गुरुवार, 11 जुलाई 2013

मोर देवारी


दसमत, फुलमत दुनों झन रामपरसाद पहाटिया के अड़बड़ दुलउरिन बेटी रिहिस। दाई-ददा, ओमन ला अपन आँखी ले दुरिहा नइ होवन देवय। रामपरसाद अपन घरवाली बिसंतिन ला बरजे- आजकल काकरो मानी पिये के नो हे, हमर दुनों टुरी मन हा सबले अलगेच हावय। कोनों बैरी के नजर झन लागे। बिसंतिन कथे- लोक्खन के तुँहरेच बेटी हावय, कतका दिन ले बेटी ला राखे रहू। बिसंतिन मँय हा अपन बेटी के संग ठोंक-बजा के लगाहूँ। अलवा-जलवा घर मा नइ बिहावँव ओ..! ए गोठ ला दसमत-फुलमत सुन के मुच-मुच हाँसय अउ काहय- कोन जनी हमर भाग काँहा हावय, हाँ... बिधाता जिहाँ लिखे होही, उँहे जाबो। रामपरसाद के परोसी रामलाल महराज जउन हा, देवपुर गाँव के पुरोहित राहय, ओखर एक्को झन लइका नइ राहय। पहाटिया रामपरसाद के दुनों बेटी दसमत-फुलमत ला अपन बेटी कस माने दुनों बहिनी भात खातिन अपन घर अउ अचोतिन महराज घर...अतका मयाँ करँय। 

महराज बिचारसार करँय, तीर-तार के गाँव के मन आके अपन दुख बतावँय, जउँन महराज बतावय हू-ब-हू सच निकले। रामपरसाद पहाटिया अउ रामलाल महराज दुनों झन मा अतका बनय, ते गाँव के मन काहय- मितान होवय, त रामपरसाद पहाटिया अउ रामलाल महराज कस। रोज पहाटिया महराज के गोड़ छुवय बर बिहिनिया ले ओकर घर जावय अउ चहा-चोंगी पी के आवय। देवारी तिहार लकठावत हे, महराज..! घर कुरिया ला लिपे-पोते बर लागही, पँड़री छुही बेचाय बर आतिस, त लेतेंव। राम परसाद के घर कुरिया अँगना लक-लक ले देखते बनत हे, दसमत, फुलमत लीप-पोत के चारों खुँट ला सुघ्घर कर डरिस। महराज के घर ला घलो अड़बड़ परछिन कर डरिन। केहे गेहे कि- ‘जादा मीठ मा कीरा परथे।’ बिधि के बिधान के आगू काकरो नइ चलय। तेहा सोंचबे आने, होथे आने। 

देवारी तिहार लकठावत हे, रामपरसाद सोहई बनाय बर सरी जोरा करे लगिस। एकदिन रामपरसाद के गाय गउरी हा खूँटा ला टोर के भगागे। चारों कोती खोज डरिस तब ले नइ पइस। ओ दुहानू गाय हर रामलाल महराज के बारी मा जाके सरी बिरवा ला राई-छाई कर डरिस अउ बारी ला चर के आगी लगा डरिस। 

रामपरसाद हा महराज के पाँव परके कथे- महराज..! मोर दुहानू गाय गउरी हा कोन कोती भगागे, ओखर बिन घर हा मसानघाट कस लागत हे। ओखर बछरु अड़बड़ नरियावत हे, बिचार के मोला बता देतेव। रामलाल महराज के भँव तने राहय, भड़क के कथे- तोर गाय हा हरही होगे हे, मोर बारी ला देख, जम्मो साग, पान, नार बियार ला खुरखउँद कर डारिस अउ सरी सागभाजी ला चर डारिस, त मँय हा ओला कोठा मा बाँध दे हाबँव अउ ओला मँय तोला नइ देवँव। मोर साग-भाजी हा चार कोरी के कइसे नइ होतिस, दोनों झन मा बाते-बात मा बात बाढ़गे। केहे गेहे- ‘बात-बात मा बात बाढ़य, पानी मा बाढ़य धान, तेल-फूल मा लइका बाढ़य, पोही बाढ़य कान’ पहाटिया ला मनमाने कहि डारिस, त महराजिन लछमी आके समझाथे । त महराज कथे- तोर अतका हिम्मत होगे, मोर आगू मा मुहूँ खोलेके। त महराजिन सोंचथे - बिनास के आघू मा बुध हा पथरा जथे, तेकर ले चुप्पे रही जाना बने हे। महराज अउ पहाटिया मा भँइस्सा बइर सुरू होगे। एक दुसरा के मुहूँ ला देखेच मा पाप समझय। फुलमत-दसमत दुनों बहिनी मुसकिल मा परगे राहय। फेर रामपरसाद के डर के मारे घर के डेहरी ले नइ उतरय। साग-पान के देवइ-लेवइ सब्बो बंद होगे। 

