सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

कुलक्षणी


राधा को खाना-पीना अच्छा नहीं लगता। सिर में दर्द की शिकायत रहती, दिन में एकाध बार उल्टी हो जाती राधा परेशान थी। सास कहती- ‘‘क्यों बेटी! तुम्हारी तबियत कैसी है? ठीक तो हूँ मॉं जी! आज कल मैं देख रही हूँ, तू ठीक से खाती-पीती नहीं, कितनी दुबली हो गई है।’’ सास दुलार से बहू की ओर देखकर कहती। रसोई घर में इमली खाती पकड़ी गई, सास को देखकर हाथ पीछे करती हुई राधा झेंप गयी। ‘‘क्यों बहू! तू इमली खा रही है! देख तेरा आज से काम करना बंद रौताईन सारा काम करेगी, तू चुपचाप बैठी रहना’’ सास हँसते हुए कहती। नहीं मॉं जी! मैं इतनी कमजोर तो नहीं हूँ। क्यों रे रामू! तू बहू को दिन भर इधर-उधर दौड़ाता है। कभी पानी दे, कभी दतौन ला, कभी कमीज के बटन टॉंक आज से बहू काम नहीं करेगी, अपना काम तू खुद करना। छोटे-मोटे काम करने से इसके हाथ थोड़े ही घिस जाऐंगे मॉं! रामू कहता। तू नहीं जानता रे! जा अपना कामकर, रामू बड़बड़ करते खेत चला गया।

राधा दर्द से चीख पड़ती रह-रहकर टीस उठती घर भर परेशान। मॉं...! राधा का खयाल रखना कहते हुए रामू डॉक्टर बुलाने पास के कस्बे में दौड़ा। वहॉं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। डॉक्टर की मोटर सायकल गली में आकर रूक गई। रामू डॉक्टर का बैग पकड़े आगे-आगे घर में प्रवेश किया, रामू के पिताजी बैठक के चक्कर काट रहे थे। उन्हें कुछ आशा बंधी। इंजेक्शन लगाते हुए डॉक्टर बोले- ‘‘डरने की कोई बात नहीं है, दस-पंद्रह मिनट में डिलिवरी हो जाएगी।’’ राधा को होश आने लगा अपने बगल में उसे नरम-गरम वस्तु का आभास हुआ। धीरे-धीरे आँखें खोलती हुई उसे शांति महसूस हुई। मॉं की ममता छलकने लगी, किन्तु सारी खुशी क्षण भर में जाती रही जब उसे यह पता चला कि इस बार भी लड़की हुई है। उसे पति के शब्द बार-बार याद आने लगी। ‘‘तुम फिकर मत करो राधा..! इस बार जरूर लड़का होगा|’’ रामू को बेटा खेलाने का शौक था, लेकिन भगवान की मर्जी के सामने इंसान क्या कर सकता है। राधा प्रार्थना करती ‘‘कम से कम एक पुत्र मुझे दे देते भगवान तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता, तुम्हारे यहॉं कुछ कमी तो नहीं हो जाती।’’ लगातार तीन लड़कियों को जन्म देते-देते राधा आधा हो गई। शरीर में थोड़ी भी जान नहीं बची।

