बुधवार, 31 दिसंबर 2014
शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014
मुँहू बाँधे के फैसन
आजकाल जेला देखबे तेला मुँह-कान ल बाँधे के फैसन होगे हे। चिन्हारी घलो नई आय। चिन्हारी घलो कहाँ ले आही सबो मुँह-कान ह तो तोपा गेहे। आँखी भर ह जुगुर-जुगुर दिखत रहिथे। अइसने मुँह-कान ल बाँधे कोनो स्कूटी में जावथे त जरूर जान ले कि येहा कोनों मेडम आय। मेडम मन के आय ले अइसने बाँधे के चलन जादा बाढग़े हे।
बस स्टेशन या कोनो चौक में जाबे त दू-चार झन अइसने मुँह बाँधे मेडम मन जरूर खड़े रहिथे। कतको मेडम मन खाँध में बेग लटकाए रहिथे अऊ चसमा घलो पहिने रहिथे। कतको झन ल रोज-रोज देखत रहिथे तभो चिन्हारी नइ आये। काबर कि ओकर मुँह बाँधे के साफी अऊ बेग ह बदल जाथे। कतको झन ह उहीच-उहीच साफी ल बाँधे रहिथें त साफी ल देख के चिन्हारी आ जाथे। नौ बजे के बेरा में बस में चढ़बे त अइसने चार-छ: मेडम जरूर बइठे राहे, अतका जोर-जोर से बात करत रहिथे कि जानो-मानो बस ल उही मन खरीद डारे हें। किसम-किसम के गोठ-बात ओकरे मन से सुन ले अलग-बगल बइठइया मनखे मन चुपचाप ओकर मन के बात ल सुनत रहिथे अऊ मने मन हाँसत रहिथे।
हमर छत्तीसगढ़ में माओवादी मन ह गाँव शहर सब जगा खुसर गेहे, अऊ अइसने मुँहू ल बाँधे रहिथे त चिन्हारी तक नइ आय। तेकरे पाय आसानी से अपन काम ल अंजाम दे देथें। कोनो जगा भी बड़े दुरघटना घट जाही त एमे आश्चर्य के कोनो बात न नइ रहे। कुछ दिन पहिली सरकार ह अइसने मुँह बाँधे बर मना करे रिहिसे। दू-चार दिन जुरमाना घलो लगाइस। वोकर बाद टाँय-टाँय फिस्स होगे। परसासन ल चाही कि येकर उपर सखती से कार्रवाई करे ताकि एकर आड़ में कोनो गलत धंधा या दुरघटना मत होय।
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-महेन्द्र देवांगन 'माटी'
गोपीबंद पारा पंडरिया
कबीरधाम
छत्तीसगढ़ के तीज तिहार- मड़ई मेला
कोनो तीज तिहार होय, अंचल के रीत-रिवाज जहां के संस्कृति अऊ परम्परा ले जुड़े रथे। सबो तिहार म धार्मिक-सामाजिक संस्कार के संदेश हमला मिलथे। तिहार मनाय ले मनखे के मन म बहुते उमंग देखे जाथे। आज मनखे ला काम बूता के झमेला ले फुरसद नइ मिले। ओला तिहार के ओखी म एक-दू दिन काम-बूता ले उरिन होके घूमे-फिरे अऊ अपन हितु-पिरितु संग मिले भेंटे के मौका मिलथे। तिहार के ओखी घर-दुवार के साफ-सफाई लिपाई-पोताई हो जथे। गांव म डीह डोंगर के देवी देवता के ठऊर ल बने साफ करके लिपई पोतई करथें। देवता धामी के बने मान-गौन होथे तब उहू मन बस्ती अवइया बिघन बाधा बर छाहित रथे। इही पाय के हमर पुरखा मन तीज तिहार मनाय के परम्परा चलाय हें, जेमा एक ठन तिहार गांव के मड़ई मेला ल घलो माने जाथे।
मड़ई मेला परब मनाय के चलन कब ले शुरू होय हे, येखर कोनो ठोस परमान तो नइ मिलय फेर सियान मन अपन पुरखा मन ले सुने मुंहजबानी कथा अइसन किसम के बताथें। द्वापर जुग म भगवान कृष्ण हा देवराज इन्द्र के पूजा नई करके गोबरधन पहाड़ के पूजा करिस, तहान इन्द्र ह अपने अहंकार के मारे मुसलाधार बारिस करके सब गोप-ग्वाल ल विपत म डार दिस। तब भगवान कृष्ण ह अपने छिनी अंगरी म गोबरधन पहाड़ ल उठाके सबके रक्षा करिस। संगे-संग गोप-ग्वाल मन ल अपन-अपन लऊठी पहाड़ म टेकाय बर कहिके एकता म कतका ताकत हे येकर मरम बताइस। ओ दिन विपत ले बांचे के खुशी म गोप-ग्वाल खूब नाचे गाये लगिन। उही दिन ले राऊत नाचा अऊ मड़ई मनाय के परम्परा शुरु होइस।
जिहां तक हमर छत्तीसगढ़ के बात हे, देवारी तिहार म गोबरधन के पूजा करथन। किसान के नवा फसल आथे, ओकर बाद म मड़ई मेला मनाय के सिल-सिला शुरु हो जथे। ओ जुग म भगवान कृष्ण ह प्रकृति के पूजा करके इन्द्र के अहंकार ल टोरिस अऊ ग्वाल बाल के रक्षा करिस तब कृष्ण ल अपन रक्षक मान के ओकर पूजा करिन। उही पाय के आज घलो गऊ माता के चरवाहा मन भगवान के कथा ले जुड़े दोहा बोलथें अऊ नाच-कूद के खुशी मनाथे। अब भगवान कृष्ण के संगे-संग अऊ कतकोन देवी देवता के पूजा अऊ मान गौन करथें। देवी देवता के चिन्हारी के रूप में मड़ई बैरक सिरजा के मड़ई मेला के तिहार ल सामूहिक रूप म मनाय जाथे।
मड़ई मेला के परब हमर जम्मो छत्तीसगढ़ म मनाय जाथे भले विधि-विधान म थोर-बहुत अंतर रथे। ये तिहार ल मनाय के तारीख तिथि पहिली ले तय नइ राहय फेर अतका बात जरूर हे, जे गांव म जौन दिन हाट बजार होथे उही दिन मड़ई मनाथें। जेन नान्हे गांव म हाट बजार नइ होय उहां कोनो दिन अपन सहूलियत देख के मड़ई तिहार मना लेंथे। कोनो-कोनो गांव जिहां हफ्ता म दू बेर हाट बजार लगथे अऊ बस्ती बड़े होथे उहा दू बेर मड़ई मेला के परब मना लेथें। येकर उलट कोनो-कोनो गांव म अपन गांव के परम्परा के मुताबिक कुछ साल के अन्तराल म मनाय जाथे। जइसन के जिला मुख्यालय गरियाबंद म तीन बच्छर म मड़ई मेला मनाय के परम्परा चलत हे। उही जिला के पांडुका गांव म छेरछेरा पुन्नी के बाद अवइया बिरस्पत (गुरुवार) के दिन मड़ई पक्का रथे। कोनो ला बताय के जरूरत नइ राहय। कई ठन गांव म हमर देश के परब गणतंत्र दिवस के दिन बड़ धूमधाम ले मड़ई मेला के तिहार मनाथे।
मड़ई मेला के तइयारी बर गांव के सियान पंच सरपंच एक जगा सकलाथें अऊ एक राय होके चरवाहा मन ला बताथें। दिन तिथि बंधाथे तहान मड़ई मेेला के जोखा गड़वा बाजा, नाच पेखम के बेवस्था अऊ जरूरी जिनिस ल बिसाके लानथे। अलग-अलग गांव म अलग-अलग देवी देवता बिराजे रथे। जइसन के महावीर, शीतला माता, मावली माता, सांहड़ा देवता के संगे-संग गांव के मान्यता के मुताविक अऊ देवी-देवता जेमे बावा देवता, हरदेलाल, राय देवता, नाग-नागिन देवता, बाई देवता अइसने कई किसम के नाव सुनब म आथे, ऊंकरो मान गौन करथें। गांव म कतको झन अपन पुरखौती देवी देवता मानथे जेला देवताहा जंवरहा कथे ओमन मड़ई बैरक राखे रथें उंकरो मान गौन करथें। मंडई म परमुख शीतला माता, मावली माता, महावीर, कोनो के पोगरी देवी देवता के मड़ई रथे। दू ठन कंदई मड़ई रथे जेमा कपड़ा के पालो (ध्वजा) नइ राहय। कंदई मड़ई म कंदई के अनगिनत पालो लगे रथे। डांग (बांस) के बीचोंबीच म चार पांच जगा ढेरा खाप पंक्ति लगा के ओमा मोवा डोरी गांथ के कंदई के पालो लगाय रथे। ओकर ऊपरी फोंक म मयूर पांख के फुंचरा बांधे रथे जेहा सबो मड़ई के शोभा बढ़ाथे।
