सोमवार, 11 जुलाई 2011

पाहुन....

पाहुन ! कब आआगे ?
तकती प्रतिपल पंथ
सुधि के बीज बोती
मिलन की 
स्वपनिल पवन
से उसे सहलाती
कीट विरह के 
कुतरते दिन-दिन
उसे कब सरसाओगे । 
पाहुन ! कब आआगे ?

वो बहार वो समाँ
मरूस्थल की आँधी हुई ।
यादें सुखद क्षणों की
उजाड़ अमराई हुई
प्यार की छाँह 
सिमटते छिन-छिन
उसे कब बरसाओगे । 
पाहुन ! कब आआगे ?

ये बिछुआ ऊँगली पर,
बोझ हुआ जाता है ।
ये बिंदिया माथे पर
दोष लगा जाता है ।
हृदय-घट (दरकता) 
चटकता तुम बिन
उसे कब बनाओगे ।
पाहुन ! कब आआगे ?


रमेश यादव
ग्राम-पेण्ड्रीपोष्ट-कलंगपुर

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