अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य महिलाओं के उत्थान के लिए उन्हें संगठित कर गाँव-गाँव, घर-घर संपर्क कर अभियान चलाकर उनसे संपर्क किया गया तब वे महिलाएँ घरसे बाहर निकलना, समूह प्रबंधन के बारे में बात नहीं करता चाहती थी ऐसी विषम परिस्थिति में काफी कठिनाईयों के बाद गाँव की कुछ जागरूक महिलाओं ने साथ दिया और ग्राम-डुड़िया में प्रथम 10 महिलाओं का समूह बना, उनकी बैंठकें हुई और उन्हीं महिलाओं के सहयोग से 03 समूह गठन किये गये फिर उनमें बचत की भावना को बढ़ावा देते हुए प्रतिमाह 10 रू. प्रति सदस्य बचत करने पर राजी किया गया उनका विधिवत बैंक में खाता खुलवाया गया तथा उनमें अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष का चुनाव कर खाता संचालन की जवाबदारी भी उन्हें सौंपी गई, इस प्रकार से सफलता मिलने पर 16 ग्रामों में इस अभियान को मूर्तरूप दिया गया। महिलाओं के कल्याण एवं संबलीकरण के लिए उन्हें नेतृत्व क्षमता, समूह प्रबंधन, के गुर सिखलाया गया जिससे महिलाएँ तेजी से संगठित हुई और प्रत्येक ग्रामों में 10 से 30 तक की संख्या में ‘‘स्व-सहायता समूह” नामक संगठन गठित होने लगे इस प्रकार से 163 ग्रामों में स्व-सहायता समूह स्थापित करने में विशेष सफलता मिली, वर्तमान में इन समूहों की संख्या 1600 है जो दुर्ग जिले व पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में विकासखंड स्तर पर सर्वाधिक है। जिसमें 24,000 ग्रामीण महिलाएँ सदस्य के रूप में जुड़ी हुई है, इन समूहों के द्वारा अलग-अलग बैंकों में कुल जमा राशि 95 लाख रू. हो चुकी है। आज वर्तमान में समूह सशक्त है तथा बैंक से जुड़कर अपने समूह सदस्यों की आर्थिक मदद कर रहा है।
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