मंड़ई मेला के परब म पौनी पसारी के मदद लेना बहुत जरूरी रथे। पौनी पसारी म गांव के पुजारी बईगा, किसान के गाय चरवाहा राऊत अऊ देवी देवता के पूजा पाठ बर दोना-पतरी देवइया नाऊ ठाकुर के सहयोग जरूरी होथे। इंकर बिना मड़ई के परब नई मना सकय। मड़ई के कामकाज करइया गांव के अगला मन पूजा पाठ के जिनिस, नरियर, सुपारी, धजा, वइसकी, लिमऊ बंदन, गुलाल, हूम धूप, अगरबत्ती के जोखा कर के राखे रथे। मड़ई के दिन सबले पहिली नरियर सुपारी अऊ बाजा-गाजा संग गांव के बइगा ल नेवता देथें, तब बईगा हा गांव के सब देवी देवता ल जेकर जइसन मान-गौन होथे ओ जिनिस ला भेंट कर के नेवता देथे। तहान गांव के परमुख सियान मन ला पिंवरा चाऊंर अऊ सुपारी भेंट कर के नेवता देथें। मंड़ई के दिन बाजार चौक म बिहिनियां ले दूकान वाला बैपारी मन अपन सामान लान के अपन दुकान सजा के तइयारी कर लेथें। जइसने बेरा चढ़त जाथे ओइसने बाजार के रौनक बढ़ते जाथे। मड़ई म मिठई, दुकान, खिलौना दुकान, मनियारी दुकान, होटल, पानठेला, किराना दुकान अऊ संगे संग साग-भाजी के बेचइया मन के पसरा घलो लगथे। मड़ई के दिन सबो दुकान के सामान खूब बेचाथे। वैपारी मन खूब आमदनी कमाथें। लोगन के मन बहलाय बर ढेलवा रहचुली झुलइया घलो आथें फेर अब ओहा धीरे-धीरे नंदावत हे।
संझाती बेरा नेवताये पहुना मन ओसरी-पारी आवत जाथे। ऊंकर मन बर सुन्दर मंच बनाके बईठे बर कुरसी, दरी बिछाय रथे। पहुना के आते साथ गुलाल लगा के स्वागत करके बइठारथें उही बेरा राऊत मन मड़ई (बैरक) लेके बाजा-गाजा संग नाचत-कूदत आथें अऊ अपन राउत नाचा के कला देखाथें। उहां ले राउत मन बिदा होके मड़ई ला ऊंकर ठऊर म अमराके ओती मंच म बईठे पहुना मन मड़ई मेला के विषय म भासन उद्बोधन देथे। ओकर बाद पहुना मन ला एक-एक नरियर दे के बिदा करथें।
मड़ई मेला के परब हमर छत्तीसगढ़ के अलग पहिचान बनाथे। हमर छत्तीसगढ़ के कतको रीति रिवाज हा आज के नवा जमाना म नंदावत हे ये हमर बर संसो के बात हे। हमर छत्तीसगढिय़ा बुद्धिजीवी मन ला हमर पुरखौती संस्कार अऊ परम्परा ल संजोके राखे बर ठोस उदिम करे बर जरूरी है। संगे संग हर तीज तिहार म मंद मऊहा अऊ जुवा के रोकथाम बर हमला जागरुक होना बहुते जरूरी हे।
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नोहर लाल साहू "अधमरहा"
गांव हसदा
मगरलोड, जिला-धमतरी (छ.ग.)
यमराज ह पिकनिक मनाय जब धरती म आइस
बियंग
धरती में खास करके भारत में देवारी तिहार के तैयारी चलत रहिस। रंग रोगन फटाका झालर बलफ से दुकान मन ला सजाय जावत रहिस हे। हीरकयमराज हा दूरबीन लगाके धरती कुती ला देखिस अउ उदास होगे। आगू में जुगाली करत यमवाहन (भैंसा) खड़े रहिस हे। मालिक यमराज के उदास चेहरा देख के वो हा चिन्ता में पडग़े। यमराज हा बहुत सेण्अमेण्टल होगे रहिस हे। भैंसा जी बोलिस का बात ये महाराज आप बहुत उदास दिखत हो? यमराज बोलिस-वाहन, सबके पूजा होथे सिरिफ मोर पूजा कोनो नइ करय। यमराज के आंसू डबडबागें। भैंसा जी थोकिन हंसिस, थोकिन देर तक नेता मन के पान चबाय के अंदाज में जुगाली करिस अउ रस ला गुटके के बाद बोलिस। तुंहरो पूजा होथे महराज फालतू टेंसन लेके उदास मत होवव। धरती में खा
स करके भारत में नरक चतुर्दसी के दिन सबो जनता तुंहर याद करथे। न तुंहर मंदिर हे, न कथा होवय न आरती तभो ले जनता अपन लंबा उमर के परार्थना तुंहर से करथे। बिसवास नइ होवत हे तब चलौ ये दरी भारत के दौरा में निकले जाय। यमराज थोकिन खुस हो के बोलिस सिरतोन काहत हस वाहन? के मोर मन रखे बर अइसन बोलत हस? भैंसा जी बोलिस हण्ड्रेड एण्ड टेन परसेण्ट सही बात ये महराज। अब तुमन ये मत पूछौ के मैं हा वो करिया भंइसा ला भैंसा जी काबर लिखत हौं। अरे भई परान लेबर जब यमराज आथे तब वोला अपन पीठ में चढ़ाके कोन हा लाथे? उही करिया भ्ंइसा हा लाथे ना? अरे भई मैं तो वो करिया भंइसा ला परसन्न करना चाहत हौं ताकि जब मोर परान हरे के बारी आवत तब वो हा थोकिन बिलम जावय। कोनो मेर थोकिन सुरता लेवय या रस्ता में खड़े होके देर तक चुरुक-चुरुक पिसाब करय या कोनो स्मार्ट भैंस ला देख े बिदक जावय अउ बारा महीने में बारा तरीके से तुझको पियार करुंगा रे..... ढिंग चिंगा.... वाले गाना ला भैंस के पाछू-पाछू रेंगत गावय अउ यमराज ला मोर पता के बजाय दूसर के पता में ले जा के भटका देवय। अरे एक दिन भी बिलम जही तब मैं हा एक ठन कविता या लेख तो अउ लिख सकत हौं ना? के बीच सहमति बनगे के धरती में भारत वष्ज्र्ञ के दौरा करे जाय। यमराज बोलिस अरे यार भारत तो ठी हे ये वर्ष माने तो साल होथे न? भैंसा जी कहिस महराज वर्ष के एक अर्थ भू खण्ड भी होथे। भारत वर्ष माने भारत-भूमि। यमराज फेर परस्न करिस-तोला कोन बतइस हे? भैंसा जी बोलिस एक दिन मैं हा स्कूल के पिछोत में चरत रेंहेंंव अउ पाटकर सर हा हिन्दी के पीरेउ में पढ़ावत रहिस हे तब सुने रहेंव।.... अच्छा तब तो माने ला लगही। अइच्दा अब ये बता के यात्रा बर का-का समान धरके जाय बर परही? जेखर से कोनो तकलीफ झन होवय। भैंसा जी कहिस महराज वइसे तो सबे समान धरती में मिल जथे फेर भी कुद रखना है तब तुंहर मजी मई, मैं का बोलंव? मैं तो सिरिफ दही भर ले के जाइूं काबर के भारत में दही या तो मिलय नहीं या मिलथे तेन हा दूध पावडर के बने रहिथे। दूध पावडर के दही हा थोकिन बिसरइन आथे, मोला परसंद नइ आवय। किरिस्न भगवान के जमाना का गय, दूध-दही के नहिया सुख गे। दूधवाले मन सबो दूध ला पइसा के लालाच में डेरी में बेंंच देथे, ओखर लइका मन ीाी दूध-दही बर लुलवा जथे। मोला दूध के संग मुर्रा अडबड़ मिठाथे।
