावँय। येला तो सी.एम. हाउस म कर देतिन तभो बने रहिस हे।
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सुधा वर्मा 
देशबंधु के मड़ई अंक ले

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

मुर्रा के लाड़ू

घातेच दिन के बात आय। ओ जमाना म आजकाल कस टीवी, सिनेमा कस ताम-झाम नइ रहिस। गाँव के सियान मन ह गाँव के बीच बइठ के आनी-बानी के कथा किस्सा सुनावँय। इही कहानी मन ल सुनके घर के ममादाई, ककादाई मन अपन-अपन नाती-नतरा ल कहानी सुना-सुना के मनावँय। लइका मन घला रात-रात जाग के मजा ले के अऊ-अऊ कहिके कहानी सुनँय। ओही जमाना के बात ये जब मँय छै-सात बरस के रहे होहूँ। हमन तीन भाई अऊ ममा के तीन झन लइका। ममादाई ले रोज साँझ होतिस तहाँले कहानी सुनाय बर पदोय लगतेन। ममादाई पहिली खा-पी लव फेर सुते के बेर कहानी सुनाहूँ कहिके मनावय। हमन मामी ल जल्दी खाय बर दे कहिके चिल्लात राहन। खातेन-पीतेन अऊ चुमुक ले खटिया म कथरी ओढ़ के बइठ जातेन अऊ ममादाई ल जल्दी आ कहिके गोहरातेन। ममादाई ल बरोबर खटिया-पिढ़िया नइ करन देत रहेन। तभो ले ममादाई अपन काम बूता ल करके खटिया म सूतत-सूतत कहानी सुनाय ल सुरु करय 

नवागढ़ के हाट-बजार म राजू अऊ ओखर संगी सत्तू दुनों झन लइका घूमत रहिन। आनी-बानी के समान बेंचावत राहय। कोनो मेर साग-भाजी, बंगाला गोल-गोल, मुरई लंबा-लंबा रोंठ रोंठ, गोलईंदा भाँटा...। कोनो मेर नवाँ-नवाँ कपड़ा अऊ का-का। ऐखर ले ओमन ल का करे बर रहे। ओमन ल थोड़े साग भाजी लेना रहिस। ओमन तो घूमत मजा लेत रहिन। खई खजाना खोजत रहिन। ये पसरा ले… ओ पसरा। 

मिठई के दुकान म सजे रहय जलेबी गोल-गोल, छँड़िया मिठई सफेद-सफेद पेंसिल असन, बतासा फोटका असन। दुनों लइका के मन ललचाय लगिस। राजू मेर एको पइसा नइ रहय। ओ का करतिस देखत भर रहय। सत्तू धरे रहय चार आना फेर ओखर मन का होइस काँही नइ लेइस। दुनों झन आगू बढ़गे। आगू म केंवटिन दाई मुर्रा, मुर्रा के लाड़ू अऊ गुलगुल भजिया धरे बईठे रहय। राजू कन्नखी देखय पूरा देख पारीहँव त मुहूँ म पानी आ जाही। सत्तू ह गुरेर के देखय येला खाँव के ओला। फेर सत्तू कुछु नइ लेइस। चल यार घर जाबो कहिके वोहा हाट ले रेंगे लगिस। दुनों झन पसरा छोंड़ घर के रद्दा हो लिन। रद्दा म सत्तू के सइतानी मन म कुछु बिचार अइस ओ हर राजू ले कहिस चल तँय घर चल मँय आवत हँव। ओ हर ऐती ओती करत फेर बाजार म आगे। राजू ल कुछ नइ सुझिस का करँव का नइ करँव फेर सोंचिस चल बाजार कोती एक घाँव अऊ घूम के आ जाँव पाछू घर जाहूँ। 

राजू धीरे-धीरे हाट म आगे। देख के ओखर आँखी मुँदागे। सत्तू ह कागज म सुघ्घर मुर्रा के लाड़ू धरे-धरे कुरूम-कुरूम खावत रहय। राजू के बालमन म विचार के ज्वार-भाटा उछले लगिस। 
मोर संगी...ओखर पइसा...का करँव...। 
टुकुर-टुकुर देखय अऊ सोंचय। मुहूँ डहर ले लार चुचवात रहय। अब्बड़ धीरज धरे रहय फेर सहावत नइ रहय। कोकड़ा जइसे मछरी ल देखत रहिथे ओइसने। ओइसनेच झपटा मारिस। मुर्रा के लाड़ू ल धरिस अऊ फुर्र...। 
सत्तू कुछु समझे नइ पाइस का होगे। हाथ म लाड़ू नइ पाके रोय लगिस। भागत राजू के कुरता ल देख के चिन्ह डारिस। राजू लाड़ू लूट के भाग गे। सत्तू रोवत-रोवत आवत राहय। ओतकेच बेर ओखर ममा चैतराम ओती ले आवत रहिस। भाँचा ल रोवत देख अकबका गे। 
- का होगे भाँचा? काबर रोवत हस। 
- का होगे गा? 
सत्तू सुसकत-सुसकत बताइस ओखर मुर्रा के लाड़ू 
राजू ह... 
धर के भगा गे...। 
काबर गा? 
सुसकत-सुसकत सत्तू जम्मो बात ल बताइस। 
-ओ हो… भाँचा तोरो गलती नइये। तोला अइसन नइ करना रहिस। चल तोर बर अऊ मुर्रा के लाड़ू ले देथँव। सत्तू फेर कागज म सुघ्घर मुर्रा के लाड़ू धरे कुरूम-कुरूम खाये लगिस। 

ओती बर राजू ह मुर्रा के लाड़ू धरे खुस होगे अऊ खाये बर मुहूँ म गुप ले डारिस। जइसने मुहूँ म लाड़ू के गुड़ ह जनाइस ओला अपन दाई के बात के सुरता आगे- 
-बेटा हमन गरीब आन। हमर ईमान ह सबले बड़े पूँजी आय। हमला अपन मेहनत के ही खाना चाही। दूसर के सोन कस चीज ल घला धुर्रा कस समझना चाही। 
राजू के मुहूँ म लाड़ू धरायेच रहिगे न वो खा सकत रहिस न उगले सकत रहिस। मुहूँ ह कहत हे, हमला का जी खाये ले मतलब, स्वाद ले मतलब। बुद्धि काहत हे, नहीं दाई बने कहिथे। दूसर के चीज ला ओखर दे बिना नइ खाना चाही। मन अऊ बुद्धि म उठा-पटक होय लगिस। मन जीततिस त लाड़ू कुरूम ले बाजय। बुद्धि जीततिस चुप साधय। अइसने चलत रहिस लाड़ू अधियागे। 
बुद्धि मारिस पलटी अऊ मन ल दबोच लिस। मुहूँ ले मुर्रा लाड़ू फेंकागे। राजू दृढ़ मन ले कसम खाय लगिस-‘‘आज के बाद अइसन कभू नइ करँव अपन कमई के ल खाहूँ, दूसर के सोन कस जिनिस ल धुर्रा माटी कस मानहूँ, मँय अब्बड़ पढ़िहँव अऊ बड़का साहेब बनिहँव।’’ 

सत्तू ल मुर्रा के लाड़ू ल वापिस करे बर ठान के राजू ह हाट के रद्दा म आगे। सत्तू सुघ्घर ममा के दे लाड़ू ल खात रहय। राजू अपन दुनों हाथ ल माफी माँगे के मुदरा म सत्तू कोती लमा देइस। अब तक सत्तू ल घला अपन कपटी स्वभाव के भान होगे रहिस। वो हर हँस के राजू के हाथ ले मुर्रा के लाड़ू ले के बने मया लगा के एक ठन मुर्रा के लाड़ू राजू के मुहूँ म डारिस। दुनो संगी अब हँस-हँस के संगे-संग मुर्रा के लाड़ू खाय लगिन कुरूम-कुरूम। 

कहानी सिरावत-सिरावत ममादाई ऊँघावत रहय। मँय पूछ परेंव फेर राजू के का होइस? दुनों झन बने रहिन नहीं। ममादाई कहिस बेटा, ‘मन के जीते जीत हे, मन के हारे हार।’ जऊन मन बुद्धि ले सख्त होहीं तेन सफल होबे करही। राजू आज कलेक्टर साहेब हे। तहुँमन मन लगा के सुघ्घर पढ़हू। चलो अभी सुत जावब। 
महूँ राजू कस बनहँव सोंचत-सोंचत कतका बेरा नींद परिस। बिहनिया होइस नइ जानेंव। 
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-रमेश कुमार सिंह चौहान मिश्रापारा, नवागढ.जिला-बेमेतरा (छग) 
देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित 

पंचइत म एसपी राज

हमर देस ल नारी परधान देस केहे गे हे। नारी के महिमा घलो चारों खुट ले सुने अऊ देखे बर मिलथे। सरकार घलो नवाँ-नवाँ नियम अऊ कानून म नारी परधान देस कहि-कहि के सहर त सहर का गाँव का कसबा न बारी लगय न बखरी, न बहरा लागे न डोली चारों कोती नारी राज घर म रंधनी खोली सुन्ना परगे, कपड़ा दुकान म आय बर बिहाव म सरी दुकान म लुगरा मन रखायच हे पेंट अऊ कमीज के खरीदइया म घलो नारी मन के प्रधानता देखे बर मिलत हे। ऊपर ले खाल्हे अऊ खाल्हे ले ऊपर कोती पंचइत राज ले दिल्ली तक एके ठन सोर नारी अइसन नारी वइसन। मुड़ी म पागा नारी के होही त मरद के मुड़ी म का होही। मरद मन संसो म परगे, के हमर सरी जिनीस ल अऊरत मन नंगा डरिस त हमरे का ठिकाना। चारों मुड़ा मरद ल अपन कमीज कुरथा ल बँचाय बर भागत देख के मोरो मन म डर हमागे के अइसन का बात होगे के सरी मरद परानी संसो म पर गेहे। दू-चार झन मनखे जेमन भागत राहँय तेला बला के पूछेंव के-‘का होगे... काबर भागत हो बबा..!’ 

मोर भाखा ल सुन के चारों सियान हँफरत-हँफरत ठहिर के कहिथे-‘हमर गाँव के अब नइये ठिकाना बाबू..!’ अतका काहत सियान मन उहाँ ले भाग गिस। सियान मन ल हँफरत देख के महूँ अबाक रहिगेंव के अतेक बड़का का बात होगे गाँव म? सियान मन ल तको परान बँचा के भागे ल धरलिस। बुधेस नाँव के सियान कहिथे-‘गाँव म चारों कोती एके ठन गोठ हे बाबू के गाँव-गाँव म नवाँ एस.पी. आगे इही डर के मारे हँफरत, भागत अऊ गिरत-हपटत आवत हन। 

मय मन म सोंचेव-के एस.पी. त जिला भर के पुलिस मन के साहब होथे। पंचइत म कहाँ आही। इही सोंच के मँय अचंभा म परगेंव। थोरिक बेर त मोला कहीं कुछु नइ जनइस-के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. कइसे आही! ओतकी बेर एक झिन पल्टीन नाँव के माई लोगिन लकर-धकर अपन दू झिन लईका हुरहा-धुरहा पावत काहत राहय-‘जउँहर होगे दाई..! नवाँ सरपंच का बनायेन कल्लई होगे। चलव रे मोर लईका मन। गाँव म नवाँ एस.पी. आगे कहिथें करम छॉंड़ दिस दाई।’ एक ठिन लईका ल पाय रिहिस दुसरइया लईका पावत रिहिस। पहिली पाय रिहिस ते हुरहा गिरगे। पल्टीन उही मेर बईठ के रोय ल धरलिस। 

दूसर कोती ले सगोबती, रमसीला आथे अऊ पल्टीन ल पूछथे-‘काबर रोवत हस पल्टीन, काबर तँय रोवत हस या..? का बात होगे के तँय गोहार पार के रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘काला बतावँव गो... बड़ करलई होगे।’ 
सगोबती कहिथे- ‘का बात के करलई होगे या..? कुछु बताबे त हमुमन ल समझ म आही।’ 
रमसीला कहिथे- ‘रोते रहिबे का? हमर देस नारी परधान देस आय (रमसीला पल्टीन के आँसू ल अपन अछरा म पोंछत कहिथे) नी रोय बहिनी चुप हो जा। थोरकिन रूक के हरहिंछा बता के का बात होगे? तँय काबर रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘गाँव भर म गोहार परत हे, के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। जउँहर भईगे दाई जउँहर भईगे। हमर लईकामन के नइ ये अब ठिकाना नवाँ एस.पी. हमर लईका मन ल मार डरही। गाँव के जगेसर कोतवाल हाँका पारत उही मेर आके हाँका पारथे- के गाँव के गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउँक्का बाद म गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउका बाद म गराम सभा होही अऊ पंचइत म माँदी खवाही। कोनो मन अपन घर म चूल्हा झन बारहू होऽऽऽऽ... हाँका पारत कोतवाल घला अपन रद्दा चल दिस। 
पल्टीन, रमसीला अऊ सगोतीन कोतवाल के हाँका ल सुन के गोहार पार के रोय ल धरलिस। पंचइत कोती ले गाँव के सियान गोठियात मंद के निसा म झुमरत तीनों झिन तिर आके पूछथें- 
गाँव के कोदू मंडल कहिथे- चुप हो जाओ नोनी का बात होगे तेला बतावव? बोलते-बोलत कोदू मंडल मंद के निसा म उही मेर गिरगे। 
उखर संग म आय गाँव के किसनहा सुखराम बबा ऊपर घलो मंद के भूत झपाय राहय। मंद के निसा म सुखराम बबा कहिथे-कुछु नी होय गा टूरी मन चुनई के मंद के निसा म रोवत हे। सबो झिन ल बिलहोरत हे बुजेरी के मन ह काहत सुखराम बबा अपन संगवारी संग चल दिस। कइसनों कर के रतिहा के चार पहर बितिस। 

पहट के गाँव के जम्मो लईका, सियान, माईंलोगन मन डफरा, डमऊ, मंजीरा, गोला, निसान संग जुलूस म आगू-आगू मुहूँ म रंग गुलाल बोथ्थाय झुमर-झुमर के नाँचत नवा सरपंच संग जम्मो पंच मन रंग म बुड़े अपन-अपन मरद संग पंचइत कोती जावत हे। 
मँय उही मेरा खड़े-खड़े देखत हँव के-सरपंच इहाँ के मरद के नरी म सरपंच के नरी ले जादा माला ओरमत हे। ओसने पंच मन के मरद के नरी के हाल हे। उँखर मरद मन अँटिया के रेंगत राहय मानो उही मन पंचइत के पंच सरपंच बने हे तइसे। देखत-देखत गाँव के जम्मो झिन पंचइत म सकलागे। पंचइत के आगू गाँधी पाँवरा मेर पंच-सरपंच ल किरिया खवाय बर मंच बने हे। पंच-सरंपच मन अपन हाँत ल आगू कोती लमाके किरिया खा के कहिथें, के गाँव बिकास के गंगा बोहाबो। 
ओतकिच बेर माईंलोगन मन के भीड़ ले गोहार परे ल धरलिस। पोंगा म कतको घॉंव चुप रेहेबर कहि डरिस फेर कोनो काखरो कहाँ सुनत हें। देखते-देखत माई लोगन के झगरा मरद मन डाहर मात गे। सुरू होगे पटकिक के... पटका। दोंहे.... दोंहे, भदा-भद जतका मुहूँ ओतके गोठ। सबो के मुहूँ म एके ठन गोठ-के नवाँ एस.पी. हमर गाँव म काबर आही। कोन लानही तेला देखबो। 

गाँव म कतको परकार के मनखे होथे। झगरा के गोठ-बात के चरचा ल सुन के पुलुस के डग्गा म अड़बड़ झिन पुलुस मन भरा के आगे। फेर झगरा त झगरा आय। पुलुस देखे न कोरट। कूद दिस ते कूद दिस। चुप करात भर ले करइस। नइ माने के एके ठिन चारा। पुलुस मन जो लउठी भंजिस के जम्मों भीड़ गदर-फदर भागिस। गाँव के चरचा एस.पी. करत रहिगे। डग्गा म बइठार के पुलुस मन गाँव म झगरा मतईया टूरा-टूरी, लईका-सियान अऊ माईंलोगन मन ल तको थाना लेग के ओइला दिस। 

दुसरइया दिन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन थाना म जाके गाँव के मनखे मन के झगरा के कारन पूछिस। पल्टीन कहिथे-‘‘गाँव भर म चिहोर परत रिहिस के गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। डर के मारे सबो झिन हड़बड़ागेन नोनी।’’ 
नवाँ सरपंच कहिथे- ‘‘गाँव म कोनो नवाँ एस.पी. आही कही कहिके। सरी गाँव म झगरा मता देस लईका-त-लईका सियान ल तको धँधवा देस। आय होरी तिहार म गाँव के मन ल रोवा देस। सरपंच संग पंच मन घलो पुलुस मन के साहेब ल मना डरिस। साहब नइ मानिस त दू बात कहिके सरपंच पंच मन अपन-अपन घर म आगे। 
वो डाहर पुलुस मनगाँव के जम्मो झन ल नियाव बर कोरट म लेगिन। करिया कोट पहिरे उकील मन कोनो ये डाहर जाय त कोना वो डाहर जाय। 
कोरट के मुहाटी मेर ले सफेद कुरथा पहिरे डोकरा बानी के मनखे ह गाँव म झगरा मतईया मन के नाँव ल धरत हाँका पार के जम्मों झन परसार सही बड़ जानी कुरिया म बलइस। उहाँ उँचहा कुरसी म करिया कुरथा पहिरे आँखी म करिया फरेम के चस्मा पहिरे मनखे ह गाँव के जम्मो झन ल पूछिस- ‘‘के का बात होगे? का बात बर झगरा मतायेव गाँव म?’’ 

