गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

मुर्रा के लाड़ू

घातेच दिन के बात आय। ओ जमाना म आजकाल कस टीवी, सिनेमा कस ताम-झाम नइ रहिस। गाँव के सियान मन ह गाँव के बीच बइठ के आनी-बानी के कथा किस्सा सुनावँय। इही कहानी मन ल सुनके घर के ममादाई, ककादाई मन अपन-अपन नाती-नतरा ल कहानी सुना-सुना के मनावँय। लइका मन घला रात-रात जाग के मजा ले के अऊ-अऊ कहिके कहानी सुनँय। ओही जमाना के बात ये जब मँय छै-सात बरस के रहे होहूँ। हमन तीन भाई अऊ ममा के तीन झन लइका। ममादाई ले रोज साँझ होतिस तहाँले कहानी सुनाय बर पदोय लगतेन। ममादाई पहिली खा-पी लव फेर सुते के बेर कहानी सुनाहूँ कहिके मनावय। हमन मामी ल जल्दी खाय बर दे कहिके चिल्लात राहन। खातेन-पीतेन अऊ चुमुक ले खटिया म कथरी ओढ़ के बइठ जातेन अऊ ममादाई ल जल्दी आ कहिके गोहरातेन। ममादाई ल बरोबर खटिया-पिढ़िया नइ करन देत रहेन। तभो ले ममादाई अपन काम बूता ल करके खटिया म सूतत-सूतत कहानी सुनाय ल सुरु करय 

नवागढ़ के हाट-बजार म राजू अऊ ओखर संगी सत्तू दुनों झन लइका घूमत रहिन। आनी-बानी के समान बेंचावत राहय। कोनो मेर साग-भाजी, बंगाला गोल-गोल, मुरई लंबा-लंबा रोंठ रोंठ, गोलईंदा भाँटा...। कोनो मेर नवाँ-नवाँ कपड़ा अऊ का-का। ऐखर ले ओमन ल का करे बर रहे। ओमन ल थोड़े साग भाजी लेना रहिस। ओमन तो घूमत मजा लेत रहिन। खई खजाना खोजत रहिन। ये पसरा ले… ओ पसरा। 

मिठई के दुकान म सजे रहय जलेबी गोल-गोल, छँड़िया मिठई सफेद-सफेद पेंसिल असन, बतासा फोटका असन। दुनों लइका के मन ललचाय लगिस। राजू मेर एको पइसा नइ रहय। ओ का करतिस देखत भर रहय। सत्तू धरे रहय चार आना फेर ओखर मन का होइस काँही नइ लेइस। दुनों झन आगू बढ़गे। आगू म केंवटिन दाई मुर्रा, मुर्रा के लाड़ू अऊ गुलगुल भजिया धरे बईठे रहय। राजू कन्नखी देखय पूरा देख पारीहँव त मुहूँ म पानी आ जाही। सत्तू ह गुरेर के देखय येला खाँव के ओला। फेर सत्तू कुछु नइ लेइस। चल यार घर जाबो कहिके वोहा हाट ले रेंगे लगिस। दुनों झन पसरा छोंड़ घर के रद्दा हो लिन। रद्दा म सत्तू के सइतानी मन म कुछु बिचार अइस ओ हर राजू ले कहिस चल तँय घर चल मँय आवत हँव। ओ हर ऐती ओती करत फेर बाजार म आगे। राजू ल कुछ नइ सुझिस का करँव का नइ करँव फेर सोंचिस चल बाजार कोती एक घाँव अऊ घूम के आ जाँव पाछू घर जाहूँ। 

राजू धीरे-धीरे हाट म आगे। देख के ओखर आँखी मुँदागे। सत्तू ह कागज म सुघ्घर मुर्रा के लाड़ू धरे-धरे कुरूम-कुरूम खावत रहय। राजू के बालमन म विचार के ज्वार-भाटा उछले लगिस। 
मोर संगी...ओखर पइसा...का करँव...। 
टुकुर-टुकुर देखय अऊ सोंचय। मुहूँ डहर ले लार चुचवात रहय। अब्बड़ धीरज धरे रहय फेर सहावत नइ रहय। कोकड़ा जइसे मछरी ल देखत रहिथे ओइसने। ओइसनेच झपटा मारिस। मुर्रा के लाड़ू ल धरिस अऊ फुर्र...। 
सत्तू कुछु समझे नइ पाइस का होगे। हाथ म लाड़ू नइ पाके रोय लगिस। भागत राजू के कुरता ल देख के चिन्ह डारिस। राजू लाड़ू लूट के भाग गे। सत्तू रोवत-रोवत आवत राहय। ओतकेच बेर ओखर ममा चैतराम ओती ले आवत रहिस। भाँचा ल रोवत देख अकबका गे। 
- का होगे भाँचा? काबर रोवत हस। 
- का होगे गा? 
सत्तू सुसकत-सुसकत बताइस ओखर मुर्रा के लाड़ू 
राजू ह... 
धर के भगा गे...। 
काबर गा? 
सुसकत-सुसकत सत्तू जम्मो बात ल बताइस। 
-ओ हो… भाँचा तोरो गलती नइये। तोला अइसन नइ करना रहिस। चल तोर बर अऊ मुर्रा के लाड़ू ले देथँव। सत्तू फेर कागज म सुघ्घर मुर्रा के लाड़ू धरे कुरूम-कुरूम खाये लगिस। 