स करके भारत में नरक चतुर्दसी के दिन सबो जनता तुंहर याद करथे। न तुंहर मंदिर हे, न कथा होवय न आरती तभो ले जनता अपन लंबा उमर के परार्थना तुंहर से करथे। बिसवास नइ होवत हे तब चलौ ये दरी भारत के दौरा में निकले जाय। यमराज थोकिन खुस हो के बोलिस सिरतोन काहत हस वाहन? के मोर मन रखे बर अइसन बोलत हस? भैंसा जी बोलिस हण्ड्रेड एण्ड टेन परसेण्ट सही बात ये महराज। अब तुमन ये मत पूछौ के मैं हा वो करिया भंइसा ला भैंसा जी काबर लिखत हौं। अरे भई परान लेबर जब यमराज आथे तब वोला अपन पीठ में चढ़ाके कोन हा लाथे? उही करिया भ्ंइसा हा लाथे ना? अरे भई मैं तो वो करिया भंइसा ला परसन्न करना चाहत हौं ताकि जब मोर परान हरे के बारी आवत तब वो हा थोकिन बिलम जावय। कोनो मेर थोकिन सुरता लेवय या रस्ता में खड़े होके देर तक चुरुक-चुरुक पिसाब करय या कोनो स्मार्ट भैंस ला देख े बिदक जावय अउ बारा महीने में बारा तरीके से तुझको पियार करुंगा रे..... ढिंग चिंगा.... वाले गाना ला भैंस के पाछू-पाछू रेंगत गावय अउ यमराज ला मोर पता के बजाय दूसर के पता में ले जा के भटका देवय। अरे एक दिन भी बिलम जही तब मैं हा एक ठन कविता या लेख तो अउ लिख सकत हौं ना? के बीच सहमति बनगे के धरती में भारत वष्ज्र्ञ के दौरा करे जाय। यमराज बोलिस अरे यार भारत तो ठी हे ये वर्ष माने तो साल होथे न? भैंसा जी कहिस महराज वर्ष के एक अर्थ भू खण्ड भी होथे। भारत वर्ष माने भारत-भूमि। यमराज फेर परस्न करिस-तोला कोन बतइस हे? भैंसा जी बोलिस एक दिन मैं हा स्कूल के पिछोत में चरत रेंहेंंव अउ पाटकर सर हा हिन्दी के पीरेउ में पढ़ावत रहिस हे तब सुने रहेंव।.... अच्छा तब तो माने ला लगही। अइच्दा अब ये बता के यात्रा बर का-का समान धरके जाय बर परही? जेखर से कोनो तकलीफ झन होवय। भैंसा जी कहिस महराज वइसे तो सबे समान धरती में मिल जथे फेर भी कुद रखना है तब तुंहर मजी मई, मैं का बोलंव? मैं तो सिरिफ दही भर ले के जाइूं काबर के भारत में दही या तो मिलय नहीं या मिलथे तेन हा दूध पावडर के बने रहिथे। दूध पावडर के दही हा थोकिन बिसरइन आथे, मोला परसंद नइ आवय। किरिस्न भगवान के जमाना का गय, दूध-दही के नहिया सुख गे। दूधवाले मन सबो दूध ला पइसा के लालाच में डेरी में बेंंच देथे, ओखर लइका मन ीाी दूध-दही बर लुलवा जथे। मोला दूध के संग मुर्रा अडबड़ मिठाथे।
यमराज पूछिस रम रखैं के व्हिस्की? भैंसा जी कहिस महराज ओखरो जरूरत नइये। उहां गांव-गांव में दारू खुलेआम मिल जथे। दूध नई मिलही पर दारू चोबीसों घण्टा मिल जथे। आजकल तो जेबमें कनिहा में खोंच के लोगन घर पहुंच सेवा दे बर लग गेहे। हां कुद चिल्हर पइसा जरूर रखे बर परही काबर के उहां चिल्हर अउ छोटे नोट के भारी कमी हे, तेखर सिती दुकानदार मन टोकन थम्हा देथे। यमराज फेर पूछिस एकाध अप्सरा रख लौं, मनोरंजन बर? वोला भैंस में बइठा के ले चलथन। तैं भैंसी के संग वेलेण्टाइन डे मनाबे अउ मैं अप्सरा के संग केसिनो या डान्सबार जाहूं। वो मोला सीला के जवानी... अउ मुन्न बदनाम हुई... गाना में डान्स देखाही। भैंसा जी बोलिस महराज अप्सरा के भी जरूरत नइये उहां बड़े-बड़े सहर के होटल मन में एखर मन के रैकेट चलथे। ए टू जेड ग्रुप के मिल जथे। जहां तक भैंस के बात हे तब भारत के हर सहर में पांच-पांच ठन खटाल हे। उहा एक से एक स्मार्ट भैंस हे। बेनी जइसे सींगवाले, कोस्टक जइसे सींगवाले, मच्छर अगरबत्ती जइसे सींगवाले, छोटे, मंझोले, बड़े सबो साईज के भैंस उपलब्ध हे। यमराज फेर बोलिस अरे यार टेंसन में मोर माथा बहुत पिराथे, मस्तक सूल हर पावडर रख लेथौ। भैंसा जी बोलिस महराज टेंसन मत ले। उहां के झण्डू बाम बहुत फेमस हे। इहां तक मुन्नीबाई तको हा झण्डू बाम लगा अउ पीरा गायब।
देर तक बहस करे के बाद यात्रा सुरु होगे। रस्ता में यमराज बोलिस-वाहन रस्ता कइसे कटही? हिन्दी फिलिम के कोना गाना याद होही ते सुना। भैंसा जी बोलिस हम गाना सुरु करबो तक सबके कान फट जही, बरम्हा जी हा हमन ला बेसुरा ही पेदा करे हे। मैं कुद चुटकुला सुना देथौं-परीक्षा में एक ठन परस्न आय रहिस लौह पुरुस के काम अर्थ होथे? एखर अर्थ होथे के दृढ़ विचार वाले आदमी ला लौह पुरुष कहे जाथे पर लइका लिखे रहिस जेन लोहा खरीदोि अउ लोहा बेंचथे वोला लौह पुरुष कहे जाथे। विज्ञान में एक परस्न आय राहय, रमन प्रभाव काला कहिथे? डॉ.सी.वी.रमन हा समुद्र के पानी के रंग नीला होय के एक सिद्धान्त निकाले रहिस जेला रमन प्रभाव कहे गीस। लइका किखे राहय एक रुपिया अउ दू रुपिया वाले चांउर से छ.ग. से गरीबी दूर होगे, इही रमन प्रभाव ए। गाय के निबंध में एक लइका लिखे राहय गाय हमारी माता है, हमको कुद नहीं आता है। गुरुजी लिख दीस बैल तुम्हारा बाप है, नम्बर देना पाप है अब गाय हा माता होइस तब भैंस हा बड़े दाई होगे अउ छेरी हा काकी होगे काबर के एखरो मन के दूध हमन पीािन। यमराज हा खूब ठहाका मार के हांसिस। अइसे तइसे उन भारत के सीमा में आगे। भैंसा जी पूछिस महराज भारत के कोन से राज्य लेण्ड करौं? यमराज हा सोच बिचार के कहिस यार भारत के सबो राज्य के दौरा तो कर चुके हन। नवा राज बने हे उंहे ले चल-झारखण्ड, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़। भैंसा जी बोलिस झारखण्ड अउ उत्तराखण्ड बर रिवर्स गेयर लगाय बर परही जेमा तकलीफ होही काबर के कल एक ठन भैंस हा मोर पाछू कोती ला सींग में हकन देहे। घाव में दवई लगाय हौं पर दरद अभी कम नई होय हे। कल मैं मर्डर पिच्चर देख के थोकिन बहक गे रेहेंव। अब सामने छत्तीसगढ़ हे उंहे ले चलथौं। एक्सीलेटर दबइस अउ पहुंचगे छत्तीसगढ़।
छत्तीसगढ़ में राउत मन देवारी के तैयारी में लगे राहय। छत्तीसगढ़ आते साठ यमराल ला हजामत बनवाय के सुरता आइस। एक ठन सेलून के पास रुक गे पर यमरानी के हाथ के बने कच्चा अइरसा खाय के कारन पेट में कुद गुडग़ुड होए लगिस लकर-धक सुलभ में घुसके फुलफोर्स के ताकत लगाइस तब थोकिन बने लागिस। सुलभ से निकलिस तब भैंसा जी एक ठन फरमाइस कर दीस-सीतल सेलून में मोर आगू के सफेद बाल ला डाई लगवा के करिया करवा देतेव महराज। सफेद चेंदुवा ला देख के सबो भैंसी मन मोला डोकरा होगे अइसे समझथे अउ बनत बात हा बिगड़ जथे। मोर करिया सरीर में ये सफेद चेंदुवा हा सफेद दाग कस अलकरहा लगथे। यमराज के मइनता भोगा गे। जोर से दपकारिस चुप बे, सिर से पांव तक तै करियाच करिया हस। रात के अंधियार में उही चेंदुवा ला देख के तोला खोजथौं, उहू ला करिया कर देबे तब मोला अंधरौटी आ जही भैंसा जी उदास होगे। यमराज हा चापलूसी करत बोलिस देख वाहन वो हा सफेद बाल नोहय, तोर माथा के चन्दा ए, पुन्नी के चन्दा वाला वोइसने परकासित राहन दे। पुन्न के चन्दा सबो ला इन मिलय। इहां तक संकर जी भी हा दूज के चन्दा से काम चलावत हे। तैं पुन्नी ला अमावस में काबर बदलना चाहत हस यार?
