इंटरनेट से जुड़ी आज की दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति का ई-मेल एड्रेस होना एक अनिवार्यता बन चुका है। ई-गवर्नेंस पेपर लैस बैंकिंग तथा रोजमर्रा के विभिन्न कार्यों हेतु कम्प्यूटर व इंटरनेट का उपयोग बढ़ता जा रहा है।
मोबाइल के द्वारा इंटरनेट सुविधा ब्रॉड बैंड, 3जी, 4जी सेवाओं आदि की बढ़ती देशव्यापी पहुँच से एवं इनके माध्यम से त्वरित वैश्विक संपर्क सुविधा के कारण अब हर व्यक्ति के लिये ई-मेल पता बनाना जरूरी सा हो चला है।
नई पीढ़ी की कम्प्यूटर साक्षरता स्कूलों के पाठ्यक्रम के माध्यम से सुनिश्चित हो चली है। समय के साथ अद्यतन रहने के लिये बुजुर्ग पीढ़ी की कम्प्यूटर के प्रति अभिरुचि भी तेजी से बढ़ी है। ई-मेल के माध्यम से न केवल टैक्सट वरन, फोटो, ध्वनि, वीडियो इत्यादि भी उतनी ही आसानी से भेजे जाने की तकनीकी सुविधा के चलते ई-मेल का महत्व बढ़ता ही जा रहा है।
हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ में सॉफ्टवेयर की उपलब्धता तथा एक ही मशीन से किसी भी भाषा में काम करने की सुगमता के कारण जैसे-जैसे कम्प्यूटर का प्रयोग व उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है, ई-मेल और भी प्रासंगिक होता जा रहा है।
ई-मेल के माध्यम से सारी दुनिया में किसी भी इंटरनेट से जुड़े हुये कम्प्यूटर पर बैठकर केवल अपने पासवर्ड से ई-मेल के द्वारा आप अपनी डाक देख सकते हैं व बिना कोई सामग्री साथ लिये अपने ई-मेल एकाउंट में सुरक्षित सामग्री का उपयोग कर पत्राचार कर सकते हैं। यह असाधारण सुविधा तकनीक का, युग को एक वरदान है।
आज लगभग हर संस्थान अपनी वेबसाइट स्थापित करता जा रहा है। विजिटिंग कार्ड में ई-मेल पता, वेब एड्रेस, ब्लॉग का पता होना अनिवार्य सा हो चला है। किसी संस्थान का कोई फार्म भरना हो, आपसे आपका ई-मेल पता पूछा ही जाता है।
हार्डकॉपी में जानकारी तभी आवश्यक हो जाती है, जब उसका कोई कानूनी महत्व हो, अन्यथा वेब की वर्चुअल दुनिया में ई-मेल के जरिये ही ढेरों जानकारी ली दी जा रही हैं। मीडिया का तो लगभग अधिकांश कार्य ही ई-मेल के माध्यम से हो रहा है।
विभिन्न कंपनियाँ जैसे गुग्गल, याहू, हॉटमेल, रैडिफ आदि मुफ्त में अपने सर्वर के माध्यम से ई-मेल पता बनाने व उसके उपयोग की सुविधा सभी को दे रही हैं। ये कंपनियाँ आपको वेब पर फ्री स्पेस भी उपलब्ध करवाती हैं, जिसमें आप अपने डाटा स्टोर कर सकते हैं।
क्लिक हिट्स के द्वारा इन कंपनियों की साइट की लोकप्रियता तय की जाती है, व तद्नुसार ही साइट पर विज्ञापनों की दर निर्धारित होती है जिसके माध्यम से इन कंपनियों को धनार्जन होता है।
ई-मेल की इस सुविधा के विस्तार के साथ ही इसकी कुछ सीमायें व कमियाँ भी स्पष्ट हो रही हैं। मुफ्त सेवा होने के कारण हर व्यक्ति लगभग हर प्रोवाइडर के पास मामूली सी जानकारियाँ भरकर, जिनका कोई सत्यापन नहीं किया जाता, अपना ई-मेल एकाउंट बना लेता है।
ढेरों फर्जी ई-मेल एकाउंट से साइबर क्राइम बढ़ता ही जा रहा है। वेब पर पोर्नसाइट्स की बाढ़ सी आ गई है। आतंकी गतिविधियों में पिछले दिनों हमने देखा कि ई-मेल के ही माध्यम से धमकी दी जाती है या किसी घटना की जवाबदारी मीडिया को मेल भेजकर ही ली गई। यद्यपि वेब आईपी एड्रेस के जरिये आईटी विशेषज्ञों की मदद से पुलिस उस कम्प्यूटर तक पहुँच गई जहाँ से ऐसे मेल भेजे गये थे, पर इस सब में ढेर सा श्रम, समय व धन नष्ट होता है।
चूँकि एक ही कम्प्यूटर अनेक प्रयोक्ताओं के द्वारा उपयोग किया जा सकता है, विशेष रूप से इंटरनेट कैफे या कार्यालयों में इस कारण इस तरह के साइबर अपराध होने पर व्यक्ति विशेष की जवाबदारी तय करने में बहुत कठिनाई होती है।
अब समय आ गया है कि ई-मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से जरूरी किया जावे। जब जन्म, मृत्यु, विवाह, ड्राइविंग लाईसेंस, पैनकार्ड, पासपोर्ट, राशन-कार्ड, जैसे ढेरों कार्य समुचित कार्यालयों के द्वारा निर्धारित पंजीयन के बाद ही होते हैं तो इंटरनेट पर यह अराजकता क्यों?
ई-मेल एकाउंट के पंजीयन से धारक का डाक्यूमेंटेड सत्यापन हो सकेगा तथा इसके लिये निर्धारित शुल्क से शासन की अच्छी खासी आय हो सकेगी । पंजीयन आवश्यक हो जाने पर लोग नये नये व्यर्थ ई-मेल एकाउंट नही बनायेंगे, जिससे वेब स्पेस बचेगी, वेब स्पेस बनाने के लिये जो हार्डवेयर लगता है, उसके उत्पादन से जो पर्यावरण ह्रास हो रहा है वह बचेगा, इस तरह इसके दीर्घकालिक, बहुकोणीय लाभ होंगे।
जब ई-मेल उपयोगकर्ता वास्तविक हो जायेगा तो उसके द्वारा नेट पर किये गये कार्यों हेतु उसकी जवाबदारी तय की जा सकेगी। हैकिंग से किसी सीमा तक छुटकारा मिल सकेगा। वेब से पोर्नसाइट्स गायब होने लगेंगी, व इससे जुड़े अपराध स्वयमेव नियंत्रित होंगे तथा सेक्स को लेकर बच्चों के चारित्रिक पतन पर कुछ नियंत्रण हो सकेगा।
चूंकि इंटरनेट वैश्विक गतिविधियों का सरल, सस्ता व सुगम संसाधन है, यदि जरूरी हो तो ई-मेल पंजीयन की आवश्यकता को भारत को विश्वमंच पर उठाना चाहिये। मेरा अनुमान है कि इसे सहज ही विश्व की सभी सरकारों का समर्थन मिलेगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर माफिया आतंकी अपराधों के उन्मूलन में भी इससे सहयोग ही मिलेगा।
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विवेक रंजन श्रीवास्तव
(लेखक को नवाचार व रचनात्मक साहित्यिक गतिविधियों के लिये रेड एण्ड व्हाइट पुरुस्कार मिल चुका है)
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