सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

तुलसी के आरोग्यकारी गुण

तुलसी एक निरापद एंटिबॉयोटिक औषधि है। इसे सर्वरोगहारी कहा जाता है। यह औषधि शारीरिक एवं मानसिक रोगों का शमन करती है। हमारी धर्मशास्त्रों में इसकी महिमा गाई गई है। आयुर्वेद की दृष्टि से भी इसे अनेक रोगों में प्रभावकारी पाया है। तुलसी का पौधा भी पीपल की तरह सतत्‌ ऑक्सीजन प्रदान कर मानवमात्र के लिए परम कल्याणकारी है। विकिरण के दुष्प्रभाव को दूर करने का गुण तुलसी में है। तुलसी के दो प्रकार हैं-  एक रामा तुलसी, जिसके पत्ते हरे होते हैं तथा दूसरी श्यामा, जिसके पत्ते काले होते हैं। आयुर्वेद ने दोनों के गुण समान बताए हैं।
खाँसी में- अड़ूसे के पत्ते का रस एवं तुलसी के पत्तों के रस को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खाँसी में बड़ा लाभ होता है। अदरक के रस के साथ तुलसी के पत्तों का रस, काली मिर्च के साथ सेवन करने से खाँसी का वेग शांत होता है।
दाँतों के दर्द में- तुलसी के पत्ते काली मिर्च के साथ पीसकर छोटी-छोटी सी गोली बनाकर दर्द वाले दाँतों के बीच दबाकर रखने से दाँत दर्द बंद होता है।
पीनस रोग में- तुलसी के पत्ते या मंजरी को पीसकर कपड़े से छान कर चूर्ण बना लेना चाहिए तथा इसे नस्य के रूप में सुँघाना चाहिए। इससे नाक से बदबू आना बंद हो जाता है। मस्तिष्क के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
कान की पीड़ा- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर हलका गरम करके 2-3 बूंद कान में टपकायें। इससे कान का दर्द बंद हो जाता है। तुलसी के पत्तों का रस दो भाग तथा सरसों का तेल एक भाग मंद आग पर गरम कर सिध्द तेल बना लें। यह तेल जब भी कान में दर्द हो, 1-2 बूंद डालने से कान की पीड़ा दूर होती है।
दाद में- चर्मरोगों में तुलसी को बड़ी प्रभावी औषधि माना गया है। तुलसी के पत्तों को पीसकर उसमें नीबू का रस मिलाकर कुछ दिन तक दाद पर लगाने से (लेप करने से) दाद समाप्त हो जाता है।
अन्य चर्मरोगों में- तुलसी के पत्तों को गंगाजल में पीसकर नित्य लगाने से सफेद दाग मिट जाते हैं। तुलसी के पत्तों का रस दो भाग तथा तिल का तेल एक भाग लेकर मंद आँच में पकायें। ठीक पक जाने पर छान लें। यह तेल खुजली इत्यादि चर्मरोगों में भी लाभकारी है।
चेहरे के सौंदर्य के लिये- चेहरे के सौंदर्य के लिये तुलसी के पत्तों को पीसकर उबटन लगायें।
मलेरिया में- एक गिलास पानी में 21 तुलसी के पत्ते एवं 2 काली मिर्च पीसकर डालें तथा इस पानी को उबालें जब आधा पानी शेष रहे तब उतारकर ठंडा करें। चाय की तरह यह काढ़ा रोगी को पिला दें, इससे पसीना आकर ज्वर दूर होगा।
सर्प विष में- तुलसी विषनाशक है। सर्पदंश की स्थिति में तुलसी के पत्तों का रस अधिक से अधिक मात्रा में मिलायें तथा तुलसी की जड़ को घिसकर शरीर में दंशस्थल पर लेप करें। सर्पदंश से पीड़ित रोगी यदि बेहोशी में हो तो उसके कान एवं नाक में तुलसी के पत्तों का रस डालना चाहिए। इससे बेहोशी दूर होगी एवं सर्पविष का प्रभाव दूर हागा। केले के तने का रस भी तुलसी के पत्तों के रस के साथ देने से बड़ा प्रभावकारी होता है।
दस्त में- तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी मात्रा में जायफल पीसकर मिला दें और रोगी को पिला दें, इससे लाभ होता है। 200 ग्राम दही में तुलसी के पत्ते 1 ग्राम पीसकर मिला दें तथा 3 ग्राम ईसबगोल, 5 ग्राम बिल्व चूर्ण (बेलचूर्ण) भी मिला दें, इससे पतले दस्त में लाभ होगा।
उल्टी में- उल्टी की स्थिति में तुलसी के पत्ते का रस शहद के साथ चटाते हैं। अदरक का रस, तुलसी के पत्ते का रस, छोटी इलायची के साथ पीसकर देने से उल्टी बंद हो जाती है।
गठिया रोग में-तुलसी में वातनाशक गुण है। तुलसी के काढ़े के प्रयोग से नाड़ियों का दर्द, बंद हो जाता है। यदि जोड़ों का दर्द हो रहा हो तो तुलसी के पत्तों का रस पीते रहने से लाभ होता है। मोच एवं चोट पर पत्तों के रस की मालिश की जाती है। तुलसी के पंचांग को पानी में उबालकर भाप लेने से भी जोड़ों के दर्द, लकवा, गठिया इत्यादि में लाभ होता है।
मुँह की दुर्गंध में- प्रात: स्नान के पश्चात पाँच पत्ते जल के साथ निगल लेने से मुँह की दुर्गंध एवं मस्तिष्क की निर्बलता दूर होती है। स्मरणशक्ति तथा मेधा की वृध्दि होती है।
सिरदर्द में-आधासीसी के दर्द में तुलसी की छाया में सुखाई मँजरी 2 ग्राम लेकर शहद के साथ सेवन कराने से लाभ होता है। काली तुलसी की जड़ का चंदन की तरह घिसकर लेप करने से सिरदर्द मिटता है। तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण या बीजों का चूर्ण पीसकर कपड़े से छान लें तथा सूँघने की तरह सूँघने से सिरदर्द मिटता है।
बालतोड़ में- तुलसी के पत्ते तथा पीपल की कोमल पत्तियों को पीसकर दिन में दो बार लेप करने से लाभ होता है।
बच्चों के पेट फूलने पर- अवस्थानुसार 1-2 ग्राम तुलसी के पत्ते का रस पिलाने से लाभ होता है।
पेट के कीड़े- तुलसी के 11 पत्ते पीसकर 1 ग्राम बायबिडंग चूर्ण तथा ताजे जल के साथ सुबह-शाम देने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
प्रदर रोग में- अशोक के पत्तों और तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर कुछ दिन देने से लाभ होता है।
हिचकी एवं अस्थमा में-10 ग्राम तुलसी के रस में लाभ होता है।

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