बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

लेवाल

नोनी हो काली भिनसरहा ले फूलेरा पूजा करते साठ फरहार बासी खाए बर आहूँ, तुम्हर भऊजी मन हा रोटी-पीठा बना के राख देहें। अमसिया काकी के अतका काहत होइस के जामा अऊ बाला के मन हा गदगद होंगे काबर कि ओमन जानत हें अमसिया काकी ह अतका पेट भीतर ले मया करके ओमन ला तीजा के बिहान दिन बासी कहि लव के फरहार दूनों खाये बर बलाथें, अऊ जब हमन ओखर नेवता पाके डेहरी भीतरी अमाथन त हमूमन ला काकी के घर-दुआर ह निक लागथे, मार छनछन ले ओखर रँधनी ह छोहा पार के लिपाये रहिथे,
अँगना परछी ह चकचक ले औंठियाये, पोंछाये रहिथें, कपाट बेंड़ी मन मार रग-रग ले तुरते के तेल-वारनिस लगे कस रहे रहिथे। फेर काकी ल हमन कभू हक-खाय कस नइ पायेंन, हमर जाय के आघुच कुआँ बाल्टी ले हेरे पानी ल गगरी अऊ हऊँला म तोप ढाँक के राखे चूल्हा के आगी ल तीर के मुँधरहच ले भिनसा पानी बना के मढ़ाय, अगोरत रहिथे। जाते हमन ल भिनसा ल डार के देथे, अऊ जतका देर ले भिनसा पानी नइ पीयें राहन तलघस ले काहत रहिथे, “बेटी हो आघू इहि ला मुहूँ म तुलसी पान डार के पिवँय, ऐखर ले टोंटा ह नई छोलाय।” फेर इही काकी ल देखत जामा ह गुने ल लागिस कि कइसे ओमन अपन नान्हेपन म आठे मनाये के बिहान भये ले इही अमसिया काकी ल अपन भाई-भतीज के अगोरा लेवत देखे हे अऊ कहूँ काकी ल ओखर अंतस जाने बर कोनो पूछ लँय, कि काकी तोला तो परिहारो घलो अइसने हे अगोरत देखे रहेन तभो तोर भाई ह नई आय रहिस। येला सुनते ओ हा मार मुच ले हाँस के कहि देवय, “आने बछर कोनों काम-बूता म फँदा गे रिहिस होही, फेर एसो म आही। बछर के इही सुनत-सुनत ओ मन काकी ल मोटियारी ले सियनहिन होवत देखे रहिन। बात परे म गँवई के ओखर जमाना के जँवरिहा माई लोगिन मन ह गोठियावैं, कि “अमसिया काकी ह जब नेवरिया बिहा के आय रिहिस तब डोला-परछन के बाद जब बैलागाड़ी ले उतरिस तब अइसे लागिस जानो-मानो सोझ्झे लछमिन दाई ह लकलक ले आय हे। रंग म साँवर रहय फेर नाक-नक्शा ह देखे के लइक रहाय। तहाँ अऊ बतावँय कि काम-बूता ह ओला भारी उसरय, ओखर जाँगर के पार ल कोनो आने बहू-बेटी मन नई पा सकँय फेर जब पठोनी आय के बाद पहलइया तीजा ह नजदीक आय ल धरीस तब निच्चट मरही बरोबर ओखर चेहरा-मोहरा ह दिखे ल धरलिस। आठे ल मना के गाँव के जम्मो बहू-बेटी मन हा जब ओरी-पारी अपन-अपन लेवाल संग आय-जाय ल लागिन। तभो ले उही बखत नेवरिया बहू आय अमसिया काकी के अगोरा ह नई सिरइस, पोरा के दिन ले नाँदिया-बइला के भोग परसाद बर ठेठरी-खुरमी बना के टीपा-टीपली म धर डरीस। उही संदूक में तीन ठिक लुगरा-पोलखा अऊ साया ल घलो घिरिया के इस्तरी करे बरोबर राखे रहय। फेर पोरा पटके जाय बर जब बहिनी बेटी मन ओरियाय लगिन त काकी ह कइसनो अटका लगा के कुरिया भीतरी रेंग दिस। ओती करू भात के दिन आगे फेर ओखर लेवाल के कोनो सोर पता नई आइस फेर उही बेरा म जब मइके आय बेटी मन पूछत-पूछत ठठ्ठा घलो करे लागिन कि भौजी तोर लेवाल ह कतका बेरा आही कहूँ रद्दा के तीर तखार के भूलन काँदा ल तो नइ खुंद परीस होही। अइसन, रंग-रंग के गोठ ल सुने बाद घलो अमसिया काकी के आँखी ह नइ डबडबाइस अऊ इही कहिके ओमन ल चुपे करा दय कि साँझ-रात ले भाई ह आही अऊ निहीं तब कोनो न कोनो ल मोला लाने बर कका ह तो पठोहिच। फेर जइसन कि वोला भीतरे-भीतर जनाय बरोबर होगे रहाय। ओखर न लेवाल ह इस अऊ न तीजहा-बर लुगरा। रद्दा देखत मँझनिया ले सँझा अऊ फेर रतिहा होगे ततके म काकी के घर तीर के पारा म आय बेटी मन ह पूजा थारी म लुगरा, नरियर, दिया-बाती धरे-धरे फूलेरा पूजा करे बर शंकर के मंदिर म ओरियाय ल लागिन तब अमसिया दाई के उतरे रूप ल देख ओखर सास ह किहिस, “बेटी तेंहा मोला आज ले ससुरार के संगे-संग मइके के महतारी