गाँव वाले मन के उकील गाँव म झगरा काबर होइस ते बात ल नियाव करइया ल बतइस वो डहर उकील बतात रहाय त गाँव के जम्मो झन के आँखी हाँत म तराजू धरे आँखी म फरीया बॉंधे पुतरी ऊपर टेके हे अऊ जम्मो झिन अपने अपन म गोठियात हे। के इही नवाँ एस.पी. होही का? मंगल नाव के जवान टूरा कहिथे-‘‘ये त अँधरी हावय गा। अँधरी हमर गाँव के एस.पी. कइसे होही। हमर गाँव म का अँधरी राज करही? फोक्कट के गोठियाथव ते।’’ 
सुरेस नाँव के टूरा कहिथे- ‘‘अरे बइहा बुध के, ये कोरट आय कोरट। कोन हमर गाँव के नवाँ एस.पी. हरे तेला त पहिली जानन। फोक्कट के गोहार पारत हस निपोर मुहूँ ल कथरी सिले सही चुप नइ रहि सकस।’’ 
ओतकी बेर सलेन्द कइथे- ‘‘ते कोन होथस रे...! हमर मुहूँ ल कथरी कस सिलईया। हमूँ मनखे हरन हमू ल हमर गाँव के गोठ ल जाने के हक हे। बड़ा मुड़पेलवा कस हुसियारी मारत हे बइहा बुध के हा। इहाँ ले बाहिर निकल तहाँन मँय तोला छरियाथँव।’’ 
कोरट म हल्ला होवत देखिस त उँचहा कुरसी म बइठे नियाव करइया साहब ह दू घॉंव टेबिल ठठात किहिस-‘‘चुप हो जाओ निहीं तो भितरा दूँगा। ये हल्ला करे के सजा जम्मों झन ल भुगते बर परही। डर के मारे जम्मो झन चुपे होगे।’’ 
ओतकी बेरा उँचहा कुर्सी म बईठे नियाव देवइया साहब ह-गाँव के जम्मो मनखे ल फेर पूछिस-‘‘के बने-बने बतावव का होइस? का बात बर गाँव में झगरा मतायेव?’’ 
गाँव के सियान सुखराम कहिथे-‘‘बात अइसन हे साहब- के हमर गाँव के पंचईत चुनई के फइसला बने-बने निपटिस। बने नाँचत जात रेहेन। त ओतकी बेर सहर ले दू-चार झन टूरा मन फटफटी म बइठे-बइठे नरियात अइस। उही दिन ले उही बात बर हमर सरग सही गाँव म झगरा मात गिस।’’ 
नियाव देवइया साहेब कहिथे- ‘‘एसपी जिला भर के अधिकारी होथे अऊ जिलाच म ओखर आफिस होथे। कोनो जरूरीच काम परही तभे च वोहा तुँहर गाँव म जाही। गाँव म एस.पी. नइ होय पुलुस तुँहर रकछा बर हाबे।’’ 
अइसन सुग्घर गोठ ल सुनके गाँव के सरी मनखे चुपेच होगे। ओतकीच बेर कोनो बात ल धर के सलेन्दअऊ सुरेस म झगरा माते ल धरिस। उन्हें दूनों मन धरी के धरा होगे। दूनों एके ठिन बात बोले-‘‘नवाँ एसपी आगे।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ल ठठात फेर कहिथे-‘‘चुप रहो बड़ नरिया डरेव। तुहीच मन बतावव के गाँव म नवाँ कोन एस.पी. आगे?’’ 
सलेन्द्र अऊ सुरेस डर्रात कहिथे- ‘‘सहर के टूरा मन बतइस साहब।’’ 
नियाव देवइया साहब कहिथे-‘‘का बात ल सहर के टूरा मन बतइस बोलव।’’ 
साहब के गोठ सुनके सुरेस सरी बात ल बताथे- ‘‘के साहब सहर के टूरामन बतइस गाँव म एस.पी. आगे। ऊँखर ले पूछेन त वोमन किहीन-बाई-बनिस सरपंच त ओखर मरद होइस एस.पी. माने सरपंच पति अऊ पंच मन के मरद पंचपति परमेसर होही। 
सलेन्द्र कहिथे-‘‘उही गोठ ल सुनके ऊँखर संग म हमू मन जिन्दाबाद-मुर्दाबाद कही परेन साहब।’’ 
सुरेस कहिथे-‘‘बस अइसनेच गोठ हरे साहब। 
परसार सहीं बड़ जनी कोरट कुरिया म चारो खुँट के मनखे मन दुनो झन के गोठ ल सुनके हाँस-हाँस के कठल गे। कतको झिन त हाँस-हाँस के ओछर-बोकर तको डरिस। जेन ल देखबे त उही हाँसते रहाय। सबो झिन ल हाँसत देख के गाँव के मन सकपकाय भोकवा कस देखते रहिगे। 
थोकुन बेरा म खॉंसी-खखरई बंद होइस त सलेन्दनियाव देवइया साहब ल कहिथे-‘‘हमन कोनो हाँसी मजाक के लइक गोठिया परेन का साहब के हमर कोती ले कोनो गलती होगे का? सबो झन हाँस डरेव। बस हमी मन भोकवा कस ठाढ़े हन।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ठठात गोहार पारथे-‘‘आरडर.... आरडर।’’ 
जम्मों झन चुप होगे त नियाव देवइया कहिथे- ‘‘ये सबो गोठ-बात गाँव के सिक्छा के कमी के खातिर देखे बर परत हे। सरकार गाँव-गाँव म पढ़व-अउ बढ़व कहिके साक्षरता किलास लगा के कतकोन खर्चा करिस तभो ले जम्मो अप्पड़ के अप्प़ड़। ऊपर ले झगरा-झँझट करके मुड़ी फोड़ी-फोड़ा कर डरिस।’’ 

नियाव देवइया साहब गाँव वाले मन ल समझात कहिथे-‘‘के तुँहर झगरा ल खत्म करव अऊ बने-बने जिनगी ल जीयव। मनखे बर मनखे बने के उदिम करव। सबके मन म मया-परेम जगावव। आगू होरी तिहार हे बने मया परेम लगाती तिहार ल मनावव। काली पंच अऊ सरपंच संग इँहा आहू त नवाँ गोठ-बात ल करबो। कोरट के समे खत्म होइस।’’ जम्मों सियान, जवान मन अपन-अपन डेरा म हाँसत गोठियात लहूटिस। 

दूसरईया दिन कोरट के बेरा प पंच-सरपंच संग गाँव के जम्मो झन नियाव करइया साहब ले मिलथे। नियाव करइया साहब ह सरपंच ल कहिथे-‘‘तुँहर गाँव म झगरा के एके ठिन कारन हे वोहे असिक्छा, गाँव के मनखे मन के अप्पड़ होना। सबो पंच सरंपच पढ़े-लिखे दिखथव। गाँव के मन ल बने समझत ले पढ़ावव। गाँव म साक्छरता के संदेस ल आगू लावव। गाँव के मन सिक्छित होहीं त गाँव म नवाँ अँजोर बगरही अऊ गाँव म सुख के गंगा सुग्घर बोहाही।’’ नियाव देवइया साहब सरपंच संग जम्मो पंच मन ल ऊँखर जीत बर गाड़ा अकन शुभकामना देके जम्मो झन ल बिदा करिस। 

सरपंच अऊ पंच मन ओसने करिस जइसन साहब बताय रिहिस। नवा सरपंच दसाबाई गाँव के साक्षरता किलास म गाँव के जम्मों लईका-सियान-जवान सब्बो झन ल पढ़ाय ल सुरू कर दिस। गाँव के मन नवाँ-नवाँ जिनिस सीख के अपन खुद के पॉंव म खड़े होगे फेर अपन लईका मन ल अपन घरे म पढ़ा-पढ़ा के नवाँ रद्दा देखाय के नवाँ-नवाँ उदिम करत हे। गाँव म कभू पंथी त कभू रीलो त कभू रीलो त कभू करमा-ददरिया म अपन सुर लमात देवी-देवता के पराथना करत नवाँ जिनगी जीये के मन म आस धरे सुख के जिनगी जीयत हे। 

देखते-देखत होरी तिहार आगे। गाँव के मन पँचकठिया टुकना म परसा, सेम्हर फूल के पंखुरी ल घर म लानके लाली रंग बनाके के होली मनाय के उदिम तको करत हे। गाँव के गौरा पाँवरा म बाजत नँगारा, डमउ, टासक, निसान, मंजीरा, ढोलक अऊ गोला के पार ल कोनो पाही गा। गाँव के चारों खुँट माँदर सँही नँगारा घटकत हे। आनी-बानी के फाग ल गा-गा गाँव के जम्मो लईका सियान मन खुदे नाँचत हे अऊ जम्मो झन ल नँचात हें। 

रतिहा के पबरित बेरा म होही के पूजा करके गाँव के जम्मो सियान अपन गाँव के रक्छा बर देवी देवता ल गोहरात होरी ल जरा के उही मेर कसम खाथे। के हमर गाँव म सेम्हर, परसा के रंग ले होरी खेलत आय हन आगू घलो हमर पुरखौती के चिन्हा के रंग ले होरी खेलबो। कोनो ह कोनो के मुहूँ-कान म चिखला, माटी, चीट अऊ आनी-बानी के रंग नई पोतय। 

गाँव म पहाती ले संझौती बेरा तक लईका मन तिलक होरी खेलत सियान मन के माथा म गुलाल के टीका लगा के सियान मन ले असीस पावत अपन जिनगी ल सँवारे के परयास करते हे अऊ नँगारा संग एके ठिन राग लमावत हे- 

हमर गाँव म आगे अँजोर, परसा सेम्हर लाली ल घोर। 
माया परेम के लाली धरके, ये दे आगे होरी तिहार॥ 
ठेठरी, खुरमी, बबरा ल खाके, बने मनावव तिहार। 
जीयत रहिबो त फेर देखबो, आगू के होरी तिहार॥ 
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प्रदीप पान्डेय ‘‘ललकार’’ संबलपुर : देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित

माटी महतारी

सोनारू तँय ह बइठे-बइठे काय सोचत हाबस। बेटा, जऊन होगे तऊन होगे। अब तोर सोंचे ले हमर जमीन ह नइ आवय। जा रोजी-मंजूरी करके ले आ बेटा, पानी-पसिया पीबो। निहीं त भूखे मरे ल परही। थोर बहुँत पढ़े-लिखे रहितेंव रे सोनारू.. त तोर बाप, कका अऊ गाँव के मन ल समझातेंव। दलाल के बात म नइ आतेंव।
बबा हमन तो फेक्टरी म माटी महतारी ल बेंच के अपन गोड़ म टँगिया ल चला डरे हाबन अऊ एकर भुगतना ल हमन सात पीढ़ी ले भुगते ल परही बबा। सिरतोन काहत हाबस सोनारू... मंद पीके तोर बाप ह करनी करे हावय अऊ हमन ल भुगते ल परही रे। चार ठन खेत ह हमन ल पोसत रिहिस बेटा..! ‘माटी ह महतारी आवय’ अऊ सबके पेट ल भरथे रे, फेर एक ठन फेक्टरी ह एक मनखेच ल मजदूरी के काम दिही जेमा घर के दस मनखे के पेट ह नइ पलय बेटा..! सिरतोन काहत हाबस बबा फेक्टरी म काम करे बर पढ़े-लिखे अऊ सिच्छित चाही हमन तो अप्पड़ आन बबा। फेर साहेब-अधकारी मन तो पढ़े-लिखे हावँय तभो ले हमर मन बर नइ सोंचिन। हमर दू फसली भुँईंया ल बंजर बता के अँगठा चपका दीन। (ओतके बेर सोनारू के काकी आइस)- ‘तोर कका ह चार दिन होगे, बेटा नइ आय हे गा। चार दिन होगे घर म हँड़िया नइ चढ़े हाबय।’ जानत हँव काकी... फेर काय करहूँ थोरकन तहसीली म जाके पूछताछ करबे तहॉं कुछु भी कहिनी बना के जेल म ओइला देवत हाबय काकी।

कोतवाल ह हॉंका पारत रिहिस। चिचियावत सोनारू के घर करा अइस, सोनारू पूछथे- ‘अब काके बईठका आय बबा।’
-‘काला बतावँव रे सोनारू, हमन ल रद्दा बतइया समारू गुरुजी ह घलो अब इहॉं ले चल दिही।
-‘काबर?’
-‘ओकर बदली करदीन बेटा..! गुरुजी मन मुआवजा ल नइ ले हाबय अऊ गाँव वाला मन ल सीखोवत हाबय कहिके उही पूछे खातिर तोर ककामन गे रिहिस। तेला जेल म डार देहे।
-‘साहब मन हमर मन के बात ल काबर नइ सुनय कका।’
-‘अरे बेटा, हमन गरीब किसान आवन गा... साहब मन ल काय दे सकबो। फेक्टरी वाला मन कलेक्टर ले लेके पटवारी ल चार चकिया दें हाबय। तेकर सेती तो ओमन रोज गाँव के चक्कर मारथें। गाँव के दलाल मन घलो मालामाल हो गेहें।’
दस बजे बिहनिया खा-पी के गुड़ी म सकलाहू होऽऽऽऽऽ..! बारा गाँव के मनखे मन घलो आहीं होऽऽऽऽऽ..! कोतवाल ह पूरा बस्ती म हाँका पार के चल देथे। ओतके बेरा सरपंच ह सोनारू के बबा करा आइस।
-‘पा लगी मंडल कका।’
-‘खुसी रा बेटा..! अब कइसे करबो कका अब तो कइसनों करके हमन ला फेक्टरी वाला मन ल भगाय ल लागही बेटा! कतको मन तो मुआवजा लेके पइसा ल खा डरे हावय, आधा झन मन बाँचे हावय। फेक्टरी के खुले ले कका कोसा पालन केन्द्र ह घलो बरबाद हो जही। फेक्टरी के गरमी म कोसा कीरा मर जही, त कँड़ोरो के लगाय रुपिया ह बरबाद हो जही। सरकार के काय जाही बेटा..! जनता के कमई ल पानी कस बोहाही नहीं त का। कतको बेरोजगार होही त ओला काय फरक परही। फेक्टरी वाला मन नोट के गड्डी ल धराही तहॉं सब चुप हो जहीं। ले कका बिहनिया कुन गुँड़ी म आ फेर।

होत बिहनिया गाँव म चहल-पहल सुरू होगे। काबर बारा गाँव के लोगन मन आय के सुरू करदे रिहिस। दस बजते साठ गुड़ी म मनखे मन खमखमागे। दुदमुहॉं लइका मन ल पीठ म बॉंध केझॉंसी के रानी बरोबर माईलोगिन मन आय रहिन। काबर कोंनो महतारी ह अपन लईका के पेट म लात नइ मार सकँय। सरपंच ह कथे- कइसे बतावव काय करबो तऊन ल.. ओतके बेरा एक ठन चार पहिया ह आके ठाड़ होगे। सब उही ल देखे बर धरलीन। सोचे लगीन फेर पुलिस वाला मन पकड़े बर आवत हावँय। कोंनो-कोंनो मन तो कइथे- आज मारबो नहीं त मरबो। फेर अपन महतारी ल बेचन निहीं। गाड़ी ले श्रीवास्तव साहब ह उतरीस जऊन ह गाँव वाला मन के हिमायती राहय। सरपंच कइथे- ‘नमस्ते साहब..! कइसे आय हावव..!’

मँय ह ये बताय बर आय हाबँव कि मोर इँंहा ले बदली होगे, अब तुमन कइसे करहू तेकर फैसला ल तुही मन ल करे बर परही। मोला ससपेंड घलो कर सकत हाबय। फेर मँय ह कइसनों करके जी-खा लुहूँ। तुमन ल अपन लड़ई खुदे लड़े बर परही। काबर दलाल मन तुँहरे घर म बइठे हाबय। सबला मोर राम-राम। मँय ह जावत हँव फेर एक ठन बात काहत हँव सबला बेचहू फेर धरती दाई, अन्न देवइया ल फेक्टरी बर झन बेचहू। श्रीवास्तव बाबू ह गाड़ी म बइठ के लहुटगे। थोरकन बेर-बर सन्नाटा ह पसरगे। काबर? पढ़े-लिखे एक झन रद्दा बतइया रिहिस वहु ह अब नइ रइही। समारू गुरुजी ह अपन बदली रोकवाय बर उही ह साहर म साहब मन के चक्कर काटत हावय।

मंडल ह खड़ा होके कइथे- अरे बाबू हो! हमन का चार दिन जीबो के आठ दिन, फेर तुमन ह मंद महुआ म मुआवजा ल लेके उड़ा डरे हाबव। फेर अभी आधा आदमी ह पइसा नइ ले हाबय। तुमन ह पइसा कइसनों करके लहुटाहू। आयतु ह खड़ा होके कइथे- दू साल होगे खेत मन परिया परे हाबय त पइसा ल कइसे लहुटाबो। सरंपच ह कइथे- ‘मैं ह एक ठन बात काहत हाबँव। हमन नंदिया ल बॉंधबो अऊ फेक्टरी बर जमीन हावय तेमा बॉंध बनाबो अऊ बढ़िया फसल लेके कम्पनीवाला के पइसा ल लहुटाबो नंदिया के तीरे-तीरे फलदार रूख लगाबो। करजा हाबय तऊँन ल सब मिल के हमन छूटबो तब ए माटी महतारी ह बॉंचही अऊ एकर सिवाय हमन मन करा कोन्हो चारा नइये।

तब सोनारू ह खड़े होके कइथे सरपंच कका ह बने काहत हाबय। अगर हमन एक होके करजा ल नइ छूटबो त हमन सदादिन बर बनिहार रहिबो। फेक्टरी के पानी ह नंदिया म मिलही त वहु ह जहर बन जाही। हवा ह घलो बिगड़ जही। सब मनखे मन चिचियाइस। हमन ल मँजूर हाबय। मँजूर हाबय। सोनारू ह फेर कइथे- हमन तो नइ पढ़ेन फेर अपन लइका मन ल इसकुल भेजबो। पढ़ाबो तभे हमन ला फेर कोनो दलाल मन कोरा कागज मन अँगठा नइ लगवाही। इही भुँईंया के सेवा करत अपन ये बारा गाँव ल फेक्टरी के गुलामी ले अजाद कराबो। मंद मउहा ल पियइया हो अब तुमन ल सीखे ल लागही कि एक फेक्टरी ह एक झन ल कुली के काम दिही हम अप्पड़ के खरही नइ गॉंजय। ओमन ल तो पढ़े-लिखे आदमी चाही। फेर हमर धरती महतारी ह अप्पड़ अऊ पढ़े-लिखे सबला पोसथे।

