मंगलू रामपुर गाँव के अड़बड़ सरू नानकुन किसान आय। गाँव भर मा इमान अउ सिधइ के खातिर गजबेच आदर पावय। ओखर बिन पुछे कोनों कहीं जीनिस नइ बिसावय। बड़ संतोषी जीव रिहिस। ओखर एक्के झन बेटा रिहिस, तउन हर देस के जवान बनके भारत माता के लाज बचाय बर भारत भुँईया के आखरी छोर मा बइरी मन के दॉंत ला टोरे खातिर लड़े बर डटे रिहिस। भागमानी ला सुघ्घर बेटा मिलथे, नइ ते आज देखबे, त दाई-ददा रूर-घुर के कमाथे अउ बेटा हा उतलंग नापथे, दाई-ददा आँसू ढारत दिन ला पहाथे। जिनगी हा अड़बड़ भारी लागथे अउ मंगलू के बेटा सबले अलग पहिचान बनाय रिहिस।
महिना के महिना चार कोरी रुपिया अपन दाई-ददा बर मनीआडर करय। मंगलू मनीआडर पाके फुले नइ समावय अउ अपन गोसइन ला काहय- देख तो मनटोरा..! हमर बेटा हा हमर कत्तिक खियाल रखथे, महिनापुट हमर मन बर रुपिया भेजथे । तभे तो हमर गाँव के पुरोहित महराज कनक परसाद हा ओकर नाव दीपक रखे रहिस। सही मा हमर बेटा हा हमर कुल के दीपक आय। ए पइत देवारी तिहार मा आही ना तब मँय कहुँ, बेटा..! हमर उमर हा ढरत हे, कनिहा-कुबर अब नइ चलय, बहु लान लेते, त हमन ला तिपो के देतिस, त हमर चोला हा जुड़ा जतिस।
अइसने मन मा सोंचत दिन हा बीतगे अउ ठउँक्का देवारी तिहार आगे, गाँव के देवारी तिहार ला का कबे, गाँव हा देखत बनथे। बड़ परछिन के घर अँगना, चँवरा, गली सुघ्घर दिखथे, खेत-खार ला देखबे ता धान हा पिंयर-पिंयर नवाँ बहुरिया कस दिखथे। ओतकेच मा दीपक हा अपन गाँव आगे, दाई-ददा हा बेटा के सुघ्घर आरती उतारिस अउ कहिथे- मोर करेजा, मोर आँखी के पुतरी ला अड़बड़ दिन मा देखेंव। मंगलू कहिथे- बेटा..! तोर खातिर हमन गाँव के सियान ला बहु खोजे बर कहि डारे हन।
गाँव के दाउ गनेस हा हमर परोस के गाँव राजपुर मा रधिया नाँव के नोनी, जउन भोला किसान के बेटी ए, तेला हमर बहु बनाय बर जोंखे हन। दीपक कहिथे- ददा..! मँय हा तुँहर बात ला नइ टारँव, बिधाता के आगू मा काखरो थोरे चलही, जउन तुँहर मरजी होही... मँय ओखरे संग बिहाव करहुँ। जोखा-जाखी करत बिहाव होगे अउ घर मा लछमी असन बहु घलो आगे। मंगलू अउ मनटोरा दुनों झन के जिनगी मा खुसी के लहर समाँगे, आनंद-मंगल मा दिन बितथे।
बने-बने दिन हा जल्दी पहाथे, एकदिन ठउँक्का मँझनिया बेरा दुवारी मा बेनू डकहार हा आके मंगलू ला आरो लगाथे- एदे तोर चिट्ठी आय हे..! तोर बेटा दीपक ला अड़बड़ जल्दी नउकरी मा बलाय हे। ओतके मा मंगलू के बेटा दीपक हा कहिथे- मँय जल्दी जाहूँ, अड़बड़ जल्दी जाय के संदेस हे... काली बिहनेच ले मोर जोरा कर दुहु। अपन घरवाली रधिया ला कहिथे- मोर पेटी मा सरी जिनिस ला भर देबे, रसता मा खाय बर ठेठरी-खुरमी जोर दे रहिबे। रधिया कहिथे- महिना पंदरही घला नइ रेहेव अउ जाहूँ काहत हव। दीपक- का करबो भई..! नवकरी ले बड़के थोरो कोनों होथे ? रधिया- जइसन तुँहर बिचार।
रधिया के पाँव भारी हो गे रिहिस, ओहा सुन्दर चंदा कस चमकय। दीपक- दाई..! तोर बर मँय हा का लानहूँ ? मनटोरा- बेटा..! बने-बने तोला फेर मँय इही तिहार मा तोर सुरुज सरी मुँहु ला देखतेवँ, तोर ले बढ़के दुनिया मा मोर बर कुछुच नइहे। दीपक हा दाई के मयाँ ला पाके रो डरिस अउ ददा तोर बर मँय परछिन असन धोती-कुरता लानहूँ कहिके चले बर धरिस, त मोहाटी मा रधिया हा ठाड़े आँसू ढारत अपन पति परमेसवर के गोड़ ला धरके कहिथे- महुँ ला ले जतेव। दीपक- दाई-ददा हा तोर भरोसा मा रही अउ सास-ससुर के सेवा ले बढ़के का हो सकथे, समे जाय नइ पाही मँय आ जाहूँ अउ तोर बर मँय पुतरी लानहुँ, कहिके रेंगेबर धरिस तब रधिया हा आँसू ढारत दीपक ला देखत-देखत घर ढहन अइस फेर, तिहार हर पंदरही असन बाँचे राहय।
