शनिवार, 18 मई 2013

मितान

भक्तु अड़बड़ दिन मा भेलई सहर ले अपन पिरोहिल गाँव किसनपुर अइस। नवाँ तरिया तीर के अमरइया ला देख के एक परत के रो डरिस, गाँव के सरी रुख-राई ला बइरी मन काट डरे हे। नरवा मा मुहूँ धोय बर खोंची भर पानी नइ दिखत हे। बर-पीपर के बड़ जन-जन रूख घलोक ठुठुवा परगे हे। गाँव के संगी सँगवारी मन राम-रमउव्वा ला छोड़के हलो भक्तु काहत हे। भक्तु हा तरवा मा हाँत देके कथे- का जमाना आगे। वइसने गुनत-गुनत अपन छुटपन के मितान रामा महराज के डेरउठी मा गिस, त देखथे सबके घर-कुरिया बदल गेहे, फेर हमर मितान के उहीच खदर छान्हीं के कुरिया हा नइ बदले हे। 

रामा महराज के नानकुन लइका माधो ला कथे- जा तो बाबू..! महराज ला बलाथे कबे। लइका हा दँउड़त-दँउड़त जाके किहिस- कोन जनी कोन मइनखे आय हे अउ रामा महराज काँहा हे कहिके पूछत हे। रामा महराज आके देखथे, त ओखर छुटपन के सँगवारी भक्तु हरे, ओला पोटार लिस, दुनों संगी अइसे मिलिन जइसे दुवापर जुग के किसन अउ सुदामा। मयाँ मा आँसू घला छलछलागे अउ दुनों झन तइहा के बात ला गोठियाय लगिन। रामा महराज कथे- बड़ दिन मा मिलेन सँगवारी आ बइठ ये दे माँची मा, मँय हा तोर आय के खभर हमर महराजिन ला बतावत हँव। महराजिन ला जब बतइस त, लोटा मा पानी अउ चहा के कप धर के अइस। भक्तु महराजिन भउजी के पाँव परिस, असीरबाद पइस अउ महराजिन हा खाय-पिये के जोखा करे लगिस अउ दुनों मितान मुहूँ मा मुहूँ जोर के गोठियाय लगिन। रामा महराज कथे- अड़बड़ अकन मोर लइका हे, न खार मा खेत... न गाँव मा कोठार, क था-पुजा ए जिनगी के अधार। भक्तु कथे- संगवारी..! मँय हा भेलई चल देंव, त दु आखर पढ़ई मोर काम आगे, मोर दुनों लइका के थेरभाव लग गे, उहाँ नानकुन घर बनाय हाबँव, हमर घर के हा बड़ बिछलहिन हे, नानेनान बात ला पहाड़ कस बना देथे, मँय हा हमर नवॉंघर के पुजा कराहूँ, तुमन ला नेंवता देवत हँव। जम्मो माईंपिला आहू, पुजा-पाठ निबाहू, दसो अँगरी ला जोर के मँय हा बिनती करत हँव। रामा महराज अपन मितान के गोठ ला सुन के कथे- का भइस, रामनम्मीं के दिन हमन सबो झन आ जबो अउ पुजा-पाठ निपटाके लहुट जबो। 

रामनम्मीं के दिन रामा महराज माईं-पिला भक्तु के घर ला पूछत पहुँचगे, रेवती दुनों मितान के परेम ला देख के अकबका गे, पिड़हा लान के फुलकँसिया थारी अउ लोटा मा पानी लान के गोड़ ला धोईस अउ घर भर मा छितवइस। रामा महराज कथे- भक्तु..! तँय हा मोर सुदामा के अतक आदर करत हस, ए करजा ला कब छुटहूँ। ले पुजा-पाठ के जोरा ला कर, पुजा करिस, त दान-दछिना नइ माँगिस, त भक्तु कथे- मितान..! मँय हा तोला भागवत गीता देवत हँव, ये ला तँय हा बाँचबे अउ हमर पारा मा राधा किसन के मंदिर हे तिहाँ पुजा करबे, दुनों लइका के पढ़ाय के जोखा मँय हा करहूँ अउ हमरे घर रही जाव। 