सरपंच ह कइथे- त फेर सब साबर, कुदारी, रापा, टँगिया, झउँहा धरके परनदिन पॉंच बजे पहुँच जहू। ग्यारा बजे फेक्टरी के भूमिपूजन हाबय त ओकर पहिली हमन ल गड्ढा खोदना हाबय। अब सब अपन-अपन घर जावव। अतका जान लेव हमन ल ओ दिन मरे ल घलो पर सकथे अऊ मारे ल घलो लागही। काबर फेक्टरी वाला मन लाव-लसकर लेके आही। सब जनता के भुँईंया के कसम खाके जय-जयकार करत अपन-अपन घर लहुटगे। मंडल ह कइथे- अब तो ये दोगला मन ल मारेच बर लागही बेटा..! जब अँगरेज ल हमन भगा सकथन त ए फेक्टरी वाला मन कोन खेत के मुरई आय।

तीसर दिन ग्यारा बजे फेक्टरी वाला मन बड़े-बड़े गाड़ी वाला मन घलो रिहिस गाँव वाला मन सब काम ल छोड़-छॉंड़ के देखे लगीस हजारों झन मनखे सबके हाथ म हँथियार। साहब मन कॉंपे ल धरलीस, पछीना घलो बोहाय ल धर लीस। एक झन दलाल ह कइथे- साहेब, काली रतिहा ग्यारा बजे गेहन त कॉंही नइ खनाय रिहिस अऊ कतका बेर सउँहो तरिया खनागे। बड़े साहब के मुहूँ ले बक्का नइ फूटिस काबर ओहा छै महीना पहिली पटवारी अऊ डिप्टी कलेक्टर के हालत ल देखे रिहिस दुनों झन के मुहूँ लहूलुहान। थोरको चिन्हारी नइ रिहिस साहब ह चुपचाप गाड़ी म बइठके ड्राइवर ल गाड़ी चालू करे बर कइथे। साहब के देखते-देखत सब ह ओकर पीछू-पीछू गाड़ी म बइठ के लहुटगें। समझगें एक ठन लकड़ी ल तो आसानी से तोड़ डारबो फेर लकड़ी के बोझा ल नइ टोर सकन। गाँव वाला मन बड़ खुस होइस अऊ तिहार असन नाचे लगीस काबर? ओमन अपन सात पीढ़ी ल बनिहार बनाय ले बचा लीन। बॉंध बने ले फसल लहलहाना सुरू होगे। मंद मउहा ऊपर घलो रोक लग गे। दलाल मन गाँव छोंड़ के भाग गे। सब अपन लइका मन ल इसकुल भेजे लगीन, ताकि फेर कोनो दलाल मन कोरा कागज म अँगठा झन लगवाय।
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गीता शिशिर चन्द्राकर, भिलाई-३ देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

सतरंगी फागुन के रंगरेला होली

सँझा होवत गाँव के गुड़ी म लइका जवान अऊ सियान सबो जुरियाथँय। इही समे एक ले बढ़ के एक फागगीत सन रंग सिताथँय, गुलाल उड़ाथें। लइकामन के पिचकारी घलो उनिहाय रथँय। रंगे-रंग म चोरबोराय लइकामन नाचे-कूदे म बियस्त रथँय। इलका हो सियान, बेटा जात हो या माई लोगन हो, अमीर हो या गरीब। सब के सब रंग-गुलाल म बोथाय फागुन के छतरंगी तिहार होली ल सारथक करथँय। कोनों रंग या गुलाल कोनो ल रंगे बर नइ बिसरय। येकर ले इस्पस्ट हे के हम होली के यथारतता ल समझन अऊ सबर दिन कायम रखन, तभे हमर होली मनई सारथक होही। 
हमर छत्तिसगढ़ी रीति-रिवाज, परम्परा अऊ संस्कृति के सबो सार बात ह तिहार-बार समाय रथँय। वइसने छत्तीसगढ़ ल तिहार-बार के गढ़ कहे जा सकथे। बारो महीना तिहार मनाय जाथें इहाँ। जनम के सिधवा महिनतकस छत्तीसगढ़िया भाईमन के परेम अऊ सादगी तिहार-बार म झलकथे। लोगन एक तिहार मनाय के बाद अवइया तिहार के अगोरा म हँसी-खुसी समे बिताथे। हमर गाँव-देहात म बइसाख के अक्ती ले तिहार-बार के मुंड़ा घेराथँय जेन हा फागुन के होली म सिराथँय। ये रंगरेला होली फागुन के अगोना पाख के पुन्नी म मनाय जाथँय। होली परब फूलमाला के एक निक-सुग्घर पिंयर गोंदा आय। 
होली ले जुड़े किवदंती 
हर तिहार धरम, दरसन अऊ अधियात्म म जुड़े होथे। कोनों न कोनों रीति अऊ नीति तिहार बार म बिलकुल समाय रथँय। मनुख जात ल प्रकृति ले भेंट संसकिरिति के झलक तिहार म देखे ल मिलथे। रंग-रंग के किवदंती हमर तिहार-बार के संबंध म सुने ल मिलथँय। जइसे एक पौरानिक कथा ले सुने ल मिलथे कि सतजुग म सिरीहरी बिसनु के नरसिंह अवतार के कथा परसंग ले होली मनाय के परम्परा जुड़े हावय। कहे जाथँय दानवराज हिरन्यकस्यप जेन ह खुद ल भगवान मानँय। अपन राज म अपने नाम जपे के प्रचार-प्रसार करे रिहिस। प्रजा राजा के डर म भगवान के नाम बिसरान लागिस। फेर उही राजा के बेटा प्रहलाद भगवान बिसनु के परमभक्त होइस। प्रहलाद के हरिनाम पिता हिरन्यकस्यप ल थोरिक नइ भाइस। राजा बेटा प्रहलाद के ऊपर अतियाचार करिस। आखिर म राजा अपन बहिनी होलिका मेर प्रहलाद के हरिभक्ति के बात रखिस। होलिका ल बरम्हा ले वरदान मिले रिहिस के आगी (अग्निदेव) वोला कभू नइ जला सके। बरदान पाये ले होलिका ल बड़ा गरब रिहिस। भाई के आगिया मुताबिक बालक प्रहलाद ल गोदी म ले के बरत आगी म बइठगें। भक्त प्रहलाद बंबर असन बरत आगी ले बाँचगे पर अहंकार अऊ अति-अनुचित बिसवाँस म माते होलिका जर के राख होगे। येकर ले इही पता चलथँय के ईस्वरनिस्ठा ल पाप अऊ अहंकार दुनों मिलके घलो नइ पछाड़ सकँय। इही समे ले समाज म फइले बुराई ल अच्छाई ले अऊ पाप ल पुन्य ले खतम करे के उद्देस्य ले होलिका दहन के परम्परा चल पड़ीस। आज गाँव-गाँव म फागुन लगते एक जगा छेना-लकड़ी सकेलथें। अंजोरी पाख के पुन्नी रात में लइका-सियान सकला के हुम-धूप देथे। गाँव-परमुख या बइगा हर सकेलाय लकड़ी म आगी ढिलथे। इही बेरा जम्मो झन मदमस्त हो हाँसी-खुसी ले झाँझ-मँजीरा अऊ 
ढोल-नँगारा बजावत, अलाप मारत, सुमरनी फाग गीत गाथँय:- 
सदा भवानी दाहिनी सन्मुख गवरी गनेस।
पांच देव मिल रक्छा करे, बरम्हा, बिसनु, महेस।
ये मनाबो रे ल, परथम चरन गनपति ल
काकर बेटा गनपति भव, काकर भगवान
काकर बेटी देवी कारका, काकर हनुमान
परथम चरन...
गवरी के बेटा गनपति भव, कौसिलिया के भगवान
भैरव की बेटी देवी कारका, अँजनी के हनुमान
प्रथम चरन गनपति ला...। 
लोगन होलिका दहन के दूसर दिन ओ जगह म जाके जुड़ाय राख ल चिमटी म धर के एक-दूसर के माथा म लगा के होली के बधई देथँय। इही राख ल घाव-गोंदर, खस्सू-खजरी म चुपरे ले घाव माड़ जाथँय। ये ह एक गँवइहा बिस्वास आय।
रंग-रोगन के गरीब तिहार 
होलिकादहन के दूसर दिन धुरेड़ी होथे। ये दिन रंग-गुलाल के दिन आय। ये दिन ल गाँव-गाँव म नोनी-बाबू, लइका-सियान मिलजुल के रंगहा-तिहार के रूप म मनाथें। सुने ल मिलथे के दुवापर जुग म भगवान सिरी किरिस्न बृन्दाबन म गोप-गुवालिन सन बन के सुन्दरता ल देख भाव-विभोर हो के नाचिन- गाइन अऊ एक परम्परा चल पड़िस। हमर गाँव देहात म ये दिन लोगन के मन बडा प्रफुल्लित रथँय। एक दूसर ऊपर रंग-गुलाल लगाथँय। नत्ता-गोत्ता मुताबिक एक-दूसर ल पयलगी करथँय। लइकामन के लइकापना धुर्रा अऊ चिखला म इही दिन घलो देखे ल मिलथे। ये तिहार के सबसे बड़े बिसेसता ये आय के ये गरीब के तिहार आय। कम खरचा-पानी म बने-बने निपट जथें। एक-दूसर याने अमीर-गरीब रंग-गुलाल लगइक-लगा होथँय। अमीरी-गरीबी के कोनो बिलग चिन्हारी नइ होय। जवनहा संगी मन बिहनिया नौ-दस बजे ढोल-नँगारा अऊ झाँझ-मँजीरा बजावत, रंग-गुलाल म गोड़-मुड़ बोथाय घर-घर म जा के फाग सन राग लमियाथँय-
'अरे हाँ हो .... हो 
पातर पान बंभूर के, केरापान दलगीर
पातर मुहूँ के छोकरी, बात करे गंभीर।
राजा बिकरमादित महाराजा
केंवरा लगे तोर बागों में
के ओरी बोय राजा केकती अऊ केंवरा
के ओरी अनार महाराजा
ए कि एओरी बोये राजा केकती अऊ केंवरा
दुई ओर अनार महाराजा।
केंवरा लगे हे तोर बागो में ... राजा बिकरमा...।'
सँझा होवत गाँव के गुड़ी म लइका जवान अऊ सियान सबो जुरियाथँय। इही समे एक ले बढ़के एक फागगीत सन रंग सिताथँय, गुलाल उडाथँय। लइकामन के पिचकारी घलो उनिहाय रथँय। रंगे-रंग म चोरबोराय लइकामन नाचे कूदे म बियस्त रथँय। लइका हो सियान, बेटा जात हो या माई लोगन, अमीर हो या गरीब सब के सब रंग-गुलाल म बोथाय फागुन के छतरंगी तिहार होली ल सारथक करथँय। कोनों रंग या गुलाल कोनो ल रंगे बर नइ बिसरय। येकर ले इस्पस्ट हे के हम होली के यथारतता ल समझन अऊ सबर दिन कायम रखन, तभे हमर होली मनई सारथक होही। बबा उमर के मन हू...हू...हू... करत इही बेरा अपन सियनही जिनगी के अनुभव ल नवा पीढ़ी ल बाँटत, डंडा नाचत, संदेस पठोथँय-
'अरे हो, अरे हाँ हाँ हो
सरसती ने सर दिया, गुरू ने दिया गियान
माता पिता ने जनम दिया, रूप दिया भगवान
तरी नरी ना ना मोर न हा ना रे भाई 
ये न हा ना ना मोर ना ना रे भाई 
बड़ सतधारी लखनजाति राजा
तरी नरी हू... हू... हू..
फूटे बंधा के पानी नइ पिअँय 
टूटे चाँवर के भानस नइ खावय 
पर तिरिया के मुख नइ देखय
तरी नरी ना ना मोर न हा ना रे भाई
बस सतधारी लखनजाति...।'
रितुराज के पहुँना फागुन 
फागुन महीना रितुराज के राज म पहुँना कस आथँय। राजसी पहुँनई होथँय फागुन के। सरद-गरम मिश्रित पुरवई के रंग म सवार फागुन चंदन सही फुदकी ल निहारत मधुमास के महल म अमरथँय। रंगरेला फागुन के सुन्दरई ल देख अमराई बउरा जाथँय। कोयली के कंठ ले सिंगारगीत निकलथँय। परसा अऊ सेमर के सजई-संवरई घात सुहाथँय फागुन ला। पंदरा दिन के साँवरी सलौनी अँधियारी पाख फागुन ल बिलमाथँय, ताहन पारी आथँय चिकनी गोरी अँजोरी पाख के भला कइसे बिसरा ज ही फागुन ल। पिंयर देही छात रूपसी चंदा ह अँजोरी पाख अऊ फागुन के मेल-मिलाप देख मुस्कुरावत रथँय।
गाँव-गँवई के दरसन 
हमर गाँव-देहात म देवारी के बाद खेत-खार अऊ कोठार के बियस्तता ले घर-दुआर के बिगड़े स्थिति फागुन महीना म सुधरथँय। इही महीना ढोल-नँगारा के संग फाग गुंजन लागथँय। चौपाल के खनक बढ़ जाथे। काम-बुता ले फुरसत हो लोगन परछी अऊ चँवरा म बइठ तास म रमे रथे। पासा ढुलावत बीते खेती किसानी के दिन बादर के गोठ गोठियावत रथे। कोनों-कोनों छेत्र म गाँव भर के नवकर जइसे गहिरा, लोहार, नउ बरेठ मन के दिन-बादर (सेवा-अवधि) फागुन महीना म पूरा होथे। इही महीना म लोगन-लोगन ल मँगनी-बरनी अऊ बर बिहाव के सुरता आबे करथे, संगे-संग अवइया, चइत नवरात्रि के गोठ, खेती-किसानी के गोठ जइसे बीज-भात, नाँगर-बक्खर काँटा-खुटी, बन बुटा, मेंड़पार, माल-मत्ता (बइला-वइला) के गोठ फागुन के गोठ होथे। कमाय-खाय बर परदेस गेये लोगन फागुन के होली तिहार मनाय बर अपन जनम भुइँया जरूर लहुटथे। इही फागुन महिना म फेर एक घाँव गाँव-गँवई के दरसन होथे। 
ठेठरी रोटी के मजा 
लोगन माघ के महीना के निकलते अऊ फागुन के लगते ओन्हारी सियारी लुवत-टोरत अऊ मिंजत खानी ठुठुर-ठाठर करत लुथे-टोरथे अऊ घइरथे-सइतथे। माँघ के ओन्हारी ले ही फागुनहा होली के रोटी-पीठा के चुरई निरभर करिथे। बने-बने ओन्हारी-सियारी होथे त रोटी-पीठा घलो बने-बने चुरथे। तिली, अरसी, सरसो के तेलपइत, उरिद-मूँग दार ले बरा, लाख-लाखड़ी अऊ चना बेसन के भजिया अऊ ठेठरी जम्मो सकलाथे त होली के रोटी चुरथे। कोनों, कभू, कतको अऊ कुछु बना के खाय, चाहे झन खाय, पर तिहार बार के तेलहा रोटी राँध के खाय ल कोनों नइ छोड़ँय। अपन-अपन इच्छा अऊ हेसियत मुताबिक जरूर राँधहीं, खाहीं। बरा, सोंहारी, भजिया ह लगभग सबो तिहार म जनम लेवत रइथें पर ठेठरी ह फागुन के होली म ही अवरतथँय। दिगर तेलहा रोटी ह एक-दू दिन म लरजाये ल धरथे, फेर ठेठरी के बात अलग हे। बनाये म घला सहज। ये ल लाख-लाखड़ी या चना बेसन ल बने सान के नान-नान लोई धरके उबड़ी (उल्टी) थारी, कोपरी या चँवकी म हथेली ले, पतला-पतला डोरी असन बरे जाथे। बरे के बाद बीच ले मोड़ के एक घाँव अऊ मोड़े जाथे। ताहन फेर डबकत तेल म डार के बनाय जाथँय। येला तिहार के दिन खाले, आन दिन अऊ पंदरा-महिना दिन ले घला रख ले। कुछु नइ होवय, खावत रा ठुठुर-ठुठुर। येकर सेती सियान मन कहे हावय 'माँघ के ठुठुर-ठाठर अऊ फागुन के ठेठरी।'
माँस-मंदिरा के अवगुन 
सुग्घर रूप से फागुन महीना के गुनगान होली म जबड़ अवगुन घला समाय रथे। जेमा माँस-मंदिरा के उपयोग परमुख हावय। कइसन तो अइसे समझे के होली ह पिये-खाय के तिहार आय। ये माँस-मंदिरा ले तिहार के अच्छा-मंगल सइतानास हो जथँय। पीअई-खवई ले लोगन के आरथिक स्थिति सिखाथँय, अऊ मारपीट ले समाज म हिंसा उपजथे। हिंसा के पिकी बैर के बिरिक्छ बन के समाज म सिरीफ काँटा बगराथे। समाज म मनुखपना ल बनाये राखे बर ये माँस मंदिरा ल बिसरान, ठेठरी खावन, रंग-गुलाल लगावत होली मनावन अऊ कहन - 'होली हे।' 