आज से छह वर्ष पूर्व रामू की शादी हुई थी। राधा छम-छम करते ससुराल आयी, तो पास-पड़ोस में उसके सुंदरता की चर्चा होने लगी। रूपवती, गुणवती बहू पाकर सास अपने भाग्य को सराहने लगी। गृहकार्य में निपुण राधा मधुर स्वभाव की थी। सास कहती- ‘‘राधा बेटी! जरा गरम पानी तो देना। ससुर कहते- ‘‘बहू! जरा चाय तो बनाना मेहमान आये हैं। सभी बहू की प्रशंसा करते, रामू फूला नहीं समाता।समय पंख लगाकर उड़ने लगा। दिन भर काम करते राधा को पता ही नहीं चलता कि कब सुबह से शाम हो जाती। निम्न मध्यम वर्ग परिवार के नाम से सास-ससुर, पति और स्वयं राधा। घर में दस एकड़ जमीन गुजारा आराम से चल जाता। गॉंव से दो मील की दूरी पर बाजार लगता गॉंव के लोग बुधवार को सप्ताह भर का सामान खरीद लाते। रामू कहता- ‘‘तुम्हारे लिए रसगुल्ला लाऊँगा।’’ राधा के गाल शर्म से लाल हो जाते होंठ फड़कने लगते वह आँचल में मुँह छुपाकर भाग जाती। रामू सायकल लेकर बाजार जाता गली की मोड़ पर घंटी बजाता, राधा दरवाजे से अपने पति को देखती रहती जब तक रामू निगाह से ओझल नहीं हो जाता। बीते दिनोंकी याद आते ही राधा कहीं खो जाती।

गॉंव का चैतू रामू का दोस्त बधाई देते हुए कहता- ‘‘अब तो मुँह मीठा करा यार कितनी सुंदर बच्ची है। तू तो बड़ा भाग्यशाली है यार! साक्षात लक्ष्मी ने तेरे घर जन्म लिया है। अरे! क्या बात है तू बोलता क्यों नहीं यार! क्या तुझे कोई खुशी नहीं है? अरे! दिल क्यों छोटा करता है। मुझे देख शादी हुए दस वर्ष बीत गये, लेकिन तुम्हारी भाभी ने आज तक एक चुहिया तक नहीं जनी। गॉंव के प्रमुख ब्यक्ति चाय-नाश्ता करते रामू को बधाई देते और चले जाते, घर में कोई खुश नहीं रामू अपने सीने पर बोझ महसूस करता मॉं-बाप बूढ़े हैं। पके आम के सामान न जाने कब चू पड़े? पोता देखने के लिए आँखें तरसती रही, सास बात-बात पर ताना देती बहू तो करमजली है। क्या करूँ मॉं जी! मेरे हाथ की बात तो नहीं है राधा रूआँसी हो कहती। घर में नित्य कलह होने लगा। ससुर बहू का पक्ष लेकर पत्नी को डॉंटते- ‘‘इस में इस बेचारी का क्या कसूर है?’’ समय कभी रूकता नहीं दुख बिन बुलाये मेहमान की तरह आता है। बहू को पुत्रीव्रत प्रेम करनेवाला ससुर बेटे-बहू और पत्नी को बिलखते छोड़कर इस संसार से विदा हो गये| पति वियोग में रामू की मॉं दिल की मरीज हो गई। राधा सुबह रामू को चाय देते हुए बोली-‘‘मॉं जी..! अभी तक सो रही है, मैं दो बार दरवाजे से वापस आई हूँ।’’ रामू मॉं को जगाते हुए उठने को कहता है इसके पूर्व मॉं को देख अचानक रामू का दिल बैठता हुआ महसूस हुआ, नाड़ी गायब थी, मुँह खुला का खुला रह गया था। एक सप्ताह के अंदर रामू के माता-पिता उसे छोड़कर स्वर्ग चले गये। रामू के ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। वह संसार में अपने को अकेला महसूस करने लगा। 

