चंडीगढ़ से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर सतलुज नदी के किनारे गाँव है बहादूरपुर। जहाँ हर घर को रसोई गैस मुफ्त में मिलती है। ऐसा, संभव किया है गाँव के दिलबीर सिंह और उनके परिवार ने। वे फार्म पर डेयरी चलाते हैं। 120 गायें हैं। इन्हीं गायों के गोबर और गोमूत्र को साइंटिफिक ढंग से एकत्रित करके, उसमें से कार्बन डाई ऑक्साइड निकाली जाती है। बची हुई मिथेन गैस को प्रोसेस करके गाँव के हर घर को सप्लाई कर दी जा रही है।
गाँव में 75 घर हैं। हर घर में गैस पहुँचाने के लिए दिलबीर सिंह ने अपने खर्च से पाइप लाइन डाली है। दिन में तीन बार 2-2 घंटे के लिए सभी के लिए गैस सप्लाई होती है। दिलबीर सिंह के परिवार का दुबई में स्क्रैप का कारोबार है। दिलबीर कहते हैं, ‘हम गोबर को बर्बाद क्यों कर रहे हैं? क्यों गैस और बिजली के लिए अरब मुल्कों के हाथ जोड़ रहे हैं। हर गाँव 70 फीसदी खाद, बिजली और गैस के लिए आत्मनिर्भर हो सकता है।’ दिलबीर के पास अभी 120 गायें हैं, वे इसे 200 तक ले जाना चाहते हैं। पहले से ही प्लानिंग करके उन्होंने अपना फार्म उसी तरह का बनाया है। गोबर से गैस निकालने के बाद बचा अवशेष खाद में बदल जाता है, जो वह बेचते हैं। उन्होंने बताया, इसे सिलेंडरों में भरकर भी सप्लाई किया जा सकता है लेकिन उसके लिए भारत सरकार से लाइसेंस लेने की जरूरत पड़ती है। हम उस दिशा में काम कर रहे हैं। दिलबीर पैक्ड दूध की सप्लाई करते हैं और बचे हुए दूध से मिठाइयॉं भी बनाते हैं। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड की। अपनी जमीन पर फैक्टरी बना ली है जहॉं से दुबई आदि में ये मिठाइयॉं सप्लाई की जाएँगी। वे कहते हैं, डेयरी कारोबारी दूध को मुख्य बिजनेस बना रहे हैं, जबकि हमारे लिए दूध डेयरी का बायप्रोडक्ट है। डेयरी फार्मिंग से हम ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
मान गए आई.आई.टी. के प्रोफेसर..
आईआईटी दिल्ली का फार्मूला गोबर को पहले ही दिन प्रोसेसिंग में डालकर गैस निकालने का है। दिलबीर सिंह दूसरे दिन इसे प्रोसेस करते हैं। ताकि पहले दिन आग बुझाने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड निकल जाए, फिर इसमें रह जाती है सिर्फ मिथेन, जो ज्वलनशील है। जब इस बात का पता आई.आई.टी. दिल्ली के प्रोफेसरों को चला तो उन्होंने दिलबीर का पूरा प्रोजेक्ट समझा और सराहा।
प्रेक्टिकल से ही आया ये आइडिया...
दिलबीर ने बताया, कार्बन डाई ऑक्साइड को निकालने का आइडिया प्रेक्टिकल से आया। अब गैस की क्षमता और बढ़ाने के लिए मिथेन का तापमान बढ़ाने पर काम कर रहा हूँ। यदि इसे 45 डिग्री तक ले जाने में कामयाब हो गया तो इसी गैस प्लांट की क्षमता दोगुनी हो जाएगी।
उपरोक्त उदाहरण की तरह हमारे गाँवों में 2-3 चरवाहों के अधिनस्थ बरदियों (मवेशियों के समूह) में 500 से भी अधिक गाय, बैल, भैंस रहते हैं । ये चरवाहे चार-पाँच माह ही मवेशियों को घास के मैदानों में चराते हैं शेष अवधि में मवेशी सड़कों-गलियों में घूमते रहते हैं । इनका गोबर व मूत्र व्यर्थ बह जाता है ।
यदि इन्हें बारहों मास ग्राम पंचायत के अधीन लेकर सामुदायिक सहभागिता से पशुपालन व देखरेख को विकसित करें तो हर एक गाँवों में बड़े स्तर पर गोबर गैस प्लांट, कम्पोस्ट एवं गोबर खाद की फैक्टरियाँ गौमूत्र के अमृत का विशाल संग्रह एवं जैविक कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव है ।
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