लेवाल

नोनी हो काली भिनसरहा ले फूलेरा पूजा करते साठ फरहार बासी खाए बर आहूँ, तुम्हर भऊजी मन हा रोटी-पीठा बना के राख देहें। अमसिया काकी के अतका काहत होइस के जामा अऊ बाला के मन हा गदगद होंगे काबर कि ओमन जानत हें अमसिया काकी ह अतका पेट भीतर ले मया करके ओमन ला तीजा के बिहान दिन बासी कहि लव के फरहार दूनों खाये बर बलाथें, अऊ जब हमन ओखर नेवता पाके डेहरी भीतरी अमाथन त हमूमन ला काकी के घर-दुआर ह निक लागथे, मार छनछन ले ओखर रँधनी ह छोहा पार के लिपाये रहिथे,
अँगना परछी ह चकचक ले औंठियाये, पोंछाये रहिथें, कपाट बेंड़ी मन मार रग-रग ले तुरते के तेल-वारनिस लगे कस रहे रहिथे। फेर काकी ल हमन कभू हक-खाय कस नइ पायेंन, हमर जाय के आघुच कुआँ बाल्टी ले हेरे पानी ल गगरी अऊ हऊँला म तोप ढाँक के राखे चूल्हा के आगी ल तीर के मुँधरहच ले भिनसा पानी बना के मढ़ाय, अगोरत रहिथे। जाते हमन ल भिनसा ल डार के देथे, अऊ जतका देर ले भिनसा पानी नइ पीयें राहन तलघस ले काहत रहिथे, “बेटी हो आघू इहि ला मुहूँ म तुलसी पान डार के पिवँय, ऐखर ले टोंटा ह नई छोलाय।” फेर इही काकी ल देखत जामा ह गुने ल लागिस कि कइसे ओमन अपन नान्हेपन म आठे मनाये के बिहान भये ले इही अमसिया काकी ल अपन भाई-भतीज के अगोरा लेवत देखे हे अऊ कहूँ काकी ल ओखर अंतस जाने बर कोनो पूछ लँय, कि काकी तोला तो परिहारो घलो अइसने हे अगोरत देखे रहेन तभो तोर भाई ह नई आय रहिस। येला सुनते ओ हा मार मुच ले हाँस के कहि देवय, “आने बछर कोनों काम-बूता म फँदा गे रिहिस होही, फेर एसो म आही। बछर के इही सुनत-सुनत ओ मन काकी ल मोटियारी ले सियनहिन होवत देखे रहिन। बात परे म गँवई के ओखर जमाना के जँवरिहा माई लोगिन मन ह गोठियावैं, कि “अमसिया काकी ह जब नेवरिया बिहा के आय रिहिस तब डोला-परछन के बाद जब बैलागाड़ी ले उतरिस तब अइसे लागिस जानो-मानो सोझ्झे लछमिन दाई ह लकलक ले आय हे। रंग म साँवर रहय फेर नाक-नक्शा ह देखे के लइक रहाय। तहाँ अऊ बतावँय कि काम-बूता ह ओला भारी उसरय, ओखर जाँगर के पार ल कोनो आने बहू-बेटी मन नई पा सकँय फेर जब पठोनी आय के बाद पहलइया तीजा ह नजदीक आय ल धरीस तब निच्चट मरही बरोबर ओखर चेहरा-मोहरा ह दिखे ल धरलिस। आठे ल मना के गाँव के जम्मो बहू-बेटी मन हा जब ओरी-पारी अपन-अपन लेवाल संग आय-जाय ल लागिन। तभो ले उही बखत नेवरिया बहू आय अमसिया काकी के अगोरा ह नई सिरइस, पोरा के दिन ले नाँदिया-बइला के भोग परसाद बर ठेठरी-खुरमी बना के टीपा-टीपली म धर डरीस। उही संदूक में तीन ठिक लुगरा-पोलखा अऊ साया ल घलो घिरिया के इस्तरी करे बरोबर राखे रहय। फेर पोरा पटके जाय बर जब बहिनी बेटी मन ओरियाय लगिन त काकी ह कइसनो अटका लगा के कुरिया भीतरी रेंग दिस। ओती करू भात के दिन आगे फेर ओखर लेवाल के कोनो सोर पता नई आइस फेर उही बेरा म जब मइके आय बेटी मन पूछत-पूछत ठठ्ठा घलो करे लागिन कि भौजी तोर लेवाल ह कतका बेरा आही कहूँ रद्दा के तीर तखार के भूलन काँदा ल तो नइ खुंद परीस होही। अइसन, रंग-रंग के गोठ ल सुने बाद घलो अमसिया काकी के आँखी ह नइ डबडबाइस अऊ इही कहिके ओमन ल चुपे करा दय कि साँझ-रात ले भाई ह आही अऊ निहीं तब कोनो न कोनो ल मोला लाने बर कका ह तो पठोहिच। फेर जइसन कि वोला भीतरे-भीतर जनाय बरोबर होगे रहाय। ओखर न लेवाल ह इस अऊ न तीजहा-बर लुगरा। रद्दा देखत मँझनिया ले सँझा अऊ फेर रतिहा होगे ततके म काकी के घर तीर के पारा म आय बेटी मन ह पूजा थारी म लुगरा, नरियर, दिया-बाती धरे-धरे फूलेरा पूजा करे बर शंकर के मंदिर म ओरियाय ल लागिन तब अमसिया दाई के उतरे रूप ल देख ओखर सास ह किहिस, “बेटी तेंहा मोला आज ले ससुरार के संगे-संग मइके के महतारी घलो जान। अमसिया काबर कि तेहा मोर बेटा के पाछू म बिहाय आय हस। त तहुँ ह मोर बेटी आस, ऐखरे सेती आज ले तेहाँ इँहे करूभात मानबे अऊ फरहार करबे अऊ तोर तिजहा बर जे लुगरा मन आही तेला मोर खोली म राखे पेटी ले हेर के लेआ।” अइसन कहिके अपन अछरा म बाँधे कुची ल छोरके अमसिया काकी के सास ह ओखर हाथ म धरा दीस, अपन सास के अइसन गोठ अऊ ओखर पाछू के मया ल देखके अमसिया काकी के आँखी डाहर-ले मार तर-तर आँसू ढूले ल धरलिस, अऊ तहाँ ले आज नवा महतारी बने अपन सास ल आही-बाँही भीतरी पोटार के किहिस- 'दाई मँय ह तो महतारी काला कथे कभू नई जानेंव, बाबूच ह महतारी अऊ बाप दूनों के मया अऊ दुलार दिस। फेर करम के लेखा ल कोनो न टार सकय इही के चलते एक दिन बाबू घलो ह गाँव के कोटवार कका ल मोला सँऊप के जिनगी ल हार दिस अऊ सरग रेंग दिस फेर ऐती मोर करम ठठा गे काबर के कोटवार कका के बेटा-पतो ल मँय ह फूटे आँखी नइ सुहावत रेहेंव तभो ले कका के मया पाय के दिन भर घानी कस बइला पेरावँव अऊ भाई-भऊजी ल फूलोय म लगे रहँव रेड़ के बूता काम करँव तब कहूँ, पेज बासी मिलय, कका ह इही सब ला देखत उमर होते मोर हाथ ल पिंवरा के गंगा नहाय बरोबर होगे। ओखर लाचारी के आगू म मँय हा बिन मुँहू कस रहिगेंव, तभो ले सूने हावँव कि मइके के चिरई, कुकुर बर घलो मया लागथे त तो फेर मोर कका के परवार ह एक जनम के माने नता हरय अऊ एखरे सेती आठे मनाते लेवाल के रद्दा देखे ल धरलेंव, फेर अपन मन ल मढ़ा डरेंव इही संसों म, कि जतका भाग म रिहिस वतका मिलगे, अब काबर मन ल छोटकुन करँव तभे “जामा, बाला चलो न नोनी हो, फरहार बासी खातेव त महूँ ह अपन मुँहू म गंगाजल डारतेंव।” दाई के ये हाँक ह जब मोर कान भीतरी जनइस त हड़बड़ा के सिंग कपाट के बेंड़ी ल हेरे ल धरलेंव, अऊ बाला के संगे दुआरी के आँट ल लकर-धकर नहाक के अमसिया काकी के घर म दुनों झिन संगे हमायेन, काकी ह मया करके हमर मन बर लपेटा इढ़हर, कढ़ी, तिखुर अऊ आने रोटी-पीठा समेत जतका खाय-पिये के जिनिस बनाय रिहिस तेला परोस देइस तभे थिरइस। फेर हमर फरहार-पानी करत ले, झट हमर मन बर लाने लुगरा ल भुजा म डार के एक-एकठि रुपया अऊ सेंदूर पुड़िया ल हाथ म धरा दिस। तभे मँय अऊ बाला दुनों झिन सलाह करके काकी बर पातर आँछी के लाय लुगरा अऊ कका बर लाय कुरथा कपड़ा ल झोरा भीतरी ले निकालेन अऊ संगे काकी के देह म डारे ल धरेन त काकी ह कथे- “बेटी हो मानदान घर के लुगरा पाटा ल झोंक के मँय ह पाप के भागी नइ बनँव, इही पायके येला झोराच म धर लेव। काकी के गोठ ल हमन नइ सुनत हन तइसे मिटकाय कस करके, काकी ल किलोली करे ल धरलेन अऊ सल्लग केहे ल लागेन- “हमन ल महतारी मान के ले ले न काकी, काबर कि बेटी ल घलो मइके कहिथें। अतका सुनते मानो काकी के आँखी के आँसू हर अपन हुँकारू देय ल धरलिस अऊ झर-झर टिपके लागीस। फेर हमन का देखथन कि काकी ह हमर मन तीर ले लुगरा अऊ चूरी-चाकी के डब्बा ल झोंक के केहे लागीस- 'तोर कका ल किंजर के आवन दे वोला बताहूँ कि कोन कहिथे मोर महतारी नइहे। ये देखव मोर लइकुसहा महतारी बने नोनी मन ह मोर बर तिजहा के संगे तुम्हार बर कुरथा कपड़ा घलो लाये हाबँय। मँय हा आज इही लुगरा ल पहिन के फरहार करथँव। तुम्हार लाने ल पाछू पहिन हूँ। हाँ फेर तहूँ मन खोर डहार जाहू त बुधारू दर्जी मेर अपन कुरथा के नाप छोड़ देहु। काकी के ये गोठ ल सुनते हमन के जी म खुसियारी लागीस, तभे हमन काकी ल चेताय ल धर लेन काकी संगे फुलेरा ठंडा करे बर तरिया जाबो अऊ तहाँ ले मँय अउ बाला दोनों झिन सुटूर-सुटूर बैदेही भौजी पारा डाहर रेंगे ल धरलेन।

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श्रीमती अनुरिमा शर्मा, डंगनिया रायपुर



फूलकैना

भेलई वाली मोर सारी ह अड़बड़ सुन्दर हे, वोखर सुन्दरता ल देख के घर वाले मन वोखर नाम उरवसी रखे हे। उरवसी के मायने होथे ‘हृदय म बस जाने वाली’, जइसे नाम वइसे काम। वोखर सुन्दरता के लिए एकेच सब्द हे- झक्कास! एक ठन आयोजन के नेवता पा के भेलई गे राहँव। वो कार्यक्रम ह डीपी देसमुख, दीनदयाल साहू, दुर्गा परसाद पारकर, तुकाराम कंसारी दुवारा समिलहा आयोजित रहिस। साम के छै बजे कार्यक्रम ह खतम होइस। अब रात रुके के बारी आइस। मँय सोंचेव पाछू बेरा ऑटो वाले भाँटो घर गेरेहेंव, तब ये दरी अपन सारी घर जाय जावँव। ऑटो बइठ के सारी घर पहुँच भी गेंव। सड़क ले दस कदम दुरिहा म वोखर घर राहय। साढ़ू ह एक ठन कम्पनी म काम करय, कम्पनी के क्वार्टर म राहय। मँय उरवसी ल उरवसी नइ कहिके फूलकैना (फूल की कन्या) काहँव काबर कि वो ह सहींच म फूल कस नाजुक रहिस हे। बाहिर के गेट ल खोल के सोझे खुसरगेंव अऊ जा के हाँक पारेंव फुलकैना...! आरो पा के फुलकैना परगट होगे, हाथ म टीवी के रिमोट राहय। फुलकैना नाम सुनके दँउड़त बेडरूम से गेट तक अइस। हाय भाँटो कोन कोती के राजा मरे हे? मँय कहेंव- अरे तोर से मिले अड़बड़ दिन होगे रिहिस हे तेखर सेती मिले बर आगेंव। फूलकैना निहर के पॉंव परिस। हाँत के हरियर-हरियर चूरी मन खनक के परसन्नता देखइस। फूलकैना के चेहरा म हीरा पाय के खुसी दिखत रिहिस हे। हिरना कस कजरारी बड़े-बड़े आँखी, कामदेव के धनुस कस भौंह, बाबी डॉल कस नाक, दँतइया कस पातर कनिहा, केरा के पेड़ कस चिक्कन पेंड़री, पके कुंदरू कस ओंठ, मोती कस चकचक ले दाँत, कनिहा के आवत ले बेनी, ऊप्पर लें मोंगरा के गजरा। फूलकैना सहिंच म उरवसी अपसरा कस दिखत राहय। अभी-अभी पाटी पार के कंघी करे राहय, अतर तेल के खुसबू आवत राहय। हिन्दी भाखा म अइसने मन ल अनिंदय सुन्दरी कहे जाथे। फूलकैना पानी ले के अइस अऊ सोफा म बइठे ल कहिस। पैंतिस हजार के नावा सोफा म बइठेंव तब गजब के आराम मिलिस। देखते-देखते फूलकैना ह मोर बर कॉफी बना के ले अइस। कॉफी के सिराते ही हालचाल पूछेंव। भाई साहब कहाँ गे हे? वो कहिस सेकंड सिफ्ट ड्यूटी गे हे, दस बजे आ जही। तँय तो दिनोंदिन अऊ सुन्दर होवत जावस हस फूलकैना। फूलकैना ह उल्टा बान छोड़ दिस-तैं का कम हस भाँटो? मँय सुनेंव तब लजा गेंव। फूलकैना कहिस- तैं पहिली ले दुबरा गेस भाँटो? एक्सीडेण्ट के बाद मोर पीठ म लोहा के पट्टी बँधाय रहिथे। पेटभर खाना नइ खवावय। उप्पर ले नौकरी के टेनसन, कहूँ न कहूँ दौरा, टूरा के पढ़ई के चिन्ता अलग। कइसे नइ दुबराहूँ तहीं बता? दीदी कइसे हे कहिके पूछिस तब बतायेंव वो तो घुसघुस ले मोटा गे हे। तँय अपन बता तोर का हालचाल हे? फूलकैना के चेहरा म चमकत हैलोजन लाइट ह बुझागे। का बतावँव भाँटो, जवानी, अइसने खुवार होवत जावत हे। बिहाव के चार साल होगे पर एको झन संतान नइ हे। ऐला तो बस दारू के सिवाय कुछू नइ सुझय। दिन-रात पीयत रहिथे बरजे ले मानय निंही उल्टा ताना मारथे तोर बाप के पइसा के पीयत हौं का कहिके। महूँ उदास होके बोलेंव- जेला बरबाद करना हे तेला दारू पीये बर सिखा दे अऊ कुछू करे के जरूरत नइ हे। दारू ह वोला सब बुराई सिखा दिही। परेम से वोला समझायेंव तँय अपन खियाल रखे कर! तोर सुघ्घर रूप ल देख के मोला तरस आथे फूलकैना, बिधाता ह तोला बाँधिस तब काखर संग। भावना ह जब मुरझा जथे तब आतमा ल चोट लगथे, अऊ आतमा ल चोट लगे से परेम के अथाह कुआँ ह घलो सूखा जाथे, फेर आदमी ह तन से पास म रहिके भी मन से कोस भर दूर रहिथे। फूलकैना ह मोर बाजू ल पकड़ के रोनहुत होके कहिस कोनजनी भाँटो कोन जनम के पाप ये तेला भोगत हँव। रहि-रहि के मोला तिरिया जनम झन देबे रे सुवा ना... वाले गाना के सुरता आथे। सुनेंव तब मोर जघा बोले बर सब्द नइ रहिगे। 

फूलकैना ह मौन ल टोरिस- देख तो भाँटो मोला बुखार हे का? दिनभर रसरसाय कस लगत हे, अइसे कहिके अपन बाँह ल मोर कोती लमा दीस। छुयेंव तब अइसे लगिस कि उल्हुवा पाना ल छुवत हँव का, वोखर हाथ ह सहीं म गरम लगिस। मँय कहेंव जा चाय संग बुखार के गोली खा ले। ठउँका वोतके बेर कुकर के सीटी बाज गे। भाप निकले से दुबराज, चाँउर के खुसबू ह घर भर म फइलगे। अब लगातार सीटी बजे के कारन फूलकैना ह दँउड़ के रंधनी खोली म चल दीस। आ के कहिस खाना बन गेहे भाँटो, गरमे-गरम खा ले न। मँय कहेंव- दूनों भाई संगे-संग नइ खाबो? अरे वोखर कोई ठिकाना नइ हे भाँटो, डिवटी छूटे के बाद बजार चल देथे उहाँ ले पी-पा के आ जथे। आ के नखरा मारथे, जिद्द म उतर जथे... मारपीट करथे मोला बाँझ कहिथे। मँय ह गारी, मारपीट सबो ल सही लेथों फेर बाँझ कहिथे तब अइसे लगथे कि पंखा म लटक के मर जॉंवव का... कि रेल म कट के जिनगी ल खतम कर लँव। जिनगी ह मोर बर पहाड़ होगेहे भाँटो। सुन्दर रूप पायेंव तब का काम के, घर के पति ल मोर कदर नइहे। अइसे-तइसे दिन काटत हँव। जे दिन नइ सही सकहूँ ते दिन पता निंही जहर-महुरा मन मोर साथ दिही के निंही ते। मोर मन ह रोवासी होगे। धकर-लकर बात ल पलटेंव- ए दरी तोर जनम दिन म सबो झन अवइया रहेन। तोर दीदी ह मना कर दीस, वो मनला बढ़िया से जनम दिस मनावन दे, पी-पा के आथे तहाँ ले वो ह सुरु हो जथे जानथस तो कहिके।

फूलकैना फेर पूछिस- खाना निकालत हँव भाँटो बिहनिया के खाय हावस, भूख लगत होही? वोला आय म रात के गियारा तक बज जाथे। तँय खा ले अऊ अराम कर, मँय फोन म पूछ लेथँव। जवाब मिलिस खाना बनगे हे तब खवा दे ना, मोला आय म देरी हो जही। खाना निकलगे, राहेरदार म डारे घी ह टिकली असन गोल-गोल छिटके राहय। बोहार भाजी ल देखेंव तब मुहूँ म पानी आगे। आनंद से एक-एक कौंरा ल खायेंव। पापर, बिजौरी, अथान के संग खाय के मजा कुछु अऊ होथे। हाथ ल पोंछत बोलेंव-तोर हाथ म जादू हे फूलकैना। कइसे भाँटो? तोर हाथ के रॉंधे जेवन ह अड़बड़ मिठाथे। फूलकैना कठल के हाँस दीस। 

समाचार देखत राहँव ततके बेरा साढ़ू भाई अइस। जै जोहार के बाद थोकिन चरचा करके वो ह खाय बर चल दीस। दूनों कोई खाय बर धर लीन। कब मोर नींद परगे पता नइ चलिस। अधरतिहा एसी के ठंडा हावा म छींक ऊपर छींक आय बर धर लीस। लगातार छींकत देख के फूलकैना आगे। कइसे छींकत हास भाँटो काफी बना दँव का? मँय कहेंव अम्मठहा बोहार भाजी अऊ एसी के ठंडक म सर्दी धर लीस। ए.सी. ल बंद करके पंखा चला दे जा तहूँ सुत अभी रात ह पहाय नइ हे। फूलकैना पंखा चला के चल दीस। 