ओती बर राजू ह मुर्रा के लाड़ू धरे खुस होगे अऊ खाये बर मुहूँ म गुप ले डारिस। जइसने मुहूँ म लाड़ू के गुड़ ह जनाइस ओला अपन दाई के बात के सुरता आगे- 
-बेटा हमन गरीब आन। हमर ईमान ह सबले बड़े पूँजी आय। हमला अपन मेहनत के ही खाना चाही। दूसर के सोन कस चीज ल घला धुर्रा कस समझना चाही। 
राजू के मुहूँ म लाड़ू धरायेच रहिगे न वो खा सकत रहिस न उगले सकत रहिस। मुहूँ ह कहत हे, हमला का जी खाये ले मतलब, स्वाद ले मतलब। बुद्धि काहत हे, नहीं दाई बने कहिथे। दूसर के चीज ला ओखर दे बिना नइ खाना चाही। मन अऊ बुद्धि म उठा-पटक होय लगिस। मन जीततिस त लाड़ू कुरूम ले बाजय। बुद्धि जीततिस चुप साधय। अइसने चलत रहिस लाड़ू अधियागे। 
बुद्धि मारिस पलटी अऊ मन ल दबोच लिस। मुहूँ ले मुर्रा लाड़ू फेंकागे। राजू दृढ़ मन ले कसम खाय लगिस-‘‘आज के बाद अइसन कभू नइ करँव अपन कमई के ल खाहूँ, दूसर के सोन कस जिनिस ल धुर्रा माटी कस मानहूँ, मँय अब्बड़ पढ़िहँव अऊ बड़का साहेब बनिहँव।’’ 

सत्तू ल मुर्रा के लाड़ू ल वापिस करे बर ठान के राजू ह हाट के रद्दा म आगे। सत्तू सुघ्घर ममा के दे लाड़ू ल खात रहय। राजू अपन दुनों हाथ ल माफी माँगे के मुदरा म सत्तू कोती लमा देइस। अब तक सत्तू ल घला अपन कपटी स्वभाव के भान होगे रहिस। वो हर हँस के राजू के हाथ ले मुर्रा के लाड़ू ले के बने मया लगा के एक ठन मुर्रा के लाड़ू राजू के मुहूँ म डारिस। दुनो संगी अब हँस-हँस के संगे-संग मुर्रा के लाड़ू खाय लगिन कुरूम-कुरूम। 

कहानी सिरावत-सिरावत ममादाई ऊँघावत रहय। मँय पूछ परेंव फेर राजू के का होइस? दुनों झन बने रहिन नहीं। ममादाई कहिस बेटा, ‘मन के जीते जीत हे, मन के हारे हार।’ जऊन मन बुद्धि ले सख्त होहीं तेन सफल होबे करही। राजू आज कलेक्टर साहेब हे। तहुँमन मन लगा के सुघ्घर पढ़हू। चलो अभी सुत जावब। 
महूँ राजू कस बनहँव सोंचत-सोंचत कतका बेरा नींद परिस। बिहनिया होइस नइ जानेंव। 
============================================= 
-रमेश कुमार सिंह चौहान मिश्रापारा, नवागढ.जिला-बेमेतरा (छग) 
देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित 

पंचइत म एसपी राज

हमर देस ल नारी परधान देस केहे गे हे। नारी के महिमा घलो चारों खुट ले सुने अऊ देखे बर मिलथे। सरकार घलो नवाँ-नवाँ नियम अऊ कानून म नारी परधान देस कहि-कहि के सहर त सहर का गाँव का कसबा न बारी लगय न बखरी, न बहरा लागे न डोली चारों कोती नारी राज घर म रंधनी खोली सुन्ना परगे, कपड़ा दुकान म आय बर बिहाव म सरी दुकान म लुगरा मन रखायच हे पेंट अऊ कमीज के खरीदइया म घलो नारी मन के प्रधानता देखे बर मिलत हे। ऊपर ले खाल्हे अऊ खाल्हे ले ऊपर कोती पंचइत राज ले दिल्ली तक एके ठन सोर नारी अइसन नारी वइसन। मुड़ी म पागा नारी के होही त मरद के मुड़ी म का होही। मरद मन संसो म परगे, के हमर सरी जिनीस ल अऊरत मन नंगा डरिस त हमरे का ठिकाना। चारों मुड़ा मरद ल अपन कमीज कुरथा ल बँचाय बर भागत देख के मोरो मन म डर हमागे के अइसन का बात होगे के सरी मरद परानी संसो म पर गेहे। दू-चार झन मनखे जेमन भागत राहँय तेला बला के पूछेंव के-‘का होगे... काबर भागत हो बबा..!’ 

मोर भाखा ल सुन के चारों सियान हँफरत-हँफरत ठहिर के कहिथे-‘हमर गाँव के अब नइये ठिकाना बाबू..!’ अतका काहत सियान मन उहाँ ले भाग गिस। सियान मन ल हँफरत देख के महूँ अबाक रहिगेंव के अतेक बड़का का बात होगे गाँव म? सियान मन ल तको परान बँचा के भागे ल धरलिस। बुधेस नाँव के सियान कहिथे-‘गाँव म चारों कोती एके ठन गोठ हे बाबू के गाँव-गाँव म नवाँ एस.पी. आगे इही डर के मारे हँफरत, भागत अऊ गिरत-हपटत आवत हन। 

मय मन म सोंचेव-के एस.पी. त जिला भर के पुलिस मन के साहब होथे। पंचइत म कहाँ आही। इही सोंच के मँय अचंभा म परगेंव। थोरिक बेर त मोला कहीं कुछु नइ जनइस-के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. कइसे आही! ओतकी बेर एक झिन पल्टीन नाँव के माई लोगिन लकर-धकर अपन दू झिन लईका हुरहा-धुरहा पावत काहत राहय-‘जउँहर होगे दाई..! नवाँ सरपंच का बनायेन कल्लई होगे। चलव रे मोर लईका मन। गाँव म नवाँ एस.पी. आगे कहिथें करम छॉंड़ दिस दाई।’ एक ठिन लईका ल पाय रिहिस दुसरइया लईका पावत रिहिस। पहिली पाय रिहिस ते हुरहा गिरगे। पल्टीन उही मेर बईठ के रोय ल धरलिस। 