सेलून से निकल के कुद आघू बढिऩ तब राउत मन सोहई सजावत रहिन। भैसा जी ला खुस करे बर यमराज बोलिस-वाहन तोर बर ये गतहार खरीद दौं का? भैंसा जी बोलिस महराज तोर जनरल नालेज बहुत कमजोर हे। येला तो भैंसी मन पहिनथे। यमराज परस्न करिस काबर? जवाब मिलिस काबर के ये हा भैंस अउ गाय मन के मंगलसूत्र ए, अउ मंगलसूत्र औरत मन पहिनोि पुरुस मन नहीं।
आघ्ज्ञू गीस तब एक ठन टाकीज मिलिस जिहां तकदीरवाला फिलिम चलत रहिस हे। उहा अड़बड़ भीड़ देख के यमराज पूछिस इहां अतेक ट्रेफिक जमा काबर हे? भैंसा जी बममतइस के इहां पिच्चर चलत हे ये टाकीज ए। काभू पार्टी आफिस में कभी पिच्चर हॉल में टिकिट पाए बर लाईन लगाय बर पइथे। दूनों झन मनखे रूप धरके पिच्चर हॉल में घसगे। पिच्चर के फेमस सीन आय के बाद यमराज पूछिस ये कोन एक वाहन? भैंसा जी कहिस वोखर डॉयलाग नइ सुने का हम है यम, यम है हम? ये कादर खान ए जेन यमराज के रोल करत हे। ये पिच्च ला बने देख ले, यमराज ला का-का करना चाही तेन येमा बताय गेहे। पिच्च्र छुटते ही दूनों झन मतांल कोती खरीदी करे बर चल दीन। बने-बने जिनिस देखके यमराज हा यमरानी बर समान खरीदे लगिस, भैंसा जी हा अपन भैंसबाई साहब बर खरीदिस। दूनों झन देवारी के खूब मजा लीन। यमराज ला गपागप होटल के केक अड़बड़ पसंद आइस, खाइस अउ लेगे बर भी खरीदिस।
यमपुरी पहुंच के यमरानी के जन्म दिन के केक काटे गीस। भैंसा जी हा अपन पुछी ला एण्टीना कस ठाढ़ करके घोलण्ड के वोखर पांव परिस अउ पेंउंस के डबबा गिफ्ट करिस। हैप्पी बर्थ डे टू यू मैडम कहिके जुगाली कर-करके हकन के गबर-गबर खाके केके के आनन्दर ले बर धर लीस। यमराज ला थोकिन संतोस होइस के चलौ कोनो न कोना बहाना लोग मोरो पूजा करथे। ओती भैंसा जी हा अपन भैंसबाई साहब ला सोहई गिफ्ट दीस। भैंसबाई साहब एकदम सरप्राइज होगे पूछिस व्हाट इज दीस? भैंसाजी बोलस डा.........र ...लि... ग ये मंगलसूत्र ए, छत्तीसगढ़ से स्पेसली तोर बर लाय हौं। ये बेसरम के फूल ए बिना पानी डारे भी जिन्दा रहिथे, हमर बारी में लगा देबे। तोर खोपा में लाय के काम दीही। कल एला पहिन के यमरानी घर बइठे बर चल देबे, अइसन कलरफुल मंगलसूत्र तो ओखरो जघा नई ए, अउ खोपा में बेसरम फूल के गजरा लगाय बर झन भुवाबे। पंड़वा के दाई, पारा मोहल्ला के सबो भैंसी मन तोर सन्दरता ला देख के दंग रहि जही अउ जलन घलो मरही। मैं हा लइका मन बर किसम-किसम के खजानी लाय हौं, अइसे कहिके झोला से ठेठरी खुरमी, अइरसा, चंउसेला, पपची, मुर्रालाडू, भक्कालाडू, उसनाय केंवट कांदा ला उलद दीस। ये खेड़ा ए भैंसा प्रजाति बर एकदम पोष्टिक हे। बने जतन के रख।
तैं मोर कतका खियाल रखथस, आई लव यू कहिके भैंसबाई हा भैंसा जी के छाती से चिप गे। भैसा जी हा गाना गाए बर धर लीस... रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना... भूल कोई हमसे न हो जाए.... अउ एखर बार का होइस होही तेखर कल्पना तुमन कर सकथौ। सबोच बात ला मही थोर बतावत रहूं जी?
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डॉ.राजेन्द पाटकर ''स्नेहिल''
हंस निकेतन-कुसमी, व्हाया-बेरला
स्वच्छ भारत के मुनादी
स्वच्छ भारत के मुनादी २ अक्टूबर के होईस अउ 'स्वच्छ भारत' के सपना ल पूरा करे बर सब सफाई करे म जुटगें। 'जुटगें' शब्द ह सही हावय काबर के ये दिन अइसना रहिस हे के प्रधानमंत्री ले लेके एक सामान्य मनखे तक सफाई के काम करिन। 'भारत रत्न' सचिन तेंदुलकर, अनिल अम्बानी अउ सोनी सब चैनल के 'तारक मेहता' धारावाहिक मन ये अभियान म जुरगें। देश के जम्मो मनखे मन एक दिन सफाई करिन। फेर 'प्रधानमंत्री' के 'स्वच्छ भारत' के मुनादी होते रहिस अउ ये काम अभी तक चलत हावय। ऊंखर कहिना हावय के भारत अब साफ- सुथरा होना चाही। इंहा कोनो जगह कचरा दिखना नई चाही। सबके मन म ये बात आना चाही के कचर ल सही जगह डाले जाय अउ ओला सही जगह पहुंचाये जाए।
आज हर गांव म ये सफाई के सफलता दिखत हावय। अंबागढ़ चौकी ले दस किलोमीटर दूरिहा थुहाडबरी गांव म हैंडपंप, कुंआ के तीर म नहाना अउ कपड़ा धोना मना कर देय गे हावय। नहाय ले या कपड़ा, बरतन धोए ले पांच सौ रुपिया के जुर्माना रखे गे हावय। ये काम स्वच्छ पानी बर करे गे हावय। स्वच्छ जल स्रोत आज के बहुत बड़े जरूरत हावय। सत्ता परिवर्तन या फेर घर के मुखिया के बदले ले सोच अउ काम करे के तरीका बदलथे। आज उही इस्थिति भारत के हावय। सालों साल के रद्दी फाइल, आफिस मन म जमा हावय। सबले पहिली ओखर सफाई करे गीस। सरकारी दफ्तर म जमा पुराना कबाड़ हटाए जात हावय। सफाई अब हर तरफ होना चाही। साठ बछर ले सब जगह कचरा जमा होवत हावय।
गांधीजी के सपना रहिस हे 'स्वच्छ भारत' येखर बर अतेक बछर ले कोनो नई सोचिन। आज ये सपना ल पूरा करे के बेरा आगे हावय। काबर के आज चारों डाहर सिरिफ कचरा दिखथे। आज के सिक्छित समाज चारों डाहर कचरा फेंकत हावयं। घर के बाहिर कचरा, बस स्टैंड, रेल्वे स्टेशन म कचरा के संग-संग पान, तम्बाखू के पीक ले रंगे जमीन देवार दिखत रहिथे। तरिया, नदिया सब जगह गंदगी पटाय हावय। पालीथिन ले पटाय धरती जल स्रोत ल बंद करत हावय। ये पालीथिन जानवर के पेट में जाके ओखर जान लेवत हावय। ये सब गंदगी ल आज साफ करे के जरूरत हावय। येखर सीख इस्कूल ले ही मिलना चाही। आज इस्कूल म कोनो भी लइका ले काम नई कराय जा सकय।
आज ले ४५-४० बछर पहिली तक लइका मन स्वयं अपन कक्छा अउ इस्कूल ल साफ करयं। हमन स्वयं दानी इस्कूल म पढ़त राहन तब अपन कक्छा ल धोके सजावन। ये सफाई अउ सजावट बर प्रोत्साहित करे जाय। खेलकूद के समय म मैदान के गंदगी साफ करन। कई इस्कूल मन म बागवानी बर एक कालखंड देय जाय। कई जगह आज भी अपन इस्कूल के क्यारी म लगे सब्जी के उपयोग मध्यान्ह भोजन म करे जाथे। इस्कूल में ही ये सब काम के अनुभव हो जाय त बहुत अच्छा हे। सामूहिक रूप ले काम करे ले समाज म संतुलन बना के सिक्छा मिलथे। जब तक ये सफाई के ट्रेनिंग डंडा ले के नई दे जाही तब तक सिखना कठिन हावय। ये सफाई के काम १४ नवम्बर ले १९ नवम्बर तक फेर चलही। येला सफल बनाना जरूरी हावय। आज हर मनखे ल सिखना जरूरी हावय के बिस्कुट, आइसक्रीम के खाली डब्बा ल डस्टबिन में ही डालना हे। आज रद्दा ले मल-मूत्र हटना जरूरी हावय। चैनल जेखर नांव रखे रहिस हे 'शू शू कुमार' ये हर जगह मिल जाथे। कई झन ल पकड़ के पूछे गीस तब पता चलिस के पेसाब करे के जगह नइए, हावय तिंहा गंदगी हावय। असल म सब ल लइका सही सिखोय के जरूरत हावय।
