सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

छत्तीसगढ़ी के सरूप

'छत्तीसगढ़ी म हिन्दी, संस्कृत अरबी, फारसी, अंगरेजी, उडिया, मराठी अउ कउन-कउन भासा मन के सब्द मन आके रच बस गिन हें। फेर ओमन अब छत्तीसगढ़ी के हो गिन हें।

असल म सब्द मन के जाति, बरग, इलाका धरम अब्बड़ उदार रथे। जेकर कारन ओ मन सुछिंद एती-ओती जात-आत रथें। असली लोकतंत्र भासा म नजर आथे।'
छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ के डेढ़ करोड़ लोगन के मातृभासा, संपर्क भासाय ये अउ तीर-तखार के उड़ीसा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, अउ झारखण्ड के इलाका मन म तइहा ले रहत आत छत्तीसगढ़िया मन के भासा ए। छत्तीसगढी क़े संगे-संग हमर राज म हलबी, गोंडी, कुउख, दोर्ली, परजी, भतरी, उड़िया, मराठी भासामन के बोलइया मन घलो हवै, जउन मन छत्तीसगढी क़े बेवहार करथें।


छत्तीसगढ़ ह हिन्दीभाषी प्रदेश मन के सूची म 'क' बरग म आथे। मतलब ये हे कि छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी हमर राज म सहोदरा बहिनी सही रथें।  छत्तीसगढ़ी होए कि कउनो भासा होए, ओ ह तभे बढ़े सकही, जब ओ ह आने भासा मन के संग म संवाद करही। दू या तीन भासा के सम्पर्क म आदान-परदान होबेच करही अउ सब्द मन एती ले ओती जाबेच करही, फेर बियाकरन ह ओकर ले परभावित नइ होवै। 
छत्तीसगढ़ी म हिन्दी, संस्कृत, अरबी, फारसी, अंगरेजी, उडिया, मराठी अउ कउन-कउन भासा मन के सब्द मन आके रच बस गिन हें। फेर ओमन अब छत्तीसगढ़ी के हो गिन हें। असल म सब्द मन के जाति, बरग, इलाका धरम अब्बड़ उदार रथे, जेकर कारन ओ मन सुध्दि एती-ओती जात-आत रथें। असली लोकतंत्र भासा म नजर आथे, तभे ओ ह जनसाधारण के पूंजी होथे। तुलसी बबा ह अपन रामचरितमानस म सिरिफ अवधि के सब्द मन के परयोग नइ करे हें, बलकिन अरबी, फारसी, अउ संस्कृत के सब्द मन ल सइघो या अपन भासा के मुताबिक रेंदा मार के अपनाए हें। तभे तो आज रामचरितमानस ह अतका लोकप्रिय होइस अउ कतकोन आने भासा मन म ओकर अनुवाद होइस। अंगरेजी म हमर भासा के हजारों सब्द जस के तस ले लिए गे हे। इही कारन ए कि ओ ह दिन दुनिया म बगर गे हे। भासा ह एक नदी समान हे। ओ ह सुछिंद बोहाथे, तभे ओकर पानी ह निरमल रथे। ओ ल बियाकरन ह बांधे नहिं, ओकर बरनन करते, ओकर बेवस्था ह सब्द मन ले बिगाड़े नहिं। भासा के सरूप तब बिगड़थे, जब ओकर बियाकरन ह परभावित होथे। बियाकरन का ए? ओ ह सब्द मन के संरचना अउ वाक्य के संरचना के बेवस्था ए, जेन म पुरुषवाचक सर्वनाम, क्रिया अउ अव्यय (क्रिया विशेषण, समुच्चय बोधक, संबंध बोधक, विस्मयादि बोधक) मन असली होथें। ए मन के सेती भासा ह आने भासा ले अलग साबित होथे, जइसे मैं डॉक्टर करा गे रहैं। कहे म हमर भासा के बियाकरन ह परभावित नइ होए 'डॉक्टर' सब्द अंगरेजी के ए, लेकिन जब मैं के जगह म आई या अहम् कहें जाए या गे रहैं के जगह म 'हेव गान' कहे जाए तब ओ ह छत्तीसगढ़ी नइ रहे सकै।
छत्तीसगढ़ी म आने भासा के अनेक परकार के सब्द लिए गे हे। ये म व्यक्तिवाचक संज्ञा अउ पारिभाषिक सब्द मन ल हमन जस के तस लेथन, जइसे मंत्री, प्रशासन, राष्ट्रपति, राज्यपाल राष्ट्रसंघ, विश्वहिन्दी परिषद आदि। व्यक्तिवाचक नाम मन ल जस के तस लिखे जाथे। भले ही ओकर उच्चारन हमन अपन अनुसार करथन, जइसे 'सुरेश' ल छत्तीसगढ़ी म 'सुरेस' बोले-पढे ज़ाथे, 'शंकर' ल 'संकर', क्षमानिधि ल 'छिमानिधि', कुरुक्षेत्र ल कुरुच्छेत्र आदि। काबर कि लिखना अउ बोलना अलग-अलग बेवस्था ए। दुनिया म जतका भासा हें, ओ मन के कमोवेश इही हाल ए। हमन जइसे बोलथन, ओइसे न तो लिखन अउ न ही लिखे ल ओइसे पढ़न।
भासा म भेद के कारन अउ कुछु नइ इही उदार मानसिकता होथे। भासा के बेवहार करइया मनखे ए अउ दू झन मनखे एकेच भासा ल एकेच परकार म नइ बोलें। 'चार कोस म पानी बदले, आठ कोस म बानी' के मतलब केवल च्छेत्रभेद नो हे, ओ ह समाज, व्यक्ति, परिस्थिति, भेद घलो आए। जउन भासा के बेवहार-च्छेत्र जतका बड़े होही, ओ म अइसन भेद जादा रही। हिन्दी या अंगरेजी के च्छेत्रभेद ल तो हमन सब जानत हन। महर्षि पतंजलि अपन 'महाभास्य' म अपन समय म अइसन भासा भेद ल चिन्हित अउ बताइन कि 'गो' सब्द के 'गौ, गावी, गोणी, गोपोत्रलिका' जइसे भेद जगह-जगह बेवहार होत रहिस। एकर मतलब ये हे कि कउनो भासा अपने-अपने बनै या बिगरै नहीं, ओकर बोलइया मन के अनुसार ओ ह अपन आकार धारन करथे। जतका अउ जइसे भासा के गियान मोला हे, उहीच ह असली ए अउ आने मन के ह ना हे- ए सोच ह दरिद्री के लच्छन ए। भासा के बेवहार छेत्र म छोटे-बड़े सबे के हिस्सा अउ अधिकार होथे, तभे भासा ह समाज अउ संस्कृति के भार ल बोहे सकते अउ ओ ल एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी तक ले जाए म सच्छम होथे।
हमर छत्तीसगढ़ म आने भासा के बोलइया मन जब छत्तीसगढ़ी बोलथें, त ओ म अपन भासा या बोली के सब्द मन आबेच करहीं अउ ओकर ले छत्तीसगढ़ी ह पोठात जात हे। छत्तीसगढ़ी के छेत्रीय भेद गनाए इही आने भासा के हाथ हे, जउन ल छत्तीसगढ़ी बर सुभ लच्छन मानना चाही।
====================
डॉ. चितरंजन कर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!