दूसर कोती ले सगोबती, रमसीला आथे अऊ पल्टीन ल पूछथे-‘काबर रोवत हस पल्टीन, काबर तँय रोवत हस या..? का बात होगे के तँय गोहार पार के रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘काला बतावँव गो... बड़ करलई होगे।’ 
सगोबती कहिथे- ‘का बात के करलई होगे या..? कुछु बताबे त हमुमन ल समझ म आही।’ 
रमसीला कहिथे- ‘रोते रहिबे का? हमर देस नारी परधान देस आय (रमसीला पल्टीन के आँसू ल अपन अछरा म पोंछत कहिथे) नी रोय बहिनी चुप हो जा। थोरकिन रूक के हरहिंछा बता के का बात होगे? तँय काबर रोवत हस?’ 
पल्टीन कहिथे-‘गाँव भर म गोहार परत हे, के हमर गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। जउँहर भईगे दाई जउँहर भईगे। हमर लईकामन के नइ ये अब ठिकाना नवाँ एस.पी. हमर लईका मन ल मार डरही। गाँव के जगेसर कोतवाल हाँका पारत उही मेर आके हाँका पारथे- के गाँव के गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउँक्का बाद म गराम पंचइत म काली मँझनियॉं कुन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन के सपत गरहन राखे गेहे। ठउका बाद म गराम सभा होही अऊ पंचइत म माँदी खवाही। कोनो मन अपन घर म चूल्हा झन बारहू होऽऽऽऽ... हाँका पारत कोतवाल घला अपन रद्दा चल दिस। 
पल्टीन, रमसीला अऊ सगोतीन कोतवाल के हाँका ल सुन के गोहार पार के रोय ल धरलिस। पंचइत कोती ले गाँव के सियान गोठियात मंद के निसा म झुमरत तीनों झिन तिर आके पूछथें- 
गाँव के कोदू मंडल कहिथे- चुप हो जाओ नोनी का बात होगे तेला बतावव? बोलते-बोलत कोदू मंडल मंद के निसा म उही मेर गिरगे। 
उखर संग म आय गाँव के किसनहा सुखराम बबा ऊपर घलो मंद के भूत झपाय राहय। मंद के निसा म सुखराम बबा कहिथे-कुछु नी होय गा टूरी मन चुनई के मंद के निसा म रोवत हे। सबो झिन ल बिलहोरत हे बुजेरी के मन ह काहत सुखराम बबा अपन संगवारी संग चल दिस। कइसनों कर के रतिहा के चार पहर बितिस। 

पहट के गाँव के जम्मो लईका, सियान, माईंलोगन मन डफरा, डमऊ, मंजीरा, गोला, निसान संग जुलूस म आगू-आगू मुहूँ म रंग गुलाल बोथ्थाय झुमर-झुमर के नाँचत नवा सरपंच संग जम्मो पंच मन रंग म बुड़े अपन-अपन मरद संग पंचइत कोती जावत हे। 
मँय उही मेरा खड़े-खड़े देखत हँव के-सरपंच इहाँ के मरद के नरी म सरपंच के नरी ले जादा माला ओरमत हे। ओसने पंच मन के मरद के नरी के हाल हे। उँखर मरद मन अँटिया के रेंगत राहय मानो उही मन पंचइत के पंच सरपंच बने हे तइसे। देखत-देखत गाँव के जम्मो झिन पंचइत म सकलागे। पंचइत के आगू गाँधी पाँवरा मेर पंच-सरपंच ल किरिया खवाय बर मंच बने हे। पंच-सरंपच मन अपन हाँत ल आगू कोती लमाके किरिया खा के कहिथें, के गाँव बिकास के गंगा बोहाबो। 
ओतकिच बेर माईंलोगन मन के भीड़ ले गोहार परे ल धरलिस। पोंगा म कतको घॉंव चुप रेहेबर कहि डरिस फेर कोनो काखरो कहाँ सुनत हें। देखते-देखत माई लोगन के झगरा मरद मन डाहर मात गे। सुरू होगे पटकिक के... पटका। दोंहे.... दोंहे, भदा-भद जतका मुहूँ ओतके गोठ। सबो के मुहूँ म एके ठन गोठ-के नवाँ एस.पी. हमर गाँव म काबर आही। कोन लानही तेला देखबो। 

गाँव म कतको परकार के मनखे होथे। झगरा के गोठ-बात के चरचा ल सुन के पुलुस के डग्गा म अड़बड़ झिन पुलुस मन भरा के आगे। फेर झगरा त झगरा आय। पुलुस देखे न कोरट। कूद दिस ते कूद दिस। चुप करात भर ले करइस। नइ माने के एके ठिन चारा। पुलुस मन जो लउठी भंजिस के जम्मों भीड़ गदर-फदर भागिस। गाँव के चरचा एस.पी. करत रहिगे। डग्गा म बइठार के पुलुस मन गाँव म झगरा मतईया टूरा-टूरी, लईका-सियान अऊ माईंलोगन मन ल तको थाना लेग के ओइला दिस। 

दुसरइया दिन नवाँ सरपंच अऊ पंच मन थाना म जाके गाँव के मनखे मन के झगरा के कारन पूछिस। पल्टीन कहिथे-‘‘गाँव भर म चिहोर परत रिहिस के गाँव म नवाँ एस.पी. आगे। डर के मारे सबो झिन हड़बड़ागेन नोनी।’’ 
नवाँ सरपंच कहिथे- ‘‘गाँव म कोनो नवाँ एस.पी. आही कही कहिके। सरी गाँव म झगरा मता देस लईका-त-लईका सियान ल तको धँधवा देस। आय होरी तिहार म गाँव के मन ल रोवा देस। सरपंच संग पंच मन घलो पुलुस मन के साहेब ल मना डरिस। साहब नइ मानिस त दू बात कहिके सरपंच पंच मन अपन-अपन घर म आगे। 
वो डाहर पुलुस मनगाँव के जम्मो झन ल नियाव बर कोरट म लेगिन। करिया कोट पहिरे उकील मन कोनो ये डाहर जाय त कोना वो डाहर जाय। 
कोरट के मुहाटी मेर ले सफेद कुरथा पहिरे डोकरा बानी के मनखे ह गाँव म झगरा मतईया मन के नाँव ल धरत हाँका पार के जम्मों झन परसार सही बड़ जानी कुरिया म बलइस। उहाँ उँचहा कुरसी म करिया कुरथा पहिरे आँखी म करिया फरेम के चस्मा पहिरे मनखे ह गाँव के जम्मो झन ल पूछिस- ‘‘के का बात होगे? का बात बर झगरा मतायेव गाँव म?’’ 