मोर आँखी ले नींद ह उड़ा गे राहय। रहि-रहि के फुलकैना के बात के सुरता आवय पंखा के लटकना, रेलगाड़ी, जहर महुरा... ये सब ल सुरता करँव तब मोर आँखी ह आँसू के भार ल नइ सही सकिन अऊ लीकेज नल के टोंटी कस बूंद ह टप-टप टपके बर धर लीस। मँय ब्रम्हाजी से बिनती करेंव- हे परमपिता, मँय अपन भाग के बाँचे सुख ल फूलकैना के नाम करत हँव। वहू बिचारी ह अपन दु:ख ल छिपा के खुसी ओढ़ के जीयत हे। साढ़ू के नाक बाजत राहय अऊ फुलकैना ह छटपटावत राहय। चुरी के खनक अऊ करवट के अवाज से अंदाज लगत रहिस। एकाध घण्टा बाद मँगइया मन के फेरा सुरु होगे। फूलकैना उठिस अऊ दान देय बर चल दीस। महूँ उठ गेंव काबर कि दूसर दिन कलेक्टरेट म बैठक राहय। सात बजे बस राहय, छै बजे तियार हो गेंव। फुलकैना बिस्कुट अऊ काफी ले के आगे। 

मैं कहेंव भाई साहब ल उठा न, अब जाय के अनुमति ले लेथँव। फुलकैना हाँस परिस पर साढ़ू ह नसा के मारे ऊं... ऊं.. कहिके रहि जावय। फूलकैना कहिस- नींद म हे भाँटो सुते राहन दे। ... अच्छा फूलकैना दया-मया ल धरे रहिबे, बस के बेरा होवत हे जाथँव कहिके पॉंच सौ रुपिया के नोट ल वोला देंव। फूलकैना ह लेय बर इंकार कर दीस। तब जबरदस्ती वोखर हाथ म पकड़ा देंव। फूलकैना मोर हाथ ल अपन दूनों हाथ म धरलीस। वोखर आँखी ह डबडबाय असन होगे। मोला कहिस तोला मोर किरिया हे भाँटो, दीदी ल कुछू झन बताबे। पूछही तब सब बने-बने हे कहि देबे। मँय हाथ ल छोड़ायेंव तब वो पॉंव परिस, वोला आसिरबाद देंव अऊ निकल गेंव। 

बस म बइठे-बइठे मोला फूलकैना के सुरता आवय। नींद के मारे आँखी करुवावत राहय। आँखी ल मूूँद लेंव तब कण्डक्टर पूछिस- कवि सम्मेलन से आवत हास का सर जी? मँय झूठमूठ कहि देव हहो। फेर आँखी मूँदेंव तब फूलकैना के बात ह सिनेमा कस चले लगिस। ... भाँटो, बाँझ कहिथे तब अइसे लगथे कि पंखा म लटक के मर जॉंव का? कि रेल म कट के जिनगी ल खतम कर लँव का... पता निंही जहर महुरा मन मोर साथ दिही के निंही ते? वो हँसी वो दमकत चेहरा, वोखर पीछू फूलकैना के अँधियार जिनगी। बाँझ के ताना, परमात्मा के अइसन लीला... अजब परेम के गजब कहानी बनगे राहय। 

दस बजे के आसपास फूलकैना के फोन अइस- भाँटो तँय एसी ल बंद करा दे रहेस तोर सिरहाना तो पसीना म भीग गे हे, घाम म सूखो दे हों। गरमी लगिस तब एसी ल फेर चला लेना रहिस। मँय कहेंव नींद म कुछु नइ सुझय फूलकैना। अब वोखर दीदी के आगू म रात के आँसू वाले बात ल फोर के थोरे बता दँव। 
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डॉ.राजेन्द्र पाटक ‘स्नेहिल’

राजभासा के असतित्व

राजभासा के गठन होईस, तब लगिस के अब हमर छत्तिसगढ़ी भासा के मानकीकरन होंही। भासा आठवीं अनुसूची में जगह पाय बर लड़त हाबय। फेर मानकीकरन के पता नइयेे। ‘‘छत्तिसगढ़ी’’ ही जम्मो छत्तिसगढ़ी में होना चाही, हल्बी, सरगुजिहॉं के असतित्व खतम करे के बात करथें। छत्तिसगढ़ी भासा म ये बोली मन ल समाये के बात करथें। यदि छत्तिसगढ़ी के बियाकरन हाबय तब कुडुल के बियाकरन गलो हाबय। बियाकरन भासा के आधार आय। छत्तिसगढ़ी भासा के बियाकरन बने 130 बछर होगे फेर हमेशा ओला बोली कहिके दबाय के कोसिस करे गिस। आज भी बड़े-बड़े हिन्दी के बियाख्याता मन ताली ठोंक के कहिथें के छत्तिसगढ़ी के बियाकरन कहॉंं हाबय, बियाकरन होय ले भासा नइ बन जाय।
दूसर बात छत्तिसगढ़ी ह बँटाय हाबय बिलसपुरिहा अऊ रयपुरिहा। इँखर आपस म तालमेल बइठत नइये। सब अपन-अपन डाहर खिंचत हाबय। राजभासा आयोग छत्तिसगढ़ी भासा के प्रांतीय सम्मेलन करत हाबय। बहुत अच्छा परयास आय। तीन बेर ये कार्यक्रम होथे। धीरे-धीरे पटरी म आवत हाबय। विसय चयन बहुत बड़े बात आय। विसय ल देख के लगथे के ये कार्यक्रम सिरिफ एक खानापूरति तो नोहय। हॉंं, फेर कुछ ‘‘हलचल’’ तो होवत हाबय। पुस्तक प्रकासन बर पइसा देना एक अच्छा पहल आय, अब खुल के पुस्तक छपई होवत हाबय फेर गद्य कतका? ये परस्न अभी भी खड़े हाबय।

एक विसय बहुत अच्छा रहिथे ‘‘छत्तिसगढ़ी भासा के अन्तरसंबंध’’ येखर ले एक गौरव के एहसास होथे। जेन मन छत्तिसगढ़ी ल हेय नार ले देखथें तिंखर आँखी खुलत जात हाबय। आज विस्व म लुप्त होवत भासा के पीरा दिखत हाबय। हर दिन एक भासा लुप्त होवत हाबय। आज छत्तीसगढ़ के हर बोली ल सहेज के रखे के जरूरत हाबय। जतका भी बोली हाबय ओमा सिक्छा विभाग तो पढ़ाय के काम करत हाबय ‘‘राज्य संसाधन केन्द्र प्रौढ़ सिक्छा’’ घलो छै भासा म काम करत हाबय। छै भासा के प्रवेसिका तइयार हाबय। कुडुक, सादरी, हल्बी, गोंडी, सरगुजिहॉं अऊ छत्तिसगढ़ी। ये भासा ऊपर जब हमन काम करेन तब पता चलिस के सब ऊपर छत्तिसगढ़ी लागू करना एक बोझ आय। छत्तिसगढ़ी समझे म ये मन ल तकलीफ होही अऊ हमन ल घलो ये बोली ल समझे म तकलीफ होथे।

एक भासा बने म हजारों बछर लगथे। ओला मेटाय के प्रयास काबर सबो के असतित्व बने रहना चाही। छत्तीसगढ़ म घलो दूसर राज सरिख सब बोली म पढ़ाई होना चाही। अपन मातृभासा ले हिन्दी तरफ तो सब ल जाना हे। छत्तिसगढ़ी बोलइया के संखिया जादा हाबय। येला छेत्र म न बॉंट के एक करना जरूरी हाबय। जेखर बर मानकीकरन होना चाही। एक सब्द के छेत्रीय सब्द ल परियायवाची मान के रखे जाय अऊ ये सबो सब्द के प्रयोग करे जाय।

अब अगले प्रांतीय अधिवेसन म ये मानकीकरन ऊपर पूरा साहित्य आना चाही तभे ये राजभासा के असतित्व ल माने जाही। नइते ये ह एक खानापूरति अऊ अध्यक्छ सदस्य ल पइसा देय के एक उदिम ही कहे जाही| काबर के पद लोलुपता बाढ़गे हाबय। जेन आथे तीन साल तक गाड़ी, पइसा झोंकथें अऊ चल देथे। ये कार्यक्रम ले कुछ जागरित होवत हाबय फेर मानकीकरन के बिना सब बेकार आय। मानकीकरन आठवी अनुसूची बर एक भार के काम करही। यदि मानकीकरन राजभासा आयोग के काम नइये तब काकर आय? राजभासा आयोग ले फायदा काय होवत हाबय? फायदा कोन ल होवत हाबय? यदि आयोग नइ होही तब भासा बर काम कोन करही? परस्न बहुत अकन हाबय| सब ल सोचना हाबय।
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सुधा वर्मा

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

छत्तीसगढ़ी के सरूप

'छत्तीसगढ़ी म हिन्दी, संस्कृत अरबी, फारसी, अंगरेजी, उडिया, मराठी अउ कउन-कउन भासा मन के सब्द मन आके रच बस गिन हें। फेर ओमन अब छत्तीसगढ़ी के हो गिन हें।

असल म सब्द मन के जाति, बरग, इलाका धरम अब्बड़ उदार रथे। जेकर कारन ओ मन सुछिंद एती-ओती जात-आत रथें। असली लोकतंत्र भासा म नजर आथे।'
छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के डेढ़ करोड़ लोगन के मातृभासा, संपर्क भासाय ये अउ तीर-तखार के उड़ीसा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, अउ झारखण्ड के इलाका मन म तइहा ले रहत आत छत्तीसगढ़िया मन के भासा ए। छत्तीसगढी क़े संगे-संग हमर राज म हलबी, गोंडी, कुउख, दोर्ली, परजी, भतरी, उड़िया, मराठी भासामन के बोलइया मन घलो हवै, जउन मन छत्तीसगढी क़े बेवहार करथें।


छत्तीसगढ़ ह हिन्दीभाषी प्रदेश मन के सूची म 'क' बरग म आथे। मतलब ये हे कि छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी हमर राज म सहोदरा बहिनी सही रथें।  छत्तीसगढ़ी होए कि कउनो भासा होए, ओ ह तभे बढ़े सकही, जब ओ ह आने भासा मन के संग म संवाद करही। दू या तीन भासा के सम्पर्क म आदान-परदान होबेच करही अउ सब्द मन एती ले ओती जाबेच करही, फेर बियाकरन ह ओकर ले परभावित नइ होवै। 
छत्तीसगढ़ी म हिन्दी, संस्कृत, अरबी, फारसी, अंगरेजी, उडिया, मराठी अउ कउन-कउन भासा मन के सब्द मन आके रच बस गिन हें। फेर ओमन अब छत्तीसगढ़ी के हो गिन हें। असल म सब्द मन के जाति, बरग, इलाका धरम अब्बड़ उदार रथे, जेकर कारन ओ मन सुध्दि एती-ओती जात-आत रथें। असली लोकतंत्र भासा म नजर आथे, तभे ओ ह जनसाधारण के पूंजी होथे। तुलसी बबा ह अपन रामचरितमानस म सिरिफ अवधि के सब्द मन के परयोग नइ करे हें, बलकिन अरबी, फारसी, अउ संस्कृत के सब्द मन ल सइघो या अपन भासा के मुताबिक रेंदा मार के अपनाए हें। तभे तो आज रामचरितमानस ह अतका लोकप्रिय होइस अउ कतकोन आने भासा मन म ओकर अनुवाद होइस। अंगरेजी म हमर भासा के हजारों सब्द जस के तस ले लिए गे हे। इही कारन ए कि ओ ह दिन दुनिया म बगर गे हे। भासा ह एक नदी समान हे। ओ ह सुछिंद बोहाथे, तभे ओकर पानी ह निरमल रथे। ओ ल बियाकरन ह बांधे नहिं, ओकर बरनन करते, ओकर बेवस्था ह सब्द मन ले बिगाड़े नहिं। भासा के सरूप तब बिगड़थे, जब ओकर बियाकरन ह परभावित होथे। बियाकरन का ए? ओ ह सब्द मन के संरचना अउ वाक्य के संरचना के बेवस्था ए, जेन म पुरुषवाचक सर्वनाम, क्रिया अउ अव्यय (क्रिया विशेषण, समुच्चय बोधक, संबंध बोधक, विस्मयादि बोधक) मन असली होथें। ए मन के सेती भासा ह आने भासा ले अलग साबित होथे, जइसे मैं डॉक्टर करा गे रहैं। कहे म हमर भासा के बियाकरन ह परभावित नइ होए 'डॉक्टर' सब्द अंगरेजी के ए, लेकिन जब मैं के जगह म आई या अहम् कहें जाए या गे रहैं के जगह म 'हेव गान' कहे जाए तब ओ ह छत्तीसगढ़ी नइ रहे सकै।
छत्तीसगढ़ी म आने भासा के अनेक परकार के सब्द लिए गे हे। ये म व्यक्तिवाचक संज्ञा अउ पारिभाषिक सब्द मन ल हमन जस के तस लेथन, जइसे मंत्री, प्रशासन, राष्ट्रपति, राज्यपाल राष्ट्रसंघ, विश्वहिन्दी परिषद आदि। व्यक्तिवाचक नाम मन ल जस के तस लिखे जाथे। भले ही ओकर उच्चारन हमन अपन अनुसार करथन, जइसे 'सुरेश' ल छत्तीसगढ़ी म 'सुरेस' बोले-पढे ज़ाथे, 'शंकर' ल 'संकर', क्षमानिधि ल 'छिमानिधि', कुरुक्षेत्र ल कुरुच्छेत्र आदि। काबर कि लिखना अउ बोलना अलग-अलग बेवस्था ए। दुनिया म जतका भासा हें, ओ मन के कमोवेश इही हाल ए। हमन जइसे बोलथन, ओइसे न तो लिखन अउ न ही लिखे ल ओइसे पढ़न।
भासा म भेद के कारन अउ कुछु नइ इही उदार मानसिकता होथे। भासा के बेवहार करइया मनखे ए अउ दू झन मनखे एकेच भासा ल एकेच परकार म नइ बोलें। 'चार कोस म पानी बदले, आठ कोस म बानी' के मतलब केवल च्छेत्रभेद नो हे, ओ ह समाज, व्यक्ति, परिस्थिति, भेद घलो आए। जउन भासा के बेवहार-च्छेत्र जतका बड़े होही, ओ म अइसन भेद जादा रही। हिन्दी या अंगरेजी के च्छेत्रभेद ल तो हमन सब जानत हन। महर्षि पतंजलि अपन 'महाभास्य' म अपन समय म अइसन भासा भेद ल चिन्हित अउ बताइन कि 'गो' सब्द के 'गौ, गावी, गोणी, गोपोत्रलिका' जइसे भेद जगह-जगह बेवहार होत रहिस। एकर मतलब ये हे कि कउनो भासा अपने-अपने बनै या बिगरै नहीं, ओकर बोलइया मन के अनुसार ओ ह अपन आकार धारन करथे। जतका अउ जइसे भासा के गियान मोला हे, उहीच ह असली ए अउ आने मन के ह ना हे- ए सोच ह दरिद्री के लच्छन ए। भासा के बेवहार छेत्र म छोटे-बड़े सबे के हिस्सा अउ अधिकार होथे, तभे भासा ह समाज अउ संस्कृति के भार ल बोहे सकते अउ ओ ल एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी तक ले जाए म सच्छम होथे।
हमर छत्तीसगढ़ म आने भासा के बोलइया मन जब छत्तीसगढ़ी बोलथें, त ओ म अपन भासा या बोली के सब्द मन आबेच करहीं अउ ओकर ले छत्तीसगढ़ी ह पोठात जात हे। छत्तीसगढ़ी के छेत्रीय भेद गनाए इही आने भासा के हाथ हे, जउन ल छत्तीसगढ़ी बर सुभ लच्छन मानना चाही।
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डॉ. चितरंजन कर

