मैं आदमी हूँ,
इसलिए गुनाह करता हूँ ।
वफ़ा करता हूँ,
और बेवजह मरता हूँ ।।
हादसों का मारा,
बेदर्द बेचारा हूँ ।
किसी मरीज का दर्द,
पूछने से डरता हूँ ॥
दुनिया मुझे लाख,
भला बुरा कहती रहे ।
दुश्मनों तक को,
मैं अपना ही कहता हूँ ॥
मयकदे में है यहाँ,
बेहद पीने पिलाने वाले ।
गम को भी पीकर,
खुशी में भी खूब रंगता हूँ ॥
छींटा कसते हैं लोग,
यहाँ मेरे चाहने वाले ।
मोम का होकर,
पत्थरों को सुन्दर गढ़ता हूँ ॥
आदत नही कि माँगू,
हरदम फैला झोली ।
कैसी है खुदा की फितरत,
इसे गुनता हूँ ॥
थोड़ी सी मुस्कान पर,
हुआ बाग-बाग आज ।
गमजदा को खुश देखकर,
बादलों सा झरता हूँ ॥
या रब उन्हे मेरी,
सारी खुशियाँ दे दे ।
एक अज़ीज तेरे
बार-बार पाँव पड़ता हूँ ॥
इसलिए गुनाह करता हूँ ।
वफ़ा करता हूँ,
और बेवजह मरता हूँ ।।
हादसों का मारा,
बेदर्द बेचारा हूँ ।
किसी मरीज का दर्द,
पूछने से डरता हूँ ॥
दुनिया मुझे लाख,
भला बुरा कहती रहे ।
दुश्मनों तक को,
मैं अपना ही कहता हूँ ॥
मयकदे में है यहाँ,
बेहद पीने पिलाने वाले ।
गम को भी पीकर,
खुशी में भी खूब रंगता हूँ ॥
छींटा कसते हैं लोग,
यहाँ मेरे चाहने वाले ।
मोम का होकर,
पत्थरों को सुन्दर गढ़ता हूँ ॥
आदत नही कि माँगू,
हरदम फैला झोली ।
कैसी है खुदा की फितरत,
इसे गुनता हूँ ॥
थोड़ी सी मुस्कान पर,
हुआ बाग-बाग आज ।
गमजदा को खुश देखकर,
बादलों सा झरता हूँ ॥
या रब उन्हे मेरी,
सारी खुशियाँ दे दे ।
एक अज़ीज तेरे
बार-बार पाँव पड़ता हूँ ॥
रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्री, पोष्ट-कलंगपुर
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