गाँव वाले मन के उकील गाँव म झगरा काबर होइस ते बात ल नियाव करइया ल बतइस वो डहर उकील बतात रहाय त गाँव के जम्मो झन के आँखी हाँत म तराजू धरे आँखी म फरीया बॉंधे पुतरी ऊपर टेके हे अऊ जम्मो झिन अपने अपन म गोठियात हे। के इही नवाँ एस.पी. होही का? मंगल नाव के जवान टूरा कहिथे-‘‘ये त अँधरी हावय गा। अँधरी हमर गाँव के एस.पी. कइसे होही। हमर गाँव म का अँधरी राज करही? फोक्कट के गोठियाथव ते।’’ 
सुरेस नाँव के टूरा कहिथे- ‘‘अरे बइहा बुध के, ये कोरट आय कोरट। कोन हमर गाँव के नवाँ एस.पी. हरे तेला त पहिली जानन। फोक्कट के गोहार पारत हस निपोर मुहूँ ल कथरी सिले सही चुप नइ रहि सकस।’’ 
ओतकी बेर सलेन्द कइथे- ‘‘ते कोन होथस रे...! हमर मुहूँ ल कथरी कस सिलईया। हमूँ मनखे हरन हमू ल हमर गाँव के गोठ ल जाने के हक हे। बड़ा मुड़पेलवा कस हुसियारी मारत हे बइहा बुध के हा। इहाँ ले बाहिर निकल तहाँन मँय तोला छरियाथँव।’’ 
कोरट म हल्ला होवत देखिस त उँचहा कुरसी म बइठे नियाव करइया साहब ह दू घॉंव टेबिल ठठात किहिस-‘‘चुप हो जाओ निहीं तो भितरा दूँगा। ये हल्ला करे के सजा जम्मों झन ल भुगते बर परही। डर के मारे जम्मो झन चुपे होगे।’’ 
ओतकी बेरा उँचहा कुर्सी म बईठे नियाव देवइया साहब ह-गाँव के जम्मो मनखे ल फेर पूछिस-‘‘के बने-बने बतावव का होइस? का बात बर गाँव में झगरा मतायेव?’’ 
गाँव के सियान सुखराम कहिथे-‘‘बात अइसन हे साहब- के हमर गाँव के पंचईत चुनई के फइसला बने-बने निपटिस। बने नाँचत जात रेहेन। त ओतकी बेर सहर ले दू-चार झन टूरा मन फटफटी म बइठे-बइठे नरियात अइस। उही दिन ले उही बात बर हमर सरग सही गाँव म झगरा मात गिस।’’ 
नियाव देवइया साहेब कहिथे- ‘‘एसपी जिला भर के अधिकारी होथे अऊ जिलाच म ओखर आफिस होथे। कोनो जरूरीच काम परही तभे च वोहा तुँहर गाँव म जाही। गाँव म एस.पी. नइ होय पुलुस तुँहर रकछा बर हाबे।’’ 
अइसन सुग्घर गोठ ल सुनके गाँव के सरी मनखे चुपेच होगे। ओतकीच बेर कोनो बात ल धर के सलेन्दअऊ सुरेस म झगरा माते ल धरिस। उन्हें दूनों मन धरी के धरा होगे। दूनों एके ठिन बात बोले-‘‘नवाँ एसपी आगे।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ल ठठात फेर कहिथे-‘‘चुप रहो बड़ नरिया डरेव। तुहीच मन बतावव के गाँव म नवाँ कोन एस.पी. आगे?’’ 
सलेन्द्र अऊ सुरेस डर्रात कहिथे- ‘‘सहर के टूरा मन बतइस साहब।’’ 
नियाव देवइया साहब कहिथे-‘‘का बात ल सहर के टूरा मन बतइस बोलव।’’ 
साहब के गोठ सुनके सुरेस सरी बात ल बताथे- ‘‘के साहब सहर के टूरामन बतइस गाँव म एस.पी. आगे। ऊँखर ले पूछेन त वोमन किहीन-बाई-बनिस सरपंच त ओखर मरद होइस एस.पी. माने सरपंच पति अऊ पंच मन के मरद पंचपति परमेसर होही। 
सलेन्द्र कहिथे-‘‘उही गोठ ल सुनके ऊँखर संग म हमू मन जिन्दाबाद-मुर्दाबाद कही परेन साहब।’’ 
सुरेस कहिथे-‘‘बस अइसनेच गोठ हरे साहब। 
परसार सहीं बड़ जनी कोरट कुरिया म चारो खुँट के मनखे मन दुनो झन के गोठ ल सुनके हाँस-हाँस के कठल गे। कतको झिन त हाँस-हाँस के ओछर-बोकर तको डरिस। जेन ल देखबे त उही हाँसते रहाय। सबो झिन ल हाँसत देख के गाँव के मन सकपकाय भोकवा कस देखते रहिगे। 
थोकुन बेरा म खॉंसी-खखरई बंद होइस त सलेन्दनियाव देवइया साहब ल कहिथे-‘‘हमन कोनो हाँसी मजाक के लइक गोठिया परेन का साहब के हमर कोती ले कोनो गलती होगे का? सबो झन हाँस डरेव। बस हमी मन भोकवा कस ठाढ़े हन।’’ 
नियाव देवइया साहब टेबिल ठठात गोहार पारथे-‘‘आरडर.... आरडर।’’ 
जम्मों झन चुप होगे त नियाव देवइया कहिथे- ‘‘ये सबो गोठ-बात गाँव के सिक्छा के कमी के खातिर देखे बर परत हे। सरकार गाँव-गाँव म पढ़व-अउ बढ़व कहिके साक्षरता किलास लगा के कतकोन खर्चा करिस तभो ले जम्मो अप्पड़ के अप्प़ड़। ऊपर ले झगरा-झँझट करके मुड़ी फोड़ी-फोड़ा कर डरिस।’’ 

