भेलई वाली मोर सारी ह अड़बड़ सुन्दर हे, वोखर सुन्दरता ल देख के घर वाले मन वोखर नाम उरवसी रखे हे। उरवसी के मायने होथे ‘हृदय म बस जाने वाली’, जइसे नाम वइसे काम। वोखर सुन्दरता के लिए एकेच सब्द हे- झक्कास! एक ठन आयोजन के नेवता पा के भेलई गे राहँव। वो कार्यक्रम ह डीपी देसमुख, दीनदयाल साहू, दुर्गा परसाद पारकर, तुकाराम कंसारी दुवारा समिलहा आयोजित रहिस। साम के छै बजे कार्यक्रम ह खतम होइस। अब रात रुके के बारी आइस। मँय सोंचेव पाछू बेरा ऑटो वाले भाँटो घर गेरेहेंव, तब ये दरी अपन सारी घर जाय जावँव। ऑटो बइठ के सारी घर पहुँच भी गेंव। सड़क ले दस कदम दुरिहा म वोखर घर राहय। साढ़ू ह एक ठन कम्पनी म काम करय, कम्पनी के क्वार्टर म राहय। मँय उरवसी ल उरवसी नइ कहिके फूलकैना (फूल की कन्या) काहँव काबर कि वो ह सहींच म फूल कस नाजुक रहिस हे। बाहिर के गेट ल खोल के सोझे खुसरगेंव अऊ जा के हाँक पारेंव फुलकैना...! आरो पा के फुलकैना परगट होगे, हाथ म टीवी के रिमोट राहय। फुलकैना नाम सुनके दँउड़त बेडरूम से गेट तक अइस। हाय भाँटो कोन कोती के राजा मरे हे? मँय कहेंव- अरे तोर से मिले अड़बड़ दिन होगे रिहिस हे तेखर सेती मिले बर आगेंव। फूलकैना निहर के पॉंव परिस। हाँत के हरियर-हरियर चूरी मन खनक के परसन्नता देखइस। फूलकैना के चेहरा म हीरा पाय के खुसी दिखत रिहिस हे। हिरना कस कजरारी बड़े-बड़े आँखी, कामदेव के धनुस कस भौंह, बाबी डॉल कस नाक, दँतइया कस पातर कनिहा, केरा के पेड़ कस चिक्कन पेंड़री, पके कुंदरू कस ओंठ, मोती कस चकचक ले दाँत, कनिहा के आवत ले बेनी, ऊप्पर लें मोंगरा के गजरा। फूलकैना सहिंच म उरवसी अपसरा कस दिखत राहय। अभी-अभी पाटी पार के कंघी करे राहय, अतर तेल के खुसबू आवत राहय। हिन्दी भाखा म अइसने मन ल अनिंदय सुन्दरी कहे जाथे। फूलकैना पानी ले के अइस अऊ सोफा म बइठे ल कहिस। पैंतिस हजार के नावा सोफा म बइठेंव तब गजब के आराम मिलिस। देखते-देखते फूलकैना ह मोर बर कॉफी बना के ले अइस। कॉफी के सिराते ही हालचाल पूछेंव। भाई साहब कहाँ गे हे? वो कहिस सेकंड सिफ्ट ड्यूटी गे हे, दस बजे आ जही। तँय तो दिनोंदिन अऊ सुन्दर होवत जावस हस फूलकैना। फूलकैना ह उल्टा बान छोड़ दिस-तैं का कम हस भाँटो? मँय सुनेंव तब लजा गेंव। फूलकैना कहिस- तैं पहिली ले दुबरा गेस भाँटो? एक्सीडेण्ट के बाद मोर पीठ म लोहा के पट्टी बँधाय रहिथे। पेटभर खाना नइ खवावय। उप्पर ले नौकरी के टेनसन, कहूँ न कहूँ दौरा, टूरा के पढ़ई के चिन्ता अलग। कइसे नइ दुबराहूँ तहीं बता? दीदी कइसे हे कहिके पूछिस तब बतायेंव वो तो घुसघुस ले मोटा गे हे। तँय अपन बता तोर का हालचाल हे? फूलकैना के चेहरा म चमकत हैलोजन लाइट ह बुझागे। का बतावँव भाँटो, जवानी, अइसने खुवार होवत जावत हे। बिहाव के चार साल होगे पर एको झन संतान नइ हे। ऐला तो बस दारू के सिवाय कुछू नइ सुझय। दिन-रात पीयत रहिथे बरजे ले मानय निंही उल्टा ताना मारथे तोर बाप के पइसा के