अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग की ऐसी महिलाएँ जिनके पास जमीन नहीं है, भूमिहीन हैं, उन्हें एक सर्वे के माध्यम से चिन्हित कर उनकी बैठकें की गई । यह क्रम गुण्डरदेही विकासखण्ड के 159 ग्रामों में किया गया । चिन्हित महिलाओं को 05 से 07 की संख्या में जोड़ते हुए उनका समूह बनाया गया तथा समूह को संयुक्त देयता समूह नामकरण किया गया तथा इन समूहों में अध्यक्ष एवं सचिव का चुनाव कर विधिवत बैंक में खाता खुलवाकर प्रत्येक सदस्य का 20 से 25 रूपये आर्थिक योग्यतानुसार जमा करवाया गया जो समूह इस कार्य को पूर्ण करते गये उनकी बैठकें की गई तथा उन्हें रेगहा में (ऐसे व्यक्ति जो अपनी जमीन पर खेती नहीं करते दूसरों को सालाना रेघ दे देते हैं) खेती करने हेतु प्रेरित किया जिस पर वे सहर्ष तैयार हो गई और अपने-अपने ग्रामों में ऐसे जमीन की तलाश करने लगी जो रेघ में जमीन देते हैं तत्पश्चात उनकी सूची तैयार कर बैंक से संपर्क किया गया । जिस बैंक में उनका खाता है । बैंक से हुई चर्चानुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रति एकड़ चार हजार रूपये तीन प्रतिशत ब्याज दर पर दिया जाना तय हुआ प्रथम वर्ष में 57 संयुक्त देयता समूह का निर्माण कर 679 भूमिहीन परिवारों की महिलाओं को जोड़कर उन्हें 45 लाख रूपये बैंक के माध्यम से दिलवाया गया जिसे प्राप्त कर वे रेगहा में खेती कर रही हैं साथ ही उन्हें किसान क्रेडिट कार्ड धारक बनाया गया और समय-समय पर धान का फसल काट कर बैंक का पैसा ब्याज सहित वापस कर रही हैं समूह की अध्यक्ष पंच बाई कहती है कि- हम बेसहारा, मजदूर महिलाओं को मजदूरी कर अपना जीवन बसर कर थी आज अपना स्वयं का खेती कर बहुत प्रसन्न हैं अगर हमें श्री बी.के. मिश्रा जी उपमहाप्रबंधक नाबार्ड दुर्ग एवं शमशाद बेगम द्वारा मार्गदर्शन नहीं मिलता तो शायद हम मजदूर ही रहती लेकिन आज हम मालिक हैं । शमशाद बेगम कहती है कि यह एक छोटा सा उदाहरण है अभी तो मुझे हजारों लाखों महिलाओं को इस प्रकार के व्यवसाय से जोड़ना है और आत्मनिर्भर बनाना है ।
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