नियाव देवइया साहब गाँव वाले मन ल समझात कहिथे-‘‘के तुँहर झगरा ल खत्म करव अऊ बने-बने जिनगी ल जीयव। मनखे बर मनखे बने के उदिम करव। सबके मन म मया-परेम जगावव। आगू होरी तिहार हे बने मया परेम लगाती तिहार ल मनावव। काली पंच अऊ सरपंच संग इँहा आहू त नवाँ गोठ-बात ल करबो। कोरट के समे खत्म होइस।’’ जम्मों सियान, जवान मन अपन-अपन डेरा म हाँसत गोठियात लहूटिस। 

दूसरईया दिन कोरट के बेरा प पंच-सरपंच संग गाँव के जम्मो झन नियाव करइया साहब ले मिलथे। नियाव करइया साहब ह सरपंच ल कहिथे-‘‘तुँहर गाँव म झगरा के एके ठिन कारन हे वोहे असिक्छा, गाँव के मनखे मन के अप्पड़ होना। सबो पंच सरंपच पढ़े-लिखे दिखथव। गाँव के मन ल बने समझत ले पढ़ावव। गाँव म साक्छरता के संदेस ल आगू लावव। गाँव के मन सिक्छित होहीं त गाँव म नवाँ अँजोर बगरही अऊ गाँव म सुख के गंगा सुग्घर बोहाही।’’ नियाव देवइया साहब सरपंच संग जम्मो पंच मन ल ऊँखर जीत बर गाड़ा अकन शुभकामना देके जम्मो झन ल बिदा करिस। 

सरपंच अऊ पंच मन ओसने करिस जइसन साहब बताय रिहिस। नवा सरपंच दसाबाई गाँव के साक्षरता किलास म गाँव के जम्मों लईका-सियान-जवान सब्बो झन ल पढ़ाय ल सुरू कर दिस। गाँव के मन नवाँ-नवाँ जिनिस सीख के अपन खुद के पॉंव म खड़े होगे फेर अपन लईका मन ल अपन घरे म पढ़ा-पढ़ा के नवाँ रद्दा देखाय के नवाँ-नवाँ उदिम करत हे। गाँव म कभू पंथी त कभू रीलो त कभू रीलो त कभू करमा-ददरिया म अपन सुर लमात देवी-देवता के पराथना करत नवाँ जिनगी जीये के मन म आस धरे सुख के जिनगी जीयत हे। 

देखते-देखत होरी तिहार आगे। गाँव के मन पँचकठिया टुकना म परसा, सेम्हर फूल के पंखुरी ल घर म लानके लाली रंग बनाके के होली मनाय के उदिम तको करत हे। गाँव के गौरा पाँवरा म बाजत नँगारा, डमउ, टासक, निसान, मंजीरा, ढोलक अऊ गोला के पार ल कोनो पाही गा। गाँव के चारों खुँट माँदर सँही नँगारा घटकत हे। आनी-बानी के फाग ल गा-गा गाँव के जम्मो लईका सियान मन खुदे नाँचत हे अऊ जम्मो झन ल नँचात हें। 

रतिहा के पबरित बेरा म होही के पूजा करके गाँव के जम्मो सियान अपन गाँव के रक्छा बर देवी देवता ल गोहरात होरी ल जरा के उही मेर कसम खाथे। के हमर गाँव म सेम्हर, परसा के रंग ले होरी खेलत आय हन आगू घलो हमर पुरखौती के चिन्हा के रंग ले होरी खेलबो। कोनो ह कोनो के मुहूँ-कान म चिखला, माटी, चीट अऊ आनी-बानी के रंग नई पोतय। 

गाँव म पहाती ले संझौती बेरा तक लईका मन तिलक होरी खेलत सियान मन के माथा म गुलाल के टीका लगा के सियान मन ले असीस पावत अपन जिनगी ल सँवारे के परयास करते हे अऊ नँगारा संग एके ठिन राग लमावत हे- 

हमर गाँव म आगे अँजोर, परसा सेम्हर लाली ल घोर। 
माया परेम के लाली धरके, ये दे आगे होरी तिहार॥ 
ठेठरी, खुरमी, बबरा ल खाके, बने मनावव तिहार। 
जीयत रहिबो त फेर देखबो, आगू के होरी तिहार॥ 
============================================
प्रदीप पान्डेय ‘‘ललकार’’ संबलपुर : देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित

