Aalekh लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Aalekh लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 14 जून 2016

आधार कार्ड में छपी अपनी फोटो भी बदलवा सकते हैं।

आप आधार कार्ड में छपी अपनी फोटो भी बदलवा सकते हैं। इसके लिये आपको बस 15 रूपये खर्च करने होंगे। इसे बदलने के लिये एक साधारण कार्य आपको करना है जो इस प्रकार है-
  • सबसे पहले आपको आधार कार्ड सेंटर जाना होगा। अगर आधार कार्ड आप तक नहीं पहुँच पाया है तो आप अपना इनरोलमेंट नंबर लेकर आधार कार्ड सेंटर जायें।
  • आधार कार्ड सेंटर पर पहुँचकर आपको एक बार फिर आधार कार्ड का आवेदन भरना होगा। इस आवेदन में आपको अपना आधार नंबर भी देना होगा।
  • आवेदन भरने के बाद आपको फिर से अपनी अँगुलियों व आँखों की स्कैनिंग के साथ फोटो खिंचवानी होगी। अगर फोटो सही न आये तो आप दुबारा फोटो खिंचवा सकते हैं।
  • इसके बाद आपकी सारी जानकारी आधार कार्ड सेंटर बेंगलुरू को भेज दी जायेगी, जिसके बाद आपका डाटा प्रोसेस होगा और नई फोटो के साथ आपका आधार कार्ड दो हफ्ते के अंदर आपके घर पहुँच जायेगा।
  • इसके लिए आपको मात्र 15 रुपए खर्च करने होंगे, क्योंकि आधार कार्ड केवल एक बार फ्री बनता है। बॉयोमेट्रिक डीटेल बदलवा कराने के लिए सेंटर पर पैसे खर्च करने होंगे।
अपने बच्चे के आधार कार्ड को सुधार करवा सकते हैं
  • 0 से 5 साल के बच्चे का आधार कार्ड बन जाता है, लेकिन उसका बॉयोमेट्रिक अपडेट नहीं लिया जाता है।
  • पहले कार्ड में माता-पिता का एड्रेस लिया जाता है, जिससे आधार कार्ड बन जाता है।
  • जब बच्चे की उम्र 5 साल से ऊपर हो जाती है, तब बॉयोमेट्रिक अपडेट होता है।
  • फिर 15 साल और 18 साल पूरा कर लेने पर बच्चे के कार्ड में फोटो अपडेट किया जाता है।
पोष्ट के माध्यम से भी करवा सकते हैं आधार कार्ड में बदलाव
  • अगर आपके घर या फिर ऑफिस में ऑनलाइन अपडेशन की सुविधा नहीं है और आप अपने आधार कार्ड की डिटेल्स को पोष्ट के द्वारा भी बदलवा सकते हैं।
  • इसके लिए आपको आधार कार्ड अपडेशन आवेदन भरना होगा।
  • आवेदन भरने के बाद आपको अपने डॉक्युमेंट अटेस्ट करने होंगे और अपने आधार कार्ड की फोटोकॉपी भी डॉक्युमेंट के साथ लगानी होगी।
  • इसके बाद आपको अपना आवेदन आधार कार्ड के रीजनल ऑफिस में भेजना होगा।
  •  UIDAI के भारत में 6 रीजनल ऑफिस हैं-
    1
    Chandigarh

    0172-2711947
    2
    Delhi

    011-23481126
    3
    Hyderabad

    040-23119266, 040-23119911
    4
    Lucknow

    0522-2304979, 0522-2304978
    5
    Mumbai

    022-22163492/94
    6
    Ranchi

    0651-6450145(Ranchi), 
    0612-2545678(Patna)

  • रीजनल ऑफिस में आवेदन भेजने के बाद आपका कार्ड दो से तीन हफ्ते के भीतर अपडेट होने के बाद आपके पास आ जायेगा। 
आधार कार्ड के फायदे
  • अगर आपके पास आधार कार्ड है तो आप आसानी से किसी भी बैंक में एकाउंट खुलवा सकते हैं।... 
  • अपने बैंक अकाउंट को आधार कार्ड से लिंक करने पर आपको सरकार की डीबीटीएल स्कीम में कैश सब्सिडी आसानी से ट्रांसफर हो जायेगी।... 
  • आधार कार्ड की मदद से आप इन्कम टैक्स रिटर्न आसानी से फाइल और वैरिफाई कर सकते हैं, जिसके बाद आपको एक्नॉलेजमेंट आवेदन बेंगलुरू नहीं भेजना पड़ेगा। 
  • पासपोर्ट बनवाने के लिये, गैस और बिजली का कनेक्शन लेने, केवाईसी के लिये आप आधार कार्ड प्रयोग में ला सकते हैं।... 

रविवार, 10 जनवरी 2016

अब्बड़ सुग्घर हमर गाँव

मय ह नानकन रेहेंव तब के बात आय। आघु हमर गाँव म नान-नान माटी के बने छिटका कुरिया, कुँदरा बरोबर डारा-पाना, राहेर, बेसरम के काँड़ी म छबाय राहय अऊ एक-दूसर मनखे मन के घर कुरिया ह थोरकिन दुरिहा-दुरिहा म राहय। गाँव गली ह हेल्ला-हेल्ला कस दिखय। जब बरसात के पानी, बादर, हवा, बँड़ोरा आवय त कतको के घर कुरिया मन ओदर जाय, चुहई के मारे खड़ा होय के जगा नई राहत रहिच। हमर दाई-ददा मन बारों महिना घर-कुरिया ल मोची कस चप्पल-जूता बरोबर तुनत-तानत राहय। गिने-चुने कोनो मंडल गौंटिया राहय तिकर मन के घर ह बड़े-बड़े मुड़का धारन वाले राहय। हमर गाँव के दाई-माई मन रात-दिन, काम-बुता करके आवय ताहन अपन-
अपन घर कुरिया म खुसर जाए, काकरो मेर बने किसम के सुख-दुख गोठियाय बताय के फुरसत घलो नई मिलत रहिच। हमर गाँव म गुड़ी चउरा रमायन, रामलीला ग्राम पंचायत स्कूल, अस्पताल, आँगनबाड़ी, सिसु मंदिर काँही के साधन नई रहिच। हमर गाँव के दाई-दीदी, भाई-भईया मन आन गाँव म पाँच-छै कोस ल रंेगत पढ़े-लिखे बर जाय लटपट म चउथी-पाँचवी तक पढ़े-लिखे राहयं। कतको भाई-दाई मन आन गाँव म पढ़े-लिखे बर नई जान कहिके पढ़े-लिखे नई रहिच।
दूसर मन आन गाँव जाय बर सड़क नई बने रहिच फेर पैडगरी, भरर्री भाँठा ल नाहकत आय-जाय बरसात के दिन हमर गाँव मन म माड़ी भरके चिखला मन माते राहय। मच्छर, मेंचका, कीरा-मकोरा, मन कबड्डी खेलँय। दूसर म हमर गाँव म बने किसम के सुख-सुविधा के अँजोर घलो नई रहिच। बिजली-पानी के समसिया घलो राहय। ककरो घर बिजली नई लगे रहिच हमर गाँव म दू- तीन ठन मंडल गौटिया घर कुआँ राहय। हमर गाँव के दाई दीदी मन सुत-उठके बड़े बिहिनिया डोलची धरके कुआँ म पानी भरे जाय। डोलची म बड़ेक जान कुआँ के तरी के जात ले डोरी बाँधे राहय। आघु कुआँ मन म लोहा के गडगड़ी लगे राहय जउन ल चक्का काहय, डोलची के डोरी ल चक्का म लगा ओरमा दँय ताँहन डोलची ह गड़गड़-गड़गड़ कुआँ के तरी म जाके बुड़ जाय ताहन हमर दाई मन धीरे-धीरे ऊपर कोती खिंचय ताहन डोलची ल हाथ म धरके हँउला, बाँगा पानी भरँय। पानी भरई म एक जुअर घलो पहा जाय। पानी काँजी भर के काम बुता म जाय। जब हमर गाँव के दाई-माई मन ल बीमारी जुड़, सरदी, खांँसी, घाव-गांेदर होवय त गँवइहा दवाई ल खा-पी के अपन तन के पीरा ल मिटवा डरँय। गाँव में डागटर अस्पताल नई राहय। जब कोंनो ल जादा बीमारी आवय त दूसर गाँव जाय ले परय हमर गाँव के दाई-माई मन अड़बड़ दुख ल तापे हे। जबर कमईया गाँव के दाई-माई मन पथरा म पानी ओगराय म कमी नई करत रिहिस। कुछु जिनिस के मसीन नई रिहिस रात-दिन बाँह के भरोसा जिनगी ल सँजोवत राहय। काम बुता करके आतिस तहाँ धान ल ढेंकी म कुटँय कनकी ल जाँता म पिसय तब जेवन बनावय। फेर आज के जबाना देखते-देखत अइसन आगे त हमर गाँव, गली, खोर ह सरग बरोबर दिखे बर धरलिच। हमर गाँव के दाई-माई मन के खवई-पियई, पहिरई, ओढ़हई, रहई-बसई ह पुन्नी कस चंदा अँजोर होय बर धरलिस। हमर गाँव के गली-गली म तेल चुपरे कस सीमेंट के सड़क बनगे। चारों कोती चमके बर धरलिच। इसकूल, असपताल, गुड़ी, चउँरा, रामलीला रंगमंच, ग्राम पंचायत, आँगनबाड़ी, सिसु मंदिर, हाट चउँरा किसम-किसम के सुख-सुविधा हमर गाँव म मिलत हे। आज इसकूल खुले म कोनो भाई बहिनी मन पढ़े लिखे बर नई घुटत हें। जउन गरीब मनखे मन नई पढ़-लिख सकँय तिकर मन बर हमर देस के सरकार ह फोकट म पढ़हावत लिखावत हे। गरीब मन के सुख-सुविधा बर किसम-किसम के योजना फोकट म गरीब मन के बीमारी के इलाज बर स्मारट कारड जउन म फोकट म इलाज होवत हे असपताल लेगे बर 108 अबुलेंस जचकी वाले दाई बहिनी मन बर महतारी एक्सपरेस बेरोजगारी दूर करे बर रोजगारी गारंटी, वृद्धा पेंसन, अटल आवास, सौच-सौचालय घर-घर म नल जल योजना, बिजली के अँजोर खेती-बारी बर मोटर पंप कनेक्सन सस्ता म बिजली गाँव के गली-गली म कूड़ा-करकट, कचरा ल साफ-सुथरा करे खातिर स्वच्छता अभियान जीवन बीमा, बहिनी मन बर सइकिल इसकूल म दार-भात हरियर-हरियर साग-भाजी घलो इसकूल के लईका मन बर सुघ्घर योजना निकाले गेहे। गरीबी ल हटाय के खातिर कोनो भूख म झन राहय कइके दु रुपिया एक रुपिया किलो चाउर जेकर कोनो नइये तेन गरीब ल फोकट म चाउर, नून देवत हे। हमर गाँव के माटी के घर कुरिया-कुंदरा बरोबर राहय तउन मन ईटा-पथरा, सीमेंट म दिखे बर धरलिस। चारांे कोती फल-फूल हरियर रुख-राई मन ल मोह डरीस। आज हमर गाँव म गियान के अँजोर होय बर धरलिस। हमर गाँव म घर बइठे गरीबी ल दूर करे के खातिर सुख के सपना देखई या मन के सपना पूरा होवत हे। 

आज हमर गाँव सुग्घर दिखे म थोरको कमी नइये। 

हमर गाँव सुघर गाँव दिखे बर धरलिच आज। 
घर बइठे मिलत हाबय सुग्घर काम काज।।
आवव बइठजी जुड़ालव मोर मया के छाँव।
सुत-उठ बड़े बिहनिया छत्तिसगढ़ महतारी के परव पाँव।।

==========================
नरेन्द्र वर्मा 
देशबंधु मड़ई अंक ले

अँकाल के पीरा

छत्तिसगढ़ ह अँकाल के पीरा झेलत हावय। कई जगह फसल नई होय हावय। एसो अँकाल घोसित करे के बाद राज्योत्सव ल एक दिन मनाय के घोसना करे गीस। एक दिन के राज्योत्सव म खरचा नई होईस का? एक दिन के ताम-झाम म घलो ओतके खरचा होथे। पेंडाल लगाना फेर निकालना। खरचा तो सिरिफ बिजली, पानी के बाढ़तिस। ये एक दिन भी काबर?
अलंकरन समारोह रखे गीस। छत्तिसगढ़ अकाल के मार ल झेलत हावय। हमर किसान बर अवइया बछर ह भुखमरी के रद्दा देखावत हावय। तब ये समारोह काबर? येमा खरचा नई होईस का? अलंकरण ल एक बछर बर रोके जा सकत रिहिस हे। 2-2 लाख रुपिया देय गीस तेन ल गरीब किसान बर राखे जतिस त बने होतिस। ये पइसा बाँटना जरूरी रहिस हे का? राजभासा ह साहित्यकार मन के सम्मान करिस तब कोनो राज म हजार-दू-हजार साहितकार ल साल-नरियर संग देय गीस अऊ कहूँ पइसा नइये कहिके नई देय गीस। नई देय के उदाहरन मेहा हावँव। तब आज ये पइसा काबर बाँटे गीस।
लोक कलाकार के अपमान होईस ये अलग। कार्यकरम बर छोटे मंच लोक कलाकार मनबर अऊ बड़े मंच बड़े कलाकार मन बर। लोक कलाकार ल छोटे समझे गीस। पानी बंटवाय के काम करे गीस। हमर छत्तिसगढिया साहित्यकार अऊ लोक कलाकार मन नाराज हावँय। बाजू म ‘जबर गोहार’ के धरना रहिस हे। भासा के लड़ई चलत हावय। लोक कलाकार, साहितकार जुरियाय रिहिन हें। कुछ मन देखे बर घलो इन्डोर स्टेडियम म गे रिहिन हें। जब देखे गीस के उँखर लोक कलाकार मन ल पानी पियाय बर कहे गे हावय। बहुत बेज्जती महसूस होइस। अतेक बड़ कार्यकरम म पानी पियाय बर नई रखे रिहिन का? येती तो पइसा बाँटत हावय, तामझाम म खरचा करत हावँय अऊ एक पानी बँटइया नी रख सकँय। आज जब सासन हर हमर लोक कलाकार के सम्मान नी करही त दूसर मन कइसे करही। हमर राज महकमा मन हमर संस्कृति करमी ल अपमानित करथे तभे तो छत्तिसगढ़ म दूसर राज के मनखे के भरमार हावय। ये मन कइसे सम्मान करहीं। येला अपनापन तो नी कहे जा सकय। अकाल के सुरता अब कोनो ल नई आवत हावय। महँगाई के मार झेलत राज एक बंद जगह म राज्योत्सव मना लीस। आम जनता जिहाँ पहुँच नी पइस। बीटीआई गराउंड रहितस त आम जनता घलो देख सकतिस।
एक नवंबर, सिक्छा बर छत्तिसगढ़ी माध्यम अऊ अलंकरण तिन विरोधाभास आयोजन होईस। एक नवंबर छत्तिसगढ़ स्थापना दिवस जिहाँ सासन अपन उन्नति देखावत हावय, ‘जबर गोहार’ म लोक कलाकार साहितकार अपन भासा बर लड़त हावँय। कामकाज के भासा तो होवय छत्तिसगढ़ी। प्राथमिक इसतर म माधियम तो बने छत्तिसगढ़ी। अऊ दूसर डाहर उही मेर छत्तिसगढि़या कलाकार के अपमान होवत हावय। छोटे मंच अऊ पानी पियावत हावँय। अँकाल के नाँव म रोके लाखों रुपिया अलंकरन म बाँटत हावँय। येला तो सी.एम. हाउस म कर देतिन तभो बने रहिस हे।
---------------------------------------
सुधा वर्मा 
देशबंधु के मड़ई अंक ले

