वो सपने भी क्या, जो कभी न सच हुए.
दरअसल वो ख़्वाब तुमने देखा होगा रात में..!
इश्क से तुम तरबतर, ज़िन्दगी के धूप-छाँव में.
न हुए तो कहना,- जरा मिलो तो बरसात में..!
तकरार बाद प्यार है, दरवेश कहा करते हैं.
ये आदत भी तेरी है भली,- जो लड़ती हो बात-बात में..!
मिलो किसी से तुम, तो ख़्याल रखें ये उसूल.
चार मिलें, चौसठ खिलें,- पहली ही मुलाकात में..!
खोलिए न हाथ, तेरी बंद मुट्ठी लाख की.
हमने तो चाँद छू लिया,- रहकर औक़ात में..!
बीच भँवर में भी किनारे का नाप-जोख,
गर्दिश पे ये ग़ज़ल,- ऐसे हालात में..!
चलो और देखें ख़्वाब,- कुछ नये रंग के ‘सुमन’,
इस बार कोई और नहीं, मैं हूँ ना- तेरे साथ में..!
चन्द्रकिशोर साहू ‘सुमन’ गुण्डरदेही
रविवार, 4 अगस्त 2013
मैं हूँ ना..!
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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!
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भारत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय योगदान देकर एवं तत्कालीन भारत में चल रहे राजनैतिक-सामाजिक परिवर्तन तथा आर्थिक मुक्ति आंदोलन में हिस्सा ले...
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