माटी महतारी

सोनारू तँय ह बइठे-बइठे काय सोचत हाबस। बेटा, जऊन होगे तऊन होगे। अब तोर सोंचे ले हमर जमीन ह नइ आवय। जा रोजी-मंजूरी करके ले आ बेटा, पानी-पसिया पीबो। निहीं त भूखे मरे ल परही। थोर बहुँत पढ़े-लिखे रहितेंव रे सोनारू.. त तोर बाप, कका अऊ गाँव के मन ल समझातेंव। दलाल के बात म नइ आतेंव।
बबा हमन तो फेक्टरी म माटी महतारी ल बेंच के अपन गोड़ म टँगिया ल चला डरे हाबन अऊ एकर भुगतना ल हमन सात पीढ़ी ले भुगते ल परही बबा। सिरतोन काहत हाबस सोनारू... मंद पीके तोर बाप ह करनी करे हावय अऊ हमन ल भुगते ल परही रे। चार ठन खेत ह हमन ल पोसत रिहिस बेटा..! ‘माटी ह महतारी आवय’ अऊ सबके पेट ल भरथे रे, फेर एक ठन फेक्टरी ह एक मनखेच ल मजदूरी के काम दिही जेमा घर के दस मनखे के पेट ह नइ पलय बेटा..! सिरतोन काहत हाबस बबा फेक्टरी म काम करे बर पढ़े-लिखे अऊ सिच्छित चाही हमन तो अप्पड़ आन बबा। फेर साहेब-अधकारी मन तो पढ़े-लिखे हावँय तभो ले हमर मन बर नइ सोंचिन। हमर दू फसली भुँईंया ल बंजर बता के अँगठा चपका दीन। (ओतके बेर सोनारू के काकी आइस)- ‘तोर कका ह चार दिन होगे, बेटा नइ आय हे गा। चार दिन होगे घर म हँड़िया नइ चढ़े हाबय।’ जानत हँव काकी... फेर काय करहूँ थोरकन तहसीली म जाके पूछताछ करबे तहॉं कुछु भी कहिनी बना के जेल म ओइला देवत हाबय काकी।

कोतवाल ह हॉंका पारत रिहिस। चिचियावत सोनारू के घर करा अइस, सोनारू पूछथे- ‘अब काके बईठका आय बबा।’
-‘काला बतावँव रे सोनारू, हमन ल रद्दा बतइया समारू गुरुजी ह घलो अब इहॉं ले चल दिही।
-‘काबर?’
-‘ओकर बदली करदीन बेटा..! गुरुजी मन मुआवजा ल नइ ले हाबय अऊ गाँव वाला मन ल सीखोवत हाबय कहिके उही पूछे खातिर तोर ककामन गे रिहिस। तेला जेल म डार देहे।
-‘साहब मन हमर मन के बात ल काबर नइ सुनय कका।’
-‘अरे बेटा, हमन गरीब किसान आवन गा... साहब मन ल काय दे सकबो। फेक्टरी वाला मन कलेक्टर ले लेके पटवारी ल चार चकिया दें हाबय। तेकर सेती तो ओमन रोज गाँव के चक्कर मारथें। गाँव के दलाल मन घलो मालामाल हो गेहें।’
दस बजे बिहनिया खा-पी के गुड़ी म सकलाहू होऽऽऽऽऽ..! बारा गाँव के मनखे मन घलो आहीं होऽऽऽऽऽ..! कोतवाल ह पूरा बस्ती म हाँका पार के चल देथे। ओतके बेरा सरपंच ह सोनारू के बबा करा आइस।
-‘पा लगी मंडल कका।’
-‘खुसी रा बेटा..! अब कइसे करबो कका अब तो कइसनों करके हमन ला फेक्टरी वाला मन ल भगाय ल लागही बेटा! कतको मन तो मुआवजा लेके पइसा ल खा डरे हावय, आधा झन मन बाँचे हावय। फेक्टरी के खुले ले कका कोसा पालन केन्द्र ह घलो बरबाद हो जही। फेक्टरी के गरमी म कोसा कीरा मर जही, त कँड़ोरो के लगाय रुपिया ह बरबाद हो जही। सरकार के काय जाही बेटा..! जनता के कमई ल पानी कस बोहाही नहीं त का। कतको बेरोजगार होही त ओला काय फरक परही। फेक्टरी वाला मन नोट के गड्डी ल धराही तहॉं सब चुप हो जहीं। ले कका बिहनिया कुन गुँड़ी म आ फेर।

होत बिहनिया गाँव म चहल-पहल सुरू होगे। काबर बारा गाँव के लोगन मन आय के सुरू करदे रिहिस। दस बजते साठ गुड़ी म मनखे मन खमखमागे। दुदमुहॉं लइका मन ल पीठ म बॉंध केझॉंसी के रानी बरोबर माईलोगिन मन आय रहिन। काबर कोंनो महतारी ह अपन लईका के पेट म लात नइ मार सकँय। सरपंच ह कथे- कइसे बतावव काय करबो तऊन ल.. ओतके बेरा एक ठन चार पहिया ह आके ठाड़ होगे। सब उही ल देखे बर धरलीन। सोचे लगीन फेर पुलिस वाला मन पकड़े बर आवत हावँय। कोंनो-कोंनो मन तो कइथे- आज मारबो नहीं त मरबो। फेर अपन महतारी ल बेचन निहीं। गाड़ी ले श्रीवास्तव साहब ह उतरीस जऊन ह गाँव वाला मन के हिमायती राहय। सरपंच कइथे- ‘नमस्ते साहब..! कइसे आय हावव..!’