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

मुर्रा के लाड़ू

घातेच दिन के बात आय। ओ जमाना म आजकाल कस टीवी, सिनेमा कस ताम-झाम नइ रहिस। गाँव के सियान मन ह गाँव के बीच बइठ के आनी-बानी के कथा किस्सा सुनावँय। इही कहानी मन ल सुनके घर के ममादाई, ककादाई मन अपन-अपन नाती-नतरा ल कहानी सुना-सुना के मनावँय। लइका मन घला रात-रात जाग के मजा ले के अऊ-अऊ कहिके कहानी सुनँय। ओही जमाना के बात ये जब मँय छै-सात बरस के रहे होहूँ। हमन तीन भाई अऊ ममा के तीन झन लइका। ममादाई ले रोज साँझ होतिस तहाँले कहानी सुनाय बर पदोय लगतेन। ममादाई पहिली खा-पी लव फेर सुते के बेर कहानी सुनाहूँ कहिके मनावय। हमन मामी ल जल्दी खाय बर दे कहिके चिल्लात राहन। खातेन-पीतेन अऊ चुमुक ले खटिया म कथरी ओढ़ के बइठ जातेन अऊ ममादाई ल जल्दी आ कहिके गोहरातेन। ममादाई ल बरोबर खटिया-पिढ़िया नइ करन देत रहेन। तभो ले ममादाई अपन काम बूता ल करके खटिया म सूतत-सूतत कहानी सुनाय ल सुरु करय 

नवागढ़ के हाट-बजार म राजू अऊ ओखर संगी सत्तू दुनों झन लइका घूमत रहिन। आनी-बानी के समान बेंचावत राहय। कोनो मेर साग-भाजी, बंगाला गोल-गोल, मुरई लंबा-लंबा रोंठ रोंठ, गोलईंदा भाँटा...। कोनो मेर नवाँ-नवाँ कपड़ा अऊ का-का। ऐखर ले ओमन ल का करे बर रहे। ओमन ल थोड़े साग भाजी लेना रहिस। ओमन तो घूमत मजा लेत रहिन। खई खजाना खोजत रहिन। ये पसरा ले… ओ पसरा। 

मिठई के दुकान म सजे रहय जलेबी गोल-गोल, छँड़िया मिठई सफेद-सफेद पेंसिल असन, बतासा फोटका असन। दुनों लइका के मन ललचाय लगिस। राजू मेर एको पइसा नइ रहय। ओ का करतिस देखत भर रहय। सत्तू धरे रहय चार आना फेर ओखर मन का होइस काँही नइ लेइस। दुनों झन आगू बढ़गे। आगू म केंवटिन दाई मुर्रा, मुर्रा के लाड़ू अऊ गुलगुल भजिया धरे बईठे रहय। राजू कन्नखी देखय पूरा देख पारीहँव त मुहूँ म पानी आ जाही। सत्तू ह गुरेर के देखय येला खाँव के ओला। फेर सत्तू कुछु नइ लेइस। चल यार घर जाबो कहिके वोहा हाट ले रेंगे लगिस। दुनों झन पसरा छोंड़ घर के रद्दा हो लिन। रद्दा म सत्तू के सइतानी मन म कुछु बिचार अइस ओ हर राजू ले कहिस चल तँय घर चल मँय आवत हँव। ओ हर ऐती ओती करत फेर बाजार म आगे। राजू ल कुछ नइ सुझिस का करँव का नइ करँव फेर सोंचिस चल बाजार कोती एक घाँव अऊ घूम के आ जाँव पाछू घर जाहूँ। 

राजू धीरे-धीरे हाट म आगे। देख के ओखर आँखी मुँदागे। सत्तू ह कागज म सुघ्घर मुर्रा के लाड़ू धरे-धरे कुरूम-कुरूम खावत रहय। राजू के बालमन म विचार के ज्वार-भाटा उछले लगिस। 
मोर संगी...ओखर पइसा...का करँव...। 
टुकुर-टुकुर देखय अऊ सोंचय। मुहूँ डहर ले लार चुचवात रहय। अब्बड़ धीरज धरे रहय फेर सहावत नइ रहय। कोकड़ा जइसे मछरी ल देखत रहिथे ओइसने। ओइसनेच झपटा मारिस। मुर्रा के लाड़ू ल धरिस अऊ फुर्र...। 
सत्तू कुछु समझे नइ पाइस का होगे। हाथ म लाड़ू नइ पाके रोय लगिस। भागत राजू के कुरता ल देख के चिन्ह डारिस। राजू लाड़ू लूट के भाग गे। सत्तू रोवत-रोवत आवत राहय। ओतकेच बेर ओखर ममा चैतराम ओती ले आवत रहिस। भाँचा ल रोवत देख अकबका गे। 
- का होगे भाँचा? काबर रोवत हस। 
- का होगे गा? 
सत्तू सुसकत-सुसकत बताइस ओखर मुर्रा के लाड़ू 
राजू ह... 
धर के भगा गे...। 
काबर गा? 
सुसकत-सुसकत सत्तू जम्मो बात ल बताइस। 
-ओ हो… भाँचा तोरो गलती नइये। तोला अइसन नइ करना रहिस। चल तोर बर अऊ मुर्रा के लाड़ू ले देथँव। सत्तू फेर कागज म सुघ्घर मुर्रा के लाड़ू धरे कुरूम-कुरूम खाये लगिस। 

ओती बर राजू ह मुर्रा के लाड़ू धरे खुस होगे अऊ खाये बर मुहूँ म गुप ले डारिस। जइसने मुहूँ म लाड़ू के गुड़ ह जनाइस ओला अपन दाई के बात के सुरता आगे- 
-बेटा हमन गरीब आन। हमर ईमान ह सबले बड़े पूँजी आय। हमला अपन मेहनत के ही खाना चाही। दूसर के सोन कस चीज ल घला धुर्रा कस समझना चाही। 
राजू के मुहूँ म लाड़ू धरायेच रहिगे न वो खा सकत रहिस न उगले सकत रहिस। मुहूँ ह कहत हे, हमला का जी खाये ले मतलब, स्वाद ले मतलब। बुद्धि काहत हे, नहीं दाई बने कहिथे। दूसर के चीज ला ओखर दे बिना नइ खाना चाही। मन अऊ बुद्धि म उठा-पटक होय लगिस। मन जीततिस त लाड़ू कुरूम ले बाजय। बुद्धि जीततिस चुप साधय। अइसने चलत रहिस लाड़ू अधियागे। 
बुद्धि मारिस पलटी अऊ मन ल दबोच लिस। मुहूँ ले मुर्रा लाड़ू फेंकागे। राजू दृढ़ मन ले कसम खाय लगिस-‘‘आज के बाद अइसन कभू नइ करँव अपन कमई के ल खाहूँ, दूसर के सोन कस जिनिस ल धुर्रा माटी कस मानहूँ, मँय अब्बड़ पढ़िहँव अऊ बड़का साहेब बनिहँव।’’ 

सत्तू ल मुर्रा के लाड़ू ल वापिस करे बर ठान के राजू ह हाट के रद्दा म आगे। सत्तू सुघ्घर ममा के दे लाड़ू ल खात रहय। राजू अपन दुनों हाथ ल माफी माँगे के मुदरा म सत्तू कोती लमा देइस। अब तक सत्तू ल घला अपन कपटी स्वभाव के भान होगे रहिस। वो हर हँस के राजू के हाथ ले मुर्रा के लाड़ू ले के बने मया लगा के एक ठन मुर्रा के लाड़ू राजू के मुहूँ म डारिस। दुनो संगी अब हँस-हँस के संगे-संग मुर्रा के लाड़ू खाय लगिन कुरूम-कुरूम। 

कहानी सिरावत-सिरावत ममादाई ऊँघावत रहय। मँय पूछ परेंव फेर राजू के का होइस? दुनों झन बने रहिन नहीं। ममादाई कहिस बेटा, ‘मन के जीते जीत हे, मन के हारे हार।’ जऊन मन बुद्धि ले सख्त होहीं तेन सफल होबे करही। राजू आज कलेक्टर साहेब हे। तहुँमन मन लगा के सुघ्घर पढ़हू। चलो अभी सुत जावब। 
महूँ राजू कस बनहँव सोंचत-सोंचत कतका बेरा नींद परिस। बिहनिया होइस नइ जानेंव। 
============================================= 
-रमेश कुमार सिंह चौहान मिश्रापारा, नवागढ.जिला-बेमेतरा (छग) 
देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित 

पंचइत म एसपी राज

हमर देस ल नारी परधान देस केहे गे हे। नारी के महिमा घलो चारों खुट ले सुने अऊ देखे बर मिलथे। सरकार घलो नवाँ-नवाँ नियम अऊ कानून म नारी परधान देस कहि-कहि के सहर त सहर का गाँव का कसबा न बारी लगय न बखरी, न बहरा लागे न डोली चारों कोती नारी राज घर म रंधनी खोली सुन्ना परगे, कपड़ा दुकान म आय बर बिहाव म सरी दुकान म लुगरा मन रखायच हे पेंट अऊ कमीज के खरीदइया म घलो नारी मन के प्रधानता देखे बर मिलत हे। ऊपर ले खाल्हे अऊ खाल्हे ले ऊपर कोती पंचइत राज ले दिल्ली तक एके ठन सोर नारी अइसन नारी वइसन। मुड़ी म पागा नारी के होही त मरद के मुड़ी म का होही। मरद मन संसो म परगे, के हमर सरी जिनीस ल अऊरत मन नंगा डरिस त हमरे का ठिकाना। चारों मुड़ा मरद ल अपन कमीज कुरथा ल बँचाय बर भागत देख के मोरो मन म डर हमागे के अइसन का बात होगे के सरी मरद परानी संसो म पर गेहे। दू-चार झन मनखे जेमन भागत राहँय तेला बला के पूछेंव के-‘का होगे... काबर भागत हो बबा..!’ 

मोर भाखा ल सुन के चारों सियान हँफरत-हँफरत ठहिर के कहिथे-‘हमर गाँव के अब नइये ठिकाना बाबू..!’ अतका काहत सियान मन उहाँ ले भाग गिस। सियान मन ल हँफरत देख के महूँ अबाक रहिगेंव के अतेक बड़का का बात होगे गाँव म? सियान मन ल तको परान बँचा के भागे ल धरलिस। बुधेस नाँव के सियान कहिथे-‘गाँव म चारों कोती एके ठन गोठ हे बाबू के गाँव-गाँव म नवाँ एस.पी. आगे इही डर के मारे हँफरत, भागत अऊ गिरत-हपटत आवत हन। 

मय मन म सोंचेव-के एस.पी. त जिला भर के पुलिस मन के साहब होथे। पंचइत म कहाँ आही। इही सोंच के मँय अचंभा म परगेंव। थोरिक बेर त मोला कहीं कुछु नइ जनइस-के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. कइसे आही! ओतकी बेर एक झिन पल्टीन नाँव के माई लोगिन लकर-धकर अपन दू झिन लईका हुरहा-धुरहा पावत काहत राहय-‘जउँहर होगे दाई..! नवाँ सरपंच का बनायेन कल्लई होगे। चलव रे मोर लईका मन। गाँव म नवाँ एस.पी. आगे कहिथें करम छॉंड़ दिस दाई।’ एक ठिन लईका ल पाय रिहिस दुसरइया लईका पावत रिहिस। पहिली पाय रिहिस ते हुरहा गिरगे। पल्टीन उही मेर बईठ के रोय ल धरलिस। 

दूसर कोती ले सगोबती, रमसीला आथे अऊ पल्टीन ल पूछथे-‘काबर रोवत हस पल्टीन, काबर तँय रोवत हस या..? का बात होगे के तँय गोहार पार के रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘काला बतावँव गो... बड़ करलई होगे।’ 
सगोबती कहिथे- ‘का बात के करलई होगे या..? कुछु बताबे त हमुमन ल समझ म आही।’ 
रमसीला कहिथे- ‘रोते रहिबे का? हमर देस नारी परधान देस आय (रमसीला पल्टीन के आँसू ल अपन अछरा म पोंछत कहिथे) नी रोय बहिनी चुप हो जा। थोरकिन रूक के हरहिंछा बता के का बात होगे? तँय काबर रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘गाँव भर म गोहार परत हे, के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। जउँहर भईगे दाई जउँहर भईगे। हमर लईकामन के नइ ये अब ठिकाना नवाँ एस.पी. हमर लईका मन ल मार डरही। गाँव के जगेसर कोतवाल हाँका पारत उही मेर आके हाँका पारथे- के गाँव के गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउँक्का बाद म गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउका बाद म गराम सभा होही अऊ पंचइत म माँदी खवाही। कोनो मन अपन घर म चूल्हा झन बारहू होऽऽऽऽ... हाँका पारत कोतवाल घला अपन रद्दा चल दिस। 
पल्टीन, रमसीला अऊ सगोतीन कोतवाल के हाँका ल सुन के गोहार पार के रोय ल धरलिस। पंचइत कोती ले गाँव के सियान गोठियात मंद के निसा म झुमरत तीनों झिन तिर आके पूछथें- 
गाँव के कोदू मंडल कहिथे- चुप हो जाओ नोनी का बात होगे तेला बतावव? बोलते-बोलत कोदू मंडल मंद के निसा म उही मेर गिरगे। 
उखर संग म आय गाँव के किसनहा सुखराम बबा ऊपर घलो मंद के भूत झपाय राहय। मंद के निसा म सुखराम बबा कहिथे-कुछु नी होय गा टूरी मन चुनई के मंद के निसा म रोवत हे। सबो झिन ल बिलहोरत हे बुजेरी के मन ह काहत सुखराम बबा अपन संगवारी संग चल दिस। कइसनों कर के रतिहा के चार पहर बितिस। 

पहट के गाँव के जम्मो लईका, सियान, माईंलोगन मन डफरा, डमऊ, मंजीरा, गोला, निसान संग जुलूस म आगू-आगू मुहूँ म रंग गुलाल बोथ्थाय झुमर-झुमर के नाँचत नवा सरपंच संग जम्मो पंच मन रंग म बुड़े अपन-अपन मरद संग पंचइत कोती जावत हे। 
मँय उही मेरा खड़े-खड़े देखत हँव के-सरपंच इहाँ के मरद के नरी म सरपंच के नरी ले जादा माला ओरमत हे। ओसने पंच मन के मरद के नरी के हाल हे। उँखर मरद मन अँटिया के रेंगत राहय मानो उही मन पंचइत के पंच सरपंच बने हे तइसे। देखत-देखत गाँव के जम्मो झिन पंचइत म सकलागे। पंचइत के आगू गाँधी पाँवरा मेर पंच-सरपंच ल किरिया खवाय बर मंच बने हे। पंच-सरंपच मन अपन हाँत ल आगू कोती लमाके किरिया खा के कहिथें, के गाँव बिकास के गंगा बोहाबो। 
ओतकिच बेर माईंलोगन मन के भीड़ ले गोहार परे ल धरलिस। पोंगा म कतको घॉंव चुप रेहेबर कहि डरिस फेर कोनो काखरो कहाँ सुनत हें। देखते-देखत माई लोगन के झगरा मरद मन डाहर मात गे। सुरू होगे पटकिक के... पटका। दोंहे.... दोंहे, भदा-भद जतका मुहूँ ओतके गोठ। सबो के मुहूँ म एके ठन गोठ-के नवाँ एस.पी. हमर गाँव म काबर आही। कोन लानही तेला देखबो। 

गाँव म कतको परकार के मनखे होथे। झगरा के गोठ-बात के चरचा ल सुन के पुलुस के डग्गा म अड़बड़ झिन पुलुस मन भरा के आगे। फेर झगरा त झगरा आय। पुलुस देखे न कोरट। कूद दिस ते कूद दिस। चुप करात भर ले करइस। नइ माने के एके ठिन चारा। पुलुस मन जो लउठी भंजिस के जम्मों भीड़ गदर-फदर भागिस। गाँव के चरचा एस.पी. करत रहिगे। डग्गा म बइठार के पुलुस मन गाँव म झगरा मतईया टूरा-टूरी, लईका-सियान अऊ माईंलोगन मन ल तको थाना लेग के ओइला दिस। 

दुसरइया दिन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन थाना म जाके गाँव के मनखे मन के झगरा के कारन पूछिस। पल्टीन कहिथे-‘‘गाँव भर म चिहोर परत रिहिस के गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। डर के मारे सबो झिन हड़बड़ागेन नोनी।’’ 
नवाँ सरपंच कहिथे- ‘‘गाँव म कोनो नवाँ एस.पी. आही कही कहिके। सरी गाँव म झगरा मता देस लईका-त-लईका सियान ल तको धँधवा देस। आय होरी तिहार म गाँव के मन ल रोवा देस। सरपंच संग पंच मन घलो पुलुस मन के साहेब ल मना डरिस। साहब नइ मानिस त दू बात कहिके सरपंच पंच मन अपन-अपन घर म आगे। 
वो डाहर पुलुस मनगाँव के जम्मो झन ल नियाव बर कोरट म लेगिन। करिया कोट पहिरे उकील मन कोनो ये डाहर जाय त कोना वो डाहर जाय। 
कोरट के मुहाटी मेर ले सफेद कुरथा पहिरे डोकरा बानी के मनखे ह गाँव म झगरा मतईया मन के नाँव ल धरत हाँका पार के जम्मों झन परसार सही बड़ जानी कुरिया म बलइस। उहाँ उँचहा कुरसी म करिया कुरथा पहिरे आँखी म करिया फरेम के चस्मा पहिरे मनखे ह गाँव के जम्मो झन ल पूछिस- ‘‘के का बात होगे? का बात बर झगरा मतायेव गाँव म?’’ 

