रामपुर अतराप भर मा नाम्हीं गाँव रिहिस, जइसना ओखर नाँव तइसना ओखर सुघ्घर असन काम घला रिहिस, गाँव, त देखथे बनय। गाँव के बीचों-बीच बड़ परछिन के मंदिर जिहाँ बाँके बिहारी बिराजे रिहिस गाँव के पाँव ला पखारत देरानी-जेठानी नरवा मा बारो महीना पानी देख के आतमा जुड़ा जावय अउ नरवा के पार मा रिकम-रिकम के रूख-रई जेमाँ चिरर्ई-चिरगुन मन राहय अउ बड़े बिहनियच उँखर कुहकई अइसन लागय, जइसे बेद सासतर के मंतर ला कोनों बाम्हन देवँता बाँचत हे। अड़बड़ सुघ्घर उहाँ के नर-नारी मन गजबेच सुम्मत से राहय, लड़ई-झगरा सुनब मा नइ आवय। उही गाँव के बरदिहा राधेलाल अपन परानी संग अनंद के साथ राहय। दाउ रामधन के घर ओहा पहाटिया रिहिस, बरदीहिन स्यामा संग बिहाव होय बछर भर होय रिहिस, का करबे सुख अउ दुख जिनगी मा लगे रथे, बरदिहा जुड़ीताप बिमारी मा परके सरग सिधार गे, त ओखर बरदीहिन उप्पर पहाड़ गिरगे तइसे होगे।
बरदीहिन स्यामा हा अपन कुरिया ला रामधन दाउ कना गिरवी रखके अपन बरदिहा के खात-खवई करे रिहिस, कुटिया-पिसिया करके बिचारी दुखिया अपन लइका जेहा कोख मा रिहिस तेखर खातिर बारा कुँआ मा बाँस डारत गोपाल नाँव के बेटा पाय रिहिस, ओला अपन आँखी ले, ओधा नइ होवन देवय काबर कि ओहा ओखर परान के अधार रिहिस, केहे गेहे ‘बेटा हा दाई के हंडा होथे।’ रामपुर गाँव मा सरकार के सरी योजना लागू रिहिस। गरीब अउ निरासरित के रुपिया, पइसा, चाँउर स्यामा ला मिलय अउ दाउ रामधन घर टहल करँय, ओखर बेटा गोपाल घला दाउ रामधन घर जाय, गरु-गाय के सकला करँय, दाना, चुनी, भुँसी देवय। पहाड़ कस जिनगी पहाय लगिस। दाउ रामधन के घलो दु झन बेटा रिहिस बड़े बेटा हा घर के सियानी गँवारी मा राहय, छोटे बेटा स्यामू हा पढ़े बर इसकुल जावे। पाँचवी किलास मा पढ़त रिहिस। गोपाल घला पढ़े बर जाहूँ कहिके अपन दाई ला किहिस, त स्यामा कथे- बेटा..! हम ला कोन साहिब बनना है। जिनगी भर दाउ रामधन के घर के चरवाही करना हे अउ अपन बेटा ला किहिस- खाय बर चाँउर, रेहे बर छइय्यॉं हो जाय अउ हम ला कुछु नइ चाही।
एकदिन कोटवार हाँका पारत काहत राहय, गाँव के नीम चवँरा कना सब सकलात जाव, आज गाँव हा चमाचम बंद रही। खेती-खार, काम-धंधा, गाँव-गँवतरी जाना-आना बंद हे..! स्यामा अउ गोपाल जब हाँका ला सुनिस, त स्यामा किहिस- बेटा..! बइटका मा जाके कलेचुप बइठ जबे, सियान मन के गोठ ला सुनबे कुछु झन बोलबे, नइ तो छोटे मुहूँ बड़े बात हो जथे ।
गोपाल पाँच बरस के लइका बइटका मा कले चुप बइठके सुने लगिस। बइटका मा रामपुर इसकुल के बड़े गुरजी घला आय राहय, सरपंच मनहरन अउ पंच मन, गाँव के दाउ रामधन घला आय राहय। सरपंच हा गुरजी ला पूछिस- का बात आय गुरजी..! बने फरिहा के बता। गुरजी हा सब झन ला राम-राम किहिस अउ कथे- जम्मों पंच, सरपंच, दाउ, सियान मन से मँय हा बिनती करत हँव कि काली पँड़री बुधवार के दिन स्कूल में परवेस उतसव मनाना है। जेमाँ गाँव भर के मनखे मन ला सकलाना हे, छै बरस ले ग्यारा बरस के लइका मन ला इसकुल मा पढ़ाय बर भेजना है। सरपंच मनहरन कथे- कस गुरजी पढ़ई फोकट थोरे होही, पढ़ाय बर लइका के खरचा-पानी लागही, गरीब मनखे काहाँ पढ़ाही। गुरजी हाँथ जोड़ के कथे- देखव सरपंच सियान..! मोर बचन हिरदे मा बने धरव, हमर सरकार हा लइका मन ला पढ़ाय के अड़बड़ जोखा करे हे, बिन पइसा के पुसतक अउ लइका ला भरपेट खाना अउ डरेस देथे, येमा अपन-तुमन के बात नइ हे, सरकारी योजना हरे एखर भरपुर लाभ लेवव अउ काली ये गाँव के कोनों लइका झन छुटय ओमन सब इसकुल जही, त उँखर सुवागत होही।