मँय ह ये बताय बर आय हाबँव कि मोर इँंहा ले बदली होगे, अब तुमन कइसे करहू तेकर फैसला ल तुही मन ल करे बर परही। मोला ससपेंड घलो कर सकत हाबय। फेर मँय ह कइसनों करके जी-खा लुहूँ। तुमन ल अपन लड़ई खुदे लड़े बर परही। काबर दलाल मन तुँहरे घर म बइठे हाबय। सबला मोर राम-राम। मँय ह जावत हँव फेर एक ठन बात काहत हँव सबला बेचहू फेर धरती दाई, अन्न देवइया ल फेक्टरी बर झन बेचहू। श्रीवास्तव बाबू ह गाड़ी म बइठ के लहुटगे। थोरकन बेर-बर सन्नाटा ह पसरगे। काबर? पढ़े-लिखे एक झन रद्दा बतइया रिहिस वहु ह अब नइ रइही। समारू गुरुजी ह अपन बदली रोकवाय बर उही ह साहर म साहब मन के चक्कर काटत हावय।

मंडल ह खड़ा होके कइथे- अरे बाबू हो! हमन का चार दिन जीबो के आठ दिन, फेर तुमन ह मंद महुआ म मुआवजा ल लेके उड़ा डरे हाबव। फेर अभी आधा आदमी ह पइसा नइ ले हाबय। तुमन ह पइसा कइसनों करके लहुटाहू। आयतु ह खड़ा होके कइथे- दू साल होगे खेत मन परिया परे हाबय त पइसा ल कइसे लहुटाबो। सरंपच ह कइथे- ‘मैं ह एक ठन बात काहत हाबँव। हमन नंदिया ल बॉंधबो अऊ फेक्टरी बर जमीन हावय तेमा बॉंध बनाबो अऊ बढ़िया फसल लेके कम्पनीवाला के पइसा ल लहुटाबो नंदिया के तीरे-तीरे फलदार रूख लगाबो। करजा हाबय तऊँन ल सब मिल के हमन छूटबो तब ए माटी महतारी ह बॉंचही अऊ एकर सिवाय हमन मन करा कोन्हो चारा नइये।

तब सोनारू ह खड़े होके कइथे सरपंच कका ह बने काहत हाबय। अगर हमन एक होके करजा ल नइ छूटबो त हमन सदादिन बर बनिहार रहिबो। फेक्टरी के पानी ह नंदिया म मिलही त वहु ह जहर बन जाही। हवा ह घलो बिगड़ जही। सब मनखे मन चिचियाइस। हमन ल मँजूर हाबय। मँजूर हाबय। सोनारू ह फेर कइथे- हमन तो नइ पढ़ेन फेर अपन लइका मन ल इसकुल भेजबो। पढ़ाबो तभे हमन ला फेर कोनो दलाल मन कोरा कागज मन अँगठा नइ लगवाही। इही भुँईंया के सेवा करत अपन ये बारा गाँव ल फेक्टरी के गुलामी ले अजाद कराबो। मंद मउहा ल पियइया हो अब तुमन ल सीखे ल लागही कि एक फेक्टरी ह एक झन ल कुली के काम दिही हम अप्पड़ के खरही नइ गॉंजय। ओमन ल तो पढ़े-लिखे आदमी चाही। फेर हमर धरती महतारी ह अप्पड़ अऊ पढ़े-लिखे सबला पोसथे।

सरपंच ह कइथे- त फेर सब साबर, कुदारी, रापा, टँगिया, झउँहा धरके परनदिन पॉंच बजे पहुँच जहू। ग्यारा बजे फेक्टरी के भूमिपूजन हाबय त ओकर पहिली हमन ल गड्ढा खोदना हाबय। अब सब अपन-अपन घर जावव। अतका जान लेव हमन ल ओ दिन मरे ल घलो पर सकथे अऊ मारे ल घलो लागही। काबर फेक्टरी वाला मन लाव-लसकर लेके आही। सब जनता के भुँईंया के कसम खाके जय-जयकार करत अपन-अपन घर लहुटगे। मंडल ह कइथे- अब तो ये दोगला मन ल मारेच बर लागही बेटा..! जब अँगरेज ल हमन भगा सकथन त ए फेक्टरी वाला मन कोन खेत के मुरई आय।

तीसर दिन ग्यारा बजे फेक्टरी वाला मन बड़े-बड़े गाड़ी वाला मन घलो रिहिस गाँव वाला मन सब काम ल छोड़-छॉंड़ के देखे लगीस हजारों झन मनखे सबके हाथ म हँथियार। साहब मन कॉंपे ल धरलीस, पछीना घलो बोहाय ल धर लीस। एक झन दलाल ह कइथे- साहेब, काली रतिहा ग्यारा बजे गेहन त कॉंही नइ खनाय रिहिस अऊ कतका बेर सउँहो तरिया खनागे। बड़े साहब के मुहूँ ले बक्का नइ फूटिस काबर ओहा छै महीना पहिली पटवारी अऊ डिप्टी कलेक्टर के हालत ल देखे रिहिस दुनों झन के मुहूँ लहूलुहान। थोरको चिन्हारी नइ रिहिस साहब ह चुपचाप गाड़ी म बइठके ड्राइवर ल गाड़ी चालू करे बर कइथे। साहब के देखते-देखत सब ह ओकर पीछू-पीछू गाड़ी म बइठ के लहुटगें। समझगें एक ठन लकड़ी ल तो आसानी से तोड़ डारबो फेर लकड़ी के बोझा ल नइ टोर सकन। गाँव वाला मन बड़ खुस होइस अऊ तिहार असन नाचे लगीस काबर? ओमन अपन सात पीढ़ी ल बनिहार बनाय ले बचा लीन। बॉंध बने ले फसल लहलहाना सुरू होगे। मंद मउहा ऊपर घलो रोक लग गे। दलाल मन गाँव छोंड़ के भाग गे। सब अपन लइका मन ल इसकुल भेजे लगीन, ताकि फेर कोनो दलाल मन कोरा कागज म अँगठा झन लगवाय।
========================================
गीता शिशिर चन्द्राकर, भिलाई-३ देशबंधु मड़ई अंक में प्रकाशित

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

होते अगर आज वीर भगत सिंह

कभी नोटों के लिए मर गये,
कभी वोटों के लिए मर गये,
क भी जात-पात के नाम पर मर गये,
कभी आपस में 2 गज जमीन के लिए मर गये,
होते अगर आज वीर भगत सिंह
तो कहते- यार..! सुखदेव हम भी
किन कमीनों के लिए मर गये..!