गाँव वाले मन के उकील गाँव म झगरा काबर होइस ते बात ल नियाव करइया ल बतइस वो डहर उकील बतात रहाय त गाँव के जम्मो झन के आँखी हाँत म तराजू धरे आँखी म फरीया बॉंधे पुतरी ऊपर टेके हे अऊ जम्मो झिन अपने अपन म गोठियात हे। के इही नवाँ एस.पी. होही का? मंगल नाव के जवान टूरा कहिथे-‘‘ये त अँधरी हावय गा। अँधरी हमर गाँव के एस.पी. कइसे होही। हमर गाँव म का अँधरी राज करही? फोक्कट के गोठियाथव ते।’’ 
सुरेस नाँव के टूरा कहिथे- ‘‘अरे बइहा बुध के, ये कोरट आय कोरट। कोन हमर गाँव के नवाँ एस.पी. हरे तेला त पहिली जानन। फोक्कट के गोहार पारत हस निपोर मुहूँ ल कथरी सिले सही चुप नइ रहि सकस।’’ 
ओतकी बेर सलेन्द कइथे- ‘‘ते कोन होथस रे...! हमर मुहूँ ल कथरी कस सिलईया। हमूँ मनखे हरन हमू ल हमर गाँव के गोठ ल जाने के हक हे। बड़ा मुड़पेलवा कस हुसियारी मारत हे बइहा बुध के हा। इहाँ ले बाहिर निकल तहाँन मँय तोला छरियाथँव।’’ 
कोरट म हल्ला होवत देखिस त उँचहा कुरसी म बइठे नियाव करइया साहब ह दू घॉंव टेबिल ठठात किहिस-‘‘चुप हो जाओ निहीं तो भितरा दूँगा। ये हल्ला करे के सजा जम्मों झन ल भुगते बर परही। डर के मारे जम्मो झन चुपे होगे।’’ 
ओतकी बेरा उँचहा कुर्सी म बईठे नियाव देवइया साहब ह-गाँव के जम्मो मनखे ल फेर पूछिस-‘‘के बने-बने बतावव का होइस? का बात बर गाँव में झगरा मतायेव?’’ 
गाँव के सियान सुखराम कहिथे-‘‘बात अइसन हे साहब- के हमर गाँव के पंचईत चुनई के फइसला बने-बने निपटिस। बने नाँचत जात रेहेन। त ओतकी बेर सहर ले दू-चार झन टूरा मन फटफटी म बइठे-बइठे नरियात अइस। उही दिन ले उही बात बर हमर सरग सही गाँव म झगरा मात गिस।’’ 
नियाव देवइया साहेब कहिथे- ‘‘एसपी जिला भर के अधिकारी होथे अऊ जिलाच म ओखर आफिस होथे। कोनो जरूरीच काम परही तभे च वोहा तुँहर गाँव म जाही। गाँव म एस.पी. नइ होय पुलुस तुँहर रकछा बर हाबे।’’ 
अइसन सुग्घर गोठ ल सुनके गाँव के सरी मनखे चुपेच होगे। ओतकीच बेर कोनो बात ल धर के सलेन्दअऊ सुरेस म झगरा माते ल धरिस। उन्हें दूनों मन धरी के धरा होगे। दूनों एके ठिन बात बोले-‘‘नवाँ एसपी आगे।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ल ठठात फेर कहिथे-‘‘चुप रहो बड़ नरिया डरेव। तुहीच मन बतावव के गाँव म नवाँ कोन एस.पी. आगे?’’ 
सलेन्द्र अऊ सुरेस डर्रात कहिथे- ‘‘सहर के टूरा मन बतइस साहब।’’ 
नियाव देवइया साहब कहिथे-‘‘का बात ल सहर के टूरा मन बतइस बोलव।’’ 
साहब के गोठ सुनके सुरेस सरी बात ल बताथे- ‘‘के साहब सहर के टूरामन बतइस गाँव म एस.पी. आगे। ऊँखर ले पूछेन त वोमन किहीन-बाई-बनिस सरपंच त ओखर मरद होइस एस.पी. माने सरपंच पति अऊ पंच मन के मरद पंचपति परमेसर होही। 
सलेन्द्र कहिथे-‘‘उही गोठ ल सुनके ऊँखर संग म हमू मन जिन्दाबाद-मुर्दाबाद कही परेन साहब।’’ 
सुरेस कहिथे-‘‘बस अइसनेच गोठ हरे साहब। 
परसार सहीं बड़ जनी कोरट कुरिया म चारो खुँट के मनखे मन दुनो झन के गोठ ल सुनके हाँस-हाँस के कठल गे। कतको झिन त हाँस-हाँस के ओछर-बोकर तको डरिस। जेन ल देखबे त उही हाँसते रहाय। सबो झिन ल हाँसत देख के गाँव के मन सकपकाय भोकवा कस देखते रहिगे। 
थोकुन बेरा म खॉंसी-खखरई बंद होइस त सलेन्दनियाव देवइया साहब ल कहिथे-‘‘हमन कोनो हाँसी मजाक के लइक गोठिया परेन का साहब के हमर कोती ले कोनो गलती होगे का? सबो झन हाँस डरेव। बस हमी मन भोकवा कस ठाढ़े हन।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ठठात गोहार पारथे-‘‘आरडर.... आरडर।’’ 
जम्मों झन चुप होगे त नियाव देवइया कहिथे- ‘‘ये सबो गोठ-बात गाँव के सिक्छा के कमी के खातिर देखे बर परत हे। सरकार गाँव-गाँव म पढ़व-अउ बढ़व कहिके साक्षरता किलास लगा के कतकोन खर्चा करिस तभो ले जम्मो अप्पड़ के अप्प़ड़। ऊपर ले झगरा-झँझट करके मुड़ी फोड़ी-फोड़ा कर डरिस।’’ 

नियाव देवइया साहब गाँव वाले मन ल समझात कहिथे-‘‘के तुँहर झगरा ल खत्म करव अऊ बने-बने जिनगी ल जीयव। मनखे बर मनखे बने के उदिम करव। सबके मन म मया-परेम जगावव। आगू होरी तिहार हे बने मया परेम लगाती तिहार ल मनावव। काली पंच अऊ सरपंच संग इँहा आहू त नवाँ गोठ-बात ल करबो। कोरट के समे खत्म होइस।’’ जम्मों सियान, जवान मन अपन-अपन डेरा म हाँसत गोठियात लहूटिस। 

दूसरईया दिन कोरट के बेरा प पंच-सरपंच संग गाँव के जम्मो झन नियाव करइया साहब ले मिलथे। नियाव करइया साहब ह सरपंच ल कहिथे-‘‘तुँहर गाँव म झगरा के एके ठिन कारन हे वोहे असिक्छा, गाँव के मनखे मन के अप्पड़ होना। सबो पंच सरंपच पढ़े-लिखे दिखथव। गाँव के मन ल बने समझत ले पढ़ावव। गाँव म साक्छरता के संदेस ल आगू लावव। गाँव के मन सिक्छित होहीं त गाँव म नवाँ अँजोर बगरही अऊ गाँव म सुख के गंगा सुग्घर बोहाही।’’ नियाव देवइया साहब सरपंच संग जम्मो पंच मन ल ऊँखर जीत बर गाड़ा अकन शुभकामना देके जम्मो झन ल बिदा करिस। 

सरपंच अऊ पंच मन ओसने करिस जइसन साहब बताय रिहिस। नवा सरपंच दसाबाई गाँव के साक्षरता किलास म गाँव के जम्मों लईका-सियान-जवान सब्बो झन ल पढ़ाय ल सुरू कर दिस। गाँव के मन नवाँ-नवाँ जिनिस सीख के अपन खुद के पॉंव म खड़े होगे फेर अपन लईका मन ल अपन घरे म पढ़ा-पढ़ा के नवाँ रद्दा देखाय के नवाँ-नवाँ उदिम करत हे। गाँव म कभू पंथी त कभू रीलो त कभू रीलो त कभू करमा-ददरिया म अपन सुर लमात देवी-देवता के पराथना करत नवाँ जिनगी जीये के मन म आस धरे सुख के जिनगी जीयत हे। 

देखते-देखत होरी तिहार आगे। गाँव के मन पँचकठिया टुकना म परसा, सेम्हर फूल के पंखुरी ल घर म लानके लाली रंग बनाके के होली मनाय के उदिम तको करत हे। गाँव के गौरा पाँवरा म बाजत नँगारा, डमउ, टासक, निसान, मंजीरा, ढोलक अऊ गोला के पार ल कोनो पाही गा। गाँव के चारों खुँट माँदर सँही नँगारा घटकत हे। आनी-बानी के फाग ल गा-गा गाँव के जम्मो लईका सियान मन खुदे नाँचत हे अऊ जम्मो झन ल नँचात हें। 

रतिहा के पबरित बेरा म होही के पूजा करके गाँव के जम्मो सियान अपन गाँव के रक्छा बर देवी देवता ल गोहरात होरी ल जरा के उही मेर कसम खाथे। के हमर गाँव म सेम्हर, परसा के रंग ले होरी खेलत आय हन आगू घलो हमर पुरखौती के चिन्हा के रंग ले होरी खेलबो। कोनो ह कोनो के मुहूँ-कान म चिखला, माटी, चीट अऊ आनी-बानी के रंग नई पोतय। 

गाँव म पहाती ले संझौती बेरा तक लईका मन तिलक होरी खेलत सियान मन के माथा म गुलाल के टीका लगा के सियान मन ले असीस पावत अपन जिनगी ल सँवारे के परयास करते हे अऊ नँगारा संग एके ठिन राग लमावत हे- 

हमर गाँव म आगे अँजोर, परसा सेम्हर लाली ल घोर। 
माया परेम के लाली धरके, ये दे आगे होरी तिहार॥ 
ठेठरी, खुरमी, बबरा ल खाके, बने मनावव तिहार। 
जीयत रहिबो त फेर देखबो, आगू के होरी तिहार॥ 
============================================
प्रदीप पान्डेय ‘‘ललकार’’ संबलपुर : देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित

माटी महतारी

सोनारू तँय ह बइठे-बइठे काय सोचत हाबस। बेटा, जऊन होगे तऊन होगे। अब तोर सोंचे ले हमर जमीन ह नइ आवय। जा रोजी-मंजूरी करके ले आ बेटा, पानी-पसिया पीबो। निहीं त भूखे मरे ल परही। थोर बहुँत पढ़े-लिखे रहितेंव रे सोनारू.. त तोर बाप, कका अऊ गाँव के मन ल समझातेंव। दलाल के बात म नइ आतेंव।
बबा हमन तो फेक्टरी म माटी महतारी ल बेंच के अपन गोड़ म टँगिया ल चला डरे हाबन अऊ एकर भुगतना ल हमन सात पीढ़ी ले भुगते ल परही बबा। सिरतोन काहत हाबस सोनारू... मंद पीके तोर बाप ह करनी करे हावय अऊ हमन ल भुगते ल परही रे। चार ठन खेत ह हमन ल पोसत रिहिस बेटा..! ‘माटी ह महतारी आवय’ अऊ सबके पेट ल भरथे रे, फेर एक ठन फेक्टरी ह एक मनखेच ल मजदूरी के काम दिही जेमा घर के दस मनखे के पेट ह नइ पलय बेटा..! सिरतोन काहत हाबस बबा फेक्टरी म काम करे बर पढ़े-लिखे अऊ सिच्छित चाही हमन तो अप्पड़ आन बबा। फेर साहेब-अधकारी मन तो पढ़े-लिखे हावँय तभो ले हमर मन बर नइ सोंचिन। हमर दू फसली भुँईंया ल बंजर बता के अँगठा चपका दीन। (ओतके बेर सोनारू के काकी आइस)- ‘तोर कका ह चार दिन होगे, बेटा नइ आय हे गा। चार दिन होगे घर म हँड़िया नइ चढ़े हाबय।’ जानत हँव काकी... फेर काय करहूँ थोरकन तहसीली म जाके पूछताछ करबे तहॉं कुछु भी कहिनी बना के जेल म ओइला देवत हाबय काकी।

कोतवाल ह हॉंका पारत रिहिस। चिचियावत सोनारू के घर करा अइस, सोनारू पूछथे- ‘अब काके बईठका आय बबा।’
-‘काला बतावँव रे सोनारू, हमन ल रद्दा बतइया समारू गुरुजी ह घलो अब इहॉं ले चल दिही।
-‘काबर?’
-‘ओकर बदली करदीन बेटा..! गुरुजी मन मुआवजा ल नइ ले हाबय अऊ गाँव वाला मन ल सीखोवत हाबय कहिके उही पूछे खातिर तोर ककामन गे रिहिस। तेला जेल म डार देहे।
-‘साहब मन हमर मन के बात ल काबर नइ सुनय कका।’
-‘अरे बेटा, हमन गरीब किसान आवन गा... साहब मन ल काय दे सकबो। फेक्टरी वाला मन कलेक्टर ले लेके पटवारी ल चार चकिया दें हाबय। तेकर सेती तो ओमन रोज गाँव के चक्कर मारथें। गाँव के दलाल मन घलो मालामाल हो गेहें।’
दस बजे बिहनिया खा-पी के गुड़ी म सकलाहू होऽऽऽऽऽ..! बारा गाँव के मनखे मन घलो आहीं होऽऽऽऽऽ..! कोतवाल ह पूरा बस्ती म हाँका पार के चल देथे। ओतके बेरा सरपंच ह सोनारू के बबा करा आइस।
-‘पा लगी मंडल कका।’
-‘खुसी रा बेटा..! अब कइसे करबो कका अब तो कइसनों करके हमन ला फेक्टरी वाला मन ल भगाय ल लागही बेटा! कतको मन तो मुआवजा लेके पइसा ल खा डरे हावय, आधा झन मन बाँचे हावय। फेक्टरी के खुले ले कका कोसा पालन केन्द्र ह घलो बरबाद हो जही। फेक्टरी के गरमी म कोसा कीरा मर जही, त कँड़ोरो के लगाय रुपिया ह बरबाद हो जही। सरकार के काय जाही बेटा..! जनता के कमई ल पानी कस बोहाही नहीं त का। कतको बेरोजगार होही त ओला काय फरक परही। फेक्टरी वाला मन नोट के गड्डी ल धराही तहॉं सब चुप हो जहीं। ले कका बिहनिया कुन गुँड़ी म आ फेर।

होत बिहनिया गाँव म चहल-पहल सुरू होगे। काबर बारा गाँव के लोगन मन आय के सुरू करदे रिहिस। दस बजते साठ गुड़ी म मनखे मन खमखमागे। दुदमुहॉं लइका मन ल पीठ म बॉंध केझॉंसी के रानी बरोबर माईलोगिन मन आय रहिन। काबर कोंनो महतारी ह अपन लईका के पेट म लात नइ मार सकँय। सरपंच ह कथे- कइसे बतावव काय करबो तऊन ल.. ओतके बेरा एक ठन चार पहिया ह आके ठाड़ होगे। सब उही ल देखे बर धरलीन। सोचे लगीन फेर पुलिस वाला मन पकड़े बर आवत हावँय। कोंनो-कोंनो मन तो कइथे- आज मारबो नहीं त मरबो। फेर अपन महतारी ल बेचन निहीं। गाड़ी ले श्रीवास्तव साहब ह उतरीस जऊन ह गाँव वाला मन के हिमायती राहय। सरपंच कइथे- ‘नमस्ते साहब..! कइसे आय हावव..!’