रामा महराज अपन सबो परानी संग भक्तु कना रहिगे। माधो अउ मदन दुनों महराज के लइका मन ला इसकुल मा भरती करिस। देखते-देखत महराज के दुनों लइका पढ़ डरिन अउ बने नउकरी घला पागे, केहे गेहे- ‘बनाही राम, त बिगाड़ही कोन अउ बिगाड़ही राम, त बनाही कोन।’ एकदिन महराज कथे- सुन सँगवारी..! जादा मिठ मा कीरा पर जथे, अड़बड़ दिन ले तँय हा हमन ला सँवारे, अब गाँव डाहर सुरता जाथे जिहाँ के धुर्रा मा खेलेन-कुदेन जिहाँ उपजेन-बाढ़ेन तेखरो खियाल करना चाही अउ ओ गाँव के सेवा करना धरम होना चाही, त मोला जाय के हुकुम देते। भक्तु कथे- महराज..! ठउँक्का काहत हस। रामा महराज अउ महराजिन ला नवाँ -नवाँ लुगरा-धोती देके बिदा करिस, त उँखर परेम के बात मुहूँअखरा बताना मुसकिल हे- ‘देख रे आँखी, सुन रे कान’ तइसे होगे। 

महराज गाँव मा आके सुंदर असन घर बनइस अउ ओ घर मा भक्तु के देय गीता के इसलोक ला लिखइस इसवर सब परानी के हिरदे मा बास करथे। बछर बीते भक्तु अपन गाँव किसनपुर अइस, त महराज के घर ला देखिस, त ओखरो मन मा संग के सँगवारी कना रहूँ कहिके भक्तु घला घर बनवा डरिस। दुनों मितान किसन-सुदामा अस राहन लगिन। दुनों झन के मितानी देख के कतकोन झन काहँय- सँगवारी होवय, त रामा महराज अउ भक्तु कस। फेर गाँव बिगाड़ुक मन के ये संसार में कमी थोरहे हे, लुहइया अउ लुटलुट के खवइया मंगलू अउ समारु किसनपुर मा राहय। जुझाना-लड़ाना अउ बिगाड़ना इँखर कामेच राहय। एकदिन रामा महराज कना जाके मंगलू, समारु केहे लगिन- महराज..! आज भक्तु काहत रिहिस... रामा महराज के बनौकी ला मँय हा बनाय हँव, नइ ते ओ हा नँगरा के नँगरा रतिस। रामा महराज ये बात ला सुन के तरमरागे अउ भक्तु संग बोली-ठोली बंद कर दिस। भक्तु सोंचय- महराज ला का होगे हे, पोंसे डिंगरा खरही मा आग लगाय तइसे होगे। दुवसहा चाँउर-दार अपन परानी कना रामा महराज घर पठोइस, त का पूछबे रामा महराज कथे- हमन पर के जूठा मा पले हाबन ये चाँउर-दार ला ले जाव। भक्तु हा चौपाल मा बइठके सियनहा मन के मुहूँ ले तइहा के बात ला सुनत राहय। भक्तु के घरवाली बमफार के रोवत-रोवत आत राहय। फेर का बात होगे, रेवती कोनों-कोनों संग रात दिन हर-हर कट-कट होते रइथे, अइसे भक्तु सोंचन लगिस। भक्तु के मन मा एकठन बात रिहिस रामा महराज के मुहूँ ले हमन भागवत सुनतेन, ये गोठ ला रेवती कना किहिस, त रामा महराज जउन रेवती ला बात केहे रिहिस तेला बतइस, रामा महराज के हिरदे मा मंगलू, समारु के गोठ हा बान बरोबर चुभत राहय। ये बात ला चार झन कना गोठियाहूँ तभेच पेट के सी था हा पचही। रामा महराज बइटका मा बात ला फरियइस, त भक्तु कथे- महराज..! सपना मा घला अइसने नइ सोंचव, बाजिब बात ला बता कोन केहे रिहिस, त मंगलू अउ समारु के नाँव बतइस। मंगलू, समारु ला गाँव बइटका मा बलइस, त उँखर पोलपट्टी खुल गे। लड़ा के, भिंड़ा के अपन बइठॉंगुर जिनगी ला अइसने गुजारा करइया ताय। सब्बो गाँव के मन मंगलू, समारु ला डॉंड़िन, उँखर दसा देखते बनय, त रामा महराज कथे- ‘नहाय नँगरा निचोय काला’ मंगलू समारु ला छमा माँगे बर किहिस। मंगलू, समारु चार गंगा कना छमा माँगिस अउ बिगाड़ुक काम ला छोड़के खेती किसानी करे लगिन अउ गाँव मा सब झन संग सुम्मत से रहिके गाँव ला सरग बनाय मा हाँथ बटइन। 

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आप भी चौक गये ना? क्योंकि हमने तो नील तक ही पढ़े थे..!