गाँव के दू-चार झन दाई-माईं आके रामपरसाद के नोनी मन ला कथे- चलो ना बेटी हो..! सुआ नाचे बर जातेन, तुँहर राग बड़ मीठ हे बेटी हो..! रामपरसाद पहाटिया के घरवाली बिसंतिन कथे- ठउँक्का काहत हे बेटी हो..! सियनहिन मन के संग ला झन छोंड़हु। दसमत-फुलमत अबड़ सुघ्घर के लुगरा पहिनीन, माथ मा टिकली लगइन, बेनी मा मोंगरा खोंचिन अउ महराज के दुआरी मा पहिली जा के सुआ नाचत गाथे- ‘तरी नरी ना नरी सुआ हो...तिरिया जनम झन देबे हो... तिरिया जनम झन देबे...तिरिया जनम हा... गरु होथे... ना रे सुआ हो... तिरिया जनम झन दे...।’ एला सुन के महराजिन के आँखी डाहर ले आँसू ढरक गे। दसमत-फुलमत महराजिन के पाँव परिन, टूकना मा महराजिन चाँउर-दार देके बिदा करिस। गाँव मा सुआ नाचिन, तब घर के मोहाँटी मा चढ़िस, त देखथे ददा-दाई अड़बड़ संसो करत हे, दसमत-फुलमत दाई-ददा के दुख ला देखके अड़बड़ दुखी होगे। कथे- ददा..! घुरवा के दिन एक न एकदिन बहुरथे, हाँथ मा हाँथ धरे ले काम बिगड़ जथे, भगवान उप्पर बिसवॉंस कर, तहाँ ले एक न एकदिन बिधाता जरुर चिनहीं। दसमत-फुलमत के बात रामपरसाद के हिरदे मा लगगे, उठ के कथे- बेटी..! सुरहोती तिहार दु-चार दिन बाँचे हे सब के मन हरियागे। 

सुरहोती आगे, घर अँगना मा चंदन-चउँक दसमत-फुलमत पुरिन। तुलसी चउँरा अउ घर मा चाँउर पिसान के दीया रखिन। ओतका मा रामपरसाद कथे- बेटी..! मोर मन नइ मानत हे, तुमन दुनों बहिनी जाव अउ महराज के घर तुलसी चउँरा मा दीया राख के उँखर गोड़ छूके आ जहु। अपन ददा के बात मान के ओइसनेच्च करिन जब महराजिन के गोड़ छुइस, त महराजिन कथे- बेटी..! दीया हा जइसने अँधियार ला दुरिहा करथे वइसने बेटी हो..! जिनगी मा अइसन काज करहु कि चारों कोती अँजोर बगराहु। 

अब गउठान मा गोबरधन पुजा के समे आगे, तब डॉंग-डोरी ले, बाजा बजावत ठाकुर मन ला जोहारत सब पहाटिया, बरदिहा निकलत दोहा पारत हे- गहब चले तुलसा, गहब चले पुरवाही... गहब दूध मोरे लाली के, सब देवता भोग लगाही...’ रूनझुन-रूनझुन, नाचत-गावत पुजा करे बर गउठान मा पहुँचिन, जम्मो गाँव के सियान अउ बरदिहा मन साँहड़ा देव के पुजा करिन, गोबरधन खुँदइस, तब गोबर (धन) बाँटिन, फटाका फोड़िन एक दुसर के माथा मा गोबर टीक के हाँथ जोंड़िन। रामपरसाद, रामलाल महराज के माथा मा गोबर टीक के पाँव परिस महराज असीरबाद दिस- लाख बरिस जी रामपरसाद..! अन-धन-लछमी तोर घर भरे राहय, रामपरसाद के टप ले आँसू चुहगे अउ रामलाल महराज के गोड़ उप्पर गिरगे, अइसे लगिस जइसे सुदामा किसन जस, हिरदे मा सुघ्घर भाव लेके जब अइस, त बिसंतिन अउ महराजिन दुनों झन आरती अपन-अपन परानी के उतारिन, त रामपरसाद कथे- हमन महराज घर सोहई बाँधे बर जाबो अउ महराज के अँगना मा पहिली असीरबाद देबो-लेबो। 

दोहा पारत जम्मो बरदिहा-पहाटिया महराज के दुवारी मा पहुँचिन- ‘अंजन लिये चक चंदन, हरियर गोबर मिलाय...गाय-गाय तोर कोठा भरे, तन मन हिरदे जुड़ाय...पर धन पाथर जानिये, परितय मात समान...पर के लछमी मा मत कर भरोसा, मोर गोठ ला सिरतोन जान...’ ये सब दोहा ला सुन के महराज के हिरदे के कपट, इरसा हा चिरई कस फुर ले उड़े लगिस। फुलकाँस के थारी मा सुंदर गुलाल, पिवँरा चाँउर, लोटा मा पानी, फूल, दूबी लेके आरती करे लगिस, त सब पहाटिया, बरदिहा खुस हो के महराज के गोड़ छुइन, महराज असीरबाद देथे, तहाँ ले रामपरसाद के आरती उतारिस पिवँरा चाँउर अउ गुलाल टिकिस, टपा-टप रामपरसाद के आँसू चुहत हे, ओतका मा महराज के कोठा ले, गउरी गाय ढिलागे अउ रामपरसाद कना आके खड़े होगे। 

गाय ला पोटार के रामपरसाद रोय ला लगिस, रामलाल महराज घलो रोइस महराज कथे- बोल रामपरसाद..! जउँन तोला माँगना हे माँग ले। महराज..! मोला कुछु नइ चइये, बस तोर असीरबाद पुरही। महराज हा रामपरसाद के खाँध मा एकठन पंछा डारिस, पँचकठिया दुकना भर धान दिस अउ ए तोर गाय तोरेच कोठा मा सोभा पाही, मोला माफी देदे। तब रामपरसाद कथे- महराज..! गाय ला नइ लेगँव ये तुँहर होगे, महराज कथे- मोर किरिया हे ते नइ लेगबे, त। रामपरसाद गउरी ला लेके अपन घर अइस बिसंतिन, दसमत-फुलमत सबो झन गउरी गाय के आरती उतारिन अउ कथे- ऐ मोर देवारी... सुख देय हस भारी...एसो जइसे आय... तइसे आबे आरी-पारी। दसमत-फुलमत कथे- ददा..! धिरज मा खीर हे, सब काम बनथे। घर मा उच्छाह मंगल के साँथ देवारी तिहार मनइन घर भर दीया जलइन। 



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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!