मँय ह ये बताय बर आय हाबँव कि मोर इँंहा ले बदली होगे, अब तुमन कइसे करहू तेकर फैसला ल तुही मन ल करे बर परही। मोला ससपेंड घलो कर सकत हाबय। फेर मँय ह कइसनों करके जी-खा लुहूँ। तुमन ल अपन लड़ई खुदे लड़े बर परही। काबर दलाल मन तुँहरे घर म बइठे हाबय। सबला मोर राम-राम। मँय ह जावत हँव फेर एक ठन बात काहत हँव सबला बेचहू फेर धरती दाई, अन्न देवइया ल फेक्टरी बर झन बेचहू। श्रीवास्तव बाबू ह गाड़ी म बइठ के लहुटगे। थोरकन बेर-बर सन्नाटा ह पसरगे। काबर? पढ़े-लिखे एक झन रद्दा बतइया रिहिस वहु ह अब नइ रइही। समारू गुरुजी ह अपन बदली रोकवाय बर उही ह साहर म साहब मन के चक्कर काटत हावय।

मंडल ह खड़ा होके कइथे- अरे बाबू हो! हमन का चार दिन जीबो के आठ दिन, फेर तुमन ह मंद महुआ म मुआवजा ल लेके उड़ा डरे हाबव। फेर अभी आधा आदमी ह पइसा नइ ले हाबय। तुमन ह पइसा कइसनों करके लहुटाहू। आयतु ह खड़ा होके कइथे- दू साल होगे खेत मन परिया परे हाबय त पइसा ल कइसे लहुटाबो। सरंपच ह कइथे- ‘मैं ह एक ठन बात काहत हाबँव। हमन नंदिया ल बॉंधबो अऊ फेक्टरी बर जमीन हावय तेमा बॉंध बनाबो अऊ बढ़िया फसल लेके कम्पनीवाला के पइसा ल लहुटाबो नंदिया के तीरे-तीरे फलदार रूख लगाबो। करजा हाबय तऊँन ल सब मिल के हमन छूटबो तब ए माटी महतारी ह बॉंचही अऊ एकर सिवाय हमन मन करा कोन्हो चारा नइये।

तब सोनारू ह खड़े होके कइथे सरपंच कका ह बने काहत हाबय। अगर हमन एक होके करजा ल नइ छूटबो त हमन सदादिन बर बनिहार रहिबो। फेक्टरी के पानी ह नंदिया म मिलही त वहु ह जहर बन जाही। हवा ह घलो बिगड़ जही। सब मनखे मन चिचियाइस। हमन ल मँजूर हाबय। मँजूर हाबय। सोनारू ह फेर कइथे- हमन तो नइ पढ़ेन फेर अपन लइका मन ल इसकुल भेजबो। पढ़ाबो तभे हमन ला फेर कोनो दलाल मन कोरा कागज मन अँगठा नइ लगवाही। इही भुँईंया के सेवा करत अपन ये बारा गाँव ल फेक्टरी के गुलामी ले अजाद कराबो। मंद मउहा ल पियइया हो अब तुमन ल सीखे ल लागही कि एक फेक्टरी ह एक झन ल कुली के काम दिही हम अप्पड़ के खरही नइ गॉंजय। ओमन ल तो पढ़े-लिखे आदमी चाही। फेर हमर धरती महतारी ह अप्पड़ अऊ पढ़े-लिखे सबला पोसथे।

सरपंच ह कइथे- त फेर सब साबर, कुदारी, रापा, टँगिया, झउँहा धरके परनदिन पॉंच बजे पहुँच जहू। ग्यारा बजे फेक्टरी के भूमिपूजन हाबय त ओकर पहिली हमन ल गड्ढा खोदना हाबय। अब सब अपन-अपन घर जावव। अतका जान लेव हमन ल ओ दिन मरे ल घलो पर सकथे अऊ मारे ल घलो लागही। काबर फेक्टरी वाला मन लाव-लसकर लेके आही। सब जनता के भुँईंया के कसम खाके जय-जयकार करत अपन-अपन घर लहुटगे। मंडल ह कइथे- अब तो ये दोगला मन ल मारेच बर लागही बेटा..! जब अँगरेज ल हमन भगा सकथन त ए फेक्टरी वाला मन कोन खेत के मुरई आय।

तीसर दिन ग्यारा बजे फेक्टरी वाला मन बड़े-बड़े गाड़ी वाला मन घलो रिहिस गाँव वाला मन सब काम ल छोड़-छॉंड़ के देखे लगीस हजारों झन मनखे सबके हाथ म हँथियार। साहब मन कॉंपे ल धरलीस, पछीना घलो बोहाय ल धर लीस। एक झन दलाल ह कइथे- साहेब, काली रतिहा ग्यारा बजे गेहन त कॉंही नइ खनाय रिहिस अऊ कतका बेर सउँहो तरिया खनागे। बड़े साहब के मुहूँ ले बक्का नइ फूटिस काबर ओहा छै महीना पहिली पटवारी अऊ डिप्टी कलेक्टर के हालत ल देखे रिहिस दुनों झन के मुहूँ लहूलुहान। थोरको चिन्हारी नइ रिहिस साहब ह चुपचाप गाड़ी म बइठके ड्राइवर ल गाड़ी चालू करे बर कइथे। साहब के देखते-देखत सब ह ओकर पीछू-पीछू गाड़ी म बइठ के लहुटगें। समझगें एक ठन लकड़ी ल तो आसानी से तोड़ डारबो फेर लकड़ी के बोझा ल नइ टोर सकन। गाँव वाला मन बड़ खुस होइस अऊ तिहार असन नाचे लगीस काबर? ओमन अपन सात पीढ़ी ल बनिहार बनाय ले बचा लीन। बॉंध बने ले फसल लहलहाना सुरू होगे। मंद मउहा ऊपर घलो रोक लग गे। दलाल मन गाँव छोंड़ के भाग गे। सब अपन लइका मन ल इसकुल भेजे लगीन, ताकि फेर कोनो दलाल मन कोरा कागज म अँगठा झन लगवाय।
========================================
गीता शिशिर चन्द्राकर, भिलाई-३ देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

Railway से संबंधित Complaint हेतु App


Railway ने Passengers की शिकायतों के लिये वेब portal और App लॉन्च किया है। इस portal या App पर Complaint करने के बाद Passenger उसका Status भी जान सकेंगे। वर्तमान में, Complaint और सुझाव की यह सुविधा English में उपलब्ध है।

इस Web Portal www.coms.indianrailways.gov.in और App की खासियत यह है कि इस पर संभावित Complaints के मुताबिक अलग-अलग विभाग के बारे में पहले से ही जानकारी दी गई है, यानी अगर Passenger को Seat की Complaint है, सफाई की या फिर Bed Roll की तो Passenger फौरन ही उसे Click कर सकता है। इसके अलावा Passenger को Train, Coach, PNR Number और तारीख आदि भी दर्ज करनी होगी। Complaint दर्ज करने के बाद Passenger को Complaint Number भी जारी किया जाएगा। यही नहीं, Passenger अगर अपनी Complaint को Track करना चाहेगा, तो वह भी उस Number के जरिए Track कर पाएगा।

इसके अलावा Passengers के लिये SMS के जरिए Complaint की सुविधा भी जारी रहेगी। Passenger चाहें तो Mobile Number 9717630982 पर अपनी Complaint चलती Train में भी SMS कर सकते हैं। इस Web Portal और APP में यह भी सुविधा है कि अगर कोई Passenger चाहे तो गंदगी आदि देखकर उसकी Photo खींचकर Upload भी कर सकता है।
=========================
APP गूगल प्ले से डाउनलोड करें।

गुरुवार, 5 मार्च 2015

Facebook के सरल Tips & Tricks सीखिये


Internet सामाजिक Networking Site Facebook दुनियाभर में अपना जादुई असर फैला चुकी है और ज्यादातर लोग इसके दीवाने बन चुके हैं। वैसे तो Facebook की शुरुआत मित्रों, सहकर्मियों, परिजनों के साथ-साथ नये लोगों से संपर्क बनाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए की गई थी, लेकिन अब यह सिर्फ लोगों के लिये संपर्क माध्यम मात्र नहीं रह गया है।
Facebook पर अब विभिन्न तरह की जानकारियाँ साझा की जाने लगी हैं जिसमें विपणन, Brand-Promotion, नौकरी के विज्ञापन, Dating और शादी का प्रस्ताव के साथ-साथ कई तरह के प्रचार-प्रसार अभियान शामिल हैं। दुनियाभर के लोगों में Facebook का बहुत ही ज्यादा उन्माद है। लोग Facebook के इतने आदी हो चुके हैं कि इस पर Update और Chanting में घंटों तल्लीन रहते हैं। यही वजह है कि अब कई दफ्तरों में इसके लिये पाबंदी या विशेष नियम लागू किये जा रहे हैं। 

अगर आप भी सामाजिक Networking Site Facebook का इस्तेमाल करते हैं तो आपको इसकी सामान्य जानकारी जरुर होगी, जैसे Status Update करना, दोस्ती का अनुरोध भेजना, किसी को मित्र सूची में जोड़ना या हटाना, Facebook Wall, Profile आदि की जानकारी। हालाँकि Facebook पर इसके अलावा भी कई और अलग-अलग विषय वस्तु है जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। कुछ उपयोगी और दिलचस्प Facebook जानकारियाँ-

Facebook पर पसंद के Button हर जगह मौजूद रहता है, लेकिन अगर आप चाहें, तो Post पसंद नहीं आने पर पसंद की तरह ही नापसंद का Button भी जोड़ सकते हैं। वैसे तो आमतौर पर Comment के जरिये भी अपनी राय व्यक्त की जा सकती हैं लेकिन सोचिये कितना अलग और मजेदार अनुभव होगा, कि आपके Status Update या आपकी Share की गई सामग्री को आपके दोस्त पसंद न आने पर नापसंद कर सकें।
बस इसके लिये जरुरी है Status Magic Facebook App जो आपके Facebook Account में एक Dislike Button बटन जोड़ देता है। इतना ही नहीं, आप Love, Hate, Disagree या फिर Lol जैसी दूसरे Button भी जोड़ सकते हैं।

अगर आप नहीं चाहते हैं, कि कुछ लोग आपका Status Update देखें, तो “ What’s on your mind” बॉक्स के नीचे ‘Padlock’ Option पर Click करें। इससे एक Drop-down Menu आयेगा। इसमें ‘Customize’ Option Select करने से “Make this visible to” और “Hide From” जैसे Option आयेंगे। इस Option की मदद से आप कुछ चुनिंदा लोगों के साथ ही अपना Status Share कर सकते हैं।

अगर आप चाहते हैं कि आप Facebook पर Online रहते हुए भी चुनिंदा या सब लोगों को Offline नजर आयें, तो इसका भी तरीका है। अपने Monitor के दाहिनी ओर नीचे की तरफ मौजूद Chat Option पर जायें और Friends पर Click करें। इसके बाद एक छोटी Window खुलेगी, जिसमें आप Type कर एक नई List बना सकते हैं। उदाहरण के लिये Block List।
इस Block List नामक नई List में आप उन लोगों का नाम Select कर Drag कर सकते हैं जिनसे आप बात नहीं करना चाहते। इसके बाद आप अपने Status को इस खास Group के लिये Offline Set कर दें। इसके बाद आप Facebook पर तो होंगे, लेकिन इस Group को Online नजर नहीं आयेंगे।

आप Facebook पृष्ठ पर जाये बिना भी ‘Hellotxt’ की मदद से Facebook Status Update कर सकते है। ‘Hellotxt’ Facebook समेत कई सामाजिक और Networking Sites का Status Update करने में काम आता है।

‘Facebook Photo Album Down loader Face paid’ की मदद से आप अपने Friends की Facebook एल्बम, ईवेंट Album या फिर Group Album को सिर्फ एक Click की मदद से Download कर सकते हैं।

अगर Office के नियम आपको Facebook इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देते, लेकिन आपको Facebook इतना ज्यादा पसंद है कि Status Update और Like से अपने आपको दूर रख पाना मुश्किल होता है, तो इसका भी उपाय है। इस उपाय की मदद से आप Office में बैठकर भी Facebook का इस्तेमाल कर सकते हैं।

techhit.com Website FB Look नाम से एक छोटा-सा Toolbar Microsoft Outlook के साथ Integrated कर देती है। इसकी मदद से आप अपना Status Update कर सकते हैं, अपनी या किसी भी मित्र की FB Wall पर Post की गईं Photo, जानकारियाँ और Massage देख सकते हैं।

यह Facebook का एक नया Feature है और किसी भी Facebook पृष्ठ के Administrator के लिये बड़े काम की चीज है। Schedule Post की मदद से आप किसी भी Post को अपनी मर्जी से तय तारीख और समय पर Post कर सकते हैं, लेकिन यहाँ ये ध्यान रखना जरुरी है कि आप अगले छह महीने निश्चित समयावधि तक में ही किसी Post को Schedule कर सकते हैं।
Post Schedule करने के लिये आपको Status Bar के नीचे बने घड़ी के Icon पर Click कर Posting की तारीख और समय Set करना पड़ता है।

बुधवार, 4 मार्च 2015

Internet के सहारे गणित की उलझन सुलझायें

Internet पर बाकी विषयों की तरह ही गणित से भी जुड़ा ढेर सारा विषय वस्तु Website मौजूद हैं। विद्यार्थी अपने School-Collage की किताबों से मिली जानकारी को और मजबूत बनाने के लिये कुछ खास Internet Sites का इस्तेमाल कर सकते हैं, और हो सकता है कि रोचक ढंग से दी जानकारी के कारण गणित में दिलचस्पी पैदा हो जाये। 
अगर विद्यार्थियों से ये पूछा जाय कि पढ़ाई में सबसे मुश्किल विषय क्या है? तो अधिकाधिक विद्यार्थी का एक ही जवाब होगा… “गणित”? असल में प्रत्येक विद्यार्थी की योग्यता अलग-अलग होती है और गुणा-भाग में सबकी दिलचस्पी नहीं होती। गणित… सूत्रों और नियमों का विषय है, जिसमें हर सवाल का रास्ता गणना और नियमों के जरिये ही निकलता है। ऐसे में बहुत से विद्यार्थी को गणित बड़ा ही मुश्किल लगता है। Internet पर ऐसी बहुत सारी Websites हैं, जो मुश्किल को आसान और गणित को दिलचस्प बना सकती हैं। ऐसी ही कुछ Website हैं :- 