घलो जान। अमसिया काबर कि तेहा मोर बेटा के पाछू म बिहाय आय हस। त तहुँ ह मोर बेटी आस, ऐखरे सेती आज ले तेहाँ इँहे करूभात मानबे अऊ फरहार करबे अऊ तोर तिजहा बर जे लुगरा मन आही तेला मोर खोली म राखे पेटी ले हेर के लेआ।” अइसन कहिके अपन अछरा म बाँधे कुची ल छोरके अमसिया काकी के सास ह ओखर हाथ म धरा दीस, अपन सास के अइसन गोठ अऊ ओखर पाछू के मया ल देखके अमसिया काकी के आँखी डाहर-ले मार तर-तर आँसू ढूले ल धरलिस, अऊ तहाँ ले आज नवा महतारी बने अपन सास ल आही-बाँही भीतरी पोटार के किहिस- 'दाई मँय ह तो महतारी काला कथे कभू नई जानेंव, बाबूच ह महतारी अऊ बाप दूनों के मया अऊ दुलार दिस। फेर करम के लेखा ल कोनो न टार सकय इही के चलते एक दिन बाबू घलो ह गाँव के कोटवार कका ल मोला सँऊप के जिनगी ल हार दिस अऊ सरग रेंग दिस फेर ऐती मोर करम ठठा गे काबर के कोटवार कका के बेटा-पतो ल मँय ह फूटे आँखी नइ सुहावत रेहेंव तभो ले कका के मया पाय के दिन भर घानी कस बइला पेरावँव अऊ भाई-भऊजी ल फूलोय म लगे रहँव रेड़ के बूता काम करँव तब कहूँ, पेज बासी मिलय, कका ह इही सब ला देखत उमर होते मोर हाथ ल पिंवरा के गंगा नहाय बरोबर होगे। ओखर लाचारी के आगू म मँय हा बिन मुँहू कस रहिगेंव, तभो ले सूने हावँव कि मइके के चिरई, कुकुर बर घलो मया लागथे त तो फेर मोर कका के परवार ह एक जनम के माने नता हरय अऊ एखरे सेती आठे मनाते लेवाल के रद्दा देखे ल धरलेंव, फेर अपन मन ल मढ़ा डरेंव इही संसों म, कि जतका भाग म रिहिस वतका मिलगे, अब काबर मन ल छोटकुन करँव तभे “जामा, बाला चलो न नोनी हो, फरहार बासी खातेव त महूँ ह अपन मुँहू म गंगाजल डारतेंव।” दाई के ये हाँक ह जब मोर कान भीतरी जनइस त हड़बड़ा के सिंग कपाट के बेंड़ी ल हेरे ल धरलेंव, अऊ बाला के संगे दुआरी के आँट ल लकर-धकर नहाक के अमसिया काकी के घर म दुनों झिन संगे हमायेन, काकी ह मया करके हमर मन बर लपेटा इढ़हर, कढ़ी, तिखुर अऊ आने रोटी-पीठा समेत जतका खाय-पिये के जिनिस बनाय रिहिस तेला परोस देइस तभे थिरइस। फेर हमर फरहार-पानी करत ले, झट हमर मन बर लाने लुगरा ल भुजा म डार के एक-एकठि रुपया अऊ सेंदूर पुड़िया ल हाथ म धरा दिस। तभे मँय अऊ बाला दुनों झिन सलाह करके काकी बर पातर आँछी के लाय लुगरा अऊ कका बर लाय कुरथा कपड़ा ल झोरा भीतरी ले निकालेन अऊ संगे काकी के देह म डारे ल धरेन त काकी ह कथे- “बेटी हो मानदान घर के लुगरा पाटा ल झोंक के मँय ह पाप के भागी नइ बनँव, इही पायके येला झोराच म धर लेव। काकी के गोठ ल हमन नइ सुनत हन तइसे मिटकाय कस करके, काकी ल किलोली करे ल धरलेन अऊ सल्लग केहे ल लागेन- “हमन ल महतारी मान के ले ले न काकी, काबर कि बेटी ल घलो मइके कहिथें। अतका सुनते मानो काकी के आँखी के आँसू हर अपन हुँकारू देय ल धरलिस अऊ झर-झर टिपके लागीस। फेर हमन का देखथन कि काकी ह हमर मन तीर ले लुगरा अऊ चूरी-चाकी के डब्बा ल झोंक के केहे लागीस- 'तोर कका ल किंजर के आवन दे वोला बताहूँ कि कोन कहिथे मोर महतारी नइहे। ये देखव मोर लइकुसहा महतारी बने नोनी मन ह मोर बर तिजहा के संगे तुम्हार बर कुरथा कपड़ा घलो लाये हाबँय। मँय हा आज इही लुगरा ल पहिन के फरहार करथँव। तुम्हार लाने ल पाछू पहिन हूँ। हाँ फेर तहूँ मन खोर डहार जाहू त बुधारू दर्जी मेर अपन कुरथा के नाप छोड़ देहु। काकी के ये गोठ ल सुनते हमन के जी म खुसियारी लागीस, तभे हमन काकी ल चेताय ल धर लेन काकी संगे फुलेरा ठंडा करे बर तरिया जाबो अऊ तहाँ ले मँय अउ बाला दोनों झिन सुटूर-सुटूर बैदेही भौजी पारा डाहर रेंगे ल धरलेन।

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श्रीमती अनुरिमा शर्मा, डंगनिया रायपुर



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