बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

राजभासा के असतित्व

राजभासा के गठन होईस, तब लगिस के अब हमर छत्तिसगढ़ी भासा के मानकीकरन होंही। भासा आठवीं अनुसूची में जगह पाय बर लड़त हाबय। फेर मानकीकरन के पता नइयेे। ‘‘छत्तिसगढ़ी’’ ही जम्मो छत्तिसगढ़ी में होना चाही, हल्बी, सरगुजिहॉं के असतित्व खतम करे के बात करथें। छत्तिसगढ़ी भासा म ये बोली मन ल समाये के बात करथें। यदि छत्तिसगढ़ी के बियाकरन हाबय तब कुडुल के बियाकरन गलो हाबय। बियाकरन भासा के आधार आय। छत्तिसगढ़ी भासा के बियाकरन बने 130 बछर होगे फेर हमेशा ओला बोली कहिके दबाय के कोसिस करे गिस। आज भी बड़े-बड़े हिन्दी के बियाख्याता मन ताली ठोंक के कहिथें के छत्तिसगढ़ी के बियाकरन कहॉंं हाबय, बियाकरन होय ले भासा नइ बन जाय।
दूसर बात छत्तिसगढ़ी ह बँटाय हाबय बिलसपुरिहा अऊ रयपुरिहा। इँखर आपस म तालमेल बइठत नइये। सब अपन-अपन डाहर खिंचत हाबय। राजभासा आयोग छत्तिसगढ़ी भासा के प्रांतीय सम्मेलन करत हाबय। बहुत अच्छा परयास आय। तीन बेर ये कार्यक्रम होथे। धीरे-धीरे पटरी म आवत हाबय। विसय चयन बहुत बड़े बात आय। विसय ल देख के लगथे के ये कार्यक्रम सिरिफ एक खानापूरति तो नोहय। हॉंं, फेर कुछ ‘‘हलचल’’ तो होवत हाबय। पुस्तक प्रकासन बर पइसा देना एक अच्छा पहल आय, अब खुल के पुस्तक छपई होवत हाबय फेर गद्य कतका? ये परस्न अभी भी खड़े हाबय।

एक विसय बहुत अच्छा रहिथे ‘‘छत्तिसगढ़ी भासा के अन्तरसंबंध’’ येखर ले एक गौरव के एहसास होथे। जेन मन छत्तिसगढ़ी ल हेय नार ले देखथें तिंखर आँखी खुलत जात हाबय। आज विस्व म लुप्त होवत भासा के पीरा दिखत हाबय। हर दिन एक भासा लुप्त होवत हाबय। आज छत्तीसगढ़ के हर बोली ल सहेज के रखे के जरूरत हाबय। जतका भी बोली हाबय ओमा सिक्छा विभाग तो पढ़ाय के काम करत हाबय ‘‘राज्य संसाधन केन्द्र प्रौढ़ सिक्छा’’ घलो छै भासा म काम करत हाबय। छै भासा के प्रवेसिका तइयार हाबय। कुडुक, सादरी, हल्बी, गोंडी, सरगुजिहॉं अऊ छत्तिसगढ़ी। ये भासा ऊपर जब हमन काम करेन तब पता चलिस के सब ऊपर छत्तिसगढ़ी लागू करना एक बोझ आय। छत्तिसगढ़ी समझे म ये मन ल तकलीफ होही अऊ हमन ल घलो ये बोली ल समझे म तकलीफ होथे।

एक भासा बने म हजारों बछर लगथे। ओला मेटाय के प्रयास काबर सबो के असतित्व बने रहना चाही। छत्तीसगढ़ म घलो दूसर राज सरिख सब बोली म पढ़ाई होना चाही। अपन मातृभासा ले हिन्दी तरफ तो सब ल जाना हे। छत्तिसगढ़ी बोलइया के संखिया जादा हाबय। येला छेत्र म न बॉंट के एक करना जरूरी हाबय। जेखर बर मानकीकरन होना चाही। एक सब्द के छेत्रीय सब्द ल परियायवाची मान के रखे जाय अऊ ये सबो सब्द के प्रयोग करे जाय।

अब अगले प्रांतीय अधिवेसन म ये मानकीकरन ऊपर पूरा साहित्य आना चाही तभे ये राजभासा के असतित्व ल माने जाही। नइते ये ह एक खानापूरति अऊ अध्यक्छ सदस्य ल पइसा देय के एक उदिम ही कहे जाही| काबर के पद लोलुपता बाढ़गे हाबय। जेन आथे तीन साल तक गाड़ी, पइसा झोंकथें अऊ चल देथे। ये कार्यक्रम ले कुछ जागरित होवत हाबय फेर मानकीकरन के बिना सब बेकार आय। मानकीकरन आठवी अनुसूची बर एक भार के काम करही। यदि मानकीकरन राजभासा आयोग के काम नइये तब काकर आय? राजभासा आयोग ले फायदा काय होवत हाबय? फायदा कोन ल होवत हाबय? यदि आयोग नइ होही तब भासा बर काम कोन करही? परस्न बहुत अकन हाबय| सब ल सोचना हाबय।
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सुधा वर्मा

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!