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

आँखी के पीरा

चैतु अऊ पारो खात-कमात, बनी-भूती करत अपन जिनगी के गाड़ी खींचत सुख-दुख के गोठ गोठियावत अपन गाँव कुरिया म खुसी-खुसी जिनगी चलावत सुम्मत में रहँय? अऊ काबर नइ रइहि? अपन दूनो नोनी के बर-बिहाव कर दिस अपन-अपन घर-दुवार म चलदीस। ऊँहों नोनी मन खात-कमात अपन-अपन घर म मगन हावे। गाँव घर म रहिबे तो थोड़-बहुत ऊँच-नीच होते रइथे। वहू एक ठन मया आय कोनों ह बघवा-भालू सन अबोला नइ होय। ओकर सन झगरा झँझट नइ होय। काबर के ओकर सन कोनों काम नइ रहय अऊ वोहा मनखे के हितैसी नोहे। जेहा मनखे के हितैसी रइही ओकरे सन मनमुटाव होथे। दुख-सुख तो जिनगी में लगे राहय।
चैतु, पारो थोड़-बहुत खेती-खार हे तेला अपन बेटा जान के खात-कमात सुम्मत म जिनगी बितावत रहँय। फेर समय के गरभ में का लिखाय हे तेला कोन जानथे। बिपत ह कभू बता के तो नइ आय। कथे नहीं:- 
राजा नल ऊपर बिपत परिस त भुँजे मछरी दाहरा में कुदिस॥
चैतु अपन काम-धंधा ल करत रहय। तइसने म एक दिन ओला आँखी आय सही लागीस। ओहा समझीस की मोर आँखी आय हे। एक दिन, दू दिन। देखत-देखत हप्ता निकलगे अऊ आरुग अंधियार लागे आरुग आँसू ह चूहे अऊ कसके सही लागे। गाँव देहात के दवा ल जतिक जानिस ततिक करीस घलो। फेर कहाँ माँड़थे। माड़े के नाम नइ ले अऊ पीरा ह बाढ़त जात हे। आखरी म थक-हार के नांदगाँव अस्पताल में भरती होगे ऊहचो पंदरा-महिना दिन ले इलाज चलीस। फेर आराम होय के नाम नहीं। फकत पइसा ऊरकई महँगा-महँगा दवा पानी अऊ गाँव म मुड़भर के किसानी के बुता। कमईया कहय चाहे गँवइया कहय। चैतु के सिवाय अऊ कोनों हे अऊ जब बिपत ओकरे ऊपर आगे तब तो अऊ बारा हाल होगे का करही कमा तो सके नहीं। गाँव के किसान ल अपन दुख-पीरा ल बतईस किसान ह चैतु के अलहन ल जान के कमाय बर तइयार होगे। गोठ बात होइस खेत-खार ल कमा के दुहूँ कहिके मानगे। जम्मो खेत ल कट्‌टु म दे दिस। अब चैतु के किसानी के चिन्ता ह थोर-बहुत कम होगे। अपन खेत ल पर ल देवई येहा थोर अकन दुख नोहे? फेर का करबे एक ठन विपत ल सुलझाय बर दूसरा विपत सहे ल परथे। ओकर आँखी के पीरा ह थोरको कमतियाए नइ हे दवा-पानी चालू हे। आस लगाय हे आज नहीं तो काली माढ़बेच करही। इही सोचत घर म उदास थके-हारे सही बइठे हे अऊ मने मन गुनत हे। 
हाथ धरे हँसिया लुये ल सुकवा।
मैंहा कइसे के बतावँव जिये के दुख ला॥
चैतु अऊ पारो चिन्ता-फिकर में गुनत रहय तइसने में गाँव के सियान ह आके कथे, 'अइसने गुनत रइहू त काम ह नइ बने। तोर बेटी-दमाँद सहर म रथे ऊकरे कर जाके इलाज पानी करा। बड़े सहर म बड़े-बड़े डाकटर रथे। चैतु अऊ पारो दूसर दिन अपन बेटी-दमाँद कर आगे अऊ अपन दुख पीरा ल बतईस। तहन रइपुर सहर में जाके इलाज चालू करीस। डाकटर ह बता दीस ओखर आँखी म घाव रीहिस तेहा फुटगे हावे अऊ आँखी में मवाद भरगे हे। एकरे सेती तोर आँखी पीराथे चैतु कलपत कथे। डाकटर ह चैतु ल समझाथे अऊ चैतु के दमाँद ल बताथे। तोर ससुर के इलाज करा नहीं ते बचना मुसकिल हे काबर की मवाद ह कहूँमुड़ी म चढ़ जही ते अलहन हो जाही। अब चैतु के इलाज चालू होइस। थोर-बहुत पीरा ह कमतियाइस। फेर पइसा के खर्चा ह बढग़े। अब रोज दिन रइपुर के आना-जाना म हलाकान होगे रहय। चैतु सलाह देथे तिहि ह ऐके झन करत हस। मोर बड़े दमाँद ल घलो बला लेते ऊहू ह एकातकन मदद करतिस। अब ओकर बड़े दमाँद बेटी ल फोन मारके बलालिस अऊ आ घलो गे। अइस तहन अपन ससुर ल देख के कथे। मेहा तो कहत रेहेव खटिया में परे होही कही के। येहा तो बने हे। ओतिक बात ल सुन के इलाज करइया के मन मे का होइस होही तेला ऊही ह जानथे। वाह: रे तोर सोच। 
दुख ल बोहे रेहेन पीरा म मरे रेहेन।
ओकर गोठ सुन के मुहूँ नइ खोले रेहेन॥
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शेखचंद मेरिया, चरभंठिया

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

मुँहू बाँधे के फैसन



आजकाल जेला देखबे तेला मुँह-कान ल बाँधे के फैसन होगे हे। चिन्हारी घलो नई आय। चिन्हारी घलो कहाँ ले आही सबो मुँह-कान ह तो तोपा गेहे। आँखी भर ह जुगुर-जुगुर दिखत रहिथे। अइसने मुँह-कान ल बाँधे कोनो स्कूटी में जावथे त जरूर जान ले कि येहा कोनों मेडम आय। मेडम मन के आय ले अइसने बाँधे के चलन जादा बाढग़े हे।
बस स्टेशन या कोनो चौक में जाबे त दू-चार झन अइसने मुँह बाँधे मेडम मन जरूर खड़े रहिथे। कतको मेडम मन खाँध में बेग लटकाए रहिथे अऊ चसमा घलो पहिने रहिथे। कतको झन ल रोज-रोज देखत रहिथे तभो चिन्हारी नइ आये। काबर कि ओकर मुँह बाँधे  के साफी अऊ बेग ह बदल जाथे। कतको झन ह उहीच-उहीच साफी ल बाँधे रहिथें त साफी ल देख के चिन्हारी आ जाथे। नौ बजे के बेरा में बस में चढ़बे त अइसने चार-छ: मेडम जरूर बइठे राहे, अतका जोर-जोर से बात करत रहिथे कि जानो-मानो बस ल उही मन खरीद डारे हें। किसम-किसम के गोठ-बात ओकरे मन से सुन ले अलग-बगल बइठइया मनखे मन चुपचाप ओकर मन के बात ल सुनत रहिथे अऊ मने मन हाँसत रहिथे।
हमर छत्तीसगढ़ में माओवादी मन ह गाँव शहर सब जगा खुसर गेहे, अऊ अइसने मुँहू ल बाँधे रहिथे त चिन्हारी तक नइ आय। तेकरे पाय आसानी से अपन काम ल अंजाम दे देथें। कोनो जगा भी बड़े दुरघटना घट जाही त एमे आश्चर्य के कोनो बात न नइ रहे। कुछ दिन पहिली सरकार ह अइसने मुँह बाँधे बर मना करे रिहिसे। दू-चार दिन जुरमाना घलो लगाइस। वोकर बाद टाँय-टाँय फिस्स होगे। परसासन ल चाही कि येकर उपर सखती से कार्रवाई करे ताकि एकर आड़ में कोनो गलत धंधा या दुरघटना मत होय।
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-महेन्द्र देवांगन 'माटी'
गोपीबंद पारा पंडरिया
कबीरधाम

छत्तीसगढ़ के तीज तिहार- मड़ई मेला

कोनो तीज तिहार होय, अंचल के रीत-रिवाज जहां के संस्कृति अऊ परम्परा ले जुड़े रथे। सबो तिहार म धार्मिक-सामाजिक संस्कार के संदेश हमला मिलथे। तिहार मनाय ले मनखे के मन म बहुते उमंग देखे जाथे। आज मनखे ला काम बूता के झमेला ले फुरसद नइ मिले। ओला तिहार के ओखी म एक-दू दिन काम-बूता ले उरिन होके घूमे-फिरे अऊ अपन हितु-पिरितु संग मिले भेंटे के मौका मिलथे। तिहार के ओखी घर-दुवार के साफ-सफाई लिपाई-पोताई हो जथे। गांव म डीह डोंगर के देवी देवता के ठऊर ल बने साफ करके लिपई पोतई करथें। देवता धामी के बने मान-गौन होथे तब उहू मन बस्ती अवइया बिघन बाधा बर छाहित रथे। इही पाय के हमर पुरखा मन तीज तिहार मनाय के परम्परा चलाय हें, जेमा एक ठन तिहार गांव के मड़ई मेला ल घलो माने जाथे।


मड़ई मेला परब मनाय के चलन कब ले शुरू होय हे, येखर कोनो ठोस परमान तो नइ मिलय फेर सियान मन अपन पुरखा मन ले सुने मुंहजबानी कथा अइसन किसम के बताथें। द्वापर जुग म भगवान कृष्ण हा देवराज इन्द्र के पूजा नई करके गोबरधन पहाड़ के पूजा करिस, तहान इन्द्र ह अपने अहंकार के मारे मुसलाधार बारिस करके सब गोप-ग्वाल ल विपत म डार दिस। तब भगवान कृष्ण ह अपने छिनी अंगरी म गोबरधन पहाड़ ल उठाके सबके रक्षा करिस। संगे-संग गोप-ग्वाल मन ल अपन-अपन लऊठी पहाड़ म टेकाय बर कहिके एकता म कतका ताकत हे येकर मरम बताइस। ओ दिन विपत ले बांचे के खुशी म गोप-ग्वाल खूब नाचे गाये लगिन। उही दिन ले राऊत नाचा अऊ मड़ई मनाय के परम्परा शुरु होइस।

जिहां तक हमर छत्तीसगढ़ के बात हे, देवारी तिहार म गोबरधन के पूजा करथन। किसान के नवा फसल आथे, ओकर बाद म मड़ई मेला मनाय के सिल-सिला शुरु हो जथे। ओ जुग म भगवान कृष्ण ह प्रकृति के पूजा करके इन्द्र के अहंकार ल टोरिस अऊ ग्वाल बाल के रक्षा करिस तब कृष्ण ल अपन रक्षक मान के ओकर पूजा करिन। उही पाय के आज घलो गऊ माता के चरवाहा मन भगवान के कथा ले जुड़े दोहा बोलथें अऊ नाच-कूद के खुशी मनाथे। अब भगवान कृष्ण के संगे-संग अऊ कतकोन देवी देवता के पूजा अऊ मान गौन करथें। देवी देवता के चिन्हारी के रूप में मड़ई बैरक सिरजा के मड़ई मेला के तिहार ल सामूहिक रूप म मनाय जाथे।
मड़ई मेला के परब हमर जम्मो छत्तीसगढ़ म मनाय जाथे भले विधि-विधान म थोर-बहुत अंतर रथे। ये तिहार ल मनाय के तारीख तिथि पहिली ले तय नइ राहय फेर अतका बात जरूर हे, जे गांव म जौन दिन हाट बजार होथे उही दिन मड़ई मनाथें। जेन नान्हे गांव म हाट बजार नइ होय उहां कोनो दिन अपन सहूलियत देख के मड़ई तिहार मना लेंथे। कोनो-कोनो गांव जिहां हफ्ता म दू बेर हाट बजार लगथे अऊ बस्ती बड़े होथे उहा दू बेर मड़ई मेला के परब मना लेथें। येकर उलट कोनो-कोनो गांव म अपन गांव के परम्परा के मुताबिक कुछ साल के अन्तराल म मनाय जाथे। जइसन के जिला मुख्यालय गरियाबंद म तीन बच्छर म मड़ई मेला मनाय के परम्परा चलत हे। उही जिला के पांडुका गांव म छेरछेरा पुन्नी के बाद अवइया बिरस्पत (गुरुवार) के दिन मड़ई पक्का रथे। कोनो ला बताय के जरूरत नइ राहय। कई ठन गांव म हमर देश के परब गणतंत्र दिवस के दिन बड़ धूमधाम ले मड़ई मेला के तिहार मनाथे।

मड़ई मेला के तइयारी बर गांव के सियान पंच सरपंच एक जगा सकलाथें अऊ एक राय होके चरवाहा मन ला बताथें। दिन तिथि बंधाथे तहान मड़ई मेेला के जोखा गड़वा बाजा, नाच पेखम के बेवस्था अऊ जरूरी जिनिस ल बिसाके लानथे। अलग-अलग गांव म अलग-अलग देवी देवता बिराजे रथे। जइसन के महावीर, शीतला माता, मावली माता, सांहड़ा देवता के संगे-संग गांव के मान्यता के मुताविक अऊ देवी-देवता जेमे बावा देवता, हरदेलाल, राय देवता, नाग-नागिन देवता, बाई देवता अइसने कई किसम के नाव सुनब म आथे, ऊंकरो मान गौन करथें। गांव म कतको झन अपन पुरखौती देवी देवता मानथे जेला देवताहा जंवरहा कथे ओमन मड़ई बैरक राखे रथें उंकरो मान गौन करथें। मंडई म परमुख शीतला माता, मावली माता, महावीर, कोनो के पोगरी देवी देवता के मड़ई रथे। दू ठन कंदई मड़ई रथे जेमा कपड़ा के पालो (ध्वजा) नइ राहय। कंदई मड़ई म कंदई के अनगिनत पालो लगे रथे। डांग (बांस) के बीचोंबीच म चार पांच जगा ढेरा खाप पंक्ति लगा के ओमा मोवा डोरी गांथ के कंदई के पालो लगाय रथे। ओकर ऊपरी फोंक म मयूर पांख के फुंचरा बांधे रथे जेहा सबो मड़ई के शोभा बढ़ाथे।

मंड़ई मेला के परब म पौनी पसारी के मदद लेना बहुत जरूरी रथे। पौनी पसारी म गांव के पुजारी बईगा, किसान के गाय चरवाहा राऊत अऊ देवी देवता के पूजा पाठ बर दोना-पतरी देवइया नाऊ ठाकुर के सहयोग जरूरी होथे। इंकर बिना मड़ई के परब नई मना सकय। मड़ई के कामकाज करइया गांव के अगला मन पूजा पाठ के जिनिस, नरियर, सुपारी, धजा, वइसकी, लिमऊ बंदन, गुलाल, हूम धूप, अगरबत्ती के जोखा कर के राखे रथे। मड़ई के दिन सबले पहिली नरियर सुपारी अऊ बाजा-गाजा संग गांव के बइगा ल नेवता देथें, तब बईगा हा गांव के सब देवी देवता ल जेकर जइसन मान-गौन होथे ओ जिनिस ला भेंट कर के नेवता देथे। तहान गांव के परमुख सियान मन ला पिंवरा चाऊंर अऊ सुपारी भेंट कर के नेवता देथें। मंड़ई के दिन बाजार चौक म बिहिनियां ले दूकान वाला बैपारी मन अपन सामान लान के अपन दुकान सजा के तइयारी कर लेथें। जइसने बेरा चढ़त जाथे ओइसने बाजार के रौनक बढ़ते जाथे। मड़ई म मिठई, दुकान, खिलौना दुकान, मनियारी दुकान, होटल, पानठेला, किराना दुकान अऊ संगे संग साग-भाजी के बेचइया मन के पसरा घलो लगथे। मड़ई के दिन सबो दुकान के सामान खूब बेचाथे। वैपारी मन खूब आमदनी कमाथें। लोगन के मन बहलाय बर ढेलवा रहचुली झुलइया घलो आथें फेर अब ओहा धीरे-धीरे नंदावत हे।

संझाती बेरा नेवताये पहुना मन ओसरी-पारी आवत जाथे। ऊंकर मन बर सुन्दर मंच बनाके बईठे बर कुरसी, दरी बिछाय रथे। पहुना के आते साथ गुलाल लगा के स्वागत करके बइठारथें उही बेरा राऊत मन मड़ई (बैरक) लेके बाजा-गाजा संग नाचत-कूदत आथें अऊ अपन राउत नाचा के कला देखाथें। उहां ले राउत मन बिदा होके मड़ई ला ऊंकर ठऊर म अमराके ओती मंच म बईठे पहुना मन मड़ई मेला के विषय म भासन उद्बोधन देथे। ओकर बाद पहुना मन ला एक-एक नरियर दे के बिदा करथें।

मड़ई मेला के परब हमर छत्तीसगढ़ के अलग पहिचान बनाथे। हमर छत्तीसगढ़ के कतको रीति रिवाज हा आज के नवा जमाना म नंदावत हे ये हमर बर संसो के बात हे। हमर छत्तीसगढिय़ा बुद्धिजीवी मन ला हमर पुरखौती संस्कार अऊ परम्परा ल संजोके राखे बर ठोस उदिम करे बर जरूरी है। संगे संग हर तीज तिहार म मंद मऊहा अऊ जुवा के रोकथाम बर हमला जागरुक होना बहुते जरूरी हे।
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नोहर लाल साहू "अधमरहा"
गांव हसदा
मगरलोड, जिला-धमतरी (छ.ग.)

यमराज ह पिकनिक मनाय जब धरती म आइस

बियंग
धरती में खास करके भारत में देवारी तिहार के तैयारी चलत रहिस। रंग रोगन फटाका झालर बलफ से दुकान मन ला सजाय जावत रहिस हे। हीरकयमराज हा दूरबीन लगाके धरती कुती ला देखिस अउ उदास होगे। आगू में जुगाली करत यमवाहन (भैंसा) खड़े रहिस हे। मालिक यमराज के उदास चेहरा देख के वो हा चिन्ता में पडग़े। यमराज हा बहुत सेण्अमेण्टल होगे रहिस हे। भैंसा जी बोलिस का बात ये महाराज आप बहुत उदास दिखत हो? यमराज बोलिस-वाहन, सबके पूजा होथे सिरिफ मोर पूजा कोनो नइ करय। यमराज के आंसू डबडबागें। भैंसा जी थोकिन हंसिस, थोकिन देर तक नेता मन के पान चबाय के अंदाज में जुगाली करिस अउ रस ला गुटके के बाद बोलिस। तुंहरो पूजा होथे महराज फालतू टेंसन लेके उदास मत होवव। धरती में खा
स करके भारत में नरक चतुर्दसी के दिन सबो जनता तुंहर याद करथे। न तुंहर मंदिर हे, न कथा होवय न आरती तभो ले जनता अपन लंबा उमर के परार्थना तुंहर से करथे। बिसवास नइ होवत हे तब चलौ ये दरी भारत के दौरा में निकले जाय। यमराज थोकिन खुस हो के बोलिस सिरतोन काहत हस वाहन? के मोर मन रखे बर अइसन बोलत हस? भैंसा जी बोलिस हण्ड्रेड एण्ड टेन परसेण्ट सही बात ये महराज। अब तुमन ये मत पूछौ के मैं हा वो करिया भंइसा ला भैंसा जी काबर लिखत हौं। अरे भई परान लेबर जब यमराज आथे तब वोला अपन पीठ में चढ़ाके कोन हा लाथे? उही करिया भ्ंइसा हा लाथे ना? अरे भई मैं तो वो करिया भंइसा ला परसन्न करना चाहत हौं ताकि जब मोर परान हरे के बारी आवत तब वो हा थोकिन बिलम जावय। कोनो मेर थोकिन सुरता लेवय या रस्ता में खड़े होके देर तक चुरुक-चुरुक पिसाब करय या कोनो स्मार्ट भैंस ला देख े बिदक जावय अउ बारा महीने में बारा तरीके से तुझको पियार करुंगा रे..... ढिंग चिंगा.... वाले गाना ला भैंस के पाछू-पाछू रेंगत गावय अउ यमराज ला मोर पता के बजाय दूसर के पता में ले जा के भटका देवय। अरे एक दिन भी बिलम जही तब मैं हा एक ठन कविता या लेख तो अउ लिख सकत हौं ना? के बीच सहमति बनगे के धरती में भारत वष्ज्र्ञ के दौरा करे जाय। यमराज बोलिस अरे यार भारत तो ठी हे ये वर्ष माने तो साल होथे न? भैंसा जी कहिस महराज वर्ष के एक अर्थ भू खण्ड भी होथे। भारत वर्ष माने भारत-भूमि। यमराज फेर परस्न करिस-तोला कोन बतइस हे? भैंसा जी बोलिस एक दिन मैं हा स्कूल के पिछोत में चरत रेंहेंंव अउ पाटकर सर हा हिन्दी के पीरेउ में पढ़ावत रहिस हे तब सुने रहेंव।.... अच्छा तब तो माने ला लगही। अइच्दा अब ये बता के यात्रा बर का-का समान धरके जाय बर परही? जेखर से कोनो तकलीफ झन होवय। भैंसा जी कहिस महराज वइसे तो सबे समान धरती में मिल जथे फेर भी कुद रखना है तब तुंहर मजी मई, मैं का बोलंव? मैं तो सिरिफ दही भर ले के जाइूं काबर के भारत में दही या तो मिलय नहीं या मिलथे तेन हा दूध पावडर के बने रहिथे। दूध पावडर के दही हा थोकिन बिसरइन आथे, मोला परसंद नइ आवय। किरिस्न भगवान के जमाना का गय, दूध-दही के नहिया सुख गे। दूधवाले मन सबो दूध ला पइसा के लालाच में डेरी में बेंंच देथे, ओखर लइका मन ीाी दूध-दही बर लुलवा जथे। मोला दूध के संग मुर्रा अडबड़ मिठाथे।
यमराज पूछिस रम रखैं के व्हिस्की? भैंसा जी कहिस महराज ओखरो जरूरत नइये। उहां गांव-गांव में दारू खुलेआम मिल जथे। दूध नई मिलही पर दारू चोबीसों घण्टा मिल जथे। आजकल तो जेबमें कनिहा में खोंच के लोगन घर पहुंच सेवा दे बर लग गेहे। हां कुद चिल्हर पइसा जरूर रखे बर परही काबर के उहां चिल्हर अउ छोटे नोट के भारी कमी हे, तेखर सिती दुकानदार मन टोकन थम्हा देथे। यमराज फेर पूछिस एकाध अप्सरा रख लौं, मनोरंजन बर? वोला भैंस में बइठा के ले चलथन। तैं भैंसी के संग वेलेण्टाइन डे मनाबे अउ मैं अप्सरा के संग केसिनो या डान्सबार जाहूं। वो मोला सीला के जवानी... अउ मुन्न बदनाम हुई... गाना में डान्स देखाही। भैंसा जी बोलिस महराज अप्सरा के भी जरूरत नइये उहां बड़े-बड़े सहर के होटल मन में एखर मन के रैकेट चलथे। ए टू जेड ग्रुप के मिल जथे। जहां तक भैंस के बात हे तब भारत के हर सहर में पांच-पांच ठन खटाल हे। उहा एक से एक स्मार्ट भैंस हे। बेनी जइसे सींगवाले, कोस्टक जइसे सींगवाले, मच्छर अगरबत्ती जइसे सींगवाले, छोटे, मंझोले, बड़े सबो साईज के भैंस उपलब्ध हे। यमराज फेर बोलिस अरे यार टेंसन में मोर माथा बहुत पिराथे, मस्तक सूल हर पावडर रख लेथौ। भैंसा जी बोलिस महराज टेंसन मत ले। उहां के झण्डू बाम बहुत फेमस हे। इहां तक मुन्नीबाई तको हा झण्डू बाम लगा अउ पीरा गायब।