Middle School और आगे के विद्यार्थी के लिये
प्रोफेसर डी.पी. स्टोरी ने बीजगणित से संबंधित 10 पाठ Internet पर PDF की शक्ल में Download के लिये मुहैया कराये हैं। इनमें मुश्किल बीजगणित के अवधारणाओं को सीधे और सरल ढंग से समझाया गया है, जो गणित की बुनियादी जानकारी को मजबूत करते हैं। पाठ इस तरह लिखे गये हैं, जैसे प्रोफेसर साहब किताबी भाषा की बजाय बोलचाल की अंग्रेजी में पढ़ा रहे हैं। इन पाठों में अवधारणायें एक-एक कर साफ होते चले जाते हैं। चीजों को आसान बनाने के लिये ढेरों उदाहरण मौजूद हैं और हर परिभाषा को अच्छी तरह समझाया गया है। 
Web Address- है : tinyurl.com/zlaypp 

Nursery to Class12th तक के लिये 
Discovery Channel की तरफ से चलाई जा रही इस Website पर विद्यार्थी की मदद के लिये विषय वस्तु की भरमार है। हर उम्र और हर बौद्धिक स्तर के विद्यार्थी के लिये इसमें कुछ-न-कुछ है। विद्यार्थी के अलावा बाकी लोग भी रोजमर्रा की जिंदगी के Calculation, रुपान्तरण आदि के लिये इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। Website की सामग्री को इसी तरह बाँटा भी गया है। Nursery से आठवीं तक के छात्रों के इस्तेमाल की चीजें एक खंड में हैं तो सामान्य गणित के नाम से एक अलग खंड है। बीजगणित, Plots & Geometry, Trigonometry & Calculus पर भी पूरे-के-पूरे खंड हैं, जो इन विषयों को विस्तार से समझाते हैं। Products, Factors, Calculus के Derivatives, Cylinders, Spheres... ज्यादातर मुश्किल गणितीय अवधारणाओं से जुड़े सवालों के जवाब आपको यहाँ मिलेंगे। 
Web Address है - है : webmath.com

Nursery to Collage के लिये 
Doctor Math’s तैयार किये जाने की कहानी बहुत दिलचस्प है। गणित के कुछ विशेषज्ञों ने देखा कि जब विद्यार्थी शिक्षक से सवाल पूछते हैं तो उनके जवाब सिर्फ उन्हीं विद्यार्थी तक सीमित रहते हैं। उन्हें ख्याल आया कि अगर ऐसे सभी सवालों और जवाबों को एक जगह जमा कर Internet पर मुहैया करा दिया जाय तो ये दुनिया भर के विद्यार्थी के काम आ सकते हैं। बस “Math’s Forum” नाम की संस्था का बनाया यह मंच विद्यार्थी और शिक्षकों के बीच बहुत ही लोकप्रिय हो गया और आज इसमें लाखों सवालों के जवाब एक ही जगह पर मौजूद हैं। “Dr. Math’s” की Site पर Class के हिसाब से चार हिस्सों में जानकारी मिलेगी - Alimentary School (प्राथमिक), Middle School, High School और Collage व उससे आगे। 
Web Address है- Mathforum.org/dr.math 

पूर्व माध्यमिक SCHOOL और आगे के विद्यार्थी के लिये 
अमेरिका की Clark Univercity के प्रोफेसर डेविड ई. जॉयस ने trigonometry को आसान बनाने के लिये यह Website बनाई है। गणित पर केंद्रित दूसरी Website की ही तरह इसका Interface भी सीधा-सरल है, जिसमें अपने मतलब की चीज ढूँढने के लिये भटकने की जरूरत नहीं है। यहाँ Trigonometry का एक छोटा Course दिया गया है, जो कदम-दर-कदम आगे बढ़ता है। यह Website गणित पढ़ने वाले या इसमें दिलचस्पी रखने वाले हर शख्स के काम की है। यहाँ मौजूद सामग्री को Class के हिसाब से बाँटा नहीं गया है, बल्कि एक सामान्य विषय के रूप में लिया गया है। जितनी जिज्ञासा या जरूरत हो, उस हिसाब से पढ़ते रहिये । हर Chapter के आखिर में अगले Chapter के लिये Link दिया गया है, जिन्हें पढ़ते हुए आप धीरे-धीरे Course पूरा कर सकते हैं। 
Web Address है - http://clarku.edu/~djoyce/trig/ 

Senior Class के लिये 
California में Harlem-ad Collage की Website पर बीजगणित और Calculus में दिलचस्पी पैदा करने के लिये एक अलग भाग दिया गया है। यह Pre- Calculus (बीजगणित) के साथ शुरू करते हुए विद्यार्थी को धीरे-धीरे Calculus की जटिलताओं से परिचित कराता है। यहाँ मौजूद पाठ को पाँच हिस्सों में बाँटा गया है- Pre-Calculus, Single-variable Calculus, Multi-Variable Calculus, रेखीय बीजगणित और विभेदक समीकरण । सारा विषय वस्तु आसान भाषा में लिखे गये Tutorials की शक्ल में है। पहली बार Visit करते समय कुछ खास गणितीय Fonts जरूर Install कर लें, जो Website पर ही मौजूद हैं। बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि इस Website की सारी सामग्री PDF के रूप में एकसाथ Download कर Computer में रखी जा सकती है। 
Web Address है- http://math.hmc.edu/calculus/tutorials/
====================================
(Web Address Copy करके पेस्ट करें।)

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

सतरंगी फागुन के रंगरेला होली

सँझा होवत गाँव के गुड़ी म लइका जवान अऊ सियान सबो जुरियाथँय। इही समे एक ले बढ़ के एक फागगीत सन रंग सिताथँय, गुलाल उड़ाथें। लइकामन के पिचकारी घलो उनिहाय रथँय। रंगे-रंग म चोरबोराय लइकामन नाचे-कूदे म बियस्त रथँय। इलका हो सियान, बेटा जात हो या माई लोगन हो, अमीर हो या गरीब। सब के सब रंग-गुलाल म बोथाय फागुन के छतरंगी तिहार होली ल सारथक करथँय। कोनों रंग या गुलाल कोनो ल रंगे बर नइ बिसरय। येकर ले इस्पस्ट हे के हम होली के यथारतता ल समझन अऊ सबर दिन कायम रखन, तभे हमर होली मनई सारथक होही। 
हमर छत्तिसगढ़ी रीति-रिवाज, परम्परा अऊ संस्कृति के सबो सार बात ह तिहार-बार समाय रथँय। वइसने छत्तीसगढ़ ल तिहार-बार के गढ़ कहे जा सकथे। बारो महीना तिहार मनाय जाथें इहाँ। जनम के सिधवा महिनतकस छत्तीसगढ़िया भाईमन के परेम अऊ सादगी तिहार-बार म झलकथे। लोगन एक तिहार मनाय के बाद अवइया तिहार के अगोरा म हँसी-खुसी समे बिताथे। हमर गाँव-देहात म बइसाख के अक्ती ले तिहार-बार के मुंड़ा घेराथँय जेन हा फागुन के होली म सिराथँय। ये रंगरेला होली फागुन के अगोना पाख के पुन्नी म मनाय जाथँय। होली परब फूलमाला के एक निक-सुग्घर पिंयर गोंदा आय। 
होली ले जुड़े किवदंती 
हर तिहार धरम, दरसन अऊ अधियात्म म जुड़े होथे। कोनों न कोनों रीति अऊ नीति तिहार बार म बिलकुल समाय रथँय। मनुख जात ल प्रकृति ले भेंट संसकिरिति के झलक तिहार म देखे ल मिलथे। रंग-रंग के किवदंती हमर तिहार-बार के संबंध म सुने ल मिलथँय। जइसे एक पौरानिक कथा ले सुने ल मिलथे कि सतजुग म सिरीहरी बिसनु के नरसिंह अवतार के कथा परसंग ले होली मनाय के परम्परा जुड़े हावय। कहे जाथँय दानवराज हिरन्यकस्यप जेन ह खुद ल भगवान मानँय। अपन राज म अपने नाम जपे के प्रचार-प्रसार करे रिहिस। प्रजा राजा के डर म भगवान के नाम बिसरान लागिस। फेर उही राजा के बेटा प्रहलाद भगवान बिसनु के परमभक्त होइस। प्रहलाद के हरिनाम पिता हिरन्यकस्यप ल थोरिक नइ भाइस। राजा बेटा प्रहलाद के ऊपर अतियाचार करिस। आखिर म राजा अपन बहिनी होलिका मेर प्रहलाद के हरिभक्ति के बात रखिस। होलिका ल बरम्हा ले वरदान मिले रिहिस के आगी (अग्निदेव) वोला कभू नइ जला सके। बरदान पाये ले होलिका ल बड़ा गरब रिहिस। भाई के आगिया मुताबिक बालक प्रहलाद ल गोदी म ले के बरत आगी म बइठगें। भक्त प्रहलाद बंबर असन बरत आगी ले बाँचगे पर अहंकार अऊ अति-अनुचित बिसवाँस म माते होलिका जर के राख होगे। येकर ले इही पता चलथँय के ईस्वरनिस्ठा ल पाप अऊ अहंकार दुनों मिलके घलो नइ पछाड़ सकँय। इही समे ले समाज म फइले बुराई ल अच्छाई ले अऊ पाप ल पुन्य ले खतम करे के उद्देस्य ले होलिका दहन के परम्परा चल पड़ीस। आज गाँव-गाँव म फागुन लगते एक जगा छेना-लकड़ी सकेलथें। अंजोरी पाख के पुन्नी रात में लइका-सियान सकला के हुम-धूप देथे। गाँव-परमुख या बइगा हर सकेलाय लकड़ी म आगी ढिलथे। इही बेरा जम्मो झन मदमस्त हो हाँसी-खुसी ले झाँझ-मँजीरा अऊ 
ढोल-नँगारा बजावत, अलाप मारत, सुमरनी फाग गीत गाथँय:- 
सदा भवानी दाहिनी सन्मुख गवरी गनेस।
पांच देव मिल रक्छा करे, बरम्हा, बिसनु, महेस।
ये मनाबो रे ल, परथम चरन गनपति ल
काकर बेटा गनपति भव, काकर भगवान
काकर बेटी देवी कारका, काकर हनुमान
परथम चरन...
गवरी के बेटा गनपति भव, कौसिलिया के भगवान
भैरव की बेटी देवी कारका, अँजनी के हनुमान
प्रथम चरन गनपति ला...। 
लोगन होलिका दहन के दूसर दिन ओ जगह म जाके जुड़ाय राख ल चिमटी म धर के एक-दूसर के माथा म लगा के होली के बधई देथँय। इही राख ल घाव-गोंदर, खस्सू-खजरी म चुपरे ले घाव माड़ जाथँय। ये ह एक गँवइहा बिस्वास आय।
रंग-रोगन के गरीब तिहार 
होलिकादहन के दूसर दिन धुरेड़ी होथे। ये दिन रंग-गुलाल के दिन आय। ये दिन ल गाँव-गाँव म नोनी-बाबू, लइका-सियान मिलजुल के रंगहा-तिहार के रूप म मनाथें। सुने ल मिलथे के दुवापर जुग म भगवान सिरी किरिस्न बृन्दाबन म गोप-गुवालिन सन बन के सुन्दरता ल देख भाव-विभोर हो के नाचिन- गाइन अऊ एक परम्परा चल पड़िस। हमर गाँव देहात म ये दिन लोगन के मन बडा प्रफुल्लित रथँय। एक दूसर ऊपर रंग-गुलाल लगाथँय। नत्ता-गोत्ता मुताबिक एक-दूसर ल पयलगी करथँय। लइकामन के लइकापना धुर्रा अऊ चिखला म इही दिन घलो देखे ल मिलथे। ये तिहार के सबसे बड़े बिसेसता ये आय के ये गरीब के तिहार आय। कम खरचा-पानी म बने-बने निपट जथें। एक-दूसर याने अमीर-गरीब रंग-गुलाल लगइक-लगा होथँय। अमीरी-गरीबी के कोनो बिलग चिन्हारी नइ होय। जवनहा संगी मन बिहनिया नौ-दस बजे ढोल-नँगारा अऊ झाँझ-मँजीरा बजावत, रंग-गुलाल म गोड़-मुड़ बोथाय घर-घर म जा के फाग सन राग लमियाथँय-
'अरे हाँ हो .... हो 
पातर पान बंभूर के, केरापान दलगीर
पातर मुहूँ के छोकरी, बात करे गंभीर।
राजा बिकरमादित महाराजा
केंवरा लगे तोर बागों में
के ओरी बोय राजा केकती अऊ केंवरा
के ओरी अनार महाराजा
ए कि एओरी बोये राजा केकती अऊ केंवरा
दुई ओर अनार महाराजा।
केंवरा लगे हे तोर बागो में ... राजा बिकरमा...।'
सँझा होवत गाँव के गुड़ी म लइका जवान अऊ सियान सबो जुरियाथँय। इही समे एक ले बढ़के एक फागगीत सन रंग सिताथँय, गुलाल उडाथँय। लइकामन के पिचकारी घलो उनिहाय रथँय। रंगे-रंग म चोरबोराय लइकामन नाचे कूदे म बियस्त रथँय। लइका हो सियान, बेटा जात हो या माई लोगन, अमीर हो या गरीब सब के सब रंग-गुलाल म बोथाय फागुन के छतरंगी तिहार होली ल सारथक करथँय। कोनों रंग या गुलाल कोनो ल रंगे बर नइ बिसरय। येकर ले इस्पस्ट हे के हम होली के यथारतता ल समझन अऊ सबर दिन कायम रखन, तभे हमर होली मनई सारथक होही। बबा उमर के मन हू...हू...हू... करत इही बेरा अपन सियनही जिनगी के अनुभव ल नवा पीढ़ी ल बाँटत, डंडा नाचत, संदेस पठोथँय-
'अरे हो, अरे हाँ हाँ हो
सरसती ने सर दिया, गुरू ने दिया गियान
माता पिता ने जनम दिया, रूप दिया भगवान
तरी नरी ना ना मोर न हा ना रे भाई 
ये न हा ना ना मोर ना ना रे भाई 
बड़ सतधारी लखनजाति राजा
तरी नरी हू... हू... हू..
फूटे बंधा के पानी नइ पिअँय 
टूटे चाँवर के भानस नइ खावय 
पर तिरिया के मुख नइ देखय
तरी नरी ना ना मोर न हा ना रे भाई
बस सतधारी लखनजाति...।'
रितुराज के पहुँना फागुन 
फागुन महीना रितुराज के राज म पहुँना कस आथँय। राजसी पहुँनई होथँय फागुन के। सरद-गरम मिश्रित पुरवई के रंग म सवार फागुन चंदन सही फुदकी ल निहारत मधुमास के महल म अमरथँय। रंगरेला फागुन के सुन्दरई ल देख अमराई बउरा जाथँय। कोयली के कंठ ले सिंगारगीत निकलथँय। परसा अऊ सेमर के सजई-संवरई घात सुहाथँय फागुन ला। पंदरा दिन के साँवरी सलौनी अँधियारी पाख फागुन ल बिलमाथँय, ताहन पारी आथँय चिकनी गोरी अँजोरी पाख के भला कइसे बिसरा ज ही फागुन ल। पिंयर देही छात रूपसी चंदा ह अँजोरी पाख अऊ फागुन के मेल-मिलाप देख मुस्कुरावत रथँय।
गाँव-गँवई के दरसन 
हमर गाँव-देहात म देवारी के बाद खेत-खार अऊ कोठार के बियस्तता ले घर-दुआर के बिगड़े स्थिति फागुन महीना म सुधरथँय। इही महीना ढोल-नँगारा के संग फाग गुंजन लागथँय। चौपाल के खनक बढ़ जाथे। काम-बुता ले फुरसत हो लोगन परछी अऊ चँवरा म बइठ तास म रमे रथे। पासा ढुलावत बीते खेती किसानी के दिन बादर के गोठ गोठियावत रथे। कोनों-कोनों छेत्र म गाँव भर के नवकर जइसे गहिरा, लोहार, नउ बरेठ मन के दिन-बादर (सेवा-अवधि) फागुन महीना म पूरा होथे। इही महीना म लोगन-लोगन ल मँगनी-बरनी अऊ बर बिहाव के सुरता आबे करथे, संगे-संग अवइया, चइत नवरात्रि के गोठ, खेती-किसानी के गोठ जइसे बीज-भात, नाँगर-बक्खर काँटा-खुटी, बन बुटा, मेंड़पार, माल-मत्ता (बइला-वइला) के गोठ फागुन के गोठ होथे। कमाय-खाय बर परदेस गेये लोगन फागुन के होली तिहार मनाय बर अपन जनम भुइँया जरूर लहुटथे। इही फागुन महिना म फेर एक घाँव गाँव-गँवई के दरसन होथे। 
ठेठरी रोटी के मजा 
लोगन माघ के महीना के निकलते अऊ फागुन के लगते ओन्हारी सियारी लुवत-टोरत अऊ मिंजत खानी ठुठुर-ठाठर करत लुथे-टोरथे अऊ घइरथे-सइतथे। माँघ के ओन्हारी ले ही फागुनहा होली के रोटी-पीठा के चुरई निरभर करिथे। बने-बने ओन्हारी-सियारी होथे त रोटी-पीठा घलो बने-बने चुरथे। तिली, अरसी, सरसो के तेलपइत, उरिद-मूँग दार ले बरा, लाख-लाखड़ी अऊ चना बेसन के भजिया अऊ ठेठरी जम्मो सकलाथे त होली के रोटी चुरथे। कोनों, कभू, कतको अऊ कुछु बना के खाय, चाहे झन खाय, पर तिहार बार के तेलहा रोटी राँध के खाय ल कोनों नइ छोड़ँय। अपन-अपन इच्छा अऊ हेसियत मुताबिक जरूर राँधहीं, खाहीं। बरा, सोंहारी, भजिया ह लगभग सबो तिहार म जनम लेवत रइथें पर ठेठरी ह फागुन के होली म ही अवरतथँय। दिगर तेलहा रोटी ह एक-दू दिन म लरजाये ल धरथे, फेर ठेठरी के बात अलग हे। बनाये म घला सहज। ये ल लाख-लाखड़ी या चना बेसन ल बने सान के नान-नान लोई धरके उबड़ी (उल्टी) थारी, कोपरी या चँवकी म हथेली ले, पतला-पतला डोरी असन बरे जाथे। बरे के बाद बीच ले मोड़ के एक घाँव अऊ मोड़े जाथे। ताहन फेर डबकत तेल म डार के बनाय जाथँय। येला तिहार के दिन खाले, आन दिन अऊ पंदरा-महिना दिन ले घला रख ले। कुछु नइ होवय, खावत रा ठुठुर-ठुठुर। येकर सेती सियान मन कहे हावय 'माँघ के ठुठुर-ठाठर अऊ फागुन के ठेठरी।'
माँस-मंदिरा के अवगुन 
सुग्घर रूप से फागुन महीना के गुनगान होली म जबड़ अवगुन घला समाय रथे। जेमा माँस-मंदिरा के उपयोग परमुख हावय। कइसन तो अइसे समझे के होली ह पिये-खाय के तिहार आय। ये माँस-मंदिरा ले तिहार के अच्छा-मंगल सइतानास हो जथँय। पीअई-खवई ले लोगन के आरथिक स्थिति सिखाथँय, अऊ मारपीट ले समाज म हिंसा उपजथे। हिंसा के पिकी बैर के बिरिक्छ बन के समाज म सिरीफ काँटा बगराथे। समाज म मनुखपना ल बनाये राखे बर ये माँस मंदिरा ल बिसरान, ठेठरी खावन, रंग-गुलाल लगावत होली मनावन अऊ कहन - 'होली हे।' 