हमन बारह बछर पहिली सिक्किम घूमे बर गे राहन। मोर बेटा छोटे रहिस हे। ओला 'शू शू' लगिस तब मैं ह रद्दा किनारे आर्कीड जंगल रहिस हे उंहा लेगेंव। पीछू ले अवाज आइस , 'ये ये', लहुट के देखेंव त ओ मनखे मोला गुरेर के वापस आए के इसारा करिस। आए के बाद बतइस के थोरिक दूरिहा म 'पेसाब घर' हावय। 'बाहर पेसाब नहीं करना।' बाद म पता चलिस के सिक्किम म ये काम बर जुर्माना होथे। तभे तो सिक्किम साफ-सुथरा हावय। आज सफाई बर अइसने जागृति जरूरी हावय। एक-दूसर ऊपर नजर रखे जाय। मोदी, अंबानी अउ सचिन के बहारे ले कुछु नई होवय, एक दिन सब डब्बा म चल दिही। येला अपन जिम्मेदारी समझ के करे जाय। तभे घर, दफ्तर, पारा-मोहल्ला, गांव, सहर अउ देस साफ होही। 'स्वच्छ भारत' के सपना पूरा होही। यही ह गांधीजी बर सबले बड़े श्रद्धांजलि आय। जुरव, स्वच्छ भारत बर जुरव।
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-सुधा वर्मा
सरद पुन्नी के चंदा
सरद पुन्नी के दिन पहिली रयपुर म कवि सम्मेलन होवय। स्टेसन रोड डाहर जब ये कवि सम्मेलन होवय तब दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन येला सुने बर हावय। पुन्नी के दिन कवि हिरदय उफने ले लग जथे। सही बात आय। जब चांद ह धरती के तीर म आ जथे अउ धरती ल अपन खूबसूरती देखाथे। चंदा ह धरती के खूबसूरती ल देखथे।
सही तो आय बारिस खतम हो जते। धरती के पियास बुझा जथे अउ हरियर धरती अपन हरियाली ल अइसे देखाथे जइसे हरियर चादर ओढ़े हावय। हल्का-हल्का सीत परे ले धर लेथे। ये सीत के बूद पहिली तो पाना मन म दिखय फेर अब दूसित पर्यावरन के कारन नई दिखय। गांव सहर म पोतई-लिपई पूरा हो जथे या फेर पुन्नी के अंजोर म आखिरी काम चलत रहिथे। घर-घर के अंगना द्वार साफ-सुथरा हो जथे। गोबर म लिपाय सुन्ना अंगना म चउंक पूरा जाथे। सरद के सुवागत बर घर के अंगना द्वार म चउंक पूरे जाथे। सरद रितु म रास धर के अंगना म आथे। ये रास के अगोरा म घर द्वार सब चकचक ले दांत निकाल के हांसत हावय अइसे लागथे।
दसेरा म नवा खाय जाथे, सरद पुन्नी ले देवारी तक धान पाके ले लग जाथे। देव उठनी ले धआन के कटई सुरू हो जाथे। कई जगह जल्दी धान आ जथे। अइसे लागथे के ये सरद पुन्नी के चंदा हमर ये तइयारी ल देखे बर आ जथे। ये चंदा अमरित बरसाथे अइसे कहे जाथे। ये दिन सर्दी, खआँसी, अस्थमा के दवाई घलो देय जाथे। ये पेड़ के छाल आय जेन ल एक खास दिन निकाले जाथे, ओखर बाद ओखर चूरन तइयार करे जाथे। ये चूरन ल फोकट म बांटे जाथे। ये चूरन ल खीर के संग खाए जाथे। सरद पुन्नी के दिन ये दवई के संग म कई जगह खीर घलो देथें।
कई जगह खुल्ला जगह म खीर बनाये जाथे। अइसे समझे जाथे के सात लेबारह बजे तक चंदा ले अमृत बरसथे। ये अमृत खुल्ला म बनत खीर म समावत रहिथे। ये खीर परसाद के रूप म अमृत सरिख बांटे जाथे। काबर के येला अमृत ही समझे जाथे। घर-घर खीर बनाये जाथे। खीर ल घर के अंगना म, छत म रखे जाथे। ओखर बाद जब आधा रात होथे तब येला खाए जाथे। अस्थमा वाले मन घर म घलो खीर व दवई डार के खाथें। खाये के बाद पसीना ऊपर परथे तब दवाई जादा असर करथे।
ये चंदा सबके धियान अपन डाहर खिंचथे। कवि हिदय येखर ऊपर कई-कई ठन कविता लिखथे। साथ ही ये चंदा के नीचे बइठ के रंग-रंग के कविता सुनाथें घलो। फेर कवि हिरदय अब चंदा ऊप कमती रिझथे। बहुमंजिली इमारत, घना बसे नगर के बीच चंदा अब दिखय नहीं। पर्यावरन अतेक दूसित होगे हावय के चंदैनी तो दिखय नहीं; चंदा घलो धुंधला जाथे। ओखर खूबसूरती अब कई जगह दिखय नहीं। बांचे समय म आज लोगन अपन समय ल दूरदरसन देखे म गंवा देथे। असो सब झन सरदपुन्नी के चंदा ल देखव। प्रकृति के सुघ्घर खूबसूरती ल देखे बर भुलाहू झन।
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सुधा वर्मा
भजन बिना मनवा कइसे तरोगे
नाचा हमर छत्तीसगढ़ के सुघ्घर लोकनाट्य परम्परा आय। साहित्यिक दृस्टिकोन से नाचा एक दृश्य-श्रव्य काव्य दूनो होथे। नाचा के गम्मत के कथानक कोन्हों नामी लेखक के लेखन रचना नइ राहय बल्कि ठेठ देहात के ठेठ देहाती कलाकार के तत्कालिन समाज, अउ देस-दुनिया के व्यवस्था से संबंधित मन के उपज होथे। पुरुस पात्र ले अभिनीत नाचा के संवाद ह कलाकार मन के सोंच-विचार अउ साधारन गोठ बात ले तइयार होथे। ठेठ देहाती बोली सैली म नाचा सामाजिक उत्थान के उद्देश्य ले भरे ग्राम्य वातावरन मं छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक विरासत ल संबल करे म बड़ा महत्वपूर्ण भूमिका निभाथय।
जब हमर नाचा के गोठ चलथय त ठउका सुरता आथय जोक्कड़। जोक्कर। याने गम्मतिहा। जोकर मेल कैरेक्टर याने पुरुस पात्र होथय। वर्गाकार मंच के हिस्सा आय। वाद्य कलाकार के टिमिक-टामक करे ले, सुर-लय धरे ले दरसक सकलाथें। तीन झन परी मन के आरी-पारी नचई अउ दू-तीन ठन गीत प्रस्तुति ले नाचा सुरु होथे। परी घलो पुरुस कलाकार होथे। वाद्य पक्छ के पेटी मास्टर पेटी बजावत गायन करत दर्सक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथय।
गंहुरावत रात मं सुघ्घर सांत माहौल में निर्मित होथे। वाद्य कलाकार मन एक विसेस सैली म वादन करथंय। ताहन दू झन कलाकार मन के मंच मे आगमन होथे। इही मन जोक्कर माने जोकर। जोकर के अक्छरश: अर्थ होथे जोक यानी हंसी-मजाक करइया। जोकर अंग्रेजी के हिन्दी पयार्य आय। ये जोकर मन के आते साथ सुंदर ढंग ले बाजा के सुर-ताल सन ठुमकथें, नाचथें। दूनोझन के पहिचान इंखर बिसेस ढंग के वेसभूसा अउ रूप सज्जा ले होथे। एक झन ह बिलकुल सामान्य पहनावा म अपन सादगी अउ एक सांत, समझदार व्यक्ति के चरित के रूप म रहिथे अउ दूसर ह सामान्य ले हट के एक अलग ही ढंग ले वेसभूसा अउ मेकअप म दर्सकवृंद के ध्यानाकर्सित करथें। छिंटही, गहरारंग के कुरता-पैंट, पयजामा, एक अलग विचित्र असन टोपी, आन-आन रंग के कुरता के बांह, झलंग-झंलग पैंट ह येखर भूमिका ल सार्थक करथे। येखर हाथ में गोट मोटहा गांठ के लउठी या कोकड़ी गोटानी ह हास्य स्फुटित करथे। साधारन पहनावा के जोकर ल मुख्य अउ असामान्य वेसभूसा पहनावा के सहयोगी जोकर होथे। गांव के सामान्य व्यक्ति के रूप मं प्रस्तुत होथे दूनो जोकर। घर परिवार के कर्णधार चरित्र होथे। समाज के केन्द्र बिन्दु होथे। गियान, सिक्छा के गोठ ह लोकभासा, गीत संगीत उद्देश्यात्मक गोठ बात ले हास्य गंभीर ढंग ले जनसामान्य के समक्छ प्रस्तुत होथे। नाचा के सफल प्रस्तुति के उद्देश्य लिए ये दूनो कलाकार वाद्य यंत्र के सुर-ताल राग म राग मिलाक रे हांथ जोड़े सुमरनी गावत प्रस्तुत होथे।
अ आ आ कि....