बइटका उसलिस, त गोपाल घर लहुटिस, त सरी किस्सा ला अपन दाई ला बताइस। त स्यामा कथे- बेटा..! दाउ ला पूछे बर परही, हमर जिनगी उँखरे भरोसा मा चलत हे। ओतका मा गाँव के चार झन सियान अउ गुरजी स्यामा घर आगे, बिचारी हा डररात कथे- बइठो बबा हो..! आज मोर गरीबिन के कुरिया ला अँजोर करेेव, ओतका मा सियान मन के अउ गुरजी के सुआगत करे बर गोपाल ला स्यामा कथे- गोपाल टुपटुप पाँव परिस। दाई हा अपन बेटा ला बना सकत हे, बने सिखौना सिखा सकत हे। संसकारी लइका गोपाल राहय। स्यामा कथे- ले बताव बबा हो..! कइसे मोर कुरिया मा पधारे हव। देख ओ पहाटनिन..! तोर गोपाल हा छह बछर के होगे हे, पढ़े के लइक होगे काली इसकुल में परवेसोत्सव मनाना हे, कोनों बात के फिकर झन करबे सरी पढ़ेके जिनिस, पुसतक अउ मधियान भोजन अउ इसकुल डरेस सरकार हा देवत हे, खाली तोला लइका ला पढ़ाय बर भेजे ला परही। स्यामा कथे- बबा हो..! हमन चरवहा जात के तान, बिना दाउ ला पूछे कुछु काम नइ करन, ये कुरिया रहन में हे, ओतका बेर ठउँक्का दाउ रामधन पहुँचगे अउ कथे- ये बने बात आय स्यामा, लइका पढ़ही, त आगू बढ़ही, हमर गाँव घला साछर होही पढ़ही लिखही, त बनहीं मासटर, नइ पढ़ॉंव तँय कथस काबर ? गोपाल हा चटरु राहय, मँय हा पढ़े बर जाहूँ कहिके गुरजी कना आ के कलेचुप बइठगे। गुरजी ओला पोटार लिस अउ कथे- तँय हा कोनों बात के सन्सो झन कर..! पढ़ाय के जवापदारी मोला दे, जतका पढ़हूँ कही ततका पढ़ाहूँ।
दुसर दिन इसकुल मा पोंगा बाजना बिहने ले सुरू होगे गाना बाजत राहय, चल संगी पढ़े बर जाबो, पढ़ लिख के सुघ्घर नाम कमाबो। हमर गाँव ला, हमर देस ला सरग बनाबो। गोपाल मारे खुसी के कूद परिस अउ अलवा-जलवा कपड़ा पहिर अउ बासी पेज खाके झोला धर के इसकुल मा गिस। इसकुल अड़बड़ सुघ्घर दिखत राहय, इसकुल के चारों डाहर रिकम-रिकम के फुल फूले राहय, गोंदा, बइजंती, चमेली अउ नीम के रूख। दीवाल मन मा बड़ सुघ्घर के दोहा चउपाई, बड़े-बड़े महातमा मन के फोटू, किरिसना, राम के फोटू, राहय। झूला, फिसल-पट्टी घला राहय। सबे लइका सकलइन, पराथना करिन, जनगन मन, बंदे मातरम्। लइका आय हे, तेला गुलाल लगाना हे, माला पहिनाना हे। गुरजी गोपाल ला सबके बीच मा बलाके गुलाल अउ माला पहिनइस, मधियान भोजन मा मिठई घला दिस। गोपाल के खुसी के ठिकाना नइ रिहिस, अइसे लगिस जइसे मँय हा इसकुल आँय, त सब पाँयेंव, मारे खुसी के मुच-मुच हाँसत घर अइस। ओखर दाई स्यामा हा अपन बेटा ला पोटार के चुमा लिस- बेटा..! रोजीच बढ़े बर जाबे, एक्को दिन नाँगा झन करबे।
गोपाल बने मन लगाके पढ़िस, कक्छा मा अव्वल नम्बर मा पास होवय। अब बने नम्बर पवइया लइका मन के बरोबर होइस, त ओकरो सममान होइस। देखते-देखत समे जावत का देरी लागथे, खुब पढ़ डरिस। रहन रखे अपन कुरिया ला छोड़ा डरिस। ओतक बेर स्यामा के खुसी के आँसू भर अइस कुरिया, अटल, अटारी बनगे अउ अपन घर में एकठन गीता के संदेस ला लिखवइस- ‘करम करना चाही फल भगवान के हाँथ हे। अच्छा काम करे ले आदमी महान बन जथे ।’ महतारी-बेटा खुसी के दिन गुजारिन अउ घुरवा के दिन बहुर गे।
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