लेवाल

नोनी हो काली भिनसरहा ले फूलेरा पूजा करते साठ फरहार बासी खाए बर आहूँ, तुम्हर भऊजी मन हा रोटी-पीठा बना के राख देहें। अमसिया काकी के अतका काहत होइस के जामा अऊ बाला के मन हा गदगद होंगे काबर कि ओमन जानत हें अमसिया काकी ह अतका पेट भीतर ले मया करके ओमन ला तीजा के बिहान दिन बासी कहि लव के फरहार दूनों खाये बर बलाथें, अऊ जब हमन ओखर नेवता पाके डेहरी भीतरी अमाथन त हमूमन ला काकी के घर-दुआर ह निक लागथे, मार छनछन ले ओखर रँधनी ह छोहा पार के लिपाये रहिथे,
अँगना परछी ह चकचक ले औंठियाये, पोंछाये रहिथें, कपाट बेंड़ी मन मार रग-रग ले तुरते के तेल-वारनिस लगे कस रहे रहिथे। फेर काकी ल हमन कभू हक-खाय कस नइ पायेंन, हमर जाय के आघुच कुआँ बाल्टी ले हेरे पानी ल गगरी अऊ हऊँला म तोप ढाँक के राखे चूल्हा के आगी ल तीर के मुँधरहच ले भिनसा पानी बना के मढ़ाय, अगोरत रहिथे। जाते हमन ल भिनसा ल डार के देथे, अऊ जतका देर ले भिनसा पानी नइ पीयें राहन तलघस ले काहत रहिथे, “बेटी हो आघू इहि ला मुहूँ म तुलसी पान डार के पिवँय, ऐखर ले टोंटा ह नई छोलाय।” फेर इही काकी ल देखत जामा ह गुने ल लागिस कि कइसे ओमन अपन नान्हेपन म आठे मनाये के बिहान भये ले इही अमसिया काकी ल अपन भाई-भतीज के अगोरा लेवत देखे हे अऊ कहूँ काकी ल ओखर अंतस जाने बर कोनो पूछ लँय, कि काकी तोला तो परिहारो घलो अइसने हे अगोरत देखे रहेन तभो तोर भाई ह नई आय रहिस। येला सुनते ओ हा मार मुच ले हाँस के कहि देवय, “आने बछर कोनों काम-बूता म फँदा गे रिहिस होही, फेर एसो म आही। बछर के इही सुनत-सुनत ओ मन काकी ल मोटियारी ले सियनहिन होवत देखे रहिन। बात परे म गँवई के ओखर जमाना के जँवरिहा माई लोगिन मन ह गोठियावैं, कि “अमसिया काकी ह जब नेवरिया बिहा के आय रिहिस तब डोला-परछन के बाद जब बैलागाड़ी ले उतरिस तब अइसे लागिस जानो-मानो सोझ्झे लछमिन दाई ह लकलक ले आय हे। रंग म साँवर रहय फेर नाक-नक्शा ह देखे के लइक रहाय। तहाँ अऊ बतावँय कि काम-बूता ह ओला भारी उसरय, ओखर जाँगर के पार ल कोनो आने बहू-बेटी मन नई पा सकँय फेर जब पठोनी आय के बाद पहलइया तीजा ह नजदीक आय ल धरीस तब निच्चट मरही बरोबर ओखर चेहरा-मोहरा ह दिखे ल धरलिस। आठे ल मना के गाँव के जम्मो बहू-बेटी मन हा जब ओरी-पारी अपन-अपन लेवाल संग आय-जाय ल लागिन। तभो ले उही बखत नेवरिया बहू आय अमसिया काकी के अगोरा ह नई सिरइस, पोरा के दिन ले नाँदिया-बइला के भोग परसाद बर ठेठरी-खुरमी बना के टीपा-टीपली म धर डरीस। उही संदूक में तीन ठिक लुगरा-पोलखा अऊ साया ल घलो घिरिया के इस्तरी करे बरोबर राखे रहय। फेर पोरा पटके जाय बर जब बहिनी बेटी मन ओरियाय लगिन त काकी ह कइसनो अटका लगा के कुरिया भीतरी रेंग दिस। ओती करू भात के दिन आगे फेर ओखर लेवाल के कोनो सोर पता नई आइस फेर उही बेरा म जब मइके आय बेटी मन पूछत-पूछत ठठ्ठा घलो करे लागिन कि भौजी तोर लेवाल ह कतका बेरा आही कहूँ रद्दा के तीर तखार के भूलन काँदा ल तो नइ खुंद परीस होही। अइसन, रंग-रंग के गोठ ल सुने बाद घलो अमसिया काकी के आँखी ह नइ डबडबाइस अऊ इही कहिके ओमन ल चुपे करा दय कि साँझ-रात ले भाई ह आही अऊ निहीं तब कोनो न कोनो ल मोला लाने बर कका ह तो पठोहिच। फेर जइसन कि वोला भीतरे-भीतर जनाय बरोबर होगे रहाय। ओखर न लेवाल ह इस अऊ न तीजहा-बर लुगरा। रद्दा देखत मँझनिया ले सँझा अऊ फेर रतिहा होगे ततके म काकी के घर तीर के पारा म आय बेटी मन ह पूजा थारी म लुगरा, नरियर, दिया-बाती धरे-धरे फूलेरा पूजा करे बर शंकर के मंदिर म ओरियाय ल लागिन तब अमसिया दाई के उतरे रूप ल देख ओखर सास ह किहिस, “बेटी तेंहा मोला आज ले ससुरार के संगे-संग मइके के महतारी घलो जान। अमसिया काबर कि तेहा मोर बेटा के पाछू म बिहाय आय हस। त तहुँ ह मोर बेटी आस, ऐखरे सेती आज ले तेहाँ इँहे करूभात मानबे अऊ फरहार करबे अऊ तोर तिजहा बर जे लुगरा मन आही तेला मोर खोली म राखे पेटी ले हेर के लेआ।” अइसन कहिके अपन अछरा म बाँधे कुची ल छोरके अमसिया काकी के सास ह ओखर हाथ म धरा दीस, अपन सास के अइसन गोठ अऊ ओखर पाछू के मया ल देखके अमसिया काकी के आँखी डाहर-ले मार तर-तर आँसू ढूले ल धरलिस, अऊ तहाँ ले आज नवा महतारी बने अपन सास ल आही-बाँही भीतरी पोटार के किहिस- 'दाई मँय ह तो महतारी काला कथे कभू नई जानेंव, बाबूच ह महतारी अऊ बाप दूनों के मया अऊ दुलार दिस। फेर करम के लेखा ल कोनो न टार सकय इही के चलते एक दिन बाबू घलो ह गाँव के कोटवार कका ल मोला सँऊप के जिनगी ल हार दिस अऊ सरग रेंग दिस फेर ऐती मोर करम ठठा गे काबर के कोटवार कका के बेटा-पतो ल मँय ह फूटे आँखी नइ सुहावत रेहेंव तभो ले कका के मया पाय के दिन भर घानी कस बइला पेरावँव अऊ भाई-भऊजी ल फूलोय म लगे रहँव रेड़ के बूता काम करँव तब कहूँ, पेज बासी मिलय, कका ह इही सब ला देखत उमर होते मोर हाथ ल पिंवरा के गंगा नहाय बरोबर होगे। ओखर लाचारी के आगू म मँय हा बिन मुँहू कस रहिगेंव, तभो ले सूने हावँव कि मइके के चिरई, कुकुर बर घलो मया लागथे त तो फेर मोर कका के परवार ह एक जनम के माने नता हरय अऊ एखरे सेती आठे मनाते लेवाल के रद्दा देखे ल धरलेंव, फेर अपन मन ल मढ़ा डरेंव इही संसों म, कि जतका भाग म रिहिस वतका मिलगे, अब काबर मन ल छोटकुन करँव तभे “जामा, बाला चलो न नोनी हो, फरहार बासी खातेव त महूँ ह अपन मुँहू म गंगाजल डारतेंव।” दाई के ये हाँक ह जब मोर कान भीतरी जनइस त हड़बड़ा के सिंग कपाट के बेंड़ी ल हेरे ल धरलेंव, अऊ बाला के संगे दुआरी के आँट ल लकर-धकर नहाक के अमसिया काकी के घर म दुनों झिन संगे हमायेन, काकी ह मया करके हमर मन बर लपेटा इढ़हर, कढ़ी, तिखुर अऊ आने रोटी-पीठा समेत जतका खाय-पिये के जिनिस बनाय रिहिस तेला परोस देइस तभे थिरइस। फेर हमर फरहार-पानी करत ले, झट हमर मन बर लाने लुगरा ल भुजा म डार के एक-एकठि रुपया अऊ सेंदूर पुड़िया ल हाथ म धरा दिस। तभे मँय अऊ बाला दुनों झिन सलाह करके काकी बर पातर आँछी के लाय लुगरा अऊ कका बर लाय कुरथा कपड़ा ल झोरा भीतरी ले निकालेन अऊ संगे काकी के देह म डारे ल धरेन त काकी ह कथे- “बेटी हो मानदान घर के लुगरा पाटा ल झोंक के मँय ह पाप के भागी नइ बनँव, इही पायके येला झोराच म धर लेव। काकी के गोठ ल हमन नइ सुनत हन तइसे मिटकाय कस करके, काकी ल किलोली करे ल धरलेन अऊ सल्लग केहे ल लागेन- “हमन ल महतारी मान के ले ले न काकी, काबर कि बेटी ल घलो मइके कहिथें। अतका सुनते मानो काकी के आँखी के आँसू हर अपन हुँकारू देय ल धरलिस अऊ झर-झर टिपके लागीस। फेर हमन का देखथन कि काकी ह हमर मन तीर ले लुगरा अऊ चूरी-चाकी के डब्बा ल झोंक के केहे लागीस- 'तोर कका ल किंजर के आवन दे वोला बताहूँ कि कोन कहिथे मोर महतारी नइहे। ये देखव मोर लइकुसहा महतारी बने नोनी मन ह मोर बर तिजहा के संगे तुम्हार बर कुरथा कपड़ा घलो लाये हाबँय। मँय हा आज इही लुगरा ल पहिन के फरहार करथँव। तुम्हार लाने ल पाछू पहिन हूँ। हाँ फेर तहूँ मन खोर डहार जाहू त बुधारू दर्जी मेर अपन कुरथा के नाप छोड़ देहु। काकी के ये गोठ ल सुनते हमन के जी म खुसियारी लागीस, तभे हमन काकी ल चेताय ल धर लेन काकी संगे फुलेरा ठंडा करे बर तरिया जाबो अऊ तहाँ ले मँय अउ बाला दोनों झिन सुटूर-सुटूर बैदेही भौजी पारा डाहर रेंगे ल धरलेन।