पीयत हौं का कहिके। महूँ उदास होके बोलेंव- जेला बरबाद करना हे तेला दारू पीये बर सिखा दे अऊ कुछू करे के जरूरत नइ हे। दारू ह वोला सब बुराई सिखा दिही। परेम से वोला समझायेंव तँय अपन खियाल रखे कर! तोर सुघ्घर रूप ल देख के मोला तरस आथे फूलकैना, बिधाता ह तोला बाँधिस तब काखर संग। भावना ह जब मुरझा जथे तब आतमा ल चोट लगथे, अऊ आतमा ल चोट लगे से परेम के अथाह कुआँ ह घलो सूखा जाथे, फेर आदमी ह तन से पास म रहिके भी मन से कोस भर दूर रहिथे। फूलकैना ह मोर बाजू ल पकड़ के रोनहुत होके कहिस कोनजनी भाँटो कोन जनम के पाप ये तेला भोगत हँव। रहि-रहि के मोला तिरिया जनम झन देबे रे सुवा ना... वाले गाना के सुरता आथे। सुनेंव तब मोर जघा बोले बर सब्द नइ रहिगे।
फूलकैना ह मौन ल टोरिस- देख तो भाँटो मोला बुखार हे का? दिनभर रसरसाय कस लगत हे, अइसे कहिके अपन बाँह ल मोर कोती लमा दीस। छुयेंव तब अइसे लगिस कि उल्हुवा पाना ल छुवत हँव का, वोखर हाथ ह सहीं म गरम लगिस। मँय कहेंव जा चाय संग बुखार के गोली खा ले। ठउँका वोतके बेर कुकर के सीटी बाज गे। भाप निकले से दुबराज, चाँउर के खुसबू ह घर भर म फइलगे। अब लगातार सीटी बजे के कारन फूलकैना ह दँउड़ के रंधनी खोली म चल दीस। आ के कहिस खाना बन गेहे भाँटो, गरमे-गरम खा ले न। मँय कहेंव- दूनों भाई संगे-संग नइ खाबो? अरे वोखर कोई ठिकाना नइ हे भाँटो, डिवटी छूटे के बाद बजार चल देथे उहाँ ले पी-पा के आ जथे। आ के नखरा मारथे, जिद्द म उतर जथे... मारपीट करथे मोला बाँझ कहिथे। मँय ह गारी, मारपीट सबो ल सही लेथों फेर बाँझ कहिथे तब अइसे लगथे कि पंखा म लटक के मर जॉंवव का... कि रेल म कट के जिनगी ल खतम कर लँव। जिनगी ह मोर बर पहाड़ होगेहे भाँटो। सुन्दर रूप पायेंव तब का काम के, घर के पति ल मोर कदर नइहे। अइसे-तइसे दिन काटत हँव। जे दिन नइ सही सकहूँ ते दिन पता निंही जहर-महुरा मन मोर साथ दिही के निंही ते। मोर मन ह रोवासी होगे। धकर-लकर बात ल पलटेंव- ए दरी तोर जनम दिन म सबो झन अवइया रहेन। तोर दीदी ह मना कर दीस, वो मनला बढ़िया से जनम दिस मनावन दे, पी-पा के आथे तहाँ ले वो ह सुरु हो जथे जानथस तो कहिके।
फूलकैना फेर पूछिस- खाना निकालत हँव भाँटो बिहनिया के खाय हावस, भूख लगत होही? वोला आय म रात के गियारा तक बज जाथे। तँय खा ले अऊ अराम कर, मँय फोन म पूछ लेथँव। जवाब मिलिस खाना बनगे हे तब खवा दे ना, मोला आय म देरी हो जही। खाना निकलगे, राहेरदार म डारे घी ह टिकली असन गोल-गोल छिटके राहय। बोहार भाजी ल देखेंव तब मुहूँ म पानी आगे। आनंद से एक-एक कौंरा ल खायेंव। पापर, बिजौरी, अथान के संग खाय के मजा कुछु अऊ होथे। हाथ ल पोंछत बोलेंव-तोर हाथ म जादू हे फूलकैना। कइसे भाँटो? तोर हाथ के रॉंधे जेवन ह अड़बड़ मिठाथे। फूलकैना कठल के हाँस दीस।