समय का चक्र घूमता रहा आषाढ़ का महीना आया आकाश में काले-काले मेघ छाते, लेकिन पता नहीं पानी कहॉं चला जाता, बरसने का नाम ही नहीं लेता किसानोंको निराशा होने लगी, आँखें आकाश की ओर उठाये राधा कहती- ‘‘सुनते हो जी! आज चॉंवल खत्म हो गया है। दुकानदार आगे देने से इनकार करते हैं। पहले का कर्ज चुकाओ तब देंगे।’’ बच्चे रोटी के लिए रोते घर में तीन दिन से चूल्हा नहीं जला, छोटी बच्ची दूध के लिए मचलती, भूखे मॉं के तन में दूध कहॉं से आता। राधा रामू को अपने जेवर उतारकर कहती- ‘‘इसे बेचकर आओ! कम से कम कुछ दिन के लिए भोजन का प्रबंध हो जाएगा।’’ रामू दुखी स्वर में लेने से इनकार करते हुए कहता है- ‘‘नहीं राधा! नहीं, मुझसे यह नहीं होगा, मैं बैलों की जोड़ी बेचकर चॉंवल सब्जी आटा लाऊँगा।’’ इस वर्ष इन्द्र महाराज हम पर कुपित हैं इसलिए एक बूंद पानी नहीं बरसा, फिर आगे सोचेंगे बाजार में पॉंच हजार जोड़ी की बैल को पॉंच सौ में भी लेने को कोई तैयार नहीं हुआ, लाचार रामू गहना गिरवी रखकर खाने पीने का सामान लाया।

चलो राधा! अब शहर चलें... इस गॉंव में क्या रखा है? लोग गॉंव छोड़कर शहर की ओर भाग रहे हैं| गॉंव श्मशान हो रहा है इस अकाल ने अच्छे-अच्छे की कमर तोड़कर रख दी है, राधा दुखी मन से घर में ताला लगाकर चाबी रामू को थमा दी और गाड़ी में बैठ गयी। तीनों बच्चियॉं सहमी मॉं के पास बैठ गयी। स्वामी भक्त कुत्ता मोती गाड़ी के आगे कभी पीछे दौड़ लगाता। राधा को खयाल आया जब डोली से इस घर में पैर रखी थी तब सभी लोग कितने खुश थे। उसने लंबी सॉंस खिंची और आँखें गीली हो गई। चलते-चलते दोपहर हो गई। पास में कुआँ देख रामू ने गाड़ी रोक दी बच्चियॉं प्यासी थी। घर से लाये रोटी सबने गुड़ के साथ खाये और पानी पीये।मोती अपने मालिक के पास पुंछ हिलाते हुए बैठा था। रामू ने स्नेह से थपथपाया चलो मोती अब चलो, राधा मन में विचार कर रही थी दुर्दिन में कोई साथ नहीं देता। अपने सभी पराये हो जाते हैं। गाड़ी शहर के बाहर नदी किनारे रूक गई| रामू गाड़ी से उतरकर झोपड़ी के पास बैठे एक वृद्ध ब्यक्ति से बोला- ‘‘बाबा आप लोग कहॉं से आये हैं? उस ब्यक्ति का नाम मुरली था। उम्र पचास वर्ष के लगभग रही होगी।उदास स्वर में उत्तर दिया यहॉं से २०मील की दूरी पर बिसनपुर नाम का गॉंव है वहीं का रहनेवाला हूँ। इस अकाल में यहॉं चले आये हैं। घर में अच्छी खेती है, लेकिन आज यहॉं हम मजदूरी कर जीवन व्यतीतकर रहें हैं। करीब बीस झोपड़ी थे। रामू शहर से बांस बल्ली लाकर झोपड़ी तैयार कर लिया वह मेहनती किसान था। एक सेठ के यहॉं बोझा ढोने का कार्य मिल गया। इस तरह अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा। 

