शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

सागवाली

कहूँ ते कबे -
चाँद जइसे मुखड़े पे,
बिंदिया सितारा ।
त ओला तो नीं आय,
फिलमी पहाड़ा ॥

ओ तो बस-
खेखसी, बरबट्टी,
रमकलिया ला जानथे ।
इहीच ला अपन जिनगी के,
सब कुछ मानथे ॥

त कइसे कबे त बात बनही-
हेलन ला घलो हेमा कहिदे,
देख वो कइसे मुसकाही ।
ओखर रंगरूप के बने बरनन कर,
तोर बात बन जाही ॥

‘‘खेखसी कस आँखी हे तोर
बंगाला कस गाल ।
तरोई जइसे हाँत हावय
बरबट्टी कस लंबा बाल ।

सेमीनार कस ऊँचाई तोर
बोली मिरचा कस गोई ।
खीरा बीजा कस दाँत हावय
तोर खोपा रखिया लोई ।

लफरहा कोर के लुगरा में,
पोलिका फुग्गा बाहीं ।
ऊँचहा बानी के पनही देख,
श्रीदेवी घलो लजाही ।

कुंदरू कस तोर ओंठ मा लाली,
दरमी जइसे दमके ।
तोर खपसूरती देख अँखफुट्टा मनके,
पाँचों पसली चमके ।

कलिंदर चानी अस रूप राखके,
तँय बेचत हस भाजी ।
ये पसरा छोड़ मोर संग रहे बर,
हो जाना गोई राजी ।’’

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