सोमवार, 11 जुलाई 2011

मैं आदमी हूँ....

मैं आदमी हूँ
इसलिए गुनाह करता हूँ ।
वफ़ा करता हूँ
और बेवजह मरता हूँ ।। 
हादसों का मारा
बेदर्द बेचारा हूँ । 
किसी मरीज का दर्द
पूछने से डरता हूँ ॥ 
दुनिया मुझे लाख
भला बुरा कहती रहे । 
दुश्मनों तक को
मैं अपना ही कहता हूँ ॥ 
मयकदे में है यहाँ
बेहद पीने पिलाने वाले । 
गम को भी पीकर
खुशी में भी खूब रंगता हूँ ॥ 
छींटा कसते हैं लोग
यहाँ मेरे चाहने वाले । 
मोम का होकर
पत्थरों को सुन्दर गढ़ता हूँ ॥ 
आदत नही कि माँगू
हरदम फैला झोली । 
कैसी है खुदा की फितरत
इसे गुनता हूँ ॥ 
थोड़ी सी मुस्कान पर
हुआ बाग-बाग आज । 
गमजदा को खुश देखकर
बादलों सा झरता हूँ ॥ 
या रब उन्हे मेरी
सारी खुशियाँ दे दे । 
एक अज़ीज तेरे 
बार-बार पाँव पड़ता हूँ ॥ 

रमेश यादव 
ग्राम-पेण्ड्री, पोष्ट-कलंगपु

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