गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

जैविक खेती

आइन्स्टीन ने एक बार इस बात का उल्लेख किया था कि, ऐसा कौन सा रहस्य है कि भारत की माटी आज भी अपनी उर्वरता को बना रखी है आइन्स्टीन ने एक बार इस बात का उल्लेख किया था कि, ऐसा कौन सा रहस्य है कि भारत की माटी आज भी अपनी उर्वरता को बना रखी है, जबकि हमारे यहाँ कृषि का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है, जबकि मात्र कुछ हज़ार वर्षों में हीं अमेरिका और यूरोप ने अपनी मिट्टी को बाँझ बना दिया ? 

आज आलम यह है कि, पंजाब और हरियाणा के कुछ् क्षेत्र कृषि के लिए अनुपयुक्त हो गये हैं। यह सब यूँ ही नहीं हुआ, बल्कि एक सोची समझी रणनीति के तहत एक-एक कर भारत के किसानों के परम्परागत मित्रों को ख़त्म कर दिया गया। बाजार का घिनौना खेल इस बात से जाहिर होता है- 
  • केंचुआ को मारने के लिए रासायनिक खादों के प्रयोग को बढ़ावा देना ताकि, मिट्टी को हल्का, उर्वरक और उपजाऊ बनाने वाला केंचुआ का खात्मा हो सके। 
  • केंचुये के ख़त्म होने के बाद बगुले अपने आप गायब हो गये, जो कीटनाशकों कि तरह कीड़ों-मकोडों को खाया करते थे। 
  • अब नयी कृषि नीति के तहत जेनेटिकली मोडिफाइड सीड का प्रयोग लागू कर दिया गया। इस बीज को एक बार इस्तेमाल करने के बाद, फिर नयी बीज बाजार से हीं उठानी पड़ेगी। क्योंकि फसल से कोई बीज नहीं बनाई जा सकती है। 
  • सरकार अब बड़ी संख्या में विदेशी नश्लों के बैलों का आयात करेगी। इस नये प्रजाति के बैलों के आने के बाद हमारे देशी बैल, श्रृँखलाबद्ध तरीके से लुप्त हो जायेंगे, क्योंकि अब जो नश्ल तैयार होगी, चौकापीठ पर चोटिनुमा आकृति नहीं होगी, जिसपे हल का बहँगी रखकर खेत जोता जाता है। यानि कि अब आने वाले बैलों के पीठ सपाट होगी। इस के फलस्वरूप ट्रेक्टर व अन्य खेती से सम्बंधित उत्पादनों के बाजार को बढ़ावा मिलेगा। और किसान कर्ज़ में डूबकर घुट-घुट कर मरेगा।

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!