देर तक बहस करे के बाद यात्रा सुरु होगे। रस्ता में यमराज बोलिस-वाहन रस्ता कइसे कटही? हिन्दी फिलिम के कोना गाना याद होही ते सुना। भैंसा जी बोलिस हम गाना सुरु करबो तक सबके कान फट जही, बरम्हा जी हा हमन ला बेसुरा ही पेदा करे हे। मैं कुद चुटकुला सुना देथौं-परीक्षा में एक ठन परस्न आय रहिस लौह पुरुस के काम अर्थ होथे? एखर अर्थ होथे के दृढ़ विचार वाले आदमी ला लौह पुरुष कहे जाथे पर लइका लिखे रहिस जेन लोहा खरीदोि अउ लोहा बेंचथे वोला लौह पुरुष कहे जाथे। विज्ञान में एक परस्न आय राहय, रमन प्रभाव काला कहिथे? डॉ.सी.वी.रमन हा समुद्र के पानी के रंग नीला होय के एक सिद्धान्त निकाले रहिस जेला रमन प्रभाव कहे गीस। लइका किखे राहय एक रुपिया अउ दू रुपिया वाले चांउर से छ.ग. से गरीबी दूर होगे, इही रमन प्रभाव ए। गाय के निबंध में एक लइका लिखे राहय गाय हमारी माता है, हमको कुद नहीं आता है। गुरुजी लिख दीस बैल तुम्हारा बाप है, नम्बर देना पाप है अब गाय हा माता होइस तब भैंस हा बड़े दाई होगे अउ छेरी हा काकी होगे काबर के एखरो मन के दूध हमन पीािन। यमराज हा खूब ठहाका मार के हांसिस। अइसे तइसे उन भारत के सीमा में आगे। भैंसा जी पूछिस महराज भारत के कोन से राज्य लेण्ड करौं? यमराज हा सोच बिचार के कहिस यार भारत के सबो राज्य के दौरा तो कर चुके हन। नवा राज बने हे उंहे ले चल-झारखण्ड, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़। भैंसा जी बोलिस झारखण्ड अउ उत्तराखण्ड बर रिवर्स गेयर लगाय बर परही जेमा तकलीफ होही काबर के कल एक ठन भैंस हा मोर पाछू कोती ला सींग में हकन देहे। घाव में दवई लगाय हौं पर दरद अभी कम नई होय हे। कल मैं मर्डर पिच्चर देख के थोकिन बहक गे रेहेंव। अब सामने छत्तीसगढ़ हे उंहे ले चलथौं। एक्सीलेटर दबइस अउ पहुंचगे छत्तीसगढ़।

छत्तीसगढ़ में राउत मन देवारी के तैयारी में लगे राहय। छत्तीसगढ़ आते साठ यमराल ला हजामत बनवाय के सुरता आइस। एक ठन सेलून के पास रुक गे पर यमरानी के हाथ के बने कच्चा अइरसा खाय के कारन पेट में कुद गुडग़ुड होए लगिस लकर-धक सुलभ में घुसके फुलफोर्स के ताकत लगाइस तब थोकिन बने लागिस। सुलभ से निकलिस तब भैंसा जी एक ठन फरमाइस कर दीस-सीतल सेलून में मोर आगू के सफेद बाल ला डाई लगवा के करिया करवा देतेव महराज। सफेद चेंदुवा ला देख के सबो भैंसी मन मोला डोकरा होगे अइसे समझथे अउ बनत बात हा बिगड़ जथे। मोर करिया सरीर में ये सफेद चेंदुवा हा सफेद दाग कस अलकरहा लगथे। यमराज के मइनता भोगा गे। जोर से दपकारिस चुप बे, सिर से पांव तक तै करियाच करिया हस। रात के अंधियार में उही चेंदुवा ला देख के तोला खोजथौं, उहू ला करिया कर देबे तब मोला अंधरौटी आ जही भैंसा जी उदास होगे। यमराज हा चापलूसी करत बोलिस देख वाहन वो हा सफेद बाल नोहय, तोर माथा के चन्दा ए, पुन्नी के चन्दा वाला वोइसने परकासित राहन दे। पुन्न के चन्दा सबो ला इन मिलय। इहां तक संकर जी भी हा दूज के चन्दा से काम चलावत हे। तैं पुन्नी ला अमावस में काबर बदलना चाहत हस यार?
सेलून से निकल के कुद आघू बढिऩ तब राउत मन सोहई सजावत रहिन। भैसा जी ला खुस करे बर यमराज बोलिस-वाहन तोर बर ये गतहार खरीद दौं का? भैंसा जी बोलिस महराज तोर जनरल नालेज बहुत कमजोर हे। येला तो भैंसी मन पहिनथे। यमराज परस्न करिस काबर? जवाब मिलिस काबर के ये हा भैंस अउ गाय मन के मंगलसूत्र ए, अउ मंगलसूत्र औरत मन पहिनोि पुरुस मन नहीं।

आघ्ज्ञू गीस तब एक ठन टाकीज मिलिस जिहां तकदीरवाला फिलिम चलत रहिस हे। उहा अड़बड़ भीड़ देख के यमराज पूछिस इहां अतेक ट्रेफिक जमा काबर हे? भैंसा जी बममतइस के इहां पिच्चर चलत हे ये टाकीज ए। काभू पार्टी आफिस में कभी पिच्चर हॉल में टिकिट पाए बर लाईन लगाय बर पइथे। दूनों झन मनखे रूप धरके पिच्चर हॉल में घसगे। पिच्चर के फेमस सीन आय के बाद यमराज पूछिस ये कोन एक वाहन? भैंसा जी कहिस वोखर डॉयलाग नइ सुने का हम है यम, यम है हम? ये कादर खान ए जेन यमराज के रोल करत हे। ये पिच्च ला बने देख ले, यमराज ला का-का करना चाही तेन येमा बताय गेहे। पिच्च्र छुटते ही दूनों झन मतांल कोती खरीदी करे बर चल दीन। बने-बने जिनिस देखके यमराज हा यमरानी बर समान खरीदे लगिस, भैंसा जी हा अपन भैंसबाई साहब बर खरीदिस। दूनों झन देवारी के खूब मजा लीन। यमराज ला गपागप होटल के केक अड़बड़ पसंद आइस, खाइस अउ लेगे बर भी खरीदिस।

यमपुरी पहुंच के यमरानी के जन्म दिन के केक काटे गीस। भैंसा जी हा अपन पुछी ला एण्टीना कस ठाढ़ करके घोलण्ड के वोखर पांव परिस अउ पेंउंस के डबबा गिफ्ट करिस। हैप्पी बर्थ डे टू यू मैडम कहिके जुगाली कर-करके हकन के गबर-गबर खाके केके के आनन्दर ले बर धर लीस। यमराज ला थोकिन संतोस होइस के चलौ कोनो न कोना बहाना लोग मोरो पूजा करथे। ओती भैंसा जी हा अपन भैंसबाई साहब ला सोहई गिफ्ट दीस। भैंसबाई साहब एकदम सरप्राइज होगे पूछिस व्हाट इज दीस? भैंसाजी बोलस डा.........र ...लि... ग ये मंगलसूत्र ए, छत्तीसगढ़ से स्पेसली तोर बर लाय हौं। ये बेसरम के फूल ए बिना पानी डारे भी जिन्दा रहिथे, हमर बारी में लगा देबे। तोर खोपा में लाय के काम दीही। कल एला पहिन के यमरानी घर बइठे बर चल देबे, अइसन कलरफुल मंगलसूत्र तो ओखरो जघा नई ए, अउ खोपा में बेसरम फूल के गजरा लगाय बर झन भुवाबे। पंड़वा के दाई, पारा मोहल्ला के सबो भैंसी मन तोर सन्दरता ला देख के दंग रहि जही अउ जलन घलो मरही। मैं हा लइका मन बर किसम-किसम के खजानी लाय हौं, अइसे कहिके झोला से ठेठरी खुरमी, अइरसा, चंउसेला, पपची, मुर्रालाडू, भक्कालाडू, उसनाय केंवट कांदा ला उलद दीस। ये खेड़ा ए भैंसा प्रजाति बर एकदम पोष्टिक हे। बने जतन के रख।

तैं मोर कतका खियाल रखथस, आई लव यू कहिके भैंसबाई हा भैंसा जी के छाती से चिप गे। भैसा जी हा गाना गाए बर धर लीस... रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना... भूल कोई हमसे न हो जाए.... अउ एखर बार का होइस होही तेखर कल्पना तुमन कर सकथौ। सबोच बात ला मही थोर बतावत रहूं जी?
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डॉ.राजेन्द पाटकर ''स्नेहिल''
हंस निकेतन-कुसमी, व्हाया-बेरला

स्वच्छ भारत के मुनादी


स्वच्छ भारत के मुनादी २ अक्टूबर के होईस अउ 'स्वच्छ भारत' के सपना ल पूरा करे बर सब सफाई करे म जुटगें। 'जुटगें' शब्द ह सही हावय काबर के ये दिन अइसना रहिस हे के प्रधानमंत्री ले लेके एक सामान्य मनखे तक सफाई के काम करिन। 'भारत रत्न' सचिन तेंदुलकर, अनिल अम्बानी अउ सोनी सब चैनल के 'तारक मेहता' धारावाहिक मन ये अभियान म जुरगें। देश के जम्मो मनखे मन एक दिन सफाई करिन। फेर 'प्रधानमंत्री' के 'स्वच्छ भारत' के मुनादी होते रहिस अउ ये काम अभी तक चलत हावय। ऊंखर कहिना हावय के भारत अब साफ- सुथरा होना चाही। इंहा कोनो जगह कचरा दिखना नई चाही। सबके मन म ये बात आना चाही के कचर ल सही जगह डाले जाय अउ ओला सही जगह पहुंचाये जाए।


आज हर गांव म ये सफाई के सफलता दिखत हावय। अंबागढ़ चौकी ले दस किलोमीटर दूरिहा थुहाडबरी गांव म हैंडपंप, कुंआ के तीर म नहाना अउ कपड़ा धोना मना कर देय गे हावय। नहाय ले या कपड़ा, बरतन धोए ले पांच सौ रुपिया के जुर्माना रखे गे हावय। ये काम स्वच्छ पानी बर करे गे हावय। स्वच्छ जल स्रोत आज के बहुत बड़े जरूरत हावय। सत्ता परिवर्तन या फेर घर के मुखिया के बदले ले सोच अउ काम करे के तरीका बदलथे। आज उही इस्थिति भारत के हावय। सालों साल के रद्दी फाइल, आफिस मन म जमा हावय। सबले पहिली ओखर सफाई करे गीस। सरकारी दफ्तर म जमा पुराना कबाड़ हटाए जात हावय। सफाई अब हर तरफ होना चाही। साठ बछर ले सब जगह कचरा जमा होवत हावय। 

गांधीजी के सपना रहिस हे 'स्वच्छ भारत' येखर बर अतेक बछर ले कोनो नई सोचिन। आज ये सपना ल पूरा करे के बेरा आगे हावय। काबर के आज चारों डाहर सिरिफ कचरा दिखथे। आज के सिक्छित समाज चारों डाहर कचरा फेंकत हावयं। घर के बाहिर कचरा, बस स्टैंड, रेल्वे स्टेशन म कचरा के संग-संग पान, तम्बाखू के पीक ले रंगे जमीन देवार दिखत रहिथे। तरिया, नदिया सब जगह गंदगी पटाय हावय। पालीथिन ले पटाय धरती जल स्रोत ल बंद करत हावय। ये पालीथिन जानवर के पेट में जाके ओखर जान लेवत हावय। ये सब गंदगी ल आज साफ करे के जरूरत हावय। येखर सीख इस्कूल ले ही मिलना चाही। आज इस्कूल म कोनो भी लइका ले काम नई कराय जा सकय।

आज ले ४५-४० बछर पहिली तक लइका मन स्वयं अपन कक्छा अउ इस्कूल ल साफ करयं। हमन स्वयं दानी इस्कूल म पढ़त राहन तब अपन कक्छा ल धोके सजावन। ये सफाई अउ सजावट बर प्रोत्साहित करे जाय। खेलकूद के समय म मैदान के गंदगी साफ करन। कई इस्कूल मन म बागवानी बर एक कालखंड देय जाय। कई जगह आज भी अपन इस्कूल के क्यारी म लगे सब्जी के उपयोग मध्यान्ह भोजन म करे जाथे। इस्कूल में ही ये सब काम के अनुभव हो जाय त बहुत अच्छा हे। सामूहिक रूप ले काम करे ले समाज म संतुलन बना के सिक्छा मिलथे। जब तक ये सफाई के ट्रेनिंग डंडा ले के नई दे जाही तब तक सिखना कठिन हावय। ये सफाई के काम १४ नवम्बर ले १९ नवम्बर तक फेर चलही। येला सफल बनाना जरूरी हावय। आज हर मनखे ल सिखना जरूरी हावय के बिस्कुट, आइसक्रीम के खाली डब्बा ल डस्टबिन में ही डालना हे। आज रद्दा ले मल-मूत्र हटना जरूरी हावय। चैनल जेखर नांव रखे रहिस हे 'शू शू कुमार' ये हर जगह मिल जाथे। कई झन ल पकड़ के पूछे गीस तब पता चलिस के पेसाब करे के जगह नइए, हावय तिंहा गंदगी हावय। असल म सब ल लइका सही सिखोय के जरूरत हावय।

हमन बारह बछर पहिली सिक्किम घूमे बर गे राहन। मोर बेटा छोटे रहिस हे। ओला 'शू शू' लगिस तब मैं ह रद्दा किनारे आर्कीड जंगल रहिस हे उंहा लेगेंव। पीछू ले अवाज आइस , 'ये ये', लहुट के देखेंव त ओ मनखे मोला गुरेर के वापस आए के इसारा करिस। आए के बाद बतइस के थोरिक दूरिहा म 'पेसाब घर' हावय। 'बाहर पेसाब नहीं करना।' बाद म पता चलिस के सिक्किम म ये काम बर जुर्माना होथे। तभे तो सिक्किम साफ-सुथरा हावय। आज सफाई बर अइसने जागृति जरूरी हावय। एक-दूसर ऊपर नजर रखे जाय। मोदी, अंबानी अउ सचिन के बहारे ले कुछु नई होवय, एक दिन सब डब्बा म चल दिही। येला अपन जिम्मेदारी समझ के करे जाय। तभे घर, दफ्तर, पारा-मोहल्ला, गांव, सहर अउ देस साफ होही। 'स्वच्छ भारत' के सपना पूरा होही। यही ह गांधीजी बर सबले बड़े श्रद्धांजलि आय। जुरव, स्वच्छ भारत बर जुरव।

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-सुधा वर्मा

सरद पुन्नी के चंदा

सरद पुन्नी के दिन पहिली रयपुर म कवि सम्मेलन होवय। स्टेसन रोड डाहर जब ये कवि सम्मेलन होवय तब दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन येला सुने बर हावय। पुन्नी के दिन कवि हिरदय उफने ले लग जथे। सही बात आय। जब चांद ह धरती के तीर म आ जथे अउ धरती ल अपन खूबसूरती देखाथे। चंदा ह धरती के खूबसूरती ल देखथे।