==========================
श्रीमती अनुरिमा शर्मा, डंगनिया रायपुर



फूलकैना

भेलई वाली मोर सारी ह अड़बड़ सुन्दर हे, वोखर सुन्दरता ल देख के घर वाले मन वोखर नाम उरवसी रखे हे। उरवसी के मायने होथे ‘हृदय म बस जाने वाली’, जइसे नाम वइसे काम। वोखर सुन्दरता के लिए एकेच सब्द हे- झक्कास! एक ठन आयोजन के नेवता पा के भेलई गे राहँव। वो कार्यक्रम ह डीपी देसमुख, दीनदयाल साहू, दुर्गा परसाद पारकर, तुकाराम कंसारी दुवारा समिलहा आयोजित रहिस। साम के छै बजे कार्यक्रम ह खतम होइस। अब रात रुके के बारी आइस। मँय सोंचेव पाछू बेरा ऑटो वाले भाँटो घर गेरेहेंव, तब ये दरी अपन सारी घर जाय जावँव। ऑटो बइठ के सारी घर पहुँच भी गेंव। सड़क ले दस कदम दुरिहा म वोखर घर राहय। साढ़ू ह एक ठन कम्पनी म काम करय, कम्पनी के क्वार्टर म राहय। मँय उरवसी ल उरवसी नइ कहिके फूलकैना (फूल की कन्या) काहँव काबर कि वो ह सहींच म फूल कस नाजुक रहिस हे। बाहिर के गेट ल खोल के सोझे खुसरगेंव अऊ जा के हाँक पारेंव फुलकैना...! आरो पा के फुलकैना परगट होगे, हाथ म टीवी के रिमोट राहय। फुलकैना नाम सुनके दँउड़त बेडरूम से गेट तक अइस। हाय भाँटो कोन कोती के राजा मरे हे? मँय कहेंव- अरे तोर से मिले अड़बड़ दिन होगे रिहिस हे तेखर सेती मिले बर आगेंव। फूलकैना निहर के पॉंव परिस। हाँत के हरियर-हरियर चूरी मन खनक के परसन्नता देखइस। फूलकैना के चेहरा म हीरा पाय के खुसी दिखत रिहिस हे। हिरना कस कजरारी बड़े-बड़े आँखी, कामदेव के धनुस कस भौंह, बाबी डॉल कस नाक, दँतइया कस पातर कनिहा, केरा के पेड़ कस चिक्कन पेंड़री, पके कुंदरू कस ओंठ, मोती कस चकचक ले दाँत, कनिहा के आवत ले बेनी, ऊप्पर लें मोंगरा के गजरा। फूलकैना सहिंच म उरवसी अपसरा कस दिखत राहय। अभी-अभी पाटी पार के कंघी करे राहय, अतर तेल के खुसबू आवत राहय। हिन्दी भाखा म अइसने मन ल अनिंदय सुन्दरी कहे जाथे। फूलकैना पानी ले के अइस अऊ सोफा म बइठे ल कहिस। पैंतिस हजार के नावा सोफा म बइठेंव तब गजब के आराम मिलिस। देखते-देखते फूलकैना ह मोर बर कॉफी बना के ले अइस। कॉफी के सिराते ही हालचाल पूछेंव। भाई साहब कहाँ गे हे? वो कहिस सेकंड सिफ्ट ड्यूटी गे हे, दस बजे आ जही। तँय तो दिनोंदिन अऊ सुन्दर होवत जावस हस फूलकैना। फूलकैना ह उल्टा बान छोड़ दिस-तैं का कम हस भाँटो? मँय सुनेंव तब लजा गेंव। फूलकैना कहिस- तैं पहिली ले दुबरा गेस भाँटो? एक्सीडेण्ट के बाद मोर पीठ म लोहा के पट्टी बँधाय रहिथे। पेटभर खाना नइ खवावय। उप्पर ले नौकरी के टेनसन, कहूँ न कहूँ दौरा, टूरा के पढ़ई के चिन्ता अलग। कइसे नइ दुबराहूँ तहीं बता? दीदी कइसे हे कहिके पूछिस तब बतायेंव वो तो घुसघुस ले मोटा गे हे। तँय अपन बता तोर का हालचाल हे? फूलकैना के चेहरा म चमकत हैलोजन लाइट ह बुझागे। का बतावँव भाँटो, जवानी, अइसने खुवार होवत जावत हे। बिहाव के चार साल होगे पर एको झन संतान नइ हे। ऐला तो बस दारू के सिवाय कुछू नइ सुझय। दिन-रात पीयत रहिथे बरजे ले मानय निंही उल्टा ताना मारथे तोर बाप के पइसा के पीयत हौं का कहिके। महूँ उदास होके बोलेंव- जेला बरबाद करना हे तेला दारू पीये बर सिखा दे अऊ कुछू करे के जरूरत नइ हे। दारू ह वोला सब बुराई सिखा दिही। परेम से वोला समझायेंव तँय अपन खियाल रखे कर! तोर सुघ्घर रूप ल देख के मोला तरस आथे फूलकैना, बिधाता ह तोला बाँधिस तब काखर संग। भावना ह जब मुरझा जथे तब आतमा ल चोट लगथे, अऊ आतमा ल चोट लगे से परेम के अथाह कुआँ ह घलो सूखा जाथे, फेर आदमी ह तन से पास म रहिके भी मन से कोस भर दूर रहिथे। फूलकैना ह मोर बाजू ल पकड़ के रोनहुत होके कहिस कोनजनी भाँटो कोन जनम के पाप ये तेला भोगत हँव। रहि-रहि के मोला तिरिया जनम झन देबे रे सुवा ना... वाले गाना के सुरता आथे। सुनेंव तब मोर जघा बोले बर सब्द नइ रहिगे। 

फूलकैना ह मौन ल टोरिस- देख तो भाँटो मोला बुखार हे का? दिनभर रसरसाय कस लगत हे, अइसे कहिके अपन बाँह ल मोर कोती लमा दीस। छुयेंव तब अइसे लगिस कि उल्हुवा पाना ल छुवत हँव का, वोखर हाथ ह सहीं म गरम लगिस। मँय कहेंव जा चाय संग बुखार के गोली खा ले। ठउँका वोतके बेर कुकर के सीटी बाज गे। भाप निकले से दुबराज, चाँउर के खुसबू ह घर भर म फइलगे। अब लगातार सीटी बजे के कारन फूलकैना ह दँउड़ के रंधनी खोली म चल दीस। आ के कहिस खाना बन गेहे भाँटो, गरमे-गरम खा ले न। मँय कहेंव- दूनों भाई संगे-संग नइ खाबो? अरे वोखर कोई ठिकाना नइ हे भाँटो, डिवटी छूटे के बाद बजार चल देथे उहाँ ले पी-पा के आ जथे। आ के नखरा मारथे, जिद्द म उतर जथे... मारपीट करथे मोला बाँझ कहिथे। मँय ह गारी, मारपीट सबो ल सही लेथों फेर बाँझ कहिथे तब अइसे लगथे कि पंखा म लटक के मर जॉंवव का... कि रेल म कट के जिनगी ल खतम कर लँव। जिनगी ह मोर बर पहाड़ होगेहे भाँटो। सुन्दर रूप पायेंव तब का काम के, घर के पति ल मोर कदर नइहे। अइसे-तइसे दिन काटत हँव। जे दिन नइ सही सकहूँ ते दिन पता निंही जहर-महुरा मन मोर साथ दिही के निंही ते। मोर मन ह रोवासी होगे। धकर-लकर बात ल पलटेंव- ए दरी तोर जनम दिन म सबो झन अवइया रहेन। तोर दीदी ह मना कर दीस, वो मनला बढ़िया से जनम दिस मनावन दे, पी-पा के आथे तहाँ ले वो ह सुरु हो जथे जानथस तो कहिके।

फूलकैना फेर पूछिस- खाना निकालत हँव भाँटो बिहनिया के खाय हावस, भूख लगत होही? वोला आय म रात के गियारा तक बज जाथे। तँय खा ले अऊ अराम कर, मँय फोन म पूछ लेथँव। जवाब मिलिस खाना बनगे हे तब खवा दे ना, मोला आय म देरी हो जही। खाना निकलगे, राहेरदार म डारे घी ह टिकली असन गोल-गोल छिटके राहय। बोहार भाजी ल देखेंव तब मुहूँ म पानी आगे। आनंद से एक-एक कौंरा ल खायेंव। पापर, बिजौरी, अथान के संग खाय के मजा कुछु अऊ होथे। हाथ ल पोंछत बोलेंव-तोर हाथ म जादू हे फूलकैना। कइसे भाँटो? तोर हाथ के रॉंधे जेवन ह अड़बड़ मिठाथे। फूलकैना कठल के हाँस दीस। 

समाचार देखत राहँव ततके बेरा साढ़ू भाई अइस। जै जोहार के बाद थोकिन चरचा करके वो ह खाय बर चल दीस। दूनों कोई खाय बर धर लीन। कब मोर नींद परगे पता नइ चलिस। अधरतिहा एसी के ठंडा हावा म छींक ऊपर छींक आय बर धर लीस। लगातार छींकत देख के फूलकैना आगे। कइसे छींकत हास भाँटो काफी बना दँव का? मँय कहेंव अम्मठहा बोहार भाजी अऊ एसी के ठंडक म सर्दी धर लीस। ए.सी. ल बंद करके पंखा चला दे जा तहूँ सुत अभी रात ह पहाय नइ हे। फूलकैना पंखा चला के चल दीस। 

मोर आँखी ले नींद ह उड़ा गे राहय। रहि-रहि के फुलकैना के बात के सुरता आवय पंखा के लटकना, रेलगाड़ी, जहर महुरा... ये सब ल सुरता करँव तब मोर आँखी ह आँसू के भार ल नइ सही सकिन अऊ लीकेज नल के टोंटी कस बूंद ह टप-टप टपके बर धर लीस। मँय ब्रम्हाजी से बिनती करेंव- हे परमपिता, मँय अपन भाग के बाँचे सुख ल फूलकैना के नाम करत हँव। वहू बिचारी ह अपन दु:ख ल छिपा के खुसी ओढ़ के जीयत हे। साढ़ू के नाक बाजत राहय अऊ फुलकैना ह छटपटावत राहय। चुरी के खनक अऊ करवट के अवाज से अंदाज लगत रहिस। एकाध घण्टा बाद मँगइया मन के फेरा सुरु होगे। फूलकैना उठिस अऊ दान देय बर चल दीस। महूँ उठ गेंव काबर कि दूसर दिन कलेक्टरेट म बैठक राहय। सात बजे बस राहय, छै बजे तियार हो गेंव। फुलकैना बिस्कुट अऊ काफी ले के आगे। 

मैं कहेंव भाई साहब ल उठा न, अब जाय के अनुमति ले लेथँव। फुलकैना हाँस परिस पर साढ़ू ह नसा के मारे ऊं... ऊं.. कहिके रहि जावय। फूलकैना कहिस- नींद म हे भाँटो सुते राहन दे। ... अच्छा फूलकैना दया-मया ल धरे रहिबे, बस के बेरा होवत हे जाथँव कहिके पॉंच सौ रुपिया के नोट ल वोला देंव। फूलकैना ह लेय बर इंकार कर दीस। तब जबरदस्ती वोखर हाथ म पकड़ा देंव। फूलकैना मोर हाथ ल अपन दूनों हाथ म धरलीस। वोखर आँखी ह डबडबाय असन होगे। मोला कहिस तोला मोर किरिया हे भाँटो, दीदी ल कुछू झन बताबे। पूछही तब सब बने-बने हे कहि देबे। मँय हाथ ल छोड़ायेंव तब वो पॉंव परिस, वोला आसिरबाद देंव अऊ निकल गेंव। 

बस म बइठे-बइठे मोला फूलकैना के सुरता आवय। नींद के मारे आँखी करुवावत राहय। आँखी ल मूूँद लेंव तब कण्डक्टर पूछिस- कवि सम्मेलन से आवत हास का सर जी? मँय झूठमूठ कहि देव हहो। फेर आँखी मूँदेंव तब फूलकैना के बात ह सिनेमा कस चले लगिस। ... भाँटो, बाँझ कहिथे तब अइसे लगथे कि पंखा म लटक के मर जॉंव का? कि रेल म कट के जिनगी ल खतम कर लँव का... पता निंही जहर महुरा मन मोर साथ दिही के निंही ते? वो हँसी वो दमकत चेहरा, वोखर पीछू फूलकैना के अँधियार जिनगी। बाँझ के ताना, परमात्मा के अइसन लीला... अजब परेम के गजब कहानी बनगे राहय। 

दस बजे के आसपास फूलकैना के फोन अइस- भाँटो तँय एसी ल बंद करा दे रहेस तोर सिरहाना तो पसीना म भीग गे हे, घाम म सूखो दे हों। गरमी लगिस तब एसी ल फेर चला लेना रहिस। मँय कहेंव नींद म कुछु नइ सुझय फूलकैना। अब वोखर दीदी के आगू म रात के आँसू वाले बात ल फोर के थोरे बता दँव। 
==================
डॉ.राजेन्द्र पाटक ‘स्नेहिल’

राजभासा के असतित्व

राजभासा के गठन होईस, तब लगिस के अब हमर छत्तिसगढ़ी भासा के मानकीकरन होंही। भासा आठवीं अनुसूची में जगह पाय बर लड़त हाबय। फेर मानकीकरन के पता नइयेे। ‘‘छत्तिसगढ़ी’’ ही जम्मो छत्तिसगढ़ी में होना चाही, हल्बी, सरगुजिहॉं के असतित्व खतम करे के बात करथें। छत्तिसगढ़ी भासा म ये बोली मन ल समाये के बात करथें। यदि छत्तिसगढ़ी के बियाकरन हाबय तब कुडुल के बियाकरन गलो हाबय। बियाकरन भासा के आधार आय। छत्तिसगढ़ी भासा के बियाकरन बने 130 बछर होगे फेर हमेशा ओला बोली कहिके दबाय के कोसिस करे गिस। आज भी बड़े-बड़े हिन्दी के बियाख्याता मन ताली ठोंक के कहिथें के छत्तिसगढ़ी के बियाकरन कहॉंं हाबय, बियाकरन होय ले भासा नइ बन जाय।
दूसर बात छत्तिसगढ़ी ह बँटाय हाबय बिलसपुरिहा अऊ रयपुरिहा। इँखर आपस म तालमेल बइठत नइये। सब अपन-अपन डाहर खिंचत हाबय। राजभासा आयोग छत्तिसगढ़ी भासा के प्रांतीय सम्मेलन करत हाबय। बहुत अच्छा परयास आय। तीन बेर ये कार्यक्रम होथे। धीरे-धीरे पटरी म आवत हाबय। विसय चयन बहुत बड़े बात आय। विसय ल देख के लगथे के ये कार्यक्रम सिरिफ एक खानापूरति तो नोहय। हॉंं, फेर कुछ ‘‘हलचल’’ तो होवत हाबय। पुस्तक प्रकासन बर पइसा देना एक अच्छा पहल आय, अब खुल के पुस्तक छपई होवत हाबय फेर गद्य कतका? ये परस्न अभी भी खड़े हाबय।

एक विसय बहुत अच्छा रहिथे ‘‘छत्तिसगढ़ी भासा के अन्तरसंबंध’’ येखर ले एक गौरव के एहसास होथे। जेन मन छत्तिसगढ़ी ल हेय नार ले देखथें तिंखर आँखी खुलत जात हाबय। आज विस्व म लुप्त होवत भासा के पीरा दिखत हाबय। हर दिन एक भासा लुप्त होवत हाबय। आज छत्तीसगढ़ के हर बोली ल सहेज के रखे के जरूरत हाबय। जतका भी बोली हाबय ओमा सिक्छा विभाग तो पढ़ाय के काम करत हाबय ‘‘राज्य संसाधन केन्द्र प्रौढ़ सिक्छा’’ घलो छै भासा म काम करत हाबय। छै भासा के प्रवेसिका तइयार हाबय। कुडुक, सादरी, हल्बी, गोंडी, सरगुजिहॉं अऊ छत्तिसगढ़ी। ये भासा ऊपर जब हमन काम करेन तब पता चलिस के सब ऊपर छत्तिसगढ़ी लागू करना एक बोझ आय। छत्तिसगढ़ी समझे म ये मन ल तकलीफ होही अऊ हमन ल घलो ये बोली ल समझे म तकलीफ होथे।

