मितान परम्परा
गंगाजल, महापरसाद, भोजली, जँवारा, गंगा-बारु, तुलसी-जल, नरियर फूल, मितान अउ फूल-फूलवारी बधके अपन मया के बँधना लापोट करे जाय।
गउ अउ धरती महतारी के सेवा
दूध, दही, घी, गोबर अउ गउ मूत जइसे अउसधी के संगे-संग किसान के संगवारीबइला देवइय्या गउ माता अउ हमर जिनगी के सिरजइय्या धरती महतारी के जी जान ले सेवाकरे जाय। ऋषि-कृषि ल बढ़ावा देय जाय।
सियान मन के असीस
सियान मनखे मन कना अनुभवअउ गियान के अड़बड़ भंडार रथे। ऊँच-नीच, सुख-दुख, अउ दुनियादारी सबला देखे सुने अउ सहे हे वोमन।ऊँखर छाइत अउ आसीरवाद हमर ताकत ए। वोला बिसराना नइहे।
खेती बँटवारा उचित नइहे
खेती के बँटवारा नइ करकेउपज ल बाँटे म जादा भलई हे।
पुरखउती खेल अउ लोक साहित्य के चलन
हमर पुरखउती खेल कबड्डी, गोंटा, खो-खो, फुगड़ी, सुरगोटा के संग-संग लोक साहित्य कहानी, कंथली, हाना- बाना, जनउला, लोकगीत ल जादा ले जादा चलन म लाये बर परही।
नसा के नास अउ सापर भाव के आस
बिनास के जर नसा अउजुआ-चित्ती ले दुरिहा रहना जरुरी हे। सहकार, सापर के भावना ल पनपा के साहूकार मनके चंगुल लेबचे बर परही।
केशवराम साहू
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