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख गवरी गनेस।
पांच देव मिल रक्छा करे, ब्रह्मा, बिष्णु, महेस।।
बुद्धिहीन तनु जान के, सुमिरंव पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहू मोहि, हरेहु कलेस विकार।।
सरसती ने सर दिया, गुरु ने दिया गियान।
माता-पिता ने रूप दिया, जन्म दिया भगवान।।
राम नाम ललाम, सबका मंगल धाम।
बहते हुए सन्तों को, कोटि-कोटि प्रनाम।।
मन मरे ममता मरे, मर गए सरीर।
आसा तिसना न मरे, कह गए दास कबीर।।
गंगा बड़े गोदावरी, अउ तीरथ बड़े धाम।
सब ले बड़े अजोध्या, जहां लिये अवतार राम।।
जल मं बसे कुमुदनी, चंदा बसे अगास।
मंय तो धरती मं रइहंव, पर धियान आपके पास।।
पढ़े-लिखे नइ हन भइया, निच्चट अड़हा आवन।
भूले चुके ल माफी देहू, तुंहरे लइका आवन।।
दूनो जोकर पूर्ण ग्रामीन व्यक्ति के किरदार मं होथें। भासा घला ठेठ छत्तीसगढ़ी होथय। अंचल के मुताबिक, स्थानीय सब्द के उच्चारन भले अलग हो सकथय। दूनो के संवाद माने गोठबात, घर-परिवार, खेती-किसानी, रोजी-मजदूरी अउ समै-मौसम के मुताबिक काम-काज के गोठके रूप मं सुरु होथे। दूनोझन एक-दूसर ल रिस्ता-नता सन नांव ले संबोधन करिक-करा होथें। जम्मो दरसक समूह ल मुंड़ नवावत गंगा के संग्या देवत सुघर निक आकर्सन सैली म प्रस्तुति सुरु करथंय। एकबानगी प्रस्तुत है।
प्रमुख जोकर- 'राम-राम गिरधारी भाई, अबड़ दिन मं दिखेस। काहां आथस, कहां जाथस, समझ नइ आय। घात दिन होगय मुलाखात होय।'
सहयोगी जोकर- 'हव मोर भइया, अब्बड़ दिन म होइस मुलाखात। का करिबे गा बड़े भइया, कमाय खाय बर महुं हा चांदा बेलसा कोनी चल दे हंव। ये तिहार बर आए हंव भइया।'
'हव भाई, कमाय-खाय बर, ये जिनगी चलाय बर कांहयो हो जाए ल पड़थे गिरधारी, पर अब्बड़ मया करेस ये छइयां-भुइंया के अउ तैं ये बछर भर के तिहार ल मनाय बर गांव मं आयेस।'
प्रमुख जोकर के संवाद म व्यवहार कुशलता प्रेम, धैर्य, संयम, सहजता के भाव ह दरसक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथे त गोठ-गोठ मं दूसर जोकर के ऊटपटांग अउ चुटीला गोठ ले दरसक समूह मं हास्यभाव पसर जाथे। मुस्कई अउ ठहाका छा जाथे।
'बहुते दिन मं भेंट होइस, त चल भगवान के भजन-कीर्तन करथन। ये जिनगी के कोनो ठिकाना नइ हे। ये भवसागर ले तरना हे त हरि नाम बहुत जरूरी हे भाई गिरधारी।'
'हव, मोर बड़े भइया।'
'त ले सुना...।'
'सुंघा! हाव भइया तंय सुंघा कथस ते मंय जरूर सुंघाहूं। महूं घोजते रहेंव के कोनों सुंघइया...। मोरो ल कोनो हर सुंघतीस कहिके।'
'सुंघइया नहीं भाई, सुनइया गा...।'
'हाव भइया, महूं काहथंव सुंघइया...। जरूर सुंघाहूं, अउ तोला सुंघे ला पड़ही, तभे महूं ल बने लाग ही, मोरो जी जुड़ाही।'
'तैं सुंघाहूं कथस, काला सुंघा बे मोर भाई।'
'डेरी गोड़ के पन ही ला...।'
'अपन डेरी गोड़ के पन ही ल। काबर जी?'
'अभी आवत खानी खआतू गुदाम करा सुन्हेर दाउ ह अपन बंड़वा बिलवा कुकुर ल घुमावत रिहिस। वो कुकुर हा हाग दीस। खोचका के पानी ले बांच हूं कहिके कूद परेंव भइया। का करिबे वो बंड़वा बिलवा के मोर डेरी गोड़ मं मोर डेरी गोड़ ह माढग़े। वो ह पनही मं चपका गे। मंय नइ सुंघे हंव। कोनो तोर असन भइया ल जेन ल जिनगी के मोर ले जादा अनुभव हे, बताथिस की कतिक बस्सात हे।'
'वा रे, परलोखिया, मइनखे राहे चाहे कुकुर के बस्साय के जिनीस नइ बस्साही।'
'न हीं, मंय ये सोंचत रहेंव कि, दाउ घर के कुकुर ह बिहनिया दूध सन डबल रोटी, पारले जी असन ओखर नास्ता होथे, मंझनिया खाना में अस्सी रुपया किला के राहेर दार एचएमटी चाउर, आलू, सेम्ही, फूल गोभी के साग अउ रतिहा घला पुस्टई जेवन जेथय। बेरा-बेरा म किसिम-किसिम के जिनीस दबाथय। मोला लागथय के दाउ के कुकुर दाउखाना खाथे, दाऊ हागे ह नइ बस्सात होही।'
'हत रे बइहा, अल्करहा गोठियाथस रे! चल ये सब ला छोड़। अइसन बिन रंग-ढंग के नी गोठियाय गा। ले एकाठन भजन-वजन सुना, समय कटही।'
'त सुनबेच गा...।'
'हाव भाई...।'
'घर निकलती तोर ददा मरे, जियते जियत मरगे तोर भाई।
संग चलत तोर बाई बिछुडग़े, ये जम्मो ल बिगाड़े तोर दाई।।'
'ये कोन जगा, अउ कोन समै के बात ये भइया। तंय कइसे अजीब सुनाथस। ददा मरे, जियते जियत भाई मरगे, संगे चलत बाई बिछुडग़े, ये सबो ल महतारी ह बिगाड़े कथस। का बात ये गा।'
'मोर बड़े भइया ये उही समै के बात ए जेन समै भगवान राम ल चौदह बछर के बनवास होइस। बेटा राम निकल ते राजा दसरथ प्रान तियाग दिस। बड़े भाई के बन जाये ले भरत भाई के जीना ह मरना होगे। लछमन घला इही हाल। जंगल में घूमत-भटकत माता सीता के हरन होगे। ये सबो के कारन आय रानी माता केकई।'
'वा भाई गिरधारी, वाजिब बात बताएस गा।'
'त तंय येसने समझथस जी! महूं पढ़े हंव कोदो दे के पढ़े-लिखे हंव। पांचवीं ल पांच घांव पढ़े हंव, जे ला सब एके घांव पढ़थे। मोला जादा अनुभव हे एके कक्छा के।'
'अरे वा भइया, बड़ पढ़ेहस जी। ले एकाधठन अउ सुना डार।'
'हावजी, अ...आ...आ...।'
'बुढ़वा डारे टमर के, जवान डारे सट ले।
लइका डारे अइंते-तंइते, वोखर दाई मारे फट ले।'
'अरे भइया, तंय अइंते-तइंते झन गोठिया गा। मार डार ही ये गब्दी गांव के मन हा।'
'कोनो नइ मारे भइया। मैं कोनो गलत बात नइ काहत हंव तें नइ जानस ते नइ जानस। मैं तो जानथंव।'
'ले बता... कइसन बात आय?'
'अरे पनही ताय गा। सियनहा टमर-टमर के पहिरथे। जवन हो सट ले पहिरथे अउ लइका ह अइंते-तइंते याने डेरी के ला जेवनी अउ जेवनी के ला डेरी, त महतारी ह फट ले मारथे अउ बने पहिराथे।'
'वा भइया गिरधारी। बड़े-बड़े गोठ गोठियाथस गा।'
'त गा... ले चल तंय सुना...।'
'हाव भई। भइया गिरधारी ये मनुस तन ह अड़बड़ मुस्किल में मिले हे। हम ला ये भव सागर ले तरना हे, पार होना हे। हमर आगू म बइठे दाई-माई ददा-भइया दे चार सियान ह गंगा ये गा।'
'ये मन गंगा ए...?'
'हव भाई, ये मन चार गंगा ये...।'
'वो दे तो हे गा, वो बीड़ी पियत हे तेन हर तो रामलाल के ददा दसरू, गहिरा आय।'
'वोइसन बात नोहे गिरधारी। गंगा माने चार बड़े सियान जेन ल जिनगी के जादा अनुभव होथे। जेखर सियानी गोठ ले हम छओटे मन ल सीख मिलथय। ऊंखरे असीस हमन ला पुरथय। हमर जिनगी सुधरथे। त हमर बर ये गंगा ये गा। चल येला मुंड़ नवाथन। भजन-कीरतन करथन।'
'अ...आ... अजी... अ... आ...'
'कइसे तरोगे रे मनवा कइसे तरोगे
भजन बिना मनवा कइसे तरोगे...