मुरली की पत्नी लक्ष्मी और राधा में बहनापा हो गया। लक्ष्मी राधा से अपने बच्चों का रोना रोते हुई कहती-‘‘क्या बताऊँ बहन मेरे पॉंच बच्चे हैं, दो अभी छोटे हैं, बाकी तीनों निकम्मे हैं। हमारा हाथ बँटाना तो दूर हम पर बोझ बने हैं। बड़ा लड़का गोपाल हमेशा बीमार रहता है। आधी कमाई उसकी दवाई में खर्च हो जाती है| उससे छोटा कमल अवारा है, हमारी सुनता ही नहीं बल्कि उल्टे धौंस देता है, उससे छोटी मुनिया ब्याह लायक हो गई है। हमारे बिरादरी का कोई लड़का हो तो बताना, राधा को लक्ष्मी का दुख अपने दुख से ज्यादा लगा उसे लक्ष्मी से सहानुभूति हो गई। रात रोने-धोने की आवाज से रामू और राधा की नींद खुल गई आँख मलते हुए रामू मुरली के झोपड़ी के पास गया। लक्ष्मी रोते हुए अपनी छाती पीट रही थी। ‘‘हाय इसी दिन के कुलक्षणी को बड़ा किया था। पता होता तो गला घोंटकर मार डालती।’’ पता चला मुनिया किसी के साथ भाग गई है। आये दिन शहरी छोकरे चक्कर काटते थे। कल ३:३० वाली सिनेमा देखने गई थी, तो अभी तक घर नहीं पहुँची|।अंतिम बार उसे किसी लड़के साथ देखा गया था। कमल पिछले सप्ताह झगड़े में एक आदमी को चाकू मार दिया था, उसे पुलिस पकड़कर ले गई कोई जमानत लेने वाला नहीं मिला। दुख की अधिकता के कारण मुरली को दिल का दौरा पड़ा, लक्ष्मी अकेली बेचारी बच्चों को संभालती कि मुरली को। रामू राधा को लक्ष्मी की देखभाल के लिए छोड़कर मुरली को जिला अस्पताल में भरती करा दिया। धीरे-धीरे मुरली की हालत सुधरती गई मुरली ठीक होकर घर आ गया। 

एक दिन बस्ती में मुनिया अपने मॉं-बाप के झोपड़ी के बाहर रो रही थी, उसके कपड़े मैले-कुचैले और फटे हुए थे, जिस लड़के के साथ भागी थी उसने उसको मारपीटकर घर से निकाल दिया है, अत: वह वापस अपने बाप के घर आ गई है और अपने किये पर पछता रही है। अकाल के कारण न जाने कितने लड़कियॉं घर से भाग गई और अपने भाग्य पर रो रही है, कितने घर बर्बाद हो गये हैं। रामू सोचने लगा लोग पेट भरने के लिए अपनी इज्जत बेच रहे हैं। जमीन जायजाद बेच रहे हैं, ताकि पापी पेट को दो जून खाना मिल सके अकाल जो कराये थोड़ा है। बस्ती के लोग दिन भर काम करने शहर चले जाते, बस्ती में छोटे बच्चे और बूढ़े ब्यक्ति दिन को दिखाई पड़ते। पूरा बस्ती सूना है। मुनिया का पति शराब के नशे में मुनिया को अपने साथ चलने को कहता है| ‘‘घर में कोई नहीं है, मैं ऐसे कैसी जा सकती हूँ? बापू के आते तक रूक जाओ फिर तुमने तो मुझे घर से निकाल दिया है मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती।’’ ‘‘साली नखरे करती है मेरे साथ जाने से मना करती है, सतिसावित्री बनती है यहॉं धंधा करती है। बुला अपने यार को’’ कहकर मुनिया की चोटी पकड़कर मारने लगा, मुनिया प्राण बचाने इधर-उधर भागने लगी रास्ते में पड़े पत्थर को देख मुनिया रूक गयी। रूक जाओ नहीं तो मार डालूँगी कहकर अपने पति को डराने लगी। तब तक उसका पति नजदीक आ गया| उसने मुनिया का गला पकड़ लिया, खींचतान में उसका हाथ गले पर कसता चला गया। मुनिया की आँखें फटी की फटी रह गयी। जीभ बाहर निकल आया, मुनिया का प्राणान्त हो गया। मुनिया की मॉं अपनी बेटी को कुलक्षणी कहती थी, वही उसके शरीर से लिपटकर रोने लगी। आज मुनिया सदा के लिए संसार से विदा हो गई थी।


विश्राम सिंह चंद्राकर
अध्यक्ष, सरस साहित्य समिति गुण्डरदेही

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!