एक भासा बने म हजारों बछर लगथे। ओला मेटाय के प्रयास काबर सबो के असतित्व बने रहना चाही। छत्तीसगढ़ म घलो दूसर राज सरिख सब बोली म पढ़ाई होना चाही। अपन मातृभासा ले हिन्दी तरफ तो सब ल जाना हे। छत्तिसगढ़ी बोलइया के संखिया जादा हाबय। येला छेत्र म न बॉंट के एक करना जरूरी हाबय। जेखर बर मानकीकरन होना चाही। एक सब्द के छेत्रीय सब्द ल परियायवाची मान के रखे जाय अऊ ये सबो सब्द के प्रयोग करे जाय।

अब अगले प्रांतीय अधिवेसन म ये मानकीकरन ऊपर पूरा साहित्य आना चाही तभे ये राजभासा के असतित्व ल माने जाही। नइते ये ह एक खानापूरति अऊ अध्यक्छ सदस्य ल पइसा देय के एक उदिम ही कहे जाही| काबर के पद लोलुपता बाढ़गे हाबय। जेन आथे तीन साल तक गाड़ी, पइसा झोंकथें अऊ चल देथे। ये कार्यक्रम ले कुछ जागरित होवत हाबय फेर मानकीकरन के बिना सब बेकार आय। मानकीकरन आठवी अनुसूची बर एक भार के काम करही। यदि मानकीकरन राजभासा आयोग के काम नइये तब काकर आय? राजभासा आयोग ले फायदा काय होवत हाबय? फायदा कोन ल होवत हाबय? यदि आयोग नइ होही तब भासा बर काम कोन करही? परस्न बहुत अकन हाबय| सब ल सोचना हाबय।
==========
सुधा वर्मा

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

खास आपके लिये

  • सुबह-सुबह उठते ही 2-3 गिलास गुनगुना पानी पीना है। दिन में ३-४ लिटर पानी जरूर पिए और पानी हमेशा कुनकुना (न ज्यादा ठण्डा न गर्म) पियें और आराम से बैठकर घूँट भर भर के पियें। 
  • सुबह का भोजन सूरज निकलने के 2 घण्टे बाद तक जरूर कर लें। 
  • दोहपर का भोजन 12 से 2 के बीच में कर लेना चाहिये। 
  • शाम का भोजन सूरज के छिपने से आधे घण्टे पहले तक कर लें। 
  • सुबह नाश्ता ना लेकर पूरा भोजन करें, सुबह का भोजन सबसे अधिक रहना चाहिये दोहपर को उससे कम तथा शाम का भोजन सबसे कम होना चाहिये एवं रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिये। 
  • सुबह भोजन के बाद जूस ले सकते हैं दोहपर में भोजन के बाद छाछ (तक्रम) ले सकते हैं व शाम को भोजन के बाद दूध ले सकते हैं। 
  • पानी भोजन करने के डेढ़ घण्टे बाद ही पियें, खाने के साथ।
  •  में पानी भूलकर भी ना पियें। 
  • पानी जब भी पियें घूँट-घूँट भरकर (चुस्कियाँ) लेकर ही पियें। 
  • चीनी (शक्कर) का प्रयोग करना बंद कर दें उस के स्थान पर गुड़ या मिश्री (खड़ी शक्कर) का प्रयोग करें।
  • आयोडीन नमक का प्रयोग बंद कर दें और उस के स्थान पर सेंधा नमक (पत्थर वाला) का प्रयोग करें, क्योंकि आयोडीन नमक में 3-4 तत्व ही हमारे शरीर के लिये लाभदायक होते हैं और सेंधा नमक में 94 तत्व हमारे शरीर के लिये लाभदायक होते है। और शरीर में आयोडीन की अधिकता होने के कारण भी नपुंसकता होती है अतः भोजन में सेंधा नमक का ही प्रयोग करना चाहिये। 
  • रिफाईंड, डबल रिफाईंड और सोयाबीन तेल का प्रयोग भोजन में करना हानिकारक है उस के स्थान पर मूंगफली, तिल, सरसों आदि का घानी (कोल्हू) वाला तेल ही प्रयोग करें। 
  •  फ़ास्ट फ़ूड (विदेशी खाना) न खाए, भारतीय खाना खाए।
  • खाना सोने से 3-4 घण्टे पहले खा ले और खाने के बाद थोडी सैर जरूर करे। 
  • दोपहर का खाना खाने के बाद थोडी देर लेट या सो सकते है २० से ४५ मिंट तक। 
  • सुबह सैर, प्राणायाम योग या व्यायाम जरूर करे।

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

जैविक खेती

आइन्स्टीन ने एक बार इस बात का उल्लेख किया था कि, ऐसा कौन सा रहस्य है कि भारत की माटी आज भी अपनी उर्वरता को बना रखी है आइन्स्टीन ने एक बार इस बात का उल्लेख किया था कि, ऐसा कौन सा रहस्य है कि भारत की माटी आज भी अपनी उर्वरता को बना रखी है, जबकि हमारे यहाँ कृषि का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है, जबकि मात्र कुछ हज़ार वर्षों में हीं अमेरिका और यूरोप ने अपनी मिट्टी को बाँझ बना दिया ? 

आज आलम यह है कि, पंजाब और हरियाणा के कुछ् क्षेत्र कृषि के लिए अनुपयुक्त हो गये हैं। यह सब यूँ ही नहीं हुआ, बल्कि एक सोची समझी रणनीति के तहत एक-एक कर भारत के किसानों के परम्परागत मित्रों को ख़त्म कर दिया गया। बाजार का घिनौना खेल इस बात से जाहिर होता है- 
  • केंचुआ को मारने के लिए रासायनिक खादों के प्रयोग को बढ़ावा देना ताकि, मिट्टी को हल्का, उर्वरक और उपजाऊ बनाने वाला केंचुआ का खात्मा हो सके। 
  • केंचुये के ख़त्म होने के बाद बगुले अपने आप गायब हो गये, जो कीटनाशकों कि तरह कीड़ों-मकोडों को खाया करते थे। 
  • अब नयी कृषि नीति के तहत जेनेटिकली मोडिफाइड सीड का प्रयोग लागू कर दिया गया। इस बीज को एक बार इस्तेमाल करने के बाद, फिर नयी बीज बाजार से हीं उठानी पड़ेगी। क्योंकि फसल से कोई बीज नहीं बनाई जा सकती है। 
  • सरकार अब बड़ी संख्या में विदेशी नश्लों के बैलों का आयात करेगी। इस नये प्रजाति के बैलों के आने के बाद हमारे देशी बैल, श्रृँखलाबद्ध तरीके से लुप्त हो जायेंगे, क्योंकि अब जो नश्ल तैयार होगी, चौकापीठ पर चोटिनुमा आकृति नहीं होगी, जिसपे हल का बहँगी रखकर खेत जोता जाता है। यानि कि अब आने वाले बैलों के पीठ सपाट होगी। इस के फलस्वरूप ट्रेक्टर व अन्य खेती से सम्बंधित उत्पादनों के बाजार को बढ़ावा मिलेगा। और किसान कर्ज़ में डूबकर घुट-घुट कर मरेगा।

तीन अवस्था की चंचलता

बचपन में पैर चंचल होते हैं, तो पल-पल माँ संभालती रहती है। गिरने से पहले ही थाम लेती है। जवानी में मन चंचल होता है। मन की चंचलता पर अंकुश लगाना यद्यपि बहुत कठिन है, पर महात्मा की शरण, सत्शास्त्र, सत्संगति, नीति-नियम पालन से सही दिशा दी जा सकती है। 
जवानी नदी का मध्य भाग है, जहाँ अथाह जल ही जल है, भँवर हैं, तरंगें हैं। यहीं पर संभलना बहुत जरूरी है, यहाँ डूब गये तो उबरना बहुत मुश्किल है। पर संभल गये तो खुद भी तर गये और अन्यों को भी संभाल लिया। 

बुढ़ापे में जुबान चंचल होती है। अन्य अंग तो असर्मथ हो जाते हैं कार्य करने में, पर जीभ ज्यादा चंचल हो जाती है, क्योंकि अब बैठे क्या करें? पर कोई सुनने वाला नहीं। सन्तानें तो आज के परिवेश में देखभाल ही नहीं करती क्योंकि उन्हें फुर्सत ही नहीं। और आदरभाव ही नहीं बुजुर्गों के प्रति। सो बुजुर्गों को चंचल जुबान पर अंकुश लगाने की जरूरत है। 

यदि प्रारम्भ से ही कार्य के साथ-साथ उन्होंने प्रभु आराधना किया है तो तो ठीक है, मन रमेगा प्रभु ध्यान में जिससे जीभ की चंचचलता भी कम होगी अन्यथा कष्ट उठाने पड़ेगें। 

खैर जीवन, तन-मन सब कुछ अपना ही है और इस की सही साज-संभाल, विवेक बुद्धि से खुद को ही करनी है। अन्यथा पभु की विशेष कृपा से पाया ये मानव तन फिर-फिर चौरासी के भ्रमण की ओर अग्रसर हो जायेगा।

अनिष्ट शक्ति से सम्बन्धित आध्यात्मिक उपाय

आजकल अधिकांश घरों में अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है, फलस्वरूप घर में कलह क्लेश रहना, नींद न आना, नींद अधिक आना, नींद में भयानक स्वप्न आना या डर जाना, शरीर में वेदना रहना, गर्भपात होना, आर्थिक हानि होना, आदि कष्ट पाये गये हैं। 
  • तुलसी के पौधे लगायें। 
  • घर एवं आसपास के परिसर को स्वच्छ रखें। 
  • घर में नियमित गौमूत्र का छिड़काव करें, देसी गाय के गौमूत्र में अनिष्ट शक्ति को दूर करने की सर्वाधिक क्षमता होती है। 
  • घर में सप्ताह में दो दिन कच्ची नीम पत्ती की धुनी जलायें। 
  • घर में कंडे या लकड़ी से अग्नि प्रज्ज्वलित कर, गूगुल जलायें और उसके धुयें को प्रत्येक कमरे में थोड़ी देर दिखाएँ। 
  • भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नाम जप की ध्वनि चक्रिका, अर्थात सीडी चलायें। 
  • घर में अधिकाधिक समय नाम जप करें, नाम जप से निकलने वाले स्पंदन से घर की शुद्धि होती है। 
  • घर में कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं, अतः क्लेश से क्लेश और बढ़ता है और धन का नाश होता है। 

  • सत्संग का आयोजन करें। अतिरिक्त स्थान घर में हो तो धर्म कार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु वह स्थान किसी धर्म कार्य हेतु अर्पण करें। 
  • प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें। घर के सदस्यों के मात्र प्रसन्नचित्त रहने से घर की 30% शुद्धि हो जाती है। 
  • घर की रंगाई और पुताई समय-समय पर कराते रहें। घर के पर्दे, दीवारें, चादरें काले, हरे, बैगनी रंगों के न हों, यह ध्यान में रखें। 
  • घर में कृत्रिम और प्लास्टिक के फूल से सजावट न करें। 
  • घर में दूरदर्शन पर रज-तम प्रधान धारावाहिक, भूतहा फिल्में या धारावाहिक न देखें। 
  • फेंग-शुई, यह एक आसुरी पद्धति है। इससे घर की शुद्धि नहीं, वरन काली शक्ति बढ़ती है। अतः इससे सम्बंधित सर्व सामग्रीका उपयोग पूर्णत: टालें। 
  • घर में नैसर्गिक धूप और हवा के लिए प्रतिदिन द्वार और खिड़की खोलें, इससे घर की शुद्धि होती है। 
  • घर में पितरों के चित्र दृष्टि के सामने न रखें। 
  • घर के किसी एक कोने या कमरे में विशेष कर भण्डार-गृह (स्टोर रूम) में कबाड़ एकत्रित न रखें। वह एक प्रकार से अनिष्ट शक्तियों को घर में रहने हेतु आमंत्रण देना है। 
  • घर के शौचालय और स्नान गृह को सदैव स्वच्छ रखें। 
  • घर के पूजा घर को शास्त्रानुसार रचनाकर, वहाँ प्रातःकाल एवं संध्या आरती करें। 
  • घर में फिल्मी अभिनेता और अभिनेत्रियों एवं आज के राजनेता, क्रिकेट खिलाड़ी, इत्यादि के चित्र न लगायें, इससे भी रज-तम प्रधान स्पंदन घर में निर्मित होते हैं। 
  • घर में सात्त्विक पुष्प, जैसे गेंदा, जाई, जुई, राजनीगंधा, चंपा, चमेली जैसे पौधे लगायें। 
  • घर के सामने काँटेदार पौधे जैसे कैक्टस (cactus) इत्यादि न लगायें।घर के बाहर भयानक मुखौटे टाँगकर न रखें !

काम की बातें-

  • अगर लगातार दौड़ने से लक्ष्मी मिलती तो, आज कुत्ता लक्ष्मीपति होता। 
  • मौत रिश्वत नहीं लेती लेकिन, रिश्वत मौत ले लेती है।
  • काम में ईश्वर का साथ माँगो लेकिन, ईश्वर काम कर दे ऐसा मत माँगो। 
  • कड़वा सत्य- एक गरीब पेट के लिए सुबह जल्दी उठकर दौड़ता है और एक अमीर पेट कम करने के लिए सुबह जल्दी उठकर दौड़ता है।
  • 5) रुपये में 1 लीटर कोल्डड्रिंक आती है। जिसमें स्वाद और पोषण जीरो, और कमाता कौन? मल्टीनेशनल कम्पनियाँ और उसके सामने 50 रुपये में 1 किलो फल आते हैं स्वाद से भरपुर और पोषण में लाजवाब और कमाता कौन? धूप में, सर्दी में, बरसात में लारी लेकर घुमता अपना एक गरीब भारतवासी। 
  • संबंध भले थोड़ा रखो लेकिन, ऐसा रखो कि शरम किसी की झेलनी ना पड़े। मौत के मुँह से जिंदगी बरस पड़े और मरने के बाद शमशान की राख भी रो पड़े। 
  • जब तालाब भरता है तब, मछलियाँ चिटियों को खाती है और जब तालाब खाली होता है तब चिटियाँ मछलियों को खाती है मौका सबको मिलता है बस अपनी बारी का इन्तजार करो। 
  • दुनियाँ में दो तरह के लोग होते हैं। एक जो दूसरों का नाम याद रखते हैं और दूसरा जिसका नाम दूसरे याद रखते हैं। 
  • सुख में सुखी हो तो दु:ख भोगना सिखो जिसको खबर नहीं दु:ख की तो सुख का क्या मजा?
  • जीवन में कुछ बड़ा मिल जाये तो छोटे को मत भूलना। क्योंकि जहाँ सुई का काम हो वहाँ तलवार काम नहीं आती। 
  • माँ-बाप का दिल दुखाकर आज तक दुनियाँ में कोई सुखी नहीं हुआ।
  • भगवान का उपकार है कि आँसुओं को रंग नहीं दिया वरना रात को भींगा तकिया सवेरे कुछ ना कुछ भेद खोल देता। 
  • जो इंसान प्रेम में निष्फल होता है वो जिंदगी में सफल होता है।
  • दुनियाँ का सबसे कीमती प्रवाही कौन सा है? आँसु जिस में 1% पानी और 99% भावनायें होती है। 
  • दुनियाँ का सबसे अमीर आदमी भी माँ के बिना गरीब है। 
  • गुस्से में आदमी कभी-कभी व्यर्थ बातें करता है, तो कभी मन की बात भी बोल देता है। 
  • भगवान खड़ा है तुझे सब कुछ देने के लिए लेकिन तु चम्मच लेकर खड़ा है पूरा सागर माँगने के लिए।

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!