छत्तिसगढ़ ह अँकाल के पीरा झेलत हावय। कई जगह फसल नई होय हावय। एसो अँकाल घोसित करे के बाद राज्योत्सव ल एक दिन मनाय के घोसना करे गीस। एक दिन के राज्योत्सव म खरचा नई होईस का? एक दिन के ताम-झाम म घलो ओतके खरचा होथे। पेंडाल लगाना फेर निकालना। खरचा तो सिरिफ बिजली, पानी के बाढ़तिस। ये एक दिन भी काबर?
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लोक कलाकार के अपमान होईस ये अलग। कार्यकरम बर छोटे मंच लोक कलाकार मनबर अऊ बड़े मंच बड़े कलाकार मन बर। लोक कलाकार ल छोटे समझे गीस। पानी बंटवाय के काम करे गीस। हमर छत्तिसगढिया साहित्यकार अऊ लोक कलाकार मन नाराज हावँय। बाजू म ‘जबर गोहार’ के धरना रहिस हे। भासा के लड़ई चलत हावय। लोक कलाकार, साहितकार जुरियाय रिहिन हें। कुछ मन देखे बर घलो इन्डोर स्टेडियम म गे रिहिन हें। जब देखे गीस के उँखर लोक कलाकार मन ल पानी पियाय बर कहे गे हावय। बहुत बेज्जती महसूस होइस। अतेक बड़ कार्यकरम म पानी पियाय बर नई रखे रिहिन का? येती तो पइसा बाँटत हावय, तामझाम म खरचा करत हावँय अऊ एक पानी बँटइया नी रख सकँय। आज जब सासन हर हमर लोक कलाकार के सम्मान नी करही त दूसर मन कइसे करही। हमर राज महकमा मन हमर संस्कृति करमी ल अपमानित करथे तभे तो छत्तिसगढ़ म दूसर राज के मनखे के भरमार हावय। ये मन कइसे सम्मान करहीं। येला अपनापन तो नी कहे जा सकय। अकाल के सुरता अब कोनो ल नई आवत हावय। महँगाई के मार झेलत राज एक बंद जगह म राज्योत्सव मना लीस। आम जनता जिहाँ पहुँच नी पइस। बीटीआई गराउंड रहितस त आम जनता घलो देख सकतिस।
एक नवंबर, सिक्छा बर छत्तिसगढ़ी माध्यम अऊ अलंकरण तिन विरोधाभास आयोजन होईस। एक नवंबर छत्तिसगढ़ स्थापना दिवस जिहाँ सासन अपन उन्नति देखावत हावय, ‘जबर गोहार’ म लोक कलाकार साहितकार अपन भासा बर लड़त हावँय। कामकाज के भासा तो होवय छत्तिसगढ़ी। प्राथमिक इसतर म माधियम तो बने छत्तिसगढ़ी। अऊ दूसर डाहर उही मेर छत्तिसगढि़या कलाकार के अपमान होवत हावय। छोटे मंच अऊ पानी पियावत हावँय। अँकाल के नाँव म रोके लाखों रुपिया अलंकरन म बाँटत हावँय। येला तो सी.एम. हाउस म कर देतिन तभो बने रहिस हे।
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सुधा वर्मा
देशबंधु के मड़ई अंक ले
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