रविवार, 8 फ़रवरी 2015

आँखी के पीरा

चैतु अऊ पारो खात-कमात, बनी-भूती करत अपन जिनगी के गाड़ी खींचत सुख-दुख के गोठ गोठियावत अपन गाँव कुरिया म खुसी-खुसी जिनगी चलावत सुम्मत में रहँय? अऊ काबर नइ रइहि? अपन दूनो नोनी के बर-बिहाव कर दिस अपन-अपन घर-दुवार म चलदीस। ऊँहों नोनी मन खात-कमात अपन-अपन घर म मगन हावे। गाँव घर म रहिबे तो थोड़-बहुत ऊँच-नीच होते रइथे। वहू एक ठन मया आय कोनों ह बघवा-भालू सन अबोला नइ होय। ओकर सन झगरा झँझट नइ होय। काबर के ओकर सन कोनों काम नइ रहय अऊ वोहा मनखे के हितैसी नोहे। जेहा मनखे के हितैसी रइही ओकरे सन मनमुटाव होथे। दुख-सुख तो जिनगी में लगे राहय।
चैतु, पारो थोड़-बहुत खेती-खार हे तेला अपन बेटा जान के खात-कमात सुम्मत म जिनगी बितावत रहँय। फेर समय के गरभ में का लिखाय हे तेला कोन जानथे। बिपत ह कभू बता के तो नइ आय। कथे नहीं:- 
राजा नल ऊपर बिपत परिस त भुँजे मछरी दाहरा में कुदिस॥
चैतु अपन काम-धंधा ल करत रहय। तइसने म एक दिन ओला आँखी आय सही लागीस। ओहा समझीस की मोर आँखी आय हे। एक दिन, दू दिन। देखत-देखत हप्ता निकलगे अऊ आरुग अंधियार लागे आरुग आँसू ह चूहे अऊ कसके सही लागे। गाँव देहात के दवा ल जतिक जानिस ततिक करीस घलो। फेर कहाँ माँड़थे। माड़े के नाम नइ ले अऊ पीरा ह बाढ़त जात हे। आखरी म थक-हार के नांदगाँव अस्पताल में भरती होगे ऊहचो पंदरा-महिना दिन ले इलाज चलीस। फेर आराम होय के नाम नहीं। फकत पइसा ऊरकई महँगा-महँगा दवा पानी अऊ गाँव म मुड़भर के किसानी के बुता। कमईया कहय चाहे गँवइया कहय। चैतु के सिवाय अऊ कोनों हे अऊ जब बिपत ओकरे ऊपर आगे तब तो अऊ बारा हाल होगे का करही कमा तो सके नहीं। गाँव के किसान ल अपन दुख-पीरा ल बतईस किसान ह चैतु के अलहन ल जान के कमाय बर तइयार होगे। गोठ बात होइस खेत-खार ल कमा के दुहूँ कहिके मानगे। जम्मो खेत ल कट्‌टु म दे दिस। अब चैतु के किसानी के चिन्ता ह थोर-बहुत कम होगे। अपन खेत ल पर ल देवई येहा थोर अकन दुख नोहे? फेर का करबे एक ठन विपत ल सुलझाय बर दूसरा विपत सहे ल परथे। ओकर आँखी के पीरा ह थोरको कमतियाए नइ हे दवा-पानी चालू हे। आस लगाय हे आज नहीं तो काली माढ़बेच करही। इही सोचत घर म उदास थके-हारे सही बइठे हे अऊ मने मन गुनत हे। 
हाथ धरे हँसिया लुये ल सुकवा।
मैंहा कइसे के बतावँव जिये के दुख ला॥
चैतु अऊ पारो चिन्ता-फिकर में गुनत रहय तइसने में गाँव के सियान ह आके कथे, 'अइसने गुनत रइहू त काम ह नइ बने। तोर बेटी-दमाँद सहर म रथे ऊकरे कर जाके इलाज पानी करा। बड़े सहर म बड़े-बड़े डाकटर रथे। चैतु अऊ पारो दूसर दिन अपन बेटी-दमाँद कर आगे अऊ अपन दुख पीरा ल बतईस। तहन रइपुर सहर में जाके इलाज चालू करीस। डाकटर ह बता दीस ओखर आँखी म घाव रीहिस तेहा फुटगे हावे अऊ आँखी में मवाद भरगे हे। एकरे सेती तोर आँखी पीराथे चैतु कलपत कथे। डाकटर ह चैतु ल समझाथे अऊ चैतु के दमाँद ल बताथे। तोर ससुर के इलाज करा नहीं ते बचना मुसकिल हे काबर की मवाद ह कहूँमुड़ी म चढ़ जही ते अलहन हो जाही। अब चैतु के इलाज चालू होइस। थोर-बहुत पीरा ह कमतियाइस। फेर पइसा के खर्चा ह बढग़े। अब रोज दिन रइपुर के आना-जाना म हलाकान होगे रहय। चैतु सलाह देथे तिहि ह ऐके झन करत हस। मोर बड़े दमाँद ल घलो बला लेते ऊहू ह एकातकन मदद करतिस। अब ओकर बड़े दमाँद बेटी ल फोन मारके बलालिस अऊ आ घलो गे। अइस तहन अपन ससुर ल देख के कथे। मेहा तो कहत रेहेव खटिया में परे होही कही के। येहा तो बने हे। ओतिक बात ल सुन के इलाज करइया के मन मे का होइस होही तेला ऊही ह जानथे। वाह: रे तोर सोच। 
दुख ल बोहे रेहेन पीरा म मरे रेहेन।
ओकर गोठ सुन के मुहूँ नइ खोले रेहेन॥
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शेखचंद मेरिया, चरभंठिया

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!