सही तो आय बारिस खतम हो जते। धरती के पियास बुझा जथे अउ हरियर धरती अपन हरियाली ल अइसे देखाथे जइसे हरियर चादर ओढ़े हावय। हल्का-हल्का सीत परे ले धर लेथे। ये सीत के बूद पहिली तो पाना मन म दिखय फेर अब दूसित पर्यावरन के कारन नई दिखय। गांव सहर म पोतई-लिपई पूरा हो जथे या फेर पुन्नी के अंजोर म आखिरी काम चलत रहिथे। घर-घर के अंगना द्वार साफ-सुथरा हो जथे। गोबर म लिपाय सुन्ना अंगना म चउंक पूरा जाथे। सरद के सुवागत बर घर के अंगना द्वार म चउंक पूरे जाथे। सरद रितु म रास धर के अंगना म आथे। ये रास के अगोरा म घर द्वार सब चकचक ले दांत निकाल के हांसत हावय अइसे लागथे।

दसेरा म नवा खाय जाथे, सरद पुन्नी ले देवारी तक धान पाके ले लग जाथे। देव उठनी ले धआन के कटई सुरू हो जाथे। कई जगह जल्दी धान आ जथे। अइसे लागथे के ये सरद पुन्नी के चंदा हमर ये तइयारी ल देखे बर आ जथे। ये चंदा अमरित बरसाथे अइसे कहे जाथे। ये दिन सर्दी, खआँसी, अस्थमा के दवाई घलो देय जाथे। ये पेड़ के छाल आय जेन ल एक खास दिन निकाले जाथे, ओखर बाद ओखर चूरन तइयार करे जाथे। ये चूरन ल फोकट म बांटे जाथे। ये चूरन ल खीर के संग खाए जाथे। सरद पुन्नी के दिन ये दवई के संग म कई जगह खीर घलो देथें।

कई जगह खुल्ला जगह म खीर बनाये जाथे। अइसे समझे जाथे के सात लेबारह बजे तक चंदा ले अमृत बरसथे। ये अमृत खुल्ला म बनत खीर म समावत रहिथे। ये खीर परसाद के रूप म अमृत सरिख बांटे जाथे। काबर के येला अमृत ही समझे जाथे। घर-घर खीर बनाये जाथे। खीर ल घर के अंगना म, छत म रखे जाथे। ओखर बाद जब आधा रात होथे तब येला खाए जाथे। अस्थमा वाले मन घर म घलो खीर व दवई डार के खाथें। खाये के बाद पसीना ऊपर परथे तब दवाई जादा असर करथे। 

ये चंदा सबके धियान अपन डाहर खिंचथे। कवि हिदय येखर ऊपर कई-कई ठन कविता लिखथे। साथ ही ये चंदा के नीचे बइठ के रंग-रंग के कविता सुनाथें घलो। फेर कवि हिरदय अब चंदा ऊप कमती रिझथे। बहुमंजिली इमारत, घना बसे नगर के बीच चंदा अब दिखय नहीं। पर्यावरन अतेक दूसित होगे हावय के चंदैनी तो दिखय नहीं; चंदा घलो धुंधला जाथे। ओखर खूबसूरती अब कई जगह दिखय नहीं। बांचे समय म आज लोगन अपन समय ल दूरदरसन देखे म गंवा देथे। असो सब झन सरदपुन्नी के चंदा ल देखव। प्रकृति के सुघ्घर खूबसूरती ल देखे बर भुलाहू झन।
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सुधा वर्मा

भजन बिना मनवा कइसे तरोगे

नाचा हमर छत्तीसगढ़ के सुघ्घर लोकनाट्य परम्परा आय। साहित्यिक दृस्टिकोन से नाचा एक दृश्य-श्रव्य काव्य दूनो होथे। नाचा के गम्मत के कथानक कोन्हों नामी लेखक के लेखन रचना नइ राहय बल्कि ठेठ देहात के ठेठ देहाती कलाकार के तत्कालिन समाज, अउ देस-दुनिया के व्यवस्था से संबंधित मन के उपज होथे। पुरुस पात्र ले अभिनीत नाचा के संवाद ह कलाकार मन के सोंच-विचार अउ साधारन गोठ बात ले तइयार होथे। ठेठ देहाती बोली सैली म नाचा सामाजिक उत्थान के उद्देश्य ले भरे ग्राम्य वातावरन मं छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक विरासत ल संबल करे म बड़ा महत्वपूर्ण भूमिका निभाथय।



जब हमर नाचा के गोठ चलथय त ठउका सुरता आथय जोक्कड़। जोक्कर। याने गम्मतिहा। जोकर मेल कैरेक्टर याने पुरुस पात्र होथय। वर्गाकार मंच के हिस्सा आय। वाद्य कलाकार के टिमिक-टामक करे ले, सुर-लय धरे ले दरसक सकलाथें। तीन झन परी मन के आरी-पारी नचई अउ दू-तीन ठन गीत प्रस्तुति ले नाचा सुरु होथे। परी घलो पुरुस कलाकार होथे। वाद्य पक्छ के पेटी मास्टर पेटी बजावत गायन करत दर्सक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथय।

गंहुरावत रात मं सुघ्घर सांत माहौल में निर्मित होथे। वाद्य कलाकार मन एक विसेस सैली म वादन करथंय। ताहन दू झन कलाकार मन के मंच मे आगमन होथे। इही मन जोक्कर माने जोकर। जोकर के अक्छरश: अर्थ होथे जोक यानी हंसी-मजाक करइया। जोकर अंग्रेजी के हिन्दी पयार्य आय। ये जोकर मन के आते साथ सुंदर ढंग ले बाजा के सुर-ताल सन ठुमकथें, नाचथें। दूनोझन के पहिचान इंखर बिसेस ढंग के वेसभूसा अउ रूप सज्जा ले होथे। एक झन ह बिलकुल सामान्य पहनावा म अपन सादगी अउ एक सांत, समझदार व्यक्ति के चरित के रूप म रहिथे अउ दूसर ह सामान्य ले हट के एक अलग ही ढंग ले वेसभूसा अउ मेकअप म दर्सकवृंद के ध्यानाकर्सित करथें। छिंटही, गहरारंग के कुरता-पैंट, पयजामा, एक अलग विचित्र असन टोपी, आन-आन रंग के कुरता के बांह, झलंग-झंलग पैंट ह येखर भूमिका ल सार्थक करथे। येखर हाथ में गोट मोटहा गांठ के लउठी या कोकड़ी गोटानी ह हास्य स्फुटित करथे। साधारन पहनावा के जोकर ल मुख्य अउ असामान्य वेसभूसा पहनावा के सहयोगी जोकर होथे। गांव के सामान्य व्यक्ति के रूप मं प्रस्तुत होथे दूनो जोकर। घर परिवार के कर्णधार चरित्र होथे। समाज के केन्द्र बिन्दु होथे। गियान, सिक्छा के गोठ ह लोकभासा, गीत संगीत उद्देश्यात्मक गोठ बात ले हास्य गंभीर ढंग ले जनसामान्य के समक्छ प्रस्तुत होथे। नाचा के सफल प्रस्तुति के उद्देश्य लिए ये दूनो कलाकार वाद्य यंत्र के सुर-ताल राग म राग मिलाक रे हांथ जोड़े सुमरनी गावत प्रस्तुत होथे।
अ आ आ कि....
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख गवरी गनेस।
पांच देव मिल रक्छा करे, ब्रह्मा, बिष्णु, महेस।।
बुद्धिहीन तनु जान के, सुमिरंव पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहू मोहि, हरेहु कलेस विकार।।
सरसती ने सर दिया, गुरु ने दिया गियान।
माता-पिता ने रूप दिया, जन्म दिया भगवान।।
राम नाम ललाम, सबका मंगल धाम।
बहते हुए सन्तों को, कोटि-कोटि प्रनाम।।
मन मरे ममता मरे, मर गए सरीर।
आसा तिसना न मरे, कह गए दास कबीर।।
गंगा बड़े गोदावरी, अउ तीरथ बड़े धाम।
सब ले बड़े अजोध्या, जहां लिये अवतार राम।।
जल मं बसे कुमुदनी, चंदा बसे अगास।
मंय तो धरती मं रइहंव, पर धियान आपके पास।।
पढ़े-लिखे नइ हन भइया, निच्चट अड़हा आवन।
भूले चुके ल माफी देहू, तुंहरे लइका आवन।।
दूनो जोकर पूर्ण ग्रामीन व्यक्ति के किरदार मं होथें। भासा घला ठेठ छत्तीसगढ़ी होथय। अंचल के मुताबिक, स्थानीय सब्द के उच्चारन भले अलग हो सकथय। दूनो के संवाद माने गोठबात, घर-परिवार, खेती-किसानी, रोजी-मजदूरी अउ समै-मौसम के मुताबिक काम-काज के गोठके रूप मं सुरु होथे। दूनोझन एक-दूसर ल रिस्ता-नता सन नांव ले संबोधन करिक-करा होथें। जम्मो दरसक समूह ल मुंड़ नवावत गंगा के संग्या देवत सुघर निक आकर्सन सैली म प्रस्तुति सुरु करथंय। एकबानगी प्रस्तुत है।
प्रमुख जोकर- 'राम-राम गिरधारी भाई, अबड़ दिन मं दिखेस। काहां आथस, कहां जाथस, समझ नइ आय। घात दिन होगय मुलाखात होय।'
सहयोगी जोकर- 'हव मोर भइया, अब्बड़ दिन म होइस मुलाखात। का करिबे गा बड़े भइया, कमाय खाय बर महुं हा चांदा बेलसा कोनी चल दे हंव। ये तिहार बर आए हंव भइया।'
'हव भाई, कमाय-खाय बर, ये जिनगी चलाय बर कांहयो हो जाए ल पड़थे गिरधारी, पर अब्बड़ मया करेस ये छइयां-भुइंया के अउ तैं ये बछर भर के तिहार ल मनाय बर गांव मं आयेस।'
प्रमुख जोकर के संवाद म व्यवहार कुशलता प्रेम, धैर्य, संयम, सहजता के भाव ह दरसक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथे त गोठ-गोठ मं दूसर जोकर के ऊटपटांग अउ चुटीला गोठ ले दरसक समूह मं हास्यभाव पसर जाथे। मुस्कई अउ ठहाका छा जाथे।
'बहुते दिन मं भेंट होइस, त चल भगवान के भजन-कीर्तन करथन। ये जिनगी के कोनो ठिकाना नइ हे। ये भवसागर ले तरना हे त हरि नाम बहुत जरूरी हे भाई गिरधारी।'
'हव, मोर बड़े भइया।'
'त ले सुना...।'
'सुंघा! हाव भइया तंय सुंघा कथस ते मंय जरूर सुंघाहूं। महूं घोजते रहेंव के कोनों सुंघइया...। मोरो ल कोनो हर सुंघतीस कहिके।'
'सुंघइया नहीं भाई, सुनइया गा...।'
'हाव भइया, महूं काहथंव सुंघइया...। जरूर सुंघाहूं, अउ तोला सुंघे ला पड़ही, तभे महूं ल बने लाग ही, मोरो जी जुड़ाही।'
'तैं सुंघाहूं कथस, काला सुंघा बे मोर भाई।'
'डेरी गोड़ के पन ही ला...।'
'अपन डेरी गोड़ के पन ही ल। काबर जी?'
'अभी आवत खानी खआतू गुदाम करा सुन्हेर दाउ ह अपन बंड़वा बिलवा कुकुर ल घुमावत रिहिस। वो कुकुर हा हाग दीस। खोचका के पानी ले बांच हूं कहिके कूद परेंव भइया। का करिबे वो बंड़वा बिलवा के मोर डेरी गोड़ मं मोर डेरी गोड़ ह माढग़े। वो ह पनही मं चपका गे। मंय नइ सुंघे हंव। कोनो तोर असन भइया ल जेन ल जिनगी के मोर ले जादा अनुभव हे, बताथिस की कतिक बस्सात हे।'
'वा रे, परलोखिया, मइनखे राहे चाहे कुकुर के बस्साय के जिनीस नइ बस्साही।'
'न हीं, मंय ये सोंचत रहेंव कि, दाउ घर के कुकुर ह बिहनिया दूध सन डबल रोटी, पारले जी असन ओखर नास्ता होथे, मंझनिया खाना में अस्सी रुपया किला के राहेर दार एचएमटी चाउर, आलू, सेम्ही, फूल गोभी के साग अउ रतिहा घला पुस्टई जेवन जेथय। बेरा-बेरा म किसिम-किसिम के जिनीस दबाथय। मोला लागथय के दाउ के कुकुर दाउखाना खाथे, दाऊ हागे ह नइ बस्सात होही।'
'हत रे बइहा, अल्करहा गोठियाथस रे! चल ये सब ला छोड़। अइसन बिन रंग-ढंग के नी गोठियाय गा। ले एकाठन भजन-वजन सुना, समय कटही।'
'त सुनबेच गा...।'
'हाव भाई...।'
'घर निकलती तोर ददा मरे, जियते जियत मरगे तोर भाई।
संग चलत तोर बाई बिछुडग़े, ये जम्मो ल बिगाड़े तोर दाई।।'
'ये कोन जगा, अउ कोन समै के बात ये भइया। तंय कइसे अजीब सुनाथस। ददा मरे, जियते जियत भाई मरगे, संगे चलत बाई बिछुडग़े, ये सबो ल महतारी ह बिगाड़े कथस। का बात ये गा।'
'मोर बड़े भइया ये उही समै के बात ए जेन समै भगवान राम ल चौदह बछर के बनवास होइस। बेटा राम निकल ते राजा दसरथ प्रान तियाग दिस। बड़े भाई के बन जाये ले भरत भाई के जीना ह मरना होगे। लछमन घला इही हाल। जंगल में घूमत-भटकत माता सीता के हरन होगे। ये सबो के कारन आय रानी माता केकई।'
'वा भाई गिरधारी, वाजिब बात बताएस गा।'
'त तंय येसने समझथस जी! महूं पढ़े हंव कोदो दे के पढ़े-लिखे हंव। पांचवीं ल पांच घांव पढ़े हंव, जे ला सब एके घांव पढ़थे। मोला जादा अनुभव हे एके कक्छा के।'
'अरे वा भइया, बड़ पढ़ेहस जी। ले एकाधठन अउ सुना डार।'
'हावजी, अ...आ...आ...।'
'बुढ़वा डारे टमर के, जवान डारे सट ले।
लइका डारे अइंते-तंइते, वोखर दाई मारे फट ले।'
'अरे भइया, तंय अइंते-तइंते झन गोठिया गा। मार डार ही ये गब्दी गांव के मन हा।'
'कोनो नइ मारे भइया। मैं कोनो गलत बात नइ काहत हंव तें नइ जानस ते नइ जानस। मैं तो जानथंव।'
'ले बता... कइसन बात आय?'
'अरे पनही ताय गा। सियनहा टमर-टमर के पहिरथे। जवन हो सट ले पहिरथे अउ लइका ह अइंते-तइंते याने डेरी के ला जेवनी अउ जेवनी के ला डेरी, त महतारी ह फट ले मारथे अउ बने पहिराथे।'
'वा भइया गिरधारी। बड़े-बड़े गोठ गोठियाथस गा।'
'त गा... ले चल तंय सुना...।'
'हाव भई। भइया गिरधारी ये मनुस तन ह अड़बड़ मुस्किल में मिले हे। हम ला ये भव सागर ले तरना हे, पार होना हे। हमर आगू म बइठे दाई-माई ददा-भइया दे चार सियान ह गंगा ये गा।'
'ये मन गंगा ए...?'
'हव भाई, ये मन चार गंगा ये...।'
'वो दे तो हे गा, वो बीड़ी पियत हे तेन हर तो रामलाल के ददा दसरू, गहिरा आय।'
'वोइसन बात नोहे गिरधारी। गंगा माने चार बड़े सियान जेन ल जिनगी के जादा अनुभव होथे। जेखर सियानी गोठ ले हम छओटे मन ल सीख मिलथय। ऊंखरे असीस हमन ला पुरथय। हमर जिनगी सुधरथे। त हमर बर ये गंगा ये गा। चल येला मुंड़ नवाथन। भजन-कीरतन करथन।'
'अ...आ... अजी... अ... आ...'
'कइसे तरोगे रे मनवा कइसे तरोगे
भजन बिना मनवा कइसे तरोगे...
चौरासी योनि ले भटक के पायेस ये तन ला
प्रभु चरन म लगाय रहा ये मन ला
यहा भवसागर गहरी नंदिया जी
थाह बिना डूब मरोगे रे मनवा कइसे...।'
नाचत-ठुमकत, आलाप मारत, दूनो जोकर के गोड़ के घुंघरू के धुन, तबला-ढोलक के थाप, पेटी-बेंजो के स्वर, मंजीरा के लय सांत गंहुरावत रात मं हमर देहाती लोक परंपरा के दरसन कराथे।अमिट-अमूर्त सांस्कृतिक झलक देखे ला मिलथे। दूनो अपन गंभीर व हास-चुटीली संवाद, त्वरित सुवाल-जुवाप अउ गीत-संगीत के माध्यम ले समाज म फैले अंधविश्वास, रूढि़वाद, दूसित नियाव प्रणाली, सामंतवाद म कुठाराघात करथंय। वोखर दुस्परिणाम ल रखत वोखर निदान घला सुझाथें। याने नाचा हमर अइसन सामाजिक आइना आय। जेमा हमर गांव-देहात के तस्वीर प्रतिबिंबित होथे।
दूनो जोकर आधा-पौन घंटा तक संवाद अउ गीत-संगीत ले नाचा के प्रथम दृस्य ल सारथक करे के उदिम करथें। नाचा ठउर म पूर्णरूपेन ग्राम्य वातावरण तइयार होथय। हालांकि उहां मंच म कोनो देहाती निसि देखे ल नइ मिलय। दूनो झन एकबार फेर नत्ता सोरियावत एक-दूसर के नांव धरत नाचा के कथानक याने गम्मत प्रस्तुति के मुड़ी धरथंय। जेखर बर एक महिला चरित्र के जरूरत पड़थे। त मुंड मं फूलकंसिया लोटा बोहे माईलोगन (महिलापात्र) जेन ल 'जनाना' कहे जाथे। नाचा पार्टी के अनुभवी कलाकार जोन ह औरत के भूमिका करत रइथे, जनाना बनथय। राग लमियावत मंच म आथय।
अइ हो... हो... हो...
इंखर घर मं कइसे के रहियों या
इंखर घर म कइसे के रहियों...
कमा-कमा के जांगर टूटगे
नइ मिलिस सुख दाई
करू करेला जोड़ी के बचन
नइ मिलिस मीठ बोली भाई
सास ननंद करथे मोर निकारा
इंखर घर...।

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टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!