मैं कौन हूँ
मुझे इक पहचान दीजिए ।
जी सकूँ हँस के,
ऐसा अरमान दीजिए ॥
चला जा रहा हूँ
बस मंजिल-ए-बिना ।
साहिल बन कोई,
इक फरमान कीजिए ॥
फ़कत बाजार है,
ये दुनिया झूठ-मूठ की ।
खत्म कर सकूँ ये तिलस्म,
तीर कमान दीजिए ॥
फँस के रह गया हूँ मैं,
दरिया में इस कदर ।
जिंदगी के भँवर से,
अब निकाल दीजिए ॥
सिहर चला हूँ मैं,
इन ग़मों की मार से ।
एक क़तरा सुकुन का,
श्रीमान दीजिए ॥
करीब आ के भी,
रूठ जाती है प्यारी खुशियाँ ।
रहे सदा साथ,
ऐसा मेहमान दीजिए ॥
रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्री, पोष्ट-कलंगपुर
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