चौरासी योनि ले भटक के पायेस ये तन ला
प्रभु चरन म लगाय रहा ये मन ला
यहा भवसागर गहरी नंदिया जी
थाह बिना डूब मरोगे रे मनवा कइसे...।'
नाचत-ठुमकत, आलाप मारत, दूनो जोकर के गोड़ के घुंघरू के धुन, तबला-ढोलक के थाप, पेटी-बेंजो के स्वर, मंजीरा के लय सांत गंहुरावत रात मं हमर देहाती लोक परंपरा के दरसन कराथे।अमिट-अमूर्त सांस्कृतिक झलक देखे ला मिलथे। दूनो अपन गंभीर व हास-चुटीली संवाद, त्वरित सुवाल-जुवाप अउ गीत-संगीत के माध्यम ले समाज म फैले अंधविश्वास, रूढि़वाद, दूसित नियाव प्रणाली, सामंतवाद म कुठाराघात करथंय। वोखर दुस्परिणाम ल रखत वोखर निदान घला सुझाथें। याने नाचा हमर अइसन सामाजिक आइना आय। जेमा हमर गांव-देहात के तस्वीर प्रतिबिंबित होथे।
दूनो जोकर आधा-पौन घंटा तक संवाद अउ गीत-संगीत ले नाचा के प्रथम दृस्य ल सारथक करे के उदिम करथें। नाचा ठउर म पूर्णरूपेन ग्राम्य वातावरण तइयार होथय। हालांकि उहां मंच म कोनो देहाती निसि देखे ल नइ मिलय। दूनो झन एकबार फेर नत्ता सोरियावत एक-दूसर के नांव धरत नाचा के कथानक याने गम्मत प्रस्तुति के मुड़ी धरथंय। जेखर बर एक महिला चरित्र के जरूरत पड़थे। त मुंड मं फूलकंसिया लोटा बोहे माईलोगन (महिलापात्र) जेन ल 'जनाना' कहे जाथे। नाचा पार्टी के अनुभवी कलाकार जोन ह औरत के भूमिका करत रइथे, जनाना बनथय। राग लमियावत मंच म आथय।
अइ हो... हो... हो...
इंखर घर मं कइसे के रहियों या
इंखर घर म कइसे के रहियों...
कमा-कमा के जांगर टूटगे
नइ मिलिस सुख दाई
करू करेला जोड़ी के बचन
नइ मिलिस मीठ बोली भाई
सास ननंद करथे मोर निकारा
इंखर घर...।
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टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'
जब हमर नाचा के गोठ चलथय त ठउका सुरता आथय जोक्कड़। जोक्कर। याने गम्मतिहा। जोकर मेल कैरेक्टर याने पुरुस पात्र होथय। वर्गाकार मंच के हिस्सा आय। वाद्य कलाकार के टिमिक-टामक करे ले, सुर-लय धरे ले दरसक सकलाथें। तीन झन परी मन के आरी-पारी नचई अउ दू-तीन ठन गीत प्रस्तुति ले नाचा सुरु होथे। परी घलो पुरुस कलाकार होथे। वाद्य पक्छ के पेटी मास्टर पेटी बजावत गायन करत दर्सक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथय।
गंहुरावत रात मं सुघ्घर सांत माहौल में निर्मित होथे। वाद्य कलाकार मन एक विसेस सैली म वादन करथंय। ताहन दू झन कलाकार मन के मंच मे आगमन होथे। इही मन जोक्कर माने जोकर। जोकर के अक्छरश: अर्थ होथे जोक यानी हंसी-मजाक करइया। जोकर अंग्रेजी के हिन्दी पयार्य आय। ये जोकर मन के आते साथ सुंदर ढंग ले बाजा के सुर-ताल सन ठुमकथें, नाचथें। दूनोझन के पहिचान इंखर बिसेस ढंग के वेसभूसा अउ रूप सज्जा ले होथे। एक झन ह बिलकुल सामान्य पहनावा म अपन सादगी अउ एक सांत, समझदार व्यक्ति के चरित के रूप म रहिथे अउ दूसर ह सामान्य ले हट के एक अलग ही ढंग ले वेसभूसा अउ मेकअप म दर्सकवृंद के ध्यानाकर्सित करथें। छिंटही, गहरारंग के कुरता-पैंट, पयजामा, एक अलग विचित्र असन टोपी, आन-आन रंग के कुरता के बांह, झलंग-झंलग पैंट ह येखर भूमिका ल सार्थक करथे। येखर हाथ में गोट मोटहा गांठ के लउठी या कोकड़ी गोटानी ह हास्य स्फुटित करथे। साधारन पहनावा के जोकर ल मुख्य अउ असामान्य वेसभूसा पहनावा के सहयोगी जोकर होथे। गांव के सामान्य व्यक्ति के रूप मं प्रस्तुत होथे दूनो जोकर। घर परिवार के कर्णधार चरित्र होथे। समाज के केन्द्र बिन्दु होथे। गियान, सिक्छा के गोठ ह लोकभासा, गीत संगीत उद्देश्यात्मक गोठ बात ले हास्य गंभीर ढंग ले जनसामान्य के समक्छ प्रस्तुत होथे। नाचा के सफल प्रस्तुति के उद्देश्य लिए ये दूनो कलाकार वाद्य यंत्र के सुर-ताल राग म राग मिलाक रे हांथ जोड़े सुमरनी गावत प्रस्तुत होथे।
अ आ आ कि....
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख गवरी गनेस।
पांच देव मिल रक्छा करे, ब्रह्मा, बिष्णु, महेस।।
बुद्धिहीन तनु जान के, सुमिरंव पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहू मोहि, हरेहु कलेस विकार।।
सरसती ने सर दिया, गुरु ने दिया गियान।
माता-पिता ने रूप दिया, जन्म दिया भगवान।।
राम नाम ललाम, सबका मंगल धाम।
बहते हुए सन्तों को, कोटि-कोटि प्रनाम।।
मन मरे ममता मरे, मर गए सरीर।
आसा तिसना न मरे, कह गए दास कबीर।।
गंगा बड़े गोदावरी, अउ तीरथ बड़े धाम।
सब ले बड़े अजोध्या, जहां लिये अवतार राम।।
जल मं बसे कुमुदनी, चंदा बसे अगास।
मंय तो धरती मं रइहंव, पर धियान आपके पास।।
पढ़े-लिखे नइ हन भइया, निच्चट अड़हा आवन।
भूले चुके ल माफी देहू, तुंहरे लइका आवन।।
दूनो जोकर पूर्ण ग्रामीन व्यक्ति के किरदार मं होथें। भासा घला ठेठ छत्तीसगढ़ी होथय। अंचल के मुताबिक, स्थानीय सब्द के उच्चारन भले अलग हो सकथय। दूनो के संवाद माने गोठबात, घर-परिवार, खेती-किसानी, रोजी-मजदूरी अउ समै-मौसम के मुताबिक काम-काज के गोठके रूप मं सुरु होथे। दूनोझन एक-दूसर ल रिस्ता-नता सन नांव ले संबोधन करिक-करा होथें। जम्मो दरसक समूह ल मुंड़ नवावत गंगा के संग्या देवत सुघर निक आकर्सन सैली म प्रस्तुति सुरु करथंय। एकबानगी प्रस्तुत है।
प्रमुख जोकर- 'राम-राम गिरधारी भाई, अबड़ दिन मं दिखेस। काहां आथस, कहां जाथस, समझ नइ आय। घात दिन होगय मुलाखात होय।'
सहयोगी जोकर- 'हव मोर भइया, अब्बड़ दिन म होइस मुलाखात। का करिबे गा बड़े भइया, कमाय खाय बर महुं हा चांदा बेलसा कोनी चल दे हंव। ये तिहार बर आए हंव भइया।'
'हव भाई, कमाय-खाय बर, ये जिनगी चलाय बर कांहयो हो जाए ल पड़थे गिरधारी, पर अब्बड़ मया करेस ये छइयां-भुइंया के अउ तैं ये बछर भर के तिहार ल मनाय बर गांव मं आयेस।'
प्रमुख जोकर के संवाद म व्यवहार कुशलता प्रेम, धैर्य, संयम, सहजता के भाव ह दरसक दीर्घा ल ध्यानाकर्सित करथे त गोठ-गोठ मं दूसर जोकर के ऊटपटांग अउ चुटीला गोठ ले दरसक समूह मं हास्यभाव पसर जाथे। मुस्कई अउ ठहाका छा जाथे।
'बहुते दिन मं भेंट होइस, त चल भगवान के भजन-कीर्तन करथन। ये जिनगी के कोनो ठिकाना नइ हे। ये भवसागर ले तरना हे त हरि नाम बहुत जरूरी हे भाई गिरधारी।'
'हव, मोर बड़े भइया।'
'त ले सुना...।'
'सुंघा! हाव भइया तंय सुंघा कथस ते मंय जरूर सुंघाहूं। महूं घोजते रहेंव के कोनों सुंघइया...। मोरो ल कोनो हर सुंघतीस कहिके।'
'सुंघइया नहीं भाई, सुनइया गा...।'
'हाव भइया, महूं काहथंव सुंघइया...। जरूर सुंघाहूं, अउ तोला सुंघे ला पड़ही, तभे महूं ल बने लाग ही, मोरो जी जुड़ाही।'
'तैं सुंघाहूं कथस, काला सुंघा बे मोर भाई।'
'डेरी गोड़ के पन ही ला...।'
'अपन डेरी गोड़ के पन ही ल। काबर जी?'
