शनिवार, 9 जनवरी 2016

कविता के थरहा- बिसम्भर यादव ‘मरहा’

बिसम्भर यादव ‘मरहा’
बिना पढ़े लिखे अउ बिना लिखित संग्रह के अनगिनत रचना मुँहुअखरा होना बड़ अचरच के बात आए। एला माता सरसती के किरपा अउ कवि के लगन, त्याग-तपसिया अऊ साधना के परिनाम केहे जही मंच म खड़ा होके सरलग 8-10 घण्टा कविता पाठ करना कउनो हाँसी ठट्ठा नोहे फेर “मरहा’’ जी हा ए रिकार्ड बनइस तहाँ ले कई जघा “मरहा’’ नाइट के आयोजन घलो करे गिस। बच्छर के 365 दिन मा 300 दिन कवि सम्मेलन के मंच मा रहय। “मरहा’’ जी हा कतको धारमिक, अध्यात्मिक अउ समाजिक आयोजन मा अकेल्ला कवि पाठ
करय। तकरीबन 65-70 साल के उम्मर तक साइकिल के केरियल मा बेग ला दबा के पूरा छत्तीसगढ़ ला घुमे रिहिस। कभ्भू पइसा कउड़ी के बात नइ करय। तारिक वाले पाकिट डायरी ला जेब मा रखे रहय साल भर के एडवांस बुकिग चलय। सरल, सादगी जिनगी, नसा पानी ले कोसों दूर, चाय तक ला घलो नइ पियय। एकरे सेती दाँत, कान अऊ आँखी जियत भर ले सलामत रिहिस। मंच के परस्तुति अइसन रहय के कउनों सुनइया असकट नइ मरय अऊ टस ले मस नइ होवय।
मरहा के कविता मा हाँसी ठट्ठा के लहजा देखे ला मिलय तेखरे सेती सुनइया मन हाँसय अउ ताली बजावय (थपड़ी पिटय)। कविता के भाव के संग “मरहा’’ जी हा एकसन मिलावय कवि अऊ सोरोता के तार सरलग एके मा जुड़े रहय। कविता रचे के पाछु एकेच ठन सोच रिहिस। समाज सुधार के, फेर जर बुखार ला टोरे बर कुनेन खवाय के पहिली मंदरस चटाय बर परथे। वइसनेच बियंग के ठोसरा मारे के पहिली गुदगुदावय अउ हँसवावय। ओखर कविता नानकुन लइका ला लेके बुढ़वा-सियान तक बर रहय। कविता पाठ सुरू करे के पहिली गायितरी मंत्र अउ माता सरसती के बन्दना करय। लइका मन बर बाजा मनके गोठ-बात कविता मा तमूरा तार के अवाज गजब ढंग ले निकालय। जे ला सुन के सब हाँसी के मारे सब लोट-पोट हो जावय। घर-परिवार, सास-बहु, बेटी-बेटा, राजा-परजा, परोसिन-मितान के हुबहु दरसन मिलथे। चारा अऊ मछरी के गोठ बात जइसन रचना के माध्यम ले मनखे ला सुधरे अउ लोक-परलोक बनाय के सीख देवय। केहे जाथे सियान मन के चुँदी हा घाम म निहीं बल्कि तजुरबा अऊ अनुभव मा पाकथे, अपन सपूरन जिनगी के अनुभव ला कविता मा बाँटिस। येदे रचना मा ऐ बात के झलक देखे बर मिलथे- नाचा वाले ल अवघट मा तीन झन चोर मन छेंक लिस, उँखर मोटरा-चोटरा ला खोधिया के देखिस कुछु माल-मत्ता नइ मिलीस त खिसिया के बंदुक ला टेका के नाचे बर किहिस। जीव के डर म नाचा वाले मन नाचे ला लागिन फेर नौ झन नचइया अऊ तीन झन देखइया कहाँ ले मजा आही जोक्कड़ मनिज्जर ह बड़ हुसियार रिहिस ऐ बिपत्ति ले निपटे के उदिम सोचिस अउ साखी बनाके बोलिस-तबला बाजे धिन-धिन, मंजीरा बाजे किन-किन।
एकेक झन ल तिन-तिन, एकेक झन ल तिन-तिन ॥