समाचार देखत राहँव ततके बेरा साढ़ू भाई अइस। जै जोहार के बाद थोकिन चरचा करके वो ह खाय बर चल दीस। दूनों कोई खाय बर धर लीन। कब मोर नींद परगे पता नइ चलिस। अधरतिहा एसी के ठंडा हावा म छींक ऊपर छींक आय बर धर लीस। लगातार छींकत देख के फूलकैना आगे। कइसे छींकत हास भाँटो काफी बना दँव का? मँय कहेंव अम्मठहा बोहार भाजी अऊ एसी के ठंडक म सर्दी धर लीस। ए.सी. ल बंद करके पंखा चला दे जा तहूँ सुत अभी रात ह पहाय नइ हे। फूलकैना पंखा चला के चल दीस।
मोर आँखी ले नींद ह उड़ा गे राहय। रहि-रहि के फुलकैना के बात के सुरता आवय पंखा के लटकना, रेलगाड़ी, जहर महुरा... ये सब ल सुरता करँव तब मोर आँखी ह आँसू के भार ल नइ सही सकिन अऊ लीकेज नल के टोंटी कस बूंद ह टप-टप टपके बर धर लीस। मँय ब्रम्हाजी से बिनती करेंव- हे परमपिता, मँय अपन भाग के बाँचे सुख ल फूलकैना के नाम करत हँव। वहू बिचारी ह अपन दु:ख ल छिपा के खुसी ओढ़ के जीयत हे। साढ़ू के नाक बाजत राहय अऊ फुलकैना ह छटपटावत राहय। चुरी के खनक अऊ करवट के अवाज से अंदाज लगत रहिस। एकाध घण्टा बाद मँगइया मन के फेरा सुरु होगे। फूलकैना उठिस अऊ दान देय बर चल दीस। महूँ उठ गेंव काबर कि दूसर दिन कलेक्टरेट म बैठक राहय। सात बजे बस राहय, छै बजे तियार हो गेंव। फुलकैना बिस्कुट अऊ काफी ले के आगे।
मैं कहेंव भाई साहब ल उठा न, अब जाय के अनुमति ले लेथँव। फुलकैना हाँस परिस पर साढ़ू ह नसा के मारे ऊं... ऊं.. कहिके रहि जावय। फूलकैना कहिस- नींद म हे भाँटो सुते राहन दे। ... अच्छा फूलकैना दया-मया ल धरे रहिबे, बस के बेरा होवत हे जाथँव कहिके पॉंच सौ रुपिया के नोट ल वोला देंव। फूलकैना ह लेय बर इंकार कर दीस। तब जबरदस्ती वोखर हाथ म पकड़ा देंव। फूलकैना मोर हाथ ल अपन दूनों हाथ म धरलीस। वोखर आँखी ह डबडबाय असन होगे। मोला कहिस तोला मोर किरिया हे भाँटो, दीदी ल कुछू झन बताबे। पूछही तब सब बने-बने हे कहि देबे। मँय हाथ ल छोड़ायेंव तब वो पॉंव परिस, वोला आसिरबाद देंव अऊ निकल गेंव।
बस म बइठे-बइठे मोला फूलकैना के सुरता आवय। नींद के मारे आँखी करुवावत राहय। आँखी ल मूूँद लेंव तब कण्डक्टर पूछिस- कवि सम्मेलन से आवत हास का सर जी? मँय झूठमूठ कहि देव हहो। फेर आँखी मूँदेंव तब फूलकैना के बात ह सिनेमा कस चले लगिस। ... भाँटो, बाँझ कहिथे तब अइसे लगथे कि पंखा म लटक के मर जॉंव का? कि रेल म कट के जिनगी ल खतम कर लँव का... पता निंही जहर महुरा मन मोर साथ दिही के निंही ते? वो हँसी वो दमकत चेहरा, वोखर पीछू फूलकैना के अँधियार जिनगी। बाँझ के ताना, परमात्मा के अइसन लीला... अजब परेम के गजब कहानी बनगे राहय।
दस बजे के आसपास फूलकैना के फोन अइस- भाँटो तँय एसी ल बंद करा दे रहेस तोर सिरहाना तो पसीना म भीग गे हे, घाम म सूखो दे हों। गरमी लगिस तब एसी ल फेर चला लेना रहिस। मँय कहेंव नींद म कुछु नइ सुझय फूलकैना। अब वोखर दीदी के आगू म रात के आँसू वाले बात ल फोर के थोरे बता दँव।
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डॉ.राजेन्द्र पाटक ‘स्नेहिल’
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