'अभी आवत खानी खआतू गुदाम करा सुन्हेर दाउ ह अपन बंड़वा बिलवा कुकुर ल घुमावत रिहिस। वो कुकुर हा हाग दीस। खोचका के पानी ले बांच हूं कहिके कूद परेंव भइया। का करिबे वो बंड़वा बिलवा के मोर डेरी गोड़ मं मोर डेरी गोड़ ह माढग़े। वो ह पनही मं चपका गे। मंय नइ सुंघे हंव। कोनो तोर असन भइया ल जेन ल जिनगी के मोर ले जादा अनुभव हे, बताथिस की कतिक बस्सात हे।'
'वा रे, परलोखिया, मइनखे राहे चाहे कुकुर के बस्साय के जिनीस नइ बस्साही।'
'न हीं, मंय ये सोंचत रहेंव कि, दाउ घर के कुकुर ह बिहनिया दूध सन डबल रोटी, पारले जी असन ओखर नास्ता होथे, मंझनिया खाना में अस्सी रुपया किला के राहेर दार एचएमटी चाउर, आलू, सेम्ही, फूल गोभी के साग अउ रतिहा घला पुस्टई जेवन जेथय। बेरा-बेरा म किसिम-किसिम के जिनीस दबाथय। मोला लागथय के दाउ के कुकुर दाउखाना खाथे, दाऊ हागे ह नइ बस्सात होही।'
'हत रे बइहा, अल्करहा गोठियाथस रे! चल ये सब ला छोड़। अइसन बिन रंग-ढंग के नी गोठियाय गा। ले एकाठन भजन-वजन सुना, समय कटही।'
'त सुनबेच गा...।'
'हाव भाई...।'
'घर निकलती तोर ददा मरे, जियते जियत मरगे तोर भाई।
संग चलत तोर बाई बिछुडग़े, ये जम्मो ल बिगाड़े तोर दाई।।'
'ये कोन जगा, अउ कोन समै के बात ये भइया। तंय कइसे अजीब सुनाथस। ददा मरे, जियते जियत भाई मरगे, संगे चलत बाई बिछुडग़े, ये सबो ल महतारी ह बिगाड़े कथस। का बात ये गा।'
'मोर बड़े भइया ये उही समै के बात ए जेन समै भगवान राम ल चौदह बछर के बनवास होइस। बेटा राम निकल ते राजा दसरथ प्रान तियाग दिस। बड़े भाई के बन जाये ले भरत भाई के जीना ह मरना होगे। लछमन घला इही हाल। जंगल में घूमत-भटकत माता सीता के हरन होगे। ये सबो के कारन आय रानी माता केकई।'
'वा भाई गिरधारी, वाजिब बात बताएस गा।'
'त तंय येसने समझथस जी! महूं पढ़े हंव कोदो दे के पढ़े-लिखे हंव। पांचवीं ल पांच घांव पढ़े हंव, जे ला सब एके घांव पढ़थे। मोला जादा अनुभव हे एके कक्छा के।'
'अरे वा भइया, बड़ पढ़ेहस जी। ले एकाधठन अउ सुना डार।'
'हावजी, अ...आ...आ...।'
'बुढ़वा डारे टमर के, जवान डारे सट ले।
लइका डारे अइंते-तंइते, वोखर दाई मारे फट ले।'
'अरे भइया, तंय अइंते-तइंते झन गोठिया गा। मार डार ही ये गब्दी गांव के मन हा।'
'कोनो नइ मारे भइया। मैं कोनो गलत बात नइ काहत हंव तें नइ जानस ते नइ जानस। मैं तो जानथंव।'
'ले बता... कइसन बात आय?'
'अरे पनही ताय गा। सियनहा टमर-टमर के पहिरथे। जवन हो सट ले पहिरथे अउ लइका ह अइंते-तइंते याने डेरी के ला जेवनी अउ जेवनी के ला डेरी, त महतारी ह फट ले मारथे अउ बने पहिराथे।'
'वा भइया गिरधारी। बड़े-बड़े गोठ गोठियाथस गा।'
'त गा... ले चल तंय सुना...।'
'हाव भई। भइया गिरधारी ये मनुस तन ह अड़बड़ मुस्किल में मिले हे। हम ला ये भव सागर ले तरना हे, पार होना हे। हमर आगू म बइठे दाई-माई ददा-भइया दे चार सियान ह गंगा ये गा।'
'ये मन गंगा ए...?'
'हव भाई, ये मन चार गंगा ये...।'
'वो दे तो हे गा, वो बीड़ी पियत हे तेन हर तो रामलाल के ददा दसरू, गहिरा आय।'
'वोइसन बात नोहे गिरधारी। गंगा माने चार बड़े सियान जेन ल जिनगी के जादा अनुभव होथे। जेखर सियानी गोठ ले हम छओटे मन ल सीख मिलथय। ऊंखरे असीस हमन ला पुरथय। हमर जिनगी सुधरथे। त हमर बर ये गंगा ये गा। चल येला मुंड़ नवाथन। भजन-कीरतन करथन।'
'अ...आ... अजी... अ... आ...'
'कइसे तरोगे रे मनवा कइसे तरोगे
भजन बिना मनवा कइसे तरोगे...
चौरासी योनि ले भटक के पायेस ये तन ला
प्रभु चरन म लगाय रहा ये मन ला
यहा भवसागर गहरी नंदिया जी
थाह बिना डूब मरोगे रे मनवा कइसे...।'
नाचत-ठुमकत, आलाप मारत, दूनो जोकर के गोड़ के घुंघरू के धुन, तबला-ढोलक के थाप, पेटी-बेंजो के स्वर, मंजीरा के लय सांत गंहुरावत रात मं हमर देहाती लोक परंपरा के दरसन कराथे।अमिट-अमूर्त सांस्कृतिक झलक देखे ला मिलथे। दूनो अपन गंभीर व हास-चुटीली संवाद, त्वरित सुवाल-जुवाप अउ गीत-संगीत के माध्यम ले समाज म फैले अंधविश्वास, रूढि़वाद, दूसित नियाव प्रणाली, सामंतवाद म कुठाराघात करथंय। वोखर दुस्परिणाम ल रखत वोखर निदान घला सुझाथें। याने नाचा हमर अइसन सामाजिक आइना आय। जेमा हमर गांव-देहात के तस्वीर प्रतिबिंबित होथे।
दूनो जोकर आधा-पौन घंटा तक संवाद अउ गीत-संगीत ले नाचा के प्रथम दृस्य ल सारथक करे के उदिम करथें। नाचा ठउर म पूर्णरूपेन ग्राम्य वातावरण तइयार होथय। हालांकि उहां मंच म कोनो देहाती निसि देखे ल नइ मिलय। दूनो झन एकबार फेर नत्ता सोरियावत एक-दूसर के नांव धरत नाचा के कथानक याने गम्मत प्रस्तुति के मुड़ी धरथंय। जेखर बर एक महिला चरित्र के जरूरत पड़थे। त मुंड मं फूलकंसिया लोटा बोहे माईलोगन (महिलापात्र) जेन ल 'जनाना' कहे जाथे। नाचा पार्टी के अनुभवी कलाकार जोन ह औरत के भूमिका करत रइथे, जनाना बनथय। राग लमियावत मंच म आथय।
अइ हो... हो... हो...
इंखर घर मं कइसे के रहियों या
इंखर घर म कइसे के रहियों...
कमा-कमा के जांगर टूटगे
नइ मिलिस सुख दाई
करू करेला जोड़ी के बचन
नइ मिलिस मीठ बोली भाई
सास ननंद करथे मोर निकारा
इंखर घर...।
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टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'
बुधवार, 17 दिसंबर 2014
मंगलवार, 16 दिसंबर 2014
सोमवार, 15 दिसंबर 2014
नहीं पहुंचा हो आधार कार्ड या गुम हो जाए एनरोलमेंट स्लिप, तो इस तरह करें टेंशन दूर
सरकार ने आधार कार्ड को गैस सब्सिडी सीधे अपने बैंक अकाउंट में पाने के लिए जरूरी कर दिया है। ये नियम जनवरी से लागू होगा। ऐसे में यदि आपका आधार नहीं बना है तो जल्दी ही इसे बनवा लें। यदि आपने अपने आधार कार्ड के लिए आवेदन किया है और कार्ड घर नहीं पहुंचा या फिर एनरोलमेंट स्लिप ही गुम हो गई हो तो परेशान न हों। आप ई-नंबर डाउनलोड करके कार्ड और नंबर ले सकते हैं। इसके लिए आप अपने रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर और ई-मेल आईडी के जरिए नेट से आपना ई-आधार बना सकते हैं। साथ ही एनरोलमेंट नंबर भी डाउनलोड कर सकते हैं।
आधार कार्ड बनाने के पहले एनरोलमेंट प्रक्रिया अपनाई जाती है। सेंटर पर आधार कार्ड बनाने के लिए दर्ज होने वाली जानकारी के बाद जो पर्ची दी जाती है उसे एनरोलमेंट पर्ची कहा जाता है।
जिनके आधार कार्ड बन गए हैं वो आधार नंबर से और जिनके बनकर नहीं आए हैं वे एनरोलमेंट (ईआईडी) पर्ची के नंबर से डुप्लीकेट कार्ड निकलवा सकते हैं।
यूआईडीएआई की वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट यूआईडीएआई डॉट जीओवी डॉट इन http://www.uidai.gov.in/ के मुख्य पेज पर जाकर आधार कार्ड के मोनो के नीचे सिलेक्ट का ऑप्शन आएगा। इस पर क्लिक करते ही कई ऑप्शन खुलेंगे। इनमें से रेसीडेंट पोर्टल पर क्लिक करें। क्लिक करते ही ईआईडी/यूआईडी का ऑप्शन आएगा।
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