नाचा वाले मन इसारा ला समझ के एकेक झन चोर ऊपर तीन-तीन झन झुमिन अऊ उँखर छति-गति ला करिन।
देसभक्ति कविता ल पढ़य त सुनइया मन के रुआँ ठाढ़ हो जाय। सैंकड़ों बलिदानी सहिद मन के लयबद्ध सरसपाट बोल ल सुनके साँस रूके असन लगे… खून खऊल जाय। देस के माटी बर जिये अऊ मरे के गोठ ल बहुँतेच असरदार ढंग ले करे फेर भरस्टाचार के खिलाफ नेता मन ला अनुसासित अऊ सिस्ट ढंग ले बेखौफ दहाड़े। काखरो डर तरास नइ घेपय (पंच से लेकर परधानमंतरी तक बइमान हे) अइसे कहय अउ चैलेंज करे। मेहा गलत बोलत होहूँ त मोला जेल भेजवाव। ‘मरहा’ ओखर उपनाम हरय जउन हा जादा प्रचलित होगे। केहे जथे जथा नाम तथा गुन, दुबर-पातर देंह हा “मरहा’’ के नाम मा सउँहत फभे, “मरहा’’ जी अपन कविता मा भरस्टाचारी परखत्ता मन ला साँड़-गोल्लर के संगिया देय अउ सदाचारी जीवन बितइया आम जन जेन हा लुट अउ सोसन के सिकार होथे ओखर प्रतिनिधित्व “मरहा’’ करे। जेखरे सेती हमर छत्तिसगड़ के महान संत कवि पवन दिवान हा टेमरी गाँव के एक कवि सम्मेलन के मंच म बिसम्भर यादव के कविता “मरहा’’ के आँसू ल सुन के ओखर टाइटिल “मरहा’’ रखदिस अऊ ए जन कवि हा “मरहा’’ के नाम ले जग जाहरित होगे। मोला “मरहा’’ जी के संग कवि सम्मेलन के डेढ़ सौ मंच मा सँघरे के मउका लगे रिहिस संचालन करत मंच म आमंतरित करँव त ओखर सम्मान मा बोलँव-
गोल्लर कस भुँकरत हे चर-चर के हरहा।




सही मायने मा समाज के पीरा ला गोहरइया जनहित बर जियइया हा बहुत बड़े माने जाथे सादा जीवन उच्च विचार ला आत्मसात करे रिहिस बरम्हलीन स्वामी सुजनानंद जी महराज विमल वैदिक सेवा आश्रम पैरी के सानिध्य पाके समाज सुधार के बीड़ा उठाय के संकल्प लेइस अँचल म अइसे कउनो बिद्वान साधू-संत महापुरुस नइ बाँचिस होही जेखर संगति नइ करिस होही। कवि के साथ-साथ जाने माने रंगकरमी घलो रिहिस चंदैनी-गोंदा अऊ कारी लोक नाट्य मा जेखर अभिनय देखे ला मिलथे। संतोसी सदा सुखी ओखर जीवन के मूलमंत्र रिहिस बहुत कम साधन मा जीवन गुजारे के प्रयास करय सादा धोती-कुरता के संग हाफ जाकिट जेमा सम्मान मा मिले मेडल मन ला गुथे रहय। जेहा ओखर बिसेस पहिचान रहय। जउन घर मा ठहरय उहाँ के बहू-बेटी संग गोठियाय-बतराय अऊ असीस देय बिना उहाँ ले नइ टरे। कवि भाई मन ले परिवारिक नत्ता जोड़य, दुख-सुख के चिंता करय। अवसान के एक महिना पहिली ओखर घर मा मुलाकात करे बर गे रेहेंव उठे-बइठे के गतर नइ रिहिस खटिया म सुते-सुते किहिस इच्छा मृत्यु होतिस त मय मर जातेंव। अब जिये के साद नइ हे फेर भीसमपितामह ल इच्छा मृत्यु रेहे के बाद घलो बान के सइया म सुते ला पड़ीस। मोर संतान नइ होय के ओला घात चिंता रिहिस मोर हाल-चाल पुछीस त बताय हँव कि नवा सगा अवइया हे… त तपाक ले पुछिस नोनी हरे ते बाबू..! मय केहेंव आने वाला हे। आसीरबाद देबे तभे सरग जाबे। 
तारिख 3 अगस्त 2011 सनिच्चर के रात 9 बजे मोर घर बेटा जन्मीस, उही अठोरिया सनिच्चर 10 अगस्त 2011 के रात 9 बजे 80 बरस के उमर मा परलोक सिधारिस। नाम्ही साहितकार मन घर म जाके आखरी भेंट करिन अउ दुख के बेरा मा उँखर परवार ल ढाँढस बँधइन। काठी म गाँव वाले अऊ सगा सोदर संग कविमन घलो संघरे रिहिन जिहाँ देखे बर मिलिस, दु-तीन बच्छर के जुन्ना आदमकद के बर रूख ला गमलासुद्धा उठाके मरघट्ठी मा लेगे रिहिस, जउन ला काँटा मा चमाचम रूँधा करके जगोइन। मर के घलो मनखे ला रूख लगाय के संदेस दिस। जियत ले घूम-घूम के उपदेस बाँटिन अऊ अपनो ऊपर घलो लागू करिस। ये हा समाज बर बहुँत बड़े सीख आय। निमगा ग्यान बँटइ के कउनो मोल नइ हे। वो गियान ल अपन आचरन म उतारना घलो जरूरी रहिथे। “मरहा’’ जी के जिनगी मा ये बात परगट रूप ले दिखथे। का भइस ओखर जिनगी के दिया ह सुन्ना म बुतागे। समाज अऊ सरकार डाहर ले जादा सोर-गोहार नइ करिस, फेर मोला पक्का बिसवाँस हे कि उँखर सिरजे कविता के एक-एक सब्द, एक-एक बोल ह समाज म अँजोरी बगराके जम्मो मइनखे ला बने रद्दा देखाही।
- केशव राम साहू
गुण्डरदेही, जिला-बालोद (छ.ग.)
मोबा. 9993291095

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