रविवार, 12 अप्रैल 2015

घर ला खाली छोंड़ना

घर ला खाली छोंड़ना : घर ला सुन्ना अउ खुल्ला छोंड़ना। (घर को सूना और खुला छोड़ना)
आज बिहिनियाँ ले घर ला खाली छोंड़ के कहाँ गे रेहेव मितान?

ban.jo बैंजो यानी द लाईव इंटरनेट

चाहे गेजेट शो के लाइव प्रसारण को देखना हो या इटली में फैली आग की त्वरित जानकारी, या आस्ट्रेलिया के हाइवे पर हुई कार भिड़ंत, दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली हर अच्छी-बुरी घटनाओं की त्वरित जानकारी पहुँचाने का काम करता है http://ban.jo/ बैंजो। रियल टाइम कवरेज देने के कारण यह सॉफ्टवेयर यूजर्स में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन एक वेब सॉफ्टवेयर आखिर इतनी वृहद जानकारी जुटाता कैसे है? दुनिया भर की तमाम सोशियल नेटवर्किंग (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वाइन के अलावा रूस और चीन की भी सोशियल साइट्स) बैंजो http://ban.jo/ को ये तमाम जानकारियाँ उपलब्ध करवाती है। यानी इसने दुनिया के तमाम सोशियल मीडिया को एक मंच पर खड़ा कर दिया है। http://ban.jo/ बैंजों के संस्थापक व सीईओ डैमियन पैटॉन लॉसएंजलिस में पले-बढ़े हैं। नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करके सॉफ्टवेयर बिजनेस से जुड़े। 2009 में एयरपोर्ट पर पुराने दोस्त से मिले और व्यथित होकर बोले- ‘‘काश..! मेरे पास दुनिया भर का डाटा एकत्र करनेवाला कोई साधन होता।’’ यहीं से उन्होंने फ्रैंड-फाइंडिंग एप पियर कैम्पस’’ बनाया। 2010 में फंड तलाश रहे थे कि गुगल की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और आठ लाख डॉलर कमाये। अप्रैल 2011 में कैलिफोर्निया स्थित अपने घर लौटने के बाद उन्होंने 72 घंटों में बैंजो http://ban.jo/ को बनाया। इस सॉफ्टवेयर को माइन ऑफ सोशल मीडिया’’ व इवेंट डिटेक्टशन इंजन’’ भी कहा जाता है। वे मानते हैं कि यह टेक्नोलॉजी एक प्लेटफॉर्म है, फाइनेंस सर्विसेज़, मार्केटिंग, इंश्योरेंस, न्यूज़ एड मीडिया, पब्लिक हेल्थ आदि को प्रमोट करने का।

यदि भूल गये हैं Wi-Fi का पासवर्ड, तो इन Steps से कर सकते हैं रिकवर

कई बार लॉगइन करने के बाद भी अगर आपको अपने वाई-फाई राउटर का पासवर्ड याद नहीं आ रहा है तो उसके लिए कुछ आसान ट्रिक्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। आपके वाई-फाई राउटर में जो भी पासवर्ड दिया गया है वो कुछ स्टेप्स को फॉलो करके वापस देखा जा सकता है। ये पासवर्ड नॉर्मल फॉर्मेट में दिखेगा जिसे यूजर्स पढ़ सकें। अपना वाई-फाई पासवर्ड देखने के लिए फॉलो करें ये स्टेप्स-
* स्टेप 1-
यूजर्स अपने कम्प्यूटर या लैपटॉप के कंट्रोल पैनल में जायें
Start > Control Panel > Network and Sharing Centre
नेटवर्क शेयरिंग सेंटर पर सभी वायरलेस और वायर्ड नेटवर्क्स की लिस्ट दी होती है जिनके जरिये सिस्टम में इंटरनेट एक्सेस किया जाता है। अगर आप विंडोज 8 का इस्तेमाल कर रहे हैं तो “Windows key + C” इस शॉर्टकट को एक साथ क्लिक करें। इसके बाद सर्च पर क्लिक करें और Network and Sharing Center को ढूँढें।

नोट : ये स्टेप्स पर्सनल वाई-फाई नेटवर्क के लिये है। अगर आप किसी ऑफिस के नेटवर्क या किसी अन्य यूजर के वाई-फाई का पासवर्ड देखने की कोशिश करेंगे तो ये काम नहीं करेंगी।
* स्टेप 2-
नेटवर्क एंड शेयरिंग सेंटर पर जाकर “Change ada{ter settings” नाम के ऑप्शन पर क्लिक करें।
* स्टेप 3-
अब इस स्टेप में जिस भी वाई-फाई कनेक्शन का इस्तेमाल आप कर रहे हैं उसे सलेक्ट कर राइट क्लिक करें। इसके बाद Status ऑप्शन पर क्लिक करें।
* स्टेप 4-
“Status” स्टेटस ऑप्शन में जाकर वायरलेस प्रॉपर्टीज (Wireless Properties) नाम के ऑप्शन पर क्लिक करना होगा।
* स्टेप 5-
ऐसा करने के बाद यूजर्स के सामने एक विंडो खुलेगी। इस विंडो में दो टैब्स दिये होंगे। एक Connections और दूसरा Security यहाँ सिक्युरिटी टैब पर क्लिक करें।
* स्टेप 6-
अब यूजर्स के सामने तीन ऑप्शन आयेंगे। इनमें सिक्युरिटी टाइप, एन्क्रिप्शन टाइप और नेटवर्क सिक्युरिटी की (Network Security Key) शामिल होंगे। नेटवर्क सिक्युरिटी वाले ऑप्शन में पासवर्ड की जगह “*” दिखेंगे। नीचे एक चेक बॉक्स दिया गया होगा जिसमें Show Characters लिखा होगा। इस चेक बॉक्स पर क्लिक करते ही आपके वाई-फाई का पासवर्ड दिखने लगेगा।

भारतीय गणना

आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!