दाई-ददा अउ रधिया ओकर आय के रद्दा जोहत राहय। ओतक मा चिट्ठी धरके डकहार हा आके मंगलू के हाँत मा थमहाथे। मंगलू थर-थर काँपत हे... मुँह ले बक्का नइ फूटत हे... का बात हे भइया..! कइसे मोला असगुन असन लागत हे। बेनू डकहार कहिथे- तोर बेटा हा देस के खातिर अपन परान तज दिस, ओखर नाव अब जग जाहिर होगे। ओतका सुनिस... पड़ाक ले पछाड़ खाके मंगलू गिरगे तहाँ ले मंगलू के रोय के आरो पाके मनटोरा अउ रधिया अइस, त देखथे मोहाटी मा चार झन जुवान मन दीपक के काया ला लानके काहथे- दीपक अमर रहे..! दीपक जिन्दाबाद..! अइसन दसा देखके गाँव भर मा चिहुँर परगे, बिलख-बिलख के सब रोवत हे, पहाड़ गिरगे तइसे कस होगे। रधिया हा सासु-ससुर ला समहालिस अउ ले-देके गरीबी-गुजारा मा किरिया-करम करिस। ‘बिन खाय पेट भरय नहीं, जियत ले तन ला ढॉंके ला परही, जिनगी चलाय बर कुछु कारज करे बर परही।’ सँसो फिकर मा दीपक के दाई-ददा हा सुखागे। बिधाता के आगू मा काकरो नइ चलय, दुनों झन सियान मन सरग चल दिस। अब रधिया हा एके झन राहय।
दिन जात का लागथे, ओकर अँगना मा लइका के किलकारी गुँजिस, गाँव के मन वाहवाही मनइस, चलो गा बिचारी के जिनगी हरियइस। रधिया हर अपने बेटा ला खुब पढ़इस। केहे गेहे- ‘जइसन-जइसन घर-दुआर, तइसन- तइसन फइरका...जइसन-जइसन दाई-ददा, तइतन-तइसन लइका।’ रधिया के बेटा किसन ठउँक्का अपने बाप कस दिखय। एकदिन घर के खुँटी मा टँगाय फोटु ला देखके कहिथे- दाई..! ए कोन आय वो ? रधिया के आँखी ले आँसू ढरकगे, कहिथे- इही तो तोर बाप आय..! किसन- महुँ मोर बाप कस सिपाही बनहुँ। रधिया- हव बेटा..! सुरुज कस चमकबे अउ चँदा कस अँजोर करबे इही मोर असीरबाद हे।
देखते-देखत किसन के बाप के नउकरी हा किसन ला मिलगे, दाई के छाती फूलगे। सरी दुख भुलागे, जिनगी हरियागे, मोर करेजा हर अब मोर आँसू ला पोंछही, घर ला सुघ्घर बनाही। अब देस के रखवारी बर किसन चल दिस। दिन ढरगगे। किसन जब अइस, त रधिया कहिथे- बेटा..! मँय हा एक्केझन रेहे रहिथँव, मुहा-चारी बर बहु लान लेते। किसन- तोर बात नइ टारँव दाई..! जइसने तँय चाहबे मँय राजी हँव। परोस के गाँव देवपुर ले किसन बर बहु ले आनिस। बड़ सुघ्घर बेटा-बहु के आरती करिस। बहु ला मुहुँ देखउनी का देहुँ कहिके बड़ दिन बाद दीपक के पेटी ला खोलिस, त उहाँ सोनहा के पुतरी पइस, ओला अपन छाती मा लगइस, फफक-फफक के रो डारिस अउ बेटा-बहु ला बलाके चुमा ले के कथे- ए दे मोर पुतरी हो, तुमन ला मँय हा पुतरी देवत हँव, ये हा तुँहर पुरखा के धन-दोगानी ये, येला कभू झन बेचहु, तिया दिन ले राखे रहू, मोर गरीबिन के तुमन धन आव, अतका खियाल रखहू, तुँहर पुरखा हा धरती दाई बर मिरगे-मिटगे फेर धरती दाई के अँचरा मा दाग लगन नइ दिस, धरती खातिर जिबे रे बेटा..! धरती खातिर मरबे रे..! मोर कोख ला धन-धन करबे रे... अउ ये पुतरी के सोर ला बगराबे। अइसने काहत रधिया के साँस हा रुकगे, सरीर ले जीव चल दिस। किसन दुनों परानी पुतरी ला हाथ मा लेके किहिन- ये पुतरी हमर धरोहर आय, हर देवारी मा एखर पुजा करबो।
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